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विनिर्माण उद्योग (Manufacturing Industries) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - CTET & State TET PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्न में से कौन-सा उद्योग चूना पत्थर को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त करता है?
(क) एल्यूमिनियम
(ख) चीनी
(ग) सीमेंट
(घ) पटसन।

सही उत्तर (ग) सीमेंट

(ii) निम्न में से कौन-सी एजेंसी सार्वजनिक क्षेत्र में स्टील को बाजार में उपलब्ध कराती है?
(क) हेल (HAIL)
(ख) सेल (SAIL)
(ग) टाटा स्टील (TATA STEEL)
(घ) एमएनसीसी (MNCC)

सही उत्तर (ख) सेल (SAIL)

(iii) निम्न में से कौन-सा उद्योग बॉक्साइट को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करता है?
(क) एल्यूमिनियम
(ख) सीमेंट
(ग) पटसन ।
(घ) स्टील।

सही उत्तर (क) एल्यूमिनियम

(iv) निम्न में से कौन-सा उद्योग दूरभाष, कंप्यूटर आदि संयंत्र निर्मित करते हैं?
(क) स्टील
(ख) एल्यूमिनियम
(ग) इलेक्ट्रॉनिक
(घ) सूचना प्रौद्योगिकी।

सही उत्तर (घ) सूचना प्रौद्योगिकी।


प्रश्न.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) विनिर्माण क्या है?

कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को वस्तु निर्माण या विनिर्माण कहते हैं; जैसे-लकड़ी से कागज बनाना, गन्ने से चीनी बनाना तथा लौह अयस्क से लोहा इस्पात संयंत्र लगाना आदि। विनिर्माण उद्योग किसी भी देश के विकास की रीढ़ माने जाते हैं, क्योंकि ये कृषि के आधुनिकीकरण के साथ-साथ अन्य उद्योगों के विकास में भी सहायक होते हैं। 

(ii) उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन भौतिक कारक बताएँ।

उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले भौतिक कारक निम्नलिखित हैं:

  • कच्चे माल की उपलब्धता: अधिकांश उद्योग वहीं स्थापित किए जाते हैं जहाँ उनके लिए कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो सके। जैसे-अधिकांश लोहा इस्पात उद्योग प्रायद्वीपीय भारत में ही हैं, क्योंकि वहाँ लोहे की खाने हैं और कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो जाता है।
  • शक्ति के विभिन्न साधन: जहाँ उद्योगों को चलाने के लिए शक्ति के विभिन्न साधन प्राप्त हो जाएँगे वहीं उद्योगों | की स्थापना की जाएगी।
  • जेल की सुलभता: विभिन्न उद्योगों के लिए जल की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में जल सुलभता से प्राप्त होता है वहाँ उद्योग स्थापित किए जाते हैं। जैसे-प० बंगाल में जूट मीलें इसलिए स्थापित हैं क्योंकि वहाँ हुगली नदी से पानी मिल जाता है।

(iii) औद्योगिक अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन मानवीय कारक बताएँ।

औद्योगिक अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन मानवीय कारक निम्नलिखित हैं:

  • सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता-जहाँ विभिन्न उद्योगों में काम करने के लिए सस्ते श्रमिक उपलब्ध होते हैं वहाँ । अधिकांश उद्योग स्थापित किए जाते हैं।
  • संचार एवं परिवहन के साधन-विभिन्न उद्योगों में कच्चा माल पहुँचाने तथा तैयार माल बाजार तक ले जाने के लिए संचार एवं परिवहन के अच्छे साधन जरूरी हैं। जहाँ ये साधन अच्छे होंगे वहाँ अधिकांश उद्योग लगाए जाते हैं।
  • पूँजी व बैंक की सुविधाएँ-विभिन्न उद्योगों को लगाने के लिए बड़ी पूँजी की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएँ अच्छी होती हैं वहाँ अधिकांश उद्योग खोले जाते हैं।

(iv) आधारभूत उद्योग क्या है? उदाहरण देकर बताएँ।

वे उद्योग जो केवल अपने लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि बहुत से उद्योग इन उद्योगों पर निर्भर करते हैं। इसलिए, ये महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसे उद्योगों को आधारभूत उद्योग कहते हैं। जैसे-लोही इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है, क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं। विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन, वैज्ञानिक उपकरण और विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए इस्पात की आवश्यकता होती है।


प्रश्न.3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
(i) संकलित इस्पात उद्योग मिनी इस्पात उद्योगों से कैसे भिन्न है? इस उद्योग की क्या समस्याएँ हैं? किन सुधारों के अंतर्गत इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ी है?

लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है। ये दो प्रकार के होते हैं-संकलित उद्योग तथा मिनी इस्पात उद्योग। भारत में 10 मुख्य संकलित उद्योग तथा बहुत से छोटे इस्पात संयंत्र हैं। एक संकलित इस्पात संयंत्र बड़ा संयंत्र होता है जिसमें कच्चे माल को एक स्थान पर एकत्रित करने से लेकर इस्पात बनाने, उसे ढालने और उसे आकार देने तक की प्रत्येक क्रिया की जाती है। मिनी इस्पात उद्योग छोटे संयंत्र हैं जिनमें विद्युत भट्टी, रद्दी इस्पात व स्पंज आयरन का प्रयोग होता है। इनमें रि-रोलर्स होते हैं जिनमें इस्पात सिल्लियों का इस्तेमाल किया जाता है। ये हल्के स्टील या निर्धारित अनुपात के मृदु व मिश्रित इस्पात का उत्पादन करते हैं। लोहा इस्पात उद्योग के सामने कई समस्याएँ रही हैं:

  • उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता
  • कम श्रमिक उत्पादकता
  • ऊर्जा की अनियमित पूर्ति
  • अविकसित अवसंरचना

इन समस्याओं को दूर करके उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ सुधार करने की आवश्यकता है। निजी क्षेत्र में उद्यमियों के प्रयत्न से तथा उदारीकरण व प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने इस उद्योग को प्रोत्साहन दिया है। ईस्पात उद्योग को अधिक स्पर्धावान बनाने के लिए अनुसंधान और विकास के संसाधनों को नियत करने की आवश्यकता है।

(ii) उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?

यद्यपि उद्योगों की भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उद्योगों ने बहुत-से लोगों को काम दिया है और राष्ट्रीय आय में वृद्धि की है तथापि इनके द्वारा बढ़ते भूमि, वायु, जल तथा पर्यावरण प्रदूषण को भी नकारा नहीं जा सकता। उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं-

  • वायु प्रदूषण: अधिक अनुपात में अनचाही गैसों की उपस्थिति जैसे-सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण के कारण हैं। रसायन व कागज उद्योग, ईंटों के भट्ट, तेलशोधनशालाएँ, प्रगलन उद्योग, जीवाश्म ईंधन दहन तथा छोटे-बड़े कारखाने प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करते हुए धुंआ निष्कासित करते हैं। इसका बहुत भयानक तथा दूरगामी प्रभाव हो सकता है। वायु प्रदूषण, मानव स्वास्थ्य, पशुओं, पौधों, इमारतों तथा पूरे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालते हैं।
  • जल प्रदूषण: उद्योगों द्वारा कार्बनिक तथा अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण के मुख्य कारक-कागज, लुग्दी, रसायन, वस्त्र तथा रंगाई उद्योग, तेल शोधनशालाएँ, चमड़ा उद्योग हैं जो रंग, अपमार्जक, अम्ल, लवण तथा भारी धातुएँ; जैसे-सीसा, पारा, उर्वरक, कार्बन तथा रबर सहित कृत्रिम रसायन जल में वाहित करते हैं। इसकी वजह से पानी किसी काम योग्य नहीं रहता तथा उसमें पनपने वाले जीव भी खतरे में पड़ जाते हैं।
  • भूमि का क्षरण: कारखानों से निकलने वाले विषैले द्रव्य पदार्थ और धातुयुक्त कूड़ा कचरा भूमि और मिट्टी को भी प्रदूषित किए बिना नहीं छोड़ते हैं। जब ऐसा विषैला पानी किसी भी स्थान पर बहुत समय तक खड़ा रहता है तो वह भूमि के क्षरण का एक बड़ा कारण सिद्ध होता है।
  • ध्वनि प्रदूषण: औद्योगिक तथा निर्माण कार्य, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस यांत्रिकी तथा विद्युत ड्रिल ध्वनि-प्रदूषण को फैलाते हैं। ध्वनि प्रदूषण से श्रवण असक्षमता, हृदय गति, रक्तचाप आदि बीमारियाँ फैलती हैं।

औद्योगिक बस्तियों का पर्यावरण पर प्रभाव: औद्योगिक क्रांति के कारण गंदी औद्योगिक बस्तियों का निर्माण हो जाता है जिससे सारा इलाका एक गंदी बस्ती में बदल जाता है। चारों तरफ प्रदूषण फैल जाता है और कई प्रकार की महामारियाँ फैल जाती हैं।

(iii) उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की चर्चा करें।

उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए गए हैं:

  • नदियों व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना चाहिए
  • जिससे जल प्रदूषित न हो।
  • कोयले, लकड़ी या खनिज तेल से पैदा की गई बिजली जो हवा को प्रदूषित करती है, के स्थान पर जल द्वारा पैदा | की गई बिजली का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे में वातावरण शुद्ध रहेगा।
  • वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, चिमनियों में एलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपण स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को जड़त्वीय रूप से पृथक करने के लिए उपकरण होना चाहिए। कारखानों में कोयले की अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धुंए के निष्कासन में कमी लायी जा सकती है।
  • ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए जेनरेटरों में साईलेंसर लगाया जा सकता है। ऐसी मशीनरी का प्रयोग तभी किया जाए जो ऊर्जा सक्षम हों तथा कम ध्वनि प्रदूषण करें। ध्वनि अवशोषित करने वाले उपकरणों के इस्तेमाल के साथ कानों पर शोर नियंत्रण उपकरण भी पहनने चाहिए।
  • फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित जल को वहीं इकट्ठा करके रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उसे साफ किया जाए और बार बार प्रयोग में लाया जाए। ऐसे में नदियों और आस-पास की भूमि का प्रदूषण काफी हद तक रुक जाएगा।
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