UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12)  >  NCERT Solutions: स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy on the eve of Ind

स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy on the eve of Ind NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. भारत में औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नीतियों का केंद्र बिंदु क्या था? उन नीतियों के क्या प्रभाव हुए?

औपनिवेशिक शासकों द्वारा रची गई आर्थिक नीतियों का ध्येय भारत का आर्थिक विकास नहीं था अपितु अपने मूल देश के आर्थिक हितों का संरक्षण और संवर्धन ही था। इन नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था के स्वरूप के मूलरूप को बदल डाला।
(क) एक तो वे भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना चाहते थे।
(ख) वे उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को एक विशाल बाजार भी बनाना चाहते थे। इसके परिणामस्वरूप भारत एक खस्ताहालत अर्थव्यवस्था बनकर रह गया। एम. मुखर्जी के अनुसार, “1857-1956 के बीच प्रतिव्यक्ति आय की वार्षिक वृद्धि दर 0.5% प्रति वर्ष जितनी कम थी।” अतः अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था एक खस्ताहालत अर्थव्यवस्थी रही। अंग्रेज़ी शासन समाप्त होने पर वे भारत को एक खोखली और स्थिर अर्थव्यवस्था के रूप में छोड़कर गए।

  • निरक्षरता, जन्म दर तथा मृत्यु दर बहुत अधिक था। कुल जनसंख्या का केवल 17% हिस्सा ही साक्षर था। इसी तरह जन्म दर तथा मृत्यु दर क्रमशः 45.2 प्रति हज़ार (1931-41 के दौरान) तथा 40 प्रति हज़ार (1911-21 के दौरान) थी।
  • देश संयंत्र और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक मशीनरी के लिए लगभग पूरी तरह से अन्य देशों पर निर्भर था। वर्तमान जीवन और गतिविधि को बनाए रखने के लिए कई आवश्यक वस्तुओं क़ा आयात करना पड़ता था।
  • आज़ादी के समय भारत एक कृषि प्रधान देश था। कार्यरत जनसंख्या का 70-75% हिस्सा कृषि में संलग्न था परंतु फिर भी देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर नहीं था।
  • आधारिक संरचना बहुत हद तक अविकसित थी।


प्रश्न.2. औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों के नाम बताइए।

दादा भाई नौरोजी, बी.के.आर.वी. राव, विलियम डिग्बी, फिडले शिराज, आर.सी. देसाई।


प्रश्न.3. औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण क्या थे?

औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण इस प्रकार थे

  •  पट्टेदारी प्रणाली-भारत में अंग्रेजों ने एक भू-राजस्व प्रणाली शुरू की जिससे जमींदारी प्रथा कहा गया। इसके अंतर्गत कृषकों, ज़मींदारों तथा सरकार के बीच एक त्रिकोणीय संबंध स्थापित किया गया। जमींदार जमीनों के स्थायी मालिक थे जिन्हें सरकार को एक तय राशि कर के रूप में देनी पड़ती थी। बदले में, वे कृषकों पर किसी भी दर पर कर लगा सकते थे। इस प्रथा ने कृषको की हालत भूमिहीन मज़दूरों जैसी कर दी। ऐसी परिस्थितियों में भी वे कार्यरत रहे क्योंकि अन्य कोई रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं थे।
  •   कृषि के व्यावसायिकरण का प्रत्यापन-कृषकों को खाद्यान्न फसलों को छोड़ वाणिज्यिक फसलों पर जाने के लिए मजबूर किया गया। उन्हें ब्रिटेन में विकसित हो रहे कपड़ा उद्योग के लिए नील की आवश्यकता थी। कृषि के व्यावसायिकरण ने भारतीय कृषि को बाजार की अनिश्चिताओं से परीचित कराया। अब उन्हें अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने के लिए नकदी की जरूरत थी। परंतु अपनी ऋणग्रस्तता के कारण उनके पास नकदी का सदा अभाव रहता था। इसने उन्हें कृषि से जुड़े रहने के लिए मजबूर कर दिया तथा जमींदारों और साहूकारों की दया पर निर्भर कर दिया।
  • आधारिक संरचना की कमी-ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई की सुविधाएँ बढ़ाने या तकनीकी विकास करने पर कोई ध्यान नहीं दिया।
  •  भारत का विभाजन- भारत के विभाजन ने भी भारतीय कृषि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया। कलकत्ता की जूट मिलों तथा बंबई और अहमदाबाद के कपड़ा मिलों में कच्चे माल की कमी हो गई। पंजाब और सिंध जैसे अमीर खाद्यान्न क्षेत्र भी पाकिस्तान में चले जाने से खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया।


