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अभिवृत्ति के कार्य और संरचना | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi PDF Download

अभिवृत्ति

अभिवृत्ति, एक मनोदशा है, जिसमें कोई व्यक्ति मनोवैज्ञानिक विषय जैसे- व्यक्ति, वस्तु, समूह, विचार, स्थिति। आदि का एक खास ढंग से मूल्यांकन (पसंद-नापसंद) करता है। इनके प्रति अपने विचार या मनोभाव को प्रकट करता है और ऐसे मूल्यांकन या भाव सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते हैं। एक ही वस्तु के प्रति अभिवृत्तियाँ मिश्रित हो सकती है। अभिवृत्ति, किसी मनोवैज्ञानिक विषय के अपेक्षाकृत स्थाई मानसिकता है। जैसे- आप किसी X जाति से नकारात्मक अभिवृत्ति रखते हैं तो आप के पास कुछ ऐसे तर्क होंगे जिससे आपको लगेगा। कि X जाति के लोग बुरे होते हैं (संज्ञानात्मक पक्ष), दूसरा- आप उनसे नफरत या घृणा जैसी भावनाएँ अनुभव करेंगे (भावनात्मक पक्ष) व तीसरा उनको देखकर नकारात्मक प्रतिक्रिया करेंगे जो आपके व्यावहारिक पक्ष को दिखायेगा। अत: अभिवृत्ति मूलतः आपके संज्ञानात्मक, भावनात्मक व व्यावहारिक पक्षों से मिलकर बनती है। इसे आधुनिक समाज, मनोवैज्ञानिकों एवं समाजशास्त्रियों ने अभिवृत्ति का ABC मॉडल माना है।
अजजेन (1975) के मुताबिक "अभिवृत्ति किसी दी हुई वस्तु (लोग, चीज, घटनाएं अथवा मुद्दे) के संदर्भ में निरंतर अनुकूल या प्रतिकूल बात से प्रत्युत्तर की विज़-पूर्ववृत्ति (learned predisposition) है।"
इगली ओर चायकेन (1993) के मुताबिक “अभिवृत्ति एक मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति है जो किसी इकाई विशेष की कुछ हद तक पक्ष या विराग से मूल्यांकन द्वारा अभिव्यक्त की जाती है।" अभिवृत्ति की कुछ प्रकारों को वर्णन करने के लिए मनोवैज्ञानिक कुछ विशेषीकृत पदों का इस्तेमाल करते हैं।।
उदाहरण के तौर पर;
(i) स्वयं के प्रति अभिवृत्ति 'आत्म सम्मान' (self-esteem)
(ii) समूह विशेष के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति 'पूर्वाग्रह' (Prejudice)
(iii) व्यक्ति विशेष के प्रति अभिवृत्ति 'अंतर्वैयक्तिक आकर्षण' (Interpersonal attraction)
(iv) खुद की नौकरी के प्रति अभिवृत्ति 'रोजगार संतष्टि' (job satisfaction)

अभिवृत्ति की गहनता और विषय-वस्तु

गहनता: ऐसे पसंद नापसंद के प्रतिरूप में कौन कितना ज्यादा पसंद है और कितना ज्यादा नापसंद है यह अभिवृत्तियों की गहनता को दर्शाता है।
उदाहरण के लिए- हिन्दू मुस्लिम में एकता का विश्वास एक अभिवृश्चिय हो सकती है परंतु इसका अटूट विश्वास गांधीवाद की गहनता को दर्शाता है।
विषयवस्तुः किसी व्यक्ति में दूसरे व्यक्ति-वस्तु-कार्य के प्रति पसंद-नापसंद का प्रतिरूप।

