भारत के व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से काफी कम है। व्यापार में पुरुषों की लगभग 15 प्रतिशत भागीदारी की तुलना में महिलाओं की भागीदारी 5 प्रतिशत से भी कम है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने और 2030 तक निर्यात में 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने की भारत की महत्वाकांक्षाओं के बावजूद, यह स्थिति अभी भीं बनी हुई है। यह असमानता गंभीर चिंताओं को जन्म देती है जिनपर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
WTO के अनुसार आर्थिक भागीदारी पर कानूनी प्रतिबंध, वित्त प्रदान करने में भेदभाव, लैंगिक डिजिटल विभाजन और व्यापार नियमों की जानकारी की कमी के कारण महिलाओं को पुरुषों की तुलना में व्यापार में अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कोविड-19 संकट के दौरान इस मुद्दे की तात्कालिकता बढ़ गई, डब्ल्यूटीओ की एक रिपोर्ट में पुष्टि की गई कि महामारी से उत्पन्न व्यापार व्यवधान से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक संकट का सामना करना पड़ा है। व्यापार और नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी के लिए बाधाएं को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है ।
भारत के व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में लैंगिक समावेश को बढ़ावा देना न केवल आर्थिक विकास का विषय है, बल्कि लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता भी है। शैक्षिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और डिजिटल चुनौतियों का समाधान करने वाले ठोस प्रयासों और लैंगिक-उत्तरदायी नीतियों के साथ, भारत व्यापार में लैंगिक अंतर को कम कर सकता है और अपनी महिला कार्यबल की पूरी क्षमता का उपयोग कर सकता है। यह समावेशी दृष्टिकोण न केवल आर्थिक समृद्धि में योगदान देगा, बल्कि लैंगिक समानता और राष्ट्रीय आर्थिक लक्ष्यों दोनों को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं को व्यापार उद्योग में सक्रिय भागीदार बनने के लिए भी सशक्त बनाएगा।
2218 docs|810 tests
|
2218 docs|810 tests
|
|
Explore Courses for UPSC exam
|