ग्लोबल साउथ की बदलती गतिशीलता
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2023 में भारत के प्रधानमंत्री ने "वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ" पर एक आभासी शिखर सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें लगभग 125 देश शामिल हुए। इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य क्षेत्र के लिये प्राथमिकताओं को निर्धारित करने हेतु ग्लोबल साउथ के देशों की राय और इनपुट प्राप्त करना था।
ग्लोबल साउथ का इतिहास:
- ऐतिहासिक संदर्भ: "ग्लोबल साउथ" शब्द का प्रयोग प्रायः उपनिवेशवाद की ऐतिहासिक विरासत और पूर्व उपनिवेशित देशों एवं विकसित पश्चिमी देशों के बीच आर्थिक असमानताओं को उजागर करने के लिये किया जाता है।
- यह आर्थिक वृद्धि और विकास में इन देशों के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करता है।
- G-77 का गठन: वर्ष 1964 में 77 देशों का समूह (G-77) तब अस्तित्व में आया जब इन देशों ने जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के पहले सत्र के दौरान एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
- G-77 उस समय विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन बन गया।
- G-77 का उद्देश्य: इसे विकासशील देशों के आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने की उनकी क्षमता में सुधार करने के लिये बनाया गया था।
- इसमें अब एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, कैरेबियन और ओशिनिया के 134 देश शामिल हैं। चीन तकनीकी रूप से इस समूह का हिस्सा नहीं है, इसलिये बहुपक्षीय मंचों पर इस समूह को अक्सर "जी-77+चीन" कहा जाता है।
- UNOSSC: दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOSSC) की स्थापना वर्ष 1974 में की गई थी। इसकी भूमिका G-77 के सहयोग से ग्लोबल साउथ के देशों और विकसित देशों या बहुपक्षीय एजेंसियों के बीच सहयोग का समन्वय करना है।
ग्लोबल साउथ के पुनरुद्धार का कारण:
- 21वीं सदी के शुरुआती दशकों में ग्लोबल साउथ के प्रति रुचि और ध्यान में उल्लेखनीय गिरावट आई थी।
- यह प्रवृत्ति विशेष रूप से भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में स्पष्ट थी, जिन्हें अपनी 'तीसरी दुनिया' की उत्पत्ति से दूर जाने और वैश्विक मंच पर अधिक प्रमुख भूमिका की तलाश करने वाला माना जाता था क्योंकि इन देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में सुधार एवं विस्तार किया था।
- हालाँकि हाल के दिनों में ग्लोबल साउथ ने अपना महत्त्व और प्रासंगिकता फिर से हासिल कर ली है, जो उभरती वैश्विक व्यवस्था को आयाम देने में क्षेत्र के महत्त्व की बढ़ती मान्यता को दर्शाता है। इस पुनरुत्थान में योगदान देने वाले कई प्रमुख कारकों का उल्लेख किया गया है:
- कोविड-19 महामारी का प्रभाव: सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौतियों दोनों के संदर्भ में कोविड-19 महामारी का वैश्विक दक्षिण के कई देशों पर गंभीर प्रभाव पड़ा। इस संकट ने इन देशों की कमज़ोरियों और ज़रूरतों पर फिर से ध्यान केंद्रित किया।
- आर्थिक मंदी: महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक मंदी ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समर्थन की आवश्यकता को उजागर करते हुए ग्लोबल साउथ के देशों पर असमान रूप से प्रभाव डाला।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष का परिणाम: रूस-यूक्रेन संघर्ष का वैश्विक आर्थिक प्रभाव पड़ा। इसका विकासशील दुनिया पर तीव्र प्रभाव देखा गया, जिसने वैश्विक मामलों की परस्पर संबद्धता एवं अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में ग्लोबल साउथ के महत्त्व पर और अधिक ध्यान आकृष्ट किया।
‘ग्लोबल साउथ’ शब्द की आलोचना का कारण:
- शब्द की अशुद्धि: ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द की उन देशों का प्रतिनिधित्व करने में अशुद्धि के लिये आलोचना की जाती है जिनका वर्णन करना इसका उद्देश्य था।
- यह बताया गया है कि कुछ देश जिन्हें आमतौर पर ग्लोबल साउथ का हिस्सा माना जाता है, जैसे भारत, वास्तव में उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है, जबकि अन्य जैसे ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं लेकिन प्रायः उन्हें ग्लोबल साउथ के हिस्से के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- अधिक सटीक वर्गीकरण की आवश्यकता: 1980 के दशक में इस अशुद्धि की पहचान के कारण ‘ब्रांट लाइन (Brandt Line) (एक वक्र जिसने केवल सामान्य तौर पर भौगोलिक स्थिति के आधार की बजाय आर्थिक विकास और धन वितरण जैसे कारकों के आधार पर दुनिया को आर्थिक उत्तर एवं दक्षिण के रूप में अधिक सटीक रूप से विभाजित किया) का विकास हुआ।
ग्लोबल साउथ की मांग:
- वैश्विक स्तर पर आनुपातिक मत: ग्लोबल साउथ, जिसमें बड़ी आबादी वाले देश शामिल हैं, यह मानता है कि विश्व के भविष्य को आयाम देने में उनकी सबसे अधिक भागीदारी है।