अभिवृत्ति के कार्य 

  1. उपयोगितावादी कार्य (Utilitarian Functions):- इसमें व्यक्तियों के द्वारा किये गए कार्यों में प्रतिसंतुलन स्थापित किया जाता है जिसमें ऐसे व्यवहार को प्राथमिकता मिलती है जो कि बेहतर परिणाम देते हैं। वहीं ऐसे व्यवहार में कमी लायी जाती है जिसके नकारात्मक परिणाम होते हैं। | 
  2. मूल्य प्रस्तुति कार्य (Value expression)- इसमें अभिवृत्तियाँ किसी मुद्दे पर केन्द्रीयता का निर्माण करती है जिसके आधार पर व्यक्तियों के व्यवहार का पूर्वानुमान भी किया जा सकता है। साथ ही अभिवृत्ति की भूमिका मूल्यातमक पक्ष के प्रस्तुतीकरण के अंतर्गत देखने को मिलती है। |
  3. अहंधारणीय कार्य (Ego defensive work)- यह किसी व्यक्ति की प्रासंगिकता को बनाए रखता है।
    उदाहरण- सफाईकर्मी की आलोचना अमीर व्यक्ति के द्वारा की जाती है तो अभिवृत्ति के वजह से वह इसके फायदों को गिनाकर अपना तर्क प्रस्तुत कर सकता है।
  4. सूचनापरक कार्य (Knowledgeable work)- अभिवृत्ति को समझने की इच्छा में कोई प्रशासक कई प्रकार के तथ्यों एवं आँकड़ो को सीख सकता है तथा अपने सहकर्मी के व्यवहार का पूर्वानुमान कर सकता है।

अभिवृत्ति की संरचना


किस चीज के प्रति अनुकूल या प्रतिकूल मूल्यांकन जो कि किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति को परिभाषित करता है, उसे करने के लिए विश्वास, महसूस वा इच्छा के रुप में प्रदर्शित किया जा सकता है। इसे अभिवृत्ति के तीन घटक या तीन संरचनाओं के रुप में देखा जाता है जो कि अभिवृत्ति के निर्माण के लिए कार्य करते हैं।

