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सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 2 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

मधेसी का नया मुद्दा


20 सितम्बर, 2015 को नेपाल में नया संविधन लागू किया गया। वह तराई जनंसख्या के 70 प्रतिशत मधेसियों और थारू को संतुष्ट करने में असफल रहा। इससे नेपाल में उग्र मधेसी आंदोलन हुआ और विशेषकर तराई क्षेत्र में जीवन बाधित हुआ। इनकी मुख्य माँग है- काठमाण्डू में मधेसियों की उच्च जनसंख्या के अनुसार अनुपातिक राजनीतिक क्षमता। विगत में हुई बातचीत दर्शाती है कि मधेसी मोर्चा समिति के गठन और सीमांकन मुद्दों पर इसकी सिफारिशें प्रस्तुत करने के प्रस्ताव से सहमत हो सकता है। 

भारत-म्यांमार सीमा

  • दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए एक समझौते के तहत सन् 1967 में अपनी सीमाओं का सीमांकन किया गया था। हालांकि पहले हुई कई संधियों एवं कानूनों से सीमा के कुछ भागों का सीमांकन प्रभावित था किन्तु नए समझौते के आधार पर ये स्पष्ट हुआ है।
  • सीमा के प्रभावी प्रबंधन के लिए भारत-म्यांमार सीमा पर ढेरों चुनौतियाँ हैं। हालांकि सीमा का सीमांकन ठीक से किया गया है फिर भी वहाँ का कुछ क्षेत्र विवादित है। बीहड़ इलाके, आवाजाही और क्षेत्र के समग्र विकास में मुश्किलें पैदा करते हैं। क्षेत्र की भीतरी संरचना, जनजातीय लोगों, अंतर-आदिवासी संघर्ष, उग्रवाद और सीमा पार जातीय संबंधें की कबीलियाई वफादारी के रूप में सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा को प्रभावित करती है। सख्त निगरानी सुनिश्चित करने के लिए सीमा पर बाड़ अथवा सीमा चौकियाँ एवं सड़कों के रूप में व्यावहारिक तौर पर कोई बाधा नहीं है। घनिष्ठ जातीय संबंधों वाली जनजातियाँ, जैसे-नागा, कूकी, चिन इत्यादि जो सीमा के दोनों ओर रहती हैं, म्यांमार में सुरक्षित ठिकाना खोजने में विद्रोहियों की मदद करती हैं।
  • ‘स्वर्ण त्रिभुज’ की सुविधा वाली सीमा, भारतीय क्षेत्र में नशीली दवाओं के अवैध प्रवाह को बढ़ावा देती है। हथियार व गोला बारूद, कीमती पत्थर और चीन में बनी उपभोक्ता वस्तुओं की तस्करी ने भारत में अवैध रूप से प्रवेश के लिए अपनी जगह बना ली है। लाल चंदन, किराने का सामान, साइकिल के पुर्जे इत्यादि भारत से तस्करी किए जाते हैं। सीमा पर मानव तस्करी भी बड़े पैमाने पर होती है। दोनों देशों के जनजातीय समुदायों के बिना किसी पासपोर्ट या वीजा के सीमापार 40 किलोमीटर तक की यात्रा की अनुमति के प्रावधान से भी इस क्षेत्र में तस्करी के मामलों में वृद्धि हुई है।
  • 9 जून, 2015 को भारतीय सेना ने भारत-म्यांमार सीमा के दो ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों पर पूर्व हमला किया और उन्हें भारी क्षति पहुंचाई। यह भारतीय सेना द्वारा अपने सैनिकों पर मणिपुर के चंदेल जिले में हुए आतंकी हमले के 18 दिन बाद की गई जवाबी कार्यवाही थी

