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नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन 

नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन तब शुरू हुआ जब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था। आइये जानते हैं नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन या जिसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है कब शुरू हुआ और इसके परिणाम क्या रहे।
आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व चंपारण बिहार में भारतीय किसानों को अंग्रेजी अत्याचार का सामना करते हुए नील की खेती के लिए न केवल बाध्य किया जा रहा है था बल्कि उनका कई तरह से शोषण भी हो रहा था। यही वह समय था जब महात्मा गाँधी ने इस आंदोलन में भाग लेने का निर्णय लिया।

नील की खेती का मतलब 

नील एक रंजक पदार्थ है जिसका प्रयोग वस्त्र उद्योग में डाई के लिए किया जाता था। इसकी ब्रिटेन में बड़ी मांग के कारण इसकी खेती अंग्रेजों द्वारा दक्षिण अफ़्रीका के साथ-साथ भारत में भी शुरू करा दी गयी। जिस कारण भारतीय किसान जोकि अनाज एवं अन्य नगदी फसलें उगाने की अधिक इच्छा रखता था, उसको नील की खेती के लिए अंग्रेजों ने बाध्य कर दिया।

किसान नील की खेती को क्यों नही करना चाहता था ?

  • नील की खेती के लिए उपजाऊ भूमि की ही आवश्यकता होती है, नील को कम उपजाऊ भूमि पर नहीं उगाया जा सकता है, साथ ही नील की खेती भूमि की उर्वर्कता को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
  • नील की खेती के साथ ही किसानों को इसके पोधों से नील निष्कर्षण की प्रक्रिया में भी कार्य करना होता था जिस कारण वो अपनी अन्य फसलों पर कार्य नहीं कर पाता था।
  • नील की पैदावार को गांव के नीलहे साहबों द्वारा बेहद कम दामों में खरीदना, बल पूर्वक किसानों को प्रताड़ित कर जबरन नील की खेती कराना भी किसानों के रोष का एक प्रमुख कारण था।

नील आंदोलन / नील की क्रांति

नील आंदोलन, नील की जबरन खेती के विरूद्ध एक किसान आंदोलन था। ये आंदोलन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इससे पहले भी समय समय पर नील की खेती के खिलाफ आंदोलन होते रहे थे।

  • 1859 का नील आंदोलन:- वर्ष 1859-60 में बंगाल में निलहे साहबों ने “ददनी” नामक व्यवस्था लागू कर रखी थी। जिसके अन्तर्गत 2रू० प्रति बीघा की दर से खेती करने के लिए किसानों को बाध्य किया जाता था। इसके विरूद्ध बंगाल में आंदोलन हुए तथा बाद में अंग्रेजों द्वारा एक नील आयोग का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष सचिन सीटनंकर को बनाया गया। इस आयोग की रिपोर्ट के बाद बंगाल में जबरन नील की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • चंपारण आंदोलन:- 20 वी सदी की शुरुआत में इस क्षेत्र में निलहे साहबों द्वारा अंग्रेजी सरकार की सहायता से “तीनकठिया” व्यवस्था लागू कर रखी थी। इस व्यवस्था के अन्तर्गत 1 बीघा भूमि के अन्तर्गत आने वाली बीस कठ्ठे (स्थानीय भूमि माप का पैमाना) में से तीन कठ्ठों में नील की खेती करना अनिवार्य था।

चंपारण नील आंदोलन के नेता 

चंपारण नील आंदोलन का नेतृत्व सबसे पहले पं० राजकुमार शुक्ल द्वारा किया गया। उन्होंने एक किसान होने के नाते इस शोषण को स्वयं झेला था। अतः उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया। वर्ष 1915 में जब महात्मा गांधी जी का भारत आगमन हुआ तब वे गांधी जी से कलकत्ता, कानपुर एवं लखनऊ में मिले तथा उन्हें चंपारण में हो रहे अत्याचार से अवगत कराया एवं उन्हें चंपारण आकर इस आंदोलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।

गांधी जी का चंपारण आगमन 

गांधी जी पंडित राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर 10 अप्रैल 1917 को बांकीपुर पहुंचे और फिर मुजफ्फरपुर होते हुए 15 अप्रैल को 1917 को बिहार के चंपारण पहुँचे। तत्कालीन समय चम्पारण बिहार राज्य का एक ज़िला हुआ करता था जिसे अब दो ज़िलों पूर्वी चम्पारण जिला और पश्चिमी चम्पारण जिला में बाँट दिया गया है।

