आंतरिक सुरक्षा | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

आंतरिक सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पहलू है। यह कानून और व्यवस्था, लोगों की संपत्ति की सुरक्षा,राष्ट्र की एकता व अखंडता से संबंधित है। लोगों के मौलिक अधिकार और मानवाधिकार सुरक्षित रखने के लिये भी सुदृढ़आंतरिक सुरक्षा का होना आवश्यक है। किसी भी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति तीन महत्त्वपूर्ण लक्ष्य सामने रखकर बनाईजाती है, ये लक्ष्य निम्नलिखित हैंः

  1. देश की संप्रभुता की रक्षा करना।
  2. क्षेत्राीय एकता और अखंडता बनाए रखना।
  3. देश में आंतरिक शांति बनाए रखना।
  • र्तमान में आतंकवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रावाद और भ्रष्टाचार देश के लिये गंभीर चुनौतियाँ हैं। भारत में आतंकवादी अथवा उग्रवादी गतिविधियाँ, नृजातीय संघर्ष, धार्मिक कट्टरता आंतरिक सुरक्षा के लिये एक बड़े खतरे के रूप में सामने आए हैं।
  • भारत स्वतंत्राता के बाद से ही आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है। समाज विरोधी वराष्ट्र विरोधी तत्त्वों द्वारा अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये संगठित रूप से अव्यवस्था व असंतुलन का माहौल निर्मितकिया गया है। आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ खड़ी करने का लक्ष्य यह सि( करना होता है कि देश की कानून औरव्यवस्था कमशोर है तथा इसे चुनौती देने वाले कानून और व्यवस्था की पहुँच से बाहर हैं। इस प्रकार आंतरिक सुरक्षा कीचुनौती विधि के शासन के समक्ष भी एक चुनौती के रूप में उपस्थित है।
  • आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ कापफी हद तक राष्ट्र की छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मेंयह बहस का विषय बनता है।
  • उद्योग व विदेशी निवेश एवं निवेशकों द्वारा इन स्थितियों के आधार पर राष्ट्र के बारे में दृष्टिकोण निर्मित होता है।आंतरिक सुरक्षा की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को भी प्रभावित करती है। गुजरात और ओडिशा के कंधमाल में हुए दंगों नेविदेशों में भारत की छवि कापफी धूमिल की। मादक पदार्थों की तस्करी, मानव दुव्र्यापार, मानव अंगों की तस्करी वखरीद-पफरोख्त मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। ऐसी स्थितियाँ देश की आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ भारत की संप्रभुताके समक्ष भी चुनौती हैं।
  • एक देश की अपनी सीमाओं के अंदर की सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा है। इसमें अपने अधिकार क्षेत्र में शांति, कानून और व्यवस्था तथा देश की प्रभुसत्ता बनाए रखना मूलरूप से अंतर्निहित है।
  • बाह्य सुरक्षा से आंतरिक सुरक्षा कुछ मायनों में अलग है, क्योंकि विदेशी देशों के आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करना बाह्य सुरक्षा है। बाह्य सुरक्षा की जिम्मेवारी केवल देश की सेना की है जबकि आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेवारी पुलिस के कार्य क्षेत्र में आती है, जिसमें केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों द्वारा मदद प्रदान की जाती है।
  • भारत में, आंतरिक सुरक्षा का उत्तरदायित्व ‘गृह मंत्रालय’ का और बाह्य सुरक्षा की जिम्मेदारी 'रक्षा मंत्रालय’ की है। कई देशों में गृह मंत्रालय को आंतरिक मामलों का मंत्रालय भी कहा जाता है।

खतरों का वर्गीकरण

(i) कौटिल्य ने अर्थशात्र में लिखा है कि एक राज्य को चार प्रकार के खतरों का जोखिम हो सकता है

  • आन्तरिक
  • बाह्य
  • आन्तरिक सहायता प्राप्त बाह्य
  • बाह्य सहायता प्राप्त आन्तरिक

(ii) भारत की आंतरिक सुरक्षा को कौटिल्य द्वारा बताये गये उपर्युक्त चारों प्रकार के खतरे हैं।

