पारस्परिकता और गैर-पारस्परिकता
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिकों ने उन उपकरणों का विकास किया है, जो पारस्परिकता के सिद्धांतों को तोड़कर पारस्परिकता से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का समाधान करने में मदद करते हैं।
पारस्परिकता
परिचय:
- पारस्परिकता का अर्थ है कि यदि कोई सिग्नल एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक भेजा जाता है, तो उसे दूसरे बिंदु से पहले पर वापस भेज दिया जाता है।
- उदाहरण के लिये जब आप किसी मित्र की तरफ टॉर्च की रोशनी करते हैं तो उसकी चमक वापस आप पर आ सकती है क्योंकि प्रकाश हवा के माध्यम से दोनों तरफ फैल सकता है।
- हालाँकि ऐसी स्थितियाँ हैं जहाँ पारस्परिकता अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं करती है।
- उदाहरण के लिये जैसे कुछ फिल्मों में किसी व्यक्ति से कमरे में पूछताछ के दौरान उस कमरे में बैठा व्यक्ति पुलिस अधिकारी को नहीं देख सकता है, लेकिन पुलिस अधिकारी उसे देख सकता है।
- इसके अलावा अँधेरे में स्ट्रीटलाइट के नीचे खड़े व्यक्ति को देखा जा सकता है, लेकिन अँधेरे में खड़ा व्यक्ति उसे नहीं देख सकता।
अनुप्रयोग:
- एंटीना परीक्षण: पारस्परिकता एंटीना परीक्षण को सरल बनाती है। विभिन्न दिशाओं में कई सिग्नल स्रोतों का उपयोग करने के बजाय कोई एक सिग्नल को एंटीना में भेजा जा सकता है और देखा सकता है कि यह किस तरह से इसे वापस संचारित करता है।
- यह विभिन्न दिशाओं से सिग्नल प्राप्त करने की एंटीना की क्षमता को निर्धारित करने में सहायता करता है, जिसे इसके दूर-क्षेत्र पैटर्न के रूप में जाना जाता है।
- रडार सिस्टम: इंजीनियर रडार सिस्टम का परीक्षण और संचालन करने हेतु पारस्परिकता का उपयोग करते हैं। रडार एंटेना सिग्नल कैसे भेजते और प्राप्त करते हैं, इसका अध्ययन करके वे सिस्टम के प्रदर्शन तथा सटीकता में सुधार कर सकते हैं।
- रडार एक विद्युत चुंबकीय सेंसर है जिसका उपयोग काफी दूरी पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का पता लगाने, ट्रैकिंग और पहचान के लिये किया जाता है।
- सोनार सिस्टम: सोनार तकनीक, जिसका उपयोग जल के अंदर पता लगाने और नेविगेशन के लिये किया जाता है, में पारस्परिकता सोनार उपकरणों के प्रदर्शन के परीक्षण तथा अनुकूलन में सहायता करती है।
- भूकंपीय सर्वेक्षण: पारस्परिकता उपसतह संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये भू-विज्ञान और तेल अन्वेषण में उपयोग किये जाने वाले भूकंपीय सर्वेक्षण उपकरणों के परीक्षण तथा संचालन को सरल बनाता है।
- मेडिकल इमेजिंग (MRI): MRI स्कैनर मानव शरीर की विस्तृत चिकित्सा छवियाँ बनाने के लिये सिग्नल भेजने और प्राप्त करने हेतु पारस्परिकता सिद्धांतों का उपयोग करते हैं।
पारस्परिकता की चुनौतियाँ
जासूसी और सूचना सुरक्षा:
- पारस्परिकता का अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति लक्ष्य से सिग्नल प्राप्त कर सकता है, तो उसका अपना उपकरण अनजाने में सिग्नल प्रसारित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से उसके स्थान या उद्देश्य का पता लगाया जा सकता है।
बैकरिफ्लेक्शन :
