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Economic Development (आर्थिक विकास): April 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सतत् पशुधन खेती हेतु तापीय दबाव का प्रबंधन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय खान ब्यूरो (Indian Bureau of Mines- IBM) ने ओडिशा में मैंगनीज़ के अवैध खनन और परिवहन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को चिह्नित किया है।

  • IBM, खान मंत्रालय के तहत एक बहु-अनुशासनात्मक सरकारी संगठन है, जो कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसपरमाणु खनिजों तथा लघु खनिजों के अलावा खानों के संरक्षण, खनिज संसाधनों के वैज्ञानिक विकास और पर्यावरण की सुरक्षा को बढ़ावा देने में लगा हुआ है।

IBM की चिंताएँ

  • ओडिशा भारत का एक खनिज समृद्ध राज्य है जहाँ देश का 96.12% क्रोम अयस्क, 51.15% बॉक्साइट रिज़र्व, 33.61% हेमेटाइट लौह अयस्क और 43.64% मैंगनीज़ है।
  • ओडिशा में खनन पट्टाधारकों द्वारा अपनी खदानों से मैंगनीज़ अयस्क को निम्न श्रेणी के रूप में पश्चिम बंगाल के व्यापारियों को भेजा जा रहा था , जिसे वे बाद में बिना किसी प्रसंस्करण के उच्च श्रेणी के रूप में बेचते थे।
  • ओडिशा में कुछ खनन कंपनियाँ खनन और परिवहन किये गए खनिजों की मात्रा को कम दर्शाने में शामिल हैं, साथ ही वे उचित रॉयल्टी और करों का भुगतान नहीं कर रही हैं।
  • ऐसे मुद्दों के पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और उन लोगों की आजीविका के लिये गंभीर परिणाम हो सकते हैं जो अपने भरण-पोषण हेतु प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। 
  • मैंगनीज़ अयस्क ग्रेड में कमी का मुद्दा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह अयस्क की गुणवत्ता और मूल्य को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार को राजस्व का नुकसान हो सकता है।
  • राज्य सरकार ने खनिजों के अवैध खनन और परिवहन में शामिल कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने तथा खनन कानूनों और विनियमों को सख्ती से लागू करने का आह्वान किया।
  • खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम की धारा 23C के अनुसार, राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने के लिये नियम बनाने का अधिकार है।

अवैध खनन क्या है? 

  • विषय: 
    • अवैध खनन भूमि या जल निकायों से आवश्यक परमिट, लाइसेंस या सरकारी प्राधिकरणों से नियामक अनुमोदन के बिना खनिजों, अयस्कों या अन्य मूल्यवान संसाधनों का निष्कर्षण है। 
    • इसमें पर्यावरण, श्रम और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन भी शामिल हो सकता है।
  • समस्याएँ: 
    • पर्यावरण का क्षरण: यह वनों की कटाई, मिट्टी के कटाव और जल प्रदूषण का कारण बन सकता है तथा इसके परिणामस्वरूप वन्यजीवों के आवासों का विनाश हो सकता है, जिसके गंभीर पारिस्थितिक परिणाम हो सकते हैं
    • खतरा: अवैध खनन में अकसर पारा और साइनाइड जैसे खतरनाक रसायनों का उपयोग शामिल होता है, जो खनिकों और आस-पास के समुदायों के लिये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। 
  • राजस्व की हानि:
    • इससे सरकारों को राजस्व का नुकसान हो सकता है क्योंकि खनिक उचित करों और रॉयल्टी का भुगतान नहीं कर सकते हैं।
    • इसके महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं, विशेषकर उन देशों में जहाँ प्राकृतिक संसाधन राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। 
  • मानव अधिकारों के उल्लंघन:
    • अवैध खनन के परिणामस्वरूप मानव अधिकारों का उल्लंघन भी हो सकता है, जिसमें बलात् श्रम, बाल श्रम और कमज़ोर आबादी का शोषण शामिल है। 

भारत में खनन से संबंधित कानून

  • भारत के संविधान की सूची II (राज्य सूची) की क्रम संख्या 23 की प्रविष्टि राज्य सरकार को अपनी सीमाओं के अंदर स्थित खनिजों के स्वामित्त्व के लिये बाध्य करती है।
  • सूची I (केंद्रीय सूची) की क्रम संख्या 54 पर प्रविष्टि केंद्र सरकार को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के अंदर खनिजों के मालिक होने का अधिकार देती है।
  • इसके अनुसरण में खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम 1957 बनाया गया था।
  • इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) खनिज अन्वेषण और निष्कर्षण को नियंत्रित करती है। यह संधि संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्देशित है तथा संधि का एक पक्षकार होने के नाते भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन में 75000 वर्ग किलोमीटर से अधिक बहुधात्त्विक पिंडों का पता लगाने का विशेष अधिकार प्राप्त है।

अवैध खनन के मुद्दों से निपटने के उपाय

  • कानूनी और नियामक ढाँचा:
    • अवैध खनन को रोकने में इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिये खनन से संबंधित विधिक एवं नियामक ढाँचे को मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है।
    • इसके लिये कानून को मज़बूत बनाकर, प्रवर्तन तंत्र में सुधार करके और अवैध खनन गतिविधियों के लिये दंडों में कुछ सख्त बदलाव किया जा सकता है।
  • जाँच एवं निगरानी:  
    • सैटेलाइट इमेजरी, ड्रोन और GPS जैसी आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से अवैध खनन गतिविधियों की निगरानी एवं पता लगाने में मदद मिल सकती है।
  • हितधारकों के बीच सहयोग:  
    • खनन कंपनियों को स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करना चाहिये ताकि उनकी चिंताओं को दूर किया जा सके, साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी गतिविधियाँ धारणीय हैं।
  • जागरूकता और शिक्षा:  
    • जागरूकता और शिक्षा अभियान पर्यावरण एवं समाज पर अवैध खनन के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद कर सकते हैं। यह लोगों को अवैध खनन गतिविधियों की सूचना अधिकारियों को देने हेतु प्रोत्साहित करेगा।
  • धारणीय खनन अभ्यास: 
    • धारणीय खनन प्रथाओं को बढ़ावा देने से अवैध खनन की मांग को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • इसमें खनन कंपनियों को ज़िम्मेदार खनिज साधन, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक ज़िम्मेदारी जैसी टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना शामिल है।

निष्कर्ष

  • अवैध खनन के मुद्दे को उजागर करने हेतु बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कानूनी और नियामक ढाँचे को मज़बूत करना, जाँच एवं निगरानी में सुधार करना, धारणीय खनन विधियों को बढ़ावा देना तथा जागरूकता व शिक्षा अभियान शुरू करना शामिल है।

भारत की निर्यात क्षमता

चर्चा में क्यों?

