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GS2 PYQ 2021 (मुख्य उत्तर लेखन): आर्कटिक सर्कल और आर्कटिक महासागर | UPSC Mains: निबंध (Essay) Preparation PDF Download

आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों के पिघलने से पृथ्वी पर मौसम के पैटर्न और मानव गतिविधियों पर अलग-अलग प्रभाव कैसे पड़ता है? व्याख्या करना। (UPSC GS1 2021)

भूसंहतियों के समीप अवस्थित आर्कटिक महासागर सतत महसागरीय हिम से आच्छादित है जबकि सुदूर दक्षिण में अवस्थित अंटार्कटिक एक हिमनद आवरित महाद्वीप है। जलवायु परिवर्तन ने ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाया है। फलतः विश्व के प्रशीतक के रूप में मौजूद आर्कटिक एवं अंटार्कटिक दोनों के हिमनदों के पिघलने की दर में वृद्धि हुई है।
IPCC की रिपोर्ट के अनुसार आर्कटिक की बर्फ अंटार्कटिक के ग्लेशियर की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से पिघल रही है। चूँकि आर्कटिक एवं अंटार्कटिक की अवस्थिति व प्रकृति में अंतर है। अतः इनकी बर्फ व ग्लेशियरों के पिघलने से मौसम के प्रतिरूप एवं मानवीय क्रियाकलापों पर भी अलग - अलग प्रभाव पड़ता है, जिसे निम्नांकित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-

आर्कटिक की बर्फ के पिघलने का प्रभाव

  • आर्कटिक की बर्फ के पिघलने से एल्बिडी प्रभाव कम होगा, जिससे तापमान में वृद्धि होगी और पोलर जेट स्ट्रीम कमज़ोर होगी फलस्वरूप मध्य अक्षांशों; जैसे - अमेरिका , यूरोप क्षेत्र में पोलर वर्टेक्स का नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा।
  • आर्कटिक की बर्फ पिघलने से निम्न अक्षांशों की ओर आने वाली ठंडी महसागरीय धाराओं ( जैसे - पूर्वी ग्रीनलैंड धारा ) की प्रकृति में परिवर्तन से शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है।
  • AMOC (अटलांटिक मेरिडियोनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन) की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
  • ENSO चक्र अनियमित हो जाएगा। फलत: अलनीनो की घटनाओं में वृद्धि होगी। इसका भारतीय मानसून पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
  • आर्कटिक क्षेत्र की जैवविविधता का ह्रास होगा। वस्तुतः यहाँ के ध्रुवीय भालू, आर्कटिक लोमड़ी व अन्य समुद्री जीवों के हैबिटेट का पतन होगा।
  • आर्कटिक बर्फ के पिघलने से समुद्री जल- स्तर में वृद्धि होगी। फलतः समुद्रतटीय शहरों व देशों के निमग्न होने का खतरा बढ़ जाएगा।
  • आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बड़ी मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग के दुश्चक्र को बढ़ाता है। आर्कटिक बर्फ के पिघलने से नॉर्दर्न सी रूट खुल सकता है तथा इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन हेतु देशों के मध्य नकारात्मक प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाएगी।
  • हीट वेव में वृद्धि तथा मौसमी अनियमितता खाद्य संकट को बढ़ाएगी।

अंटार्कटिक के ग्लेशियर के पिघलने के प्रभाव

  • अंटार्कटिक के ग्लेशियरों के पिघलने से अंटार्कटिक परिध्रुवीय धारा के तापमान में वृद्धि होगी।
  • अलनीनो व ला- लीना की दशाओं में परिवर्तन तथा भारत में दक्षिण- पश्चिम मानसून कमज़ोर हो सकता है।
  • दक्षिणी गोलार्द्ध में चक्रवातों की गहनता में वृद्धि।
  • अंटार्कटिक क्षेत्र की जैवविविधता में क्षति, वस्तुतः इस क्षेत्र में पाई जाने वाली पेंगुइन व अन्य प्रजातियों के हैबिटेट का ह्रास होगा।
  • हिमनद के पिघलने से समुद्री स्तर में वृद्धि होगी। फलतः दक्षिणी गोलार्द्ध के छोटे - छोटे द्वीपीय देशों के निमग्न होने का खतरा बढ़ेगा।
  • अंटार्कटिक के हिमनदों के पिघलने से भी AMOC मंद गति से होगा। फलतः विश्व भर के महासागरीय बेसिन में ताप एवं पोषक तत्त्वों का वितरण दुष्प्रभावित होगा।

एक पारितंत्र के रूप में आर्कटिक और अंटार्कटिक ऊष्मा बजट को संतुलित एवं जलवायवीय दशाओं को नियंत्रित करने वाले पृथ्वी के अभिन्न अंग हैं। इनके अनवरत पिघलने से वैश्विक जलवायु तंत्र व संपूर्ण जैवमंडल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। अतः ग्लोबल वार्मिंग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये संपूर्ण विश्व को संधारणीय विकास को अमल में लाना चाहिये तथा ग्रीन एनर्जी के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिये।

कवर किए गए विषय - महासागरीय धाराएं, जेट स्ट्रीम, पवन प्रणाली और पृथ्वी पर जल परिसंचरण

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