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The Hindi Editorial Analysis- 17th October 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

शिक्षा क्षेत्र में सुधार


संदर्भ


  • वर्ष 2030 तक भारत में विश्व में सर्वाधिक युवा आबादी होगी। युवा आबादी का यह विशाल आकार तभी वरदान सिद्ध होगा जब ये युवा कार्यबल में शामिल होने के लिये पर्याप्त कुशल होंगे। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा इसमें प्रमुख भूमिका निभाएगी।
  • लेकिन शिक्षा की वर्तमान स्थिति उपयुक्त अवसंरचना की कमी, शिक्षा पर निम्न सरकारी व्यय (जीडीपी के 3.5% से कम) और छात्र-शिक्षक अनुपात की विषमता (एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात प्राथमिक विद्यालयों के लिये 24:1 है) जैसी प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रही है।
  • इस प्रकार यह उपयुक्त समय है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया जाए और ऐसा आधुनिक शिक्षण दृष्टिकोण अपनाया जाए जो उत्तरदायी एवं प्रासंगिक हो। इसके अलावा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy- NEP 2020) के उद्देश्यों को भी साकार किया जाए।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की मुख्य विशेषताएँ


  • NEP 2020 का उद्देश्य ‘‘भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति’’ बनाना है। उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता के बाद से भारत में शिक्षा के ढाँचे में सुधार के अधिक प्रयास नहीं हुए हैं और यह इस क्रम में केवल तीसरा बड़ा सुधार ही है।
  • इससे पूर्व की दो शिक्षा नीतियाँ वर्ष 1968 और 1986 में लाई गई थीं।
  • इसका उद्देश्य एक खुली स्कूली शिक्षा प्रणाली के माध्यम से 2 करोड़ स्कूली बच्चों को पुनः मुख्यधारा में वापस लाना है।
  • मान्यता के एक नए ढाँचे और सार्वजनिक एवं निजी दोनों तरह के स्कूलों को विनियमित करने हेतु एक स्वतंत्र प्राधिकरण के साथ विद्यालयों का प्रशासन अब रूपांतरित हो जाएगा।
  • 360-डिग्री समग्र प्रगति कार्ड के साथ मूल्यांकन के तरीके में सुधार किया जाएगा और लर्निंग आउटकम की प्राप्ति के लिये छात्र प्रगति पर नज़र रखी जाएगी।
    • इंटर्नशिप के साथ व्यावसायिक शिक्षा कक्षा 6 से शुरू होगी।

शैक्षिक सुधारों से संबंधित अन्य प्रमुख सरकारी पहलें:


  • प्रौद्योगिकी वर्द्धन शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme on Technology Enhanced Learning)
  • सर्व शिक्षा अभियान (SSA)
  • प्रज्ञाता (PRAGYATA)
  • मध्याह्न भोजन योजना
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
  • पीएम श्री स्कूल (PM SHRI Schools)

भारत में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख समस्याएँ


  • स्कूलों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: एकीकृत ज़िला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE), 2019-20 के अनुसार, केवल 12% स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा और केवल 30% में कंप्यूटर उपलब्ध हैं।
    • इनमें से लगभग 42% स्कूलों में फर्नीचर की कमी थी, 23% में बिजली की कमी थी, 22% में शारीरिक रूप से निःशक्त के लिये रैंप की कमी थी और 15% में जल, सफाई एवं स्वच्छता (WAter, Sanitation and Hygiene-WASH) सुविधाओं की कमी थी।
  • उच्च ‘ड्रॉपआउट’ दर: प्राथमिक और माध्यमिक स्तरों पर विद्यालय छोड़ने की दर (dropout rate) बहुत अधिक है। 6-14 आयु वर्ग के अधिकांश छात्र अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले स्कूल छोड़ देते हैं। इससे वित्तीय और मानव संसाधनों की बर्बादी की स्थिति बनती है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, 2019-20 स्कूल वर्ष से पहले 6 से 17 आयु वर्ग की 21.4% बालिकाओं और 35.7% बालकों स्कूल छोड़ने के पीछे का मुख्य कारण पढ़ाई में रुचि का न होना बताया।
  • ‘ब्रेन ड्रेन’ की समस्या: IIT और IIM जैसे शीर्ष संस्थानों में प्रवेश पाने के लिये कड़ी प्रतिस्पर्द्धा के कारण भारत में बड़ी संख्या में छात्रों के लिये एक चुनौतीपूर्ण शैक्षणिक वातावरण का निर्माण किया गया है। इससे फिर वे शिक्षा के लिये विदेश जाना पसंद करते हैं, जिससे देश अच्छी प्रतिभा से वंचित हो जाता है।
    • भारत में निश्चित रूप से शिक्षा का मात्रात्मक विस्तार हुआ है लेकिन गुणात्मक मोर्चे पर (जो किसी छात्र के नौकरी पाने के लिये आवश्यक है) यह पिछड़ा हुआ है।
  • बड़े पैमाने पर निरक्षरता: शिक्षा के संवर्द्धन पर लक्षित संवैधानिक निर्देशों और प्रयासों के बावजूद लगभग 25% भारतीय अभी भी निरक्षर हैं, जो उन्हें सामाजिक और डिजिटल रूप से भी वंचित करता है।
  • भारतीय भाषाओं पर पर्याप्त ध्यान का अभाव: भारतीय भाषाएँ अभी भी अविकसित अवस्था में हैं, विशेष रूप से विज्ञान विषयों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण छात्रों के लिये असमान अवसर की स्थिति बनती है।
    • इसके साथ ही, भारतीय भाषाओं में मानक प्रकाशन उपलब्ध नहीं हैं।
  • तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का अभाव: हमारी शिक्षा प्रणाली मुख्यतः सामान्यज्ञ प्रकृति की है। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का विकास पर्याप्त असंतोषजनक है, जिसके कारण शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
  • वहनीयता/सामर्थ्य: ग्रामीण स्तर पर निम्न आय के कारण शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। जागरूकता एवं वित्तीय स्थिरता की कमी के कारण कई माता-पिता शिक्षा को निवेश के बजाय खर्च के रूप में देखते हैं। वे बच्चों को शिक्षा दिलाने के बजाय चाहते हैं कि उनके बच्चे काम करें और पैसे कमाएँ।
    • उच्च शिक्षा के मामले में, आसपास अच्छे संस्थानों की कमी छात्रों को शहरों का रुख करने के लिये विवश करती है, जिससे अभिभावकों का खर्च बढ़ जाता है। सामर्थ्य की इस समस्या के कारण नामांकन की निम्न दर जैसा परिणाम प्राप्त होता है।
  • लिंग-असमानता: समाज में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये शिक्षा के अवसर की समानता सुनिश्चित करने के सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत में महिलाओं की साक्षरता दर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी बदतर है।संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNISEF) के अनुसार, गरीबी और स्थानीय सांस्कृतिक कुप्रथाएँ (कन्या भ्रूण 
    • हत्या, दहेज और कम उम्र में विवाह ) पूरे भारत में शिक्षा क्षेत्र में लैंगिक असमानता के निर्माण में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं।
    • शिक्षा में एक और बाधा देश भर के स्कूलों में व्याप्त स्वच्छता की कमी भी उत्पन्न करती है।

