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The Hindi Editorial Analysis - 14th June 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

तेल आयात बिलों को कम करना


संदर्भ

  • ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने और अपने प्रत्येक नागरिक को ऊर्जा न्याय प्रदान करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिये भारतीय ऊर्जा कंपनियाँ दुनिया के सभी प्रमुख तेल उत्पादकों से तेल की खरीद करती हैं। भारत प्रत्येक दिन अपने पेट्रोल पंपों पर औसतन 60 मिलियन ग्राहकों को सेवा प्रदान करने की अनूठी स्थिति रखता है।
  • वर्तमान परिदृश्य यह है कि जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच अमेरिका ने रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतें 14 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुँच गई हैं। यद्यपि तेल की कीमतों में इस वृद्धि से आवश्यकताओं में कोई कमी नहीं आनी है।
  • इसलिये, सरकार के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वह अपने नागरिकों तक सस्ती ऊर्जा की पहुँच सुनिश्चित करे। तेल के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर संक्रमण दो व्यवहार्य समाधान हैं जिन्हें इस समस्या को दूर करने के लिये अपनाया जा सकता है।

भारत का तेल आयात/खपत

वर्तमान परिदृश्य

  • भारत लगभग 50 लाख बैरल प्रतिदिन के साथ अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। देश में तेल की मांग 3-4% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है।
    • इस आकलन पर भारत एक दशक की अवधि में प्रतिदिन लगभग 70 लाख बैरल की खपत तक पहुँच सकता है।
  • ‘पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल’ (PPAC) के तहत उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों के अनुसार खपत के आधार पर भारत की तेल आयात निर्भरता वर्ष 2019-20 में 85% थी, जो वर्ष 2020-21 में मामूली रूप से घटकर 84.4% हो गई।
    • वर्ष 2021-22 में पुनः इसमें वृद्धि हुई और यह 85.6% तक पहुँच गई।
  • PPAC के अनुसार, भारत ने वर्ष 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जबकि एक वर्ष पूर्व यह आयात 196.5 मिलियन टन रहा था।
    • अप्रैल 2022-23 में तेल आयात निर्भरता लगभग 86.4% थी, जो एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में 85.9% रही थी।
  • यह तर्क दिया गया है कि बढ़ती मांग के कारण तेल की खपत में वृद्धि हुई है, जिसने उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों को हाशिये पर डाल दिया है।
    • कच्चे तेल का उच्च आयात बिल व्यापक आर्थिक मापदंडों (macroeconomic parameters) को प्रभावित कर सकता है।

कच्चे तेल के आयात को कम करने के लिये क्या पहल की गई है?

  • मार्च 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने ‘ऊर्जा संगम 2015’ क अनावरण किया जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को आकार देने के उद्देश्य से आयोजित भारत की सबसे बड़ी वैश्विक हाइड्रोकार्बन बैठक थी।
    • इस अवसर पर सभी हितधारकों से आग्रह किया गया कि वे तेल एवं गैस के घरेलू उत्पादन में वृद्धि लाएँ ताकि वर्ष 2022 तक आयात निर्भरता को 77 प्रतिशत से घटाकर 67 प्रतिशत और वर्ष 2030 तक 50 प्रतिशत तक सीमित किया जा सके।
  • सरकार ने प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट (PSC) व्यवस्था, डिस्कवर्ड स्मॉल फील्ड पॉलिसी, हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP), न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी (NELP) आदि के तहत तेल और प्राकृतिक गैस के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिये विभिन्न नीतियाँ भी पेश की हैं।
    • हालाँकि घरेलू तेल उत्पादन के साथ एक अंतर्निहित समस्या यह है कि तेल एवं गैस परियोजनाएँ, अन्वेषण से लेकर उत्पादन तक, लंबी परियोजना पूर्ति अवधि (Gestation Period) रखती हैं।
    • इसके अलावा, मूल्य निर्धारण एवं कर नीतियाँ स्थिर/स्थायी नहीं हैं और तेल एवं गैस व्यवसाय के लिये बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है, इसलिये निवेशक प्रायः जोखिम लेने के प्रति संकोच रखते हैं।
  • भारत सरकार कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP) को बढ़ावा दे रही है।
    • सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को वर्ष 2030 से पीछे करते हुए वर्ष 2025 तक पूरा कर लेने का निश्चय किया है।

