आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु वैश्विक फ्रेमवर्क
ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन 2005-2015: राष्ट्रों तथा समुदायों की प्रत्यास्थता का निर्माण
- भारत ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA) का हस्ताक्षरकर्ता है। इस फ्रेमवर्क को वैश्विक स्तर पर आपदाओं से होने वाली जीवन की हानि तथा राष्ट्रों व समुदायों की आर्थिक एवं पर्यावरणीय परिसंपत्तियों की हानि को कम करने हेतु स्वीकृत किया गया था। इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत संधारणीय विकास नीतियों, क्षमता निर्माण तथा तैयारी एवं सुभेद्यता न्यूनीकरण संबंधी रणनीतियों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के एकीकरण हेतु तीन रणनीतिक लक्ष्य (strategic goals) एवं पांच प्राथमिक कार्यवाही क्षेत्र (priority action areas) नियत किए गए हैं।
- HFA के तीन रणनीतिक लक्ष्य और उनके कार्यान्वयन हेतु भारत द्वारा उठाए जाने वाले कदम:
1. लक्ष्य 1 : "आपदा की रोकथाम, उसका शमन. संबंधित तैयारी तथा सभेद्यता में कमी लाने पर विशेष बल देते हुए, सभी स्तरों पर संधारणीय विकास नीतियों, नियोजन तथा कार्यक्रम निर्माण के साथ आपदा जोखिम संबधी उपायों का अधिक प्रभावकारी समेकन"
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अधिनियमन तथा आपदा प्रबंधन योजना, 2016 के निर्माण के बाद, वर्तमान में सरकार का ध्यान उनके अंतर्गत किये गए विभिन्न प्रावधानों के कार्यान्वयन पर है।
- सभी सरकारी कार्यक्रम "कोई क्षति न पहुंचाएं (do no harm)" के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये जा रहे हैं।
2. लक्ष्य 2: “सामुदायिक स्तर पर विशेष ध्यान देते हुए सभी स्तरों पर ऐसी संस्थाओं, कार्यप्रणालियों और क्षमताओं का विकास तथा उन्हें सशक्त किया जाना जो संकटों के प्रति प्रत्यास्थता विकसित करने में व्यवस्थित रूप से योगदान कर सकें।
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMA's) तथा जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (DDMA's) को सुदृढ़ बनाने हेतु उपयुक्त रणनीतियां स्वीकृत की गयी हैं।
- संपूर्ण राष्ट्र के लिए एक व्यापक मानव संसाधन विकास कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है।
- सिविल सोसाइटी के साथ विभिन्न साझेदारियों को सशक्त बनाया जा रहा है।
3. लक्ष्य 3: "प्रभावित समुदायों के पुनर्निर्माण के लिए आपातकालीन तैयारी, अनुक्रिया तथा सामान्य स्थिति की बहाली संबंधी कार्यक्रमों की अभिकल्पना तथा उनके कार्यान्वयन में जोखिम न्यूनीकरण संबंधी दृष्टिकोण का सुनियोजित समावेशा'
- "सरकार द्वारा आपदा पश्चात् पुनर्निर्माण तथा पुनर्बहाली गतिविधियों के लिए "बेहतर पुनर्निर्माण (Build Back Better)" का सिद्धांत अमल में लाया जा रहा है।
ह्योगो फ्रेमवर्क के अंतर्गत पांच प्राथमिक कार्यवाहियां
- यह सुनिश्चित करना कि कार्यान्वयन हेतु सशक्त संस्थागत आधार के साथ आपदा जोखिम
- न्यूनीकरण एक राष्ट्रीय तथा स्थानीय प्राथमिकता है। आपदा संबंधी जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन तथा उनकी निगरानी करना तथा पूर्व चेतावनी प्रणाली को उन्नत बनाना
- ज्ञान, नवाचार तथा शिक्षा का उपयोग कर सभी स्तरों पर सुरक्षा तथा प्रत्यास्थता की संस्कृति विकसित करना।
- आपदा से संबद्ध सभी जोखिम कारकों को कम करना।
- सभी स्तरों पर प्रभावी अनुक्रिया हेतु आपदा संबंधी तैयारी को सुदृढ़ बनाना।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क
- सेंडाई फ्रेमवर्क एक 15 वर्षीय, स्वैच्छिक, गैर-बाध्यकारी समझौता है जो इस बात को मान्यता प्रदान करता है कि आपदा जोखिम न्यूनीकरण में प्राथमिक भूमिका राज्य की होती है किन्तु इस उत्तरदायित्व को स्थानीय शासन, निजी क्षेत्रक समेत अन्य हितधारकों के साथ साझा किया जाना चाहिए।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क, 2015-2030 को सेंडाई (मियागी, जापान) में मार्च, 2015 को आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर आयोजित तृतीय संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था। यह ‘ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA) 2005-2015: राष्ट्रों तथा समुदायों की प्रत्यास्थता का निर्माण' का परवर्ती दस्तावेज़ है।