प्रश्न.4. स्वतंत्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम बताइए।

टोटा आयरन और स्टील उद्योग (टिस्को) 1907 में शुरू की गई थी, देश में कार्य कर रहे अन्य आधुनिक उद्योगों में चीनी उद्योग, इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग, रसायन उद्योग और कागज़ उद्योग शामिल थे।


प्रश्न.5. स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत के व्यवस्थित वि-औद्योगीकरण का दोहरे ध्येय क्या थे?

भारत के व्यवस्थित वि-औद्योगीकरण का दोहरा ध्येय इस प्रकार था

  • भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना।
  • उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को एक विशाल बाजार बनाना।


प्रश्न.6. अंग्रेजी शासन के दौरान भारत के परंपरागत हस्तकला उद्योगों का विनाश हुआ। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में कारण बताइए।

हाँ, हम इस दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत हैं। ब्रिटिश नीतियाँ सदा से स्वहितों से निदेर्शित रही। ब्रिटेन ने कभी भी यह कष्ट नहीं उठाया कि वे इस तरफ ध्यान दें कि उनकी नीतियों का भारत के लोगों पर बेरोज़गार के रूप में, मानवीय कष्टों या कृषि क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने भारतीय हस्तकला उद्योगों पर भारी दर से कर लगाए ताकि भारतीय वस्त्र ब्रिटेन में बने ऊनी या रेशमी वस्त्रों से अधिक महँगे हो जाए। उन्होंने कच्चे माल के निर्यात को तथा ब्रिटेन से उत्पादित माल के आयात को कर मुक्त रखा। परंतु भारतीय हस्तकला उद्योगों के माल के निर्यात पर भारी कर लगाए। इसके अतिरिक्त भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को मशीनों से बने सामान से भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। इसने भारतीय हस्तशिल्प उद्योग की बर्बादी में मुख्य भूमिका निभाई।


प्रश्न.7. भारत में आधारिक संरचना विकास की नीतियों से अंग्रेज़ अपने क्या उद्देश्य पूरा करना चाहते थे?

औपनिवेशिक शासनकाल में भारत में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन व डाक-तार आदि का विकास हुआ परंतु इसका ध्येय जनसामान्य को अधिक सुविधाएँ प्रदान करना नहीं था अपितु इसके पीछे औपनिवेशिक हित साधने का ध्येय था।

  • अंग्रेज़ी शासन से पहले बनी सड़कें आधुनिक यातायात साधनों के लिए उपयुक्त नहीं थी। अतः सड़कों का निर्माण इसलिए किया गया ताकि देश के भीतर उनकी सेनाओं के आवागमन की सुविधा हो सके तथा देश के भीतरी भागों से कच्चा माल निकटतम रेलवे स्टेशन या पत्तने तक पहुँचाया जा सके।
  • डाक, तार तथा संचार के साधनों का विकास कुशल प्रशासन के लिए किया गया।
  • एक अन्य उद्देश्य यह भी था कि अंग्रेज़ी धन का भारत में लाभ अर्जित करने के लिए निवेश किया जाये।


प्रश्न.8. ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीतियों की कमियों की आलोचनात्मक विवेचना करें। 

भारत औपनिवेशिक शासनकाल में एक शक्तिशाली औद्योगिक ढाँचे का विकास नहीं कर सका। यह निम्न तथ्यों के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है

