UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): March 2023 UPSC Current Affairs

History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): March 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारत में लुप्त पुरावशेषों का खतरा

चर्चा में क्यों?  

"आधिकारिक तौर पर" लुप्त घोषित की गई कलाकृतियों और वैश्विक बाज़ारों में जो सामने आ रही हैं या संग्रहालय के शेल्फों और तालिका में पाई जा रही कलाकृतियों के बीच एक बड़ा अंतर है।

  • स्वतंत्रता के बाद से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित और अनुरक्षित 3,696 स्मारकों में से 486 पुरावशेष गायब बताए गए हैं।

लुप्त शिल्पकृतियों के संबंध में प्रकाशित किये गए मुद्दे

  • ASI के अनुसार, वर्ष 2014 में 292 और वर्ष 1976 से 2013 के बीच 13 पुरावशेष विदेशों से भारत वापस लाए गए हैं। 
  • ASI की लुप्त पुरावशेषों की सूची में 17 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों के पुरावशेष शामिल हैं। इसमें मध्य प्रदेश के 139, राजस्थान के 95 और उत्तर प्रदेश के 86 पुरावशेष शामिल हैं। 
  • संसदीय समिति ने कहा कि ASI द्वारा विदेशों से "पुनर्प्राप्त की गई प्राचीन वस्तुओं की संख्या" देश से तस्करी करके लाई गई प्राचीन वस्तुओं की बड़ी संख्या की तुलना में अधिक है जो बड़ी समस्या की छोटी सी झलक है।
  • ASI के अधीन स्मारक और स्थल पूरे देश में पुरातात्त्विक स्थलों एवं स्मारकों की कुल संख्या का "छोटा प्रतिशत" है।
  • लुप्त पुरावशेषों के खतरे को यूनेस्को द्वारा भी विश्लेषित किया गया है। यह अनुमान है कि "1989 तक भारत से 50,000 से अधिक कला वस्तुओं की तस्करी की गई है।" 

पुरावशेष (Antiquity)

  • परिचय: 
    • पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 जो 1 अप्रैल, 1976 को लागू हुआ, "पुरावशेष" जो कम-से-कम 100 वर्षों से अस्तित्त्व में है, को वस्तु या कला के रूप में परिभाषित करता है।
    • इसमें सिक्के, मूर्तियाँ, पेंटिंग, पुरालेख, पृथक लेख आदि वस्तुएँ शामिल हैं जो विज्ञान, साहित्य, कला, धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक लोकाचार या ऐतिहासिक राजनीति को चित्रित करती हैं।
    • "पांडुलिपि, रिकॉर्ड या अन्य दस्तावेज़ जो वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक या सौंदर्यवादी मूल्य के हैं" और जिनकी अवधि "75 वर्ष से कम नहीं है”, को पुरावशेष के रूप शमिल किया जाता है।

संरक्षण पहल

  • भारतीय:  
    • भारत में संघ सूची की मद- 67, राज्य सूची की मद- 12 तथा संविधान की समवर्ती सूची की मद- 40 देश की विरासत से संबंधित हैं।
    • स्वतंत्रता से पहले पुरावशेष (निर्यात नियंत्रण) अधिनियम अप्रैल 1947 में यह सुनिश्चित करने हेतु पारित किया गया था कि बिना लाइसेंस के किसी भी पुरावशेष का निर्यात नहीं किया जा सकता है।
    • प्राचीन स्मारकों और पुरातात्त्विक स्थलों को विनाश तथा दुरुपयोग से बचाने हेतु वर्ष 1958 में प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल व अवशेष अधिनियम बनाया गया था।
  • वैश्विक:  
    • यूनेस्को ने सांस्कृतिक संपत्ति के अवैध आयात, निर्यात और स्वामित्त्व के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करने एवं रोकने के साधनों पर अभिसमय 1970 स्थापित किया।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी संघर्ष वाले क्षेत्रों में सांस्कृतिक विरासत स्थलों की सुरक्षा हेतु वर्ष 2015 और 2016 में प्रस्ताव पारित किये।

