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Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): January 2024 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

पेगासस स्पाइवेयर

हाल ही में व्हाट्सएप के ज़रिये इज़रायली स्पाइवेयर पेगासस की मदद से कुछ अज्ञात इकाइयाँ वैश्विक स्तर पर लोगों की जासूसी कर रही हैं। भारतीय पत्रकार एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस जासूसी के शिकार हुए हैं। व्हाट्सएप ने इस बात को माना है और पेगासस स्पाइवेयर विकसित करने वाली कंपनी एन.एस.ओ. ग्रुप (NSO Group) पर संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय न्यायालय में मुकदमा दायर किया है। हालाँकि NSO ने कहा कि वह पेगासस की सेवाएँ केवल सरकारों और उनकी एजेंसियों को बेचता है। माना जाता है कि पेगासस दुनिया में सबसे परिष्कृत स्पाइवेयर में से एक है। ऑपरेटिंग सिस्टम में कमज़ोरियों को लक्षित करके स्पाइवेयर iOS और Android दोनों उपकरणों को हैक कर सकता है।

पेगासस स्पाइवेयर के बारे में

  • पेगासस एक स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है, जिसे इज़रायली साइबर सुरक्षा कंपनी NSO द्वारा विकसित किया गया है।
  • पेगासस स्पाइवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो उपयोगकर्त्ताओं के मोबाइल और कंप्यूटर से गोपनीय एवं व्यक्तिगत जानकारियाँ चोरी करता है एवं उन्हें नुकसान पहुँचाता है।
  • इस तरह की जासूसी के लिये पेगासस ऑपरेटर एक खास लिंक उपयोगकर्त्ताओं के पास भेजता है, जिस पर क्लिक करते ही यह स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर उपयोगकर्त्ताओं की स्वीकृति के बिना स्वयं ही इंस्टाॅल हो जाता है।
  • इस स्पाइवेयर के नए संस्करण में लिंक की भी आवश्यकता नहीं होती, यह सिर्फ एक मिस्ड वीडियो काॅल के द्वारा ही इंस्टाॅल हो जाता है। पेगासस स्पाइवेयर इंस्टाॅल होने के बाद पेगासस ऑपरेटर को फोन से जुड़ी सारी जानकारियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
  • पेगासस स्पाइवेयर की प्रमुख विशेषता यह है कि यह पासवर्ड द्वारा रक्षित उपकरणों को भी निशाना बना सकता है और यह मोबाइल के रोमिंग में होने पर डेटा नहीं भेजता।
  • पेगासस मोबाइल में संगृहीत सूचनाएँ, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे कम्युनिकेशन एप के संदेश स्पाइवेयर ऑपरेटर को भेज सकता है।
  • यह स्पाइवेयर, उपकरण की कुल मेमोरी का 5% से भी कम प्रयोग करता है, जिससे प्रयोगकर्त्ता को इसके होने का आभास भी नहीं होता। पेगासस स्पाइवेयर ब्लैकबेरी, एंड्रॉयड, आईओएस (आईफोन) और सिंबियन-आधारित उपकरणों को प्रभावित कर सकता है।
  • पेगासस स्पाइवेयर ऑपरेशन पर पहली रिपोर्ट वर्ष 2016 में सामने आई, जब संयुक्त अरब अमीरात में एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता को उनके आईफोन 6 पर एक एसएमएस लिंक के साथ निशाना बनाया गया था।

क्या होता है स्पाइवेयर?

  • स्पाइवेयर एक प्रकार का मैलवेयर है जो डिज़िटल डिवाइस जैसे- कंप्यूटर, मोबाइल, टेबलेट से गुप्त एवं निजी जानकारियाँ चुराता है। यह जीमेल अकाउंट, बैंक डिटेल्स, सोशल मीडिया से लेकर टेक्स्ट मैसेज जैसी गतिविधियों पर नज़र रखता है एवं वहाँ से डेटा चोरी करके अपने ऑपरेटर तक पहुँचाता है।
  • यह ज़्यादातर नवीनतम डिवाइस मॉडल और ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ जुड़ा होता है।इन्हें इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि डिवाइस यूज़र को डिवाइस में स्पाइवेयर के होने का पता न चल सके।
  • कई बार कंपनियाँ अपने कंप्यूटर सिस्टम में खुद स्पाइवेयर डलवाती हैं ताकि ये पता कर सकें कि कर्मचारी अपना काम सही तरीके से कर रहे हैं या नहीं।