- सिग्नल ट्रांसमिशन के लिये उच्च-शक्ति वाले लेज़रों को डिज़ाइन करते समय ट्रांसमिशन लाइन में खामियाँ हानिकारक बैकरिफ्लेक्शन का कारण बन सकती हैं। पारस्परिकता निर्देश देती है कि ये बैकरिफ्लेक्शन लेज़र में फिर से प्रवेश कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से क्षति या हस्तक्षेप हो सकता है।
- संचार प्रणालियों में पारस्परिकता के कारण मज़बूत बैक-रिफ्लेक्शन हो सकता है, जिससे हस्तक्षेप और सिग्नल का क्षरण हो सकता है।
- संचार नेटवर्क की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये इन बैक-रिफ्लेक्शन को प्रबंधित करना आवश्यक है।
क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये सिग्नल प्रवर्द्धन:
- क्वांटम कंप्यूटर अत्यंत संवेदनशील क्विबिट का उपयोग करते हैं जिन्हें बहुत कम तापमान पर बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
- उनकी क्वांटम अवस्थाओं को समझने के लिये संकेतों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाया जाना चाहिये।
- हालाँकि पारस्परिकता, शोर या अवांछित इंटरैक्शन को शुरू किये बिना कुशल और नियंत्रित सिग्नल प्रवर्द्धन प्राप्त करने में चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है।
लघुकरण:
- जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी नैनोमीटर और माइक्रोमीटर पैमाने पर लघुकरण की ओर बढ़ती है, तेज़ी से सिग्नल दक्षता एवं नियंत्रण सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होता जाता है। सेल्फ-ड्राइविंग कारों में जहाँ विभिन्न सिग्नलों की निगरानी सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, पारस्परिक सिग्नल इंटरैक्शन की जटिलताओं को प्रबंधित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है।
पारस्परिकता से संबंधित चुनौतियों पर नियंत्रण के तरीके
चुंबक-आधारित गैर-पारस्परिकता:
- वैज्ञानिकों ने चुंबक-आधारित गैर-पारस्परिक उपकरण विकसित किये हैं, जिसमें वेव प्लेट और फैराडे रोटेटर जैसे घटक शामिल हैं।
- .फैराडे रोटेटर, एक चुंबकीय सामग्री का उपयोग करके तरंगों को एक दिशा में पारित करने की अनुमति देता है लेकिन उन्हें विपरीत दिशा में अवरुद्ध कर देता है, जिससे पारस्परिकता का सिद्धांत टूट जाता है।
मॉड्यूलेशन:
- मॉड्यूलेशन में माध्यम के कुछ मापदंडों को समय या स्थान में निरंतर परिवर्तन शामिल है।
- माध्यम के गुणों में परिवर्तन करके वैज्ञानिक तरंग संचरण को नियंत्रित कर सकते हैं और सिग्नल रूटिंग, संचार तथा हस्तक्षेप से संबंधित चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
- यह विधि विभिन्न परिस्थितियों में संकेतों के प्रबंधन में लचीलापन प्रदान करती है।
अरैखिकता:
- अरैखिकता में माध्यम के गुणों को आने वाले सिग्नल की शक्ति पर निर्भर करना शामिल है, जो बदले में, सिग्नल के प्रसार की दिशा पर निर्भर करता है।
- यह दृष्टिकोण वैज्ञानिकों को माध्यम की अरेखीय प्रतिक्रिया में हेर-फेर करके सिग्नल ट्रांसमिशन को नियंत्रित करने की अनुमति देता है। यह गैर-पारस्परिकता प्राप्त करने और सिग्नल इंटरैक्शन को नियंत्रित करने का एक तरीका प्रदान करता है।
स्मार्टफोन में NavIC एकीकरणस्मार्टफोन में NavIC एकीकरण
चर्चा में क्यों?
