UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): April 2023 UPSC Current Affairs

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): April 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

अल्ट्रामैसिव ब्लैक होल

चर्चा में क्यों?  

खगोलविदों ने ग्रेविटेशनल लेंसिंग का उपयोग करते हुए एक अल्ट्रामैसिव ब्लैक होल की खोज की है, जहाँ एक पिंड का अग्र-भाग अपने पीछे दूर के पिंड से आने वाले प्रकाश को मोड़ता है। 

अल्ट्रामैसिव ब्लैक होल की खोज का महत्त्व

  • शोधकर्त्ताओ ने ब्रह्मांड के माध्यम से यात्रा करने वाली एक दूर की आकाशगंगा से प्रकाश का अनुकरण करने के लिये सुपरकंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग किया, प्रत्येक सिमुलेशन में एक अलग द्रव्यमान का ब्लैक होल पाया गया। 
  • एक सिमुलेशन में प्रकाश द्वारा अपनाया गया पथ हबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा कैप्चर की गई वास्तविक छवियों में देखे गए पथ से मेल खाता है, जिससे आकाशगंगा के अग्र-भाग में एक अल्ट्रामैसिव ब्लैक होल की खोज हुई। 
  • अल्ट्रामैसिव ब्लैक होल हमारे सूर्य के द्रव्यमान का 30 अरब गुना अधिक है।
  • सुदूर आकाशगंगाओं में निष्क्रिय ब्लैक होल का अध्ययन अब इस नई गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग तकनीक के कारण संभव हो सकता है।
  • हालाँकि वर्तमान में ज्ञात अधिकांश ब्लैक होल सक्रिय अवस्था में हैं जो अपने आसपास से पदार्थों को अपनी ओर खींच रहे हैं और प्रकाश, एक्स-रे तथा अन्य विकिरण के रूप में ऊर्जा उत्पन्न कर रहे हैं।

ब्लैक होल

  • परिचय:  
    • ब्लैक होल स्पेस-टाइम के वे क्षेत्र हैं जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना मज़बूत होता है कि कुछ भी, यहाँ तक कि प्रकाश भी उनके प्रभाव से बच नहीं सकता है।
    • ब्लैक होल अंतरिक्ष का एक ऐसा क्षेत्र होता है जहाँ पदार्थ अपने आप खत्म हो जाते हैं, कुछ बड़े तारों के विस्फोट के साथ टूटने से ब्लैक होल पैदा होते हैं और एक गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के साथ अविश्वसनीय रूप से घनी वस्तु का निर्माण करते है जो इतना मज़बूत होता है कि यह अपने चारों ओर के स्पेस-टाइम को परिवर्तित कर देता है।
  • ब्लैक होल के प्रकार: 
    • स्टेलर ब्लैक होल: यह एक विशाल तारे के निष्क्रिय होने से बनता है।
    • इंटरमीडिएट ब्लैक होल: इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का 100 से 100,000 गुना के बीच होता है।
    • सुपरमैसिव ब्लैक होल: इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लाखों से लेकर अरबों गुना तक होता है, जो हमारी अपनी मिल्की वे आकाशगंगा सहित अधिकांश आकाशगंगाओं के केंद्रों में पाया जाता है
  • महत्त्व: 
    • ब्रह्मांड और उसके विकास को समझने के लिये ब्लैक होल महत्त्वपूर्ण हैं।
    • वे आकाशगंगाओं के निर्माण एवं विकास के साथ पूरे ब्रह्मांड में पदार्थ के वितरण में भूमिका निभाते हैं।
    • ब्लैक होल का अध्ययन करने से हमें अंतरिक्ष, समय और गुरुत्त्वाकर्षण के मूलभूत गुणों को समझने में भी मदद मिल सकती है
  • गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग  
    • गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग एक ऐसी परिघटना है जब बड़े पिंड, जैसे कि एक विशाल आकाशगंगा या आकाशगंगाओं का समूह, एक गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का निर्माण करता है जो अपने पीछे के पिंडों के प्रकाश को बढ़ाता और विकृत करता है। 
    • विशाल पिंड और प्रेक्षक के संरेखण के आधार पर प्रकाश के इस विपथन से दूर की वस्तुएँ विकृत या आवर्धित दिखाई दे सकती हैं। 
    • गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग के प्रभाव की भविष्यवाणी सबसे पहले अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत में की थी और तब से खगोलविदों द्वारा इसका अवलोकन और अध्ययन किया जा रहा है।
  • निष्कर्ष
    • गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग का उपयोग कर अल्ट्रामैसिव ब्लैक होल की खोज ब्लैक होल के अध्ययन में एक रोमांचक विकास है। इस्तेमाल की गई तकनीक से दूर की आकाशगंगाओं में अधिक निष्क्रिय ब्लैक होल की खोज और अध्ययन हो सकता है।