  • समान गुणवत्ता के किसी भी विकल्प के बिना हस्तकला उद्योग में गिरावट-ब्रिटेन का एकमात्र उद्देश्य सस्ती से सस्ती कीमतों पर भारत से कच्चा माल प्राप्त करना तथा भारत में ब्रिटेन से आया उत्पादित माल बेचना था। भारतीय हस्तशिल्प वस्तुओं की ब्रिटेन की मशीनों द्वारा बनाई गई वस्तुओं की तुलना में विदेशों में एक बेहतर प्रतिष्ठा थी इसलिए उन्होंने नीतिगत रीति से आयात को शुल्क मुक्त तथा हस्तशिल्प के निर्यात पर उच्च कर लगाकर भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को बर्बाद कर दिया। उन्होंने इन नीतियों से बेरोजगारी, मानवीय पीड़ा या आर्थिक वृद्धि की दर पर होने वाले प्रभाव के प्रति कोई विचार नहीं किया।
  • आधुनिक उद्योग का अभाव-भारत में आधुनिक उद्योग उन्नीसवीं सदी के दूसरे छमाही के दौरान विकसित होना शुरू हुआ। परंतु इसकी विकास दर बहुत धीमी और अवरुद्ध पूर्ण थी। औपनिवेशिक काल के अंत तक उद्योग और प्रौद्योगिक का स्तर निम्न रहा। उन्नीसवीं सदी के दौरान औद्योगिक विकास कपास और जूट कपड़ा मिलों तक ही सीमित था। लौह और इस्पात उद्योग 1907 में आया जबकि चीनी, सीमेंट और कागज़ उद्योग 1930 के दशक में विकसित हुए।
  • पूँजीगत उद्योग को अभाव-भारत में मुश्किल से ही कोई पूँजीगत उद्योग थे जो आधुनिकीकरण को आगे बढ़ावा दे। सकें। 70% संयंत्र तथा मशीनरी का आयात किया जा रहा था। भारत अपनी तकनीकी तथा पूँजीगत वस्तुओं की आवश्यकता के लिए आयात पर निर्भर था।
  • व्यावसायिक संरचना-निम्न विकास दर का सूचक: भारतीय अर्थव्यवस्था के अल्प विकसित होने का सबूत इस बात से मिल जाता है कि कार्यशील जनसंख्या का 72% हिस्सा कृषि में संलग्न था और 11.9% औद्योगिक क्षेत्र में संलग्न था। राष्ट्रीय आय में औद्योगिक क्षेत्र का हिस्सा 25.3% था जबकि कृषि का योगदान 57.6% हिस्से का था।


प्रश्न.9. औपनिवेशिक काल में भारतीय संपत्ति के निष्कासन से आप क्या समझते हैं?

विदेशी शासन के अंतर्गत भारतीय आयात-निर्यात की सबसे बड़ी विशेषता निर्यात अधिशेष का बड़ा आकार रहा। किंतु इस अधिशेष का देश के सोने और चाँदी के प्रवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वास्तव में इसका उपयोग तो निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया गया।

  • अंग्रेज़ों की भारत पर शासन करने के लिए गढ़ी गई व्यवस्था का खर्च उठाना।
  • अंग्रेज़ी सरकार के युद्धों पर व्यय तथा अदृश्य मदों के आयात पर व्यय।


प्रश्न.10. जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष कौन-सा माना जाता है?

1921.


प्रश्न.11. औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति को एक संख्यात्मक चित्रण प्रस्तुत करें।

(क) उच्च जन्म दर और मृत्यु दर-भारत जनांकिकीय संक्रमण के दूसरे चरण में था। अत: उच्च जन्म दर और गिरती मृत्यु दर के कारण इसे “जनसंख्या विस्फोट” का सामना करना पड़ रहा था।
(ख) निम्न स्तरीय गुणात्मक पहलू-जनसंख्या के गुणात्मक पहलू भी कुछ उत्साहजनक नहीं रहे।

  • उच्च शिशु मृत्यु दर-स्वतंत्रता के समय शिशु मृत्यु दर 218 प्रति हज़ार जितना उच्च था।
  • व्यापक निरक्षरता-औसतन साक्षरता दर 16.5% से कम थी। केवल 7% महिलाएँ साक्षर थीं।
  • निम्नस्तरीय जीवन प्रत्याशा-जीवन प्रत्याशा मात्र 32 वर्ष थी, जो नितांते अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का संकेत है।
  • व्यापक गरीबी तथा निम्न जीवन स्तर-लोगों को अपनी आय का 80-90% हिस्सा आधारभूत आवश्यकताओं पर
  • खर्च करना पड़ रहा था। कुल जनसंख्या का 52% हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे था। देश के कुछ हिस्सों में अकाल समान स्थितियों का सामना करना पड़ रहा था।


