UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): June 2023 UPSC Current Affairs

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): June 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

रैपिड डिवाइस चार्जिंग के लिये पेपर-बेस्ड सुपरकैपेसिटर

चर्चा में क्यों 

गुजरात ऊर्जा अनुसंधान और प्रबंधन संस्थान (GERMI) के वैज्ञानिकों ने पेपर-बेस्ड सुपरकैपेसिटर के विकास के साथ ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकी में एक अभूतपूर्व सफलता हासिल की है।

  • समुद्री शैवाल से प्राप्त यह अत्याधुनिक सुपरकैपेसिटर हल्का, बायोडिग्रेडेबल और मात्र 10 सेकंड के अंदर डिवाइस को पूरी तरह से चार्ज करने में सक्षम जैसी उल्लेखनीय विशेषताओं का दावा करता है।

पेपर-बेस्ड सुपरकैपेसिटर

  • परिचय
    • GERMI शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित पेपर-बेस्ड सुपरकैपेसिटर अपनी तरह का सबसे पतला और सबसे हल्का सुपरकैपेसिटर है
    • समुद्री शैवाल से प्राप्त सेलुलोज़ नैनोफाइबर के लाभ से टीम ने सफलतापूर्वक एक एनोडिक पेपर सुपरकैपेसिटर बनाया जो असाधारण लचीलापन (Tensile Strength), प्रदर्शन और लागत-प्रभावशीलता प्रदर्शित करता है
  • अनुप्रयोग और व्यावसायिक संभावनाएँ:
    • इस नवोन्वेषी सुपरकैपेसिटर के कई अनुप्रयोग हैं, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, मेमोरी बैकअप सिस्टम, एयरबैग, भारी मशीनरी और इलेक्ट्रिक वाहन शामिल हैं।
    • परिणामस्वरूप यह उच्च-प्रदर्शन ऊर्जा भंडारण समाधान चाहने वाले उद्योगों के लिये एक आकर्षक व्यावसायिक संभावना प्रस्तुत करता है।
    • प्रौद्योगिकी की पर्यावरण-अनुकूल प्रकृति इसे निर्माताओं और उपभोक्ताओं दोनों के लिये एक आकर्षक विकल्प बनाती है
  • समुद्री सेलुलोज़ की क्षमता
    • पेपर सुपरकैपेसिटर के उल्लेखनीय गुण समुद्री शैवाल से प्राप्त समुद्री सेलुलोज़-आधारित सामग्री के कारण हैं।
    • यह सामग्री विभिन्न स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में एकीकरण की अपार संभावनाएँ रखती है।
    • इसके अतिरिक्त समुद्री शैवाल की खेती तटीय समुदायों के लिये राजस्व के स्रोत के रूप में काम कर सकती है, जिससे आर्थिक अवसर और सतत् विकास हो सकता है।

