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हाशियाकरण से निपटना (Confronting Marginalisation) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - CTET & State TET PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. दो ऐसे मौलिक अधिकार बताइए जिनका दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए इस्तेमाल कर सकते है। इस सवाल का जवाब देने के लिए पृष्ठ 14 पर दिए गए मौलिक अधिकारों को दोबारा पढ़िए।

मौलिक अधिकार का खंड भारतीय संविधान की आत्मा कहलाता है। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान रूप से छः प्रकार के अधिकार प्रदान करता है। लेकिन दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए समानता तथा शोषण के विरुद्ध अधिकार का इस्तेमाल कर सकते है :- समानता का अधिकार- समानता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है। अनुच्छेद 14 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता तथा कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। कानून के सामने सभी बराबर हैं और कोई कानून से ऊपर नहीं है। अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। सरकारी पदों पर नियुक्तियां करते समय जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। सभी नागरिकों को सभी सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने का समान अधिकार है। छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है। सेना शिक्षा संबंधी उपाधियों को छोड़ कर अन्य सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है। शोषण के विरुद्ध अधिकार – संविधान की धारा 23 और 24 के अनुसार नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिए गए हैं। इस अधिकार के अनुसार व्यक्तियों को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता। किसी भी व्यक्ति से बेगार नहीं ली जा सकती। किसी भी व्यक्ति की आर्थिक दशा से अनुचित लाभ नहीं उठाया जा सकता और कोई काम उसकी इच्छा के विरुद्ध करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को ऐसे कारखाने में नौकर नहीं रखा जा सकता, जहां उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने की संभावना हो।


प्रश्न.2. रत्नम की कहानी और 1989 के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों को दोबारा पढ़िए। अब एक कारण बताइए कि रत्नम ने इसी कानून के तहत शिकायत क्यों दर्ज कराई।

समाज में जो दबे हुए व्यक्ति होते है या पिछड़े और कमज़ोर लोग है हमेशा से ही उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। उन्हें सदा तुच्छ भावना से देखा जाता है। उनको अपमानित किया जाता है। ताकि लोगों के साथ किसी भी अवस्था में बुरा व्यवहार ना हो इसीलिए 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम लागू किया गया था। इसका उद्देश्य यही था जिनके साथ बुरा व्यवहार हो, जिन्हें प्रताड़ित किया जाए उनके विरुद्ध कार्यवाही होगी। उन्हें सज़ा दी जाएगी। रत्नम भी इसी जाति से सम्बन्धित रखता था। उसने पुजारियों के पैर धोने तथा उसी पानी से नहाने के लिए मना कर दिया था। इससे ऊँची जाति के लोग क्रोधित हो गए थे। ऊँची जाति के लोगों ने रत्नम और उसके परिवार का बहिष्कार करने का आदेश दिया। उनके घर आग भी लगाई लेकिन वे बच गए। इसके बाद उन्होंने 1989 के एक्ट के अंतर्गत पुलिस स्टेशन में केस दर्ज करवाया। उन्हें समर्थन भी मिला और अब इस रस्म को समाप्त कर दिया गया है।


प्रश्न.3. सी.के. जानू और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं को ऐसा क्यों लगता है कि आदिवासी अपने परंपरागत संसाधनों के छीने जाने के ख़िलाफ़ 1989 के इस कानून का इस्तेमाल कर सकते हैं ? इस कानून के प्रावधानों में ऐसा क्या खास है जो उनकी मान्यता को पुष्ट करता है ?

1989 का अधिनियम एक और वजह से महत्वपूर्ण है। आदिवासी कार्यकर्ता अपनी परंपरागत जमीन पर अपने कब्जे की बहाली के लिए इस कानून का सहारा लेते हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों ने आदिवासियों की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया है। उन्हें इसी कानून के तहत सजा दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कानून भी जीने जनजातीय समुदायों को केवल वही लाभ देता है जिनका संविधान में आश्वासन दिया गया था। उनका कहना है कि संवैधानिक रूप से आदिवासियों की जमीन को किसी गैर–आदिवासी व्यक्ति को नहीं बेचा जा सकता। जहाँ ऐसा हुआ है वहाँ संविधान की गरिमा बनाए रखने के लिए उन्हें उनकी ज़मीन वापस मिलनी चाहिए। आदिवासी कार्यकर्ता सी.के. जानू का आरोप है कि आदिवासियों के संवैधानिक कानूनों का उल्लंघन करने वालों में विभिन्न प्रदेशों की सरकारें भी पीछे नहीं हैं।


