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वनस्पति जगत (Plant Kingdom) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - CTET & State TET PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. शैवालों के वर्गीकरण का क्या आधार है?

शैवालों का वर्गीकरण मुख्यतया उनमें उपस्थित वर्णक (pigments), फ्लेजिला (flagella), संगृहीत खाद्य पदार्थ (storage food product) और कोशिका भित्ति की रासायनिक संरचना (chemical structure of cell wall) के आधार पर किया जाता है।


प्रश्न.2. लिवरवर्ट, मॉस, फर्न, जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म के जीवन चक्र में कहाँ और कब निम्नीकरण विभाजन (reduction division) होता है?

लिवरवर्ट तथा मॉस में निम्नीकरण विभाजन कैप्सूल (capsule) की बीजाणु मातृ कोशा (spore mother cell) में होता है। फर्न में निम्नीकरण विभाजन स्पोरेन्जिया (sporangia) की बीजाणु मातृ कोशा (spore mother cell) में होता है। जिम्नोस्पर्म में निम्नीकरण विभाजन माइक्रोस्पोरेन्जियम (microsporangium) में माइक्रोस्पोर (परागकण) के निर्माण के समय तथा मेगास्पोरेन्जियम में मेगास्पोंर (megaspore) के निर्माण के समय होता है। एन्जियोस्पर्म में निम्नीकरण विभाजन परागकोश (anther) की    माइक्रोस्पोरेन्जियम तथा अण्डाशय (ovule) की मेगास्पोरेन्जियम में होता है।


प्रश्न.3. पौधों के तीन वर्गों के नाम लिखिए जिनमें स्त्रीधानी (archaegonia) होती है। इनमें से किसी एक के जीवन-चक्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

ब्रायोफाइटा( Bryophyta), टेरिडोफाइटा (Pteridophyta), तथा जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms)वर्ग के पौधों में स्त्री धानी (Archegonia) पाई जाती है।
मोस (ब्रायोफाइटा पादप) का जीवन-चक्र: इसकी प्रमुख अवस्था युग्मकोभिद (gametophyte) होती है। युग्मकोभिद की दो अवस्थाएं पाई जाती हैं।

  • शाखामय, हरे, तंतुरूपी प्रोटोनीमा (protonema) का निर्माण अगुणित बीजाणुओं के अंकुरण से होता है। इस पर अनेक कलिकाएँ विकसित होती हैं जो वृद्धि करके पत्तीमय अवस्था का निर्माण करती हैं।
  • पत्तीमय अवस्था पर नर तथा मादा जननांग समूह के रूप में बनते हैं। नर जननांग को पुंधानी (antheridium) तथा मादा जननांग को स्त्रीधानी (archegonium) कहते हैं। पुंधानी में द्विकशाभिक पुंमणु (antherozoids) तथा स्त्रीधानी में अंडाणु (ovum) बनता है। निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु तथा अंडाणु संलयन के फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज (oospore) बनाते हैं। युग्मनज से वृद्धि तथा विभाजन द्वारा द्विगुणित बीजाणु भिद् (sporophyte) का निर्माण होता है। यह युग्मकोभिद पर अपूर्ण परजीवी होता है। बीजाणु भिद् के तीन भाग होते हैं :-
    • पाद (foot)
    • सीटा (seta) तथा
    • सम्पुट (capsule)

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सम्पुट के बीजाणु कोष्ठ में स्थित द्विगुणित बीजाणु मातृ कोशिकाओं से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित बीजाणु (spores) बनते हैं।सम्पुट के स्फुटन से बीजाणु मुक्त हो जाते हैं। बीजाणुओं का प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है। अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर बीजाणु अंकुरित होकर तंतुरूपी, स्वपोषी प्रोटोनीमा (protonema) बनाते हैं। उदाहरण - फ्यूनेरिया (Funaria), पोलीट्रइकम (Polytrichum) ,स्फेगनम (Sphagnum)।


प्रश्न.4. निम्नलिखित की सूत्रगुणता (ploidy) बताइए मॉस की प्रथम तन्तुक कोशिका, द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक, मॉस की पत्तियों की कोशिका, फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ, मारकेंशिया की जेमा कोशिका, एकबीजपत्री की मेरिस्टेम कोशिका, लिवरवर्ट के अण्डाशय तथा फर्न के युग्मनज।