3D प्रिंटेड क्रायोजेनिक इंजन और अंतरिक्ष क्षेत्र का निजीकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय निजी अंतरिक्ष वाहन कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस ने अपने भारी वाहन विक्रम- II हेतु विकसित अपने 3D प्रिंटेड  क्रायोजेनिक इंजन धवन- II का परीक्षण किया। 

  • इससे पहले नवंबर 2022 में स्काईरूट ने भारत का पहला निजी रूप से विकसित रॉकेट विक्रम- S लॉन्च किया था।यह अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण में भारत की विकास गाथा को शामिल करता है।

क्रायोजेनिक इंजन

  • परिचय:  
    • क्रायोजेनिक इंजन/क्रायोजेनिक चरण अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों का अंतिम चरण है जो क्रायोजेनिक्स का उपयोग करता है।
    • क्रायोजेनिक्स- अंतरिक्ष में भारी वस्तुओं को उठाने और रखने हेतु बेहद कम तापमान (-150 ℃ से नीचे) पर सामग्री के उत्पादन एवं व्यवहार का अध्ययन।
    • यह प्रोपेलेंट के रूप में तरल ऑक्सीजन (Liquid Hydrogen- LOx) और तरल हाइड्रोजन (LH2) का उपयोग करता है।
    • इसे विकसित करना सबसे कठिन है और अब तक केवल 6 देशों के पास यह प्रक्षेपण वाहन है- अमेरिका, चीन, रूस, फ्राँस, जापान और भारत।
    • GSLV और GSLV Mk III भारत के सबसे भारी लॉन्च वाहन हैं जिनके लॉन्च के ऊपरी चरण में क्रायोजेनिक ईंधन का उपयोग किया जाता है। 
  • लाभ:  
    • पृथ्वी पर संग्रहीत किये जाने वाले ठोस और तरल प्रणोदक रॉकेट चरणों की तुलना में यह अधिक प्रभावी है और अपने द्वारा उपयोग किये जा रहे प्रत्येक किलोग्राम प्रणोदक की खपत के साथ अधिक बल प्रदान करता है।
    • ठोस ईंधन चरण के बजाय क्रायोजेनिक ऊपरी चरण का उपयोग करने से रॉकेट की पेलोड वहन क्षमता बढ़ जाती है।
    • रॉकेट उद्योग में उपयोग किये जाने वाले अन्य ठोस, अर्द्ध-क्रायोजेनिक और हाइपरगोलिक प्रणोदक की तुलना में दोनों ईंधन (LOx और LH2) पर्यावरण के प्रति अनुकूल हैं।
  • नुकसान:  
    • बेहद कम तापमान पर प्रणोदकों के उपयोग और संबद्ध तापीय तथा संरचनात्मक समस्याओं के कारण ठोस/पृथ्वी पर भंडारण योग्य तरल प्रणोदक चरणों की तुलना में यह तकनीकी रूप से कहीं अधिक जटिल प्रणाली है।

अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण हेतु पहलें

  • IN-SPACE: 
    • भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के मामले में निजी कंपनियों को एक समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre-  IN-SPACE) की स्थापना की गई है।
    • यह मंच भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने अथवा अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भागीदारी की इच्छा रखने वाले निकायों और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): 
    • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का उद्देश्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये इसरो द्वारा किये गए अनुसंधान एवं विकास का उपयोग करना है।
  • भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):  
    • भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) शीर्ष, गैर-लाभकारी उद्योग निकाय है जो विशेष रूप से भारत में निजी और सार्वजनिक अंतरिक्ष उद्योग के सफल अन्वेषण, सहयोग एवं विकास की दिशा में कार्य कर रहा है।
  • स्काईरूट की विक्रम शृंखला:
    • विक्रम, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गयाविशेष रूप से छोटे उपग्रह बाज़ार हेतु तैयार किये गए मॉड्यूलर अंतरिक्ष प्रक्षेपण यानों की एक शृंखला है।
    • इसके 4 रूपांतर हैं: विक्रम Sविक्रमविक्रम II और विक्रम III
    • विक्रम S ने स्काईरूट को अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने वाली पहली भारतीय निजी कंपनी बनाया। 
    • विक्रम II रॉकेट वर्ष 2024 तक प्रक्षेपण के लिये तैयार हो जाएगा, जो कंपनी को दक्षिण एशिया का पहला निजी प्रक्षेपक बना देगा।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण का महत्त्व:
    • वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्तमान में लगभग 360.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है, हालाँकि भारत का हिस्सा अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का केवल ~ 2% है। उद्योग में निजी क्षेत्र सरकार के अंतरिक्ष कार्यक्रम हेतु विक्रेताओं/आपूर्तिकर्त्ताओं तक सीमित रहा है।  
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में गैर-सरकारी संस्थाओं (NGEs) की बढ़ी हुई भागीदारी वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की बाज़ार हिस्सेदारी को बढ़ावा देगी। 
    • निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार के भीतर लागत प्रतिस्पर्द्धी बनेगा, इस प्रकार अंतरिक्ष एवं अन्य संबंधित क्षेत्रों में कई रोज़गार सृजित होंगे
    • इससे भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में स्वयं को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।
    • निजी क्षेत्र नई प्रौद्योगिकियों, नवाचार और प्रबंधन कौशल का उपयोग कर सकते हैं, जिससे लागत अनुकूलन एवं अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों की दक्षता में वृद्धि होगी।  
    • यह अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सरकारी संसाधनों को भी मुक्त करेगा।

भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023

चर्चा में क्यों?  

भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था। यह नीति अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को संस्थागत बनाने और इसरो के उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने पर बल देती है।

भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 के प्रमुख प्रावधान

  • परिचय:  
    • इस नीति से अंतरिक्ष सुधारों को बल मिलने के साथ देश की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी उद्योग की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
  • भूमिकाओं का निर्धारण :  
    • इस नीति से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), अंतरिक्ष क्षेत्र के PSU न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) तथा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की भूमिकाओं एवं ज़िम्मेदारियों का निर्धारण किया गया है।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़ी रणनीतिक गतिविधियों का संचालन NSIL द्वारा मांग आधारित मोड पर किया जाएगा।
    • IN-SPACe, इसरो और गैर-सरकारी संस्थाओं के बीच इंटरफेस का कार्य करेगा।
    • इसरो नई तकनीकों, नई प्रणालियों के साथ अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • इसरो के मिशनों के परिचालन की ज़िम्मेदारी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड को दी जाएगी।  
  • निजी क्षेत्र का प्रवेश:  
    • इस नीति से अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भूमिका को प्रोत्साहन मिलेगा जिसमें उपग्रह निर्माण, रॉकेट और लॉन्च व्हीकल, डेटा संग्रह एवं प्रसार शामिल है।
    • काफी कम शुल्क पर निजी क्षेत्र इसरो की सुविधाओं का उपयोग कर सकेगा जिससे इस क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्रोत्साहन मिल सकता है। 
  • प्रभाव: 
    • भविष्य में यह नीति भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी को 2% से बढ़ाकर 10% करने में सहायक होगी।  

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

  • परिचय :   
    • लागत प्रभावी उपग्रहों के निर्माण के रूप में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को विश्व स्तर पर मान्यता मिली है और अब भारत विदेशी उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है।
    • निरस्त्रीकरण पर जिनेवा सम्मेलन के प्रति भारत अपनी प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण और नागरिक उपयोग का समर्थन करता है और अंतरिक्ष क्षमताओं या कार्यक्रमों के किसी भी शस्त्रीकरण का विरोध करता है।
    • ISRO विश्व की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है जिसकी सफलता की दर बहुत अधिक है।
    • 400 से अधिक निजी अंतरिक्ष कंपनियों की संख्या के मामले में भारत विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा देश है।
  • भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में तात्कालिक विकास:
    • रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी: भारत ने हाल ही में रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (DSRO) द्वारा समर्थित रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) की स्थापना की है, जिसे ‘किसी प्रतिद्वंद्वी की अंतरिक्ष क्षमता को कमतर करने, बाधित करने, नष्ट करने या धोखा दे सकने’ हेतु आयुध निर्माण का कार्य सौंपा गया है।
    • साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री ने डिफेंस एक्सपो 2022, गांधीनगर में रक्षा अंतरिक्ष मिशन का शुभारंभ किया।
    • उपग्रह निर्माण क्षमता में वृद्धि: वर्ष 2025 तक भारत का उपग्रह निर्माण बाज़ार 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। (वर्ष 2020 में यह 2.1 अरब अमेरिकी डॉलर था)
    • संवाद (SAMVAD) कार्यक्रम: युवाओं के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान को प्रोत्साहित करने और पोषित करने के लिये इसरो (ISRO) ने बंगलूरू में संवाद नामक अपना स्टूडेंट आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया है। 

