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कृषि (Agriculture) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

कृषि 

  • भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषक आयोग की सिफारिशों को मानते हुए और राज्य सरकारों से परामर्श करने के बाद राष्ट्रीय कृषक नीति 2007 को अपनाया है। 

इसकी व्यापक क्षेत्र शामिल हैं
(1) उत्पादन और उत्पादकता पर ही किसानों के आर्थिक स्थिति में सुधार करने पर ध्यान केन्द्रित रहेगा।
(2) यह सुनिश्चित करना है कि गांवों में कृषक परिवार के पास उत्पादन परिसंपत्ति अथवा विपणन योग्य धरक है अथवा प्राप्त करनी है।
(3) जल की प्रति यूनिट से अधिकतम पैदावार और आय की अवधरणा को सभी पफसल उत्पादक कार्यक्रमों में अपनाया जाएगा और जल के उपयोग से सम्बंधी जागरूकता और कार्यकुशलता पर बल दिया जाएगा।
(4) नई प्रौद्योगिकियां जैव प्रौद्योगिकी सहित आसूचना और संचार प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय उफर्जा प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुप्रयोग और नैनो-प्रौद्योगिकी इत्यादि भूमि और जल की प्रति यूनिट उत्पादकता बढ़ाने में सहायक हो सकती है।

  • राष्ट्रीय कृषि जैव-सुरक्षा प्रणाली को समन्वित कृषि जैव-सुरक्षा कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए स्थापित किया जाएगा।
  • लघु कृषि उत्पादन को बढ़ाने में अच्छी गुणवत्ता के बीज, बीमारी मुक्त रोपण सामग्री एवं मृदा किस्म में सुधर की महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • प्रत्येक किसान को मृदा स्थिति पास-बुक जारी की जानी है जिसमें फार्म की मिट्टी की समेकित जानकारी और अनुवर्ती परामर्श दिए होने चाहिए।
  • जब महिलाएं पूरे दिन खेतों और जंगलों में काम करती हैं, तो उन्हें उचित सहायता सेवाएं जैसे शिशुसदन बाल सेवा केन्द्र तथा पर्याप्त पोषण की आवश्यकता होती है।
  • किसानों को उचित ब्याज दरों पर वित्तीय सेवाएं समय पर, पर्याप्त मात्रमें और आसानी से मुहैया करायी जाएगी।
  • विस्तार सेवाओं को सुदृढ़ करने के लिए राज्य सरकारों के माध्यम से आईसीटी की सहायता के साथ ग्राम स्तर पर ज्ञान चैपाल और उत्कृष्ट कृषकों के क्षेत्र में कृषक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए फार्म स्कूल स्थापित किए जाएंगे।
  • कृषकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना को समुचित महत्व प्रदान करने हेतु आवश्यक उपाय किए जाएंगे।
  • पूरे देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य कार्यप्रणाली प्रभावी रूप से क्रियान्वित होगी, ताकि कृषि उत्पादों के लाभकारी मूल्य प्रदान किए जा सकें।
  • शुष्क भूमि, कृषि क्षेत्र में मुख्यतः उगने वाले बाजरा, ज्वार, रागी, मिलेट जैसे पोषक पफसलों को शामिल कर भोजन सुरक्षा का विस्तार किया जाएगा।

12वीं पंचवर्षीय योजना में संचालित केंद्रीय मिशन एवं अन्य योजनाएं
केन्द्रीय योजनाएं

  • नेशनल क्रॉप इंश्योरेंस स्कीम (NCIS)
  • इंटीग्रेटेड स्कीम इन एग्रीकल्चर क्रॉप ऑपरेशन (ISAC)
  • इंटीग्रेटेड स्कीम ऑन एग्रीकल्चर मार्केटिंग (ISAM)
  • इंटीग्रेटेड स्कीम इन एग्रीकल्चर सेंसस इकोनॉमिक्स ए.ड स्टेटिस्टिक्स (ISCH&SA)
  • सेक्रेटेरिएट इकनोमिक सर्विस (SES)