पुरावशेषों को वापस लाने की प्रक्रिया

  • श्रेणियाँ:
    • स्वतंत्रता पूर्व भारत से ले जाए गए पुरावशेष
    • स्वतंत्रता के बाद से मार्च 1976 तक ले जाए गए पुरावशेष
    • अप्रैल 1976 से पुरावशेषों को देश से बाहर ले जाया गया 
    • स्वतंत्रता से पहले भारत से बाहर ले जाए गए पुरावशेषों के लिये उनकी पुनर्प्राप्ति हेतु अनुरोध द्विपक्षीय रूप से या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिये।  
    • उदाहरण के लिये नवंबर 2022 में महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज की तलवार को लंदन से वापस लाने के लिये कार्य कर रही है।
    • दूसरी और तीसरी श्रेणियों में पुरावशेषों को स्वामित्त्व के प्रमाण के साथ द्विपक्षीय मुद्दे को उठाकर तथा यूनेस्को कन्वेंशन का उपयोग करके आसानी से पुनर्प्राप्त किया जा सकता है।

चंदन की लकड़ी से बनी बुद्ध प्रतिमा

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा को उनकी दो दिवसीय राजकीय यात्रा के दौरान चंदन की लकड़ी से बनी बुद्ध प्रतिमा भेंट की।

  • चंदन की लकड़ी से बनी इस मूर्ति में बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे 'ध्यान मुद्रा' में बैठे हुए दर्शाया गया है।

चंदन

  • परिचय: 
    • संतालम/सैंटालम एल्बम को आमतौर पर भारतीय चंदन के रूप में जाना जाता है, यह चीन, भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस में पाई जाने वाली शुष्क पर्णपाती वन प्रजाति है।
    • चंदन लंबे समय से भारतीय विरासत एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ है और विश्व के चंदन व्यापार में देश ने 85% का योगदान दिया। हालाँकि हाल में इसमें तेज़ी से गिरावट आई है।
  • विशेषता: 
    • इस उष्णकटिबंधीय पेड़ की ऊँचाई 20 मीटर तक होती है और इसकी लकड़ियाँ लाल होती हैं तथा इसकी छाल कई गहरे रंगों (गहरा भूरा, लाल तथा गहरा स्लेटी) की होती है
  • उपयोग: 
    • इसकी लकड़ी मज़बूत और टिकाऊ होती है, इसलिये इसका अधिकांश उपयोग किया जाता है।
    • भारतीय चंदन को आयुर्वेद की सबसे पवित्र जड़ी बूटियों में से एक माना जाता है।
  • भारत में वितरण: 
    • भारत में चंदन ज़्यादातर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में उगाया जाता है।
    • कर्नाटक को कभी-कभी 'गांधार गुड़ी' अथवा चंदन की भूमि भी कहा जाता है। चंदन पर नक्काशी की कला सदियों से कर्नाटक की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग रही है। इसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में देखी जा सकती है। राज्य ने संसाधनों का निरंतर प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये चंदन विकास बोर्ड की स्थापना की है।
    • IUCN रेड लिस्ट स्थिति: सुभेद्