- भारत व्यवस्थित तथा संधारणीय प्रयासों के माध्यम से इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत नियत किये गये 7 लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्ध है।
सेंडाई फ्रेमवर्क के सात वैश्विक लक्ष्य- 2030 तक विश्व स्तर पर आपदाओं से होने वाली मौतों को उल्लेखनीय रूप से कम करना और 2005-2015 की तुलना में 2020-2030 के बीच मृत्यु दर (प्रति 100,000 जनसंख्या) के वैश्विक औसत में कमी लाना;
- 2030 तक विश्व स्तर पर आपदाओं से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या में कमी करके 2005-2015 की तुलना में 2020-2030 के बीच प्रभावित लोगों की संख्या (प्रति 100,000 जनसंख्या में) के वैश्विक औसत में कमी लाना;
- 2030 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में आपदाओं से होने वाली प्रत्यक्ष आर्थिक हानि का न्यूनीकरण;
- महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं को आपदाओं से होने वाली क्षति तथा आधारभूत सेवाओं (जिसमें स्वास्थ्य तथा शैक्षणिक सुविधाएं शामिल हैं) में आने वाली बाधाओं को 2030 तक उल्लेखनीय रूप से कम करना। इसके लिए अवसंरचनाओं तथा आधारभूत सेवाओं की प्रत्यास्थता का विकास करना भी इसमें सम्मिलित है।
- 2020 तक राष्ट्रीय तथा स्थानीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण संबंधी रणनीतियों वाले राष्ट्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि करना;
- 2030 तक इस फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन हेतु विकासशील राष्ट्रों द्वारा की जाने वाली राष्ट्रीय पहलों को पर्याप्त तथा संधारणीय सहायता प्रदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में उल्लेखनीय वृद्धि करना;
- 2030 तक बहु-संकट पूर्व चेतावनी प्रणालियों (multi-hazard early warning systems) एवं आपदा जोखिम संबंधी सूचना और मूल्यांकनों की उपलब्धता तथा इन तक लोगों की पहुँच में उल्लेखनीय वृद्धि करना।
सेंडाई फ्रेमवर्क के अंतर्गत कार्यवाही हेतु चार प्राथमिकताएं
- आपदा जोखिम को समझना: आपदा जोखिम प्रबंधन वस्तुतः सुभेद्यता, क्षमता, लोगों तथा
- परिसंपत्तियों का जोखिम के प्रति अनावरण, संकट के लक्षण तथा पर्यावरण के सभी आयामों में आपदा संबंधी जोखिमों की समझ पर आधारित होना चाहिए।
- आपदा जोखिम को प्रबंधित करने हेतु आपदा जोखिम शासन का सुदृढीकरण: राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तरों पर रोकथाम, शमन, तैयारी, अनुक्रिया, सामान्य स्थिति की बहाली तथा पुनर्वास के लिए आपदा जोखिम शासन अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सहयोग तथा साझेदारी को बढ़ावा देता है।
- प्रत्यास्थता हेतु आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश: संरचनात्मक तथा गैर-संरचनात्मक उपायों के माध्यम से आपदा जोखिम के निवारण तथा न्यूनीकरण में निजी तथा सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता है। यह लोगों, समुदायों, राष्ट्रों तथा उनकी परिसंपत्तियों और साथ ही पर्यावरण की आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य संबंधी तथा सांस्कृतिक प्रत्यास्थता को बढ़ाने के लिए अनिवार्य है।
- प्रभावी अनुक्रिया हेतु आपदा संबंधी तैयारी को उन्नत बनाना तथा सामान्य स्थिति की बहाली, पुनर्वास तथा पुनर्निर्माण के सन्दर्भ में 'बेहतर पुनर्निर्माण (build back better)": विकास संबंधी उपायों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण को एकीकृत करते हुए सामान्य स्थिति की बहाली, पुनर्वास तथा पुनर्निर्माण चरण बेहतर पुनर्निर्माण करने हेतु एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आपदा के प्रति सामुदायिक प्रत्यास्थता को सक्षम बनाने के उद्देश्य से क्षेत्रीय समर्थन को सुगम बनाने के अपने प्रयास के लिए भारत को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के चैंपियन की उपाधि प्रदान की गयी है। सेंडाई समझौते के पश्चात संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction: UNISDR) ने भारत को प्रथम क्षेत्रीय चैंपियन घोषित किया है।