समुद्री शैवाल

  • परिचय
    • समुद्री शैवाल मैक्रोएल्गी हैं जो चट्टान या अन्य सब्सट्रेट से जुड़े होते हैं और तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
    • उन्हें उनकीके रंजकता के आधार पर क्लोरोफाइटा (हरा), रोडोफाइटा (लाल) और फियोफाइटा (भूरा) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
      • उनमें से क्लोरोफाइटा में अधिक संभावित घटक कार्बोहाइड्रेटलिपिडप्रोटीन और बायोएक्टिव यौगिक होते हैं।
  • महत्त्व
    • पोषण मूल्यसमुद्री शैवाल विटामिनखनिज और आहार फाइबर सहित आवश्यक पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं
    • औषधीय प्रयोजन के लियेकई समुद्री शैवालों में सूजनरोधी और रोगाणुरोधी एजेंट होते हैं। कुछ समुद्री शैवालों में शक्तिशाली कैंसर से लड़ने वाले एजेंट होते हैं।
    • जैव सूचक: जब कृषि, उद्योगों, जलीय कृषि और घरों से निकलने वाले अपशिष्ट को समुद्र में छोड़ दिया जाता है, तो यह पोषक तत्त्वों के असंतुलन का कारण बनता हैजिससे एल्गी ब्लूम होता हैजो समुद्री रासायनिक क्षति का सूचक है।
      • ये समुद्री शैवाल अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं
    • ऑक्सीजन उत्पादनसमुद्री शैवाल, प्रकाश संश्लेषक जीवों के रूप में प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन का उत्पादन करके समुद्री जीवन के श्वसन एवं अस्तित्व को बनाए रखते हुए समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • सेलुलोज़ सामग्रीगुजरात के पोरबंदर तट से एकत्र की गई ग्रीन सीवीड की कोशिका भित्ति में एक विशेष प्रकार के सेलुलोज़ की उच्च मात्रा पाई गई है।
    • ऊर्जा भंडारण अनुप्रयोगों हेतु बैटरी जैसे पेपर-बेस्ड इलेक्ट्रोड बनाने के लिये सबसे उपयुक्त बायोपॉलिमर सामग्री सेलुलोज़ के रूप में खोजी गई है।
      • सेलुलोज़ स्वयं एक इन्सुलेशन सामग्री है जिसे पेपर-बेस्ड ऊर्जा भंडारण उपकरण बनाने हेतु प्रवाहकीय सामग्री के साथ लेपित किया जाता है।
  • समुद्री शैवाल की खेती
    • वैश्विक समुद्री शैवाल उत्पादन में से लगभग 32 मिलियन टन ताज़े शैवाल का मूल्य लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • एक अनुमान के अनुसार, यदि 10 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र अथवा भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र के 5% में खेती की जाए, तो इससे लगभग 50 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान किया जा सकता है। इससे राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में योगदान और समुद्री उत्पादकता को बढ़ावा दिया जा सकता है, शैवाल के विकास को कम किया सकता है, लाखों टन कार्बन को पृथक किया जा सकता है और साथ ही 6.6 बिलियन लीटर जैव-एथेनॉल का उत्पादन भी किया जा सकता है।
      • चीन और इंडोनेशिया द्वारा क्रमशः लगभग 57% और 28% का उत्पादन किया जाता है, इसके बाद दक्षिण कोरिया का स्थान है, जबकि भारत की हिस्सेदारी मात्र 0.01-0.02% की है।

एबॉसीन की AI-संचालित खोज: एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के वैज्ञानिकों ने एसिनेटोबैक्टर बॉमनी सुपरबग से लड़ने में सक्षम एबॉसीन नामक एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक की खोज के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है।

  • इस सफलता से दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ाई में अपार संभावनाएँ देखी जा रही हैं

एसिनेटोबैक्टर बॉमनी

  • यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा पहचाना गया एक खतरनाक जीवाणु है जो एंटीबायोटिक दवाओं के लिये प्रतिरोधी है।
  • यह निमोनियामेनिन्जाइटिस और घाव संक्रमण जैसे गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है, जिससे मृत्यु हो सकती है।
  • आमतौर पर अस्पतालों में पाया जाने वाला एसिनेटोबैक्टर बॉमनी सतहों पर लंबे समय तक जीवित रह सकता है, जिससे इसे समाप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  • वर्तमान में उपलब्ध सभी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध को विकसित करने की इसकी उल्लेखनीय क्षमता के कारण इसे "रेड अलर्टमानव रोगजनक के रूप में जाना जाता है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध की प्रक्रिया

  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध तब होता है जब बैक्टीरिया अनुकूलन करते हैं और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभावों हेतु प्रतिरोधी बन जाते हैं, जिससे उपचार अप्रभावी हो जाता है।
    • एंटीबायोटिक्स जीवाणु संक्रमण को रोकने और इलाज हेतु उपयोग की जाने वाली दवाएँ हैं।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अति प्रयोग और दुरुपयोग ने दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा दिया है, जो वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में चिंता का विषय है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निमोनियातपेदिक और खाद्यजनित रोगों जैसे संक्रमणों को सूचीबद्ध किया है क्योंकि एंटी-बैक्टीरिया प्रतिरोध बढ़ने के कारण मौजूदा दवाओं के साथ इन बीमारियों का इलाज करना कठिन होता जा रहा है।

