भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जक है । जिसने 2021 में 3.9 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया जो कि वैश्विक उत्सर्जन में 7 प्रतिशत के बराबर है। अतः जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंताओं के बीच, परिवर्तनकारी समाधानों के लिए जलवायु प्रौद्योगिकी में निवेश महत्वपूर्ण हो जाता है।
भारत को कोयले के दहन (50 प्रतिशत) और कृषि (लगभग 50 प्रतिशत) से होने वाले हरित गैस उत्सर्जन के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन उत्सर्जनों को कम करने की आवश्यकता को सतत आर्थिक विकास की मांग ने और बढ़ा दिया गया है।
जलवायु परिवर्तन भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है, जो अर्थव्यवस्था के आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों को प्रभावित करता है। यह वैश्विक घटना विभिन्न क्षेत्रों को बाधित करती है, जिसके कारण कृषि, मत्स्य पालन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, औद्योगिक उत्पादन, ऊर्जा की मांग और वित्तीय सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जलवायु परिवर्तन फसल चक्रों को बाधित करता है, जिससे तापमान, वर्षा पैटर्न और चरम मौसम की घटनाओं में बदलाव के कारण कृषि उत्पादन कम होता है। यह सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, शहरी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति को बढ़ावा देता है। इससे मत्स्य पालन क्षेत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि बढ़ते समुद्र के तापमान से मछली का वितरण पैटर्न बाधित होता है, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होती है।
जलवायु परिवर्तन से बीमारियों की घटनाएं बढ़ जाती हैं, जिससे कमजोर समूह प्रभावित होते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य संसाधनों पर दबाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 - 2050 के बीच विभिन्न जलवायु-संबंधी कारकों के कारण लगभग 2,50,000 अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है।
सड़कें, पुल और बिजली संयंत्र जैसे भौतिक बुनियादी ढांचे जलवायु-संबंधी घटनाओं के कारण क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियां बाधित होती हैं। क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे से रखरखाव लागत और आर्थिक नुकसान बढ़ता है। उदाहरण के लिए, भारत को बाढ़ के कारण महत्वपूर्ण आर्थिक क्षति हुई, जो पिछले दशक में वैश्विक नुकसान का 10% था।
जलवायु परिवर्तन से परिचालन लागत बढ़ जाती है और उद्योगों में मुनाफा कम हो जाता है, जिससे रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं । अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार भारत में बढ़े हुए तापमान से ऊर्जा की मांग बढ़ेगी जिससे भारत में ऊर्जा संकट गहरा हो सकता है।
वित्तीय सेवाओं को जलवायु-संबंधी घटनाओं के कारण बढ़े हुए क्रेडिट जोखिम के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो उधारकर्ताओं की ऋण चुकाने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह स्थिति संभावित ऋण डिफ़ॉल्ट और क्रेडिट हानि की ओर ले जाती है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन बीमा दावों , यात्रा और आतिथ्य सेवाओं को बाधित करता है, जिससे व्यवसायों की लाभप्रदता प्रभावित होती है।
- भारत को बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के साथ तीव्र विकास को संतुलित करने की एक अनोखी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
- सतत और हरित विकास प्राप्त करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र में सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
- सरकारी भागीदारी महत्वपूर्ण है, जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिए अनुकूल नीतियों, अनुसंधान और विकास के वित्त पोषण, अनुदान और कड़े नियमों के विकास की आवश्यकता है।
- उद्योगों को हरित समाधान अपनाकर और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और स्केलेबिलिटी के लिए स्टार्टअप के साथ सहयोग करके जलवायु-सकारात्मक अवसरों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- स्टार्टअप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं इसके लिए उन्हें भारत-विशिष्ट जलवायु समाधान विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।
भारत ने अपनी "पंचामृत" रणनीति में जलवायु कार्रवाई के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को रेखांकित किया है, जिसमें पांच प्रमुख तत्व शामिल हैं:
भारत की राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change) विभिन्न हितधारकों, जिनमें सरकारी एजेंसियां, वैज्ञानिक, उद्योग और समुदाय शामिल हैं, के बीच जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है। यह जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले आसन्न खतरे पर जोर देती है और इसका मुकाबला करने के उपायों का समर्थन करती है। यह सक्रिय दृष्टिकोण शिक्षा, सहयोग और स्थायी प्रथाओं के माध्यम से जलवायु चुनौतियों को दूर करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
भारत एक महत्वपूर्ण मोड पर खड़ा है, जो आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन में कमी के बीच संतुलन बना रहा है। परिवर्तनकारी जलवायु समाधानों में निवेश न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करते हैं बल्कि नवाचार को भी बढ़ावा देते हैं, जिससे प्रगति और पर्यावरण का सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व सुनिश्चित होता है। भारत अपने लोगों के साथ स्थायी भविष्य के लिए प्रयासरत है, ये व्यापक, लोगों-केंद्रित रणनीतियाँ एक हरित कल के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं।
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1. भारत के जलवायु परिवर्तन प्रयास क्या हैं? |
2. भारत के जलवायु परिवर्तन प्रयासों में कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? |
3. जलवायु परिवर्तन के लिए भारत में कौन-कौन से नवाचार किए जा रहे हैं? |
4. भारत के जलवायु परिवर्तन प्रयासों के लिए क्या रणनीतियाँ अपनाई जा रही हैं? |
5. भारत के जलवायु परिवर्तन प्रयास का महत्व क्या हैं? |
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