(iii) बदलता बाह्य परिवेश भी हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में होने वाली घटनाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इसलिए आज के सूचना और डिजिटल युग में देश की सुरक्षा के आंतरिक अथवा बाह्य खतरें दोनों एक-दूसरे से आपस में जुड़े हैं और इन्हें एक-दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता।

(iv) पिछले कुछ वर्षों से हमारी आंतरिक सुरक्षा का खतरा कई गुणा बढ़ गया है। आंतरिक सुरक्षा की समस्या ने हमारे देश के विकास और प्रगति को प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया है और यह अब सरकार की मुख्य चिंताओं में से एक है।

आंतरिक सुरक्षा के अवयव

  • देश की सीमाओं की अखंडता एवं आंतरिक प्रभुसत्ता का संरक्षण
  • देश की आंतरिक शांति बनाए रखना।
  • कानून व्यवस्था बनाए रखना।
  • विधि का कानून और कानून के समक्ष एकरूपता-बिना भेदभाव के सभी को देश के कानून के अनुसार न्याय।
  • डर से मुक्ति, संविधान में व्यक्ति को दी गई स्वतंत्रता का संरक्षण।
  • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं साम्प्रदायिक सद्भाव।

आंतरिक सुरक्षा के लिए मुख्य चुनौतियाँ

भारत की स्वतंत्रता के साथ ही आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी कुछ समस्याएं भी सामने आईं। जम्मू एवं कश्मीर राज्य के भारत में विलय के समय से ही आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी कुछ समस्याएं उत्पन्न हो गई थीं। आजादी के समय हुए बंटवारे के दौरान अप्रत्याशित हिंसा हुई जिसमें लाखों लोग मारे गए। इस प्रकार साम्प्रदायिकता की समस्या रूपी राक्षस आजादी के दौरान ही सक्रिय हो गया जो कि बाद में दंगों के रूप में बार-बार सामने आता रहा है।

