UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12)  >  NCERT Solutions: कोशिका : जीवन की इकाई (Cell: The Unit of Life)

कोशिका : जीवन की इकाई (Cell: The Unit of Life) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. इनमें से कौन-सा सही नहीं है?
(अ) कोशिका की खोज राबर्ट ब्राउन ने की थी।
(ब) श्लीडेन व श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रतिपादित किया था।
(स) विरचोव के अनुसार कोशिका पूर्व स्थित कोशिका से बनती है।
(द) एककोशिकीय जीव अपने जीवन के कार्य एक कोशिका के भीतर करते हैं।

सही उत्तर (अ) कोशिका की खोज राबर्ट ब्राउन ने की थी।


प्रश्न.2. नई कोशिका का निर्माण होता है
(अ) जीवाणु-किण्वन से।
(ब) पुरानी कोशिकाओं के पुनरुत्पादन से
(स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से
(द) अजैविक पदार्थों से

सही उत्तर (स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से।


प्रश्न.3. निम्न के सही जोड़े बनाइए
(अ) क्रिस्टी   – (i) पीठिका में चपटी कलामय थैली
(ब) कुंडिका  – (ii) सूत्रकणिका में अन्तर्वलन
(स) थाइलेकोइड – (iii) गॉल्जी उपकरण में बिंब आकार की थैली

(अ) (ii)
(ब) (iii)
(स) (i)


प्रश्न.4. इनमें से कौन-सा सही है?
(अ) सभी जीव कोशिकाओं में केन्द्रक मिलता है।
(ब) दोनों जन्तु व पादप कोशिकाओं में स्पष्ट कोशिका भित्ति होती है।
(स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।
(द) कोशिका का निर्माण अजैविक पदार्थों से नए सिरे से होता है।

सही उत्तर (स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।


प्रश्न.5. प्रोकैरियोटिक कोशिका में क्या मीसोसोम होता है? इसके कार्य का वर्णन करो।

प्रोकैरियोटिक कोशिका में विशिष्ट झिल्ली नामक एक संरचना मिलती है जो प्लाज्मा झिल्ली में वलनों से बनती है इसे मीसोसोम (mesosome) कहते हैं। इसका मुख्य कार्य श्वसन में सहायता करना है।


प्रश्न.6. कैसे उदासीन विलेय जीवद्रव्य झिल्ली से होकर गति करते हैं? क्या ध्रुवीय अणु उसी प्रकार से इससे होकर गति करते हैं। यदि नहीं तो इनका जीवद्रव्य झिल्ली से होकर परिवहन कैसे होता है?

जीवद्रव्य झिल्ली का महत्त्वपूर्ण कार्य “इससे होकर अणुओं का परिवहन है।” यह झिल्ली वरणात्मक पारगम्य (selectively permeable) होती है। उदासीन विलेय अणु सामान्य या निष्क्रिय परिवहन द्वारा उच्च सान्द्रता से कम सान्त्रता की ओर साधारण विसरण द्वारा झिल्ली से आते-जाते रहते हैं। इसमें ऊर्जा व्यय नहीं होती। ध्रुवीय अणु सामान्य विसरण द्वारा इससे होकर आ-जा नहीं सकते,  इन्हें परिवहन हेतु वाहक प्रोटीन्स की आवश्यकता होती है। इन्हें आयने कैरियर (ion carriers) भी कहते हैं। इनका परिवहन सामान्यतया सक्रिय विसरण द्वारा होता है। इसमें ऊर्जा व्यय होती है। ऊर्जा  ATP से प्राप्त होती है। ऊर्जा व्यय करके आयन या अणुओं का परिवहन निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की ओर भी हो जाता है।


प्रश्न.7. दो कोशिकीय अंगकों के नाम बताइए जो द्विककला से घिरे होते हैं। इन दो अंगकों की क्या विशेषताएँ हैं? इनके कार्य लिखिए व रेखांकित चित्र बनाइए।

  • माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria) तथा लवक (plastid) द्विकला (double membrane) से घिरे कोशिकांग (cell organelles) हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना माइटोकॉन्ड्रिया को सर्वप्रथम कालीकर (Kallikar, 1880) ने देखा। आल्टमैन (1894) ने इन्हें बायोप्लास्ट कहा। बेण्डा (1897) ने इन्हें माइटोकॉन्ड्रिया कहा। माइटोकॉन्ड्रिया को  कॉन्ड्रियोसोम भी कहते हैं। यह शलाका, गोल अथवा कणिकारूपी होते हैं। इनकी लम्बाई 40µ तक तथा व्यास 3.5 µ तक होता है। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में इनका अभाव होता है।
    परासंरचना (Ultrastructure) : यह दोहरी पर्त वाली संरचना है। बाह्य पर्त चिकनी तथा अन्दर की पर्त में अंगुलियों के समान अन्तर्वलन मिलते हैं जिन्हें क्रिस्टी (cristae) कहते हैं। दोनों पर्यों के मध्य के स्थान को पेरीमाइटोकॉन्ड्रियल स्थान  कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की गुहा में प्रोटीनयुक्त मैट्रिक्स मिलता है। क्रिस्टी की सतह पर छोटे-छोटे कण मिलते हैं जिन्हें F1 कण अथवा ऑक्सीसोम (oxysomes) कहते हैं। ऑक्सीसोम ऑक्सीकरणीय  फॉस्फेटीकरण (श्वसन) की क्रिया में ATP निर्माण में भाग लेते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया के क्रिस्टी पर इलेक्ट्रॉन अभिगमन होता है जिसके फलस्वरूप ATP बनते हैं। इसके मैट्रिक्स में D.N.A., राइबोसोम, जल, लवण, क्रेब्स चक्र सम्बन्धी विकर आदि मिलते हैं।
  • रासायनिक संघटन (Chemical Composition) : इनमें 65-70% प्रोटीन, 25% लिपिड, D.N.A., R.N.A. आदि मिलते हैं। अन्दर की कला में श्वसन तन्त्र श्रृंखला सम्बन्धी सभी साइटोक्रोम; जैसे—Cyt b, c, a, a 3, क्वीनोन, NAD, FAD, FMN आदि  मिलते हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया का कार्यमाइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में क्रेब्स चक्र तथा ऑक्सीसोम (F1 कण) पर श्वसन’ श्रृंखला का इलेक्ट्रॉन अभिगमन तन्त्र सम्पन्न होता है, इससे मुक्त ऊर्जा ATP में संचित होती है। ATP समस्त जैविक  क्रियाओं के लिए गतिज ऊर्जा प्रदान करता है। माइटोकॉन्ड्रिया को ‘कोशिका का ऊर्जा गृह’ (Power house of the cell) कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में स्वद्विगुणन की क्षमता होती है।
  • लवक की संरचना लवक दोहरी झिल्ली से घिरे होते हैं। ये यूकैरियोटिक पादप कोशिकाओं में ही मिलते हैं। ये कवक में नहीं मिलते हैं। हीकेल (1865) ने इसकी खोज की तथा शिम्पर ने इसे प्लास्टिड (Plastid) नाम दिया। लवक तीन प्रकार के होते हैं ल्यूकोप्लास्ट; क्रोमोप्लास्ट तथा क्लोरोप्लास्ट।
    1. ल्यूकोप्लास्ट (Leucoplast) : ये संचयी लवक हैं। वर्णक न होने के कारण ये रंगहीन होते हैं। ये तीन प्रकार के एमाइलोप्लास्ट (मण्ड संचयी); इलियोप्लास्ट (वसा संचयी) तथा प्रोटीनोप्लास्ट (प्रोटीन संचयी) होते हैं।
    2. क्रोमोप्लास्ट (Chromoplast) : ये रंगीन लवक हैं। सामान्यतः फूलों की पंखुड़ियों, फल, रंगीन पत्तियों आदि में होते हैं। भूरे शैवालों में फियोप्लास्ट, लाल शैवालों में रोडोप्लास्ट तथा प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में क्रोमैटोफोर आदि मिलते हैं।
    3. क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) : हरितलवक अथवा क्लोरोप्लास्ट की खोज शिम्पर (Schimper, 1864) ने की। इनमें क्लोरोफिल (पर्णहरित) मिलता है। ये लवक पौधे के हरे भागों में सामान्यतः पत्तियों में  (मीसोफिल, खम्भ ऊतक, क्लोरेनकाइमा) मिलते हैं। ये विभिन्न आकार के होते हैं। हरे शैवाल सामान्यतः हरितलवकं के आकार से पहचाने जाते हैं। उच्च पादप में ये गोल, अण्डाकार, चपटे, दीर्घवृत्ताकार  (elliptical) होते हैं। सामान्यतया इनकी लम्बाई 2-5µ तथा चौड़ाई 3-4µ होती है। कोशिका में इनकी संख्या 20-40 तक हो सकती है।
    4. हरितलवक की परासंरचना (Ultrastructure of Chloroplast) : इनकी संरचना जटिल होती है। यह दो एकक कलाओं की झिल्ली से बना होता है। दोनों कलाओं के मध्य का स्थान पेरीप्लास्टीडियल स्थान कहलाता है। झिल्ली से घिरा रंगहीन मैट्रिक्स स्ट्रोमा  (stroma) होता है। मैट्रिक्स में कलातन्त्र से बना ग्रैना (grana) होता है। ग्रैना में प्लेट जैसी रचना का समूह होता है, जो पटलिकाओं से जुड़ी रहती हैं, इन्हें लैमिली कहते हैं। ग्रेना की इकाई को  थाइलेकॉइड कहते हैं। ये एक-दूसरे के ऊपर स्थित होते हैं। दो ग्रैना को जोड़ने वाली पटलिका को स्ट्रोमा लैमिली अथवा फ्रेट चैनल कहते हैं। थाइलेकॉइड पर ‘क्वान्टासोम (quantasomes) पाए जाते हैं। प्रत्येक क्वान्टासोम पर लगभग 230 पर्णहरित अणु पाए जाते हैं। क्लोरोप्लास्ट का रासायनिक संघटन
    5. (Chemical Composition of Chloroplast) : प्रत्येक क्लोरोप्लास्ट में 40-50% प्रोटीन, 23-25% फॉस्फोलिपिड; 3-10% पर्णहरित, 5% R.N.A., 0. 02 -0.01% D.N.A., 1-2% कैरोटीन, विभिन्न विकर, विटामिन तथा धातु; जैसे Mg,Fe, Cu, Mn, Zn आदि मिलते हैं।
    6. क्लोरोप्लास्ट के कार्य (Functions of Chloroplast) : क्लोरोप्लास्ट का मुख्य कार्य प्रकाश संश्लेषण है। ग्रैना में प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशीय क्रिया तथा स्ट्रोमा में अप्रकाशीय क्रिया होती है। प्रकाशीय क्रिया में जल के अपघटन से ऊर्जा निकलती है तथा  अप्रकाशीय अभिक्रिया में CO2, का स्वांगीकरण होता है। भोजन बनाने का चित्र-ग्रेना तथा स्ट्रोमा लैमिली की संरचना। दायित्व होने के कारण इसे कोशिका की किचिन अथवा रसोई कहते हैं।