एबॉसीन

  • परिचय:
    • एबॉसीन (Abaucin) एक यौगिक है जो एक संकीर्ण-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक के रूप में उपयोगी गतिविधि दिखाता है।
    • यह एसिनेटोबैक्टर बॉमनी (Acinetobacter Baumannii) के खिलाफ प्रभावी है।
  • अन्वेषण:
    • मशीन-लर्निंग मॉडल दृष्टिकोण का उपयोग करके AI की सहायता से एबॉसीन की खोज की गई थी।
    • एसिनेटोबैक्टर बॉमनी वृद्धि को रोकने के लिये जाँचे गए ~ 7,500 अणुओं के डेटासेट के साथ नेटवर्क को प्रशिक्षित किया गया था।
    • नेटवर्क ने संरचनात्मक रूप से विभिन्न अणुओं की भविष्यवाणी की जिसमें एबॉसीन सहित ए. बॉमनी के खिलाफ गतिविधि थी
    • एबॉसीन को प्रायोगिक रूप से मान्य किया गया था और इसमें शक्तिशाली जीवाणुरोधी गतिविधि पाई गई थी
  • कार्रवाई की प्रणाली:
    • एबॉसीन बैक्टीरिया में CCR2 प्रोटीन के सामान्य कार्य को बाधित करता है
    • यह व्यवधान बैक्टीरिया के अंदर कुछ अणुओं की गति को बाधित करता है, जिससे उन्हें बाहरी झिल्ली तक पहुँचने से रोका जा सकता है।
    • नतीजतन एसिनेटोबैक्टर बॉमनी की वृद्धि बाधित होती है, जिससे संक्रमण पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है।

लैब-ग्रोन मीट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैलिफोर्निया स्थित दो कंपनियों द्वारा लैब-ग्रोन मीट, विशेष रूप से कोशिका-संवर्द्धित चिकन (Cell-Cultivated Chicken) को संयुक्त राज्य अमेरिका की मंज़ूरी के साथ टिकाऊ खाद्य उत्पादन की दुनिया में एक महत्त्वपूर्ण विकास के रूप में देखा जा रहा है।

  • कैलिफोर्निया स्थित दो कंपनियों- गुड मीट और अपसाइड फूड्स को 'कोशिका-संवर्द्धित चिकन' का उत्पादन तथा बिक्री करने के लिये अमेरिकी सरकार की मंज़ूरी मिली है।

लैब-ग्रोन मीट

  • लैब-ग्रोन मीट, जिसे आधिकारिक तौर पर कोशिका-संवर्द्धित मीट के रूप में जाना जाता है, उस मीट को संदर्भित करता है जो जानवरों से प्राप्त पृथक कोशिकाओं का उपयोग करके प्रयोगशाला में विकसित किया जाता है।
  • प्रतिकृति बनाने और खाद्य मांस के रूप में विकसित होने के लिये इन कोशिकाओं को आवश्यक संसाधन, जैसे- पोषक तत्त्व और एक उपयुक्त वातावरण प्रदान किया जाता है। जिन्हें सेलुलर कल्टीवेशन प्रक्रिया में सहयोग करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
  • सिंगापुर ऐसा पहला देश था जिसने वर्ष 2020 में वैकल्पिक मांस की बिक्री को मंज़ूरी दी थी।

मांस उत्पादन के लिये सेल-कल्टीवेशन तकनीक का महत्त्व

  • जलवायु शमन:
    • पशुधन उत्पादन से जुड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रयोगशालाओं में तैयार किया जाने मांस एक संभावित समाधान व विकल्प प्रदान करता है।
    • खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार, वैश्विक मानवजनित GHG उत्सर्जन (मुख्य रूप से मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में) में पशुधन उत्पादन का योगदान लगभग 14.5% है
  • भूमि उपयोग दक्षता:
    • पारंपरिक मांस उत्पादन विधियों की तुलना में कोशिका-संवर्द्धित मांस के लिये काफी कम भूमि की आवश्यकता होती है।
    • वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि प्रयोगशाला में तैयार किये गए मांस में चिकन के मामले में 63% कम भूमि और सूअर के मांस के मामले में 72% कम भूमि का उपयोग होगा।
  • पशु कल्याण:
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस के विकास का उद्देश्य पशु संहार की घटनाओं को कम करना है।
    • संवर्द्धित मांस कोशिकाओं से सीधे मांस तैयार कर जानवरों की पीड़ा को कम करने और पशु कल्याण के मानकों में सुधार करने की संभावना प्रदान करता है।
  • खाद्य सुरक्षा एवं पोषण:
    • लैब-ग्रोन मीट में भविष्य की खाद्य सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता है।
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाने और कम वसा जैसी विशेष पोषण संबंधी आवश्यकताओं का पूरा करने के लिये संशोधित किया जा सकता है।