- भारत सरकार का इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय सभी उपकरणों के लिये घरेलू नेविगेशन सिस्टम NavIC (भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन) के समर्थन को अनिवार्य करने की योजना बना रहा है।
प्रमुख बिन्दु
- यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब नए लॉन्च किये गए Apple iPhone 15 ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित नेविगेशन सिस्टम को अपने हार्डवेयर में एकीकृत किया है।
स्मार्टफोन में NavIc के एकीकरण के लिये सरकार की योजनाएँ
- केंद्र सरकार वर्ष 2025 तक भारत में बेचे जाने वाले सभी स्मार्टफोन में NavIC के एकीकरण को अनिवार्य करने पर विचार कर रही है, विशेष रूप से 5G फोन को लक्षित करते हुए।
- निर्माताओं को घरेलू चिप डिज़ाइन और उत्पादन को बढ़ावा देने, NavIC तकनीक का समर्थन करने वाले चिप्स का उपयोग करने हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के माध्यम से अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है।
NavIC को अपनाने के लिये रोडमैप और भविष्य की संभावनाएँ
- NavIC को अपनाकर इसे बढ़ावा देने के लिये ISRO ने मई 2023 में दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रह लॉन्च किये थे जो अन्य उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणालियों के साथ अंतर-संचालनीयता को बढ़ाएंगे और उपयोग का विस्तार करेंगे।
- दूसरी पीढ़ी के उपग्रह मौजूदा उपग्रहों द्वारा प्रदान किये जाने वाले L5 और S आवृत्ति संकेतों के अलावा तीसरी आवृत्ति, L1 में सिग्नल भेजेंगे।
- L1 आवृत्ति ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली आवृत्तियों में से एक है और पहनने योग्य उपकरणों तथा व्यक्तिगत ट्रैकर्स में क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली के उपयोग को बढ़ाएगी जो कम-शक्ति, एकल-आवृत्ति चिप्स का उपयोग करते हैं।
- यह रणनीतिक कदम प्रौद्योगिकी संप्रभुता स्थापित करने और एक प्रमुख अंतरिक्ष-प्रमुख राष्ट्र के रूप में उभरने की भारत की आकांक्षाओं के अनुरूप है।
भारतीय नेविगेशन (NavIC)
- भारत का NavIC इसरो द्वारा विकसित एक स्वतंत्र नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है जिसकी शुरुआत वर्ष 2018 में की गई।
- यह भारत और भारतीय मुख्यभूमि के आसपास लगभग 1500 किमी. तक फैले क्षेत्र में सटीक रियल-टाइम पोज़िशनिंग और टाइमिंग सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
- इसे 7 उपग्रहों के समूह और 24×7 संचालित होने वाले ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।कुल आठ उपग्रह हैं हालाँकि केवल सात ही सक्रिय रहते हैं।
- तीन उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा में और चार उपग्रह भूतुल्यकालिक कक्षा में हैं।
- इसे वर्ष 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा मान्यता दी गई थी।
संभावित उपयोग
- स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
- आपदा प्रबंधन;
- वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन (विशेषकर खनन और परिवहन क्षेत्र के लिये);
- मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
- सटीक समय (ATM और पावर ग्रिड के लिये);
- मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चर।
NavIC को एकीकृत करने का महत्त्व
- सामरिक प्रौद्योगिकी स्वायत्तता:NavIC ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) जैसे विदेशी वैश्विक नेविगेशन सिस्टम पर निर्भरता कम करता है, जो महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी को स्वतंत्र रूप से विकसित करने और तैनात करने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र अपने महत्त्वपूर्ण नेविगेशन अवसंरचना को नियंत्रित और सुरक्षित कर सकता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा तथा रक्षा अनुप्रयोगों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उन्नत सटीकता और विश्वसनीयता: NavIC विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और आसपास के क्षेत्र में अत्यधिक सटीक एवं विश्वसनीय स्थिति व समय की सूचना प्रदान करता है।
- आपदा प्रबंधन और कृषि से लेकर शहरी नियोजन व परिवहन तक समग्र दक्षता तथा निर्णय लेने में सुधार के लिये सटीकता आवश्यक है।