स्पाइवेयर कई प्रकार के होते हैं

  • ऐडवेयर- यह सामान्य प्रकार का स्पाइवेयर है जो मुख्य रूप से विज्ञापनदाताओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है।
  • कुकी ट्रेकर- इसके ज़रिये किसी व्यक्ति की इंटरनेट गतिविधियों के बारे में जानकारी एकत्रित की जाती है।
  • सिस्टम मॉनीटर- इसका उपयोग डिवाइस की गतिविधियों पर नज़र रखने और डेटा रिकॉर्ड करने हेतु किया जाता है।
  • ट्रोज़न- इसे वास्तविक एप्लीकेशन, दस्तावेज़ या सॉफ्टवेयर के रूप में चित्रित किया जाता है।

स्पाइवेयर से बचाव के तरीके

  • स्पाइवेयर की जासूसी से बचने के लिये कंप्यूटर एवं मोबाइल में एंटी स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के साथ ही समय-समय पर इसे अपडेट करते रहें।
  • इंटरनेट पर कोई जानकारी सर्च करते समय केवल विश्वसनीय वेबसाइट पर ही क्लिक करें।
  • इंटरनेट बैंकिंग या किसी भी ज़रूरी अकाउंट को कार्य पूरा होने के पश्चात् लॉग आउट करें।
  • पासवर्ड टाइप करने के बाद ‘रिमेंबर’ पासवर्ड या ‘कीप लॉगइन’ जैसे ऑप्शन पर क्लिक न करें।
  • साइबर कैफे, ऑफिस या सार्वजनिक सिस्टम पर बैंकिंग लेन-देन न करें।
  • जन्मतिथि या अपने नाम जैसे साधारण पासवर्ड न बनाएँ, पासवर्ड में लेटर, नंबर और स्पेशल कैरेक्टर का मिश्रण रखें। 
  • सोशल मीडिया, e-Mail, बैंकिंग इत्यादि के पासवर्ड अलग-अलग रखें। बैंक के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन करें। बैंक की तरफ से आए किसी भी तरह के अलर्ट मेसेज को नज़रअंदाज़ न करें एवं डेबिट कार्ड का पिन नंबर नियमित अंतराल पर बदलते रहें।

इसके अलावा साइबर सुरक्षा के बारे में लोगों को जानकारी देने और साइबर अपराधों को कम करने के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये गए है। युवाओं विशेषतौर पर बच्चों के लिये गृह मंत्रालय द्वारा एक पुस्तिका जारी की गई है, जिसमें बच्चों को धमकी देना, सोशल साइट्स पर बहलाना-फुसलाना, ऑनलाइन गेमिंग, धोखाधड़ी, सोशल नेटवर्किंग के ज़रिये छेड़छाड़ से सुरक्षा के उपाय बताए गए हैं।


मछुआरों के लिए आपदा चेतावनी प्रेषित्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (Second-Generation Distress Alert Transmitter, DAT-SG) विकसित किया है जो समुद्र में मछुआरों के लिये मछली पकड़ने की नौकाओं से आपातकालीन संदेश भेजने के लिये एक स्वदेशी तकनीकी समाधान है।

आपदा की स्थिति का सामना करने पर मछुआरे आपातकालीन संदेश भेजने के लिये DAT का उपयोग कर सकते हैं। इन संदेशों में आम तौर पर मछली पकड़ने की नौका की पहचान, स्थान तथा आपातकाल की प्रकृति से संबंधित जानकारी होती है।

आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT) क्या है?