भारत में गुजरात का जामनगर शीर्ष निर्यात ज़िला है। इसने वित्त वर्ष 2023 (जनवरी तक) में मूल्य के संदर्भ में भारत के निर्यात में लगभग 24% की भागीदारी की है। 

  • गुजरात में सूरत और महाराष्ट्र में मुंबई उपनगर दूरी के आधार पर क्रमशः दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं, जिसने वित्त वर्ष 2023 में देश के निर्यात में लगभग 4.5% की भागीदारी की है।
  • शीर्ष 10 में अन्य ज़िले दक्षिण कन्नड़ (कर्नाटक), देवभूमि द्वारका, भरूच और कच्छ (गुजरात), मुंबई (महाराष्ट्र), कांचीपुरम (तमिलनाडु) एवं गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश) हैं।

भारत में निर्यात क्षेत्र की स्थिति

  • व्यापार की स्थिति:  
    • वस्तु व्यापार घाटा, जो कि निर्यात और आयात के बीच का अंतर है, वर्ष 2022-23 में 39% से अधिक बढ़कर रिकॉर्ड 266.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • वर्ष 2022-23 में व्यापारिक वस्तुओं का आयात 16.51% बढ़ा, जबकि व्यापारिक निर्यात 6.03% बढ़ा है।
    • हालाँकि सेवाओं में व्यापार अधिशेष के कारण कुल व्यापार घाटा वर्ष 2022-2023 में घटकर 122 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2022 में 83.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • भारत के प्रमुख निर्यात के क्षेत्र:  
    • इंजीनियरिंग वस्तुएँ: वित्त वर्ष 2022 में 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के साथ इन्होंने निर्यात में 50% की वृद्धि दर्ज की है।
    • वर्तमान में भारत में सभी तरह के पंपों, उपकरणों, कार्बाइड, एयर कंप्रेशर्स, इंजन और जनरेटर के विनिर्माण से संबद्ध बहुराष्ट्रीय निगम रिकॉर्ड उच्च स्तर पर कारोबार कर रहे हैं और अधिकाधिक उत्पादन इकाइयों को भारत में स्थानांतरित कर रहे हैं।
    • कृषि उत्पाद: महामारी के बीच खाद्य की वैश्विक मांग की पूर्ति के लिये सरकार के प्रोत्साहन से कृषि निर्यात में उछाल आया है। भारत 9.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के चावल का निर्यात करता है, जो कृषि जिंसों में सबसे अधिक है।
    • वस्त्र एवं परिधान: वित्त वर्ष 2012 में भारत का वस्त्र एवं परिधान निर्यात (हस्तशिल्प सहित) 44.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा जो पिछले वर्ष की तुलना में 41% वृद्धि दर्शाता है।
    • भारत सरकार मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (MITRA) पार्क स्कीम इस क्षेत्र को व्यापक रूप से बढ़ावा दे रही है।
    • फार्मास्यूटिकल्स और ड्रग्स: भारत मात्रा के हिसाब से दवाओं का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
    • भारत, अफ्रीका की जेनरिक आवश्यकताओं के 50% से अधिक, अमेरिका की  जेनरिक मांग के लगभग 40% और यूके की सभी दवाओं के 25% की आपूर्ति करता है।
  • निर्यात क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
    • वित्त तक पहुँच: निर्यातकों के लिये किफायती और समय पर वित्त तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
    • हालाँकि कई भारतीय निर्यातकों को उच्च ब्याज दरों, संपार्श्विक आवश्यकताओं और वित्तीय संस्थानों से विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) के लिये ऋण उपलब्धता की कमी के कारण वित्त प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • निर्यात का सीमित विविधीकरण: भारत का निर्यात कुछ क्षेत्रों में केंद्रित है, जैसे कि इंजीनियरिंग सामान, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स, जो इसे वैश्विक मांग में उतार-चढ़ाव एवं बाज़ार के जोखिमों के प्रति संवेदनशील बनाता है। 
    • निर्यात का सीमित विविधीकरण भारत के निर्यात क्षेत्र के लिये एक चुनौती पेश करता है क्योंकि यह वैश्विक व्यापार गतिशीलता को बदलने के लिये अपने लचीलेपन को सीमित कर सकता है
    • बढ़ता संरक्षणवाद और विवैश्वीकरण: विश्व भर के देश बाधित वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था (रूस-यूक्रेन युद्ध) और आपूर्ति शृंखला के शस्त्रीकरण के कारण संरक्षणवादी व्यापार नीतियों की ओर बढ़ रहे हैं, जो भारत की निर्यात क्षमताओं को कम कर रहा है।

आगे की राह 

  • अवसंरचना में निवेश: निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये बेहतर अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स महत्त्वपूर्ण हैं।  
  • भारत को परिवहन नेटवर्क, बंदरगाहों, सीमा शुल्क निकासी प्रक्रियाओं और निर्यात-उन्मुख बुनियादी ढाँचे जैसे निर्यात प्रोत्साहन क्षेत्रों तथा विशेष विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।  
  • यह परिवहन लागत को कम कर सकता है, आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार कर सकता है और निर्यात क्षमताओं को बढ़ावा दे सकता है।
  • कौशल विकास और प्रौद्योगिकी को अपनाना: निर्यातोन्मुखी उद्योगों में कुशल श्रम की उपलब्धता बढ़ाने के लिये कौशल विकास कार्यक्रम लागू किये जाने चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त स्वचालन, डिजिटलीकरण और उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों जैसे प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहन और बढ़ावा देने से निर्यात क्षेत्र में उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • संयुक्त विकास कार्यक्रमों की खोज: विवैश्वीकरण की लहर और धीमी वृद्धि के बीच निर्यात विकास का एकमात्र इंजन नहीं हो सकता है।
  • भारत मध्यम अवधि के विकास की बेहतर संभावनाओं के लिये अंतरिक्षसेमीकंडक्टरसौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अन्य देशों के साथ संयुक्त विकास कार्यक्रमों का भी पता लगा सकता है।

पशुधन खेती हेतु तापीय दबाव का प्रबंधन

चर्चा में क्यों?