प्रश्न.12. स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताएँ समझाइये।

अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच कार्यबल के वितरण को उस देश की व्यावसायिक संरचना कहा जाता है। स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताओं को निम्न तथ्यों से जाना जा सकता है।

  • कृषि क्षेत्र की प्रधानता-कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था की व्यावसायिक संरचना में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। भारत की कार्यशील जनसंख्या का 70-75% हिस्सा कृषि में संलग्न था, 10% हिस्सा औद्योगिक क्षेत्र तथा 15-20% हिस्सा सेवा क्षेत्र में संलग्न था।
  • बढ़ रही क्षेत्रीय असमानता-व्यावसायिक संरचना में क्षेत्रीय विविधताएँ बढ़ रही थी। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक (जो उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे) जैसे राज्यों में कार्यबल की कृषि पर निर्भरता कम हो रही थी जबकि उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान में कृषि पर निर्भर कार्यबल में वृद्धि हो रही थी।


प्रश्न.13. स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित करें।

शोषक औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को बुरी तरह से बर्बाद कर दिया। अंततः परिणामस्वरूप भारत को स्वतंत्रता के समय विशाल आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा उनमें से मुख्य इस प्रकार हैं

  • कृषि उत्पादकता का निम्न स्तर-औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों ने भारतीय कृषि को अपने हितों के अनुसार इस्तेमाल किया। परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र को गतिहीनता, निम्न उत्पादकता स्तर निवेश का अभाव, भूमिहीन किसानों की खस्ताहालत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसीलिए भारत के लिए तत्कालिक समस्या यह थी कि वह कृषि क्षेत्र तथा इसकी उत्पादकता का विकास किस प्रकार करे। स्वतंत्रता के समय कुछ तत्कालिक जरूरत इस प्रकार थी-जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करना, भूमि सुधार नीतियाँ बनाना, भूमि के स्वामित्व की असमानताओं को कम करना तथा किसानों का उत्थान करना।
  • बाल्यकालीन औद्योगिक क्षेत्र-कृषि की ही भाँति भारत एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार का विकास नहीं कर पाया। औद्योगिक क्षेत्र का विकास करने के लिए भारत को विशाल पूँजी, निवेश, आधारिक संरचना मानव कुशलताएँ, तकनीकी ज्ञान तथा आधुनिक तकनीक की आवश्यकता थी। इसके अलावा, ब्रिटिश उद्योगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण भारतीय घरेलू उद्योग बने रहने में विफल रहे। इस प्रकार लघु और बड़े उद्योगों को एक साथ अपने औद्योगिक क्षेत्र में विकसित करना भारत के लिए एक मुख्य चिंता का विषय था। इसके अलावा भारत में सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत थी जो भारत के लिए महत्त्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों में से एक था।
  • आधारिक संरचना में कमी-हालाँकि देश की आधारिक संरचना में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया गया। परंतु यह कृषि और औद्योगिक क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार करने के लिए पर्याप्त नहीं था। इसके अतिरिक्त, उस समय के बुनियादी ढाँचे को आधुनिकीकरण की जरूरत थी।
  • गरीबी और असमानता-भारत गरीबी और असमानता के दुष्चक्र में फँस गया था। ब्रिटिश शासन ने भारतीय धन का एक महत्त्वपूर्ण भाग ब्रिटेन की ओर निष्कासित कर दिया। परिणामस्वरूप, भारत की आबादी का एक बहुसंख्यक हिस्सा गरीबी से पीड़ित था। इसके कारण देशभर में आर्थिक असमानताओं को और अधिक बढ़ावा मिला।


प्रश्न.14. भारत में प्रथम सरकारी जनगणना किस वर्ष में हुई थी?

1881.


प्रश्न.15. स्वतंत्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार के परिमाण और दिशा की जानकारी दें।