  • परिचय:
    • DAT के प्रथम संस्करण का परिचालन वर्ष 2010 से शुरू है जिसके उपयोग से संदेश एक संचार उपग्रह के माध्यम से भेजे जाते हैं तथा एक केंद्रीय नियंत्रण स्टेशन (INMCC: भारतीय मिशन नियंत्रण केंद्र) में प्राप्त होते हैं जहाँ मछली पकड़ने की नौका की पहचान व स्थान के लिये चेतावनी संकेतों को डिकोड किया जाता है।
    • प्राप्त जानकारी को फिर भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard- ICG) के तहत समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (Maritime Rescue Coordination Centre- MRCC) को अग्रेषित किया जाता है।
    • इस जानकारी का उपयोग करते हुए, MRCC संकट में मछुआरों को बचाने के लिये खोज तथा बचाव अभियान शुरू करने के लिये समन्वय करता है।
    • वर्तमान में 20,000 से अधिक DAT का उपयोग किया जा रहा है।

दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT-SG) क्या है?

  • DAT-SG:
    • दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT-SG) मूल आपदा चेतावनी प्रेषित्र (Distress Alert Transmitter- DAT) पर आधारित है तथा समुद्री सुरक्षा एवं संचार को बढ़ाने के लिये इसमें उन्नत क्षमताओं व सुविधाओं को शामिल किया गया है।
    • DAT-SG में समुद्र से संकट की चेतावनी सक्रिय करने वाले मछुआरों को वापस सूचना की पुष्टि भेजने की सुविधा है।
    • ISRO द्वारा DAT-SG का विकास किया गया है जो कि NavIC (भारतीय नक्षत्र में नौवहन) रिसीवर मॉड्यूल पर आधारित एक अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (UHF) प्रेषित्र/ट्रांसमीटर है।
    • यह NavIC रिसीवर मॉड्यूल स्थिति निर्धारण के साथ-साथ प्रसारण संदेश पुष्टि का समर्थन करता है जिसे NavIC मैसेजिंग सेवा कहा जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • ब्लूटूथ इंटरफेस: DAT-SG को ब्लूटूथ इंटरफेस का उपयोग करके मोबाइल फोन से जोड़ा जा सकता है। इससे मछुआरों को अपने मोबाइल उपकरणों पर संदेश प्राप्त करने की सुविधा मिलती है। इसके अतिरिक्त, मोबाइल फोन पर एक ऐप का उपयोग मूल भाषा में संदेशों को पढ़ने के लिये किया जा सकता है, जिससे पहुँच बढ़ जाती है।
    • मोबाइल फोन के साथ एकीकरण: DAT-SG को मोबाइल फोन के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जो संचार के लिये एक सुविधाजनक और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला मंच प्रदान करता है।
    • वेब-आधारित नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली (SAGARMITRA): केंद्रीय नियंत्रण केंद्र (INMCC) "सागरमित्र" नामक वेब-आधारित नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली का उपयोग करता है। 
    • यह प्रणाली पंजीकृत DAT-SG का डेटाबेस बनाए रखती है और संकट में नौकाओं के बारे में वास्तविक समय की जानकारी तक पहुँचने में समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (Maritime Rescue Coordination Centres - MRCCs) की सहायता करती है। यह सुविधा भारतीय तटरक्षक बल को तुरंत खोज एवं बचाव अभियान चलाने में मदद करती है।
    • आमने सामने का संचार: DAT-SG नियंत्रण केंद्र से संदेश प्राप्त करने की क्षमता से सुसज्जित है। यह केंद्रीय नियंत्रण स्टेशन को खराब मौसम, चक्रवात, सुनामी या अन्य आपात स्थितियों जैसी घटनाओं के मामले में मछुआरों को अग्रिम चेतावनी संदेश भेजने में सक्षम बनाता है। 
    • संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र: DAT-SG नियमित अंतराल पर समुद्र में मछुआरों को संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रसारित कर सकता है। यह सुविधा मछुआरों को उच्च किस्म की मछलियाँ पकड़ने की अधिक संभावना वाले क्षेत्रों का पता लगाने में सहायता करती है, जिससे मछली पकड़ने के संचालन में दक्षता बढ़ती है और समय तथा ईंधन की बचत होती है।
    • ऑपरेशनल 24/7: DAT-SG की सेवाएँ 24x7 आधार पर प्रारंभ की गई हैं, जिससे संकट में फँसे मछुआरों को निरंतर सहायता सुनिश्चित की जा रही है।
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ISRO द्वारा पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल का परीक्षण

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने ऑर्बिटल/कक्षीय प्लेटफॉर्म, POEM3 में 100 W श्रेणी के पॉलिमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन ईंधन  सेल (PEMFC) पर आधारित उर्जा प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।