प्रश्न.8. प्रोकैरियोटिक कोशिका की क्या विशेषताएँ हैं?

प्रोकैरियोटिक कोशिका या असीमकेन्द्रकीय कोशिकाएँ ऐसी कोशिकाएँ, जिनमें सत्य केन्द्रक (केन्द्रक-कला सहित) नहीं पाया जाता तथा केन्द्रक में पाए जाने वाले प्रोटीन एवं न्यूक्लीक अम्ल  (D.N.A. तथा R.N.A.) केन्द्रक-कला के अभाव में कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) के सम्पर्क में रहते हैं, प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ कहलाती हैं। इनमें एक ही घेरेदार क्रोमोसोम होता है,  जिसमें हिस्टोन प्रोटीन नहीं होती। इनमें राइबोसोम्स 70S प्रकार के होते हैं। इन कोशिकाओं में  अनेक कोशिकांग; जैसे–केन्द्रिक, गॉल्जीकाय, माइटोकॉन्ड्रिया, अन्त:प्रद्रव्यी जालिका आदि; नहीं होते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में सूत्री विभाजन के लिए घटकों का अभाव होता है। रचना की दृष्टि से इस प्रकार की कोशिकाएँ आदिम मानी गई हैं। जीवाणु कोशिका तथा  नीली-हरी शैवालों की कोशिकाएँ प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के उदाहरण हैं।