केरल में तापीय दबाव सतत् पशुधन खेती हेतु एक गंभीर खतरा बन गया है।

  • केरल में 95% से अधिक मवेशी देशी किस्मों की तुलना में कम तापीय सहनशक्ति वाले संकर नस्ल के हैं। केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (Kerala Veterinary and Animal Sciences University- KVASU) ने तापीय दबाव से निपटने हेतु जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मवेशियों का चयन करने के लिये एक परियोजना शुरू की है।

तापीय दबाव और पशुधन पर इसका प्रभाव

  • परिचय: 
    • तापीय दबाव जानवरों के शारीरिक और चयापचय प्रतिक्रियाओं को संदर्भित करता है जो सामान्य सीमा से अधिक तापमान पर प्रभावी होता है।
    • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब जानवर का शरीर अपने सामान्य आंतरिक तापमान को बनाए रखने में असमर्थ होता है और इसके परिणामस्वरूप जानवर के स्वास्थ्य एवं उसकी उत्पादकता पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
  • कारण: 
    • तापीय दबाव के कई कारक हो सकते हैं, जैसे- परिवेश का उच्च तापमान, आर्द्रता, सौर विकिरण और उचित वेंटिलेशन या शीतलन तंत्र की कमी।
    • पशुपालन के संदर्भ में यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि इसके गंभीर आर्थिक और पशु कल्याण संबंधी परिणाम हो सकते हैं।
  • तापीय दबाव का प्रभाव: 
    • उत्पादकता में कमी: उच्च स्तर के तापीय दबाव से दुग्ध उत्पादन में गिरावट, चारे की कमी और पशुओं के वज़न में कमी आने जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इससे किसानों की उत्पादकता और आय में कमी आ सकती है।
    • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: यह पशुओं में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें श्वसन संबंधी समस्या, हीट स्ट्रोक और निर्जलीकरण शामिल हैं।
    • इससे बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि, प्रतिरक्षा में कमी आने के साथ-साथ उम्र भी प्रभावित हो सकती है।
    • आर्थिक नुकसान: पशुधन किसानों को तापीय दबाव और इससे उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य समस्याओं तथा उच्च मृत्यु दर के कारण आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
    • तापीय दबाव के प्रभावों को कम करने के लिये किसानों को अपने पशुओं को पंखे अथवा स्प्रिंकलर जैसे शीतलन तंत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु अतिरिक्त लागत का भर भी उठाना पड़ सकता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: तापीय दबाव के प्रभावों को कम करने के लिये पशुओं को शीतलता प्रदान करने के लिये जल के अत्यधिक उपयोग जैसी अस्थिर प्रथाओं का सहारा लेना पड़ सकता है जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

पशुओं को तापीय दबाव से बचाने के उपाय

  • प्रजनन प्रबंधन:  
    • तापीय दबाव के दौरान गायें गंभीर गर्मी के लक्षण कम प्रदर्शित करती हैं, इसलिये इन लक्षणों का अच्छे से पता लगाने के लिये एक बेहतर ताप पहचान कार्यक्रम की आवश्यकता है।
    • हमेशा यह सलाह दी जाती है कि प्रजनन हेतु बैलों का उपयोग में किये जाने के बजाय कृत्रिम गर्भाधान का इस्तेमाल करना चाहिये क्योंकि प्राकृतिक प्रजनन प्रक्रिया में बैल और गाय दोनों ही तापीय दबाव के कारण बाँझपन का शिकार हो सकते हैं।
  • शीतलन प्रणाली:  
    • पानी के छिड़काव की सुविधा के साथ ही पंखे लगाए जा सकते हैं लेकिन पानी के अत्यधिक छिड़काव से बचना चाहिये क्योंकि इससे ज़मीन अधिक गीली हो सकती है और पशुओं को मास्टिटिस तथा अन्य बीमारियों का खतरा हो सकता है। पशुशाला में हवा का बाधा मुक्त प्रवाह होना चाहिये।
  • आहार प्रबंधन:  
    • तापीय दबाव वाले पशुओं में प्रजनन और उत्पादक प्रदर्शन कम होने का खतरा अधिक होता है। 
    • उच्च गुणवत्ता वाला चारा और संतुलित आहार प्रदान किये जाने से तापीय दबाव के प्रभाव कुछ कम हो सकते हैं और पशु प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सकता है।  
  • ऊष्मा सहिष्णु पशुओं का चयन:  
    • गर्मी की सहनशीलता के लिये विशिष्ट आणविक आनुवंशिक मार्करों के आधार पर पशुओं का आनुवंशिक चयन गर्मी सहने वाले पशुओं की पहचान करके मवेशियों और भैंसों में गर्मी के तनाव को कम करने के लिये वरदान हो सकता है।

भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित पहल

  • वर्ष 2014-15 से 2020-21 (स्थिर मूल्यों पर) के दौरान पशुधन क्षेत्र 7.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा और कुल कृषि GVA  (सकल मूल्य वर्द्धित) में इसका योगदान वर्ष 2014-15 के 24.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 30.1 प्रतिशत रहा।
  • भारत में डेयरी क्षेत्र कृषि में सबसे बड़ा है। यह क्षेत्र  राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत के योगदान के साथ 80 मिलियन डेयरी किसानों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार देता है।