PEMFC परीक्षण के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • प्रौद्योगिकी का परीक्षण: ISRO ने 100-वॉट की श्रेणी के PEMFC का परीक्षण किया जो हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन को बिजली, जल तथा ऊष्मा में परिवर्तित करता है। यह तकनीक अंतरिक्ष में पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में कई लाभ प्रदान करती है, जिनमें निम्नलिखित चीज़ें शामिल हैं:
  • उच्च दक्षता: PEMFC ईंधन को प्रत्यक्ष रूप से विद्युत में परिवर्तित करता है जिसके परिणामस्वरूप यह बैटरी की तुलना में अधिक कार्यकुशल होती है।
  • शुद्ध संचालन: PEMFC उपोत्पाद के रूप में मात्र जल का उत्पादन करते हैं, जिससे जटिल अपविष्ट प्रबंधन प्रणालियों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
  • PEMFC द्वारा उत्पादित जल का उपयोग जहाज़ पर खपत के लिये अथवा अतिरिक्त ऑक्सीजन उत्पन्न करने के लिये इलेक्ट्रोलिसिस के लिये किया जा सकता है।
  • परीक्षण प्लेटफॉर्म: PEMFC का परीक्षण कक्षीय प्लेटफॉर्म, POEM3 में किया गया, जिसे 1 जनवरी, 2024 को PSLV-C58 द्वारा लॉन्च किया गया।
  • POEM3 वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों में अंतरिक्ष में नई प्रौद्योगिकियों के परीक्षण के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • भविष्य के मिशनों के लिये निहितार्थ: PEMFC का सफल परीक्षण भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिये कई उल्लेखनीय संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त करता है:
  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को शक्ति प्रदान करना: PEMFC की उच्च दक्षता और जल उत्पादन क्षमताएँ उन्हें प्रस्तावित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को शक्ति प्रदान करने के लिये आदर्श बनाती हैं।
  • गहन अंतरिक्ष अन्वेषण: PEMFC मंगल ग्रह जैसे डीप स्पेस/गहन अंतरिक्ष स्थलों पर दीर्घ अवधि के मिशनों के लिये विद्युत् ऊर्जा का एक विश्वसनीय और धारणीय स्रोत प्रदान कर सकता है।

ईंधन सेल क्या है? 

  • परिचय:  ईंधन सेल एक विद्युत रासायनिक उपकरण है जो ईंधन (जैसे– हाइड्रोजन) और ऑक्सीडेंट (जैसे– ऑक्सीजन) की रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
    • संग्रहीत रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली बैटरियों के ठीक विपरीत, ईंधन सेल तब तक लगातार विद्युत् ऊर्जा का उत्पादन करती हैं जब तक उन्हें ईंधन और ऑक्सीडेंट की आपूर्ति की जाती है।
  • ईंधन सेल के प्रमुख प्रकार:
    • पॉलिमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन ईंधन सेल: इनमें इलेक्ट्रोलाइट के रूप में एक पतली, ठोस बहुलक झिल्ली का उपयोग किया जाता है और ये पोर्टेबल अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त हैं।
    • ठोस ऑक्साइड ईंधन सेल (Solid Oxide Fuel Cells- SOFC): SOFC में एक सिरेमिक इलेक्ट्रोलाइट का उपयोग किया जाता है जो उच्च तापमान पर कार्य कर सकता है। ये अत्यधिक कुशल हैं लेकिन PEMFC की तुलना में अधिक महंगे और जटिल हैं।
    • क्षारीय ईंधन कोशिकाएँ (Alkaline Fuel Cells - AFCs): AFC पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड (potassium hydroxide) से बने तरल इलेक्ट्रोलाइट का उपयोग करते हैं। वे PEMFC और SOFC की तुलना में कम कुशल, कम महंगे हैं तथा ईंधन में अशुद्धियों के प्रति अधिक सहनशील हो सकते हैं।