  1. प्रभाव (Affect)
    प्रभाव से तात्पर्य भावनाओं से है जो किसी व्यक्ति विशेष-वस्तु-घटना से उत्पन्न होता है जैसे- भय, सहानुभूति, पणा, पसंद, संतुष्टि। आप अपने बॉस या फिर ऑफिस की लॉबी की पेंटिंग के प्रति सकारात्मक वा नकारात्मक सोच रखते हैं या फिर आपकी कंपनी के द्वारा बड़ी निविदा जीतने पर, सकारात्मक या नकारात्मक सोच रख सकते है। सकारात्मक इसलिए कि अधिक बोनस की संभावना है, नकारात्मक इसलिए कि लक्ष्यों की प्राप्ति, जो कि समय पर पूरा करने की शर्त से जुड़ी हुयी है, जिसके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
    ये अनुभूतियाँ गहनता के मामले में भिन्न हो सकती हैं,  उदाहरणस्वरूप, आपको डिस्को नृत्य बहुत पसंद हो सकता है। वहीं शास्त्रीय नृत्य के प्रति नापसंदगी, नैमत्तिक यानी नहीं है, हो सकती है। ये अनुभूतियां हमारे अनुभवों से आकार लेती हैं और हमारे भविष्य के व्यवहार को निर्देशित करने में मदद करती है। जय डिस्को नृत्य का आयोजन हो रहा हो, तब वहां जाना हम ज्यादा पसंद करेंगे। 
  2. व्यवहार (Behaviour) 
    हमारी जैसी अभिवृत्ति होती है हम वैसा ही कार्य या व्यवहार करते हैं। किसी चीज के बारे में आप जैसा विश्वास करते हैं (जैसे; मेरा सीनियर भ्रष्ट है और वह कंपनी के कोष का दुरूपयोग कर रहा है) और इस बारे में जैसा आप महसूस करते हैं, (जैसे; मैं उसके लिए काम नहीं कर सकता), आप जैसा व्यवहार करने के आदी रहे हैं, उस पर प्रभाव पड़ सकता है; (जैसे; मैं अपनी मौजूदा नौकरी छोड़ने जा रहा हूँ). इस अभिवृत्ति में व्यावहारिक घटक है- निश्चित ढंग से कार्य करने की आदत या पूर्ववृत्ति।
    यह मानना तार्किक दिखता है कि किसी वस्तु के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति है (ऊपर के उदाहरण में आपका सीनियर), तो संभव है वह आपके व्यवहार में विशेष रूप में परिणत हो जाये। जैसे कि आप अपने सीनियर को नजरअंदाज करें और यहां तक कि वैकल्पिक रोजगार खोजें। हालांकि यह व्यावहारिक प्रवृत्ति आपके वास्तविक व्यवहार की पूर्ववृत्ति नहीं हो। दरअसल व्यवहार को किसी व्यक्ति को प्रकट कार्यवाही के रूप में परिभाषित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर आप नयी नौकरी ज्वाइन करने में अभिरूचि रखते हैं. पर वास्तव में आप वैसा व्यवहार न करें। यह सोचना अधिक तार्किक है कि किसी का व्यावहारिक ध्येय किसी व्यक्ति का भाषिक संकेत या प्रारूपी व्यावहारिक आदत, वास्तविक व्यवहार की तुलना में प्रभावी संज्ञान घटक के अनुरूप अधिक होगा।
  3. संज्ञान (Cognitive) 
    अभिवृत्ति का संबंध केवल भावना से ही नहीं है, उसमें ज्ञान तत्व भी विद्यमान है। किसी अभिवृत्ति वस्तु के बारे में आपकी मान्यता क्या है? उदाहरण के तौर पर आप यह मान सकते हैं कि मनोविज्ञान का अध्ययन दूसरे लोगों को समझने में आपकी मदद करेगा और उनसे निपटने के लिए आपको तैयार करेगा। भले ही यह पूर्णतः गलत या पूर्णत: सही है, यह मान्यता मनोविज्ञान के प्रति आपकी अभिवृत्ति के संज्ञानात्मक घटक का परिचायक है। उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर जब आप अपना मत या निर्णय गढ़ लेते हैं. और निश्चित कर लेते है कि उस पर आपका अनुकूल अथवा प्रतिकूल मत है, यह अभिवृत्ति की संज्ञान संरचना है। संज्ञान से तात्पर्य है जानना परिकल्पना करना मान्यता देना।
    भावात्मक, संज्ञानात्मक एवं व्यवहारपरक घटकों के अतिरिक्त अभिवृत्ति की और भी विशेषताएँ हैं जो निम्नलिखित है-
    (i) जटिलता (Complexity)- किसी वस्तु-व्यक्ति-कार्य के प्रति व्यवहार को देखकर यह पूर्णत: नहीं कहा जा सकता कि उसकी अभिवृत्तियां क्या हैं।
    (ii) जन्मजात नहीं (Not by brith) - अभिवृत्ति जन्मजात नहीं होती बल्कि कोई व्यक्ति उसे अपने जीवनकाल में सीखता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में तरह-तरह की अनुभूतियां प्राप्त करता है तथा इन अनुभूतियों के आधार पर वह एक अनुकूल या प्रतिकूल अभिवृत्ति विकसित कर लेता है।
    (iii) निर्देशित (Directive)- अभिवृत्ति व्यक्ति के व्यवहारों को एक निश्चित दिशा में निर्देशित करती है। जब व्यक्ति की अभिवृत्ति किसी विषय, घटना या व्यक्ति के प्रति अनुकूल होती है तो वह खास ढंग से व्यवहार करता है वहीं जब प्रतिकूल होती है तो वह दूसरे ढंग से व्यवहार करता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति अश्वेतों से घृणा करता है तो वह ऐसी प्रतिक्रियायें व्यक्त करेगा, जिससे विरोध ही प्रकट हो, जबकि यदि कोई उनसे (अश्वेतों) आत्मीय भावना रखता हो, तो वह उनके प्रति अनुकूल अभिवृत्ति प्रकट करेगा।
    (iv) स्थायी (Permanent) - एक बार अभिवृत्ति विकसित हो जाने पर सामान्यतया वह स्थायी हो जाती है जो सामान्यतः परिवर्तित नहीं होती है, हालांकि परिस्थिति में परिवर्तन पर अभिवृत्ति में भी परिवर्तन हो जाता है, जैसा कि प्रारंभ में अधीनस्थ कर्मचारी को अपने अधिकारी के प्रति अनुकूल अभिवृत्ति होती है वहीं जय उस अधिकारी से मनमुटाव हो जाने पर उसके प्रति वह प्रतिकूल अभिवृत्ति विकसित कर लेता है।
    (v) सरलता (Simplicity) - इनमें सरलता का पक्ष भी देखने को मिलता है। किसी व्यवहार के पीछे कोई एक ऐसी अभिवृत्ति हो सकती है जिसका सरलता से पूर्वानुमान किया जा सकता है।
    (vi) तीव्रता (Intensity)- जब एक व्यक्ति की अभिवृत्ति दूसरे व्यक्ति के प्रतिकूल होती है तो संभव है कि प्रतिकूल अभिवृत्ति रखने वाला व्यक्ति उस दूसरे व्यक्ति के साथ खाना-पीना, उठना-बैठना, बोलना-चालना बंद कर दे। ऐसा भी हो सकता है कि प्रतिकूल अभिवृत्ति रखने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति के साथ उठना-बैठना तथा बोलना कायम रखे परंतु खाना-पीना बंद कर दे। यहां पहले व्यक्ति की प्रतिकूल अभिवृत्ति, दूसरे व्यक्ति की प्रतिकूल अभिवृत्ति की अपेक्षा अधिक तीव्र है।
    (vii) साहचर्य (Proximity)- किसी व्यक्ति में जिस तरह की अभिवृत्ति होती है वह उससे संबंधित व्यवहार का साहचर्य या वारंवारता को सुनिश्चित करता है।
    (viii) करणत्व (Valence) - अभिवृत्तियां या तो सकारात्मक होंगी या नकारात्मक, यह तटस्थ नहीं होंगी।
    (ix) केंद्रिकता (Centrality)- यह अभिवृत्ति तंत्र में किसी विशिष्ट अभिवृत्ति की भूमिका को बताता है। गैर-केंद्रीय (वा परिधीय) अभिवृत्तियों की तुलना में अधिक केंद्रिकता वाली कोई अभिवृत्ति, अभिवृत्ति तंत्र की अन्य अभिवृत्तियों को अधिक प्रभावित करेगी। उदाहरण के लिए, विश्व शांति के प्रति अभिवृत्ति में सैनिक व्यय के प्रति एक नकारात्मक अभिवृत्ति एक प्रधान या केंद्रीय अभिवृत्ति के रूप में हो सकती है जो बहु अभिवृत्ति तंत्र की अन्य अभिवृत्तियों को प्रभावित कर सकती है।
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FAQs on अभिवृत्ति के कार्य और संरचना - नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi

1. अभिवृत्ति क्या होती है?
उत्तर: अभिवृत्ति एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी कर्मचारी या सेवक की सेवाओं को समाप्त किया जाता है। यह एक प्रक्रिया है जिसमें कर्मचारी या सेवक की संगठन या नियमिती के अनुसार नियमित या सूचित समय पर सेवाएं समाप्त की जाती हैं।
2. अभिवृत्ति के कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर: अभिवृत्ति के कारण कई हो सकते हैं, जैसे कि सेवानिवृत्ति, यात्रा संबंधी समस्या, स्वास्थ्य समस्या, न्यायालय का आदेश आदि। कर्मचारी या सेवक के लिए अभिवृत्ति का कारण उनकी संगठन या नियमिती के अनुसार होता है।
3. UPSC में अभिवृत्ति की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) में अभिवृत्ति की प्रक्रिया निम्नानुसार होती है: 1. कर्मचारी या सेवक अपने अभिवृत्ति के लिए आवेदन दाखिल करता है। 2. आवेदन के बाद, संगठन या नियमिती द्वारा अभिवृत्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ाती है। 3. आवेदन की समीक्षा के बाद, संगठन या नियमिती अभिवृत्ति का फैसला लेती है। 4. अभिवृत्ति के समय, कर्मचारी या सेवक की सेवाएं समाप्त हो जाती हैं।
4. संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) क्या है?
उत्तर: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) भारतीय सरकार का एक आयोग है जिसका मुख्य कार्य भारतीय संघ लोक सेवा (IAS, IPS, IFS) और अन्य केंद्रीय संघ लोक सेवाओं की भर्ती करना है। UPSC के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं।
5. कैसे UPSC में आवेदन कर सकते हैं अभिवृत्ति के लिए?
उत्तर: UPSC में अभिवृत्ति के लिए आवेदन करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन करें: 1. UPSC की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं और अभिवृत्ति की विज्ञप्ति ढूंढें। 2. आवेदन पत्र डाउनलोड करें और सभी आवश्यक विवरण और दस्तावेज़ों को भरें। 3. आवेदन शुल्क जमा करें और अभिवृत्ति के लिए आवेदन करें। 4. संगठन या नियमिती द्वारा आवेदन की समीक्षा की जाएगी और आपको अभिवृत्ति के बारे में सूचित किया जाएगा। यहां यह ध्यान दें कि यह सामान्य जानकारी है और अभिवृत्ति की विशेषताओं और प्रक्रिया के बारे में आधिकारिक जानकारी के लिए UPSC की वेबसाइट का उपयोग करें।
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