प्रश्न.1. लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करता है?
लोकतांत्रिक व्यवस्था उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करती है। निम्नलिखित तत्वों से इसे समझा जा सकता है
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव – सभी लोकतांत्रिक देशों में एक निश्चित अवधि के बाद चुनाव कराए जाते हैं। ये चुनाव निष्पक्ष होते हैं। सभी दल स्वतंत्र रूप से अपने उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं और मतदाता अपनी इच्छानुसार किसी को भी चुन सकते हैं। ये प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं और जनता की इच्छा पर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं।
- कानूनों पर खुली चर्चा – लोकतांत्रिक देशों में सरकार जो भी कानून बनाती है वह एक लंबी प्रक्रिया के बाद बनता है। उस पर पूरी बहस तथा विचार-विर्मश किया जाता है फिर उसे जनता के समक्ष रखा जाता है। इसलिए इस बात की संभावना होती है कि लोग उसके फैसलों को मानेंगे और वे ज्यादा प्रभावी होंगे।
- सूचना का अधिकार – लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को सरकार तथा उसके काम-काज के बारे में जानकारी पाने | का अधिकार प्राप्त है। यदि कोई नागरिक यह जानना चाहे कि फैसले लेने में नियमों का पालन हुआ है या नहीं तो वह इसका पता कर सकता है। उसे यह न सिर्फ जानने का अधिकार है बल्कि उसके पास इसके साधन भी उपलब्ध
- लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक ऐसी सरकार का गठन होता है जो कायदे-कानून को मानती है और लोगों के प्रति जवाबदेह होती है। लोकतांत्रिक सरकार नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाने और खुद को उनके प्रति जवाबदेह बनाने वाली कार्यविधि भी विकसित कर लेती है। इस प्रकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था निश्चित रूप से अन्य शासनों से बेहतर है, यह वैध शासन व्यवस्था है, इसलिए पूरी दुनिया में लोकतंत्र के विचार के प्रति समर्थन का भाव है।
प्रश्न.2. लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है?
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अनेक तरह के सामाजिक विभाजनों को सँभालती है। इससे इन टकरावों के विस्फोटक या हिंसक रूप लेने का अंदेशा कम हो जाता है। कोई भी समाज अपने विभिन्न समूहों के बीच के टकरावों को स्थायी तौर पर खत्म नहीं कर सकता। इनके बीच बातचीत से सामंजस्य बैठाने का तरीका विकसित कर सकते हैं। सामाजिक अंतर, विभाजन और टकरावों को सँभालना निश्चित रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक बड़ा गुण है। इसके लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को दो शर्तों को पूरा करना होता है
- लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से शासन करना नहीं है। बहुमत को सदा ही अल्पमत का ध्यान रखना होता है। उसके साथ काम करने की जरूरत होती है तभी सरकार जन-सामान्य की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर पाती है। बहुमत और अल्पमत की राय कोई स्थायी चीज नहीं होती।
- बहुमत के शासन का अर्थ धर्म, नस्ल अथवा भाषायी आधार के बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होता। बहुमत के शासन का मतलब होता है कि हर फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं। लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र रहता है जब तक, प्रत्येक नागरिक को किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बनने का मौका मिलता है।
प्रश्न.3. निम्नलिखित कथनों के पक्ष या विपक्ष में तर्क दें?