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चंपारण आंदोलन / चम्पारण सत्याग्रह

  • चंपारण आंदोलन 19 अप्रैल 1917 को शुरू हुआ था। जिसका नेतृत्व गांधी जी ने किया। नील की खेती के विरोध में चल रहे नील आंदोलन को ही जब गांधी जी ने बिहार के चम्पारण से शुरू किया तो इसे चम्पारण आंदोलन या चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाने लगा।
  • गांधी जी को चंपारण के किसानों के साथ-साथ बिहार के बड़े वकीलों का भी सहयोग प्राप्त हुआ। गांधी जी ने कई जन सभाएँ की, नीलहे साहबों के साथ कई बैठके की तथा इसकी जानकारी वे अंग्रेज पदाधिकारियों को पत्रों के माध्यम से देते रहे। यह आंदोलन कुल एक वर्ष तक चला तथा अंत में ब्रिटिश सरकार द्वारा एक जांच समिति गठित की गयी, जिसमें गाँधी जी को भी सदस्य बनाया गया। जिसके फलस्वरूप चंपारण कृषि अधिनियम-1918 बना तथा किसानों को नील की खेती की बाध्यता से मुक्ति मिली।
    इसी आंदोलन के दौरान गाँधी जी की मुलाकात डॉ. राजेंद्र प्रसाद से हुई जो आगे चलकर भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।

चंपारण आंदोलन के सफलता के कारण 

  • सत्य एवं अहिंसा पर आधारित अहिंसक आंदोलन होना: गांधी जी के नेतृत्व में चलाया गया चंपारण आंदोलन शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलन था। जिस कारण ब्रिटिश सरकार को उसका दमन कर पाना कठिन पड़ रहा था।
  • आंदोलन का सही प्रचार एवं प्रसार होना: तत्कालीन समाचार पत्रों द्वारा चंपारण आंदोलन को प्रमुखता से छापा गया। जिससे आंदोलन की लोकप्रियता किसानों में बढ़ी और शिक्षित वर्ग भी गांधी जी के इस आंदोलन से जुड़ता चला गया।
  • वकीलों का सहयोग प्राप्त होना: क्योंकि गांधी जी भी स्वयं बैरिस्टर (वकील) थे, इसलिए उन्हें बिहार के बड़े वकीलों से काफी सहयोग प्राप्त हुआ।
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चंपारण आंदोलन के परिणाम

  • किसानों को तीनकठिया व्यवस्था/नीलहे साहब एवं दमनकारी ब्रिटिश कृषि नीतियों से छुटकारा मिला: किसान अब नील की खेती के लिए बाध्य नहीं था। अब किसान अपनी इच्छा अनुसार नगदी फसलों की कृषि को करने के लिए स्वतंत्र था।
  • विकास की प्रारंभिक पहल: इस आंदोलन के दौरान गांधी जी भारतीयों को यह समझाने में सफल हुए कि स्वच्छता स्वतंत्रता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। साथ ही चंपारण में पाठशाला, चिकित्सालय, खादी संस्था, आश्रम भी स्थापित किए जिससे वहां का प्रारंभिक विकास शुरू हुआ।
  • गांधी जी के महात्मा बनने का सफर: इसी आंदोलन से मोहन दास करम चन्द्र गांधी का महात्मा बनने का सफर भी शुरू हुआ। इस आंदोलन के आगमन के साथ ही उनका व्यक्तित्व मोहन दास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी की तरफ अग्रसर हुआ।
  • किसानों का आत्म विश्वास बढ़ा: इस आंदोलन से पहले चंपारण के किसानों की मनोस्थिति आत्महत्या करने की हो चली थी। पर गांधी जी द्वारा सम्पादित इस सफल आंदोलन के बाद भारतीय किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्हें सत्याग्रह एवं एकता की शक्ति का आभास हुआ।
  • स्वतंत्रता आंदोलन में सहायक: चंपारण आंदोलन में सत्याग्रह का भारत के राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम प्रयोग सफल रहा। अहिंसक होने के कारण ब्रिटिश सरकार को भी इसके आगे झुकना पड़ा। यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक मील का पत्थर साबित हुआ। यह माना जाने लगा कि अगर एकता के साथ सत्याग्रह किया जाये तो अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश करा जा सकता है।
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