मुख्य चुनौतियां
  1. भीतरी प्रदेशों में फैलाना आतंकवाद
  2. जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद
  3. पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह
  4. वामपंथी उग्रवाद
  5. संगठित अपराध और आतंकवाद के साथ इनका गठजोड़
  6. सांप्रदायिकता
  7. जातीय तनाव
  8. क्षेत्रवाद एवं अंतर-राज्य विवाद
  9. साइबर अपराध एवं साइबर सुरक्षा
  10. सीमा प्रबंधन
  11. तटीय सुरक्षा
  • एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप में हमें आशा थी कि हम इन समस्याओं का समाधान कर लेंगे और राष्ट्र को नवनिर्माण और विकास के रास्ते पर ले जाएंगे लेकिन देश के अलग-अलग भागों में उभरी आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं ने देश के विकास में बाधा उत्पन्न की है। भाषाई उपद्रवों, राज्यों के आपसी विवादों, धार्मिक एवं जातीय वैमनस्य इत्यादि कारणों से कई वर्षों से भारत की आंतरिक समस्याएं कई गुना बढ़ गई हैं। 1956 में भाषाई उपद्रवों के कारण देश को भाषा के आधार पर राज्यों को पुर्नगठन करने के लिए बाध्य होना पड़ा था।
  • 1950 के दशक में पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति फैली, 1954 में नागालैंड में फिजो ने विद्रोह का झंडा उठाया और बाद में यह विद्रोह मिजोरम, मणिपुर एवं त्रिपुरा राज्यों में भी फैल गया।
  • साठ के दशक के अंतिम चरण में नक्सलवाद के रूप में एक नई समस्या सामने आईं स्वतंत्रता के समय भारत एक अल्प विकसित देश था और हमने देश के नवनिर्माण का कार्य प्रारंभ किया। विकास और तरक्की का जो मॉडल हमने अपनाया वह समतामूलक एवं सर्वव्यापी विकास का था, परन्तु समय के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि हम गरीबी हटाने, बेरोजगारी की समस्या हल करने और देश के कई दूरस्थ क्षेत्रों का विकास करने में असफल रहे हैं। इस स्थिति का कई लोगें द्वारा गलत फायदा उठाया गया और माओवाद/नक्सलवाद/वामपंथी उग्रवाद के रूप में देश की आंतरिक सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया। र्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार भी किया था कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद सबसे बड़ा खतरा है।
  • 80 के दशक में पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित पंजाब का उग्रवाद देखने को मिला। पंजाब में उग्रवाद का बहुत ही घातक स्वरूप देखने को मिला। इस आंदोलन को चलाने के लिए सहायता पड़ोसी शत्रु देश से मिल रही थी। 1990 के दशक में कश्मीर में फिर से राष्ट्र विरोधी बाह्य ताकतों द्वारा समर्थित आतंकवाद का दौर प्रारंभ हुआ है जो कि पिछले एक दशक के दौरान पूरे देश में फैल चुका है। अखिल भारतीय आतंकवाद का महत्व 26/11 के मुम्बई आतंकववादी हमले के दौरान पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है। इसके बाद केन्द्र ने आतंकवादरोधी तंत्र को मजबूत करने लिए कई ठोस कदम उठाने प्रारम्भ किए।
  • अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों/माफिया संगठनों ने संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच गठजोड़ स्थापित कर इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को और बढ़ावा दिया है। इनका धन एकत्रित करने और काम करने का तरीका मुख्य रूप से हथियारों की तस्करी, ड्रग्स की तस्करी, हवाला लेन-देन, काले धन को वैध करने (मनी लांड्रिंग) और देश के विभिन्न भागों में जाली भारतीय मुद्रा नोटों को चलाना था।
  • साइबर सुरक्षा हमारे लिए नवीनतम चुनौती है। हम साइबर युद्ध के निशाने पर हो सकते हैं। हमारे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान अब पूरी तरह से साइबर पद्धति पर आधारित होते हैं जिन्हे खतरा हो सकता है। साइबर हमलों को रोकने की अक्षमता हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए घातक हो सकती है। 2013 के विकीलीक्स इसका एक सजीव उदाहरण है। इंटरनेट और मोबाइल संचार में हुई अभूतपूर्ण क्रांति से यह बात सामने आई है कि सामाजिक मीडिया दुष्प्रचार करने और हिंसा को हवा देने में एक खतरनाक भूमिका निभा सकता है। 2012 में पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थियों का दक्षिण राज्यों से पलायन और वर्ष 2013 में मुज्जफरनगर के जातीय दंगे ऐसे कुछ उदाहरण हैं जो बताते हैं कि कुछ समस्याओं में वृद्धि तेजी से बढ़ रही है संचार प्रणालियों का दुष्परिणाम है।
  • हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए सीमा प्रबंधन एक महत्वपूर्ण पहलू है। एक कमजोर सीमा प्रबंधन विभिन्न सीमाओं से आतंकवादियों, अवैध अप्रवासियों की घुस पैठ और हथियारों, ड्रग्स और जाली मुद्रा की तस्करी में सहायक हो सकता है। पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासियों के खिलाफ घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह सुरक्षा की एक गंभीर समस्या है जिसका अभी हमें संतोषजनक हल खोजना है चाहे वह समाधान राजनीतिक हो या सामाजिक या फिर आर्थिक।
  • हमारी सुरक्षा को लेकर कुछ गैर-परम्परागत, गैर-सैन्य समस्याएं भी हो सकती हैं जैसे प्राकृतिक आपदा, महामारी, ऊर्जा और पानी की कमी, खाद्यान्न सुरक्षा, संसाधनों की कमी, गरीबी, आर्थिक असमानताएं इत्यादि। परन्तु इन्हें इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं किया गया है।

आंतरिक सुरक्षा की समस्या के लिए जिम्मेवार कारक

➤  हमारी आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं के लिए विभिन्न ऐतिहासिक और गैर-ऐतिहासिक पृष्ठभूमियां हैं। इनके बारे में विस्तार से आगामी अध्यायों में चर्चा की गई है। हालांकि कुछ मूल कारण नीचे वर्णित है