भारत-भूटान सीमा

  • भूटान युद्ध के बाद ब्रिटेन के मध्य हुई शांति संधि ने 1865 में भूटान की सीमा को सीमांकित किया था। भारत और भूटान सीमा पर भूमि अधिगम द्वारा ही भूटान में प्रवेश किया जा सकता है, चूंकि चीन के साथ सीमा पूर्णतः बंद है। भारत सरकार ने सीमा चौकसी हेतु 132 सीमा चौकियों हेतु सशस्त्र सीमा बल की 12 बटालियनें तैनात की हैं। दोनों देशों के मध्य संयुक्त अभिगम और सीमा सुरक्षा स्थापित करने के लिए द्विपक्षीय भारतीय भूटान समूह सीमा प्रबंधन और सुरक्षा की स्थापना की गई है।
  • चीन के साथ त्रिकोण, जहाँ सीमा खुली है, के अतिरिक्त सीमा सीमांकन है। यह सीमा शांतिपूर्ण रही जब तक भारतीय राजद्रोह समूहों जैसे- केएलओ, उल्फा ओर एनडीबीएफ ने भूटान के दक्षिणी जिलों में अपने कैम्प स्थापित नहीं किए थे, यद्यपि बाद में इन्हें उखाड़ फेंक दिया गया। खुली सीमा का लाभ उठाकर यह उग्रवादी भूटान की सीमा में फिरौती, हत्या और बम धमाकों के बाद घुस जाते थे। सीमा पर अवैध व्यापार और तस्करी भी बड़े पैमाने पर होती है। चीनी सामान, भूटानी कैनाबिस, शराब और वन उत्पादों को बड़ी मात्रा में तस्करी द्वारा भारत भेजा जाता है। भूटान के लिए पशुधन, ग्रोसरी मदों और फलों की तस्करी की जाती है।

तटीय सुरक्षा और द्वीप प्रदेश

  • पानी के नाले/नहरें, जिनमें से अधिकतर आपस में जुड़े हैं और जमीनी क्षेत्रों से काफी अंदर तक जाते हैं, इसलिए सीमा पार से घुसपैठ, तस्करी तथा हथियारों एवं नशीली दवाओं के व्यापार की संभावनाओं में वृद्धि करते हैं। सदाबहार वन, बालू पट्टी, तट के साथ निर्जन द्वीपों की मौजूदगी, घुसपैठियों, अपराधियों और तस्करों को सुरक्षित गुप्त स्थान प्रदान करते हैं। हाल ही के वर्षों में आतंकवादियों द्वारा हमले के लिए किए गए समुद्र के इस्तेमाल, जैसा कि 1993 में मुंबई सीरियल बम विस्फोटों तथा नवम्बर 2008 में मुम्बई पर हुए हमले के दौरान देखा गया है ने भी समुद्र तट के जोखिम में एक नया आयाम जोड़ दिया है।
  • कई महत्वपूर्ण संस्थानों, जैसे- तेल रिफाइनरियों, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, अंतरिक्ष स्टेशन, बंदरगाह और समुद्र तट के साथ नौसैनिक अड्डों के अस्तित्व ने इस मामले को और अधिक बदतर बना दिया है। यहाँ गैर-पारम्परिक खतरों के साथ-साथ आतंकवादी हमलों, तोड़-फोड़ आदि की बढ़ती चिंता के कारण भारी नुकसान की संभावना बनी रहती है।
  • भारतीय और पाकिस्तानी मछुआरों द्वारा एक-दूसरे के जल क्षेत्र में भटकने तथा उसके बाद उनकी गिरफ्तारियाँ, हर समय ही चिंता का विषय बनी रहती हैं। यह भी आशंका जताई जाती है कि गिरफ्तार किए गए मछुआरों में से कुछ को पाकिस्तान की इंटर इंटेलिजेंस एजेन्सियों द्वारा भर्ती किया जाता है तथा उन्हें भारत के खिलाफ एजेंट के रूप में इस्तेमाल करते हुए उनकी नौकाओं के माध्यम से हथियार, विस्फोटक सामग्री इत्यादि को भारत में भेजते हुए उन्हें यहाँ सक्रिय किया जा सकता है। चूँकि ये नौकाएँ भारत में बनी होती हैं तथा इनका पंजीकरण भी यहीं का होता है, अतः इन्हें भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नजरों से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है। नवम्बर, 2008 में तटरक्षक बलों द्वारा नोका कुबेर, जिसमें आतंकवादी थे, को बिना जाँच किए ही जाने दिया गया और आंतकवादियों द्वारा घटना को अंजाम दिया गया।
  • हालिया वर्षों में मिली खुफिया रिपोर्टों के अनुसार कई निर्जन द्वीपों को विभिन्न आंतकवादी समूहों और आपराधिक गिरोहों द्वारा हथियार एवं नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए पारगमन बिन्दु के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। भारत के पड़ोसी तटीय देशों में आंतरिक गड़बड़ी भी द्वीपीय प्रदेशों के सुरक्षा परिदृश्य को अत्यंत गंभीर बनाती है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बड़े पैमाने पर अंतः प्रवाह देखा गया है। बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैण्ड और इंडोनेशिया से अवैध घुसपैठ होती है।