- भारतीय भू-भाग के लिये अनुकूलित समाधान: NavIC को भारत की विशिष्ट भौगोलिक और स्थलाकृतिक स्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जहाँ पारंपरिक वैश्विक नेविगेशन सिस्टम की सीमाएँ हो सकती हैं।
- भारत के विविध परिदृश्य के अनुरूप नेविगेशन प्रणाली को तैयार करना अधिक सटीक और कुशल स्थान-आधारित सेवा सुनिश्चित करता है।
- उपयोग के मामलों का विस्तार और नवाचार: NavIC का एकीकरण स्थान-आधारित सेवाओं, नेविगेशन एप्स और अन्य नवीन समाधानों के लिये अवसर प्रदान करता है जिन्हें विशिष्ट स्थानीय आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के अनुरूप बनाया जा सकता है।
- यह उद्यमिता को बढ़ावा देता है और एक उन्नतिशील एप विकास पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के साथ ही प्रौद्योगिकी में रचनात्मकता और नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
विश्व में संचालित अन्य नेविगेशन सिस्टम
चार वैश्विक प्रणालियाँ
- संयुक्त राज्य अमेरिका से GPS
- रूस से ग्लोनास (GLONASS)
- यूरोपीय संघ से गैलीलियो (Galileo)
- चीन से BeiDou
दो क्षेत्रीय प्रणालियाँ
- भारत से NavIC
- जापान से QZSS
गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता और आकाशगंगा विकास
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा एक अध्ययन जारी किया गया, जिसका उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता और आकाशगंगा विकास के बीच संबंधों को समझना है।
अध्ययन की पद्धति
- शोधकर्ताओं ने स्पिट्ज़र फोटोमेट्री और एक्यूरेट रोटेशन कर्व्स (SPARC) डेटाबेस से 175 आकाशगंगाओं के नमूने के स्थिरता स्तर का विश्लेषण कर आस-पास की आकाशगंगाओं में गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता वृद्धि के लिये तारों की निर्माण दर, गैस अंश और समय के पैमाने की तुलना की।
- अध्ययन में जाँच की गई कि आकाशगंगाओं में स्थिरता के स्तर को कैसे नियंत्रित किया जाता है, जिसमें डार्क मैटर की संभावित भूमिका भी शामिल है। इसने यह निर्धारित करने की कोशिश की कि क्या तारे और गैस स्थिरता के स्तर को स्व-विनियमित कर सकते हैं।
- उन्होंने आस-पास की आकाशगंगाओं में स्थिरता के स्तर की तुलना उच्च रेडशिफ्ट पर देखे गए स्थिरता स्तरों से की, जिन्हें स्थानीय ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं का अग्रदूत माना जाता है।
अध्ययन के मुख्य तथ्य
सर्पिल आकाशगंगाएँ:
- आकाशगंगा जैसी सर्पिल आकाशगंगाओं ने विशिष्ट विशेषताओं का प्रदर्शन किया।
- उनके पास उच्च औसत तारा निर्माण दर, कम स्थिरता, कम गैस अंश और गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता के विकास के लिये एक छोटा समय पैमाना था।
गैस का तारों में रूपांतरण:
- कम स्थिरता वाली सर्पिल आकाशगंगाओं में गुरुत्वाकर्षण अस्थिरताएँ बड़ी मात्रा में गैस को कुशलतापूर्वक तारों में परिवर्तित कर देती हैं।
- इस प्रक्रिया के कारण इन आकाशगंगाओं में गैस भंडार कम हो गए हैं।
तारा निर्माण तंत्र:
- सीमांत स्थिरता स्तर वाली आकाशगंगाएँ थोड़े समय के पैमाने पर तीव्र तारा निर्माण गतिविधि से गुज़रती हैं, जिससे गैस भंडार कम हो जाता है।
- इसके विपरीत अत्यधिक स्थिर आकाशगंगाएँ लंबे समय के पैमाने पर धीमी और क्रमिक तारा निर्माण प्रक्रियाओं का प्रदर्शन करती हैं, जो उपलब्ध गैस को तारों में परिवर्तित करती हैं।
भविष्य और महत्त्व:
- विभिन्न रेडशिफ्ट्स में आकाशगंगाओं के रूपात्मक विकास पर गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता के प्रभाव की भविष्य में जाँच की आवश्यकता है।
- आकाशगंगा निर्माण और विकास में मूलभूत प्रक्रियाओं को समझने के लिये यह अंतर्दृष्टि महत्त्वपूर्ण है।
इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में टोयोटा किर्लोस्कर मोटर द्वारा विकसित विश्व के पहले भारत स्टेज-6 (BS-6) स्टेज-II, इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल अर्थात् विद्युतीकृत फ्लेक्स ईंधन वाहन के प्रोटोटाइप का अनावरण किया गया।
- यह वाहन 85% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल से चलने में सक्षम है और इसमें इलेक्ट्रिक पावरट्रेन की सुविधा है।
- पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (Ministry of Petroleum & Natural Gas) ने 20% से अधिक उच्च इथेनॉल मिश्रण के साथ पेट्रोल को प्रतिस्थापित करने के लिये फ्लेक्स-ईंधन वाहनों की क्षमता पर भी प्रकाश डाला है।
क्या होते हैं इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल?