इनकी सूत्रगुणता निम्नवत् है:

  • मॉस की प्रथम तन्तुक कोशिका – अगुणित (Haploid-X)
  •  द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक – त्रिगुणित (Triploid-3X)
  •  मॉस की पत्तियों की कोशिका – अगुणित (Haploid-X)
  •  फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ – अगुणित (Haploid-X)
  •  मारकेंशियां की जेमा कोशिका – अगुणित (Haploid-X)
  • एकबीजपत्री की मेरिस्टेम कोशिका – द्विगुणित (Diploid-2X)
  • लिवरवर्ट का अण्डाशय – अगुणित (Haploid-X)
  • फर्न का युग्मनज  – द्विगुणित (Diploid-2X)


प्रश्न.5. शैवाल तथा जिम्नोस्पर्म के आर्थिक महत्त्व पर टिप्पणी लिखिए।

शैवाल का आर्थिक महत्त्व

  • भोजन के रूप में (Algae as Food): पृथ्वी पर होने वाले प्रकाश संश्लेषण का 50% शैवालों द्वारा होता है। शैवाल कार्बोहाइड्रेट, खनिज तथा विटामिन्स से भरपूर होते हैं पोरफाइरा (Porphyra), एलेरिया (Alaria), अल्वा (Ulva),सारगासम (Sargassum), लेमिनेरिया (Luminaria) आदि खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किए जाते हैं क्लोरेला (Chlorella) में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन्स तथा विटामिन्स पाए जाते हैं। इसे भविष्य के भोजन के रूप में पहचाना जा रहा है इससे हमारी बढ़ती जनसंख्या की खाद्य समस्या के हल होने की पूरी सम्भावना है।
  • शैवाल व्यवसाय में (Algae in Industry): डायटम के जीवाश्म/मृत शरीर डायटोमेशियस मृदा (diatomaceous earth or Kiselghur) बनाते हैं। यह मृदा 1500°C ताप सहन कर लेती है। इसका उद्योगों में विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है; जैसे–धातु प्रलेप, वार्निश, पॉलिश, टूथपेस्ट, ऊष्मारोधी सतह आदि।
    • कोन्ड्रस (Chondrus), यूक्यिमा (Eucheuma) आदि शैवालों से कैरागीनिन (carrageenin) प्राप्त होता है। इसका उपयोग शृंगार-प्रसाधनों, शैम्पू आदिबनाने में किया जाता है
    • एलेरिया (Alaria), लेमिनेरिया (Laminaria) आदि से एल्जिन (algin) प्राप्त होता है। इसका उपयोग अज्वलनशील फिल्मों, कृत्रिम रेशों आदि के निर्माण में किया जाता है  यह शल्य चिकित्सा के समय रक्त प्रवाह रोकने में भी प्रयोग किया जाता है।
    • अनेक समुद्री शैवालों से आयोडीन, ब्रोमीन आदि प्राप्त की जाती है।
    •  क्लोरेला से प्रतिजैविक (antibiotic) क्लोरेलीन (Chlorellin) प्राप्त होती है। यह जीवाणुओं को नष्ट करती है। कारा (Chara) तथा नाइटेला (Nitella) शैवालों की उपस्थिति से जलाशय के मच्छर नष्ट होते हैं; अतः ये मलेरिया उन्मूलन में सहायक होते हैं
    •  लाल शैवालों से एगार-एगार (agar-agar) प्राप्त होता है, इसका उपयोग कृत्रिम संवर्धन के लिए  किया जाता है।

