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The Hindi Editorial Analysis- 25th September 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

भारत में संसदीय समितियों की भूमिका और दायरे को मजबूत करना

संदर्भ -

भारत सरकार ने हाल ही में देश में संसदीय समितियों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की अवधारणा की जांच करने के लिए आठ सदस्यीय समिति का गठन किया है। भारत में समतियाँ संसदीय शासन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसमें विधायिका को कानून बनाने और उसकी देखरेख करने सहित कई प्रकार के कार्य शामिल हैं। हालांकि, संसद का बड़ा आकार और जटिल प्रक्रिया अक्सर विभिन्न मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श में बाधा डालती है। इस चुनौती से निपटने के लिए, संसद ने कई समितियों का गठन किया है, जिनमें से प्रत्येक को मामलों की व्यापक रूप से जांच करने और संसद को अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने के लिए एक विशिष्ट जनादेश प्राप्त है।

The Hindi Editorial Analysis- 25th September 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

संसदीय समितियों के प्रकार

भारत में संसदीय समितियाँ विविध उद्देश्यों को पूरा करती हैं और इन्हें मोटे तौर पर चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता हैः विषय, वित्तीय, जवाबदेही और प्रशासनिक।

  • विषय समितियाँ
    • ये समितियाँ प्रत्येक मंत्रालय के कार्यों और गतिविधियों की देखरेख करती हैं, हालांकि मंत्री इनकी सदस्यता के लिए अयोग्य होते हैं। कुल 24 विषय समितियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक में 31 सदस्य हैं। इनमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों से आनुपातिक प्रतिनिधित्व है। विषय समितियाँ प्रस्तावित विधान की समीक्षा करती हैं और बारीकी से जाँच के लिए विषयों का चयन करती हैं। यह मंत्रालय के बजट की जांच करती हैं। विधेयकों को विस्तृत जांच के लिए विषय समितियों को भेजा जाता है, जिससे पारित होने से पहले पूरी तरह से जांच की जा सके।
  • वित्तीय समितियाँ
    • भारत में तीन प्रमुख वित्तीय समितियाँ हैं- प्राक्कलन समिति, सार्वजनिक उपक्रम समिति और लोक लेखा समिति। उल्लेखनीय है कि इन समितियों में मंत्रियों को सदस्य के रूप में शामिल नहीं किया जाता है।
  • प्राक्कलन समिति विभिन्न मंत्रालयों के बजट पूर्व अनुमानों की जांच करती है।
  • सार्वजनिक उपक्रम समिति सार्वजनिक उपक्रमों के कामकाज की जांच पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • लोक लेखा समिति सरकार द्वारा अनुमोदित व्यय विवरण की समीक्षा करती है।

समितियों का योगदान

  • संसदीय समितियाँ विधान निर्माण में सुधार लाने में सहायक होती हैं। उदाहरण के लिए, 2019 के समुद्री डकैती रोधी विधेयक में मूल रूप से कुछ मामलों में मौत की सजा को अनिवार्य किया गया था। लेकिन विदेश मामलों की स्थायी समिति ने सजा को आजीवन कारावास या मौत की सजा में बदलने की सिफारिश की थी।
  • समितियों ने डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक जैसे महत्वपूर्ण कानून को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2017 में, न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति को एक डेटा संरक्षण ढांचा तैयार करने का काम सौंपा गया था, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 पेश किया गया था । समिति की समीक्षाओं के बाद, 2022 में सार्वजनिक परामर्श के लिए एक मसौदा डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक प्रस्तुत किया गया था। इन समितियों द्वारा प्रदान की गई अंतर्दृष्टि डिजिटल रूप से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए इस आवश्यक कानून को आकार देने में आधारभूत रही है।
  • संसद विभिन्न मामलों की गहन जांच करने के लिए इन संसदीय समितियों पर बहुत अधिक निर्भर करती है। नतीजतन, संसद दो प्राथमिक तरीकों से काम करती हैः पहला विधान सभा में सत्रों के दौरान होता है और दूसरा इन समितियों के काम के माध्यम से होता है। इन समितियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट संसद के भीतर चर्चा और बहस के लिए मूल्यवान तर्क प्रदान करती हैं।
  • समितियाँ विधान -निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन यह दलीय राजनीतिक मामलों से दूर रहती हैं। उदाहरण के लिए, लोक लेखा समिति ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए क्षमताओं को विकसित करने के महत्व पर जोर देते हुए रक्षा शिपयार्डों में चिंताओं पर प्रकाश डाला है।
  • इसके अलावा, ये समितियां विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों के बीच आम सहमति को बढ़ावा देने, विशिष्ट विषयों में विशेषज्ञता विकसित करने और विशेषज्ञों एवं हितधारकों के साथ परामर्श करने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं

संसदीय समितियों का सशक्तिकरण

संसद के कुशल संचालन के लिए संसदीय समितियों की प्रभावशीलता महत्वपूर्ण है। इन समितियों को मजबूत करने के लिए कई क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

समितियों को सभी विधेयकों का स्वतः प्रेषण
  • वर्तमान में, विधेयक स्वचालित रूप से समितियों को नहीं भेजे जाते हैं; इसके बजाय, इस संबंध में अध्यक्ष निर्णय लेते हैं।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण के युग में, भारतीय संसद की सार्वजनिक कार्यवाही गहरे राजनीतिक रोष को दर्शाती है जो विचार-विमर्श और सर्वसम्मति पूर्ण निर्णय निर्माण में बाधा डालती हैं। 17वीं लोकसभा के दौरान, समितियों को केवल 14 विधेयकों को जांच के लिए भेजा गया । पीआरएस के आंकड़ों से एक और चिंताजनक तस्वीर सामने आती है, जिससे पता चलता है कि 16वीं लोकसभा में पेश किए गए विधेयकों में से केवल 25% को समितियों को भेजा गया था, जो 15वीं और 14वीं लोकसभा की तुलना में क्रमशः 71% और 60% की गिरावट दर्शाती है। यह प्रवृत्ति राष्ट्रीय कानून की विशेषज्ञता पूर्ण जांच के घटते स्तर को रेखांकित करती है।
  • समिति की सिफारिशों की अस्वीकृति के कारणों पर चर्चा करना अनिवार्य नहीं है। हालांकि, ऐसा करने के लिए संसद कानून बना सकती हैं।
  • 2002 के राष्ट्रीय आयोग ने सिफारिश की थी कि सभी विधेयकों को गहन समीक्षा और चर्चा के लिए विषय-विशिष्ट समितियों को स्वचालित रूप से भेजा जाए।
  • यह प्रथा धन विधेयकों को छोड़कर यूनाइटेड किंगडम जैसी कुछ संसदीय प्रणालियों में लागू है। इस सुधार का उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही और कानून की गुणवत्ता को बढ़ाना है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक विधेयक पर सांसदों और विषय विशेषज्ञों के साथ न्यूनतम स्तर की संसदीय जांच हो।
संसद सदस्यों (सांसदों) की उपस्थिति
  • संसदीय समितियों में प्रभावी विचार-विमर्श और चर्चा सांसदों की उपस्थिति पर निर्भर करती है, जो उल्लेखनीय रूप से कम रही है। 17वीं लोकसभा के दौरान, विषय समिति में उपस्थिति औसतन केवल 47% थी, जो वित्तीय समितियों के मामलों में गिरकर 37% हो गई थी । एक समिति की बैठक को आगे बढ़ाने के लिए, इसके एक तिहाई सदस्यों की गणपूर्ति की आवश्यकता होती है, अतः आमतौर पर एक विषय समिति के लिए लगभग 10 सदस्य। समितियों में इस कम उपस्थिति के मुद्दे को संविधान के कामकाज की समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग 2002 ने भी उजागर किया गया था। इसकी रिपोर्ट में समिति की बैठकों में व्यापक अनुपस्थिति की ओर इशारा किया गया था । इसके अलावा, इसने ऐसे उदाहरणों पर प्रकाश डाला था जहां एक एकल समिति कई मंत्रालयों की देखरेख के लिए जिम्मेदार थी। यह प्रत्येक मंत्रालय के कामकाज की गहन जांच करने की इसकी क्षमता में बाधा डालती है । इस मुद्दे को हल करने के लिए, सांसद की भागीदारी बढ़ाने के उपायों की आवश्यकता है।
तकनीकी कर्मचारियों और विशेषज्ञों की कमी
  • संसदीय समितियों को गहन परीक्षाओं के लिए तकनीकी सहायता और विशेषज्ञों तक पहुंच की आवश्यकता होती है। 2002 में, संविधान के कामकाज की समीक्षा करने वाले राष्ट्रीय आयोग ने जांच करने, सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करने और प्रासंगिक डेटा एकत्र करने के लिए समितियों को धन आवंटित करने की सिफारिश की थी ।
  • वर्तमान में, संसदीय समितियों के लिए उपलब्ध तकनीकी सहायता एक सचिवालय तक सीमित है जो बैठकों को निर्धारित करने और कार्यवृत्त रिकॉर्ड करने में सहायता करता है। यह कनाडा जैसे अन्य लोकतंत्रों के विपरीत है, जहां संसद के अनुरोध पर संसदीय लाइब्रेरी सभी समितियों को शोध हेतु कर्मचारी प्रदान करती है। ये शोध कर्मचारी मूल्यवान जानकारी प्रदान करते हैं और समिति के लिए संभावित मुद्दों की पहचान करने में मदद करते हैं।
  • इसके अलावा, ऐसी प्रणालियों में समितियों के पास संसद के पुस्तकालय के बाहर के स्रोतों से अतिरिक्त या विशेष अनुसंधान सहायता लेने का लचीलापन होता है।
समिति की कार्यवाही में पारदर्शिता
  • हालांकि समिति की रिपोर्टों को आम तौर पर सार्वजनिक किया जाता है, लेकिन समितियों के आंतरिक कामकाज में पारदर्शिता का अभाव होता है। बंद कमरे की बैठकें एक ऐसा वातावरण प्रदान करती हैं जहाँ विभिन्न पार्टीयों की आम सहमति अधिक आसानी से प्राप्त की जा सकती है लेकिन इन समितियों के प्रमुख निष्कर्षों के बारे में यह प्रणाली जन जागरूकता को प्रतिबंधित करती है।
  • इस मुद्दे को हल करने के लिए, 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा करने वाले राष्ट्रीय आयोग ने सिफारिश की कि सभी संसदीय समितियों की महत्वपूर्ण रिपोर्टों पर संसद में चर्चा की जाए, विशेष रूप से उन मामलों में जहां समिति और केंद्र सरकार के बीच असहमति है।
  • इसके विपरीत, कुछ अन्य लोकतंत्रों ने अधिक पारदर्शी प्रथाओं को अपनाया है। उदाहरण के लिए, कनाडा समितियों को 1991 से स्थापित दिशानिर्देशों के तहत अपनी कार्यवाही प्रसारित करने की अनुमति देता है। कोविड-19 महामारी के दौरान, यूनाइटेड किंगडम ने महामारी के लिए देश की तैयारियों पर स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल समिति की चर्चाओं का लाइव कवरेज प्रदान किया, जिससे इन कार्यवाही तक जनता की पहुंच और बढ़ गई।

