प्रश्न.1. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है।
(ख) वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई।
(ग) वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान है।
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।
सही उत्तर (घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।
प्रश्न.2. वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
(ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।
(ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
(घ) वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।
सही उत्तर (क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
प्रश्न.3. वैश्वीकरपा के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
(ख) जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।
(ग) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ।
(घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
सही उत्तर (क) वैश्वीकरण का एक महत्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
प्रश्न.4. वैश्वीकरण के बारे कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।
(ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
(ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
(घ) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
सही उत्तर (घ) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
प्रश्न.5. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन ग़लत है?
(क) वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
(ख) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।
(ग) वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
सही उत्तर (घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरुपता आएगी।
प्रश्न.6. विश्वव्यापी 'पारस्परिक जुड़ाव' क्या है? इसके कौन-कौन से घटक हैं?
विश्व-व्यापी 'पारस्परिक जुड़ाव' का अर्थ- विश्वव्यापी 'पारस्परिक जुड़ाव', वैश्वीकरण का आधार और उसकी प्रमुख विशेषता है। इसका अर्थ है कि सारे संसार के लोग आपस में एक-दूसरे से जुड़ गए हैं, एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं, एक-दूसरे पर निर्भर हैं और अब इन्हें एक-दूसरे के साथ मिलकर ही रहना है तथा मिलकर ही अपनी गतिविधियों का संचालन करना है। विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का अर्थ है मानव समाज में इस भावना का विकास होना कि सारे संसार के लोग वे चाहे किसी भी देश या क्षेत्र में रहते हों आपस में एक ही परिवार के सदस्य हैं और उन्हें एक-दूसरे से सहयोग करके ही जीवन व्यतीत करना है।
विश्वव्यापी आपसी जुड़ाव के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं:
(i) संचार तथा परिवहन के शीघ्रगामी साधन जिन से व्यक्तियों, वस्तुओं, सेवाओं तथा पूँजी के प्रवाह में गति आई है और पारस्परिक जुड़ाव संभव हुआ।
(ii) सूचना प्रसारण के साधन जैसे कि टी.वी., इंटरनेट, कंप्यूटर आदि जिनके कारण संसार के लोग प्रत्येक घटना के बारे में सूचित रहते है और आपस में जुड़े महसूस करते हैं।
(iii) सामान्य अर्थव्यवस्था अर्थात् बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था जो अब सभी देशों ने अपना ली है।
(iv) विश्वव्यापी समस्याओं जैसे कि आतंकवाद, एड्स की बीमारी, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे समुद्री तुफान, भूकंप आदि जिनका समाधान कोई देश अपने अकेले के प्रयासों से नहीं कर सकता और उन्हें एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है।
प्रश्न.7. वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का योगदान-वैश्वीकरण की धारणा तथा विकास में सबसे अधिक योगदान प्रोद्यौगिकी का है क्योंकि इसने ही सारे संसार के लोगों का पारस्परिक जुड़ाव किया है और विभिन्न देशों तथा क्षेत्रों को आमने-सामने ला खड़ा किया है, उनकी आपसी निर्भरता को बढ़ाया है और साथ ही उन्हें यह महसूस करने पर बाध्य किया है कि वे सब एक ही परिवार के सदस्य हैं। निम्नलिखित तथ्य इस कथन की पुष्टि करते हैं।
(i) प्रौद्योगिकी की प्रगति ने सारे संसार में लोगों, वस्तुओं, पूँजी और विचारों के प्रवाह में आश्चर्यजनक वृद्धि की है। इनकी गतिशीलता'बहुत तेज हुई है।
(ii) प्रौद्योगिकी की प्रगति के कारण आज संसार के किसी भी भाग में बैठा व्यक्ति हजारों-लाखों मील की दूरी पर घटने वाली घटनाओं से तुरंत ही परिचित हो जाता है और ऐसा महसूस करने लगता है कि वह उसी स्थान पर मौजूद है और उसके आसपास ही घटना घट रही है।
(iii) टी.वी. पर दिखाए जाने वाले लाइव-टैलीकास्ट (Live Telecast) से व्यक्ति हजारों मील दूर घटने वाली घटनाओं तथा मैच आदि के बारे में यह महसूस करता है कि वह उस घटना या मैच को प्रत्यक्ष रूप से उसी स्थान पर बैठा देख रहा है और समय तथा स्थान की दूरी प्राय समाप्त हो गई है।
(iv) प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के कारण अपने घर में बैठा व्यक्ति सारे संसार से जुड़ा हुआ महसूस करता है। वह घर बैठा ही विदेशों से व्यापार करता है, धन का भुगतान करता है, आपस में बात-चीत करता है. यहाँ तक कि सम्मेलनों तथा बैठकों में भागीदारी भी करता है।
(v) प्रौद्योगिकी विभिन्न देशों की संस्कृतियों को टी.वी. तथा इंटरनेट के माध्यम से अंत: क्रिया करने में भूमिका निभाती और वे एक दूसरे को ऐसे प्रभावित करने लगी है जैसे लोग प्रत्यक्ष रूप से, आमने-सामने आकर बातचीत करके प्रभावित होते हैं। अतः वैश्वीकरण के प्रसार में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान प्रौद्योगिकी का है।
प्रश्न.8. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें?
वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका- विकासशील देशों में भारत भी आता है और इन देशों में वैश्वीकरण के कारण राज्य की परंपरागत भूमिका बदलने लगी है।
इन देशों में राज्य की बदलती भूमिका की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) राज्य को अपनी अर्थव्यवस्था का निर्धारण करने की क्षमता में बहुत कमी आई है क्योंकि आज सभी देशों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था, मुक्तव्यापार, खुली प्रतियोगिता आदि को अपनाया गया है। अत: इस दृष्टि से राज्य की भूमिका में बदलाव आया है।
(ii) राज्य द्वारा आयात-निर्यात के कड़े नियम बनाने तथा उन्हें लागू करने की भूमिका में परिवर्तन आया है क्योंकि वैश्वीकरण में व्यक्तियों, वस्तुओं, पूँजी तथा विचारों के मुक्त, तीव्र प्रवाह की धारणा आधार भूत है। अत: परमिट, पासपोर्ट, लाइसेंस आदि की बाध्यताएँ कम हुई हैं और राज्य की इस दृष्टि से भूमिका कम हुई है।
(iii) आज विकासशील देशों में भी सामाजिक कल्याण, सामाजिक सुरक्षा आदि की प्राथमिकताएँ वाजार द्वारा निश्चित होती हैं। सरकार ने इस क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को सीमित किया है।
(iv) वैश्वीकरण के वातावरण में राज्यों की अपनी निर्भरता बढ़ी है। इसने राज्यों की स्वेच्छापूर्वक राष्ट्रीय तथा विदेश नीति के निध - रिण की शक्ति को भी कम किया है और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की नीतियों तथा निर्णयों को मानने के लिए बाध्य किया है।
(v) वैश्वीकरण ने राज्य की प्रभुसत्ता तथा राष्ट्रीय सीमाओं पर उसके नियंत्रण को प्रभावित किया है। राज्य अपने नागरिकों पर भी कड़ा नियंत्रण रखने में उतना ताकतवर नहीं रहे हैं।
प्रश्न.9. वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई हैं? इस संदर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है?