कोशिका-संवर्द्धित मांस की चुनौतियाँ

  • उपभोक्ता स्वीकृति:
    • पारंपरिक मांस के साथ स्वादबनावटरूप और लागत समानता हासिल करना कोशिका-संवर्द्धित विकल्पों के लिये एक चुनौती बनी हुई है। संवर्द्धित मांस को "कृत्रिमया "अप्राकृतिक" मानने की धारणा से इन उत्पादों की उपभोक्ता स्वीकृति प्रभावित हो सकती है।
  • लागत:
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस का मूल्य अधिक रहने की आशंका है। इसका मुख्य कारण कोशिका संवर्द्धन की जटिल तथा संसाधन-गहन प्रक्रिया है। उपयोगिता और गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाएँ इसके मूल्य में और अधिक वृद्धि कर सकती हैं
  • अनुमापकता:
    • वर्तमान में इसके उत्पादन की मात्रा सीमित है तथा उत्पाद की गुणवत्ता एवं स्थिरता को बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। कुशल और लागत प्रभावी बायोरिएक्टर प्रणाली विकसित करना तथा उपयुक्त कोशिका संवर्द्धन माध्यम द्वारा अनुमापकता प्राप्त करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • संसाधन:
    • शोधकर्त्ताओं को अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये उच्च गुणवत्ता वाली कोशिकाओं, उपयुक्त विकास माध्यमों तथा अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
    • कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि यदि अत्यधिक परिष्कृत विकास माध्यमों की आवश्यकता होती है तो कोशिका-संवर्द्धित मांस के उत्पादन का पर्यावरणीय प्रभाव पारंपरिक मांस के उत्पादन से बहुत अधिक हो सकता है
  • बौद्धिक संपदा और पेटेंट संबंधी मुद्दे:
    • संवर्द्धित मांस के क्षेत्र में अनेक बौद्धिक संपदा और पेटेंट संबंधी विचार शामिल हैं। कंपनियाँ और शोधकर्त्ता संवर्द्धित मांस के उत्पादन में शामिल विभिन्न तकनीकों एवं प्रौद्योगिकियों के लिये पेटेंट दाखिल कर रहे हैं। बौद्धिक संपदा विवादों को हल करने तथा प्रौद्योगिकी तक उचित पहुँच सुनिश्चित करने से इस उद्योग के विकास एवं वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

आगे की राह

  • प्रयोगशाला में निर्मित मांस/लैब-ग्रोन मीट के लाभों और सुरक्षा के बारे में पारदर्शी संचार के माध्यम से उपभोक्ता जागरूकता और स्वीकृति को बढ़ावा देना।
  • प्रयोगशाला में निर्मित मांस की उत्पादन प्रक्रियाओं, स्वाद, बनावट और लागत दक्षता में सुधार के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
  • लागत कम करने और बाज़ार की मांग को पूरा करने के लिये तकनीकी प्रगति पर ध्यान केंद्रित करना और उत्पादन सुविधाओं को अनुकूलित करना।
  • दुनिया भर में प्रयोगशाला में विकसित मांस बाज़ार का विस्तार करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना, नियमों में सामंजस्य स्थापित करना तथा व्यापार को अधिक सुविधाजनक बनाना।
  • संवर्द्धित मांस एक अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है,साथ ही इसमें एक स्पष्ट नियामक ढाँचा स्थापित करना आवश्यक है। सुरक्षा, गुणवत्ता और उपभोक्ता विश्वास सुनिश्चित करने के लिये सरकारों और नियामक निकायों को यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि संवर्द्धित मांस उत्पादों को कैसे वर्गीकृत और विनियमित किया जाना चाहिये।

डीपफेक सेनिपटना

चर्चा में क्यों

हाल ही में विभिन्न समाचार स्रोतों ने डीपफेक को लेकर बढ़ती चिंता पर ध्यान केंद्रित किया है, जो डीप लर्निंग तकनीक का उपयोग करके निर्मित किये जाते हैं।

  • जबकि डीपफेक में वास्तविकता को विकृत करने और सार्वजनिक धारणा में हेर-फेर करने की क्षमता होती है, वे विभिन्न क्षेत्रों में भी संभावना रखते हैं इस तकनीक का उपयोग और प्रबंधन तथा समाज पर पड़ने वाला प्रभाव प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

