प्रश्न.1. नीचे दिए गये चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए।
(i) निम्नलिखित में से कौन-सा नगर नदी तट पर अवस्थित नहीं है?
(क) आगरा
(ख) भोपाल
(ग) पटना
(घ) कोलकाता
सही उत्तर (ख) भोपाल
(ii) भारत की जनगणना के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सी एक विशेषता नगर की परिभाषा का अंग नहीं है।
(क) जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
(ख) नगरपालिका, निगम का होना
(ग) 75% से अधिक जनसंख्या का प्राथमिक खंड में संलग्ने होना
(घ) जनसंख्या आकार 5000 व्यक्तियों से अधिक
सही उत्तर (ग) 75% से अधिक जनसंख्या का प्राथमिक खंड में संलग्न होना
(iii) निम्नलिखित में से किस पर्यावरण में परिक्षिप्त ग्रामीण बस्तियों की अपेक्षा नहीं की जा सकती?
(क) गंगा का जलोढ़ मैदान
(ख) राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क प्रदेश
(ग) हिमालय की निचली घाटिया
(घ) उत्तर-पूर्व के वन और पहाड़ियाँ
सही उत्तर (क) गंगा का जलोढ़ मैदान
(iv) निम्नलिखित में से नगरों का कौन-सा वर्ग अपने पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध है?
(क) बृहत मुंबई, बंगलौर, कोलकाता, चेन्नई
(ख) दिल्ली, बृहन मुंबई, चेन्नई, कोलकाता
(ग) कोलकाता, बृहन मुंबई, चेन्नई, कोलकाता
(घ) बृहन मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई।
सही उत्तर (घ) बृहन मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई
प्रश्न.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
(i) गैरिसन नगर क्या होते हैं? उनका क्या प्रकार्य होता है?
ब्रिटिश शासनकाल में इन नगरों का उदय गैरिसन नगरों के रूप में हुआ है। ये छावनी नगर भी कहलाते हैं। अंबाला, जालंधर, महू, बबीना, उधमपुर आदि गैरिसन अथवा छावनी नगर हैं।
(ii) किसी नगरीय संकुल की पहचान किस प्रकार की जा सकती है?
5,000 लाख से अधिक जनसंख्या, उच्चतम जनघनत्व तथा उसका बड़ा भाग द्वितीयक व तृतीयक उच्च स्तरीय व्यावसायिक, प्रशासकीय, प्रबंधकीय सेवाओं, आर्थिक गतिविधियों में संलग्न होने से किसी नगरीय संकुल की पहचान आसानी से की जा सकती है।
(iii) मरुस्थली प्रदेशों में गाँवों के अवस्थिति के कौन-से मुख्य कारक होते हैं?
मरुस्थली प्रदेशों में जल के अभाव में उपलब्ध जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके, इसके लिए यहाँ संहत बस्तियों की अवस्थिति को अनिवार्य बना दिया है।
(iv) महानगर क्या होते हैं? ये नगरीय संकुलों से किस प्रकार भिन्न होते हैं?
10 लाख से 50 लाख की जनसंख्या वाले नगरों को महानगर कहा जाता है जबकि नगरीय संकुल कई विशेषीकृत नगरों व महानगरों के विकास तथा विस्तार के परिणामस्वरूप उनके आपस में प्रकार्यात्मक अंतर्संबंध बन जाने के कारण विकसित होते हैं। इनकी जनसंख्या 50 लाख से अधिक होती है तथा जनघनत्व भी उच्च होता है।
प्रश्न.3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) विभिन्न प्रकार की ग्रामीण बस्तियों के लक्षणों की विवेचना कीजिए। विभिन्न भौतिक पर्यावरणों में बस्तियों के प्रारूपों के लिए उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
भारत में मानव बसाव के आकार व प्रकार के आधार पर ग्रामीण बस्तियों को चार वर्गों में रखा जाता है:
(i) गुच्छित, संकलित अथवा आकेंद्रित: गुच्छित ग्रामीण बस्ती घरों का एक संहत अथवा संकुलित प्रारूप होता है जो कि इसके चारों ओर फैले खेतों, खलिहानों और चरागाहों से पृथक होता है। संकुलित प्रारूप में ज्यामितीय आकृतियाँ प्रस्तुत करती गलियाँ व मुख्य मार्ग होते हैं। जैसे-आयताकार, अरीय, रैखिक इत्यादि। भारत के उपजाऊ जलोढ़ मैदानों, उत्तर-पूर्वी राज्यों, मध्य भारत तथा राजस्थान के जल अभाव वाले क्षेत्रों में गुच्छित अथवा संकुलित बस्तियाँ पायी जाती हैं। सुरक्षा या प्रतिरक्षा कारणों से भी लोग संहत गाँवों में रहते हैं।