परिचय:
- एक इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल/विद्युतीकृत फ्लेक्स ईंधन वाहन में एक फ्लेक्सी ईंधन इंजन और एक इलेक्ट्रिक पावरट्रेन दोनों होते हैं जो इसे उच्च इथेनॉल उपयोग और बहुत अधिक ईंधन दक्षता का दोहरा लाभ प्रदान करने की क्षमता प्रदान करता है।
- फ्लेक्स फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल (FFV-SHEV): जब FFV को मज़बूत हाइब्रिड इलेक्ट्रिक तकनीक के साथ एकीकृत किया जाता है, तो इसे FFV-SHEV कहा जाता है।
- स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड पूर्ण हाइब्रिड वाहनों के लिये प्रयुक्त किया जाने वाला एक अन्य शब्द है, जो पूरी तरह से इलेक्ट्रिक या पेट्रोल मोड पर चलने की क्षमता रखते हैं।
- इसके विपरीत हल्के हाइब्रिड वाहन पूरी तरह से इनमें से किसी एक मोड पर नहीं चल सकते हैं और द्वितीयक मोड का उपयोग केवल प्रणोदन के मुख्य मोड के पूरक के रूप में करते हैं।
महत्त्व:
- इलेक्ट्रिक पॉवरट्रेन के एकीकरण से पारंपरिक ईंधन पर निर्भरता कम हो जाती है, जो ‘संवहनीय परिवहन’ तथा 'आत्मनिर्भर भारत' के तहत इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने जैसी पहलों में योगदान देगा।
- SHEVs के समान ही यह वाहन इथेनॉल और विद्युत के उपयोग को अनुकूलित करके उच्च ईंधन दक्षता प्राप्त कर सकता है।
- FFV के उपयोग को बढ़ावा देने से भारत की पेट्रोल की खपत कम हो सकती है और इस तरह देश में प्रचुर इथेनॉल क्षमता का लाभ उठाया सकता है।
- यह वाहन जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप डीकार्बोनाइज़ेशन और ग्रीन मोबिलिटी की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है।
BS6 (स्टेज II) मानदंड क्या हैं?
- BS6 मानदंड: भारत स्टेज (BS) मानदंड मोटर वाहनों से वायु प्रदूषकों के उत्पादन को विनियमित करने के लिये भारत सरकार द्वारा स्थापित उत्सर्जन मानक हैं।
- BS विनियम यूरोपीय उत्सर्जन मानकों पर आधारित हैं और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) इन मानकों को लागू करता है।
- वर्तमान में भारत में प्रत्येक नए बेचे गए और पंजीकृत वाहन को उत्सर्जन नियमों के BS-VI संस्करण का पालन करना आवश्यक है।
- BS6 (स्टेज II): शुरुआती BS6 मानदंडों की तुलना में BS6 (स्टेज II) की उत्सर्जन सीमाएँ अधिक सख्त हैं।
- BS6 (स्टेज II) में वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन (Real Driving Emissions- RDE) एवं कॉर्पोरेट औसत ईंधन अर्थव्यवस्था (Corporate Average Fuel Economy- CAFE 2) और ऑन-बोर्ड डायग्नोस्टिक्स शामिल हैं।
- नए RDE परीक्षण के आँकड़े गति (Speed), त्वरण (Acceleration) और मंदन (Deceleration) में लगातार परिवर्तन के साथ वास्तविक यातायात स्थितियों में वाहनों द्वारा उत्पादित उत्सर्जन की मात्रा का अधिक यथार्थवादी अनुमान प्रदान करेंगे।
- ऑनबोर्ड डायग्नोस्टिक (OBD) सिस्टम विभिन्न वाहन उपप्रणालियों और सेंसरों की स्थिति तथा प्रदर्शन की निगरानी करते हैं व इन्हें रिकॉर्ड करते हैं।
आदित्य-एल1 मिशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने अपने पहले सौर मिशन, आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण किया।
- इसका प्रक्षेपण PSLV-C57 रॉकेट का उपयोग करके किया गया था। इसरो के इतिहास में यह पहली बार था जब PSLV के चौथे चरण को दो बार प्रक्षेपित किया गया, ताकि अंतरिक्ष यान को उसकी अंडाकार कक्षा में सटीक रूप से स्थापित किया जा सके।
आदित्य-एल1 मिशन
परिचय:
- आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है। L1 बिंदु तक पहुँचने में इसे लगभग 125 दिन लगेंगे।
- एस्ट्रोसैट (AstroSat- वर्ष 2015) के बाद आदित्य-एल1 भी इसरो का दूसरा खगोल विज्ञान वेधशाला-श्रेणी मिशन है।
- इस मिशन की यात्रा भारत के पिछले मार्स ऑर्बिटर मिशन, मंगलयान की तुलना में काफी छोटी है।
- अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (L1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है।
उद्देश्य:
- इस मिशन का उद्देश्य सौर कोरोना (Solar Corona), प्रकाशमंडल (Photosphere), क्रोमोस्फीयर (Chromosphere) और सौर पवन (Solar Wind) के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करना है।