जिम्नोस्पर्म का आर्थिक महत्त्व

  • सजावट के लिए (Ornamental Plants): सोइकस, पाइनस, एरोकेरिया (Arqucurid), गिंगो (Ginkgo), थूजा (Thujq), क्रिप्टोमेरिया (Cryptomeria) आदि पौधों का उपयोग सजावट के लिए किया जाता है।
  • भोज्य पदार्थों के लिए (Plants of Food value): साइकस, जैमिया से साबूदाना (sago) प्राप्त होता है। चिलगोजा (Pinus gerardiana) के बीज खाए जाते हैं। नीटम (Gnetum), गिंगो (Ginkgo) व साइकस के बीजों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • फर्नीचर के लिए लकड़ी: चीड़ (Pinus), देवदार (Cedrus), कैल (Pinus wallichiana), फर (Abies) से प्राप्त लकड़ी का उपयोग फर्नीचर तथा इमारती लकड़ी के रूप में किया जाता है।
  • औषधियाँ (Medicines): साइकस के बीज, छाल व गुरुबीजाणुपर्ण को पीसकर पुल्टिस बनाई जाती है। टेक्सस बेवफोलिया (Taxus brevfolia) से टेक्साल औषधि प्राप्त होती है। जिसका उपयोग कैन्सर में किया जाता है। थूजा (Thuja) की पत्तियों को उबालकर बुखार, खाँसी, गठिया रोग के निदान के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • एबीस बालसेमिया (Abies balsamea): से कैनाडा बालसम, जूनिपेरस (Juniperus) से सिडार वुड ऑयल (cedar wood oil), पाइनस से तारपीन का तेल प्राप्त होता है।


प्रश्न.6. जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म दोनों में बीज होते हैं फिर भी उनका वर्गीकरण अलग-अलग क्यों है?

जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म दोनों का वर्गीकरण अलग-अलग इसलिए किया जाता है क्योंकि जिम्नोस्पर्म में बीज नग्न (naked seeds) होते हैं, फल अनुपस्थित होते हैं, फूल अनुपस्थित होते हैं, भ्रूणपोष (endosperm) अगुणित (haploid) होता है तथा निषेचन से पहले बनता है। द्विनिषेचन (double fertilization) अनुपस्थित होता है। वर्तिकाग्र (stigma) अनुपस्थित होता है तथा स्त्रीधानी (archaegonia) पाई जाती है, जबकि एन्जियोस्पर्म के बीज फल से घिरे रहते हैं, फूल उपस्थित होते हैं, भ्रूणपोष त्रिगुणित (triploid) होता है तथा द्विनिषेचन के पश्चात् बनता है। वर्तिकाग्र (stigma) पाया जाता है। तथा स्त्रीधानी (archaegonia) नहीं पाई जाती है।


प्रश्न.7. विषम बीजाणुकता क्या है? इसकी सार्थकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। इसके दो उदाहरण दीजिए।

एक पौधे में दो प्रकार के बीजाणुओं (छोटा माइक्रोस्पोर तथा बड़ा मेगास्पोर) की उपस्थिति विषम बीजाणुकता (heterospory) हलाती है। यह कुछ टेरिडोफाइट; जैसे-सिलेजीनेला (Seluginella), साल्वीनिया (Savinia), मालिया (Marsiled) आदि में तथा सभी जिम्नोस्पर्म व एन्जियोस्पर्म में पाई जाती है। विषम बीजाणुकता का विकास सर्वप्रथम टेरिडोफाइट में हुआ था। विषम बीजाणुकता बीज निर्माण प्रक्रिया की शुरूआत मानी जाती है जिसके  फलस्वरूप बीज का विकास हुआ। विषम बीजाणुकता ने नर एवं मादा युग्मकोभिद् (male and female gametophyte) के विभेदने में सहायता की तथा मादा युग्मकोभिद् जो मेगास्पोरेन्जियम के अन्दर विकसित होता है कि उत्तरजीविता बढ़ाने में सहायता की।


प्रश्न.8. उदाहरण सहित निम्नलिखित शब्दावली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए
(i) प्रथम तन्तु

यह हरी, अगुणित (haploid), प्रकाश-संश्लेषी, स्वतन्त्र प्रारम्भिक युग्मकोभिद् (gametophytic) संरचना है जो मॉस (ब्रायोफाइट) में पाई जाती है। यह बीजाणुओं (spores) के अंकुरण से बनती है तथा नये युग्मकोभिद् पौधे का निर्माण करती है।

(ii) पुंधानी

यह बहुकोशिकीय, कवच युक्त (jacketed) नर जनन अंग (male sex organ) है जो ब्रायोफाइट व टेरिडोफाइट में पाया जाता है। पुंधानी में नर युग्मक (male gamete or antherozoids) बनते हैं।

(iii) स्त्रीधानी

यह बहुकोशिकीय, फ्लास्क के समान मादा जनन अंग (female sex organ) है जो ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट तथा कुछ जिम्नोस्पर्म में पाई जाती है। यह ग्रीवा (neck) तथा अण्डधा (venter) में विभाजित होती है। इसमें एक अण्ड (egg) बनता है।