आगे की राह


  • अनुभवात्मक अधिगम दृष्टिकोण की ओर: छात्रों को व्यावहारिक लर्निंग अनुभव प्रदान करने के लिये और कार्यबल में प्रवेश के समय उन्हें बाहरी दुनिया का सामना करने हेतु तैयार करने के लिये समस्या-समाधान और निर्णय लेने से संबंधित विषयों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की आवश्यकता है।
    • अनुभवात्मक अधिगम (Experiential Learning) प्रत्येक छात्र से सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करा सकने की अपनी क्षमता से अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकता है, जो बदले में उनकी संवेगात्मक बुद्धिमत्ता (emotional intelligence) को प्रेरित करता है और उन्हें आत्म-शिक्षण (self-learning) के मार्ग पर आगे बढ़ाता है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को शैक्षिक क्षेत्र से संबद्ध करने से भी अनुभवात्मक अधिगम को बल मिलेगा।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति का कार्यान्वयन: NEP के कार्यान्वयन से शिक्षा प्रणाली को उसकी नींद से जगाने में मदद मिल सकती है।
    • वर्तमान 10+2 प्रणाली से हटकर एक 5+3+3+4 प्रणाली की ओर आगे बढ़ने से प्री-स्कूल आयु वर्ग औपचारिक रूप से शिक्षा व्यवस्था में शामिल हो जाएगा।
  • शिक्षा-रोज़गार गलियारा: भारत की शैक्षिक व्यवस्था को व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ एकीकृत करने और स्कूल (विशेषकर सरकारी स्कूलों में) में सही मार्गदर्शन प्रदान करने के माध्यम से संवर्द्धित करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि छात्रों को शुरू से ही सही दिशा में निर्देशित किया जा रहा है और वे करियर के अवसरों से अवगत हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों में भी व्यापक संभावनाएँ मौजूद हैं और वे अध्ययन के प्रति प्रेरित भी होते हैं, लेकिन उनके पास सही मार्गदर्शन की कमी होती है। यह न केवल बच्चों के लिये बल्कि उनके माता-पिता के लिये भी आवश्यक है जो एक तरह से शिक्षा में लिंग अंतर को कम करेगा।
  • भाषाई अवरोध को कम करना: अंग्रेज़ी को अंतर्राष्ट्रीय समझ के लिये शिक्षा (Education for International Understanding- EIU) के साधन के रूप में रखते हुए, अन्य भारतीय भाषाओं को समान महत्त्व देना महत्त्वपूर्ण है। इस दृष्टिकोण से विभिन्न भाषाओं में संसाधनों का अनुवाद करने के लिये विशेष प्रकाशन एजेंसियों की स्थापना की जा सकती है ताकि सभी भारतीय छात्रों के पास उनकी भाषाई पृष्ठभूमि से अप्रभावित एकसमान अवसर उपलब्ध हो।
  • अतीत से भविष्य की ओर: भविष्य की ओर देखना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन साथ ही हमें अपनी गहरी जड़ों को भी मन में बनाए रखना चाहिये।
    • प्राचीन भारत की ‘गुरुकुल’ प्रणाली से बहुत कुछ सीखा जा सकता है जो सदियों पहले अकादमिक शिक्षा के बजाय समग्र विकास (जो आज आधुनिक शिक्षा का एक विचारार्थ विषय बना है) पर केंद्रित थी।
    • प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में नैतिकता एवं मूल्यपरक शिक्षा अधिगम या लर्निंग के मूल में रही थी। आत्मनिर्भरता, समानुभूति, रचनात्मकता और अखंडता जैसे मूल्य प्राचीन भारत में महत्त्वपूर्ण रहे थे जो आज भी प्रासंगिक हैं।
    • प्राचीन काल में शिक्षा मूल्यांकन विषयगत ज्ञान के वर्गीकरण तक ही सीमित नहीं था। छात्रों का उनके द्वारा सीखे गए कौशल और वास्तविक जीवन स्थितियों में व्यावहारिक ज्ञान को आजमा सकने की क्षमता के आधार पर मूल्यांकन किया जाता था।
  • आधुनिक शिक्षा प्रणाली को भी मूल्यांकन की ऐसी ही एक प्रणाली तैयार करनी चाहिये।
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