- आदित्य-एल1 का प्राथमिक उद्देश्य सूर्य के विकिरण, ऊष्मा, कण प्रवाह तथा चुंबकीय क्षेत्र सहित सूर्य के व्यवहार और वे पृथ्वी को कैसे प्रभावित करते हैं, के संबंध में गहरी समझ हासिल करना है।
लैग्रेंज पॉइंट
परिचय:
- लैग्रेंज पॉइंट्स अंतरिक्ष में वे विशेष स्थान हैं जहाँ सूर्य और पृथ्वी जैसे दो बड़े परिक्रमा करने वाले पिंडों की गुरुत्वाकर्षण शक्तियाँ एक-दूसरे को संतुलित करती हैं।
- इसका अर्थ यह है कि एक छोटी वस्तु, जैसे कि अंतरिक्ष यान, अपनी कक्षा को बनाए रखने के लिये अधिक ईंधन का उपयोग किये बिना इन बिंदुओं पर रह सकती है।
- कुल पाँच लैग्रेंज पॉइंट होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएँ हैं। ये बिंदु एक छोटे द्रव्यमान को दो बड़े द्रव्यमानों के मध्य स्थिर पैटर्न में परिक्रमा करने में सक्षम बनाते हैं।
सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में लैग्रेंज पॉइंट:
- L1: L1 को सौर अवलोकन के लिये लैग्रेंज बिंदुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। L1 के आस पास प्रभामंडल कक्षा में रखा गया उपग्रह, सूर्य का बिना किसी प्रच्छादन/ग्रहण के लगातार अवलोकन करने में मदद करता है।
- सौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (SOHO) इस समय वहाँ मौजूद है।
- L2: यह सूर्य से देखने पर पृथ्वी के ठीक 'पीछे' स्थित है, L2 पृथ्वी की छाया के हस्तक्षेप के बिना बड़े ब्रह्मांड का अवलोकन करने के लिये उत्कृष्ट है।
- जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप, L2 के पास सूर्य की परिक्रमा करता है।
- L3: सूर्य के पीछे, पृथ्वी के विपरीत और पृथ्वी की कक्षा से ठीक परे स्थित यह सूर्य के सुदूर भाग का संभावित अवलोकन प्रदान करता है।
- L4 एवं L5: L4 और L5 पर वस्तुएँ स्थिर स्थिति बनाए रखती हैं, जिससे दो बड़े पिंडों के साथ एक समबाहु त्रिभुज बनता है।
- इनका उपयोग अक्सर अंतरिक्ष वेधशालाओं के लिये किया जाता है,जैसे कि क्षुद्रग्रहों की जाँच करने के लिये उपयोग किया जाता है।
सौर अन्वेषण का महत्त्व
- हमारे सौर मंडल को समझना: सूर्य हमारे सौर मंडल का केंद्र है और इसकी विशेषताएँ अन्य सभी खगोलीय पिंडों के व्यवहार को काफी प्रभावित करती हैं। सूर्य का अध्ययन करने से हमें सौर मंडल के आस-पास की गतिशीलता को समझने में सहायता मिल सकती है।
- अंतरिक्ष मौसम/वातावरण की भविष्यवाणी: सौर गतिविधियाँ, जैसे सौर प्रज्वाल और कोरोनल मास इजेक्शन पृथ्वी के अंतरिक्ष पर्यावरण को प्रभावित कर सकती हैं।
- संचार प्रणालियों, नौसंचालन और पावर ग्रिड में संभावित व्यवधानों की भविष्यवाणी करने तथा उन्हें कम करने के लिये इन घटनाओं को समझना आवश्यक है।
- सौर भौतिकी को आगे बढ़ाना: इसके चुंबकीय क्षेत्र, हीटिंग मेकेनिज़्म एवं प्लाज़्मा गतिशीलता सहित सूर्य के जटिल व्यवहार की खोज, मौलिक भौतिकी और खगोल भौतिकी की प्रगति में योगदान देते हैं।
- ऊर्जा अनुसंधान को बढ़ावा: सूर्य एक प्राकृतिक संलयन रिएक्टर है। इसके मूल और परमाणु प्रतिक्रियाओं के अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि पृथ्वी पर स्वच्छ और टिकाऊ संलयन ऊर्जा की हमारी खोज में सहायक हो सकती है।
- उपग्रह संचालन में सुधार: सौर विकिरण और सौर वायु उपग्रहों और अंतरिक्ष यान के कामकाज़ को प्रभावित करते हैं। इन सौर अंतःक्रियाओं को समझने से अंतरिक्ष यान को बेहतर ढंग से डिज़ाइन और संचालन करने में सहायता मिलती है।
मानव विकास में बाधा
संदर्भ
मानव विकास (Human development) केवल आर्थिक विकास की तलाश और अर्थव्यवस्था में समृद्धि को अधिकतम करने पर केंद्रित नहीं है। इसके बजाय, यह मानवता के विचार के आसपास केंद्रित है, जिसमें स्वतंत्रता का विस्तार करना, क्षमताओं में सुधार करना, समान अवसरों को बढ़ावा देना और एक समृद्ध, स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन को सुनिश्चित करना शामिल है।
