पल्लवों ने लगभग 4वीं शताब्दी ईस्वी में दक्षिण में एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभरना शुरू किया और 7वीं शताब्दी ईस्वी में अपने पूर्ण शक्ति के शिखर पर थे। वे लगभग 500 वर्षों तक अपने शासन को बनाए रखने में सक्षम रहे। उन्होंने महान शहरों, शिक्षा के केंद्रों, मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण किया और दक्षिण-पूर्व एशिया के एक बड़े हिस्से में संस्कृति को प्रभावित किया।
पल्लवों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को नीचे दिए गए तालिका में उल्लेखित किया गया है:
पल्लव वंश के संस्थापक के नाम पर स्पष्टता नहीं है, लेकिन 6वीं शताब्दी के अंतिम चौथाई में पल्लवों के उदय का श्रेय सिंहविष्णु को दिया जाता है।
महेंद्रवर्मन I को पल्लवों का सबसे महान शासक माना जाता है। उनके शासनकाल को कई वास्तु और साहित्यिक उपलब्धियों के लिए जाना जाता है, जो दक्षिण भारत की भविष्य की कला और संस्कृति की नींव रखने में सहायक सिद्ध हुईं।
कांचीपुरम पल्लवों की राजधानी थी।
महाबलीपुरम का शोर मंदिर और कांचीपुरम का कैलासनाथर मंदिर पल्लवों के शासनकाल के दौरान निर्मित प्रसिद्ध मंदिर हैं।
पल्लवों का राजनीतिक इतिहास
≫ पल्लव राजवंश का क्षेत्रफल
≫ पल्लव साम्राज्य के शासक (i) शिवस्कंद वर्मन
(ii) सिंहवर्मन/सिंहविष्णु (शासन: 575 ईस्वी – 600 ईस्वी)
(iii) महेंद्रवर्मन (शासन: 600 ईस्वी – 630 ईस्वी)
(iv) नरसिंहवर्मन I (630 ईस्वी – 668 ईस्वी)
(v) बाद के शासक
पाल्लव समाज और संस्कृति
शैव संत: अप्पर, सांबंदर, सुंदरर और मणिक्कवासगर। वैष्णव संत: आंडाल (एकमात्र महिला आलवार संत)। ये संतों ने तमिल में भजनों की रचना की।
≫ पल्लव वास्तुकला
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