  • बेरोजगारी
  • असमान, असंतुलित विकास
  • प्रशासनिक मोर्चों पर विफलता या सुशासन का अभाव
  • साम्प्रदायिक वैमनस्य में वृद्धि
  • जातिगत जागरुकता और जातीय तनाव में वृद्धि
  • साम्प्रदायिक, जातीय, भाषायी या अन्य विभाजनकारी मापदण्डों पर आधारित विवादास्पद राजनीति का उदय
  • कठिन भू-भाग वाली खुली सीमाएं
  • कमजोर आपराधिक न्यायिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार के कारण अपराधियों, पुलिस एवं राजनेताओं के बीच सांठगांठ, जिस कारण संगठित अपराधों का बेरोकटोक होना

➤  आजादी के समय से ही पहले तीन कारक स्वतंत्रता के बाद हमें विरासत में मिले। हम इन तीनों मुद्दों को तो हल करने में असफल रहे ही हैं, दुर्भाग्य से कई नए मुद्दे इसमें शामिल हुए हैं, जिससे हमारी आंतरिक सुरखा की समस्या कई गुणा बढ़ गई है। उपर्युक्त सूची में चौथे, पांचवें और छठे कारक प्रशासनिक विफलताओं और सातवां, आठवां व नौवां दलगत राजनीति के कारण हो सकता है। अंतिम कारक के लिए शासकीय अक्षमता को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। इन कारकों के कारण प्रत्येक समस्या और उभरकर सामने आई हैं और शत्रु पड़ोसी अपना हित साधने के लिए हमारी आंतरिक स्थितियों का फायदा उठाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते। पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई की भारत में हजारों तरीकों से खूनखराबा करने को घोषित नीति है।

आंतरिक सुरक्षा सिद्धांत

हमें उपयुक्त आंतरिक सुरक्षा सिद्धांतों की आवश्यकता है जो कि निम्नलिखित व्यापक घटकों पर आधारित हो सकते हैं-