प्रश्न.9. बहुकोशिकीय जीवों में श्रम विभाजन की व्याख्या कीजिए।

एककोशिकीय जीवों में समस्त जैविक क्रियाएँ; जैसे—श्वसन, गति (प्रचलन), पोषण, उत्सर्जन, जनन आदि जीव कोशिका द्वारा ही सम्पन्न होती हैं। इनमें इन कार्यों को सम्पन्न करने हेतु सामान्यतया विशिष्ट अंगक नहीं होते। इनमें मान्य कोशिकाविभाजन द्वारा ही जनन प्रक्रिया हो जाती है। कुछ एककोशिकीय जीवों में लैंगिक जनन भी पाया जाता है। सरल बहुकोशिकीय जीवों में;  जैसे–स्पंज में विभिन्न जैविक कार्य अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न होते हैं, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर कोशिका अन्य कार्य भी सम्पन्न कर सकती है। इनमें कार्य विभाजन या श्रम  विभाजन स्थायी नहीं होता। संघ सीलेन्ट्रेटा (Coelenterata) के सदस्यों में कोशिकाएँ विभिन्न जैविक कार्यों के लिए विशिष्टीकृत हो जाती हैं, वे अन्य कार्य सम्पन्न नहीं करतीं। इसे श्रम विभाजन  कहते हैं। श्रम विभाजन की परिकल्पना सर्वप्रथम हेनरी मिलने  एडवर्ड (H. M. Edward) ने प्रस्तुत की। विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने के लिए कोशिकाएँ ऊतक तथा ऊतक तन्त्र का निर्माण करती हैं।  समान कार्य करने वाली कोशिकाओं में संरचनात्मक समानता पाई जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि कोशिकाओं में कार्यिकी भिन्नन (physiological differentiation) के अनुरूप संरचनात्मक और  औतिकीय भिन्नन (structural and histological differentiation) पाया जाता है।


प्रश्न.10. कोशिका जीवन की मूल इकाई है। संक्षिप्त में वर्णन करें।

कोशिका शरीर निर्माण की इकाई ही नहीं बल्कि जीवन की कार्यिक इकाई भी है। जीव की सभी क्रियाएँ कोशिका में हो रहे कार्यों के समन्वय से होती हैं। नई कोशिका पूर्व स्थित कोशिका से बनती है।  एक कोशिका से पूर्ण जीव का निर्माण सम्भव है। कोशिका की यह क्षमता टोटीपोटेंसी कहलाती है। प्रत्येक कोशिका में अनेको अंगक होते हैं जो कोशिका द्रव्य में रहते हैं। इनमें हो रहे कार्यों से ही  जीव का जीवन चलता है।


प्रश्न.11. केन्द्रक छिद्र क्या है? इनके कार्य बताइए।

केन्द्रक छिद्र

  • केन्द्रक के चारों ओर 10 nm से 50 nm मोटी दोहरी केन्द्रक-कला (nuclear membrane) होती है। दोनों झिल्लियों (कलाओं) के मध्य स्थान को परिकेन्द्रकीय स्थान (perinuclear space) कहते हैं।  यह लगभग 100-300 Åचौड़ी होती है। केन्द्रक कला पर अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं। इन्हें केन्द्रक छिद्र (nuclear pores) कहते हैं। प्रत्येक का व्यास लगभग 400-1000 Å होता है। केन्द्रक-कला का सम्बन्ध कोशिकाद्रव्य में स्थित अन्त:प्रद्रयी जालिका (ER) से होता है।

कार्य :

  • केन्द्रक में निर्मित विभिन्न प्रकार के R.N.A. अणु विशेषकर m-R.N.A. केन्द्रक कला छिद्रों से होकर कोशिकाद्रव्य में पहुँचते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


प्रश्न.12. लयनकाय तथा रसधानी दोनों अन्तः झिल्लीमय संरचनाएँ हैं परन्तु कार्य की दृष्टि से ये अलग होते हैं। इस पर टिप्पणी लिखें।