बौद्ध धर्म में मुद्राएँ

  • बौद्ध धर्म में मुद्रा हस्त संकेत अथवा अवस्थाएँ हैं जिनका उपयोग ध्यान और अन्य अभ्यासों के दौरान किया जाता है ताकि मन को केंद्रित करने, ऊर्जा को नियंत्रित करने और बुद्ध की शिक्षाओं को प्राप्त करने में मदद मिल सके।
  • ध्यान मुद्रा: इस मुद्रा में हाथों को गोद में रखा जाता है, इसमें दाहिना हाथ बाएँ हाथ के ऊपर होता है और अँगूठे को स्पर्श करता है।
  • यह मुद्रा ध्यान, एकाग्रता और आंतरिक शांति की प्रतीक है। 
  • अंजलि मुद्रा: यह बौद्ध धर्म में उपयोग की जाने वाली सबसे आम मुद्रा है और इसमें हथेलियों को छाती के सामने एक साथ दबाया जाता है, जिसमें उँगलियाँ ऊपर की ओर संकेत करती हैं। 
  • यह सम्मान, अभिवादन और कृतज्ञता का प्रतीक है।  
  • वितर्क मुद्रा: इस मुद्रा को "शिक्षण मुद्रा" या "चर्चा मुद्रा" के रूप में भी जाना जाता है और इसमें दाहिने हाथ को ऊपर उठाने और अँगूठे एवं तर्जनी के माध्यम से वृत्त बनाना शामिल है।
  • यह ज्ञान के संचरण और बुद्ध की शिक्षाओं के संचार का प्रतीक है। 
  • वरद मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिना हाथ नीचे की ओर फैला होता है, जिसमें हथेली बाहर की ओर होती है। 
  • यह उदारता, करुणा और इच्छाओं को पूरा करने का प्रतीक है। 
  • अभय मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिने हाथ को कंधे की ऊँचाई तक ऊपर उठाना शामिल है, जिसमें हथेली बाहर की ओर होती है।
  • यह निडरता, सुरक्षा और नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक है।  
  • भूमिस्पर्श मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिने हाथ की उँगलियों से ज़मीन को छूना शामिल है, जबकि बायाँ हाथ गोद में रहता है। 
  • यह बुद्ध के ज्ञानोदय के क्षण को प्रदर्शित करता है और ज़मीन की तरफ संकेत पृथ्वी उनके ज्ञानोदय की साक्षी की प्रतीक है।
  • उत्तरबोधी मुद्रा: इस मुद्रा में दोनों हाथों को जोड़ कर हृदय के पास रखा जाता है और तर्जनी  उँगलियाँ एक-दूसरे को छूते हुए ऊपर की ओर होती हैं तथा अन्य उँगलियाँ अंदर की ओर मुड़ी होती हैं, जिससे त्रिभुज के आकार का निर्माण होता है।
  • यह मुद्रा ज्ञान और करुणा के संगम, पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व ऊर्जा के संतुलन तथा स्वयं के सभी पहलुओं के एकीकरण के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति का प्रतिनिधित्त्व करती है। 
  • धर्मचक्र मुद्रा: इसमें हाथों को हृदय के सामने रखा जाता है और प्रत्येक हाथ के अँगूठे और तर्जनी से एक वृत्त का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक हाथ की शेष तीन उँगलियाँ  ऊपर की ओर होती हैं, जो बौद्ध धर्म के त्रि-रत्नों- बुद्ध, धर्म (उनकी शिक्षाएँ) और संघ (अनुयायियों का समुदाय) का प्रतिनिधित्त्व करती हैं। अँगूठे और तर्जनी द्वारा निर्मित वृत्त धर्म चक्र का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • यह मुद्रा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र तथा बुद्ध की शिक्षाओं को इस चक्र से मुक्त होने के साधन के रूप में दर्शाती है। 
  • करण मुद्रा: इसमें बायाँ हाथ हृदय तक ऊपर लाया जाता है और हथेली आगे की ओर होती है। तर्जनी तथा छोटी उँगलियाँ सीधी ऊपर की ओर संकेत करती हैं, जबकि अन्य तीन उँगलियाँ हथेली की ओर मुड़ी हुई होती हैं।
  • यह मुद्रा अक्सर बुद्ध या बोधिसत्व के चित्रण में देखी जाती है, जिसे सुरक्षा और नकारात्मकता को दूर करने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि तर्जनी ज्ञान की ऊर्जा और बाधाओं को दूर करने की क्षमता का प्रतिनिधित्त्व करती है। 
  • ज्ञान मुद्रा: इसमें तर्जनी और अँगूठे को एक साथ लाकर एक वृत्त का निर्माण किया जाता है, जबकि अन्य तीन उँगलियों को बाहर की ओर रखा जाता है।
  • यह इशारा सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना की एकता और बुद्ध की शिक्षाओं के मध्य व्यावहारिक संबंध का प्रतिनिधित्त्व करता है। 
  • तर्जनी मुद्रा: इसमें तर्जनी उँगुली को ऊपर की ओर बढ़ाया जाता है, जबकि अन्य उँगुलियों को हथेली की ओर मोड़ा जाता है। तर्जनी मुद्रा, जिसे "भय के इशारे" के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसका उपयोग बुरी ताकतों या हानिकारक प्रभावों के खिलाफ चेतावनी या सुरक्षा के प्रतीक के रूप में किया जाता है।