पशुधन क्षेत्र से संबंधित पहल

  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन
  • पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF)
  • राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम
  • राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन

आगे की राह  

  • सतत् पशुधन खेती को बढ़ावा देने में एक बहुआयामी दृष्टिकोण शामिल है जिसमें उचित पशु कल्याण प्रथाओं को लागू करना, टिकाऊ उत्पादन विधियों को अपनाना, अपशिष्ट और उत्सर्जन को कम करना, स्थानीय एवं क्षेत्रीय बाज़ारों को बढ़ावा देना तथा किसानों के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम सुनिश्चित करना शामिल है।

विदेश व्यापार नीति 2023

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री ने विदेश व्यापार नीति (FTP) 2023 लॉन्च की, जो 1 अप्रैल, 2023 से लागू हुई। 

  • FTP 2023 एक नीति दस्तावेज़ है जो निर्यात को सुगम बनाने वाली समय-परीक्षणित योजनाओं (Time-tested schemes facilitating exports) की निरंतरता  पर आधारित है, साथ ही यह एक ऐसा दस्तावेज़ है जो त्वरित व्यापार आवश्यकताओं के लिये उत्तरदायी है। 

FTP 2023 का विवरण 

  • परिचय: 
    • यह नीति निर्यातकों के साथ विश्वास एवं साझेदारी के सिद्धांतों पर आधारित है और इसका उद्देश्य निर्यातकों को व्यापार करने में आसानी की सुविधा हेतु पुन: इंजीनियरिंग तथा स्वचालन (Re-Engineering and Automation) की प्रक्रिया से है। 
  • मुख्य दृष्टिकोण चार स्तंभों पर आधारित है: 
    • छूट के लिये प्रोत्साहन
    • सहयोग के माध्यम से निर्यात संवर्द्धन - निर्यातक, राज्य, ज़िले, भारतीय मिशन
    • व्यापार करने में सुगमता, लेन-देन की लागत में कमी और ई-पहल।
    • उभरते क्षेत्र- ई-कॉमर्स निर्यात हब के रूप में ज़िलों का विकास करना एवं विशेष रसायन, जीव, सामग्री, उपकरण और प्रौद्योगिकी (SCOMET) नीति को सुव्यवस्थित करना।
  • लक्ष्य: 
    • सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत के समग्र निर्यात को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है, जिसमें वस्तु एवं सेवा क्षेत्रों का समान योगदान होगा।  
    • सरकार का लक्ष्य सीमा पार व्यापार में भारतीय मुद्रा के उपयोग को प्रोत्साहित करना भी है, जो जुलाई 2022 में RBI द्वारा पेश किये गए एक नए भुगतान निपटान ढाँचे से सहायता प्राप्त है। 
    • यह उन देशों के मामले में विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है जिनके साथ भारत व्यापार अधिशेष की स्थिति में है। 