सेंडाई फ्रेमवर्क डेटा रेडीनेस रिव्यु
आपदा क्षति के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सभी क्षेत्रों तथा पूर्व चेतावनी, जोखिम संबंधी सूचना एवं आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों के विभिन्न पहलओं में आंकड़ों से संबंधित गंभीर अंतराल विद्यमान हैं। समीक्षा में इस बात की पुष्टि की गयी है कि जब तक आंकड़ों की उपलब्धता, गुणवत्ता तथा पहुँच के मध्य विद्यमान अंतराल का समाधान नहीं दूंढा जाता, तब तक सेंडाई फ्रेमवर्क के सभी लक्ष्यों तथा प्राथमिकताओं पर कार्यान्वयन की सटीक, समयबद्ध तथा उच्च गुणवत्तायुक्त रिपोर्टिंग एवं निगरानी करने की देशों की क्षमता गंभीर रूप से अप्रभावी रहेगी। संधारणीय विकास हेतु आपदा-संबंधी आंकड़ों के लिए एक वैश्विक साझेदारी से सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, निजी क्षेत्रक, सिविल सोसाइटी समूहों तथा सांख्यिकी एवं आँकड़ों से संबंधित निकायों को एक साथ लाया जा सकेगा। इससे राष्ट्रीय तथा उप-राष्ट्रीय स्तर पर आपदा संबंधी जोखिम न्यूनीकरण से जुड़े प्रयासों के समर्थन में वर्तमान तथा भावी आंकड़ों को इष्टतम बनाने तथा उनके परिचालन हेतु एक सहयोगात्मक, बहु-हितधारक प्रयास संभव हो सकेगा
- 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट: 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में, 17 संधारणीय विकास लक्ष्यों (SDGs) में से 10 में आपदा जोखिम से जुड़े विशिष्ट लक्ष्य निहित हैं। इससे "2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' को अमल में लाने में आपदा जोखिम न्यूनीकरण की भूमिका भली-भांति स्थापित होती है।
- COP 21 के दौरान पेरिस समझौता: 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change) के अंतर्गत आयोजित 21वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (CoP) में अंगीकृत पेरिस समझौते में, सदस्य राष्ट्रों ने वैश्विक तापमान में औसत वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2°C के नीचे रखने की प्रतिबद्धता दोहराई थी। साथ ही सदस्य राष्ट्रों ने “जलवायु परिवर्तन के जोखिमों तथा प्रभावों को उल्लेखनीय रूप से कम करने" के लक्ष्य के साथ, तापमान में होने वाली इस वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने हेतु प्रयास करने पर भी सहमति जताई थी।
अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ साझेदारियां
1. संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय
संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNISDR), आपदा न्यूनीकरण संबंधी गतिविधियों में सम्मिलित सभी हितधारकों के बीच समन्वय हेतु एक केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है। भारत सरकार ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु नवम्बर, 2016 में हुए सातवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में 10 लाख अमेरिकी डॉलर का अंशदान किया तथा आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के क्षेत्र में एशियाप्रशांत क्षेत्र में क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने हेतु एक सहयोग वक्तव्य पर भी हस्ताक्षर किए। UNISDR ने अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु निम्नलिखित तंत्रों/साधनों की स्थापना की है:
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर विश्व सम्मेलन (The World Conference on Disaster Risk Reduction: WCDRR)