राज्य  योजना के तहत

  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) मिशन
  • नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन (NFSM)
  • नेशनल मिशन  ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (NMSA)
  • नेशनल मिशन  ऑन ऑइलसीड्स ए.ड ऑइल पाम (NMOOP)
  • नेशनल मिशन ऑन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन एण्ड टेक्नोलॉजी (NMAET)
  • मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH)

पंचवर्षीय योजनाएं एवं कृषि
प्रथम पंचवर्षीय योजना

  • पहली पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य था द्वितीय विश्व युद्ध एवं देश के विभाजन से अर्थव्यवस्था में आए असंतुलन को दूर करना तथा इसके साथ-साथ अर्थव्यवस्था के चहुंमुखी विकास की प्रक्रिया शुरू करना। '
  • इस योजना में कृषि, सिंचाई तथा बिजली को प्राथमिकता दी गयी। 
  • यह योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हो गई। इस अवधि में कृषि उत्पादन में 20% की वृद्धि हुई। 
  • उन्नत किस्म के बीज, उर्वरक एवं कीटनाशकों के अनुसंधान के प्रयासों को बढ़ावा दिया गया। कृषि में विभिन्न प्रकार के सुधार कार्यक्रम शुरू किए गए। सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप इस योजना के दौरान निर्धारित लक्ष्य में 42 लाख टन की वृद्धि हुई।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना

  • द्वितीय योजना का मुख्य उद्देश्य देश में समाजवादी ढंग के समाज की स्थापना करना था।
  • इस योजना में औद्योगीकरण को सर्वाधिक महत्व दिया गया परन्तु इसके साथ-साथ कृषि, परिवहन एवं संचार सेवाओं के विकास पर 530 करोड़ रुपया खर्च करने का प्रावधान किया गया जो कुल योजना राशि का 11% था।
  • विद्युत शक्ति एवं सिंचाई के लिए 865 लाख रु. अर्थात 16% की व्यवस्था की गयी।
  • इस अवधि में खाद्यान्नों का उत्पादन 648 लाख टन से बढ़कर 76 लाख टन हो गया परन्तु यह निर्धारित लक्ष्य से 45 लाख टन कम था।

तृतीय पंचवर्षीय योजना

  • तृतीय पंचवर्षीय योजना में कृषि तथा सामुदायिक कार्य पर 1089 करोड़ रु. खर्च किए गए जो कुल योजना राशि का 12.7% था तथा सिंचाई पर 650 करोड़ रु. अर्थात 9% व्यय किए गए। 
  • कृषि उत्पादन वृद्धि की दर 2% वार्षिक थी जबकि वृद्धि लक्ष्य 6% वार्षिक था। 
  • खाद्यान्नों का उत्पादन योजना के अन्त में 720 लाख टन ही हो सका जबकि लक्ष्य 1000 लाख टन का निर्धारित था।

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना

  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। इस योजना में कृषि व सम्बन्धित उद्योगों के लिए 2,728 करोड़ यानी 17.1% खर्च किया गया। 
  • कृषि उत्पादन 980 लाख टन से बढ़कर 1-290 लाख टन पहुँचने का लक्ष्य था, परन्तु इसमें खाद्यान्न उत्पादन कम हुआ।

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना

  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य निर्धनता उन्मूलन एवं आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। इस योजना में कृषि पर कुल व्यय राशि 4,643 करोड़ रु. अर्थात् 11.8% रखी गयी तथा सिंचाई के लिए 3,440 करोड़ रु. अर्थात 8.7%रखी गई। 
  • इस योजना काल में कुल खाद्यान्न उत्पादन 1,264 लाख टन ही हो पाया जो लक्ष्य से 135 लाख टन कम था।