औपनिवेशिक शासनकाल में, अंग्रेजों ने एक भेदभावपूर्ण कर नीति का पालन किया जिसके अंतर्गत उन्होंने भारत के लिए अंग्रेज़ी उत्पादों का आयात तथा अंग्रेज़ों को कच्चे माल का निर्यात कर मुक्त कर दिया। जबकि भारत के हस्तशिल्प उत्पादों पर भारी शुल्क (निर्यात शुल्क) लगाए गए। इससे भारतीय निर्यात महँगे हो गए और इसकी अंतर्राष्ट्रीय माँग तेज़ी से गिर गई।
औपनिवेशिक शासनकाल में भारत कच्चे उत्पाद जैसे-रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन आदि का निर्यातक होकर रह गया। साथ ही यह इंग्लैंड के कारखानों में बनी हल्की मशीनों तथा सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्र जैसे अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं का आयातक भी हो गया। व्यवहारिक रूप से भारत के आयात-निर्यात पर अंग्रेज़ों का एकाधिकार हो गया। अतः भारत का आधे से अधिक आयात-निर्यात ब्रिटेन के लिए आरक्षित हो गया तथा शेष आयात-निर्यात चीन, फ्रांस, श्रीलंका की ओर निर्देशित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त स्वेज नहर के खुलने के बाद तो भारतीय विदेशी व्यापार पर ब्रिटेन का अधिपत्य और भी जम गया। स्वेज नगर से ब्रिटेन और भारत के बीच में माल लाने और ले जाने की लागत में भारी कमी आई। भारत का विदेशी व्यापार अधिशेष उपार्जित करता रहा परंतु इस अधिशेष को भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं किया गया बल्कि यह प्रशासनिक और युद्ध उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया था। इससे भारतीय धन का ब्रिटेन की ओर पलायन हुआ।


प्रश्न.16. क्या अंग्रेजों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान भी दिया था? विवेचना करें।

यह कहना अनुचित होगा कि अंग्रेज़ों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान दिया था अपितु कुछ सकारात्मक प्रभाव उनकी स्वार्थपूर्ण नीतियों के सह उत्पाद के रूप में उपलब्ध हो गये। ये योगदान इच्छापूर्ण तथा नीतिबद्ध नहीं थे बल्कि अंग्रेजों की शोषक औपनिवेशिक नीतियों का सह उत्पाद थे। अतः अंग्रेजों द्वारा भारत में ऐसे कुछ सकारात्मक योगदान इस प्रकार हैं

  • रेलवे का आरंभ- अंग्रेज़ी सरकार द्वारा भारत में रेलवे का आरंभ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी उपलब्धि था। इसने सभी प्रकार की भौगोलिक तथा सांस्कृतिक बाधाओं को दूर किया तथा कृषि के व्यवसायीकरण को संभव किया।
  • कृषि के व्यावसायिकरण का आरंभ- अंग्रेज़ी सरकार द्वारा कृषि का व्यावसायीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अन्य बड़ी उपलब्धि था। भारत में अंग्रेज़ी शासन आने से पूर्व, भारतीय कृषि स्वपोषी प्रकृति की थी। परंतु कृषि के व्यावसायीकरण के उपरांत कृषि उत्पादन बाजार की जरूरतों के अनुसार हुआ। यही कारण है कि आज भारत खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होने के लक्ष्य को प्राप्त कर पाया है।
  • आधारिक संरचना का विकास- अंग्रेजों द्वारा विकसित आधारिक ढाँचे ने देश में अकाल के फैलने को रोकने में विशेष योगदान दिया है। टेलीग्राम तथा डाक सेवाओं ने भी भारतीय जनता को सुविधाएँ दी।।
  • शिक्षा का प्रोत्साहन तथा कुछ सामाजिक सुधार- अंग्रेजी भाषा में भारत में पाश्चात्य शिक्षा को प्रोत्साहित किया। अंग्रेजी भाषा भारत के बाहर की दुनिया को जानने के लिए एक खिड़की बनी। इसने भारत को विश्व के अन्य हिस्सों से जोड़ा। अंग्रेजों ने भारत में सती प्रथा भी प्रतिबंधित की और विधवा पुनर्विवाह अधिनियम की भी उद्घोषणा की।
  • भारत का एकीकरण- अंग्रेज़ी शासन से पूर्व भारत छोटे-छोटे राज्यों तथा सीमाओं में बँटा हुआ था। आज़ादी के युद्ध के नाम पर अंग्रेज़ भारत तथा भारतीयों को एकीकृत करने का एक कारण बन गये।
  • एक कुशल तथा शक्तिशाली प्रशासन का उदाहरण- अंग्रेजों ने अपने पीछे एक कुशल और शक्तिशाली प्रशासन का उदाहरण रख छोड़ा जिसका भारतीय नेता अनुसरण कर सकते थे।
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