लयनकाय (lysosome) एकक कला युक्त थैली है जो गॉल्जी काय से बनती है। इसमें हाइड्रोलिटिक विकर होते हैं; जैसे-लाइपेज, ओप्टिएज आदि जो अम्लीय pH में सक्रिय होते हैं। ये विकर कार्बोहाइड्रेट,  प्रोटीन, वसा, न्यूक्लिक अम्ल आदि का पाचन करते हैं। रसधान्ने (vacuole) कोशिकाद्रव्य में उपस्थित थैलीनुमा संरचना है जो एकक कला टोनोप्लास्ट से घिरी रहती है। इसमें जल, उत्सर्जी पदार्थ  जो कोशिका के लिए आवश्यक नहीं हैं तथा कोशिका रस मिलता है। पौधों में ये कोशिका आयतन का 90 प्रतिशत घेर लेती है। पौधों में टोनोप्लास्ट आयन तथा अन्य पदार्थों का सान्द्रता विभव के विरुद्ध  रसधानियों में आना सुनिश्चित रहता है। अतः रसधानी में सान्द्रता कोशिकाद्रव्य से अधिक रहती है। अमीबा में संकुचनशील रसधानी मिलती है जो उत्सर्जन का कार्य करती है। प्रोटिस्टा के सदस्यों में खाद्य  वेक्युओल मिलते हैं जो खाद्य पदार्थों के निगलने के कारण बनते हैं।


प्रश्न.13. रेखांकित चित्र की सहायता से निम्नलिखित की संरचना का वर्णन कीजिए
(i) केन्द्रक
(ii) तारककाय।

(i) केन्द्रक 

सामान्यतः कोशिका का सबसे बड़ा, स्पष्ट तथा महत्त्वपूर्ण कोशिकांग केन्द्रक है। सर्वप्रथम इसकी खोज रॉबर्ट ब्राउन (1831) ने की। यह एक सघन, गोल अथवा अण्डाकार संरचना है। एक कोशिका में इनकी  संख्या सामान्यतः एक (एककेन्द्रकीय; uninucleate) होती है। कभी-कभी इनकी संख्या दो (द्विकेन्द्रकी, binucleate) अथवा अनेक (बहुकेन्द्रकी multinucleate) होती है। पादप कोशिका के  परिपक्वन के साथ-साथ रिक्तिका के केन्द्र में स्थित होने से यह कोशिका दृति (primordial utricle) में एक ओर आ जाता है।
1. संरचना (Structure) :

केन्द्रक के चारों ओर दोहरी केन्द्रक कला  (nuclear membrane) मिलती है। यह कला एकक कला (unit membrane) के समान ही लिपोप्रोटीन की बनी होती है। दोनों कलाओं के मध्य परिकेन्द्रीय स्थान (perinuclear space)  मिलता है। केन्द्रक कला सतत (continuous) नहीं होती है। इसमें बीच-बीच में छिद्र मिलते हैं। इन्हें केन्द्रकीय छिद्र (nuclear pore) कहते हैं। इनका व्यास लगभग 400 होता है। ये  केन्द्रकद्रव्य तथा कोशिकाद्रव्य में सम्बन्ध बनाए रखते हैं। बाह्य केन्द्रक कला का सम्बन्ध अन्तर्द्रव्यी जालिका से होता है। बाहरी केन्द्रक कला पर राइबोसोम चिपके रहते हैं (चित्र)।। केन्द्रक कला के  अन्दर प्रोटीनयुक्त सघन तरल होता है, जिसे केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm) कहते हैं। केन्द्रकद्रव्य में प्रोटीन तथा फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है। इसमें न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleoprotein)  मिलते हैं। केन्द्रकद्रव्य में केन्द्रिक (nucleolus) तथा क्रोमैटिन (chromatin) सूत्र मिलते हैं। केन्द्रिक सामान्यतः एक, परन्तु कभी-कभी अधिक भी हो सकते हैं। केन्द्रिक में r-R.N.A. संश्लेषण होता है,  जो राइबोसोम के लिए आवश्यक है। केन्द्रिक कोशिका विभाजन के समय लुप्त हो जाते हैं।
2. क्रोमैटिन सूत्र (Chromatin threads) : सामान्य अवस्था में जाल के रूप में रहते हैं। इसका कुछ भाग अभिरंजन में गहरा रंग लेता है जिसे हेटरोक्रोमैटिन कहते हैं तथा जो भाग हल्का रंग लेता है, उसे यूक्रोमैटिन (euchromatin) कहते हैं।  कोशिका विभाजन के समय ये संघनित होकर गुणसूत्र बनाते हैं।

