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नियोजित विकास की राजनीति (Politics of Planned Development) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

प्रश्न.1. ‘बॉम्बे प्लान’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है-
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिण्ट था।
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था।

(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।


प्रश्न.2. भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्मनिर्भरता।

(ख) उदारीकरण।


प्रश्न.3. भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार ग्रहण किया गया था-
(i) बॉम्बे प्लान से
(ii) सोवियत खेमे के देशों के अनुभवों से
(iii) समाज के बारे में गांधीवादी विचार से
(iv) किसान संगठनों की माँगों से।
(क) सिर्फ (ii) और (iv)
(ख) सिर्फ (i) और (ii)
(ख) सिर्फ (iv) और (iii)
(घ) उपर्युक्त सभी।

(घ) उपर्युक्त सभी।


प्रश्न.4. निम्नलिखित का मेल करें-

नियोजित विकास की राजनीति (Politics of Planned Development) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

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प्रश्न.5. आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?

आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद निम्नांकित थे-

  • विकास का अर्थ समाज के प्रत्येक वर्ग हेतु अलग-अलग होता है। कुछ अर्थशास्त्री तथा रक्षा व पर्यावरण विशेषज्ञों का मत था कि पश्चिमी देशों की तरह पूँजीवाद व उदारवाद को महत्त्व दिया जाए जबकि अन्य लोग विकास के सोवियत मॉडल का समर्थन कर रहे थे। पूँजीवादी मॉडल औद्योगीकरण का समर्थक था जबकि साम्यवादी मॉडल कृषिगत विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र को गरीबी को दूर करने पर बल देता था।
  • विकास के क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि हो तथा सामाजिक न्याय भी मिले इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन-सी भूमिका निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे।
  • कुछ लोग औद्योगीकरण को विकास का सही रास्ता मानते थे जबकि कुछ अन्य लोग यह मानते थे कि कृषि का विकास करके ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी दूर करना ही विकास का प्रमुख मानदण्ड होना चाहिए।
  • कुछ अर्थशास्त्री केन्द्रीय नियोजन के पक्ष में थे जबकि कुछ अन्य विकेन्द्रित नियोजन को विकास के लिए आवश्यक मानते थे।
  • कुछ राज्य सरकारों ने केन्द्रीकृत नियोजन के विपरीत अपना अलग ही विकास मॉडल अपनाया; जैसे-केरल राज्य में ‘केरल मॉडल’ के अन्तर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य वितरण तथा गरीबी उन्मूलन पर बल दिया गया।

इस तरह भारत ने साम्यवादी मॉडल व पूँजीवादी मॉडल को न अपनाकर इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को लेकर अपने देश में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया। भारत ने इस समस्या का हल आपसी बातचीत एवं सहमति से बीच का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाकर किया। इस प्रकार भारत ने विकास से सम्बन्धित अधिकांश मतभेदों को सुलझा दिया लेकिन कुछ मतभेद आज भी प्रासंगिक हैं; जैसे— भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के बीच किस क्षेत्र में ज्यादा संसाधन लगाए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र को कितनी मात्रा में हिस्सेदारी दी जाए, इस पर भी मतभेद हैं।


प्रश्न.6. पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?

पहली पंचवर्षीय योजना में देश में लोगों को गरीबी के जाल से निकालने का प्रयास किया गया और इस योजना में ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर दिया गया। इसी योजना में बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी मार लगी थी और इस क्षेत्र पर तुरन्त ध्यान देना आवश्यक था। भाखड़ा-नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशि आवंटित की गई। इस योजना में माना गया था कि देश में भूमि के वितरण का जो ढर्रा मौजूद है उससे कृषि के विकास को सबसे बड़ी बाधा पहुँचती है। इस योजना में भूमि सुधार पर जोर दिया गया और इसे देश के विकास की बुनियादी चीज माना गया।

दोनों योजनाओं में अन्तर-

  • पहली पंचवर्षीय योजना एवं दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अन्तर यह था कि जहाँ पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक बल दिया गया, वहीं दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया।
  • पहली पंचवर्षीय योजना का मूलमन्त्र था—धीरज, जबकि दूसरी पंचवर्षीय योजना तेज संरचनात्मक परिवर्तन पर बल देती थी।


प्रश्न.7. हरित क्रान्ति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।

हरित क्रान्ति का अर्थ— “हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषिगत उत्पादन की तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने से है।”