  • राजनैतिक
  • सामाजिक-आर्थिक
  • प्रशासनिक
  • पुलिस/केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल
  • आसूचना
  • केन्द्र-राज्य समन्वय
  • सीमा प्रबंधन
  • साइबर सुरक्षा
  1. राजनैतिकः सर्वप्रथम हमारे लिए चुनौती के स्वरूप को जानना आवश्यक है कि वो अलगाववादी है, क्षेत्रीय है या कोई अन्य है हमें इनके कारणों का विश्लेषण कर यह देखना होगा कि क्या मांगे संविधान के दायरे में हैं। सिद्धांत के तौर पर एक अलगाववादी आंदोलन को सख्ती के साथ समाप्त करना चाहिए। अलगाववादी तत्वों से निपटने के लिए हमारी नीति स्पष्ट व कड़ा कानून होना चाहिए। क्षेत्रीयतावादियों के प्रति अपेक्षाकृत कुछ नरम दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसी तरह धर्म या जाति सम्बधित मांगों को, जब तक कि वे अत्यधिक विखंडनकारी न हो, सहानुभूतिपूर्ण प्रतिक्रिया मिलनी चाहिए।
  2. सामाजिक-आर्थिकः देश के लिए खतरा बने कई आंदोलनों की पृष्ठभूमि में सामाजिक एवं आर्थिक कारक होते हैं। कई बार सामाजिक-आर्थिक समस्याएं बहुत असली होती है जिनकी जड़ में गरीबी, बेरोजगारी या विस्थापन हो सकता है। ऐसे मामलों में सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कर सुनियोजित तरीके से, बिना भेदभाव निवारण सुनिश्चित करना चाहिए, जिससे समाज के सभी वर्गों को योजना का लाभ बराबर मिल सके और सबका विकास हो सके।
  3. प्रशासनिकः कई बार सुशासन की कमी भी राष्ट्र विरोधी तत्वों के लिए वरदान साबित होती है। ये लोग कुप्रबंधन, सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार, दूरस्थ क्षेत्रों में शासनतंत्र की कमी, तथा कानून का सही तरीके से लागू न होना आदि का भरपूर उपयोग करते हैं। हमें देखना होगा कि क्या प्रशासनिक तंत्र कुछ क्षेत्रों में सचमुच अक्षम हो गया है? यदि हाँ, तो शासन में सुधार करना होगा। देश की अपराधिक न्याय प्रणाली का पुनरुत्थान करने की जरूरत है और कानून प्रवर्तन तंत्र की क्षमताओं को बढ़ाने और उन्नत करने की आवश्यकता है। पुलिस सहित सिविल सेवा तंत्र को बाहरी राजनीतिक प्रभावों से दूर रखना चाहिए। सुशासन प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है। भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार और विकास साथ-साथ नहीं चल सकते।
  4.  पुलिस/केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलः यह देखा गया है कि कई बार पुलिस अत्याचार के आरोप और लोगों की समस्याओं के प्रति पुलिस की संवेदनहीनता पर मतभेद, आंतरिक सुरक्षा की समस्या बढ़ाते हैं। इससे यह देखा गया है कि कई बार पुलिस और सुरक्षा बलों के खिलाफ आंदोलन किए जाते हैं। अफ्सपा (एएफएसपीए) इनमें से एक उदाहरण है। पुलिस को संयमित होने की जरूरत है और इसके जन-सहयोगी बनाने की जरूरत है। हमें पुलिस सुधार करने की आवश्यकता है ताकि पुलिस निष्पक्ष, पारदर्शी और व्यवहारिक बन सकें। स्थानीय हालात को समझ और क्षमताओं को भी बढ़ाने की आवश्यकता है। केन्द्रीय सशस्त्र बलों और राज्य पुलिस में परस्पर समन्वय और सहयोग से आंतरिक सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने की जरूरत है।
  5. केन्द्र-राज्य समन्वयः केन्द्र-राज्य के बीच समन्वय के अभाव ने भी आंतरिक सुरक्षा के संबंधित कई समस्याओं को बढ़ाया है। इंटेलिजेंस से लेकर ऑपरेशन तक सभी जगह समन्वय की समस्या है। हमें ऐसा संस्थागत ढांचा तैयार करने की आवश्यकता है जो केन्द्र और राज्यों की समन्वय समस्याओं को सुलझा सकें ओर सभी स्तरों पर आपसी सहयोग सुनिश्चित कर सके।
  6. आसूचनाः आसूचना आंतरिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग है। हमें आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से सावधान रहने की जरूरत है जो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा खड़ा कर रहे हैं। अधिकतर मुख्य ऑपरेशन आसूचनाओं के आधार पर किए गए हैं। हमें समय से सचेत करने, आसन्न खतरों को निक्रिय करने और आवश्यकतानुसार सुरक्षात्मक कदम उठाने के लिए, रक्षात्मक के साथ-साथ आक्रामक इंटेलिजेंस की भी आवश्यकता है। विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त आसूचनाओं को इकट्ठा करने, उनका परस्पर मिलाप करने और फिर प्राप्त सूचना के आधार पर कार्रवाई के लिए नियमित संस्थागत ढांचे की भी जरूरत है। इस दिशा में मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) ने अच्छा कार्य करना शुरु किया है।
  7. सीमा प्रबंधन : हमारे देश की लगभग 15,000 किलोमीटर लम्बी जमीनी अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं छः देशों से लगती है। हम हमारी जमीनी सीमाओं के तीन तरफ लगने वाले देशों-चीन, पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) के साथ लड़ाई लड़ चुके हैं। पंजाब और कश्मीर की सीमाओं से घुसपैठ, बांग्लादेश से अवैध अप्रवास और इंडो-म्यांमार सीमाओं से हथियारों की तस्करी की समस्याओं से भी हम जूझ चुके हैं। कश्मीरी उग्रवादी पाक अधिकृत कश्मीर में शरण लेते हैं जबकि उत्तर-पूर्व के दहशतगर्द, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार में शरण लेते रहे हैं। इसलिए हमें आतंकवादियों की घुसपैठ, अवैध प्रवासन, हथियारों और ड्रग की तस्करी आदि रोकने के लिए, हमारी जमीनी सीमाओं की निगरानी प्रभावी रूप से करने की जरूरत है। तटीय सुरक्षा की ओर भी विशेष ध्यान देना आवश्यक है और हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि नौसेना, कोस्ट गार्ड एवं कोस्टल पुलिस का रोल सुस्पष्ट होना चाहिए और आपस में कार्य करने में सद्भाव एवं तालमेल होना चाहिए।
  8. साइबर सुरक्षाः 2013 (विकीलीक्स) स्नोडन के खुलासे से स्पष्ट होता है कि भविष्य के युद्ध, पारंपरिक नहीं होंगे, जो कि जल-थल और नभ में लड़े जाते हैं। वास्तव में, यह माना जाता है कि 21वीं सदी में साइबर स्पेस ही युद्ध क्षेत्र होगा। इसलिए इस पहलू से निपटने के लिए आंतरिक सुरक्षा के लिए ठोस सिद्धांत की जरूरत होगी। भारत ने अभी इस दिशा में कार्य करना आरम्भ ही किया हैं। हमें इस बात पर बहुत अधिक कार्य करने की जरूरत है ताकि हम कह सकें कि हमारे पास सुरक्षित साइबर स्पेस हैं।
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FAQs on आंतरिक सुरक्षा - आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