(i) औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक व्यवस्था का भार उठा सकते हैं पर गरीब देशों को आर्थिक विकास करने के लिए तानाशाही चाहिए।
(ii) लोकतंत्र अपने नागरिकों के बीच की असमानता को कम नहीं कर सकता।
(iii) गरीब देशों की सरकार को अपने ज्यादा संसाधन गरीबी को कम करने, आहार, कपड़ा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर लगाने की जगह उद्योगों और बुनियादी आर्थिक ढाँचे पर खर्च करने चाहिए।
(iv) नागरिकों के बीच आर्थिक समानता अमीर और गरीब, दोनों तरह के लोकतांत्रिक देशों में है।
(v) लोकतंत्र में सभी को एक ही वोट का अधिकार है। इसका मतलब है कि लोकतंत्र में किसी तरह का प्रभुत्व और टकराव नहीं होता।
विपक्ष में तर्क
(i) औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक व्यवस्था का भार उठा सकते हैं। पर गरीब देशों को आर्थिक विकास के लिए तानाशाही चाहिए। यह कथन सही नहीं है। गरीब देश आर्थिक विकास तानाशाही शासन में नहीं कर सकते क्योंकि तानाशाही शासन में न स्वतंत्रता होगी, न समानता, न राजनीतिक, आर्थिक अधिकार। ऐसे में गरीब देश आर्थिक विकास नहीं कर सकते।
(ii) लोकतंत्र अपने नागरिकों के बीच की असमानता को कम कर सकता है क्योंकि लोकतंत्र में नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक अधिकार प्राप्त होते हैं। इसके साथ ही लोकतंत्र समानता लाने के लिए कानून भी बना सकता है, जैसे-भारत में बहुत से कानूनों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक असमानता को कम करने की कोशिश की गई है।
(iii) यह कथन सही नहीं है कि गरीब देशों को अपने संसाधन उद्योगों और बुनियादी ढाँचे पर खर्च करने चाहिए। गरीब देशों का लक्ष्य होना चाहिए पहले अपने देश के लोगों की आहार, कपड़ा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा आदि बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करना। इसके बाद उद्योगों और बुनियादी ढाँचे पर खर्च करना चाहिए क्योंकि यदि लोग गरीब हैं तो वे उस मजबूत औद्योगिक और बुनियादी ढाँचे को संभाल नहीं पाएँगे। उसका सही उपयोग नहीं कर पाएँगे।
(iv) नागरिकों के बीच आर्थिक समानता अमीर और गरीब दोनों तरह के लोकतांत्रिक देशों में है। ऐसा नहीं है। आर्थिक समानता अमीर और गरीब किसी देश में पूरी तरह से नहीं है। दोनों प्रकार के देशों में देश की कुल आये कुछ ही लोगों के हाथों में है। अमीर और गरीब के बीच एक बड़ी खाई देखने को मिलती है। फर्क इतना है कि गरीब देशों में गरीबों की संख्या बहुत ज्यादा होती है जबकि अमीर देशों में यह संख्या कुछ कम होती है।
(v) लोकतंत्र में सभी को एक ही वोट का अधिकार है। किंतु इसका यह मतलब नहीं कि किसी तरह का प्रभुत्व और टकराव नहीं होता है। सभी लोग एक ही वोट देते हैं किंतु जो लोग आर्थिक रूप से समर्थ हैं वे राजनीति में भी प्रभुत्व रखते हैं तथा समाज के विभिन्न वर्गों के बीच टकराव की स्थिति बनी रहती है।
प्रश्न.4. नीचे दिए गए ब्यौरों में लोकतंत्र की चुनौती की पहचान करें। ये स्थितियाँ किस तरह नागरिकों के गरिमापूर्ण, सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन के लिए चुनौती पेश करती हैं। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत संस्थागत उपाय भी सुझाएँ
(i) उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद उड़ीसा में दलितों और गैर-दलितों के प्रवेश के लिए अलग-अलग दरवाजा रखने वाले एक मंदिर को एक ही दरवाजे से सबको प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी।
(ii) भारत के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
(iii) जम्मू कश्मीर के गंड़वारा में मुठभेड़ बताकर जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा तीन नागरिकों की हत्या करने के आरोप को देखते हुए इस घटना के जाँच के आदेश दिए।
(i) पहली घटना में जातिवाद की चुनौती लोकतंत्र के समक्ष है। इसके कारण समाज में रहने वाले कुछ लोगों को अपमान सहना पड़ता है। जिन जातियों को नीचा या अछूत या दलित कहा जाता है उन्हें जीवन की मूलभूत सुविधाओं से दूर रखा जाता है जो लोकतंत्र के खिलाफ हैं। ऐसे में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कानून बनाकर, उन्हें कठोरता से लागू करके जातिवाद की समस्या से निपटना होगा।
(ii) दूसरी घटना में लोकतंत्र के सामने गरीबी प्रमुख चुनौती है। गरीबी के कारण किसान कर्ज में डूबता चला जाता है और जब वह कर्जा चुकाने की स्थिति में नहीं होता तो वह आत्महत्या का रास्ता अपनाता है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सरकार को इन गरीब किसानों की मदद करनी होगी, उन्हें ऋण देने के लिए गाँवों में सरकारी बैंकों की स्थापना करनी होगी तथा कृषि के लिए आवश्यक चीजें कम कीमत पर उपलब्ध करानी होगी। जब तक गरीबी रहेगी तब तक लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता क्योंकि एक गरीब व्यक्ति केवल दो समय की रोटी के जुगाड़ में लगा रहेगा। वह देश के हित में कुछ नहीं कर पाएगा।