हरित क्रान्ति के तत्त्व हरित क्रान्ति के तीन तत्त्व थे-

  • कृषि का निरन्तर विस्तार,
  • दोहरी फसल का उद्देश्य,
  • अच्छे बीजों का प्रयोग।

इस तरह हरित क्रान्ति का अर्थ है-सिंचित और असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर उत्पादन बढ़ाना।
हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक परिणाम

  • हरित क्रान्ति में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा लाभ हुआ। हरित क्रान्ति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ (ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बढ़ी) और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई।
  • हरित क्रान्ति के कारण कृषि में मँझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों को लाभ हुआ। इन्हें बदलावों से फायदा हुआ था और देश के अनेक हिस्सों में यह प्रभावशाली बनकर उभरे।

हरित क्रान्ति के नकारात्मक परिणाम

  • इस क्रान्ति से गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अन्तर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपन्थी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबन्द करने के लिहाज से अनुकूल परिस्थितियाँ बन गईं।
  • इससे समाज के विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़े रहे।


प्रश्न.8. दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे?

दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान यह विवाद उत्पन्न हुआ कि किस क्षेत्र के विकास पर अधिक जोर दिया जाए, कृषि क्षेत्र के विकास पर या औद्योगिक विकास पर। इस विवाद के सम्बन्ध में विभिन्न तर्क दिए गए-

  • कृषि क्षेत्र का विकास करने वाले विद्वानों का यह तर्क था कि इससे देश आत्मनिर्भर बनेगा तथा किसानों की दशा में सुधार होगा, जबकि औद्योगिक विकास का समर्थन करने वालों का यह तर्क था कि औद्योगिक विकास से देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तथा देश में बुनियादी सुविधाएँ बढ़ेगी।
  • अनेक लोगों का मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति का अभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुंचेगी।
  • कई अन्य लोगों का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर गरीबी के मकड़जाल से मुक्ति नहीं मिल सकती। इन लोगों का तर्क था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने तथा भूमि-सुधार और ग्रामीण निर्धनों के बीच संसाधनों के बँटवारे के लिए अनेक कानून बनाए गए, लेकिन औद्योगिक विकास की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए।
  • जे० सी० कुमारप्पा जैसे गांधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका प्रस्तुत किया जिससे ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर दिया गया। इसी प्रकार चौधरी चरणसिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात बड़े सुविचारित और दमदार ढंग से उठायी।


प्रश्न.9. “अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता।” इस विचार के पक्ष या विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।

अर्थव्यवस्था के मिश्रित या मिले-जुले मॉडल की आलोचना दक्षिणपन्थी तथा वामपन्थी दोनों खेमों में हुई। आलोचकों का मत था कि योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है। विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निजी स्वार्थों को खड़ा किया है तथा इन स्वार्थपूर्ण हितों ने निवेश के लिए लाइसेंस व परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी का मार्ग अवरुद्ध किया है। निजी क्षेत्र के पक्ष में तर्क इस प्रकार हैं-
पक्ष में तर्क-

  • अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर भारत की आर्थिक नीति बनाने वाले विशेषज्ञों ने भारी गलती कर दी थी। सन् 1990 से ही भारत ने नई आर्थिक नीति को अपना लिया है तथा वह बहुत तेजी से उदारीकरण व वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है। देश के कई बड़े नेता जो दुनिया में जाने-माने अर्थशास्त्री भी हैं, ये भी निजी क्षेत्र, उदारीकरण तथा सरकारी हिस्सेदारी को यथाशीघ्र सभी व्यवसायों, उद्योगों आदि में समाप्त करना चाहते हैं।
  • विश्व की दो बड़ी संस्थाओं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष तथा विश्व बैंक से भारत को ऋण और अधिकसे-अधिक निवेश तभी मिल सकते हैं जब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तथा विदेशी निवेशकों का स्वागत सत्कार हो और उद्योगों के विकास हेतु आन्तरिक सुविधाओं का बड़े पैमाने पर सुधार हो। इसके लिए सरकार पूँजी नहीं जुटा सकती है। यह कार्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और बड़े-बड़े पूंजीपति कर सकते हैं जो बड़े-बड़े जोखिम उठाने हेतु तैयार हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में भारत तभी ठहर सकता है जब निजी क्षेत्र में छूट दे दी जाए।
  • निजी क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। अत: इसके सभी निर्णय लाभ की मात्रा पर आधारित होते हैं.
  • अर्जित सम्पत्ति पर व्यक्ति का स्वयं का अधिकार होता है। वह इसका प्रयोग करने हेतु स्वतन्त्र होता है।
  • राज्य का हस्तक्षेप न्यूनतम रहता है। सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वह आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करता है।
  • प्रत्येक आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति को स्वतन्त्रता होती है।
  • कीमत यन्त्र, स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करता है। व्यवसाय के क्षेत्र जैसे उत्पादन, उपभोग, वितरण में कीमत यन्त्र ही मार्ग निर्देशित करता है।
  • इस क्षेत्र हेतु उत्पादन तथा मूल्य निर्धारण में प्रतिस्पर्धा पायी जाती है। माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियाँ ही उत्पादन की मात्रा एवं मूल्य निर्धारित करती हैं।