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  • ईंधन सेल (Fuel cells) के अनुप्रयोग: 
    • संवहन: ईंधन  सेल का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, नावों और यहाँ तक कि हवाई जहाज़ों को बिजली देने के लिये किया जा सकता है।
    • ईंधन सेल अंतरिक्ष मिशनों को भी शक्ति प्रदान कर सकते हैं, अंतरिक्ष यान के लिये विद्युत शक्ति प्रदान कर सकते हैं और लंबी अवधि के मिशनों के लिये एक भरोसेमंद ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकते हैं।
    • शून्य उत्सर्जन के साथ अत्यधिक कुशल, जो उन्हें अंतरिक्ष अभियानों के लिये आदर्श बनाता है।
    • पोर्टेबल पावर: ईंधन सेल का उपयोग लैपटॉप कंप्यूटर, सेल फोन और अन्य पोर्टेबल उपकरणों को बिजली देने के लिये किया जा सकता है।
    • स्थिर विद्युत: ईंधन सेल का उपयोग घरों, व्यवसायों और यहाँ तक कि पूरे शहरों को बिजली देने के लिये किया जा सकता है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह (WAAW - 18-24 नवंबर) के दौरान रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से निपटने के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।

  • वर्ष 2021 के WAAW की थीम थी-  “जागरूकता फैलाओ, प्रतिरोध रोको” (Spread Awareness, Stop Resistance)।
  • WAAW के दौरान AMR के त्रिपक्षीय संगठनों (विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन तथा विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन) द्वारा AMR के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय कलर अभियान, 'गो ब्लू' शुरू किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे- एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है। 
  • इसके कारण मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा AMR की पहचान शीर्ष 10 वैश्विक स्वास्थ्य खतरों में से एक के रूप में की गई है।
  • AMR के प्रसार का कारण:
  • इसमें दवा निर्माण/फार्मास्यूटिकल स्थलों के आसपास संदूषण शामिल है, जहाँ अनुपचारित अपशिष्ट से अधिक मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी वातावरण में मुक्त हो जाते हैं।
  • कई अन्य कारक भी दुनिया भर में AMR के खतरे को गति प्रदान करते है, जिसमें मानव, पशुधन और कृषि में दवाओं के अति प्रयोग व दुरुपयोग के साथ-साथ स्वच्छ पेयजल, सफाई तथा स्वच्छता की खराब स्थिति शामिल है।

चिंताएँ

  • स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि:
    • AMR पहले ही प्रतिवर्ष लगभग 7,00,000 मौतों  के लिये ज़िम्मेदार है। यह अस्पतालों में लंबे समय तक रहने तथा अतिरिक्त परीक्षणों और अधिक महँगी दवाओं के उपयोग के साथ स्वास्थ्य देखभाल की लागत को भी बढ़ाता है।
  • प्रगति में गिरावट: 
    • AMR ने चिकित्सा में प्रगति को एक सदी पीछे धकेल दिया है; पहले ज्जिन संक्रमणों  का उपचार और इलाज दवाओं से संभव था वे लाइलाज  या जोखिमपूर्ण बनते जा रहे हैं क्योंकि दवाएँ संक्रमण के खिलाफ काम नहीं कर रही हैं।
  • संक्रमण और सर्जरी का जोखिम: 
    • यहाँ तक कि आम संक्रमण भी जोखिमपूर्ण होने के साथ-साथ समस्या बनते जा रहे हैं। सर्जरी करना जोखिमपूर्ण होता जा रहा है और इन सबका कारण मानव द्वारा एंटीमाइक्रोबियल का दुरुपयोग या अति प्रयोग करना है।
  • नई एंटीबायोटिक दवाओं को अपर्याप्त प्रोत्साहन:
    • मुख्य रूप से इन दवाओं के विकास और उत्पादन को अपर्याप्त प्रोत्साहन के कारण विगत तीन दशकों में एंटीबायोटिक दवाओं का कोई भी नया विकल्प बाज़ार में उपलब्ध नहीं हो पाया है।
  • एंटीबायोटिक के बिना भविष्य खतरे में:
    • यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो एंटीबायोटिक दवाओं के बिना हमारा भविष्य खतरे में पड़ जाएगा, इसके अभाव में बैक्टीरिया का पूरी तरह से उपचार संभव नहीं होगा और वे अधिक प्रतिरोधी बन जाएंगे तथा आम संक्रमण व मामूली समस्याएँ भी खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।
  • भारत में AMR:
    • भारत में एक बड़ी आबादी के संयोजन के साथ बढ़ती हुई आय एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद में सक्षम बनाती है, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ और एंटीबायोटिक दवाओं के लिये आसान ओवर-द-काउंटर (Over-the-Counter) पहुँच की सुविधा प्रदान करती है, प्रतिरोधी जीन (ऐसे जीन एंटीबायोटिक दवाओं के संपर्क में आने पर बैक्टीरिया को जीवित रहने में मदद करते हैं) की पीढ़ी को बढ़ावा देती है। 
    • बहु-दवा प्रतिरोध निर्धारक (Multi-Drug Resistance Determinant), नई दिल्ली। मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (NDM-1), इस क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ी से उभरे हैं।
    • अफ्रीका, यूरोप और एशिया के अन्य भाग भी दक्षिण एशिया से उत्पन्न होने वाले बहु-दवा प्रतिरोधी टाइफाइड से प्रभावित हुए हैं।
    • भारत में सूक्ष्मजीवों (जीवाणु और विषाणु सहित) के कारण सेप्सिस से प्रत्येक वर्ष 56,000 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो जाती है जो पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।