वर्तमान में अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • व्यावसायीकरण पर विनियमन का अभाव: इंटरनेट सेवाओं (स्टारलिंक-स्पेसएक्स) और अंतरिक्ष पर्यटन के लिये निजी उपग्रह अभियानों के विकास के कारण बाह्य अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण तेज़ी से हो रहा है।
  • यह संभव है कि यदि कोई नियामक ढाँचा स्थापित नहीं किया जाता है, तो बढ़ते व्यावसायीकरण से भविष्य में एकाधिकार स्थापित हो सकता है।
  • अंतरिक्ष मलबे में वृद्धि: जैसे-जैसे बाह्य अंतरिक्ष अभियानों में वृद्धि होगी, अंतरिक्ष मलबे में भी वृद्धि होगी। चूँकि वस्तुएँ इतनी तेज़ गति से पृथ्वी की परिक्रमा करती हैं कि अंतरिक्ष के मलबे का एक छोटा सा टुकड़ा भी अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • चीन की अंतरिक्ष छलाँग: दूसरे देशों की तुलना में चीन का अंतरिक्ष उद्योग तेज़ी से बढ़ा है। इसने अपनी स्वयं की पारगमन प्रणाली बेईदोउ का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है।
  • इस बात की बहुत संभावना है कि चीन के बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) के सदस्य चीनी अंतरिक्ष क्षेत्र में योगदान देंगे या इसमें शामिल होंगे, जिससे चीन की वैश्विक स्थिति मज़बूत होगी और इससे बाह्य अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण हो सकता है। 
  • वैश्विक विश्वास में कमी: बाह्य अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के लिये शस्त्रों की होड़ विश्व भर में संदेह, प्रतिस्पर्द्धा और आक्रामकता का वातावरण उत्पन्न कर रहा है, जो संभावित रूप से संघर्ष का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
  • यह उपग्रहों की पूरी शृंखला के साथ-साथ वैज्ञानिक अन्वेषणों और संचार सेवाओं में शामिल लोगों को भी जोखिम में डाल देगा।

आगे की राह 

  • भारत की अंतरिक्ष संपत्ति का बचाव: भारत को अंतरिक्ष यान और मलबे सहित अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की ठीक से रक्षा करने के लिये विश्वसनीय और सटीक ट्रैकिंग क्षमताओं की आवश्यकता है।
  • NETRA परियोजना अंतरिक्ष में स्थापित एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है, यह भारतीय उपग्रहों के लिये मलबे और अन्य खतरों का पता लगाने की दिशा में एक अच्छा कदम है। 
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में स्थायी स्थिति:  भारत को अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग करने की पहल के साथ ही आने वाले समय में एक ग्रह रक्षा कार्यक्रम और संयुक्त अंतरिक्ष मिशन की योजना बनानी चाहिये। 
  • इसके अतिरिक्त गगनयान मिशन के साथ भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र में उपस्थिति पर पुनर्विचार के हिस्से के रूप में इसरो ने मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान पर ध्यान केंद्रित करना आरंभ कर दिया है।
  • स्पेस4वीमेन बाहरी अंतरिक्ष मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office for Outer Space Affairs- UNOOSA) की एक पहल है जो अंतरिक्ष उद्योग में लैंगिक समता और महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देती है। स्पेस4वीमेन को भारत में लागू किये जाने पर विचार किया जा रहा है।
  • भारत में ग्रामीण स्तर पर अंतरिक्ष जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना फायदेमंद हो सकता है और विशेष रूप से छात्राओं के लिये एक कॉलेज-इसरो इंटर्नशिप कॉरिडोर का भी निर्माण किया जा सकता है ताकि वे इस क्षेत्र में भावी संभावनाओं पर विचार कर सकें।
  • भारत की 750 विद्यालयी छात्राओं द्वारा तैयार किया गया AzaadiSAT इस दिशा में एक मज़बूत व महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • अंतरिक्ष स्वच्छता के लिये तकनीकी हस्तक्षेप: सेल्फ ईटिंग रॉकेट, सेल्फ वैनिशिंग सैटेलाइट्स और अंतरिक्ष के कचरे को एकत्रित करने के लिये रोबोटिक हथियार कुछ ऐसी तकनीकों का प्रयोग भारत को अंतरिक्ष अन्वेषणकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने क्वांटम प्रौद्योगिकी में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान और विकास में सहायता के लिये राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) को मंज़ूरी दी है।

