नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन तब शुरू हुआ जब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था। आइये जानते हैं नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन या जिसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है कब शुरू हुआ और इसके परिणाम क्या रहे।
आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व चंपारण बिहार में भारतीय किसानों को अंग्रेजी अत्याचार का सामना करते हुए नील की खेती के लिए न केवल बाध्य किया जा रहा है था बल्कि उनका कई तरह से शोषण भी हो रहा था। यही वह समय था जब महात्मा गाँधी ने इस आंदोलन में भाग लेने का निर्णय लिया।
नील एक रंजक पदार्थ है जिसका प्रयोग वस्त्र उद्योग में डाई के लिए किया जाता था। इसकी ब्रिटेन में बड़ी मांग के कारण इसकी खेती अंग्रेजों द्वारा दक्षिण अफ़्रीका के साथ-साथ भारत में भी शुरू करा दी गयी। जिस कारण भारतीय किसान जोकि अनाज एवं अन्य नगदी फसलें उगाने की अधिक इच्छा रखता था, उसको नील की खेती के लिए अंग्रेजों ने बाध्य कर दिया।
किसान नील की खेती को क्यों नही करना चाहता था ?
नील आंदोलन, नील की जबरन खेती के विरूद्ध एक किसान आंदोलन था। ये आंदोलन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इससे पहले भी समय समय पर नील की खेती के खिलाफ आंदोलन होते रहे थे।
चंपारण नील आंदोलन का नेतृत्व सबसे पहले पं० राजकुमार शुक्ल द्वारा किया गया। उन्होंने एक किसान होने के नाते इस शोषण को स्वयं झेला था। अतः उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया। वर्ष 1915 में जब महात्मा गांधी जी का भारत आगमन हुआ तब वे गांधी जी से कलकत्ता, कानपुर एवं लखनऊ में मिले तथा उन्हें चंपारण में हो रहे अत्याचार से अवगत कराया एवं उन्हें चंपारण आकर इस आंदोलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।
गांधी जी पंडित राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर 10 अप्रैल 1917 को बांकीपुर पहुंचे और फिर मुजफ्फरपुर होते हुए 15 अप्रैल को 1917 को बिहार के चंपारण पहुँचे। तत्कालीन समय चम्पारण बिहार राज्य का एक ज़िला हुआ करता था जिसे अब दो ज़िलों पूर्वी चम्पारण जिला और पश्चिमी चम्पारण जिला में बाँट दिया गया है।
![]() |
Download the notes
Short Notes: Neel Movement & Champaran Movement (नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन)
|
Download as PDF |
203 videos|723 docs|23 tests
|