AMR को संबोधित करने के लिये किये गए उपाय

  • AMR नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम:  
    • इस कार्यक्रम के तहत राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं की स्थापना करके AMR निगरानी नेटवर्क को मज़बूत किया गया है।
  • AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना: 
    • यह एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर केंद्रित है जिसे विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क(AMRSN): 
    • इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था ताकि देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत, प्रवृत्तियों तथा पैटर्न का अनुसरण किया जा सके।
  • एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम: 
    • ICMR ने अस्पताल के वार्डों और आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग तथा अति प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये भारत में एक पायलट परियोजना पर एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रम शुरू किया है।
  • AMR के लिये एकीकृत स्वास्थ्य निगरानी नेटवर्क:
    • एकीकृत AMR निगरानी नेटवर्क में शामिल होने के लिये भारतीय पशु चिकित्सा प्रयोगशालाओं की तैयारी का आकलन करना।
  • अन्य:
    • भारत ने कम टीकाकरण कवरेज को संबोधित करने के लिये मिशन इंद्रधनुष जैसी कई गतिविधियाँ शुरू की हैं, साथ ही निगरानी एवं जवाबदेही में सुधार के लिये सूक्ष्म योजना और अन्य अतिरिक्त तंत्रों को मज़बूत किया गया है।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ अपने सहयोगात्मक कार्य के लिये AMR को शीर्ष 10 प्राथमिकताओं में से एक के रूप में पहचाना है।

आगे की राह

  • विशेष रूप से टियर- 2 और टियर- 3 शहरों में नकली दवाओं की बिक्री का पता लगाना और इसकी रोकथाम करना।
  • फार्माकोकाइनेटिक्स (Pharmacokinetics) और फार्माकोडायनामिक्स (Pharmacodynamics) में जैव उपलब्धता का सामयिक माप, प्रिस्क्रिप्शन डेटाबेस के माध्यम से एंटीबायोटिक नीतियों को लागू करना और फार्मेसियों की ऑडिटिंग करना।
  • फार्माकोकाइनेटिक्स को दवा के अवशोषण, वितरण, चयापचय और उत्सर्जन के समय के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • ई-प्रिस्क्रिप्शन के मिलान के साथ वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) के साथ दवाओं की बिक्री की निगरानी।
  •  सिंड्रोमिक दृष्टिकोण (Syndromic Approach) से निदान के उपचार (Treatment of the Diagnosis) की तरफ बढ़ने हेतु इमेजिंग और जैव सूचना विज्ञान व भौगोलिक सूचना प्रणाली जैसी नई तकनीकों का उपयोग।
  • WASH रणनीति का पालन: एंटीबायोटिक-मुक्त पशु चारा और जानवरों को खिलाए जाने वाले एंटीबायोटिक्स मनुष्यों द्वारा खाए जाने वाले (जैसे विभिन्न रंग योजनाओं द्वारा चिह्नित) से भिन्न होना चाहिये।

NISAR मिशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) ने NISAR (NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार) को रवाना किये जाने के संबंध में एक कार्यक्रम आयोजित किया।

  • दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी (L-बैंड और S-बैंड) का उपयोग करते हुए NISAR अंतरिक्ष में पृथ्वी को व्यवस्थित रूप से स्कैन करने वाला अपनी तरह का पहला रडार होगा। यह हमारे ग्रह की सतह पर होने वाले एक सेंटीमीटर से कम तक के परिवर्तनों को भी मापेगा।

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NISAR मिशन

  • परिचय:
    • NISAR को वर्ष 2014 में हस्ताक्षरित एक साझेदारी समझौते के तहत अमेरिका और भारत की अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा तैयार किया गया है।
    • उम्मीद है कि इसे जनवरी 2024 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से निकट-ध्रुवीय कक्षा में लॉन्च किया जाएगा।
    • यह उपग्रह कम-से-कम तीन वर्ष तक काम करेगा।
    • यह एक निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit -LEO) वेधशाला है।
    • यह 12 दिन में पूरे विश्व का मानचित्रण कर लेगा।
  • विशेषता:
    • यह 2,800 किलोग्राम का उपग्रह है जिसमें L-बैंड और S-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) उपकरण शामिल हैं, जिस कारण इसे दोहरी आवृत्ति इमेजिंग रडार उपग्रह कहा जाता है।
    • नासा द्वारा डेटा स्टोर करने के लिये L-बैंड रडार, GPS, एक उच्च क्षमता वाला सॉलिड-स्टेट रिकॉर्डर और एक पेलोड डेटा सब-सिस्टम प्रदान किया गया है, जबकि ISRO ने S-बैंड रडार, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) प्रक्षेपण प्रणाली तथा अंतरिक्ष यान प्रदान किया है।
    • S-बैंड रडार 8-15 सेंटीमीटर की तरंगदैर्ध्य (Wavelength) और 2-4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति (frequency) पर काम करते हैं। इस तरंगदैर्ध्य और आवृत्ति के कारण वे आसानी से क्षीण नहीं होते हैं। यह उन्हें निकट एवं दूर के मौसम अवलोकन के लिये उपयोगी बनाता है।
    • इसमें 39 फुट का स्थिर एंटीना रिफ्लेक्टर लगा हुआ है, जो सोने की परत वाले तार की जाली से बना है; रिफ्लेक्टर का उपयोग "उपकरण संरचना पर ऊपर की ओर फीड द्वारा उत्सर्जित और प्राप्त रडार सिग्नल" पर केंद्रित करने के लिये किया जाएगा।
    • SAR का उपयोग करके NISAR उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली छवियाँ प्रस्तुत करेगा। बादलों का SAR पर कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, ये मौसम की स्थिति की परवाह किये बिना दिन और रात डेटा एकत्र कर सकते हैं।
    • नासा को अपने विज्ञान संबंधी वैश्विक संचालन के लिये कम-से-कम तीन वर्षों के लिये L-बैंड रडार की आवश्यकता है। इस बीच इसरो कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये S-बैंड रडार का उपयोग करेगा।

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NISAR के अपेक्षित लाभ

  • पृथ्वी विज्ञान: NISAR पृथ्वी की सतह में परिवर्तन, प्राकृतिक खतरों और पारिस्थितिकी तंत्र की विकृति के बारे में डेटा एवं जानकारी प्रदान करेगा, जिससे पृथ्वी प्रणाली प्रक्रियाओं तथा जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • आपदा प्रबंधन: मिशन तेज़ी से प्रतिक्रिया समय और बेहतर जोखिम आकलन कर भूकंप, सूनामी एवं ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में मदद के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा।
  • कृषि: NISAR डेटा का उपयोग फसल वृद्धि, मृदा की नमी और भूमि उपयोग में बदलाव के बारे में जानकारी प्रदान करके कृषि प्रबंधन एवं खाद्य सुरक्षा में सुधार हेतु किया जाएगा।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर मॉनिटरिंग: मिशन इंफ्रास्ट्रक्चर मॉनिटरिंग और प्रबंधन हेतु डेटा मुहैया कराएगा, जैसे- तेल रिसाव, शहरीकरण एवं वनों की कटाई की निगरानी।
  • जलवायु परिवर्तन: NISAR पिघलते ग्लेशियरों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और कार्बन भंडारण में परिवर्तन सहित पृथ्वी की सतह पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की निगरानी एवं समझने में मदद करेगा।