(ii) अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ: अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ प्रायः किसी बड़े गाँव के विखंडन का परिणाम होता है। इसमें ग्रामीण समाज का कोई वर्ग स्वेच्छा से अथवा बलपूर्वक मुख्य गुच्छ अथवा गाँव से अलग थोड़ी दूरी पर रहने लगता है। गाँव के केंद्रीय भाग पर प्रभावशाली लोग काबिज रहते हैं। ऐसी बस्तियाँ गुजरात के मैदान तथा राजस्थान के कुछ भागों में पायी जाती हैं।
(iii) पल्ली बस्तियाँ: जब कोई बस्ती भौतिक रूप से अनेक इकाइयों में बँट जाती हैं किंतु उन सबका नाम एक ही रहता है, ऐसी इकाइयों को देश के अलग-अलग भागों में स्थानीय स्तर पर पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला, ढाँणी इत्यादि कहा जाता है। यह विखंडन प्रायः सामाजिक एवं मानव जातीय कारकों द्वारा अभिप्रेरित होता है। ऐसे गाँव मध्य और निम्न गंगा के मैदान, छत्तीसगढ़ तथा हिमालय की निचली घाटियों में अधिक पाये जाते
(iv) परिक्षिप्त बस्तियाँ: परिक्षिप्त अथवा एकाकी बस्ती प्रारूप भारत के मेघालय, उत्तरांचल, हिमालय प्रदेश तथा केरल के अनेक भागों में छोटी पहाड़ियों की छालों पर, जंगलों में तथा भूभाग की अत्यधिक विखंडित प्रकृति वाले स्थानों पर देखने को मिलता है।
ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के लिए अनेक कारक और दशाएँ उत्तरदायी होती हैं; जैसे:
(i) भौतिक कारक-भू-भाग की प्रकृति, ऊँचाई, जलवायु तथा जल की उपलब्धता,
(ii) सांस्कृतिक और मानव जातीय कारक-सामाजिक संरचना, जाति और धर्म,
(iii) सुरक्षा संबंधी कारक-चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा।
(ii) क्या एक प्रकार्य वाले नगर की कल्पना की जा सकती है? नगर बहुप्रकार्यात्मक क्यों हो जाते हैं?
नगर अपने प्रकार्यों में स्थिर नहीं हैं। उनके गतिशील स्वभाव के कारण विशेषीकृत नगरों के प्रकार्यों में परिवर्तन हो जाता है तथा वे लोगों को अनेक सेवाएँ प्रदान करने वाले आर्थिक नोड़ (node) के रूप में कार्य करते हैं। अतः वर्तमान समय में एक प्रकार्य वाले नगर की कल्पना नहीं की जा सकती। तेजी से बढ़ती जनसंख्या तथा लोगों की इच्छाओं व आकांक्षाओं को संतुष्ट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नगरों को महानगर तथा उसके बाद मेगानगर बनने में अधिक समय नहीं लगता है। 20वीं शताब्दी के दौरान भारत में नगरीय जनसंख्या 11 गुना बढ़ी है। भारत की 60 प्रतिशत नगरीय जनसंख्या प्रथम श्रेणी के नगरों में रहती है तथा कुल नगरीय जनसंख्या का 21 प्रतिशत भारत के छः मेगानगरों में निवास करती है। लोगों की आवश्यकताएँ बढ़ने पर विशेषीकृत नगर भी महानगर तथा उसके बाद मेगानगर (नगरीय संकुल) बनने पर बहुप्रकार्यात्मक बन जाते हैं जहाँ उद्योग, वाणिज्य, व्यवसाय, प्रशासन, परिवहन तथा अन्य प्रकार की उच्चस्तरीय सेवाएँ महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। प्रकार्य इतने अंतर्ग्रथित हो जाते हैं कि नगर को किसी विशेष प्रकार्य वर्ग में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। बल्कि नगर के क्षेत्र विशेष किसी विशेष प्रकार्य के लिए जाने जाने लगते हैं, जैसे दिल्ली में नेहरू प्लेस-कम्प्यूटर के लिए, भागीरथ प्लेस-इलैक्ट्रीकल सामान के लिए, लाजपतराय मार्केट-इलैक्ट्रोनिक्स सामान के लिए तथा गाँधीनगर-रेडीमेड गारमेंट्स के लिए इत्यादि।
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