FTP 2023 की मुख्य या महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ

  • पुनः इंजीनियरिंग प्रक्रिया और स्वचालन:
    • यह नीति निर्यात संवर्द्धन और विकास को प्रोत्साहन आधारित व्यवस्था से एक ऐसी व्यवस्था में परिवर्तित करने पर बल देती है जो प्रौद्योगिकी इंटरफेस एवं सहयोग के सिद्धांतों के आधार पर सुविधा प्रदान करती है।
    • शुल्क संरचनाओं और IT-आधारित योजनाओं में कमी से MSME तथा अन्य के लिये निर्यात लाभ प्राप्त करना आसान हो जाएगा।  
    • निर्यात उत्पादन के लिये शुल्क छूट योजनाएँ अब क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से एक नियम-आधारित IT प्रणाली के वातावरण में कार्यान्वित की जाएंगी, जिससे मैन्युअल इंटरफेस की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
  • निर्यात उत्कृष्टता वाले शहर (TEE):
    • मौजूदा 39 शहरों के अलावा चार नए शहरों, अर्थात् फरीदाबादमिर्ज़ापुर, मुरादाबाद और वाराणसी को TEE के रूप में नामित किया गया है।
    • TEEs को MAI योजना के तहत निर्यात संवर्द्धन निधियों तक पहुँच प्राप्त होगी और वे निर्यात संवर्द्धन पूंजीगत वस्तु (EPCG) योजना के तहत निर्यात पूर्ति हेतु सामान्य सेवा प्रदाता (CSP) लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे। 
  • निर्यातकों को मान्यता:
    • निर्यात प्रदर्शन के आधार पर 'स्थिति' के साथ मान्यता प्राप्त निर्यातक फर्में अब सर्वोत्तम प्रयास के आधार पर क्षमता निर्माण पहल में भागीदार होंगी। 
    • 'ईच वन टीच वन' (Each One Teach One) पहल के समान, 2-स्टार और उससे ऊपर की स्थिति धारकों को इच्छुक व्यक्तियों को एक मॉडल पाठ्यक्रम के आधार पर व्यापार से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा।  
    • स्थिति मान्यता मानदंडों को पुनः निर्धारित किया गया है ताकि अधिक निर्यातक फर्मों को 4 और 5-स्टार रेटिंग हासिल करने में सक्षम बनाया जा सके, जिससे निर्यात बाज़ारों में बेहतर ब्रांडिंग के अवसर पैदा हो सकें। 
  • ज़िलों से निर्यात को बढ़ावा देना:
    • FTP का उद्देश्य राज्य सरकारों के साथ साझेदारी का निर्माण करना और ज़िला स्तर पर निर्यात को बढ़ावा देने तथा ज़मीनी स्तर पर व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में तेज़ी लाने हेतु ज़िलों को निर्यात हब (DEH) पहल के रूप में आगे ले जाना है।निर्यात योग्य उत्पादों एवं सेवाओं की पहचान करने और ज़िला स्तर पर समस्याओं को हल करने का प्रयास क्रमशः राज्य और ज़िला स्तर पर एक संस्थागत तंत्र - राज्य निर्यात प्रोत्साहन समिति और ज़िला निर्यात प्रोत्साहन समिति के माध्यम से किया जाएगा।
    • पहचान किये गए उत्पादों और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने हेतु ज़िला विशिष्ट रणनीति को रेखांकित करते हुए प्रत्येक ज़िले के लिये ज़िला विशिष्ट निर्यात कार्ययोजना तैयार की जाएगी। 
  • SCOMET नीति को कारगर बनाना: 
    • भारत "निर्यात नियंत्रण" व्यवस्था पर अधिक ज़ोर दे रहा है क्योंकि निर्यात नियंत्रण व्यवस्था वाले देशों के साथ यह मज़बूत व्यापार एकीकरण सुनिश्चित कर रहा है।
    • SCOMET पर हितधारकों के बीच व्यापक पहुँच और समझ है, साथ ही भारत द्वारा की गई अंतर्राष्ट्रीय संधियों एवं समझौतों को लागू करने हेतु नीति व्यवस्था को और अधिक मज़बूत बनाया जा रहा है।
    • भारत में मज़बूत निर्यात नियंत्रण प्रणाली भारत से SCOMET के तहत नियंत्रित वस्तुओं/प्रौद्योगिकियों के निर्यात की सुविधा प्रदान करते हुए भारतीय निर्यातकों को दोहरे उपयोग वाली कीमती वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों तक पहुँच प्रदान करेगी।  
  • ई-कॉमर्स निर्यात को सुगम बनाना: 
    • वर्ष 2030 तक ई-कॉमर्स क्षेत्र में निर्यात की संभावना 200 से 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर  के बीच होने का अनुमान है।
    • FTP 2023 में भुगतान समाधान, बहीखाता पद्धति, वापसी नीति और निर्यात पात्रता जैसे संबंधित घटकों के साथ-साथ ई-कॉमर्स केंद्र बनाने का लक्ष्य और रोडमैप शामिल है।
    • FTP 2023 में शुरुआती बिंदु के रूप में कूरियर-आधारित ई-कॉमर्स निर्यात हेतु खेप-आधारित सीमा को 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दिया गया है।
    • निर्यातकों की प्रतिक्रिया के आधार पर इस सीमा को संशोधित किया जाएगा या अंततः हटा दिया जाएगा।
  • EPCG योजना के तहत सुविधा:
    • EPCG योजना जो निर्यात उत्पादन हेतु शून्य सीमा शुल्क पर पूंजीगत वस्तुओं के आयात की अनुमति देती है, को और अधिक युक्तिसंगत बनाया जा रहा है। शामिल  कुछ प्रमुख परिवर्तन हैं:
    • प्रधानमंत्री मेगा एकीकृत वस्त्र क्षेत्र और परिधान पार्क (Prime Minister Mega Integrated Textile Region and Apparel Park- PM MITRA) योजना को EPCG की सामान्य सेवा प्रदाता (Common Service Provider- CSP) योजना के तहत लाभ हेतु पात्र अतिरिक्त योजना के रूप में जोड़ा गया है।
    • डेयरी क्षेत्र को प्रौद्योगिकी के उन्नयन हेतु डेयरी क्षेत्र का सहयोग करने के लिये औसत निर्यात दायित्त्व बनाए रखने से छूट दी जाएगी। 
    • सभी प्रकार के बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन, वर्टिकल फार्मिंग उपकरण, अपशिष्ट जल उपचार और पुनर्चक्रण प्रणाली, वर्षा जल संचयन प्रणाली, वर्षा जल फिल्टर तथा  ग्रीन हाइड्रोजन को हरित प्रौद्योगिकी उत्पादों की सूची में जोड़ा गया है जो EPCG योजना के तहत अब कम निर्यात दायित्त्व आवश्यकता हेतु पात्र हैं। 
  • अग्रिम प्राधिकरण योजना के तहत सुविधा:
    • घरेलू टैरिफ क्षेत्र (DTA) इकाइयों द्वारा उपयोग की जाने वाली अग्रिम प्राधिकरण योजना निर्यात वस्तुओं के निर्माण के लिये कच्चे माल पर शुल्क मुक्त आयात की सुविधा प्रदान करती है और इसे EOU तथा SEZ योजना के समान स्तर पर रखा गया है।
    • निर्यात आदेशों के त्वरित निष्पादन की सुविधा के लिये स्व-घोषणा के आधार पर परिधान और वस्त्र क्षेत्र के निर्यात के लिये विशेष अग्रिम प्राधिकरण योजना का विस्तार किया गया।
    • इनपुट-आउटपुट मानदंड तय करने के लिये स्व-अनुमान योजना के लाभ वर्तमान में अधिकृत आर्थिक ऑपरेटरों के अतिरिक्त 2 स्टार और उससे अधिक की श्रेणी वाले धारकों के लिये विस्तारित किये गए हैं।
  • एमनेस्टी योजना: 
    • एमनेस्टी योजना के तहत पंजीकरण के लिये एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया जाएगा और निर्यातकों को इस योजना का लाभ उठाने के लिये छह महीने की विंडो उपलब्ध होगी।
    • इसमें प्राधिकरणों के निर्यात दायित्त्व में चूक से संबंधित सभी लंबित मामले  शामिल होंगे, इन्हें अपूर्ण निर्यात दायित्त्व के अनुपात में छूट प्राप्त सभी सीमा शुल्क के भुगतान पर नियमित किया जा सकता है।
  • पिछली व्यापार नीति: 
    • वर्ष 2015-2020 के लिये विदेश व्यापार नीति में वर्ष 2020 तक 900 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया था;
    • इस नीति और लक्ष्य को बढ़ाकर मार्च 2023 तक कर दिया गया था।
    • हालाँकि भारत द्वारा वर्ष 2021-22 के 676 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले वर्ष 2022-23 की समाप्ति पर 760-770 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल निर्यात किये जाने की संभावना है