- इन देशों में रहने वाली वैश्विक आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा होने के कारण उनका तर्क है कि वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनका आनुपातिक और सार्थक मत होना चाहिये।
- न्यायसंगत प्रतिनिधित्व: ग्लोबल साउथ वैश्विक शासन में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व की मांग करता है। वैश्विक शासन का वर्तमान मॉडल विश्व की जनसांख्यिकीय और आर्थिक वास्तविकताओं को पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है तथा यह सुनिश्चित करने के लिये बदलाव का आह्वान करता है कि ग्लोबल साउथ के विचार सुने और माने जाएँ।
वैश्विक राजनीति में ग्लोबल साउथ का प्रभाव:
- ग्लोबल साउथ को प्राथमिकता देना: भारत की G20 की अध्यक्षता ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं से प्रेरित थी। यह उन मुद्दों और चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता के विषय में बढ़ती जागरूकता का सुझाव देता है जो विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के विकासशील देशों के लिये प्रासंगिक हैं।
- ग्लोबल साउथ नेतृत्व: यह तथ्य कि इंडोनेशिया, भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देश निरंतर G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी कर रहे हैं, वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में ग्लोबल साउथ के अधिक नेतृत्व तथा प्रभाव को इंगित करता है।
- ये देश विश्व की आबादी और अर्थव्यवस्थाओं के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- समावेशिता: "वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ" शिखर सम्मेलन ग्लोबल साउथ के देशों की एक विस्तृत शृंखला के साथ समावेशिता और परामर्श के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है।
- यह पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाली पारंपरिक शक्ति संरचनाओं से दूर जाने का संकेत देता है।
- बहुपक्षवाद: ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं पर ज़ोर और G20 एजेंडा की मेज़बानी एवं आकार देने में इन देशों की भागीदारी बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जहाँ निर्णय राष्ट्रों के विविध समूह द्वारा सामूहिक रूप से लिये जाते हैं।
- विकासशील विश्व का बढ़ता प्रभाव: यह G20, BRICS, शंघाई सहयोग संगठन (SCO), क्वाड, हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (Indo-Pacific Economic Framework- IPEF) और अन्य वैश्विक संगठनों की भागीदारी के माध्यम से स्पष्ट है, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में ग्लोबल साउथ में देशों से सक्रिय रूप से भागीदारी चाहते हैं।
ग्लोबल साउथ के बढ़ते प्रभाव का प्रमाण:
- 'नुकसान और क्षति कोष' की स्थापना: मिस्र में COP27 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 'नुकसान और क्षति कोष' की स्थापना को ग्लोबल साउथ के लिये एक महत्त्वपूर्ण जीत माना गया।
- यह ग्लोबल साउथ के देशों द्वारा वहन किये जाने वाले अनुपातहीन बोझ की मान्यता का प्रतीक है।
- COP28 में ग्लोबल साउथ: ऐसा अनुमान है कि संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित होने वाले आगामी UNFCCC COP 28 में देश जलवायु परिवर्तन को कम करने पर चर्चा हेतु ग्लोबल साउथ के देशों की भूमिका अग्रणी होगी।
- G7 समावेशिता: G7 शिखर सम्मेलन के मेज़बान के रूप में जापान ने भारत, ब्राज़ील, वियतनाम, इंडोनेशिया, कोमोरोस और कुक द्वीप समूह जैसे विकासशील देशों को इस वार्ता में शामिल करने के लिये उल्लेखनीय प्रयास किया।
- इसे ग्लोबल साउथ तक पहुँचने तथा विश्व के सबसे धनी देशों के बीच अधिक समावेशी संवाद की आवश्यकता के रूप में देखा जा सकता है।
- ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का विस्तार: दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इसकी सदस्यता को पाँच से बढ़ाकर 11 कर दिया गया। इस विस्तार का प्रमुख कारण ग्लोबल साउथ के अधिक देशों को ब्रिक्स समूह में शामिल करना है, जो ग्लोबल साउथ के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित करता है।
- क्यूबा में G-77 शिखर सम्मेलन: हाल ही में क्यूबा के हवाना में आयोजित G-77 शिखर सम्मेलन वैश्विक मंच पर ग्लोबल साउथ के महत्त्व को प्रदर्शित करता है, इसमें अहम मुद्दों पर चर्चा करने के लिये पर्याप्त संख्या में विकासशील देश एक मंच पर एकजुट हुए।
- G20 में अफ्रीकी संघ का समावेश: 55 देशों वाले अफ़्रीकी संघ को G20 में शामिल करना इस सम्मेलन के एक महत्त्वपूर्ण परिणाम के रूप में देखा जाता है जो वैश्विक मामलों में अफ्रीकी देशों की बढ़ती मान्यता तथा उभरती वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में उनके दृष्टिकोण व योगदान को शामिल करने की आवश्यकता का संकेत देता है।