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव-वैश्वीकरण ने देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को आर्थिक क्षेत्र में भी प्रभावित किया है।
इसके अच्छे प्रभाव भी पड़े हैं और बुरे भी सकारात्मक आर्थिक प्रभाव- वैश्वीकरण के अच्छे आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं:
(i) वैश्वीकरण से विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हुआ हैं इस आर्थिक प्रवाह को तेज़ी में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का भी हाथ है। इससे देशों के आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।
(ii) वैश्वीकरण के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह में भी वृद्धि हुई है जिससे देशों में व्यापारिक गतिविधियाँ तेज भी हुई हैं, अधिक भी हुई है और इससे आर्थिक विकास को गति मिलती है।
(iii) पूँजी के प्रवाह के कारण विकसित देशों के लोग विकासशील देशों में अपनी पूँजी का निवेश करने लगे हैं ताकि उससे अधिक व्याज मिल सके। इससे विकासशील देशों की आर्थिक विकास की वृद्धि होती है और उन्हें अपने सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु विदेशी पूँजी प्राप्त हो जाती है।
(iv) वैश्वीकरण में क्योंकि समान व्यापारिक तथा श्रम नियम अपनाए जाने की व्यवस्था की जा रही है, इससे आशा की जाती है कि सभी देशों का संतुलित आर्थिक विकास होगा। वैश्वीकरण के नकारात्मक आर्थिक प्रभाव- वैश्वीकरण के नकारात्मक आर्थिक परिणाम भी हैं।
प्रमुख आर्थिक नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं:
(i) वैश्वीकरण ने सभी देशों में पूँजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा दिया है और बाजार मूलक अर्थव्यवस्था अपनाई गई है। इससे अमीरों की संख्या कम और गरीबों की संख्या अधिक होती जा रही है। अर्थात् अमीर और अधिक अमीर तथा गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं।
(ii) वैश्वीकरण के अंतर्गत राज्य ने समाजकल्याण, सामाजिक न्याय तथा सामाजिक सुरक्षा से संबंधित गतिविधियों से भी हाथ खींच लिया है। इससे सरकारी सहायता तथा संरक्षण पर आश्रित रहने वाले लोगों की दशा और अधिक शोचनीय होती जा रही है।
(iii) अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थाएँ ऐसे तौर तरीके प्रयोग करती हैं जिनसे विकसित देशों के आर्थिक हितों को बढ़ावा मिले, उनकी सुरक्षा हो। गरीब देशों के आर्थिक हितों की अनदेखी की जा रही है जिसके कारण विकासशील देशों में वैश्वीकरण के प्रति विरोथ बढ़ा है और इन देशों में तनाव की स्थिति बढ़ती जा रही है।
(iv) बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने गरीब तथा तीसरी दुनिया के देशों के काम-धंधों पर चोट को है और छोटे-छोटे व्यापारी इन बड़ी कंपनियों का मुकाबला न कर सकने के कारण बेरोजगार होते जा रहे हैं।
वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव- 1991 में वित्तीय संकट से उबरने और आर्थिक वृद्धि की ऊँची दर हासिल करने की इच्छा से भारत में आर्थिक सुधारों को योजना शुरू की गई। इस योजना के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों पर आयद बाधाएँ हटाई गईं। इन क्षेत्रों में व्यापार और विदेशी निवेश भी शामिल थे। यह कहना जल्दबाजी होगी कि भारत के लिए यह सब कितना अच्छा सावित हुआ है क्योंकि अतिम कसौटी ऊँची वृद्धि-दर नहीं बल्कि इस बात को सुनिश्चित करना है कि आर्थिक बढ़वार के फायदों में सबका साझा हो ताकि हर कोई खुशहाल बने।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारत में भी वैश्वीकरण के प्रभाव टीक नहीं रहे हैं। गरीबी और अमीरी के बीच की खाई बढ़ी है। आर्थिक असमानता दिखाई पड़ती है। महँगाई, बेरोजगारी आदि बढ़ी है।
प्रश्न.10. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिनता बढ़ रही है?
(i) हम इस कथन से सहमत नहीं है कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है। वस्तुत: इससे दुनिया के विभिन्न भाग सांस्कृतिक दृष्टि से एक-दूसरे के नजदीक आ रहे हैं। हम अपने देश का ही उदाहरण लेते हैं। हम जो कुछ खाते-पीते पहनते हैं अथवा सोचते हैं-सब पर इसका असर नजर आता है। हम जिन बातों को अपनी पसंद कहते हैं वे बातें भी वैश्वीकरण के असर में तय होती हैं।
(ii) वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय को बल मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचाएगी वैश्वीकरण से यह होता है क्योंकि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता ले आता है। सांस्कृतिक समरूपता का यह अर्थ नहीं कि किसी विश्व-संस्कृति का उदय हो रहा है। विश्व-संस्कृति के नाम पर दरअसल शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है।
(iii) कुछ लोगों का तर्क है कि वर्गर अथवा नीली जीन्स की लोकप्रियता का नजदीकी रिश्ता अमरीकी जीवनशैली के गहरे प्रभाव से है क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपनी छाप छोड़ती है और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। जो यह तर्क देते हैं कि वे अक्सर दुनिया के 'मैक्डोनॉल्डीकरण' की तरफ इशारा करते हैं। उनका मानना है कि विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने को प्रभुत्वशाली अमरीकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। चूँकि इससे पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे खत्म होती है इसलिए यह केवल गरीब देशों के लिए ही नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए खतरनाक है।