वर्ष 2022 में पूर्वोत्तर शीर्ष पर्यटन स्थल

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2022 के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र में वृहद् स्तर (रिकॉर्ड) पर पर्यटन दर्ज किया गया, जिसमें 11.8 मिलियन से अधिक घरेलू पर्यटक तथा 100,000 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय  पर्यटक शामिल थे। 

पूर्वोत्तर में रिकॉर्ड पर्यटन का कारण

  • भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है तथा पहाड़ियों, पर्वतों एवं घाटियों सहित विविध परिदृश्यों का घर है।   
  • यह क्षेत्र अपेक्षाकृत अनावृत्त रहा है, लेकिन हाल में पर्यटन में वृद्धि के साथ अधिक लोग पूर्वोत्तर की सुंदरता और आकर्षण के प्रति आकर्षित हो रहे हैं।
  • यह भारत सरकार की डेस्टिनेशन नॉर्थ-ईस्ट इंडिया पहल का परिणाम है, जिसके तहत बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा दिया जा रहा है।

Economic Development (आर्थिक विकास): April 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

शीर्ष गंतव्य

  • अरुणाचल प्रदेश:
    • तवांग मठ: भारत के सबसे प्राचीन एवं सबसे बड़े बौद्ध मठों में से एक।
    • नामदफा राष्ट्रीय उद्यान: बाघ, उड़न गिलहरी और तेंदुओं सहित विविध वनस्पतियों एवं जीवों का घर।
  • असम: 
    • कामाख्या मंदिर: देवी कामाख्या को समर्पित एक श्रद्धेय हिंदू मंदिर।
    • काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान: यह यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल एवं एक सींग वाले गैंडों का घर है।
    • मजुली द्वीप: ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप एवं पूर्वोत्तर भारत में एक सांस्कृतिक केंद्र है।
  • मणिपुर: 
    • लोकटक झील: पूर्वोत्तर भारत की सबसे बड़ी ताज़े पानी की झील और तैरता हुआ केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान है।
    • इंफाल युद्ध कब्रिस्तान: द्वितीय विश्व युद्ध में जान गँवाने वालों के लिये एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल।
  • मेघालय:
    • नोहकलिकाइ जलप्रपात: भारत का सबसे ऊँचा जलप्रपात।
    • लिविंग रूट ब्रिज़: खासी और जयंतिया जनजातियों द्वारा बनाया गया एक अनूठा प्राकृतिक आश्चर्य।
  • मिज़ोरम: 
    • फवंगपुई राष्ट्रीय उद्यान: मिज़ोरम की सबसे  ऊँची चोटी और विविध प्रकार की वनस्पतियों एवं जीवों का घर है।
    • सोलोमन का मंदिर: स्थानीय पादरी द्वारा निर्मित एक अनूठा धार्मिक स्थल, जो सोलोमन के बाइबिल मंदिर जैसा दिखता है।
  • नगालैंड: 
    • हॉर्नबिल फेस्टिवल: इस त्योहार का नाम हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर रखा गया है, जो नगा जनजातियों के लोकगीत और परंपरा के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है।
    • जुकू घाटी: यह घाटी अपने आश्चर्यजनक परिदृश्य और विविध वनस्पतियों एवं जीवों के लिये प्रसिद्ध है। 
  • सिक्किम: 
    • त्सोमगो झील: स्थानीय लोगों द्वारा इसे एक पवित्र झील माना जाता है और इनके अनुसार इस झील के पानी में औषधीय गुण हैं। यह झील बर्फ के पहाड़ों से घिरी हुई है तथा पहाड़ों से पिघलने वाली बर्फ से पोषित होती है। 
    • रुमटेक मठ: यह सिक्किम का सबसे बड़ा प्रमुख बौद्ध मठ है। 
  • त्रिपुरा
    • नीरमहल पैलेस: रुद्रसागर झील के बीच में स्थित यह अनूठा पैलेस, हिंदू और इस्लामी स्थापत्य शैली के मिश्रण का एक अनूठा उदाहरण है। इसको अर्द्धचंद्राकार रूप में डिज़ाइन किया गया है जो तीन तरफ से जल से घिरा हुआ है।
    • उनाकोटी: शैलकृत मूर्तियों और नक्काशियों की विशेषता वाला यह एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। उनाकोटी में भगवान शिव की 30 फुट ऊँची प्रतिमा (सबसे बड़ी) है, जिसे उनाकोटिश्वर काल भैरव के नाम से जाना जाता है। इस स्थल पर कई झरने और प्राकृतिक चट्टानी संरचनाएँ हैं।

पूर्वोत्तर भारत में पर्यटन की संभावनाएँ

  • साहसिक पर्यटन: पूर्वोत्तर क्षेत्र में ट्रेकिंग, पर्वतारोहण, रिवर राफ्टिंग और पैराग्लाइडिंग सहित साहसिक पर्यटन के कई अवसर उपलब्ध हैं। 
  • गंगटोक, शिलॉन्ग आदि स्थलों की ओर विश्व भर से साहसिक गतिविधियों को पसंद करने वाले लोग आकर्षित हो सकते हैं।
  • जनजातीय समुदाय: पूर्वोत्तर क्षेत्र कई स्वदेशी जनजातीय समुदायों जैसे- मिस्मी, गारो, खासी, जयंतिया आदि का आवास स्थल है इनमें से प्रत्येक को इनकी अनूठी संस्कृति, भाषा और परंपराओं के लिये जाना जाता है।  
  • पर्यटन से इन समुदायों को अपनी विरासत का प्रदर्शन करने के साथ आय के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं।  
  • शीतकालीन पर्यटन: पूर्वोत्तर क्षेत्र में सर्दियों के महीनों के दौरान भारी हिमपात होता है जिससे यह शीतकालीन पर्यटन के लिये एक आदर्श स्थान बन जाता है। 
  • हालाँकि यह मौसम अपेक्षाकृत कम आकर्षण वाला रहता है तथा इसमें और भी विकास की संभावनाएँ हैं। 
  • सतत् पर्यटन: पर्यटन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये सतत् पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इसमें अपशिष्ट प्रबंधन के साथ पर्यावरण अनुकूल आवास को बढ़ावा देना और स्थानीय समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं का सम्मान करना शामिल है।  