केन्द्रक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  • सम्पूर्ण कोशिका की संरचना, संगठन व कार्यों का नियन्त्रण तथा नियमन करना।
  • D.N.A. पर उपस्थित संदेश m-R.N.A. के रूप में कोशिकाद्रव्य में जाते हैं और वहाँ प्रोटीन के रूप में अनुवादित होते हैं।
  •  प्रोटीन से विभिन्न विकर बनते हैं जो विभिन्न उपापचयी क्रियाओं का नियन्त्रण करते हैं।
  •  कोशिका विभाजन का उत्तरदायित्व केन्द्रक पर होता है।
  •  आनुवंशिक पदार्थ D.N.A केन्द्रक में मिलता है। संतति में लक्षण इसी के द्वारा पहुँचते हैं।
  • नई संतति में जीन ही लक्षणों को पहुँचाते हैं तथा संगठित स्वरूप प्रदान करते हैं।

(ii) तारककाय

तारककाय प्रायः जन्तु कोशिकाओं में केन्द्रक के समीप पाया जाता है। कुछ शैवाल तथा कवक आदि की पादप कोशिकाओं में भी तारककाय पाया जाता है। तारककार्य में दो सेन्ट्रिओल (centriole) पाए  जाते हैं। प्रत्येक सेन्ट्रिओल नौ जोड़े (nine sets) त्रिक तन्तुओं (triplets fibres) से बना होता है। प्रत्येक त्रिक तन्तु में तीन सूक्ष्म नलिकाएँ (microtubules) एक रेखा में स्थित होती हैं।  ये त्रिक तन्तु एमॉरफस पदार्थ में धंसे रहते हैं। सेन्ट्रिओल के चारों ओर स्वच्छ कोशिकाद्रव्य का आवरण होता है, इसे सेन्ट्रोस्फीयर (centrosphere) कहते हैं। सेन्ट्रिओल तथा सेन्ट्रोस्फीयर मिलकर  तारककाय (centrosome) कहलाते हैं।
तारककाय के कार्य

  • यह कोशिका विभाजन के समय त (spindle) का निर्माण करता है। तारककाय विभाजित होकर विपरीत ध्रुवों का निर्माण करता है।
  • शुक्राणुओं के निर्माण के समय दोनों सेन्ट्रियोल में से एक शुक्राणु के अक्षीय तन्तु (axial filament) का निर्माण करता है।


प्रश्न.14. गुणसूत्र बिन्दु क्या है? गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र का वर्गीकरण किस रूप में होता है? अपने  उत्तर को देने हेतु विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों पर गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति को दर्शाने हेतु चित्र बनाइए।

गुणसूत्र बिन्दु
प्रत्येक गुणसूत्र दो अर्द्धगुणसूत्र या क्रोमेटिड्स (chromatids) से बना होता है। क्रोमेटिड्स पर क्रोमोमीयर्स (chromomeres) स्थित होते हैं। गुणसूत्र के दोनों क्रोमेटिड्स गुणसूत्र बिन्दु या सेन्ट्रोमीयर  (centromere) द्वारा परस्पर जुड़े होते हैं। गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्रे निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1. अन्तकेन्द्री (Telocentric) : इसमें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के एक ओर स्थित होता है।
2. अग्र बिन्दु (Acrocentric) : इसमें गुणसूत्र का एक भाग बहुत छोटा तथा दूसरा भाग बहुत बड़ा होता है। इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक सिरे के पास स्थित होता है।
3. उपमध्य केन्द्री (Submetacentric) : इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक किनारे के पास होता है। इसे गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ असमान होती हैं।
4. मध्य केन्द्री (Metacentric) : इसमें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के बीचों-बीच स्थित होता है। इससे गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ बराबर लम्बाई की होती हैं।
जब गुणसूत्र में गुणसूत्र बिन्दु (centromere) नहीं पाया जाता तो गुणसूत्र को एसेन्ट्रिक (acentric) कहते हैं और जब गुणसूत्र बिन्दु की संख्या दो या अधिक होती है तो इसे डाइसेन्ट्रिक  (dicentric) या पॉलीसेन्ट्रिक (polycentric) कहते हैं। कुछ गुणसूत्रों में द्वितीयक संकीर्णन (secondary constriction) पाया जाता है। इस प्रकार के गुणसूत्र को सैट गुणसूत्र  (sat-chromosome) कहते हैं।

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