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन

  • परिचय: 
    • इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा लागू किया जाएगा।
    • वर्ष 2023-2031 के लिये नियोजित मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास का बीजारोपण, पोषण और पैमाना है तथा क्वांटम प्रौद्योगिकी (Quantum Technology- QT) में एक जीवंत और अभिनव पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
    • इस मिशन के लॉन्च के साथ ही भारत अमेरिका, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, फ्राँस, कनाडा और चीन के बाद समर्पित क्वांटम मिशन वाला सातवाँ देश बन जाएगा।
  • NQM की मुख्य विशेषताएँ: 
    • यह 5 वर्षों में 50-100 भौतिक क्यूबिट्स और 8 वर्षों में 50-1000 भौतिक क्यूबिट्स के साथ मध्यवर्ती पैमाने के क्वांटम कंप्यूटर विकसित करने का लक्ष्य रखेगा।
    • 'क्यूबिट्स' या 'क्वांटम बिट्स' क्वांटम कंप्यूटरों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया की इकाइयाँ हैं, जैसे कि बिट्स (1 और 0) बुनियादी इकाइयाँ हैं जिनके द्वारा कंप्यूटर सूचना को संसाधित करते हैं
    • मिशन सटीक समय (परमाणु घड़ियों), संचार और नेविगेशन हेतु उच्च संवेदनशीलता वाले मैग्नेटोमीटर विकसित करने में मदद करेगा।
    • यह क्वांटम उपकरणों के निर्माण हेतु सुपरकंडक्टर्स, नवीन अर्द्धचालक संरचनाओं और टोपोलॉजिकल सामग्रियों जैसे क्वांटम सामग्रियों के डिज़ाइन एवं संश्लेषण का भी समर्थन करेगा।
  • मिशन निम्नलिखित को विकसित करने में भी मदद करेगा:
    • भारत के भीतर 2000 किमी. की सीमा में ग्राउंड स्टेशनों के बीच उपग्रह आधारित सुरक्षित क्वांटम संचार।
    • अन्य देशों के साथ लंबी दूरी की सुरक्षित क्वांटम संचार
    • 2000 किमी. से अधिक अंतर-शहर क्वांटम कुंजी वितरण
    • क्वांटम मेमोरी के साथ मल्टी-नोड क्वांटम नेटवर्क
  • क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शीर्ष शैक्षणिक और राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में चार थीमैटिक हब (T-Hubs) स्थापित किये जाएंगे:
    • क्वांटम गणना
    • क्वांटम संचार
    • क्वांटम सेंसिंग और मेट्रोलॉजी 
    • क्वांटम सामग्री और उपकरण
  • महत्त्व: 
    • यह QT के नेतृत्व में आर्थिक विकास को गति देगा और भारत को हेल्थकेयर तथा डायग्नोस्टिक्स, रक्षा, ऊर्जा एवं डेटा सुरक्षा से लेकर क्वांटम टेक्नोलॉजीज एंड एप्लीकेशन (QTA) के विकास में अग्रणी देशों में से एक बना देगा।
    • यह स्वदेशी रूप से क्वांटम-आधारित कंप्यूटर बनाने की दिशा में काम करेगा जो कहीं अधिक शक्तिशाली हैं और बेहद सुरक्षित तरीके से सबसे जटिल समस्याओं को हल करने में सक्षम है।
  • क्वांटम प्रौद्योगिकी:
    • क्वांटम प्रौद्योगिकी विज्ञान और इंजीनियरिंग का एक क्षेत्र है जो क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों से संबंधित है, जो कि सबसे छोटे पैमाने पर पदार्थ और ऊर्जा के व्यवहार का अध्ययन है। 
    • क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की वह शाखा है जो परमाणु और उप-परमाण्विक स्तर पर पदार्थ और ऊर्जा के व्यवहार का वर्णन करती है।
  • क्वांटम प्रौद्योगिकी के लाभ: 
    • बढ़ी हुई कंप्यूटिंग शक्ति: क्वांटम कंप्यूटर आधुनिक कंप्यूटरों की तुलना में बहुत तीव्र और अद्यतन हैं। इनमें जटिल समस्याओं को हल करने की भी क्षमता है जो वर्तमान में हमारी पहुँच से परे हैं।
    • बेहतर सुरक्षा: चूँकि ये क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों पर आधारित होते हैं, अतः क्वांटम एन्क्रिप्शन तकनीकें पारंपरिक एन्क्रिप्शन विधियों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं।
    • द्रुत संचार: क्वांटम संचार नेटवर्क पारंपरिक नेटवर्क की तुलना में द्रुत गति से और अधिक सुरक्षित रूप से सूचना प्रसारित कर सकते हैं, जिनमें पूरी तरह से अप्राप्य (Unhackable) संचार की क्षमता होती है।
    • उन्नत AI: क्वांटम मशीन लर्निंग एल्गोरिदम संभावित रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल के अधिक कुशल और सटीक प्रशिक्षण को सक्षम कर सकते हैं।
    • बेहतर संवेदन और मापन: क्वांटम सेंसर पर्यावरण में बेहद छोटे बदलावों का पता लगा सकते हैं जिससे वे चिकित्सा निदान, पर्यावरण निगरानी और भूवैज्ञानिक अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में उपयोगी हों। 
  • क्वांटम प्रौद्योगिकी का नुकसान: 
    • महँगी: प्रौद्योगिकी के लिये विशेष उपकरणों और सामग्रियों की आवश्यकता होती है जो इसे पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक महंँगी बनाती हैं।
    • सीमित अनुप्रयोग: वर्तमान में क्वांटम तकनीक केवल विशिष्ट अनुप्रयोगों जैसे- क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम संचार के लिये उपयोगी है।
    • पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता: क्वांटम प्रौद्योगिकी पर्यावरणीय हस्तक्षेप, जैसे- तापमान परिवर्तन, चुंबकीय क्षेत्र और कंपन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
    • क्यूबिट्स अपने परिवेश से आसानी से बाधित हो जाते हैं जिसके कारण वे अपने क्वांटम गुणों को खो सकते हैं और गणना में गलतियाँ कर सकते हैं।
    • सीमित नियंत्रण: क्वांटम सिस्टम को नियंत्रित और इसमें किसी प्रकार का बदलाव करना मुश्किल है।
  • क्वांटम-संचालित AI परिणाम अनपेक्षित हो सकते हैं:
    • क्वांटम-संचालित AI परिणाम अनपेक्षित हो सकते हैं क्योंकि वे उन सिद्धांतों पर काम करते हैं जो पारंपरिक कंप्यूटिंग से मौलिक रूप से भिन्न हैं।
  • निष्कर्ष: 
    • कुल मिलाकर क्वांटम प्रौद्योगिकी में अपार संभावनाएँ हैं, परंतु अभी भी ऐसी कई चुनौतियाँ हैं जिन्हें व्यापक रूप से अपनाने से पहले दूर किये जाने की आवश्यकता है।

