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Geography (भूगोल): April 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

अल-नीनो

चर्चा में क्यों?

कई जलवायु मॉडलों ने मई 2023 में अल-नीनो की घटना होने की संभावना जताई है। 

मार्च 2023 में रिकॉर्ड तीन वर्ष की ला निना घटना समाप्त हुई है और वर्तमान मे भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर का तापमान सामान्य है, जिसे तटस्थ चरण (Neutral Phase) के रूप में जाना जाता है।

आगामी अल-नीनो के संबंध में जलवायु मॉडल

  • भारत पर प्रभाव: 
    • भारत हेतु कमज़ोर मानसून: मई या जून 2023 में अल-नीनो के विकास से दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम कमज़ोर हो सकता है, जो भारत में होने वाली कुल वर्षा का लगभग 70% के लिये ज़िम्मेदार है साथ ही इस वर्ष पर भारत के अधिकांश किसान अभी भी निर्भर हैं।
    • हालाँकि, मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) और मानसून निम्न दाब प्रणाली जैसे उप-मौसमी कारक कुछ हिस्सों में अस्थायी रूप से वर्षा में वृद्धि कर सकते हैं जैसा कि वर्ष 2015 में देखा गया था।
  • गर्म तापमान: यह भारत और विश्वभर के अन्य क्षेत्रों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और प्रशांत द्वीप समूह में ग्रीष्म लहर और सूखे का कारण बन सकता है।
  • पश्चिम में भारी वर्षा: यह संयुक्त राज्य अमेरिका में कैलिफोर्निया जैसे अन्य क्षेत्रों में भारी वर्षा और बाढ़ का कारण बनता है और प्रवाल भित्तियों के विरंजन का कारण बन सकता है।
  • वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि: 2023 में अल-नीनो और 2024 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकता है।  
    • महासागरों का गर्म होना भी अल-नीनो घटना के प्रमुख प्रभावों में से एक है।  
    • यह तब है जब विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार सागरीय ऊष्मा पहले से ही बहुत अधिक है।
  • विगत् घटनाएँ - प्रभाव: 
    • वर्ष 2015-2016 में, भारत में व्यापक ग्रीष्म लहर की परिघटनाएँ  देखी गई थी, जिससे प्रत्येक वर्ष में लगभग 2,500 लोग मारे गए थे। 
    • विश्वभर में प्रवाल भित्तियों का विरंजन मुख्य चिंता का विषय हैं और ताप विस्तार के कारण समुद्र का स्तर 7 मिलीमीटर बढ़ गया है। 
    • ग्लोबल वार्मिंग के साथ, अल-नीनो वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष रहा था।  
    • वर्ष 1982-83 और 1997-98 की अल-नीनो घटनाएँ 20वीं सदी की सबसे तीव्र घटनाएँ थीं 
    • 1982-83 के दौरान, पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 9-18 डिग्री सेल्सियस अधिक था।  

ENSO का भारत पर  प्रभाव

  • भारत की जलवायु पर ENSO का प्रभाव मानसून के मौसम में सबसे अधिक स्पष्ट होता है। एल-नीनो घटना के दौरान भारत औसत से कम वर्षा का अनुभव करता है।
  • अल-नीनो भी तापमान में वृद्धि करता है, हीट वेव/ग्रीष्म लहर को बढ़ाता है और गर्मी से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। 
  • दूसरी ओर ला-नीना घटना के दौरान भारत औसत से अधिक वर्षा का अनुभव करता है।
  • इससे बाढ़ और भूस्खलन हो सकता है, फसलों और बुनियादी ढाँचे को नुकसान हो सकता है। हालाँकि ला-नीना से तापमान में कमी  भी आती है, जो हीट वेव/ग्रीष्म लहर से राहत प्रदान कर सकता है।

कोयला खनन को लेकर छत्तीसगढ़ में विरोध प्रदर्शन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ में अडानी एंटरप्राइज़ लिमिटेड (AEL) की कोयला खनन परियोजना द्वारा पर्यावरण और स्थानीय समुदायों पर इसके प्रभाव के कारण विवाद उत्पन हो गया है।