सीमा प्रबंधन की चुनौतियाँ 

  • भारत की एकता एवं अखंडता के लिए चुनौतियों का सामना
  • अपनी संप्रभुता को कायम रखना
  • अपने भू-भाग की रक्षा करना
  • सीमापार से अवैध घुसपैठ और आवाजाही पर रोक लगाना
  • सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा करना
  • सभी प्रकार की अवैध तस्करी पर रोक लगाना ;मानव तस्करी एवं शस्त्र/ड्रग्स तस्करी
  • भारतीय जाली मुद्रा की तस्करी पर नियंत्रण
  • सामान की तस्करी पर रोक, जैसे- पशु, सोना आदि।

प्रभावी सीमा प्रबंधन की तकनीकें

  • तारबंदी तथा फ्लड लाइटें
  • बॉर्डर आउट पोस्ट
  • सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास
  • गश्त एवं निगरानी के लिए टावर
  • नाका/मचान
  • रात्रि देखरेख प्रौद्योगिकी 
  • सी.सी.टी.वी. एवं थर्मल छवि वाले उपकरण

कारगिल समीक्षा समिति की रिपोर्ट और सीमा प्रबंधन पर इसकी टिप्पणियाँ

  • 1999 में कारगिल लड़ाई एवं इसके बाद कारगिल समीक्षा समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के मद्देनजर सीमा प्रबंधन की अवधारणा को सरकार द्वारा अति महत्वपूर्ण माना गया है। समीक्षा समिति की सिफारिशों के आधार पर अप्रैल 2001 में, भारत सरकार ने माधव गोडबोले की अध्यक्षता में सीमा प्रबंधन पर एक टास्क फोर्स का गठन किया। इस टास्क फोर्स को जिसमें मंत्रियों का एक समूह सामान्य तौर पर पूरी राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली और विशेष रूप से कारगिल समीक्षा समिति की सिफारिशों की समीक्षा करने के लिए गठित किया गया था। टास्क फोर्स का उद्देश्य सीमा प्रबंधन के लिए उपायों पर विचार करना और विशेष रूप से कारगिल समीक्षा समिति की सिफारिशों पर विचार करने और मंत्रिसमूह के विचारार्थ विशेष प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहा गया था।
  • रिपोर्ट के मुताबिक कुछ निहित समस्याएँ, जैसे कि सीमा की विवादित, प्रकृति, कृत्रिमता और खुलेपन, आदि अवैध प्रवास, तस्करी, नशीली दवाओं का अवैध व्यापार और विद्रोहियों के सीमा पार के आंदोलन जैसी कई समस्याओं को जन्म देते हैं, जिस कारण देश की सीमाओं का प्रभावी ढंग से प्रबंधन नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, एक ही सीमा की रखवाली के लिए नियुक्त किए गए बलों की बहुलता, अन्य कार्यों के लिए सीमाओं से उनको समय-समय पर हटाना, सीमा पर अपर्याप्त बुनियादी ढांचा इत्यादि बातें उन्हें कुशलता से सीमा की रखवाली करने से रोकते हैं। इन सभी बातों के उपाय स्वरूप, मंत्री समूह ने निम्न सिफारिश की हैं-
  1. सीमा विवादों के निपटारे तथा सीमाओं के त्वरित सीमांकन हेतु ठोस प्रयास।
  2. ‘सीमा प्रबंधन विभाग’ का गठन
  3. सीमा के प्रत्येक खंड पर केवल एक ही बल को तैनात किया जाए तथा इसे उसके मूल कार्य से हटकर अन्य आंतरिक सुरक्षा कार्यों हेतु तैनात न किया जाए।