यह संधारणीय विकास के परिप्रेक्ष्य में आपदा जोखिम न्यूनीकरण तथा जलवायु संबंधी जोखिम के प्रबंधन को लक्षित करने वाली संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों की एक श्रृंखला है। ये सम्मेलन सरकारी अधिकारियों तथा अन्य हितधारकों को एक मंच पर लाते हैं ताकि वे आपदा तथा जलवायु संबंधी जोखिमों का प्रबंधन करके विकास की संधारणीयता को सुदृढ़ता प्रदान करने के विषय पर विचार विमर्श कर सकें। इन सम्मेलनों की मेज़बानी जापान के द्वारा 1994 में योकोहामा में, 2005 में कोबे में तथा 2015 में सेंडाई में की गई। - आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु वैश्विक मंच (Global Platform for Disaster Risk Reduction: GPDRR) यह आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर बल देने हेतु प्रमुख वैश्विक मंच के रूप में कार्य करता है। यह आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क (SFDRR) के कार्यान्वयन में हुई प्रगति का मूल्यांकन करता है। इसकी बैठक वर्ष में दो बार होती है तथा भारतीय शिष्टमंडल ने इसमें 2017 में कानकुन (मेक्सिको) में भाग लिया। इस सम्मेलन के दौरान संग्रहालयों पर NDMA दिशानिर्देश भी जारी किए गए।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (Asian Ministerial Conference for Disaster Risk Reduction: AMCDRR) AMCDRR की संकल्पना राष्ट्रों द्वारा आपदा जोखिम न्यूनीकरण की दिशा में की गई प्रगति की निगरानी तथा उसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय मंच पर साझा करने हेतु की गयी थी। यह आपदा जोखिम प्रबंधन पर वैश्विक ढाँचे के अनुरूप, क्षेत्रीय स्तर पर योजना तथा नीति निर्माण के लिए 61 राष्ट्रों के आपदा प्रबंधन से संबंधित मंत्रियों को विचार-विमर्श के लिए एक मंच प्रदान करता है। इसकी बैठक दो वर्ष में एक बार होती है। दूसरे तथा सातवें AMCDRR की मेज़बानी भारत सरकार द्वारा क्रमश: 2007 तथा 2016 में की गयी थी।
2. मानवीय मामलों के समन्वय हेतु संयुक्त राष्ट्र कार्यालय
(United Nations Office for the Coordination of Humanitarian Affairs: UNOCHA)
मानवीय मामलों के समन्वय हेतु संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA) का गठन महासभा के द्वारा दिसंबर 1991 में जटिल आपात परिस्थितियों तथा प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संयुक्त राष्ट्र संगठनों की अनुक्रिया को सशक्त करने हेतु किया गया था। UNOCHA ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित तंत्रों/साधनों की स्थापना की है:
- संयुक्त राष्ट्र आपदा मूल्यांकन तथा समन्वय (United Nations Disaster Assessment and Coordination: UNDAC): यह आपदा प्रबंधन पेशेवरों का एक सहायतार्थ दल होता है। इसके सदस्यों का नामांकन तथा इसे वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का कार्य सदस्य राष्ट्रों की सरकारों, UNOCHA, UNDP तथा संयुक्त राष्ट्र की मानवतावादी कार्यों को संचालित करने वाली एजेंसियों जैसे कि WFP, UNICEF और WHO द्वारा किया जाता है। भारत सरकार ने 2001 में UNDAC की सदस्यता ग्रहण की थी।
- अंतर्राष्ट्रीय खोज एवं बचाव सलाहकार समूह (International Search and Rescue Advisory Group: INSARAG): यह संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत 80 से अधिक देशों तथा आपदा अनुक्रिया संगठनों का एक वैश्विक समूह है। यह समूह शहरी खोज तथा बचाव से जुड़े मुद्दों पर कार्य करता है। INSARAG के सदस्यों में भूकंप-प्रवण देश तथा उसके प्रति अनुक्रिया करने वाले देश व संगठन, दोनों ही सम्मिलित हैं। भारत से भेजे गए प्रशिक्षक INSARAG के द्वारा आयोजित छद्म अभ्यासों में भाग लेते हैं। भारत 2005-06 में INSARAG एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय समूह की अध्यक्षता का कार्यभार संभाल चुका है।
3. आपदा न्यूनीकरण तथा सामान्य स्थिति की बहाली हेतु वैश्विक सुविधा ।
- आपदा न्यूनीकरण तथा सामान्य स्थिति की बहाली हेतु वैश्विक सुविधा (GFDRR), विश्व बैंक समूह के द्वारा प्रबंधित एक वैश्विक साझेदारी कार्यक्रम है। यह सभी विकासशील राष्ट्रों, विशेष रूप से सर्वाधिक सुभेद्य प्राकृतिक आपदा 'हॉटस्पॉट' के रूप में मान्यता प्राप्त विकासशील राष्ट्रों, की आपदा रोकथाम, आपातकालीन तैयारी, अनुक्रिया तथा सामान्य स्थिति की बहाली से जुड़ी क्षमता के संवर्धन में सहायता करता है। यह निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए भी विकासशील राष्ट्रों की सहायता करता है:
- आपदा जोखिम प्रबंधन तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन को विकास की रणनीतियों तथा निवेश कार्यक्रमों की मुख्य धारा में लाना, तथा
- किसी आपदा के पश्चात प्रत्यास्थ पुनर्बहाली तथा पुनर्निर्माण की गुणवत्ता तथा समयबद्धता में सुधार करना।
- इसे ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA) 2005-2015 के कार्यान्वयन में सहायता के लिए सितम्बर, 2006 में प्रारम्भ किया गया था। भारत 2013 में इसका सदस्य बना।
4. सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र
- नवम्बर, 2005 में ढाका में आयोजित 13वें SAARC सम्मेलन में राष्ट्रीय आपदाओं के लिए तैयारी तथा उनके शमन हेतु क्षेत्रीय सहयोग संबंधी मुद्दों पर विचार किया गया। इसमें नई दिल्ली में सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र (SDMC) की स्थापना हेतु भारत के प्रस्ताव को अनुमोदन प्रदान किया गया।
5. दक्षिण एशिया आपदा संबंधी ज्ञान नेटवर्क
- SADKN वेब पोर्टल इस क्षेत्र के लिए नेटवर्किंग तथा जानकारी साझा करने का एक मंच है। यह विभिन्न एजेंसियों को एक साथ लाता है तथा इस क्षेत्र हेतु आपदा आधारित जानकारी का एक व्यापक नेटवर्क तैयार करता है ताकि आपदा जोखिम न्यूनीकरण के क्षेत्र में शोध, सूचना तथा आंकड़े साझा किये जा सकें। यह नेटवर्कों का एक नेटवर्क है जिसमें एक क्षेत्रीय तथा आठ राष्ट्रीय पोर्टल हैं।
6. एशियाई आपदा न्यूनीकरण केंद्र
- 1997 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव स्वीकार किया गया था जिसका उद्देश्य 1990 के दशक को अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण दशक घोषित कर प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति को उल्लेखनीय रूप से कम करना था। आपदा न्यूनीकरण संबंधी सहयोग पर चर्चा करने के लिए 1994-1997 की अवधि में आयोजित हुई राष्ट्रीय सम्मेलनों की एक श्रृंखला के पश्चात, 1995 में जापान के कोबे में एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें एशिया तथा अन्य क्षेत्रों के 28 राष्ट्रों ने भाग लिया था। इस सम्मेलन में कोबे घोषणा (Kobe declaration) को स्वीकार किया गया था जिसमें एक ऐसी प्रणाली निर्मित करने पर विचार करने संबंधी एक समझौता सम्मिलित था जो एशिया क्षेत्र के लिए आपदा न्यूनीकरण केंद्र के रूप में कार्य करे। इस प्रकार, एशिया आपदा न्यूनीकरण केंद्र (ADRC) की स्थापना जापान सरकार के साथ भागीदार राष्ट्रों के द्वारा संपन्न एक समझौते के पश्चात कोबे में 1998 में हुई।
7. एशियाई आपदा तैयारी केंद्र
- एशियाई आपदा तैयारी केंद्र (ADPC) की स्थापना 1986 में थाईलैंड के बैंकॉक में हुई थी। यह एक गैर-लाभकारी, गैर-राजनीतिक, स्वायत्त व क्षेत्रीय संस्था है जो आपदा संबंधी तैयारी, आपदा शमन, जागरूकता निर्माण, सूचना के आदान-प्रदान, सामुदायिक भागीदारी इत्यादि को बढ़ावा देने के लिए एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में काम कर रही है। 2004 में, ADPC एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था (अंतरसरकारी संगठन) बन गया।
8. आसियान क्षेत्रीय मंच
- आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की स्थापना 1994 में हुई। भारत सहित 25 देश इसके सदस्य हैं। भारत 1996 में इसके सदस्य के रूप में सम्मिलित हुआ था। यह एशिया में सुरक्षा वार्ता का प्रमुख मंच है तथा इस क्षेत्र के सुरक्षा के ताने-बाने को सशक्त बनाने वाले विभिन्न द्विपक्षीय गठबंधनों एवं वार्ताओं को सहयोग प्रदान करता है। ARF के गठन का आधार आसियान से प्राप्त यह अनुभव है कि वार्ता प्रक्रिया से राजनीतिक संबंधों में गुणवत्तापूर्ण सुधार आ सकता है। यह सदस्यों को तात्कालिक क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर चर्चा हेत तथा क्षेत्र में सुरक्षा एवं शान्ति को बढ़ावा देने के लिए सहयोगात्मक उपायों के विकास हेतु एक मंच उपलब्ध कराता है।
- सभी ASEAN सदस्य स्वतः ही ARF के सदस्य भी हैं। भारत ARF की बैठकों तथा आपदा राहत अभ्यासों में सक्रिय भागीदारी कर रहा है।