छठी पंचवर्षीय योजना

  • इस योजना में अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के समन्वित और चहुँमुखी विकास पर बल दिया गया। 
  • योजना के विकास कार्य नीति में गरीबी हटाने, लाभदायक रोजगार पैदा करने, प्रौद्योगिकी एवं आर्थिक क्षेत्रमें आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और कृषि तथा उद्योग का आधार मजबूत करने की दिशा मेें तेजी से प्रगति करने की बात कही गयी। 
  • इस योजना में कृषि के लिए 15,201.00 करोड़ रु. निर्धारित थे जो कुल व्यय राशि का 13.9% था। 
  • सिंचाई तथा बाढ़ नियंत्रण के लिए 41,681 करोड़ रुपये. की व्यवस्था थी जो कुल व्यय राशि का 38.1% था।
  • छठी योजना के अन्त तक खाद्यान्नों की उपज 1-575 लाख टन हो गयी जबकि लक्ष्य 1ए540 लाख टन रखा गया था।

सातवीं पंचवर्षीय योजना

  • इस योजना में विकास, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय जैसे मूलभूत सिद्धान्तों का पालन करते हुए खाद्यान्न उत्पादन, रोजगार और उत्पादकता बढ़ाने की नीतियों एवं कार्यक्रमों पर अधिक जोर दिया गया। 
  • इस योजना में कृषि तथा संबंधित क्षेत्र में कुल 10,523.62 करोड़ रु. खर्च का प्रावधान था। सिंचाई एवं बाढ़ नियन्त्राण के लिए 16,978.65 करोड़ रु. व्यय किया गया। इस दौरान खाद्यान्न में वृद्धि 3.23% थी।

आठवीं पंचवर्षीय योजना

  • आठवीं योजना के अंतर्गत खेती की पैदावार की प्रौद्योगिकी के लाभों को स्थायी व सुदृढ़ करने के प्रयास किए गये ताकि घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके तथा निर्यातोन्मुख उत्पादन में वृद्धि की जा सके।
  • इस योजना के अन्त में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 21 करोड़ टन रखा गया। आठवीं योजना का मुख्य प्रयास चावल, दालों एवं तिलहनों के उत्पादन को बढ़ाना था। 
  • पहली बार देश में खाद्यान्नों के निर्यात और दालों एवं तिलहनों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया गया था। कृषि में वांछनीय वृद्धि के लिए आवश्यक है कि
    (1) शुष्क खेती पर बल दिया जाय
    (2) हरित क्रांति को अन्य क्षेत्रों में फैलाया जाय
    (3) कृषि कुशलता को उन्नत किया जाए।
  • आठवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 56-892 करोड़ रुपये कृषि तथा सम्बद्ध कार्यों के लिए तथा सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्राण के लिए 32-525 करोड़ रुपये तय किये गये।
  • योजनाकाल के दौरान खाद्यान्न-उत्पादन की वृद्धि दर 3.37 प्रतिशत रही, जबकि लक्ष्य 4 प्रतिशत का था। योजना के दौरान सार्वजनिक विनियोग विशेषकर सिंचाई के विनियोग में तेजी से गिरावट आयी। 
  • कृषि उत्पादन की मन्द वृद्धि का एक गंभीर प्रभाव यह हुआ कि आठवीं योजना के दौरान खाद्यान्नों की कीमतों में तीव्र वृद्धि हुई तथा वसूली कीमतों में 13 से 14 प्रतिशत की वा£षक वृद्धि हुई।

नौवीं पंचवर्षीय योजना

  • नौवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारूप में कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता की गई है। 
  • 4 प्रतिशत प्रतिवर्ष की तेज कृषि-विकास की दर पर जोर दिया गया है। 
  • यह लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब कृषि क्षेत्रमें पर्याप्त निवेश हो सिंचाई सुविधाएं बढ़े, उर्वरक, उन्नत बीज और उचित दर पर ऋण सुलभ हो। बिजली की कमी से कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
  • नौंवी पंचवर्षीय योजना के दौरान कृषि तथा संबंधित क्षेत्रों के लिए 37-546 करोड़ रुपये तथा सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्राण के लिए 55-598 करोड़ रुपये परिव्यय करने का लक्ष्य रखा गया था।
  • सकल घरेलू उत्पादन की वृद्धि दर आठवीं योजना में 6.7 प्रतिशत की तुलना में 5.3 प्रतिशत थी। वृद्धि दर में कमी विशेषत कृषि तथा निर्यात क्षेत्र में रही।
  • कृषि एवं संबंधित गतिविधियों में साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद की प्रतिशतता 25.7 थी।