विपक्ष में तर्क-

  • सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी का समर्थन करने वाले वामपन्थी विचारधारा के समर्थकों का मत है कि भारत को सुदृढ़ कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र में आधार सरकारी वर्चस्व और मिश्रित नीतियों से मिला है। यदि ऐसा नहीं होता तो भारत पिछड़ा ही रह जाता।
  • भारत में विकसित देशों की तुलना में जनसंख्या अधिक है। यहाँ गरीबी है, बेरोजगारी है। यदि पश्चिमी देशों की होड़ में भारत में सरकारी हिस्से को अर्थव्यवस्था हेतु कम कर दिया जाएगा तो गरीबी फैलेगी तथा बेरोजगारी बढ़ेगी, धन और पूँजी कुछ ही कम्पनियों के हाथों में केन्द्रित हो जाएँगे जिससे आर्थिक विषमता और अधिक बढ़ जाएगी।
  • हम जानते हैं कि भारत एक कृषिप्रधान देश है। वह संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों का कृषि उत्पादन में मुकाबला नहीं कर सकता। कुछ देश स्वार्थ के लिए पेटेण्ट प्रणाली को कृषि में लागू करना चाहते हैं तथा जो सहायता राशि भारत सरकार अपने किसानों को देती है वह उसे अपने दबाव द्वारा पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं। जबकि भारत सरकार देश के किसानों को हर प्रकार से आर्थिक सहायता देकर अन्य विकासशील देशों को कृषि सहित अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में मात देना चाहती है।


प्रश्न.10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
आजादी के बाद के आरम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपी। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धान्त अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेन्द्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियन्त्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाईं और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज ठहराया गया। – फ्रैंकिन फ्रैंकल
(क) यहाँ लेखक किस अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अन्तर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?
(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका सम्बन्ध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व और प्रान्तीय नेताओं के बीच कोई अन्तर्विरोध था?

(क) उपर्युक्त अवतरण में लेखक कांग्रेस पार्टी के अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है जो क्रमश: वामपन्थी विचारधारा से और दूसरा खेमा दक्षिणपन्थी विचारधारा से प्रभावित था। अर्थात् जहाँ कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समाजवादी सिद्धान्तों में विश्वास रखती थी, वहीं राष्ट्रीय कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार निजी निवेश को बढ़ावा दे रही थी। इस प्रकार के अन्तर्विरोध से देश में राजनीतिक अस्थिरता फैलने की आशंका रहती है।
(ख) कांग्रेस इस नीति पर इसलिए चल रही थी क्योंकि कांग्रेस में सभी विचारधाराओं के लोग शामिल थे तथा सभी लोगों के विचारों को ध्यान में रखकर ही कांग्रेस पार्टी इस प्रकार का कार्य करती रही थी। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी ने इस प्रकार की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि विपक्षी दलों के पास आलोचना का कोई मुद्दा न रहे।
(ग) कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व एवं प्रान्तीय नेताओं में कुछ हद तक अन्तर्विरोध पाया गया था। जहाँ केन्द्रीय नेतृत्व राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को महत्त्व देता था, वहीं प्रान्तीय नेता प्रान्तीय एवं स्थानीय मुद्दों को महत्त्व देते थे। परिणामस्वरूप कांग्रेस के प्रभावशाली क्षेत्रीय नेताओं ने आगे चलकर अपने अलग-अलग राजनीतिक दल बनाए; जैसे–चौधरी चरणसिंह ने ‘क्रान्ति दल’ या ‘भारतीय लोकदल’ बनाया तो उड़ीसा में बीजू पटनायक ने ‘उत्कल कांग्रेस’ का गठन किया।

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