LockBit रैनसमवेयर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में LockBit रैनसमवेयर द्वारा Mac उपकरणों को लक्षित करने का मामला सामने आया है।

  • इससे पहले जनवरी 2023 में कथित तौर पर ब्रिटेन की डाक सेवाओं पर साइबर हमले के पीछे LockBit गैंग का हाथ था, जिससे अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग बाधित हो गई थी।
  • रैनसमवेयर एक प्रकार का मैलवेयर है जो कंप्यूटर डेटा को हाईजैक कर लेता है और उस डेटा को वापस बहाल करने के बदले फिरौती (आमतौर पर बिटकॉइन में) की मांग करता है।

LockBit रैनसमवेयर

  • परिचय:
    • LockBit, जिसे पहले "ABCD" रैनसमवेयर के रूप में जाना जाता था, एक प्रकार का कंप्यूटर वायरस है जो किसी के कंप्यूटर में प्रवेश कर महत्त्वपूर्ण फाइलों को एन्क्रिप्ट करता है ताकि उन्हें एक्सेस न किया जा सके।
    • यह वायरस पहली बार सितंबर 2019 में पाया गया था और इसे “क्रिप्टो वायरस” कहा जाता है क्योंकि यह पीड़ित की फाइल को डिक्रिप्ट करने के लिये क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान की मांग करता है।
    • LockBit का उपयोग आमतौर पर उन कंपनियों या संगठनों पर हमला करने के लिये किया जाता है जो अपनी फाइलों को वापस पाने के लिये बहुत अधिक कीमत देने के लिये तैयार होते हैं।
    • इस संबंध में डार्क वेब पर एक वेबसाइट है जिसमें उन सदस्यों और पीड़ितों का विवरण होता है जो भुगतान करने से इनकार करते हैं।
    • LockBit का उपयोग यू.एस., चीन, भारत, यूक्रेन और यूरोप सहित कई अलग-अलग देशों में कंपनियों को लक्षित करने के लिये किया गया है।
  • कार्य प्रणाली:
    • यह अपनी हानिकारक (नुकसान पहुँचाने वाली) फाइलों को हानिरहित छवि वाली फाइलों की तरह बनाकर छुपाता है। LockBit भरोसेमंद होने का नाटक कर लोगों को कंपनी के नेटवर्क तक पहुँच प्रदान करने के लिये उन्हें झाँसा देता है।
    • एक बार सिस्टम में प्रवेश करने के बाद LockBit कंपनी को उसकी फाइलों को पुनर्प्राप्त करने में मदद करने वाली सभी सुविधाओं को अक्षम कर देता है और सभी फ़ाइलों को इस प्रकार प्रबंधित करता है कि उन्हें किसी विशेष कुंजी के बिना खोला नही जा सकता जो केवल LockBit गिरोह के पास होती है।
    • इससे प्रभावित व्यक्ति/संस्था के पास LockBit गिरोह से संपर्क करने और डेटा के लिये भुगतान करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। इस डेटा को ये गिरोह डार्क वेब पर बेच सकते हैं भले ही उन्हें इसका भुगतान किया जाए अथवा नहीं।
  • LockBit गैंग:
    • LockBit गैंग/गिरोह साइबर अपराधियों का एक समूह है जो धन की वसूली के लिये सर्विस मॉडल के रूप मे रैनसमवेयर का उपयोग करता है।
    • वे इस प्रकार के हमले किसी के आदेश पर करते हैं जिसके लिये उन्हें भुगतान प्राप्त होता है और फिर भुगतान राशि को अपनी टीम और सहयोगियों में बाँट लेते हैं।
    • वे अत्यधिक कुशल होते हैं और पकड़ में आने से बचने के लिये रूसी व्यवस्था अथवा स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल ( Commonwealth of Independent States) पर हमला नहीं करते हैं।