पूर्वोत्तर भारत में पर्यटन से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ

  • लाभ:
    • पर्यटन द्वारा रोज़गार सृजन एवं आय प्रोत्साहन के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
    • इस क्षेत्र में अधिक पर्यटकों के आने से वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि होगी, जिससे यहाँ का विकास सुनिश्चित होगा। 
  • चुनौतियाँ: 
    • पर्यावरणीय प्रभाव: पर्यटन में वृद्धि के कारण प्रदूषण में वृद्धि हो सकती है, गंदगी एवं प्राकृतिक आवासों को नुकसान हो सकता है, जिसका पर्यावरण और वन्यजीवों पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • सांस्कृतिक प्रभाव: पर्यटन के कारण पारंपरिक सांस्कृतिक प्रथाओं और विश्वासों में परिवर्तन हो सकता है, साथ ही सांस्कृतिक कलाकृतियों एवं प्रथाओं का वस्तुकरण भी हो सकता है, जो स्थानीय समुदायों की सांस्कृतिक विरासत को नष्ट कर सकता है।
    • कनेक्टिविटी: पूर्वोत्तर के तात्कालिक ढाँचे में सुधार के बावजूद कनेक्टिविटी की समस्या बनी हुई है। इस क्षेत्र में बेहतर सड़क और हवाई संपर्क द्वारा सुगम यात्रा सुनिश्चित कर पर्यटकों की संख्या में वृद्धि की जा सकती है।

आगे की राह 

  • उत्तर-पूर्वी भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु इस क्षेत्र के आकर्षण, संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देकर प्रभावी विपणन अभियान विकसित किये जाने चाहिये।
  • अवसंरचना विकास और विविधीकरण पर्यटन प्रस्ताव अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन पर्यावरण एवं स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिये स्थायी पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • समुदाय-आधारित पर्यटन और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने से भी आय उत्पन्न करने और सेवाओं में सुधार करने में मदद मिल सकती है।

उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के ऋण में बढ़ोत्तरी

चर्चा में क्यों?

ग्रीन एंड इनक्लूसिव रिकवरी (DRGR) परियोजना हेतु ऋण राहत रिपोर्ट में कहा गया है कि उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EDME) का संप्रभु ऋण वर्ष 2008 से 2021 के बीच 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 178% बढ़कर 3.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो कि ग्लोबल साउथ में बढ़ते ऋण संकट का संकेत है। 

  • ऋण राहत प्रदान करने हेतु बनाए गए G20 के "कॉमन फ्रेमवर्क" में त्रुटियाँ पहचानी गई हैं, क्योंकि यह निजी और वाणिज्यिक लेनदारों सहित सभी लेनदारों को पटल पर लाने तथा ऋण राहत को विकास एवं जलवायु लक्ष्यों से जोड़ने में विफल रहा है

ऋण संकट के कारक और प्रभाव

  • EDME निम्न कारणों से कमजोर आर्थिक विकास का अनुभव कर रहे हैं:
    • कोविड-19 महामारी से धीमी रिकवरी,
    • खाद्यान और ऊर्जा की उच्च कीमतें, और
    • रूस-युक्रेन संघर्ष
    • बढ़ते जलवायु प्रभाव
    • मज़बूत होता अमेरिकी डॉलर और कई EMDE के मुद्राओं का मूल्यह्रास
  • कमज़ोर देशों पर प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने वाले देश सबसे महत्त्वपूर्ण ऋण संकट का सामना करते हैं।
    • उच्च ऋण सेवा भुगतान से देशों को ऋण चुकाने के लिये अपने विदेशी भंडार के प्रमुख हिस्से को खर्च करना होता है।
    • EDME को तत्काल ऋण राहत प्रदान करने से उनके ऋण भार में कमी होने के साथ इन्हें कम कार्बन उत्सर्जन एवं सामाजिक रूप से समावेशी भविष्य को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
  • प्रस्तावित समाधान:
    • इस रिपोर्ट में कॉमन फ्रेमवर्क में सुधार पर बल देने के साथ इस मुद्दे को हल करने हेतु तीन स्तंभों को प्रस्तावित किया गया है। 
    • पहले स्तंभ के रूप में किसी संकटग्रस्त देश को ऋण स्थिरता प्राप्त करने हेतु प्रेरित करने और विकास तथा जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में इसकी मदद करने के लिये सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा ऋण में महत्त्वपूर्ण कटौती किया जाना शामिल है।
    • दूसरे स्तंभ के रूप में निजी और वाणिज्यिक ऋणदाताओं द्वारा सार्वजनिक ऋणदाताओं की तरह ही ऋण में कटौती किया जाना शामिल है।  
    • शेष ऋण के लिये, सरकार को निजी लेनदारों हेतु एक प्रत्याभूत निधि द्वारा समर्थित नए बाॅण्ड जारी करने चाहिये।
    • अंतिम स्तंभ उन देशों के लिये है जो ऋण संकट के ज़ोखिम के अंतर्गत नहीं आते हैं और जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान ऋण प्रदान कर सकते हैं।
    • ऋण पुनर्संरचना: रिपोर्ट के अनुसार 61 देश जो ऋण संकट के उच्च ज़ोखिम में हैं, उन्हें 812 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है।
    • इसमें यह भी बताया गया है 55 सबसे अधिक ऋणग्रस्त देशों के लिये अगले पाँच वर्षों में कम से कम 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण निलंबित कर दिया जाना चाहिये।

RBI का ग्रीन डिपॉज़िट फ्रेमवर्क

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारत में ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम (GFS) विकसित करने के उद्देश्य से ग्राहकों के लिये ग्रीन डिपॉज़िट (हरित जमा) की पेशकश करने हेतु एक नए फ्रेमवर्क (ढाँचा) की घोषणा की है।