  4. एक समुद्री तट पुलिस बल की स्थापना, तटरक्षक बल को मजबूत बनाने और विभिन्न समुद्री मुद्दों के समन्वय के लिए एक शीर्ष संस्था की स्थापना।
  5. सीमा पर बुनियादी ढांचे का त्वरित विकास, जिससे सीमावर्ती लोगों की अवैध गतिविधियों में संलिप्तता पर रोक लगाई जा सके।
  • भारत के पड़ोस में अशांति है। भारत के कई पड़ोसी, कई राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं। भारत का कई पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद जारी है। असीमांकित सीमाएँ न केवल द्विपक्षीय तनाव बढ़ाती हैं अपितु ये सीमा पार से होने वाली घुसपैठ, अवैध प्रवास, तस्करी में भी सहायक होती हैं। आपराधिक तौर पर किया गया अवैध प्रवास तो प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती के तौर पर उभर कर सामने आया है।
  • सन् 2001 में, मंत्रिमंडलीय समूह ने सीमा प्रबंधन के मुद्दों की गहन समीक्षा शुरू की थी तथा कई सिफारिशें भी दी थी। इन सिफारिशों में से कई कार्यान्वित की जा रही हैं। इसकी प्रमुख सिफारिशों में से एक गृह मंत्रालय के अंतर्गत सीमा प्रबंधन के लिए अलग से विभाग की स्थापना करना था। जिसे कर दिया गया है। तथापि हमारी समुद्री सीमाओं के शीघ्र निपटान एवं भूमि सीमाओं के सीमांकन संबंधी एक अन्य प्रमुख सिफारिश को अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है। मंत्रिसमूह ने बेहतर जवाबदेही के लिए ‘एक सीमा पर एक बल’ के सिद्धांत का दृढ़ता से पालन करने की सिफारिश की थी। इसमें सीमा रक्षी बलों को कानून और व्यवस्था तथा उग्रवाद रोधी ड्यूटियों में तैनात न करने की अनिवार्यता पर बल दिया गया है। इनमें से कुछ सिफारिशें विशेष तौर पर भारत-पाक, भारत-नेपाल एवं अन्य सीमाओं के बेहतर प्रबंधन के लिए की गई हैं। इनमें समुद्री सीमाओं तथा द्वीप प्रदेशों की उपेक्षा का भी जिक्र किया गया है तथा इनकी सुरक्षा के लिए तटरक्षक बल और पुलिस को मजबूत करने के लिए सिफारिश की गई है। हालांकि इन सिफारिशों के परिणास्वरूप सीमा प्रबंधन पर काफी ध्यान दिया जा रहा है, किन्तु मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों ने एक बार फिर से इस क्षेत्र को और अधिक महत्त्व दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • भारत ने विगत वर्षों में भारत-पाक तथा भारत-बांग्लादेश सीमा पर कई हजार किलोमीटर क्षेत्र में तारबंदी कर दी है। सीमा रक्षक बलों को संवर्धित किया गया है। इनके आधुनिकीकरण एवं विस्तार पर कई हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। सरकार ने सीमा प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए 13 आधुनिक एकीकृत जाँच चौकियों की स्थापना संबंधी नीति की घोषणा की है। सीमा प्रबंधन में सुधार लाने के लिए प्रौद्योगिकी को अहम भूमिका निभानी होगी। हमें यह जानना होगा कि अन्य बड़े देश कैसे अपनी सीमाओं का प्रबंधन करते हैं।