डीपफेक टेक्नोलॉजी

  • परिचय:
    • डीपफेक तकनीक शक्तिशाली कंप्यूटर और शिक्षा का उपयोग करके वीडियो, छवियों, ऑडियो में हेर-फेर करने की एक विधि है। डीप लर्निंग डीप सिंथेसिस का हिस्सा है
      • डीप सिंथेसिस को आभासी दृश्य बनाने के लिये चित्रऑडियो और वीडियो उत्पन्न करने के लिये शिक्षा एवं संवर्द्धित वास्तविकता सहित प्रौद्योगिकियों के उपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • इसका उपयोग फर्जी खबरें उत्पन्न करने और अन्य अवैध कामों के बीच वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिये किया जाता है।
    • यह पहले से मौजूद वीडियो, चित्र या ऑडियो पर एक डिजिटल सम्मिश्रण द्वारा साइबर अपराधी इसकें लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का इस्तेमाल करते हैं
    • डीपफेक मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का लाभ उठाकर पारंपरिक फोटो एडिटिंग तकनीकों पर हावी हो जाता है।
    • डीपफेक का उपयोग मनगढ़ंत या हेर-फेर कर सामग्री बनाने के लिये किया जाता है जैसे कि राजनीतिक हस्तियों के नकली वीडियो और झूठे आपदा चित्र बनाना।
  • डीप लर्निंग एप्लीकेशन का उपयोग:
    • डीप लर्निंग ने तकनीकी प्रगति को सकारात्मक रूप से सक्षम किया है जैसे कि खोई हुई आवाज़ों को बहाल करना और ऐतिहासिक कृतियों का पुनः निर्माण करना।
    • ALS एसोसिएशन की आवाज़ प्रतिरूपण (वॉइस क्लोनिंग) पहल तथा कलाकारों एवं मशहूर हस्तियों के चित्रों का पुनः निर्माण डीप लर्निंग के संभावित लाभ हैं।
    • कलात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ाने के लिये कॉमेडीसिनेमासंगीत और गेमिंग में डीप लर्निंग तकनीकों को लागू किया गया है।
  • अस्थिर परिणाम और नैतिक चिंताएँ
    • डीपफेक को दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिये नियोजित किया गया है जिसमें अश्लील चित्र बनाना और फेशियल रिकग्निशन प्रणाली को हैक करना शामिल हैं।
    • यह मीडिया के प्रति भरोसे को कम करता हैऔर तथ्य एवं कल्पना के बीच के अंतर को अस्पष्ट करता है।
    • डीपफेक द्वारा गलत तरीके से प्रचारित सूचना को सच माना जा सकता है जिससे सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।

डीपफेक से निपटने हेतु भारत का रुख

  • भारत में डीपफेक तकनीक के उपयोग को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला विशिष्ट कानून या नियम नहीं हैं
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000) की धारा 67 और 67A जैसे मौजूदा कानूनों में ऐसे प्रावधान हैं जो डीपफेक के कुछ पहलुओं पर लागू हो सकते हैं, जैसे- मानहानि और स्पष्ट सामग्री का प्रकाशन
  • भारतीय दंड संहिता (1860) की धारा 500 मानहानि के लिये सज़ा का प्रावधान करती है।
  • यदि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (2022) पारित हो जाता है, तो इससे व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग के खिलाफ कुछ सुरक्षा प्राप्त हो सकती है लेकिन इससे डीपफेक को स्पष्ट रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
  • निजता, सामाजिक स्थिरता, राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र के लिये संभावित निहितार्थों पर विचार करते हुए भारत को विशेष रूप से डीपफेक को लक्षित करने के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है