1. आंतरिक सुरक्षा क्या है?
उत्तर: आंतरिक सुरक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सरकार और अन्य संगठन अपने संसाधनों, जानकारी, और संरचनाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए नीतियों, प्रक्रियाओं, और तकनीकों का उपयोग करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी और आंतरिक आपत्तियों, जासूसी, उच्च न्यायालयीन आदेशों के खिलाफ रक्षा, और जनता की सुरक्षा का संरक्षण करना है।
2. आंतरिक सुरक्षा विभाग UPSC के तहत कैसे काम करता है?
उत्तर: आंतरिक सुरक्षा विभाग UPSC के तहत एक स्वतंत्र विभाग के रूप में काम करता है। इसका उद्देश्य भारतीय सरकार को आंतरिक सुरक्षा से संबंधित नीतियों का निर्धारण करना, नई नीतियाँ विकसित करना, और संगठनों के बीच समन्वय बनाए रखना है। यह विभाग सीमावर्ती, नक्शा, खुफिया, और सामरिक जासूसी के बारे में जानकारी भी संग्रहित करता है।
3. आंतरिक सुरक्षा UPSC में पदों के लिए योग्यता क्या होती है?
उत्तर: आंतरिक सुरक्षा UPSC में पदों के लिए योग्यता विविध हो सकती है। आमतौर पर, एक उम्मीदवार को एक संबंधित संगठन या मान्यता प्राप्त संस्था से मास्टर्स डिग्री या समकक्ष योग्यता प्राप्त करनी होती है। इसके अलावा, अनुभव और अच्छी कार्यशैली भी महत्वपूर्ण होती हैं। आंतरिक सुरक्षा क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए उम्मीदवारों को विशेष ज्ञान, कौशल, और तकनीकी योग्यता की आवश्यकता होती है।
4. आंतरिक सुरक्षा क्या कार्य करती है?
उत्तर: आंतरिक सुरक्षा विभाग कई प्रकार के कार्य करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी संस्थानों, संरचनाओं, और संसाधनों की सुरक्षा संरचित और तंत्रिका में रहती है। इसका मुख्य कार्य आंतरिक और बाहरी आपत्तियों, जासूसी, और उच्च न्यायालयीन आदेशों के खिलाफ संरक्षा प्रदान करना है। यह विभाग सीमावर्ती, नक्शा, खुफिया, और सामरिक जासूसी के बारे में जानकारी भी संग्रहित करता है।
5. आंतरिक सुरक्षा क्षेत्र के लिए UPSC में कैसे तैयारी की जाए?
उत्तर: आंतरिक सुरक्षा क्षेत्र के लिए UPSC में तैयारी करने के लिए उम्मीदवारों को संगठन की नीतियों, प्रक्रियाओं, और तकनीकों को समझने की आवश्यकता होती है। वे विभिन्न संगठनों और नीतियों के बारे में आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जो आंतरिक सुरक्षा संबंधित होते हैं। इसके अलावा, कौशल, अनुभव, और एक अच्छी कार्यशैली विकसित करना भी महत्वपूर्ण होता है। आंतरिक सुरक्षा क्षेत्र के बारे में नवीनतम विश्लेषण, संगठनों की वेबसाइटों, और संबंधित सरकारी
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