- भारत वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालाँकि इस विकास के परिणामस्वरूप इसके मानव विकास सूचकांक (Human Development Index- HDI) में समान रूप से वृद्धि नहीं हुई है। वर्ष 2021-22 की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, भारत 191 देशों की सूची में बांग्लादेश और श्रीलंका से भी नीचे 132वें स्थान पर है।
- भारत के विशाल आकार और बड़ी आबादी को देखते हुए, मानव विकास में उप-राष्ट्रीय या राज्य-वार असमानताओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है, जो फिर भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को साकार कर सकने में मदद करेगा।
HDI क्या है?
- HDI संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) द्वारा दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में मानव विकास के स्तर का मूल्यांकन और तुलना करने के लिये सृजित एक समग्र सांख्यिकीय मापक है।
- इसे वर्ष 1990 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जैसे पारंपरिक आर्थिक मापकों—जो मानव विकास के व्यापक पहलुओं पर विचार नहीं करते है, के एक विकल्प के रूप में पेश किया गया था।
- HDI तीन पहलुओं में किसी देश की औसत उपलब्धि का आकलन करता है: सुदीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान और जीवन का एक सभ्य स्तर।
- उप-राष्ट्रीय HDI दर्शाता है कि जहाँ कुछ राज्यों ने व्यापक प्रगति की है, वहीं अन्य अभी भी संघर्ष कर रहे हैं।
- सूचकांक में दिल्ली शीर्ष स्थान पर है, जबकि बिहार सबसे नीचे है।
- यद्यपि यह उल्लेखनीय है कि पिछली HDI रिपोर्ट के विपरीत बिहार अब निम्न मानव विकास वाला राज्य नहीं रह गया है।
मानव विकास की प्राप्ति में भारत के समक्ष विद्यमान प्रमुख बाधाएँ
आर्थिक विकास का असमान वितरण:
- मानव विकास की प्राप्ति में बाधा का एक प्रमुख कारण यह है कि आर्थिक विकास का वितरण असमान रूप से हुआ है।
- भारतीय आबादी के शीर्ष 10% के पास 77% से अधिक संपत्ति है।
- इसके परिणामस्वरूप बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुँच में उल्लेखनीय असमानताएँ उत्पन्न हुई हैं।
सेवाओं की निम्न गुणवत्ता:
- जबकि भारत ने गरीबी को कम करने और स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, ऐसी सेवाओं की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी हुई है।
- उदाहरण के लिये, जबकि देश ने प्राथमिक शिक्षा में लगभग सार्वभौमिक नामांकन की स्थिति प्राप्त कर ली है, शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर निम्न बना हुआ है।
प्रभावी शैक्षिक अवसंरचना का अभाव:
- भारत अपने नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में भी चुनौतियों का सामना कर रहा है। कई स्कूलों में पर्याप्त कक्षाओं, स्वच्छ जल और प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
उचित पोषण की कमी:
- भारत में कुपोषण और अल्पपोषण विशेष रूप से बच्चों में व्याप्त प्रमुख समस्याएँ हैं। इसका उनके स्वास्थ्य, संज्ञानात्मक विकास और समग्र सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
- वर्ष 2020 तक की स्थिति के अनुसार भारत की 70% से अधिक आबादी स्वस्थ आहार पा सकने में अक्षम है, इस तथ्य के बावजूद कि अन्य देशों की तुलना में भारत में भोजन की लागत अपेक्षाकृत कम है।
- 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता वर्ष 2015-16 में 53% (NFHS- 4) से बढ़कर वर्ष 2019-21 में 57% (NFHS-5) हो गया है।
सामाजिक सुरक्षा का अभाव:
- भारत अपने नागरिकों, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये भी संघर्षरत है। कर्मचारियों की एक बड़ी संख्या स्वास्थ्य देखभाल, सेवानिवृत्ति पेंशन और नौकरी की सुरक्षा जैसे बुनियादी लाभों तक पहुँच नहीं रखती।
लैंगिक असमानता:
- हाल के वर्षों की प्रगति के बावजूद, लैंगिक असमानता भारत में मानव विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा बनी हुई है। महिलाओं और बालिकाओं को शिक्षा, रोज़गार एवं स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच जैसे क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है और वे प्रायः हिंसा एवं दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं।