निष्कर्ष:
जैसे-जैसे विश्व में नई-नई चुनौतियाँ और अवसर उत्पन्न हो रहे है, ग्लोबल साउथ का प्रभाव तथा इसकी भूमिका में लगातार वृद्धि हो रही है, वैश्विक शासन में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व की इसकी मांग सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है। पूरे विश्व में शक्ति के पुनर्संतुलन का दौर है, जिसमें भविष्य की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति व सहयोग को आकार देने में ग्लोबल साउथ भूमिका प्रमुख होती जा रही है।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा
संदर्भ
भारत दृढ़निश्चयी व्यक्तियों का एक राष्ट्र है जो अतीत की गलतियों को दूर करते हुए सफलता के लिए अथक प्रयास कर रहा है। हाल की उपलब्धियां, जैसे चंद्रयान-3 मिशन, आदित्य L1 मिशन , निश्चित रूप से प्रगति के लिए भारत की अतृप्त भूख और प्रतिकूलता से उबरने की इसकी सराहनीय क्षमता को बयान करती हैं। इसके अलावा हाल ही में जी20 का नई दिल्ली शिखर सम्मेलन, भारत के उल्लेखनीय राजनयिक कौशल का गवाह बना, जिसने वैश्विक मंच पर कई उपलब्धियां प्राप्त कीं है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के अनुसार, विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका इसे वैश्विक समृद्धि का अग्रदूत बना रही है।
भारत का वैश्विक महत्वः
वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका निर्विवाद है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के अनुसार, भारत चालू वर्ष में वैश्विक आर्थिक विकास में लगभग 15 प्रतिशत का योगदान देगा । यह अनुमान विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण राष्ट्र के रूप में भारत के उदय को रेखांकित करता है। आने वाले दशक में भारत वैश्विक समृद्धि का प्राथमिक चालक बनने के लिए तैयार है। हालांकि इस तरक्की के साथ दोहरी जिम्मेदारी भी हैः एक अपने नागरिकों के लिए और दूसरी विश्व स्तर पर मानवता के लिए।
जी-20 शिखर सम्मेलन में राजनयिक विजयः
हाल ही में जी20 नई दिल्ली शिखर सम्मेलन मे भारत ने एक महत्वपूर्ण राजनयिक उपलब्धि दर्ज की है । इस दौरान भारत ने सभी देशों के बीच सर्वसम्मत स्वीकृत एक घोषणा पत्र जारी किया । इन घोषणाओं से परे भी , भारत ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों की एक श्रृंखला का आयोजन किया, जिन्होंने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने का काम किया है । इन उपलब्धियों ने राजनयिक वार्ताओं में भारत के कौशल और वैश्विक राजनीति की जटिलताओं को दूर करने की इसकी क्षमता को रेखांकित किया है ।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे पहल का अनावरणः(IMEEC)
जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत की महत्वपूर्ण राजनयिक उपलब्धि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे पर समझौता ज्ञापन का अनावरण था । आई. एम. ई. सी. केवल एक क्षेत्रीय आर्थिक परियोजना नहीं है, बल्कि एक परिवर्तनकारी पहल है जो एशिया और यूरोप को जोड़ने की कल्पना करती है। इसमें सऊदी अरब, यूरोपीय संघ (ईयू), संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), फ्रांस, जर्मनी, इटली और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विभिन्न राष्ट्र शामिल है।
आई. एम. ई. सी. की आर्थिक क्षमताः
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के उद्देश्य गहरे और दूरगामी हैं। यह वैश्विक संपर्क के महत्व और आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की अनिवार्यता को पहचानता है। इस पहल में दो प्रमुख गलियारों की परिकल्पना की गई हैः एक भारत को फरस की खाड़ी से जोड़ने वाला पूर्वी गलियारा और दूसरा फारस की खाड़ी को यूरोप से जोड़ने वाला उत्तरी गलियारा । ये गलियारे परिवहन के पारंपरिक साधनों तक ही सीमित नहीं हैं; अपितु इनमें रेलवे, बिजली केबल, डिजिटल नेटवर्क और स्वच्छ हाइड्रोजन पाइपलाइन सहित एक व्यापक दृष्टिकोण शामिल है। आई. एम. ई. सी. देशों की संयुक्त जी. डी. पी. लगभग 47 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर है, जो दुनिया के कुल जी. डी. पी. का लगभग आधा है ।इस प्रकार कहा जा सकता है कि आई. एम. ई. ई. सी. की आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने की क्षमता अद्वितीय है।
बेल्ट एंड रोड पहल( बीआरआई) के लिए एक रणनीतिक प्रतिक्रियाः
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के लिए एक दृढ़ प्रतिक्रिया है । ज्ञातव्य है की बेल्ट एंड रोड पहल ने शुरूआत में तेजी से विस्तार किया था, लेकिन बाद मे यह विवादों और आलोचनाओं में घिर गया । चीन के साम्राज्यवादी दृष्टिकोण ने BRI मे शामिल देशों मे ऋण निर्भरता और राजनीतिक प्रभाव के बारे में चिंता बढ़ाई । इसके विपरीत, आई. एम. ई. ई. सी. एक सहयोगी मॉडल का समर्थन करता है, जहाँ प्रत्येक प्रतिभागी राष्ट्र सामंजस्यपूर्ण मानकों के अनुसार अपने बुनियादी ढांचे के निर्माण की जिम्मेदारी स्वयं लेगा । यह सहकारी दृष्टिकोण न केवल रणनीतिक चिंताओं को संबोधित करता है बल्कि मजबूत वाणिज्यिक लाभ का भी वादा करता है।
