वावेेल योजना और शिमला सम्मेलन
वावेेल योजना और शिमला सम्मेलन 1945 में भारत में राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास थे। वावेेल योजना, जिसे लॉर्ड वावेेल ने प्रस्तावित किया, का उद्देश्य भारतीय नेताओं को शामिल करते हुए गवर्नर-जनरल की कार्यकारी परिषद का पुनर्गठन करना और समुदायों का संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना था। जून 1945 में शिमला सम्मेलन ने कांग्रेस के रुख में एक बदलाव का संकेत दिया, जिसमें उसके नेताओं को जेल से रिहा होने के बाद भाग लेने की अनुमति दी गई, जो वार्ता और समझौते की दिशा में एक कदम था।
पृष्ठभूमि: जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में अभी तक आत्मसमर्पण नहीं किया था। भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) अपनी गतिविधियों के अंत की ओर थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ गतिरोध तब से था जब उन्होंने 1939 में अपने पदों से इस्तीफा दिया था।
लॉर्ड वावेेल की भूमिका: अक्टूबर 1943 में, लॉर्ड वावेेल भारत के नए गवर्नर-जनरल बने, जिन्होंने लॉर्ड लिंलिथगो का स्थान लिया। उनका उद्देश्य भारत में गतिरोध को समाप्त करना था।
इंग्लैंड में परामर्श: वावेेल मार्च 1945 में भारतीय राजनीतिक स्थिति को हल करने के लिए चर्चा के लिए इंग्लैंड गए।
वावेेल योजना की घोषणा: 14 जून 1945 को, वावेेल ने गतिरोध को हल करने के लिए ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों को भारत के लोगों के सामने प्रस्तुत किया। इस घोषणा को वावेेल योजना के रूप में जाना जाता है।
वावेेल योजना की प्रमुख विशेषताएँ:
भंग योजना: वावेेल योजना, जिसे भंग योजना के रूप में भी जाना जाता है, को ब्रिटिशों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने सर्वसम्मति से सहमत समझौते के बिना छोड़ना अपमानजनक माना।
असहमति की धारणा: योजना में सुझाव दिया गया था कि असहमति की स्थिति में, ब्रिटिश छह पाकिस्तान प्रांतों में वापस चले जाएं, जबकि कांग्रेस को भारत के बाकी हिस्से का प्रबंधन करने दिया जाए।
शिमला सम्मेलन
शिमला में सम्मेलन: भारतीय आत्म-सरकार के लिए वावेेल योजना पर चर्चा करने के लिए शिमला में एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जो ब्रिटिश सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी।
प्रतिभागी: सम्मेलन में 21 भारतीय राजनीतिक नेता शामिल थे, जैसे कि मौलाना अबुल कलाम आजाद, कांग्रेस के अध्यक्ष, और मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना।
वावेेल योजना पर सहमति: सम्मेलन का उद्देश्य वावेेल योजना पर सहमति बनाना था, जो मुसलमानों के लिए अलग प्रतिनिधित्व के साथ भारत के लिए आत्म-शासन का प्रस्ताव करता था और दोनों समुदायों के लिए बहुमत की शक्तियों को कम करता था।
बातचीत का ठप होना: मुस्लिम प्रतिनिधियों के चयन पर वार्ताएँ ठप हो गईं। जिन्ना ने जोर दिया कि केवल मुस्लिम लीग मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कर सकती है, कांग्रेस द्वारा नामांकित किसी भी मुस्लिम को अस्वीकार कर दिया।
जिन्ना की मांगें: जिन्ना ने मांग की कि मुस्लिम सदस्यों से जुड़ी निर्णयों के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता हो, जो एक विवादास्पद बिंदु था।
वावेेल का प्रस्ताव: वावेेल ने 14-सदस्यीय कार्यकारी परिषद में छह मुस्लिम प्रतिनिधियों का प्रस्ताव रखा, लेकिन मुसलमान केवल 25% जनसंख्या का हिस्सा थे। इस प्रस्ताव को कांग्रेस द्वारा अनुचित माना गया।
सम्मेलन की विफलता: सम्मेलन की समाप्ति तब हुई जब कांग्रेस ने जिन्ना की मांगों को अस्वीकृत कर दिया, और वावेेल ने योजना को छोड़ दिया। यह एक संयुक्त, स्वतंत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर का अंत था।
निष्कर्ष: लॉर्ड वावेेल ने बातचीत को विफल घोषित किया, जो सम्मेलन के पतन और एक संयुक्त भारत की संभावनाओं को संकेत देता है।
विफलता की जिम्मेदारी:
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