डीपफेक से निपटने के लिये अन्य देशों द्वारा किये जा रहे प्रयास

  • यूरोपियन संघ:
    • वर्ष 2022 में यूरोपीय संघ ने डीपफेक के माध्यम से गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिये वर्ष 2018 में शुरू की गई गलत सूचना पर अभ्यास संहिता को अद्यतित किया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • डीपफेक तकनीक का सामना करने के लिये डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) की सहायता के लिये अमेरिका ने द्विदलीय डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट पेश किया।
  • चीन:
    • डीपफेक से निपटने के लिये चीन ने जनवरी 2023 से प्रभावी व्यापक विनियमन पेश किया। गलत सूचना के प्रसार को रोकने के उद्देश्य वाले इस विनियमन में स्पष्ट लेबलिंग और इस प्रकार की सामग्री का पता लगाने की क्षमता का होना आवश्यक है। इसके तहत व्यक्तियों की सहमति एवं कानूनों तथा सार्वजनिक नैतिकता का पालन अनिवार्य है। इसके लिये सेवा प्रदाताओं द्वारा समीक्षा तंत्र की स्थापना करना व अधिकारियों के साथ सहयोग करने की भी आवश्यकता है।

आगे की राह

  • AI-पावर्ड सोशल मीडिया फैक्ट चेकिंग: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को AI-संचालित एल्गोरिदम और उपकरणों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करना ताकि सूचनाओं के विषय में स्वचालित रूप से पता लगाया जा सके और संभावित हेरफेर अथवा डीपफेक सामग्री को चिह्नित किया जा सके।
  • तथ्यों की जाँच करने वाले संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिये और डीपफेक के माध्यम से झूठी सूचना के प्रसार के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने के लिये सार्वजनिक भागीदारी की शक्ति का उपयोग किये जाने की आवश्यकता है
  • ब्लॉकचेन-आधारित डीपफेक सत्यापन: ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करके अपरिवर्तनीय रिकॉर्ड बना सकते हैं कि किसने डिजिटल विषयवस्तु तैयार की, साथ ही इसकी वैधता को सत्यापित करने में पारदर्शिता सुनिश्चित करना
  • यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण व्यक्तियों को दुर्भावनापूर्ण डीपफेक के निर्माण और प्रसार को हतोत्साहित करते हुए मीडिया की उत्पत्ति एवं संशोधन इतिहास का पता लगाने की अनुमति प्रदान करता है।
  • डीपफेक प्रभाव शमन नीति: डीपफेक से प्रभावित व्यक्तियों और संगठनों की मदद हेतु फंड स्थापित करना
  • डीपफेक जवाबदेही अधिनियम (Deepfake Accountability Act- DAA): डीपफेक से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने और उनके निर्माण, वितरण एवं नियंत्रण में जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से DAA पेश किया जा सकता है।
  • सज़ा और जन जागरूकता अभियान: कानूनों को दोषी लोगों को दंडित करना चाहिये और लोगों को उनके ऑनलाइन निजता के दुरुपयोग से बचाना चाहिये।डीपफेक के प्रसार से निपटने हेतु वैज्ञानिक और डिजिटल डोमेन में जन जागरूकता तथा साक्षरता महत्त्वपूर्ण है।

Y गुणसूत्र और कैंसर की संभावना

चर्चा में क्यों?

हालिया शोधों से पता चला है कि Y गुणसूत्र और कैंसर की संभावना अंतर्संबंधित हैं, इस अध्ययन में पाया गया है कि किस प्रकार पुरुष कुछ प्रकार के कैंसर के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

  • यह अध्ययन कोलोरेक्टल और मूत्राशय कैंसर में Y गुणसूत्र की भूमिका पर प्रकाश डालता है जिससे ट्यूमर विकसित होने, प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया एवं नैदानिक रोग निदान को प्रभावित करने वाले प्रमुख आनुवंशिक तंत्रों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।