बी. आर. आई. की गलतियों से सीखः
आई. एम. ई. ई. सी. , बेल्ट एंड रोड पहल की गलतियों से मूल्यवान सबक ले सकता है। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्थिरता जैसे सिद्धांतों को सर्वोपरि महत्व देगा । आई. एम. ई. ई. सी. के सदस्य देश बी. आर. आई. की चुनौतियों से बचने की आवश्यकता से पूरी तरह अवगत हैं। सदस्य देश सावधानीपूर्वक एक ऐसी योजना तैयार कर रहे हैं जो 21वीं सदी की राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं के साथ संरेखित होती हो और यह सुनिश्चित करती हो कि वैश्विक साझेदारी चरम विचारधाराओं से अछूती बनी रहे।
कनेक्टिविटी का भविष्य:
आई. एम. ई. ई. सी. का शुभारंभ अन्य क्षेत्रों में बहुपक्षीय कनेक्टिविटी मॉडल का अग्रदूत है। "भारत, मध्य पूर्व और अफ्रीका व्यापार और संपर्क गलियारे" की अवधारणा एक तार्किक विस्तार है, जो आर्थिक विकास और एकीकरण के नए रास्ते खोलने का वादा करती है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में फैले संपर्क की परिकल्पना नए युग की परियोजनाओं के रूप में की गई है । यह वैश्विक मांगों को पूरा करने के लिए खाद्य और ईंधन सहित आवश्यक वस्तुओं के निर्बाध प्रवाह को सुविधाजनक बनाएगी।
अमेरिका और यूरोपीय संघ की भूमिकाः
वैश्विक परिदृश्य की बदलती गतिशीलता से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी शक्तियों की भूमिकाओं में भी बदलाव आ रहा है। अमेरिका कभी 20वीं सदी के वैश्वीकरण को आकार देने वाली एकमात्र महाशक्ति था, अब यह विशिष्ट भौगोलिक संदर्भों में सबसे अच्छी स्थिति वाले देशों के साथ साझेदारी करने की आवश्यकता को पहचानता है। आई. एम. ई. सी. और इसी तरह की अन्य पहलों की सफलता को आकार देने में इन देशों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
निष्कर्ष
आई. एम. ई. ई. सी. वैश्विक जुड़ाव की रूपरेखा को नया रूप देने और BRI पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। यद्यपि राजनयिक विमर्श "चीन से जोखिम कम करने" और "लचीली आपूर्ति श्रृंखला" जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहा है, लेकिन आईएमईईसी का अंतर्निहित सार सभी देशों और उनके नागरिकों की भलाई को बढ़ाने के लिए वैश्विक व्यवस्था का पुनर्गठन है।
जैसे-जैसे हम आई. एम. ई. ई. सी. और इसके बहुआयामी प्रभावों पर विचार करते हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि यह पहल केवल आर्थिक गलियारों से परे है । यह दुनिया के भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य की एक गहरी पुनर्कल्पना का प्रतिनिधित्व करती है, जहां सहयोग और आपसी लाभ प्राथमिकता हैं। आने वाले वर्षों में, आई. एम. ई. ई. सी. की यात्रा निस्संदेह राष्ट्रों के विकास और वैश्विक बातचीत के भविष्य को आकार देगी, जो मानवता के हितों की सेवा करने वाले सहयोगी प्रयासों के लिए एक नया आयाम प्रदान करेगी।
ADB क्षेत्रीय सम्मेलन और PM गति शक्ति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 2023 क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण (RCI) सम्मेलन एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा जॉर्जिया के त्बिलिसी में आयोजित किया गया था, जहाँ भारत ने अपने PM गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान का प्रदर्शन किया।
एशियाई विकास बैंक
परिचय:
- ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
- इसमें 68 सदस्य हैं; 49 सदस्य देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र से हैं, जबकि 19 सदस्य अन्य क्षेत्रों से हैंI भारत ADB का संस्थापक सदस्य है।
- ADB सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये ऋण, तकनीकी सहायता, अनुदान एवं इक्विटी निवेश प्रदान करके अपने सदस्यों तथा भागीदारों की सहायता करता है।
- 31 दिसंबर, 2022 तक ADB के पाँच सबसे बड़े शेयरधारक जापान और अमेरिका (प्रत्येक के पास कुल शेयरों का 15.6%), चीन (6.4%), भारत (6.3%) तथा ऑस्ट्रेलिया (5.8%) हैं।
- इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है।
ADB सम्मेलन का परिचय
2023 सम्मेलन का विषय:
- आर्थिक गलियारा विकास (ECD) के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण को मज़बूत करना।
उद्देश्य:
- ECD के साथ स्थानिक परिवर्तन/क्षेत्र-केंद्रित दृष्टिकोण को एकीकृत करने और व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करने के तरीकों का पता लगाना।
- निवेश योग्य परियोजनाओं के लिये ECD ढाँचे के अनुप्रयोग और परिचालन दिशा-निर्देशों पर ज्ञान साझा करना।
भागीदारी:
- सम्मेलन में 30 से अधिक सदस्य देशों ने भाग लिया।
भारत की भूमिका:
- RCI सम्मेलन में भारत ने सामाजिक-आर्थिक योजना और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने के लिये ADB तथा दक्षिण एशिया उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (SASEC) के देशों को ज्ञान साझा करने के माध्यम से अपनी स्वदेशी रूप से विकसित GIS-आधारित तकनीक प्रस्तुत की।
मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी के लिये PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान:
- यह एक मेड इन इंडिया पहल है, जो आर्थिक नोड्स और सामाजिक बुनियादी ढाँचे के लिये मल्टीमॉडल इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी की एकीकृत योजना हेतु एक परिवर्तनकारी 'संपूर्ण-सरकारी' दृष्टिकोण है, जिससे लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार होता है।
- PM गति शक्ति सिद्धांत क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के हिस्से के रूप में सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र-आधारित विकास सुनिश्चित करते हैं।
- PM गतिशक्ति को अक्तूबर 2021 में लॉन्च किया गया था।
- गति शक्ति योजना में वर्ष 2019 में 110 लाख करोड़ रुपए की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन लॉन्च की गई।
- PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान एक भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) डेटा-आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसमें 1400 से अधिक डेटा और 50+ उपकरण हैं।
- यह उपयोगिता बुनियादी ढाँचे, भूमि उपयोग, मौजूदा संरचनाओं, मिट्टी की गुणवत्ता, निवास स्थान, पर्यटन स्थलों, वन संवेदनशील क्षेत्रों आदि का दृश्य प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
- यह पहल क्षेत्रीय साझेदारों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने हेतु भी लागू की जा रही है। इसके कुछ उपयुक्त उदाहरण हैं:
- भारत-नेपाल हल्दिया एक्सेस कंट्रोल्ड कॉरिडोर परियोजना (पूर्वी भारतीय राज्य तथा नेपाल)।
- विकास केंद्रों तथा सीमा बिंदुओं तक मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी के लिये क्षेत्रीय जलमार्ग ग्रिड (RWG) परियोजना।
भारत-कनाडा संबंधों पर खालिस्तान का प्रभाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और कनाडा के बीच तनाव तब बढ़ गया जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने जून 2023 में सरे में भारत द्वारा आतंकवादी के रूप में नामित एक खालिस्तानी नेता की हत्या में भारत की संलिप्तता का आरोप लगाया।
भारत ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कनाडा पर खालिस्तानी चरमपंथियों को पनाह देने का आरोप लगाया।
खालिस्तान आंदोलन:
- खालिस्तान आंदोलन वर्तमान पंजाब (भारत और पाकिस्तान दोनों) में एक पृथक, संप्रभु सिख राज्य की लड़ाई है।
- यह मांग कई बार उठती रही है, सबसे प्रमुख रूप से वर्ष 1970 और वर्ष 1980 के दशक में हिंसक विद्रोह के दौरान जिसने पंजाब को एक दशक से अधिक समय तक पंगु बना दिया था।
- ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) और ऑपरेशन ब्लैक थंडर (वर्ष 1986 एवं वर्ष 1988) के बाद भारत में इस आंदोलन को कुचल दिया गया था, लेकिन इसने सिख आबादी के कुछ वर्गों, विशेषकर कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सिख प्रवासी लोगों के बीच सहानुभूति और समर्थन जारी रखा है।
कनाडा में हाल की भारत विरोधी गतिविधियाँ
हालिया भारत विरोधी गतिविधियाँ:
- ऑपरेशन ब्लूस्टार वर्षगाँठ परेड (जून 2023): ब्रैम्पटन, ओंटारियो में आयोजित एक परेड में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाया गया, जिसमें खून से सना हुआ एक चित्र प्रदर्शित किया गया और दरबार साहिब पर हमले का बदला लेने का समर्थन किया गया।
- खालिस्तान समर्थक जनमत संग्रह (2022): खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने ब्रैम्पटन में खालिस्तान पर एक तथाकथित "जनमत संग्रह" आयोजित किया, जिसमें महत्त्वपूर्ण समर्थन का दावा किया गया।
- साँझ सवेरा पत्रिका (2002): वर्ष 2002 में टोरंटो स्थित पंजाबी भाषा की साप्ताहिक पत्रिका साँझ सवेरा ने इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाते हुए ज़िम्मेदार व्यक्तियों का महिमामंडन करते एक कवर चित्रण के साथ उनकी मृत्यु की सालगिरह की बधाई दी।
- पत्रिका को सरकारी विज्ञापन मिले और अब यह कनाडा का एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है।
- ऐसी गतिविधियों पर भारत की चिंताएँ:
- कनाडा स्थित भारतीय राजनयिकों ने कई अवसरों पर कहा है कि "सिख उग्रवाद" से निपटने में कनाडा की विफलता और खालिस्तानियों द्वारा भारतीय राजनयिकों तथा अधिकारियों का लगातार उत्पीड़न, विदेश नीति का एक प्रमुख तनाव बिंदु है।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के मौके पर कनाडा के प्रधानमंत्री से कनाडा में सिख विरोध प्रदर्शन के विषय में कड़ी चिंता जताई।