नव भारत साक्षरता कार्यक्रम

हाल ही में सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 से 2026-27 तक पाँच वर्षों के दौरान 1037.90 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ कार्यान्वयन हेतु एक नई केंद्र प्रायोजित योजना "नव भारत साक्षरता कार्यक्रम” (New India Literacy Programme- NILP) शुरू किया है।

नव भारत साक्षरता कार्यक्रम

इस योजना के पाँच घटक हैं 

  • मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान
    • महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल
    • व्यावसायिक कौशल विकास
    • बुनियादी शिक्षा
    • शिक्षा जारी रखना 
  • लाभार्थियों की पहचान
    • लाभार्थियों की पहचान करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में सर्वेक्षकों द्वारा एक मोबाइल एप पर डोर-टू-डोर सर्वेक्षण किया जाता है।
    • गैर-साक्षर व्यक्ति भी मोबाइल एप के माध्यम से सीधे पंजीकरण करा सकते हैं। 
  • शिक्षण और सीखने के लिये स्वेच्छा जाहिर करना
    • यह योजना मुख्य रूप से शिक्षण और सीखने के लिये स्वयंसेवा पर आधारित है और स्वयंसेवक मोबाइल एप के माध्यम से पंजीकरण कर सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से कार्यान्वयन:
    • यह योजना मुख्य रूप से ऑनलाइन मोड के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है और प्रौद्योगिकी पर आधारित है।
    • शिक्षण एवं सीखने की सामग्री तथा संसाधन NCERT के दीक्षा मंच (DIKSHA Platform) पर उपलब्ध हैं और इन्हें मोबाइल एप के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है।
  • मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान का प्रसार:
    • बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक ज्ञान के प्रसार के लिये टीवी, रेडियो, सामाजिक चेतना केंद्र आदि जैसे साधनों का भी उपयोग किया जाता है।
  • पात्रता
    • 15 वर्ष से अधिक आयु के सभी निरक्षर इस योजना का लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं। 
  • NILP की आवश्यकता
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में देश के निरक्षरों की समग्र संख्या 25.76 करोड़ (पुरुष 9.08 करोड़, महिला 16.68 करोड़) है। 
    • वर्ष 2009-10 से 2017-18 के दौरान कार्यान्वित साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत साक्षर के रूप में प्रमाणित व्यक्तियों की प्रगति को ध्यान में रखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में भारत में लगभग 18.12 करोड़ वयस्क निरक्षर हैं। 
The document History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): March 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
399 videos|682 docs|372 tests
Related Searches

Extra Questions

,

practice quizzes

,

study material

,

pdf

,

video lectures

,

कला और संस्कृति): March 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Art & Culture (इतिहास

,

Free

,

History

,

History

,

ppt

,

Exam

,

Summary

,

shortcuts and tricks

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Art & Culture (इतिहास

,

MCQs

,

Sample Paper

,

Objective type Questions

,

mock tests for examination

,

Semester Notes

,

past year papers

,

कला और संस्कृति): March 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

कला और संस्कृति): March 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Important questions

,

Art & Culture (इतिहास

,

Viva Questions

,

History

;