- स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों (Expected Years of Schooling- EYS) के लिये पुरुष-महिला अनुपात वर्ष 1990 में 1.43 से घटकर वर्ष 2021 में 0.989 हो गया, जबकि स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों (Mean Years of Schooling- MYS) के लिये यह 1.26 से घटकर 1.06 हो गया।
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) की ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022’ के अनुसार, महिलाएँ AI कार्यबल में केवल 22% हिस्सेदारी रखती हैं।
आगे की राह
आय असमानता और लैंगिक असमानता को संबोधित करना:
- आय असमानता और लैंगिक असमानता को संबोधित करने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें नीतिगत परिवर्तन और सांस्कृतिक बदलाव दोनों शामिल हैं। यहाँ कुछ संभावित उपाय सुझाए गए हैं:
- समान वेतन, शिक्षा एवं कौशल विकास, वहनीय बाल देखभाल, महिलाओं के लिये सशक्तिकरण कार्यक्रम आदि सहायक हो सकते हैं।
- सरकार इन योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकती है: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन, एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS), महिला ई-हाट आदि योजनाओं के प्रोत्साहन पर सरकार ध्यान दे सकती है।
शिक्षा में निवेश करना:
- शिक्षा मानव विकास का एक मूलभूत पहलू है। सरकारें स्कूलों के निर्माण, शिक्षकों की भर्ती, छात्रवृत्ति प्रदान करने और वंचित समुदायों के लिये शिक्षा तक पहुँच में सुधार आदि के रूप में शिक्षा में निवेश कर सकती हैं।
स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना:
- स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच मानव विकास का एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटक है। सरकारें यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि सभी नागरिकों को सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो, जिसमें निवारक देखभाल, रोग उपचार और मानसिक स्वास्थ्य सहायता आदि शामिल हैं।
- सरकार को इन योजनाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है: प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY), प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY), राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM), मिशन इंद्रधनुष।
गरीबी को संबोधित करना:
- गरीबी मानव विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। सरकारें बेरोज़गारी लाभ, खाद्य सहायता और आवास सब्सिडी जैसे सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को लागू करके गरीबी को दूर कर सकती हैं।
लैंगिक समानता को बढ़ावा देना:
- मानव विकास के लिये लैंगिक समानता आवश्यक है। सरकारें ऐसी नीतियों को लागू कर लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सकती हैं जो महिलाओं एवं बालिकाओं के लिये समान अवसर सुनिश्चित करें, जैसे कि रोज़गार एवं शिक्षा में लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध कानून का निर्माण करना।
मानवाधिकारों की रक्षा करना:
- मानवाधिकार मानव विकास के लिये मूलभूत हैं। सरकारें यह सुनिश्चित कर मानवाधिकारों की रक्षा कर सकती हैं कि नागरिकों के लिये स्वतंत्र भाषण, धर्म की स्वतंत्रता और भेदभाव से स्वतंत्रता के अधिकार उपलब्ध हों।
अवसंरचना का निर्माण:
- आर्थिक विकास और मानव विकास के लिये सड़क, पुल एवं बिजली जैसी अवसंरचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। सरकारें ऐसी अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश कर सकती हैं जो स्वच्छ जल एवं बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच में सुधार करें और रोज़गार के अवसर उत्पन्न करें।
नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना:
- नवाचार और उद्यमिता आर्थिक विकास को गति दे सकती हैं तथा मानव विकास में सुधार कर सकती हैं। सरकारें ऐसी नीतियाँ बना सकती हैं जो नवाचार और उद्यमिता का समर्थन करें, जैसे छोटे व्यवसायों के लिये कर प्रोत्साहन और वैज्ञानिकों एवं आविष्कारकों के लिये अनुसंधान अनुदान प्रदान करना।