काउंटर-ड्रोन प्रौद्योगिकी और UAV विकास

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने एक व्यापक काउंटर-ड्रोन प्रणाली विकसित करने में उपलब्धि हासिल की है और साथ ही हाई-इंड्यूरेंस  अनमैन्ड एरियल व्हीकल (Unmanned Aerial Vehicles- UAV) की उन्नति पर ध्यान केंद्रित किया है।

काउंटर-ड्रोन प्रौद्योगिकी और UAV से संबंधित हालिया विकास क्या हैं? 

  • काउंटर-ड्रोन प्रौद्योगिकी विकास:
    • DRDO ने ड्रोन का पता लगाने, पहचान करने तथा उसे निष्क्रिय करने के लिये एक व्यापक एंटी-ड्रोन प्रणाली विकसित की है।
    • यह तकनीक माइक्रो ड्रोन सहित सभी प्रकार के ड्रोनों के हमलों, सॉफ्ट किल तथा हार्ड किल का मुकाबला करने में सक्षम है।
    • बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिये उक्त प्रौद्योगिकी को BEL, L&T एवं Icom जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझा किया गया है।
  • UAV विकास:
    • तपस MALE UAV: आसूचना, निगरानी, लक्ष्य प्राप्ति तथा आवीक्षण (Intelligence, Surveillance, Target Acquisition, and Reconnaissance- ISTAR) अनुप्रयोगों के लिये विकसित तपस मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (Medium Altitude Long Endurance- MALE) UAV विकासात्मक परीक्षणों के एक उन्नत चरण में है।
    • स्वदेशी बैटरी प्रबंधन प्रणाली के साथ लिथियम आयन-आधारित बैटरी को DRDO ने एक निजी विक्रेता के सहयोग से विकसित किया है तथा इसका उपयोग तपस UAV पर किया जा रहा है।
    • आर्चर UAV: आवीक्षण, निगरानी तथा कम चिंताजनक संघर्ष वाली स्थिति के लिये शॉर्ट रेंज आर्म्ड UAV आर्चर का विकास किया जा रहा है जिसका उड़ान परीक्षण कार्य प्रगति में हैं।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन क्या है?

  • परिचय: DRDO, भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की R&D विंग है, जिसका लक्ष्य अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों के साथ भारत को सशक्त बनाना और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है।
  • मूल सिद्धांत: "बलस्य मूलं विज्ञानं" (विज्ञान शक्ति का स्रोत है।)
  • स्थापना: भारतीय सेना और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय के मौजूदा प्रतिष्ठानों को सम्मिलित कर वर्ष 1958 में स्थापित किया गया।
  • महत्त्वपूर्ण योगदान: अग्नि और पृथ्वी शृंखला की मिसाइलें, तेजस (हल्के लड़ाकू विमान), पिनाक (मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर), आकाश (वायु रक्षा प्रणाली), रडार तथा इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली जैसे रणनीतिक सिस्टम एवं प्लेटफॉर्म विकसित किये।
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FAQs on Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): January 2024 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल क्या है?
उत्तर: पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल एक प्रकार की ऊर्जा संवर्धन प्रणाली है जो ऊर्जा को इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए उपयोग की जाती है।
2. ISRO द्वारा पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल का क्या परीक्षण है?
उत्तर: ISRO द्वारा पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल का परीक्षण जनवरी 2024 को किया जाएगा।
3. पेगासस स्पाइवेयर किसके लिए है?
उत्तर: पेगासस स्पाइवेयर मछुआरों के लिए आपदा चेतावनी प्रेषित्र है।
4. क्या भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) किस उपकरण का अध्ययन कर रहा है?
उत्तर: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल का अध्ययन कर रहा है।
5. कब तक ISRO द्वारा पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल का परीक्षण होगा?
उत्तर: ISRO द्वारा पॉलिमर इलेक्ट्रो लाइट मेम्ब्रेन ईंधनईं सेल का परीक्षण जनवरी 2024 को होगा।
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