LockBit द्वारा mac OS को लक्षित करने का कारण

  • LockBit अपने हमलों के दायरे का विस्तार करने और संभावित रूप से अपने वित्तीय लाभ को बढ़ाने के तरीके के रूप में mac OS को लक्षित कर रहा है।
  • हालाँकि ऐतिहासिक रूप से रैनसमवेयर ने मुख्य रूप से विंडोज़, लाइनक्स और वीएमवेयर ESXi सर्वरों को लक्षित किया है, यह अब mac OS के लिये एन्क्रिप्टर्स का परीक्षण कर रहा है।
  • ऐसा पाया गया है कि वर्तमान एन्क्रिप्टर्स पूरी तरह से चालू नहीं हो पाए हैं लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये समूह mac OS को लक्षित करने के लिये सक्रिय रूप से एक पृथक उपकरण/तकनीक विकसित कर रहे हैं।
  • इन सभी का उद्देश्य विभिन्न प्रणालियों/सिस्टम्स को लक्षित करके रैनसमवेयर ऑपरेशन की सहायता से अधिक पैसा वसूलना है।

LockBit रैनसमवेयर से बचाव

  • मज़बूत पासवर्ड:
    • खाता सुरक्षा का उल्लंघन प्रायः कमज़ोर पासवर्ड के कारण होता है क्योंकि हैकर्स इसे आसानी से अनुमान लगा सकता है या एल्गोरिद्म टूल को क्रैक कर सकता है। अतः सुरक्षा के लिये मज़बूत पासवर्ड चुनें जो लंबा होने के साथ ही उसमें अलग-अलग तरह के कैरेक्टर हों।
  • बहु-कारक प्रमाणीकरण:
    • ब्रूट फोर्स अटैक को रोकने हेतु अपने सिस्टम में लॉग इन करते समय अपने पासवर्ड के अलावा बायोमेट्रिक्स (जैसे- फिंगरप्रिंट या चेहरे की पहचान) या वास्तविक USB कुंजी प्रमाणक का उपयोग करना चाहिये।
    • ब्रूट फोर्स अटैक एक प्रकार का साइबर हमला है जहाँ हमलावर वर्णों के विभिन्न संयोजनों को बार-बार आज़माकर एक पासवर्ड का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं जब तक कि उन्हें सही पासवर्ड नहीं मिल जाता।
  • खाता अनुमति का पुनर्मूल्यांकन:
    • सुरक्षा जोखिमों को कम करने हेतु उपयोगकर्त्ता अनुमति पर कड़े प्रतिबंध लगाना महत्त्वपूर्ण है। यह विशेष रूप से दूसरे छोर पर (Endpoint) उपयोगकर्त्ताओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले संसाधनों एवं प्रशासनिक पहुँच वाले IT खातों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • साथ ही यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वेब डोमेन, सहयोगी प्लेटफाॅर्म, वेब मीटिंग सेवाएँ और एंटरप्राइज़ डेटाबेस सभी सुरक्षित हों।
  • तंत्र-व्यापी बैकअप:
    • स्थायी डेटा हानि से बचने हेतु अपने महत्त्वपूर्ण डेटा का ऑफलाइन बैकअप बनाना महत्त्वपूर्ण है।
    • यह सुनिश्चित करने हेतु समय-समय पर बैकअप बनाकर अपने सिस्टम की अप-टू-डेट कॉपी सुनिश्चित करना। किसी मैलवेयर से संक्रमित होने की स्थिति में एक स्वच्छ बैकअप चुनने में सक्षम होने हेतु कई बैकअप साइट्स तथा उन्हें बदलने का विकल्प खुला रखना चाहिये।

AI और चैटबॉट्स पर नियमन करने वाले देश

चर्चा में क्यों?