भारत की तेल आयात निर्भरता को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना: यह ध्यान में रखा जाना चाहिये कि भारत की तेल मांग में और वृद्धि ही होगी क्योंकि हम 10% जीडीपी वृद्धि की ओर आगे बढ़ने वाले हैं और आने वाले कई वर्षों तक भारत एक आयल इकॉनमी ही बना रहेगा।
    • भारत के पास आयात पर निर्भरता को कम करने का एकमात्र तरीका यह है कि वह विदेशों में भारत के स्वामित्व वाले अन्वेषण एवं उत्पादन आस्तियों के आकार का विस्तार करे। चीन ने यही रास्ता अपनाया है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज तेल कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) भी मौजूदा परिपक्व तेल-क्षेत्रों के पुनर्विकास और नए/सीमांत क्षेत्रों के विकास के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिये विभिन्न कदम उठा रही है।
      (i) इसके अलावा, परिपक्व तेल-क्षेत्रों से प्राप्ति बढ़ाने के लिये बेहतर तेल-प्राप्ति और उन्नत तेल-प्राप्ति प्रौद्योगिकियों को इस्तेमाल किया जा रहा है।
  • वैकल्पिक हरित स्रोत: भारत के लिये एक अन्य विकल्प यह है कि अपने दायरे का विस्तार करे और हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करे। अर्थव्यवस्था के गति पकड़ने के साथ ही बिजली की मांग में तेज़ी आ रही है। CoP26 प्रतिबद्धताओं के साथ नवीकरणीय ऊर्जा की मांग अब तक के उच्चतम स्तर पर है, जिसके लिये पर्याप्त क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है।
    • नियामक समर्थन के साथ ही निजी निवेश और सरकारी पहलों के कारण पवन क्षेत्र ने गति पकड़ ली है।
    • हालाँकि सौर सेल एवं मॉड्यूल की वैश्विक आपूर्ति और अनुकूल नीतियों के समर्थन से सौर ऊर्जा पवन ऊर्जा की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनकर उभरी है।

इस संदर्भ में पवन से ऊर्जा उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना किस प्रकार सहायक हो सकता है?

  • पवन ऊर्जा उत्पादन का विकास ‘विद्युत अधिनियम, 2003’ और एक सुदृढ़ घरेलू विनिर्माण आधार की स्थापना के आधार पर हुआ।
    • हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने वर्ष 2022 तक 5 GW अपतटीय क्षमता और वर्ष 2030 तक 30 GW क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य घोषित किया है।
  • जबकि सौर एवं पवन दोनों ही अंतरा-दिवस और मौसमी परिवर्तनशीलता के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं, प्रौद्योगिकी एवं संसाधन परिप्रेक्ष्य के साथ-साथ वाणिज्यिक दृष्टिकोण से पवन भारत की नवीकरणीय ऊर्जा आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिये अधिक बेहतर शर्त है।
    • लेकिन हाल के समय में सौर ऊर्जा के पक्ष में एक नीति अतिप्रवाह की स्थिति रही है जिसके परिणामस्वरूप पवन क्षमता वृद्धि में गिरावट आई है।
    • यद्यपि अल्पावधि में टैरिफ लाभ प्राप्त होगा, लेकिन दीर्घावधि में एक संतुलित विविधिकृत संसाधन मिश्रण का होना आवश्यक है।
  • उच्च क्षमता उपयोगिता और पूरे दिन ऊर्जा उत्पादन के कारण पवन भारत की एनर्जी बॉस्केट के लिये अधिक वांछनीय है ।
    • यह सौर ऊर्जा को भी पूरकता प्रदान करता है; इस प्रकार एक अधिक सुसंगत और व्यवहार्य ऊर्जा उत्पादन परिदृश्य का निर्माण करता है।

निष्कर्ष
भारत की तेल आयात निर्भरता को कम करने हेतु विभिन्न पहलों के बावजूद स्थिति निराशाजनक बनी हुई है। भारत को इस वास्तविकता के आस-पास अपनी नीति पर कार्य करने की आवश्यकता होगी। रणनीति यह होनी चाहिये कि रसोई और परिवहन संबंधी प्रमुख ऊर्जा उपयोगों को हरित ऊर्जा जैसे अन्य स्रोतों की ओर स्थानांतरित किया जाए। अपनी ओर से नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी हितधारकों को साथ लिया जाए और किसी ‘पॉलिसी फ्लिप-फ्लॉप’ की स्थिति न बने।

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