- कनाडा ने भारत के साथ प्रस्तावित व्यापार संधि पर बातचीत रोक दी है।
खालिस्तानी कट्टरवाद भारत-कनाडा संबंधों प्रभावित करेगा
तनावपूर्ण राजनयिक संबंध:
- आरोप-प्रत्यारोप से राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच समग्र संबंध प्रभावित होंगे।
- भरोसा और विश्वास समाप्त हो सकता है, जिससे विभिन्न द्विपक्षीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग करना मुश्किल हो जाएगा।
सुरक्षा संबंधी निहितार्थ:
- खालिस्तान आंदोलन को विदेशों में भारत की संप्रभुता के लिये एक सुरक्षा जोखिम के रूप में देखा जाता है।
- भारत ने अप्रैल 2023 में सिख अलगाववादी आंदोलन के एक नेता को कथित तौर पर खालिस्तान की स्थापना के लिये आंदोलन का आह्वान करने पर गिरफ्तार किया ,जिससे पंजाब में हिंसा की आशंका पैदा हो गई।
- इससे पहले वर्ष 2023 में भारत ने इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाने वाली परेड में झाँकी की अनुमति देने के लिये कनाडा का विरोध किया था और इसे सिख अलगाववादी हिंसा का महिमामंडन माना था।
- कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में भारतीय राजनयिक मिशनों पर सिख अलगाववादियों एवं उनके समर्थकों द्वारा लगातार प्रदर्शन भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिये खतरा बन सकता है जो कि भारत के लिये एक चिंता का विषय है।
व्यापार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- व्यापार संबंधों को नुकसान हो सकता है क्योंकि ये आरोप भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक साझेदारी और निवेश प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं।
- बढ़ते राजनीतिक तनाव के परिणामस्वरूप, व्यवसाय में अतिरिक्त सावधानी बरत सकते हैं या अपनी भागीदारी पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
- भारत-कनाडा के बीच वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में लगभग 8.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021 की तुलना में 25% की वृद्धि दर्शाता है।
- सेवा क्षेत्र को द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में ज़ोर दिया गया तथा 2022 में द्विपक्षीय सेवा व्यापार का मूल्य लगभग 6.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
प्रमुख मुद्दों पर सहयोग में कमी:
- जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद-रोधी और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग को लेकर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- दोनों देशों को अपनी स्थिति को संरेखित करना और मिलकर इन साझा चिंताओं पर प्रभावी ढंग से कार्य करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है।
संभावित यात्रा और लोगों पर प्रभाव:
- बढ़ते तनाव से भारतीय और कनाडाई नागरिकों के बीच यात्रा और बातचीत प्रभावित हो सकती है, जिससे एक-दूसरे के देशों की यात्रा करना अधिक बोझिल या कम आकर्षक हो जाएगा।
अप्रवासन नीतियों का पुनर्मूल्यांकन:
- ऐसे तत्त्वों को आश्रय देने के बारे में भारत की चिंताओं के जवाब में कनाडा अपनी अप्रवासन नीतियों की समीक्षा कर सकता है या उन्हें सख्त कर सकता है, खासकर खालिस्तानी अलगाववाद से जुड़े व्यक्तियों के संबंध में।
दीर्घकालिक द्विपक्षीय सहयोग:
- हालिया तनाव का दीर्घकालिक द्विपक्षीय सहयोग और साझेदारी पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
- विश्वास का पुनर्निर्माण और रचनात्मक संबंध पुनः स्थापित करने के लिये पर्याप्त प्रयास एवं समय की आवश्यकता हो सकती है।
- भारत ने वर्ष 1947 में कनाडा के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। भारत और कनाडा के बीच साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, दो समाजों की बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय एवं बहु-धार्मिक प्रकृति व दोनों देशों के लोगों के बीच मज़बूत संपर्कों पर आधारित दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंध हैं।
आगे की राह
- भारत सरकार को पंजाब के आर्थिक विकास में निवेश करना चाहिये और उनके लिये संसाधनों, अवसरों तथा लाभों का उचित हिस्सा सुनिश्चित करना चाहिये।
- सरकार को पंजाब में व्याप्त बेरोज़गारी, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, पर्यावरण क्षरण और कृषि संकट की समस्याओं का भी समाधान करना चाहिये।
- भारत सरकार को खालिस्तान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों तथा बचे लोगों के लिये न्याय सुनिश्चित करना चाहिये।
- दोनों देशों को आपसी चिंताओं और शिकायतों पर खुलकर चर्चा करने के लिये सरकार के विभिन्न स्तरों पर संवाद करना चाहिये।
- खालिस्तान मुद्दे का समाधान करने, एक-दूसरे के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने और सर्वहित के लिये एक रचनात्मक संवाद करना चाहिये।
मानवाधिकारों पर एशिया प्रशांत फोरम
चर्चा में क्यों?
