प्रस्तुत पाठ के श्लोकों के द्वारा मनुष्य के सद्व्यवहार का ज्ञान दिया गया है। मनुष्य का आचरण समाज में, गुरुजन और माता-पिता एवं मित्रों के प्रति कैसा होना चाहिए, इसका उपदेश दिया गया है।
प्रस्तुत पाठ में सदाचार एवं नीति से सम्बन्धित बातें कही गई हैं। प्रथम श्लोक में कहा गया है आलस्य मनुष्य का महान शत्रु है और परिश्रम बन्धु। द्वितीय श्लोक में कहा गया है कि मृत्यु किसी की प्रतीक्षा नहीं करती। मनुष्य को समय रहते ही कार्य पूर्ण कर लेने चाहिएँ।
तीसरे श्लोक में बताया है कि मनुष्य को प्रिय सत्य बोलना चाहिए तथा अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए। इसी प्रकार प्रिय असत्य भी नहीं कहना चाहिए। . चतुर्थ श्लोक में कहा है कि मनुष्य को कुटिल व्यवहार कदापि नहीं करना चाहिए। उसे अपने व्यवहार में सरलता, कोमलता तथा उदारता आदि रखनी चाहिए।
पाँचवें श्लोक में बताया गया है कि मनुष्य को श्रेष्ठ गुणों से युक्त व्यक्ति व माता-पिता की मन, वचन और कर्म से सेवा करनी चाहिए। छठे श्लोक में कहा है कि मित्र के साथ कलह करके व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता है। अतः मनुष्य को ऐसा नहीं करना चाहिए।
(क) आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपूः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति॥
अर्थः
निश्चय से आलस्य मनुष्यों के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा दुश्मन (शत्रु) है। प्रयत्न (परिश्रम) के साथ उसका (मनुष्य का) कोई मित्र नहीं है जिसे करके वह दु:खी नहीं होता है।
अन्वयः
(i) हि ………….
(ii) मनुष्याणां शरीरस्थः …….
(iii) रिपुः (अस्ति)। …………….
(iv) बन्धुः नास्ति, यं कृत्वा (मानव:) न ……………
मञ्जूषा- अवसीदति, आलस्यं महान्, उद्यमसमः
उत्तर-
(i) हि …………. - आलस्यं
(ii) मनुष्याणां शरीरस्थः ……. - महान्
(iii) रिपुः (अस्ति)। ……………. - उद्यमसमः
(iv) बन्धुः नास्ति, यं कृत्वा (मानव:) न …………… - अवसीदति
भावार्थः –
अर्थात् अस्मिन् संसारे ………..(i) एव जनानां शरीरे स्थितः महान् ……… (ii) अस्ति तेन कारणेन एव जनाः दु:खानि, दरिद्रतां कष्टानि च प्राप्नुवन्ति/परन्तु तथैव ……… (iii) एव जनानां मित्रमपि वर्तते। तम् कृत्वा जनाः कदापि ………(iv) न भवन्ति अर्थात् सदैव सुखानि एव प्राप्नुवन्ति। मञ्जूषा- परिश्रम्, आलस्यम्, दुःखिनः, शत्रुः
उत्तर-
(i) आलस्यम्
(ii) शत्रुः
(iii) परिश्रम्
(iv) दु:खिनः
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ख) श्वः कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्ने चापराह्निकम्।
नहि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्॥2॥
सरलार्थ :
कल का काम आज कर लेना चाहिए और दोपहर का पूर्वाह्न में। मृत्यु प्रतीक्षा (इन्तज़ार) नहीं करती कि इसका काम हो गया या नहीं हुआ अर्थात् इसने काम पूरा कर लिया या नहीं। भाव यह है कि काम को कभी टालना नहीं चाहिए क्योंकि पता नहीं कब जीवन समाप्त हो जाए।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ग) सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥3॥
सरलार्थ :
सच बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, अप्रिय सच नहीं बोलना चाहिए और प्रिय झूठ भी नहीं बोलना चाहिए। यही शाश्वत (सदा से चला आ रहा) धर्म (आचार) है।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(घ) सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यं सत्यता तथा।
ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं च न कदाचन ॥4॥
सरलार्थ :
व्यवहार में हमेशा (सदैव) उदारता, सच्चाई, सरलता और मधुरता हो (होनी चाहिए), (व्यवहार में) कभी भी टेढ़ापन नहीं हो (होना चाहिए)।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ङ) श्रेष्ठं जनं गुरुं चापि मातरं पितरं तथा।
मनसा कर्मणा वाचा सेवेत सततं सदा॥5॥
सरलार्थ :
सज्जन, गुरुजन और माता-पिता की भी हमेशा मन से, कर्म से और वाणी से निरन्तर सेवा करनी चाहिए।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(च) मित्रेण कलहं कृत्वा न कदापि सुखी जनः।
इति ज्ञात्वा प्रयासेन तदेव परिवर्जयेत्॥6॥
सरलार्थ :
मित्र के साथ झगड़ा करके मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रहता है। यह जानकर प्रयत्न से उसे (झगड़े को) ही छोड़ देना चाहिए।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
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