सीमा प्रबंधन के उपाय

सरकार द्वारा सीमा प्रबंधन उपायों के लिए चार महत्वपूर्ण चरण सुझाए गए हैं, जैसे- विनियमन; सीमा क्षेत्रों का विकास; आपसी मुद्दों को सुलझाने के लिए द्विपक्षीय ढांचागत व्यवस्था।

चौकसी


  • बी.एस.एफ. को भारत-पाक तथा भारत-बांग्लादेश सीमाओं, भारत-म्यांमार सीमा के लिए असम राइफल्स, भारत-चीन सीमा के लिए भारत तिब्बत सीमा पुलिस तथा भारत-नेपाल एवं भारत-भूटान सीमा के लिए सशस्त्र सीमा बल को सीमाओं की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
  • सीमाओं के बेहतर प्रबंधन के लिए बेहतर निगरानी आवश्यक है। सीमा की रक्षा करने वाले कर्मियों द्वारा सीमा की निगरानी, नियमित गश्त द्वारा की जाती है। सीमा की रखवाली करने वाले इन कर्मियों के आश्रय के तौर पर, उन्हें नियमित गश्त पर भेजने के लिए और आस-पास के गाँवों के लोगों के साथ बेहतर तालमेल हेतु सीमाओं पर सीमा चौकियाँ स्थापित की जाती हैं। विभिन्न सीमाओं पर दो सीमा चौकियों के बीच की वास्तविक दूरी, (निर्धारित दूरी 2.5 किमी.) से कहीं ज्यादा होती है।
  • भारत-बांग्लादेश और भारत-पाक सीमा पर नदी और क्रीक क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए बी.एस.एफ. का ‘वाटर विंग’ तैनात है। इसके अलावा, कई इलेक्ट्रॉनिक निगरानी उपकरण, जैसे- नाइट विजन डिवाइस, हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर्स, युद्ध क्षेत्र निगरानी रडार, दिशा ढूंढ़ने वाले यंत्र, नायाब ग्राउंड सेंसर, उच्च दक्षता वाले टेलीस्कोप इत्यादि सीमा रक्षा बलों द्वारा बेहतर निगरानी के लिए बल के सहायक के तौर पर प्रयोग किए जाते हैं।  

विनियमन


  • लोगों और माल की आवाजाही पर प्रभावी नियंत्रण, प्रभावी सीमा प्रबंधन का प्रतीक है। इसके लिए सरकार को अवैध प्रवास, उग्रवादियों और आतंकवादियों की घुसपैठ तथा तस्करी जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाते हुए वैध व्यापार और यात्रा को सुगम बनाना चाहिए। इन सबके लिए रुकावटें खड़ी करना एक बेहतर उपाय है, जिसके लिए तारबंदी लगाई जानी चाहिए जोकि एक आसान कार्य नहीं है। तस्करी में आने वाली कुछ समस्याएँ निम्न हैं-
    1. भूमि अधिग्रहण
    2. स्थानीय निकायों द्वारा असहयोग करने के कारण असामान्य देरी
    3. कई मामलों में निहित स्वार्थ और राज्य सरकार, प्रक्रिया को रोकने की कोशिश करते हैं उदाहरणस्वरूप अवैध प्रवासियों द्वारा वोट बैंक की राजनीति विनियमन की अन्य विधि बहु-उद्देशीय राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की है। कानूनी व्यापार और आवाजाही की सुविधा के लिए इंटीग्रेटेड चेक पोस्टों का निर्माण किया जा रहा है।
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