भारत की राष्ट्रपति ने मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration on Human Rights- UDHR) की ऐतिहासिक 75वीं वर्षगाँठ मनाते हुए नई दिल्ली में मानवाधिकारों पर एशिया प्रशांत फोरम (Asia Pacific Forum on Human Rights) की वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन का शुभारंभ किया।
मानवाधिकारों पर राष्ट्रपति का दृष्टिकोण क्या था?
- मानवाधिकारों और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संतुलित करना: राष्ट्रपति ने पर्यावरण की रक्षा करते हुए मानवाधिकारों के मुद्दों को संबोधित करने पर ज़ोर दिया।
- मानव जनित पर्यावरणीय क्षति पर चिंता: राष्ट्रपति ने प्रकृति पर मानवीय कार्यों के विनाशकारी प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की।
- मानवाधिकारों की रक्षा का नैतिक दायित्व: उन्होंने मानवाधिकारों की रक्षा के लिये कानूनी ढाँचे से अलग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के नैतिक कर्तव्य पर प्रकाश डाला।
- लैंगिक न्याय के प्रति भारत की प्रतिबद्धता: उन्होंने दोहराया कि भारतीय संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया है, जिससे लैंगिक न्याय और गरिमा के संरक्षण को बढ़ावा मिला है।
- विश्व की सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रति ग्रहणशीलता: उन्होंने कहा कि भारत मानवाधिकारों में सुधार के लिये वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख लेने के लिये तैयार है।
- मातृ प्रकृति का पोषण: उन्होंने मानवाधिकार के मुद्दों को अलग-थलग न करने और आहत मातृ प्रकृति की सुरक्षा को समान रूप से प्राथमिकता देने का आग्रह किया।
मानवाधिकार की महत्ता
- व्यक्तिगत गरिमा की सुरक्षा: यह प्रत्येक मनुष्य की अंतर्निहित गरिमा एवं मूल्यों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है।
- सामाजिक न्याय और समानता: यह हाशिये पर मौजूद और कमज़ोर आबादी के अधिकारों की रक्षा करके सामाजिक न्याय एवं समानता को बढ़ावा देता है।
- कानून का शासन: यह जवाबदेही और न्याय के लिये एक ढाँचा स्थापित करके कानून के शासन को बढ़ावा देता है।
- शांति और स्थिरता: यह शिकायतों तथा संघर्षों को संबोधित करके राष्ट्रों के भीतर और उनके बीच शांति एवं स्थिरता में योगदान देता है।
- विकास और समृद्धि: यह आर्थिक और सामाजिक विकास को सुगम बनाता है, जिससे जीवन स्तर में सुधार होता है।
- वैश्विक सहयोग: वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के हनन को संबोधित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और कूटनीति को बढ़ावा देता है।
- अत्याचारों को रोकना: यह मानवाधिकारों के हनन और अत्याचारों के निवारक के रूप में कार्य करता है।
- सार्वभौमिक मूल्य के रूप में मानवीय गरिमा: यह सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक सीमाओं से परे एक सार्वभौमिक मूल्य के रूप में मानवीय गरिमा को बनाये रखता है।
- व्यक्तिगत सशक्तीकरण: व्यक्तियों को अपने अधिकारों का दावा करने और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिये सशक्त बनाता है।
- जवाबदेही और न्याय: मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये सरकारों और संस्थानों को ज़िम्मेदार ठहराता है तथा पीड़ितों के लिये न्याय उपलब्ध करने के लिये प्रयासरत है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC)
परिचय:
- यह व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान से संबंधित अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकार और भारतीय न्यायालयों द्वारा लागू किये जाने योग्य अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध का समर्थन करता है।
स्थापना:
- इसे मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा के लिये मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित किया गया।
भूमिका और कार्य:
- यह न्यायिक कार्यवाही के साथ सिविल न्यायालय की शक्तियाँ रखता है।
- इसे मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच हेतु केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों या जाँच एजेंसियों की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार है।
- यह घटित होने के एक वर्ष के अंदर मामलों की जाँच कर सकता है।
- इसका कार्य मुख्यतः अनुशंसात्मक प्रकृति का होता है।
सीमाएँ:
- आयोग कथित मानवाधिकार उल्लंघन की तारीख से एक वर्ष के पश्चात् किसी भी मामले की जाँच नहीं कर सकता है।
- आयोग को सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में सीमित क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं।
- आयोग को निजी पक्षों द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।
नेपाल में चीन की भू-राजनीतिक पहल
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में चीन और नेपाल ने व्यापार, सड़क संपर्क और सूचना प्रौद्योगिकी सहित कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिये 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
नेपाल और चीन के बीच हस्ताक्षरित समझौते