  • AEL, छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले के परसा ईस्ट और कांटा बसन कोयला ब्लॉकों में पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कोयले का खनन कर रहा है। इसका अनुबंध 30 वर्षों में प्रति वर्ष 15 मिलियन टन कोयला निकालने और आपूर्ति करने के लिये संचालन की अनुमति देता है।
  • छत्तीसगढ़ के हरिहरपुर, घाटबर्रा और फतेहपुर गाँवों में ज़्यादातर गोंड जनजाति के स्थानीय लोग एक वर्ष से भी अधिक समय से खनन के खिलाफ हरिहरपुर के प्रवेश द्वार पर धरना दे रहे हैं।

खनन कार्यों के प्रभाव

  • पर्यावरण पर प्रभाव:
    • इस क्षेत्र में खनन से हसदेव बेसिन में साल वनों के लगभग 8 लाख वृक्ष नष्ट हो जाएंगे। इससे हसदेव नदी का जलग्रहण क्षेत्र भी प्रभावित होगा।
    • जिस समय खनन शुरू हो रहा था, उस समय वृक्षों को बचाने का प्रयास किया गया था। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने वर्ष 2014 में खनन के पर्यावरणीय प्रभाव पर अध्ययन का आदेश देते हुए खनन लाइसेंस पर रोक लगा दी थी। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने NGT के आदेश को खारिज कर दिया और खनन कार्य शुरू हो गया।
  • स्थानीय लोगों पर प्रभाव: 
    • खनन परियोजना ने स्थानीय लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चूँकि खदान ने वन भूमि को कम कर दिया है।
    • हसदेव के वनों को बचाने के लिये 'हसदेव बचाओ अभियान' भी चलाया जा रहा है।
    • खदानों से मवेशियों के चरागाह नष्ट हो गए हैं, भूजल स्तर प्रभावित हुआ है और विस्फोटों से  बोरवेलों के आसपास की मृदा को ढीली हो गई है तथा लोग नलकूपों का उपयोग छोटे क्षेत्रों में खेती करने के लिये कर रहे हैं।  
    • खुदाई के बाद हरिहरपुर के पास बहने वाली नदी, जिसमें कभी वर्ष भर जल और मछलियाँ पाई जाती थीं,  का जलग्रहण क्षेत्र प्रभावित हुआ है जिससे यह पंकिल धारा में परिवर्तित हो गई है। 

कोयला

परिचय

यह एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है जो अवसादी शैलों के रूप में पाया जाता है और अक्सर इसे 'ब्लैक गोल्ड' के रूप में जाना जाता है। 

  • यह ऊर्जा का एक पारंपरिक स्रोत है और व्यापक रूप से उपलब्ध है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा और इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में तथा विद्युत उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। कोयले से निकलने वाली विद्युत् को ताप विद्युत् कहा जाता है। विश्व के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, भारत शामिल हैं। 

भारत में कोयले का वितरण

  • गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना): 
    • भारत में गोंडवाना कोयले का कुल भंडार में 98% और उत्पादन में 99% की हिस्सेदारी है।
    • यहाँ भारत के मेटलर्जिकल ग्रेड के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता वाला कोयला मिलता है।
    • यह दामोदर (झारखंड-पश्चिम बंगाल), महानदी (छत्तीसगढ़-ओडिशा), गोदावरी (महाराष्ट्र) और नर्मदा घाटियों में विस्तृत है।
  • टर्शियरी  कोयला क्षेत्र (15-60 मिलियन वर्ष पुराना):
    • इसमें कार्बन की मात्रा बहुत कम और नमी तथा सल्फर की मात्रा अधिक होती है।
    • टर्शियरी कोयला क्षेत्र मुख्य रूप से बाह्य-प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तक ही सीमित है।
    • इसके महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग क्षेत्र की हिमालय तलहटी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व केरल शामिल हैं। 

वर्गीकरण

  • एन्थ्रेसाइट (80-95% कार्बन सामग्री) सीमित मात्रा में जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है।
  • बिटुमिनस (60-80% कार्बन सामग्री) झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
  • लिग्नाइट (40-55% कार्बन सामग्री, उच्च नमी सामग्री) राजस्थान, लखीमपुर (असम) एवं तमिलनाडु में पाया जाता है।
  • पीट [इसमें 40% से कम कार्बन सामग्री और कार्बनिक पदार्थ (लकड़ी) से कोयले में परिवर्तन के पहले चरण में प्राप्त होता है]।

कोयला भंडार

  • भारत में कुल कोयला भंडार के मामले में शीर्ष राज्य झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं।
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