(iii) तीसरी घटना में सरकारी विभागों में फैला भ्रष्टाचार लोकतंत्र के सम्मुख एक चुनौती है। लोकतांत्रिक देशों में विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है जिससे सत्ता में आए व्यक्ति अपनी सत्ता का प्रयोग अपने निजी हित के लिए करने लगते हैं। इससे नागरिकों का जीवन, संपत्ति संकट में पड़ जाते हैं। वे सरकारी अधिकारी जिनका काम नागरिकों की सेवा करना है वही लोग नागरिकों के शत्रु बन जाते हैं। ऐसे में लोकतांत्रिक शासन की नींव हिल जाती है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए हर स्तर से भ्रष्टाचार को मिटाना होगा। इसके लिए कानून बनाने होंगे। उन्हें सख्ती से लागू करना होगा तथा सरकारी पदों पर नियुक्ति के समय निष्पक्षता से काम लेना होगा जिससे सही व्यक्ति महत्त्वपूर्ण पद प्राप्त कर सकें।
प्रश्न.5. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में इनमें से कौन-सा विचार सही है-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने सफलतापूर्वक
(i) लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है।
(ii) लोगों के बीच की आर्थिक असमानताएँ समाप्त कर दी हैं।
(iii) हाशिए के समूहों में कैसा व्यवहार हो, इस बारे में सारे मतभेद मिटा दिए गए हैं।
(iv) राजनीतिक गैर बराबरी के विचार को समाप्त कर दिया है।
लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है।
प्रश्न.6. लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिहाज से इनमें कोई एक चीज लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है। उसे चुनें
(i) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
(ii) व्यक्ति की गरिमा
(iii) बहुसंख्यकों का शासन
(iv) कानून से समक्ष समानता
बहुसंख्यकों का शासन।
प्रश्न.7. लोकतांत्रिक व्यवस्था के राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं के बारे में किए गए अध्ययन बताते हैं कि
(i) लोकतंत्र और विकास साथ ही लगते हैं।
(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
(iii) तानाशाही में असमानताएँ नहीं होती।
(iv) तानाशाही लोकतंत्र से बेहतर साबित हुई हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
प्रश्न.8. नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़ेः
नन्नू एक दिहाड़ी मजदूर है। वह पूर्वी दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती वेलकम मजदूर कॉलोनी में रहता है। उसका राशन कार्ड गुम हो गया और जनवरी 2006 में उसने डुप्लीकेट राशन कार्ड बनाने के लिए अर्जी दी। अगले तीन महीनों तक उसने राशन विभाग के दफ्तर के कई चक्कर लगाए लेकिन वहाँ तैनात किरानी और अधिकारी उसका काम करने या उसके अर्जी की स्थिति बताने की कौन कहे उसको देखने तक के लिये तैयार न थे। आखिरकार उसने सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए अपनी अर्जी की दैनिक प्रगति का ब्यौरा देने का आवेदन किया। इसके साथ ही उसने इस अर्जी पर काम करने वाले अधिकारियों के नाम और काम न करने की सूरत में उनके खिलाफ़ होने वाली कार्रवाई का ब्यौरा भी माँगा। सूचना के अधिकार वाला आवेदन देने के हफ्ते भर के अंदर खाद्य विभाग को एक इंस्पेक्टर उसके घर आया और उसने नन्नू को बताया कि तुम्हारा राशन कार्ड तैयार है और तुम दफ्तर आकर उसे ले जा सकते हो। अगले दिन जब नन्नू राशन कार्ड लेने गया तो उस इलाके के खाद्य और आपूर्ति विभाग के सबसे बड़े अधिकारी ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। इस अधिकारी ने उसे चाय की पेशकश की और कहा कि अब आपका काम हो गया है इसलिए सूचना के अधिकार वाला अपना आवेदन आप वापस ले लें।
नन्नू का उदाहरण क्या बताता है? नन्नू के इस आवेदन का अधिकारियों पर क्या असर हुआ? अपने माँ पिताजी से पूछिए कि अपनी समस्याओं के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास जाने का उनका अनुभव कैसा रहा है?
नन्नू का उदाहरण बताता है कि हर नागरिक को अपने अधिकारों का उचित प्रयोग करना चाहिए। सूचना नागरिकों को दिया गया एक महत्वपूर्ण अधिकार है जिसका प्रयोग करके नन्नू जैसा छोटे-से-छोटा व्यक्ति भी न्याय पा सकता है। जब सभी नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहेंगे तथा उनका समय पर उपयोग करेंगे तभी लोकतांत्रिक व्यवस्था ठीक ढंग से काम करेगी।
नन्नू के आवेदन का अधिकारियों पर गहरा असर हुआ और वे एकदम हरकत में आ गए। उन्होंने एक हफ्ते में ही उसका नया राशन कार्ड बना दिया। जिस राशन के दफ्तर मे नन्नू की कोई सनुवाई नहीं थी, उस दफ्तर में बड़े अधिकारी उससे मिले तथा पूरा सम्मान दिया और उससे आवेदन वापस लेने का निवेदन भी किया।
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