दसवीं पंचवर्षीय योजना

  • कृषि एवं सम्बन्ध गतिविधियों का वृद्धिदर 2.3%रहा। 2005-06 के चैथे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक अनाजों का उत्पादन 20 करोड़ 83 लाख टन हुआ है।

11वीं पंचवर्षीय योजना

  • कृषि के क्षेत्र में विकास दर 4% निर्धारित की गयी थी, किन्तु इस योजना के पहले 4 वर्षों (2007.11) के दौरान इस क्षेत्र में हासिल की गई विकास दर लगभग 3.2%रही।
  • कृषि क्षेत्र का देश की GDP में योगदान (2004-05 ) की कीमतों परद्ध लगभग 15.7% रहा है।
  • कृषि क्षेत्र में लगभग 58.2%लोगों को रोजगार भी मिला।

12वीं पंचवर्षीय योजना

  • कृषि क्षेत्र में 4% की औसत वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य।
  • योजना के अंत तक सकल सिंचित क्षेत्रफल को वर्तमान में 90 मिलियन हेक्टेयर से बढ़ाकर 103 मिलियन हेक्टेयर करना।
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FAQs on कृषि (Agriculture) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. कृषि (Agriculture) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था UPSC क्या है?
उत्तर: कृषि (Agriculture) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था UPSC एक विषय है जिसमें कृषि और उससे संबंधित मुख्य विषयों को परीक्षा करने का अवसर प्रदान किया जाता है। यह परीक्षा उम्मीदवारों की कृषि विषय के प्रतिष्ठित ज्ञान, कृषि अर्थव्यवस्था, पारंपरिक अर्थव्यवस्था, कृषि नीति, कृषि उत्पादन, और कृषि विकास के बारे में अच्छी जानकारी का माप लेती है।
2. किसानों के लिए पारंपरिक अर्थव्यवस्था क्या है और उसका महत्व क्या है?
उत्तर: पारंपरिक अर्थव्यवस्था किसानों के लिए उनके कृषि उत्पादों को बेचने और बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसका माध्यम ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को बाजार में उत्पादों को पहुंचाने में मदद करता है और उन्हें प्रतिष्ठित ब्रांड संचालन और उत्पादों की मांग को विवेकपूर्वक उपयोग करने का अवसर प्रदान करता है। इसके लिए, पारंपरिक अर्थव्यवस्था के माध्यम से, किसान उचित मूल्य प्राप्त कर सकते हैं और अपने उत्पादों की बिक्री को सुनिश्चित कर सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है।
3. कृषि नीति क्या होती है और यह किसानों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: कृषि नीति एक सरकारी नीति है जो कृषि क्षेत्र में सुधार को प्रोत्साहित करती है और किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। यह नीति किसानों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से विभिन्न योजनाएं, कर, ऋण और अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं जो किसानों को उत्पादकता को बढ़ाने, उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ाने, खेती के लिए नई तकनीकों का उपयोग करने और बाजार में उत्पादों को बेचने के लिए समर्थन प्रदान करती है।
4. कृषि उत्पादन में परंपरागत और मॉडर्न तकनीकों के बीच क्या अंतर है?
उत्तर: कृषि उत्पादन में परंपरागत और मॉडर्न तकनीकों के बीच अंतर की मुख्य बातें हैं। परंपरागत तकनीकों में मुख्य रूप से हाथ से की जाने वाली खेती, जीवाश्म, खेती उपकरणों के उपयोग, और अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। मॉडर्न तकनीकों में तकनीक का उपयोग, उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग, कृषि मशीनरी, समय पर बीज बोना, उच्च उत्पादकता, और कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है। मॉडर्न तकनीकों का उपयोग करके कृषि उत्पादन में बेहतर उत्पादकता और गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है।
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