समझौतों में निम्नलिखित के लिये समझौता ज्ञापन शामिल हैं:
- नेपाल के राष्ट्रीय योजना आयोग और चीन के राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग के बीच सहयोग।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था निगम को बढ़ावा।
- हरित और निम्न-कार्बन विकास पर सहयोग।
- कृषि, पशुधन और मत्स्य पालन के क्षेत्र में सहयोग।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार और मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में सहयोग।
- नेपाल-चीन व्यापार और भुगतान समझौते की समीक्षा के लिये तंत्र।
- नेपाल से चीन तक चीनी चिकित्सा के लिये पौधों से प्राप्त औषधीय सामग्रियों के निर्यात के लिये फाइटोसैनिटरी आवश्यकताओं के एक प्रोटोकॉल पर भी हस्ताक्षर किये गए।
- नेपाल ने चीन की वैश्विक सुरक्षा पहल (GSI) में शामिल होने के चीन के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया, इस बात का समर्थन करते हुए कि भारत, चीन और अमेरिका के बीच रणनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिये संयुक्त सुरक्षा नेपाल के हित में नहीं है।
चीन-नेपाल संबंध की पूर्व स्थिति
भू-राजनीतिक संबंध:
- नेपाल अपनी विदेश नीति की रणनीति के हिस्से के रूप में अपने दो पड़ोसियों, भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है।
- हाल के वर्षों में नेपाल में चीन का प्रभाव काफी बढ़ गया है, सितंबर 2015 से भारत द्वारा नेपाल की लगभग छह महीने की आर्थिक नाकेबंदी ने चीन को देश में तेज़ी से प्रवेश करने का मौका दिया।
- चीन ने नेपाल की राजनीति में आक्रामक हस्तक्षेप करने के साथ ही दो कम्युनिस्ट पार्टियों- माओवादी सेंटर तथा यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट को एक साथ लाने में भूमिका निभाई।
- नेपाल में कम्युनिस्ट आंदोलन के साथ चीन के ऐतिहासिक संबंध हैं, विशेष रूप से नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) के साथ, जो नेपाली राज्य के खिलाफ एक दशक लंबे सशस्त्र विद्रोह में शामिल थी। इस अवधि के दौरान माओवादी आंदोलन को चीन से वैचारिक, तार्किक और यहाँ तक कि सैन्य समर्थन भी प्राप्त हुआ।
आर्थिक सहयोग:
- व्यापार, निवेश और बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए चीन एवं नेपाल के बीच आर्थिक सहयोग में तेज़ी देखी गई है।
- क्रॉस-हिमालयन रेलवे, बंदरगाह और पनबिजली संयंत्र जैसी प्रमुख परियोजनाएँ कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ ही नेपाल की आर्थिक वृद्धि में योगदान दे रही हैं।
- नेपाल ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में रुचि व्यक्त की है, जिसका लक्ष्य बुनियादी ढाँचे की कनेक्टिविटी और व्यापार सुविधा में सुधार करना है।
सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग:
- चीन और नेपाल संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं और क्षमता निर्माण एवं सैन्य प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए रक्षा सहयोग बढ़ा रहे हैं।
- चीन ने अपने रक्षा संबंधों को और मज़बूत करते हुए नेपाल को सैन्य सहायता प्रदान की है।
चीन और नेपाल के बीच मुद्दा:
- अपने नए मानचित्र में चीन ने नेपाल के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में भूमि के एक हिस्से की पहचान करने से इनकार कर दिया, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर नेपाल ने दावा किया था और वर्ष 2020 में अपने मानचित्र में इसे चित्रित किया था।
नेपाल में चीन की बढ़ती उपस्थिति का भारत पर प्रभाव
सुरक्षा चिंताएँ:
- नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव संभावित रूप से भारत के लिये रणनीतिक घेराबंदी का कारण बन सकता है, क्योंकि यह उस देश में अपनी उपस्थिति मज़बूत करता है जो भारत के साथ लंबी सीमा साझा करता है।
- इससे भारत के लिये सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं।
संसाधनों तक पहुँच:
- नेपाल में चीन की बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ और आर्थिक जुड़ाव भारतीय निवेश तथा आर्थिक हितों के साथ प्रतिस्पर्द्धा का कारण बन सकते हैं, जिससे क्षेत्र में संसाधनों और बाज़ारों तक भारत की पहुँच प्रभावित हो सकती है।
बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) और कनेक्टिविटी:
- चीन की BRI पहल में नेपाल की भागीदारी से चीन समर्थित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और कनेक्टिविटी में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है, जिससे व्यापार के लिये चीन पर नेपाल की निर्भरता बढ़ेगी परिणामस्वरूप भारत के हितों को हानि होगी।
क्षेत्रीय समन्वय को लेकर चुनौतियाँ:
- चीन के साथ नेपाल के घनिष्ठ संबंध दक्षिण एशिया में चीन को रणनीतिक मज़बूती प्रदान करते हैं, जिससे संभावित रूप से चीन को अपनी सीमाओं से परे शक्ति और प्रभाव दिखाने की अनुमति मिलती है।
- नेपाल में चीन की मज़बूत भागीदारी से भारत के लिये क्षेत्रीय प्रतिक्रियाओं और पहलों को प्रभावी ढंग से समन्वित करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।