(iv) द्विगुणितक

यह जीवन-चक्र का एक प्रकार है जिसमें पौधा द्विगुणित (2n) होता है तथा इस पर युग्मकीय अर्धसूत्री विभाजन (gametic meiosis) द्वारा अगुणित (haploid) युग्मक (gametes) बनते हैं। उदाहरण-फ्युकस, सारगासम।

(v) बीजाणुपर्ण 

फर्न (टेरिडोफाइट) में बीजाणु (spores) बीजाणुधानियों (sporangia) में पाए जाते हैं। इन बीजाणुधानियों के समूह को सोरस (sorus) कहते हैं। ये पिच्छक या पत्ती (pinna or leaf) की नीचे की सतह (lower surface) पर मध्य शिरा (mid rib) के दोनों ओर दो पंक्तियों में शिराओं के सिरे पर लगी रहती हैं। इन सोराई धारण करने वाल पत्तियों को बीजाणुपर्ण (sporophyll) कहते हैं।

(vi) समयुग्मकी (Isogamy)

यह एक प्रकार का लैंगिक जनन है जिसमें संलयन करने वाले युग्मक (gametes) संरचना तथा कार्य में समान होते हैं
उदाहरण:

  • यूलोथ्रिक्स (Ulothrs)
  • क्लेमाइडोमोनास(Chlamydomonas)
  • तथा एक्ट्रोकार्पस (Ectocarpus)


प्रश्न.9. निम्नलिखित में अन्तर कीजिए
(i) लाल शैवाल तथा भूरे शैवाल

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(ii) लिवरवर्ट तथा मॉस

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(iii) समबीजाणुक तथा विषमबीजाणुक टेरिडोफाइट

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 (iv) युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन

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प्रश्न.10. एकबीजपत्री को द्विबीजपत्री से किस प्रकार विभेदित करोगे?

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प्रश्न.11. स्तम्भ I में दिए गए पादपों का स्तम्भ-II में दिए गए पादप वर्गों से मिलाने कीजिए:
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प्रश्न.12.  जिम्नोस्पर्म के महत्त्वपूर्ण अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।

जिम्नोस्पर्म के महत्वपूर्ण अभिलक्षण ये सामान्यत: ‘नग्नबीजी पौधे’ कहलाते हैं। इनके मुख्य अभिलक्षण निम्नलिखित हैं:

  • अधिकतर पौधे मरूद्भिद, काष्ठीय, बहुवर्षीय वृक्ष या झाड़ी होते हैं।
  • पत्तियां प्रायः दो प्रकार की होती हैं - शल्क पर्ण और सत्य पर्ण स्टोमेटा निचली सतह पर तथा गत में स्थित होते हैं।
  • तने में संवहन पूल, संयुक्त, कोलेटरल तथा खुले होते हैं।
  • जाइलम में वाहिकाओं तथा फ्लोएम में सह कोशिकाओं का अभाव होता है।
  • पौधे विषमबीजाणुक होते हैं - लघुबीजाणु तथा गुरुबीजाणु।
  • पुष्प शंकु कहलाते हैं। प्रायः नर और मादा शंकु अलग-अलग होते हैं। पौधे एकलिंगाश्रयी होते हैं। नर शंकु का निर्माण लघुबीजाणु पर्ण तथा मादा शंकु का निर्माण गुरुबीजाणुपर्णो से होता है।
  • नर युग्मकोभिद अत्यन्त ह्रासित होता है। परागनलिका बनती है।
  • मादा युग्मकोभिद एक गुरुबीजाणु से बनता है। यह बहुकोशिकीय होता है। यह पोषण के लिए पूर्णत: बीजाणुभि पर निर्भर करता है।
  • भ्रूणपोष अगुणित होता है। यह निषेचन से पहले बनता है।
  • इन पौधों में सामान्यतः वायु परागण होता है।
  • प्राय: बहुभ्रूणता पाई जाती है; किन्तु अंकुरण के समय केवल एक ही धुन विकसित होता है।
  • नग्न बीजांड से निषेचन तथा परिवर्द्धन के बाद नग्न बीज बनाता है। फल नहीं बनते। क्रम शक्ति कम नहीं होती।
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