व्यक्तिगत डेटा का संग्रह और बच्चों को AI चैटबॉट तक पहुँचने से रोकने के लिये सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति के कारण इटली ने हाल ही में चैटजीपीटी पर प्रतिबंध लगा दिया है।

AI और चैटबॉट्स को विनियमित करने वाले अन्य देश

  • भारत: 
    • नीति आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रिस्पॉन्सिबल एआई फॉर ऑल पर राष्ट्रीय रणनीति जैसे कुछ मार्गदर्शक दस्तावेज़ जारी किये हैं। 
    • सामाजिक और आर्थिक समावेशन, नवाचार एवं विश्वास पर ज़ोर देता है।
  • यूरोपीय संघ:
    • AI के लिये एक सामान्य नियामक ढाँचा पेश करने हेतु प्रस्तावित कानून को यूरोपीय  AI अधिनियम कहा जाता है।
    • AI अधिनियम जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) जैसे अन्य कानूनों के साथ मिलकर कार्य करेगा।
    • यह कथित जोखिमों के आधार पर विभिन्न AI उपकरणों, विभिन्न दायित्त्वों और पारदर्शी आवश्यकताओं को लागू करता है।
    • सामान्य प्रयोजन  के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रणाली श्रेणी के तहत चैटजीपीटी शामिल हो सकता है, यह ऐसे उपकरणों का वर्णन करता है जो कई कार्य कर सकते हैं।
  • यूनाइटेड किंगडम: 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के लिये मौजूदा नियमों के कार्यान्वयन हेतु विभिन्न क्षेत्रों में नियामकों से परामर्श लेते हुए विभिन्न दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया। 
    • कंपनियों द्वारा पालन किये जाने वाले पाँच सिद्धांतों को रेखांकित करते हुए एक श्वेतपत्र प्रकाशित किया गया, जिसमें सुरक्षा और मज़बूती; पारदर्शिता एवं व्याख्यात्मकता; निष्पक्षता; जवाबदेही तथा शासन एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता व निवारण शामिल है। 
  • चीन: 
    • हालाँकि चीन ने आधिकारिक तौर पर चैटजीपीटी को ब्लॉक नहीं किया है, ओपनएआई (OpenAI) उपयोगकर्त्ताओं को देश में चैटबॉट के लिये साइनअप करने की अनुमति नहीं देता है। 
    • ओपनएआई (OpenAI) रूस, उत्तर कोरिया, मिस्र, ईरान, यूक्रेन और कुछ अन्य भारी इंटरनेट सेंसरशिप वाले अन्य देशों के उपयोगकर्त्ताओं को भी ब्लॉक करता है। 

AI सॉफ्टवेयर और चैटबॉट्स से संबंधित उभरती चिंताएँ

  • गोपनीयता: 
    • प्रशिक्षण AI मॉडल के लिये बड़ी मात्रा में डेटा तक पहुँच की आवश्यकता होती है, जिसमें व्यक्तिगत और संवेदनशील जानकारी शामिल हो सकती है। 
    • इस बात का जोखिम है कि इस डेटा का उपयोग अनैतिक उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है, जैसे- लक्षित विज्ञापन या राजनीतिक हेर-फेर के लिये।
  • उत्तरदायित्त्व: 
    • चूँकि AI मॉडल चित्र, ऑडियो या टेक्स्ट जैसी नई सामग्री/कंटेंट तैयार कर सकते हैं, इसका उपयोग नकली समाचार अथवा अन्य दुर्भावनापूर्ण सामग्री उत्पन्न करने के लिये किया जा सकता है और इसके आउटपुट के लिये ज़िम्मेदार कारक का पता लगाना कठिन हो सकता है।
    • इससे उत्तरदायित्त्व संबंधी नैतिक दुविधा उत्पन्न हो सकती है।
  • स्वचालन और रोज़गार में कमी: 
    • AI कई प्रक्रियाओं को स्वचालित करने में सक्षम होता है, इससे अनेक संबद्ध क्षेत्रों में कुशल लोगों की नौकरी का विस्थापन हो सकता है या यूँ कहें की रोज़गार छिन सकता है।
    • यह नौकरी के विस्थापन के लिये AI के उपयोग की नैतिकता और श्रमिकों तथा समाज पर संभावित प्रभाव पर प्रश्न उठाता है। 

निष्कर्ष

AI मॉडल का ज़िम्मेदारीपूर्ण और नैतिक तरीके से उपयोग सुनिश्चित करने के लिये विनियम एवं मानक स्थापित किये जाने चाहिये। AI मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिये उपयोग किया जाने वाला डेटा नैतिक तथा निष्पक्ष होना चाहिये क्योंकि ये मॉडल मात्र उतने प्रभावी होते हैं जितने डेटा के आधार पर उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। 
इसमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि प्रशिक्षण के लिये उपयोग की जाने वाली सूचना इस प्रकार एकत्रित और लागू की जाए जो लोगों की गोपनीयता का सम्मान करती हो तथा पूर्वाग्रहों से मुक्त हो। 

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