2002 में संविधान की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग ने संसदीय समितियों के लिए कई सुधारों का प्रस्ताव दिया था । इन सुधारों में तीन नई समितियों की स्थापना शामिल थीः संविधान समिति, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था समिति और विधान समिति। आयोग ने सुझाव दिया कि अनुमानों, सार्वजनिक उपक्रमों और अधीनस्थ विधान पर कुछ मौजूदा समितियों की अब आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके कार्यों को विषय समितियों या नए प्रस्तावित समितियों द्वारा किया जा सकता है। हालाँकि, यह ध्यान देने योग्य है कि इन सिफारिशों को अमल में नहीं लाया गया है।

निष्कर्ष

संयुक्त राज्य अमेरिका में, मतदान से पहले संशोधनों की अनुमति देते हुए, प्रस्तुत किए जाने के बाद विधेयकों की जांच करने में समितियाँ महत्वपूर्ण हैं। भारत की संसद विधेयकों को पेश करने के बाद उन्हें उपयुक्त समितियों को अनिवार्य रूप से भेजने पर विचार कर सकती है। इन समितियों को अधिक अधिकार के साथ सशक्त बनाने से कार्यकारी शाखा को जवाबदेह ठहराने की उनकी क्षमता में वृद्धि होगी, जिससे एक अधिक व्यापक और विचारशील विधायी प्रक्रिया सुनिश्चित होगी। इस तरह की प्रक्रियाओं को संस्थागत बनाना और कानून बनाने में राजनीतिक विचारों को कम करना भारत के संसदीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

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