कोलोरेक्टल और मूत्राशय कैंसर

  • कैंसर:
    • शरीर में असामान्य कोशिकाओं के अनियंत्रित विकास और प्रसार के रूप में चिह्नित विकारों की एक शृंखला को सामूहिक रूप से कैंसर कहा जाता है।
    • कैंसर कोशिकाएँ (असामान्य कोशिकाएँ) स्वस्थ ऊतकों और अंगों को प्रभावित करने और उन्हें नष्ट करने में सक्षम होती हैं।
    • एक स्वस्थ शरीर में सामान्य तौर पर कोशिकाएँ नियमित तरीके से बढ़ती हैं, विभाजित होती हैं और अंततः मर जाती हैं जिससे ऊतकों एवं अंगों का कामकाज़ सामान्य ढंग से चलता रहता है।
    • हालाँकि कैंसर के मामले में कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन या असामान्यताएँ सामान्य कोशिका चक्र को बाधित करती हैं जिससे कोशिकाएँ विभाजित होती हैं और इनकी संख्या अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं।
    • ये कोशिकाएँ ऊतकों का एक समूह बना सकती हैं जिसे ट्यूमर कहा जाता है।
  • कोलोरेक्टल कैंसर:
    • कोलोरेक्टल कैंसर को कोलन कैंसर या रेक्टल कैंसर के रूप में भी जाना जाता है। यह कोलन या मलाशय में विकसित कैंसर को संदर्भित करता है जो बड़ी आँत के हिस्से हैं।
    • यह विश्व भर में सबसे आम प्रकार के कैंसर में से एक है।
    • यह सामान्यतः बृहदान्त्र (कोलनया मलाशय की आंतरिक परत पर छोटीगैर-कैंसरयुक्त वृद्धि के रूप में शुरू होता है जिसे पॉलीप्स कहा जाता है। समय के साथ इनमें से कुछ पॉलीप्स कैंसर बन सकते हैं।
  • मूत्राशय कैंसर:
    • मूत्राशय कैंसर का तात्पर्य मूत्राशय के ऊतकों में कैंसर कोशिकाओं के विकास से है जहाँ मूत्र एकत्रित होता है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • पुरुषों में कोलोरेक्टल कैंसर में Y गुणसूत्र की भूमिका:
    • अध्ययनों में पाया गया है कि KRAS नामक ओंकोजीन (Oncogene) द्वारा संचालित एक माउस मॉडल का उपयोग करके कोलोरेक्टल कैंसर के मामले में लैंगिक अंतर की जाँच की गई है।
      • शोध में पाया कि नर चूहों में मेटास्टेसिस (ट्यूमर की मूल जगह से शरीर के अन्य भागों में कैंसर कोशिकाओं का फैलना) की आवृत्ति अधिक थी तथा मादा चूहों की तुलना में उनकी जीवित रहने की दर बहुत कम थी जो मनुष्यों में देखे गए परिणामों को प्रतिबिंबित करता है।
    • उन्होंने Y गुणसूत्र पर एक अपग्रेडेड जीन की भी पहचान की जो पुरुषों में ट्यूमर के खतरे और प्रतिरक्षा को कम करके कोलोरेक्टल कैंसर उत्पन्न करने का कारण बनता है।
      • यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने वाले वंशाणुओं/जीन का दमन करने के साथ-साथ ऐसे जीन को सक्रिय करने का कार्य करता है जो सेल माइग्रेशनइन्वेज़न (हमलेऔर एंजियोजेनेसिस (नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण) को बढ़ावा देते हैं।
  • मूत्राशय कैंसर के परिणामों पर Y गुणसूत्र की हानि का प्रभाव
    • एक अलग जाँच में मूत्राशय कैंसर के परिणामों पर Y गुणसूत्र की हानि का प्रभाव देखा गया।
      • पुरुषों की उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं में Y गुणसूत्र की हानि होती है तथा कैंसर कोशिकाएँ पुरुषों में प्रतिरक्षा प्रणाली को खत्म करने में बढ़ावा देती है।
    • Y गुणसूत्र की हानि का कारण गलत निदान और अधिक आक्रामक ट्यूमर से जुड़ा हुआ पाया गया।
      • इस स्थिति ने प्रतिरक्षा विनियमन में शामिल जीन की अभिव्यक्ति को बदलकर एक अधिक प्रतिरक्षा दमनकारी ट्यूमर माइक्रोएन्वायरनमेंट उत्पन्न किया है।
      • उदाहरण स्वरूप Y गुणसूत्र की हानि से PD-L1 की अभिव्यक्ति बढ़ गई, एक प्रोटीन जो T कोशिका सक्रियण को रोकता है और कैंसर कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रणाली को खत्म करने में बढ़ावा देती है।
    • हालाँकि यह पाया गया कि गुणसूत्र विलोपन ने एंटी-PD1 अवरोधक थेरेपी की प्रतिक्रिया में सुधार किया, जो मूत्राशय की विकृतियों के एक उपसमूह के लिये व्यवहार्य चिकित्सीय मार्ग की ओर इशारा करता है।
      • इससे पता चलता है कि गुणसूत्र की हानि उन रोगियों के चयन के लिये एक बायोमार्कर के रूप में है जो इस उपचार से लाभान्वित हो सकते हैं।
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