  • यह ढाँचा 1 जून, 2023 से लागू होगा।
  • ग्रीन डिपॉज़िट (हरित निक्षेप) निश्चित अवधि के लिये एक विनियमित इकाई (Regulated Entity-RE) द्वारा प्राप्त ब्याज-युक्त जमा को संदर्भित करता है, जिसमें ग्रीन फाइनेंस (हरित वित्तपोषण) के आवंटन हेतु निर्धारित आय होती है।

ढाँचे की प्रमुख विशेषताएँ

  • प्रयोज्यता:
    • यह ढाँचा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भुगतान बैंकों तथा आवास वित्त कंपनियों के साथ-साथ सभी जमा स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFCs) को छोड़कर लघु वित्त बैंकों सहित अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर लागू होता है। 
  • आवंटन:
    • REs को हरित गतिविधियों एवं परियोजनाओं की एक सूची हेतु ग्रीन डिपॉज़िट के माध्यम से संग्रहीत आय को आवंटित करने की आवश्यकता होगी जो संसाधन उपयोग में ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहित करते हैं, कार्बन उत्सर्जन एवं ग्रीनहाउस गैसों को कम करते हैं, जलवायु लचीलापन और/या अनुकूलन को बढ़ावा देते हैं तथा प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र एवं जैवविविधता में सुधार करते हैं। 
  • अपवर्ज़न: 
    • जीवाश्म ईंधन के नए या मौजूदा निष्कर्षण, उत्पादन और वितरण से जुड़ी परियोजनाओं हेतु ग्रीन फाइनेंसिंग उपलब्ध नहीं है, जिसमें सुधार तथा उन्नयन, परमाणु ऊर्जा, प्रत्यक्ष अपशिष्ट भस्मीकरण, शराब, हथियार, तंबाकू, गेमिंग या ताड़ तेल उद्योग, संरक्षित क्षेत्रों में उत्पन्न फीडस्टॉक का उपयोग करके बायोमास से ऊर्जा उत्पन्न करने वाली नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, लैंडफिल परियोजनाएँ या 25 मेगावाट से बड़े जलविद्युत संयंत्र शामिल हैं।  
  • वित्तपोषण ढाँचा: 
    • हरित जमा/ग्रीन डिपॉज़िट का प्रभावी आवंटन सुनिश्चित करने हेतु RE को बोर्ड द्वारा अनुमोदित वित्तपोषण ढाँचा (Financing Framework- FF) स्थापित करना चाहिये। ग्रीन डिपॉज़िट को केवल भारतीय रुपए में मूल्यवर्गित किया जाएगा।
    • वित्तीय वर्ष के दौरान RE द्वारा ग्रीन डिपॉज़िट के माध्यम से एकात्रित धनराशि का आवंटन स्वतंत्र तृतीय-पक्ष सत्यापन/आश्वासन के अधीन होगा, जो वार्षिक आधार पर किया जाएगा।

ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम

  • परिचय: 
    • GFS वित्तीय प्रणाली को संदर्भित करता है जो पर्यावरणीय रूप से स्थायी परियोजनाओं और गतिविधियों में निवेश का समर्थन एवं उन्हें सक्षम बनाता है।
    • इसमें कई प्रकार के वित्तीय उत्पाद शामिल हैं, जैसे कि ग्रीन बाॅण्ड, ग्रीन लोन, ग्रीन इंश्योरेंस और ग्रीन फंड जो पर्यावरण के अनुकूल विधियों एवं परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु तैयार किये गए हैं।
    • ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम का उद्देश्य एक ऐसी वित्तीय प्रणाली बनाना है जो कम कार्बन, संसाधन-कुशल और टिकाऊ अर्थव्यवस्था में संक्रमण में सहयोग करती है, जबकि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण एवं जैवविविधता क्षति जैसे पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े जोखिमों तथा अवसरों को भी शामिल करता है।
  • आवश्यकता: 
    • संसाधन जुटाने और हरित गतिविधियों/परियोजनाओं हेतु आवंटन में वित्तीय क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। भारत में ग्रीन फाइनेंस उत्तरोत्तर गति तथा लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है।
    • जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करते हुए और ग्रीनवाशिंग चिंताओं को दूर करते हुए GFS हरित गतिविधियों और परियोजनाओं के लिये ऋण प्रवाह में वृद्धि कर सकता है।
    • साथ ही यह भारत में पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव के लिये सतत् विकास को बढ़ावा दे सकता है।
  • भारतीय परिदृश्य: 
    • भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है और 'ग्रीन डील' इसी दिशा में एक कदम है।
    • ग्रीन डील ने डीकार्बोनाइज़ेशन में तेज़ी लाने के लिये ग्रीन फाइनेंस को एक सक्षमकर्त्ता के रूप में वर्गीकृत किया है। यह ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने के लिये सरकार और निजी संस्थाओं से पूंजी प्रवाह में वृद्धि की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
    • वर्ष 2016 में RBI ने स्थायी वित्तीय प्रणालियों की तर्ज़ पर UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) और भारत के सहयोग के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की थी।
    • यह रिपोर्ट भारत में वित्तीय प्रणालियों के विभिन्न पहलुओं और हरित वित्त/ग्रीन फाइनेंस में तेज़ी लाने में इसकी भूमिका का आकलन करती है।
    • 'परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड' स्कीम के ज़रिये देश के नीतिगत ढाँचे में कार्बन ट्रेडिंग की शुरुआत की गई है।
    • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार, वर्ष 2023 तक ग्रीन बाॅण्ड का बाज़ार दो ट्रिलियन डॉलर से अधिक का हो सकता है।

आगे की राह  

  • भारत में हरित अर्थव्यवस्था आशाजनक संकेतकों के साथ विस्तार कर रही है और बैंक सक्रिय रूप से स्थायी वित्त को बढ़ावा देने के साथ-साथ देश को न्यूनतम कार्बन, संसाधन-कुशल तथा टिकाऊ अर्थव्यवस्था की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • हरित परियोजनाओं का वित्तपोषण एक सतत् भविष्य प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
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