प्रश्न.4. इस इकाई में दी गई कविताएँ और गीत इस बात का उदाहरण हैं कि विभिन्न व्यक्ति और समुदाय अपनी सोच, गुस्से और अपने दुखों को किस – किस तरह से अभिव्यक्त करते हैं। अपनी कक्षा में ये दो कार्य कीजिए :
(क) एक ऐसी कविता खोजिए जिसमें किसी सामाजिक मुद्दे की चर्चा की गई है। उसे अपने सहपाठियों के सामने पेश कीजिए। दो या अधिक कविताएँ लेकर छोटे – छोटे समूहों में बँट जाइए और उन कविताओं पर चर्चा कीजिए। देखें कि कवि ने क्या कहने का प्रयास किया है।

ना जाने यह कैसा जमाना आ रहा है
बाप बेटे का रिश्ता पहले जैसा ना रहा है
जिसने गोद में पाला उसका मान ना रहा है
 बेटा उनको बोझ समझ रहा है यहां रिश्ता ना कोई रहा है
बस पैसे से ही रिश्ता रहा है
यहां रिश्ता ना कोई रहा है
बस पैसे से ही रिश्ता रहा है
ना जाने यह कैसा जमाना आ रहा है
बाप बेटे का रिश्ता पहले जैसा ना रहा है
भाई से प्यारी घरवाली हो गई है
भाई भाई का दुश्मन हो गया है
ना कोई इज्जत है ना शर्म हया है
यहां तो रिश्तों से भी बढ़कर अपनी अदा है
प्यारी सी बहनिया बोझ हो गई है
बुढ़ापे में मां बाप बोझ हो गए है
ना जाने यह कैसा जमाना आ रहा है
बाप बेटे का रिश्ता पहले जैसा ना रहा है
कवि कहना चाहते है कि हमें समाज के प्रति अपने आप में बदलाव लाना भी ज़रूरी है। आज हम देखें तो हमारे समाज में हमारे देश में कई तरह के बदलाव आ रहे हैं। पहले के जमाने में जहां लोग अपने मां बाप, भाई बहन, गुरु का मान सम्मान करते थे लेकिन आजकल के जमाने कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनको इन रिश्तों की बिल्कुल भी परवाह नहीं रही है वह इनको नहीं मानते और सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। समाज के मुद्दे आज हमको देखने को मिलते हैं हमने इस नए जमाने में भले ही बहुत सारे बदलाव महसूस किए हैं लेकिन हमें चाहिए कि हम इस तरह के बदलाव ना लाएं क्योंकि हमारे जीवन में हमारे रिश्ते नातों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।

(ख) अपने इलाके में किसी एक हाशियाई समुदाय का पता लगाइए। मान लीजिए कि आप उस समुदाय के सदस्य हैं। अब इस समुदाय के सदस्य की हैसियत से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कोई कविता या गीत लिखिए या पोस्टर आदि बनाइए।

हाशियाई समाज एक व्यापक अवधारणा के रूप में हमारे सामने मौजूद है। हमारे शहर में हाशिए के समाज में दलित आदिवासी, स्त्रियाँ, किसान, मजदूर आदि की गणना की जाती है। जिनकी आबादी कुल आबादी की तीन चौथाई होती है। “संख्या के लिहाज से ज्यादा होते हुए भी उनका विकास नहीं हो पा रहा है। जबकि दूसरी तरफ संख्या की दृष्टि से कम होते हुए भी इस देश को चला रहे हैं। हमने उनकी पीड़ा को सहन करते हुए महसूस किया है जैसे :-
हरिजन बस्ती में, मंदिर के पास एक कबीठ के धड़ पर, मटमैले छप्परों पर, कुहासों के भूतों पर लटके चूनर के चिथरे, अंगिया व घाघरे फटी हुई चाय अटक गयी जिनमें एक व्यभिचारी की टकटकी गंजे सिर, टेढ़े मुँह चाँद की ही कंजी आँख!

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