(iv) इसके साथ-साथ यह मान लेना एक भूल है कि वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव सिर्फ नकारात्मक हैं। संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं होती, हर संस्कृति हर समय बाहरी प्रभावों को स्वीकार करती रहती है। कुछ बाहरी प्रभाव नकारात्मक होते हैं क्योंकि इससे हमारी पसंदों में कमी आती है। कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है तो कभी इनसे परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार होता है। बर्गर मसाला-डोसा का विकल्प नहीं है इसलिए बर्गर से वस्तुतः कोई खतरा नहीं है। इससे हुआ मान इतना है कि हमारे भोजन की पसंद में एक चीज़ और शामिल हो गई है।
(v) दूसरी तरफ, नीली जीन्स भी हथकरघा पर बुने खादी के कुर्ते के साथ खूब चलती है। यहाँ हम बाहरी प्रभाव से एक अनूटी बात देखते हैं कि नीली जीन्स के ऊपर खादी का कुर्ता पहना जा रहा है। मजेदार बात तो यह है कि इस अनूठे पहनावे को अब उसी देश को निर्यात किया जा रहा है जिसने हमें नीली जीन्स दी है। जीन्स के ऊपर कुर्ता पहने अमरिकियों को देखना अब संभव है।
(vi) सांस्कृतिक समरूपता वैश्वीकरण का अगर एक पक्ष है तो इप्सी प्रक्रिया से ठीक इसका उल्टा प्रभाव भी पैदा हुआ है। वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि संस्कृतियों के मेलजोल में उनकी ताकत का सवाल गौण है परंतु इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि सांस्कृतिक प्रभाव एकतरफा नहीं होता।
प्रश्न.11. वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है?
भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव पूँजी, वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाये सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद, ब्रिटेन के साथ अपने इन अनुभवों से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनवाया जाए। हमने यह भी फैसला किया कि दूसरे देशों को निर्यात को अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने उत्पादक चीजो को बनाना सीख सकें। इस 'संरक्षणवाद' से कुछ नयी दिक्कतें पैदा हुई। कुछ क्षेत्रों में तरक्को हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिय गया जितने के वे हकदार थे। भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।
भारत में वैश्वीकरण को अपनाना-1991 में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपना लिया। अनेक देशों की तरह भारत में भी संरक्षण को नीति को त्याग दिया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की स्थापना, विदेशी पूँजी के निवेश का स्वागत किया गया। विदेशी प्रौद्योगिकी और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएँ ली जा रही हैं। दूसरी ओर भारत ने औद्यागिक संरक्षण की नीति को त्याग दिया है। जब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं हैं भारत स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा है। भारत का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन साथ ही अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही है। लाखों लोग बेरोजगार हैं। कुछ लोग जो पहले धनी धे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीबों की संख्या बढ़ रही है। भारत में वैश्वीकरण का प्रतिरोध- वैश्वीकरण बड़ा बहस-तलब का मुद्दा है और पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है। भारत में वैश्वीकरण के आलोचक कई तर्क देते हैं।
(i) वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी (तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।
(ii) राज्य के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है। वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचक इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिन्तित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिन्ता है। वे चाहते हैं कि कम-से-कन कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और 'संरक्षणवाद' का दौर फिर कायम हो। सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिन्ता है कि परंपरागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर तरीकों से हाथ धो बैठेंगे।
वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव:
(i) सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने आस-पड़ोस की दुनिया को समझने में मदद मिलती है। लोगों को अपनी समस्याओं के हल तलाशने में भी सामाजिक आंदोलनों से मदद मिलती है। भारत में वैश्वीकरण के खिलाफ बामपंथी तेवर की आवाजें जैसे मंचों से भी। औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रवेश का विरोध किया है। कुछ वनस्पतियों मसलन 'नीम' को अमरीकी और यूरोपीय फर्मा ने पेटेण्ट कराने के प्रयास किए। इसका भी कड़ा विरोध हुआ।
(ii) वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमों से भी हुआ है। यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जिसमें केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी.वी. चैनलों से लेकर वैलेण्टाइन डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ती अभिरूचि तक का विरोध शामिल है।
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