UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल - सिन्धु घाटी की सभ्यता, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल - सिन्धु घाटी की सभ्यता, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल

पुरापाषाण युग
  •  आरम्भ में आदमी खाना बदोश थे, यानि वे झुंड बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। 
  •  चकमक पत्थर तथा कुछ अन्य किस्मों के पत्थरों का औजार और हथियार बना ने में इस्तेमाल हुआ । इस तरह की कुछ चीजें पंजाब (अब पाकिस्तान) में सोहन नदी की घाटी में मिली है । कुछ स्थानों में, जैसे कश्मीर की घाटी में, जानवरों की हड्डियों सेभी औजार और हथियार बनाए जाते थे। 
  • पानी की सुविधा के लिए आदिम मानव प्रायः नदी या झरने के किनारे रहता था। बरसात या ठंडक के दिनों में मारे हुए पशुओं की खाल, वृक्षों की छाल अथवा बड़े पत्ते कपड़े के रूप में काम में लाए जाते थे।
  • भारत में पुरापाषाण युग को इस्तेमाल में लाए जाने वाले पत्थर के औजारों के स्वरूप और जलवायु में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर तीन अवस्थाओं में बांटा जाता है।पहली को आरम्भिक यानिम्न-पुरापाषाण काल, दूसरी को मध्य-पुरापाषाण काल और तीसरी को उच्च-पुरापाषाण काल कहते है। 
  • निम्न-पुरापाषाण काल के औजारों में प्रमुख है | कुल्हाड़ी, विदारणी और खंडक। 
  • मध्य-पुरापाषाण युग में उद्योग मुख्यतः शल्क से बनी वस्तुओं का था। 
  • उच्च-पुरापाषाण युग की दो विलक्षणताएं है | नए चकमक उद्योग की स्थापना और आधुनिक प्रारूप के मानव (Homo Sapiens) का उदय।


स्थिति एवं काल

  • सर्वप्रथम इसकी खुदाई पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के हड़प्पा नामक स्थान पर 1921 ई. में हुई।
  • इस सभ्यता के लिए साधारणतः तीन नामों का प्रयोग होता है - ‘सिंधु सभ्यता’, ‘सिंधु घाटी की सभ्यता’ और ‘हड़प्पा सभ्यता’।
  • हड़प्पा संस्कृति समूचे सिंध तथा बलूचिस्तान में और लगभग पूरे पंजाब (पूर्वी और पश्चिमी), हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू, उत्तरी राजस्थान, गुजरात तथा उत्तरी महाराष्ट्र में फैली हुई थी।
  • इसकी पश्चिमी सीमा बलूचिस्तान के सुतकागेंडोर और पूर्वी सीमा उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के आलमगीरपुर के बीच की दूरी करीब 1500 कि. मी. है।
  • उत्तरी सीमा पंजाब में रोपड़ और दक्षिणी सीमा गुजरात में किम सागर-संगम पर भगतराव के बीच की दूरी करीब 1100 कि. मी. है।
  • मोटे तौर पर इसका अस्तित्व 2500 ईसा पूर्व और 1800 ईसा पूर्व के बीच रहा।
  • भारत में हड़प्पा संस्कृति का विकास उसी समय हुआ जब एशिया तथा अफ्रीका के अन्य भागों में, मुख्यतः नील, फरात, दजला तथा ह्नाङ-हो नदियों की घाटियों में दूसरी सभ्यताएँ फल-फूल रही थीं।
  • उस समय मिस्र में पिरामिडों का निर्माण करवाने वाले फैराहा (प्राचीन मिस्र के राजाओं की उपाधि) की सभ्यता थी। आज जो प्रदेश इराक के नाम से प्रसिद्ध है, वहां सुमेरी सभ्यता थी।

    प्रमुख स्थल
    हड़प्पा: यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। इसका उत्खनन सर्वप्रथम 1921 में माधो स्वरूप वत्स तथा दयाराम साहनी द्वारा किया गया। इसके दो खंड है - पूर्वी और पश्चिमी। पूर्वी खंड का उत्खनन नहीं हो पाया है। पश्चिमी खंड में किलेबंदी पाई गई है और उसे चबूतरे पर खड़ा किया गया है। किलेबंदी में आने-जाने का मुख्य मार्ग उत्तर में था। इस उत्तरी प्रवेश द्वार और रावी के किनारे के बीच एक अन्न भंडार, श्रमिक आवास और ईंटों से जुड़े गोल चबूतरे थे, जिनमें अनाज रखने के लिए कोटर बने थे। सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक कब्रिस्तान भी मिला है।
    मोहनजोदड़ो: यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के किनारे स्थित है। राखालदास बनर्जी के प्रस्तावपर भारतीय पुरातत्व विभाग ने 1922 में इस क्षेत्र का उत्खनन कराया। इसका आकार लगभग एक वर्गमील है तथा यह भी दो खंडों में विभाजित है - पश्चिमी और पूर्वी। पश्चिमी खंड अपेक्षाकृत छोटा है। इसका सपूर्ण क्षेत्र गारे और कच्ची ईंटों का चबूतरा बनाकर ऊँचा उठाया गया है। सारा निर्माण-कार्य इस चबूतरे के ऊपर किया गया है। इस खंड में अनेक सार्वजनिक भवन स्थित है। इस खंड की शायद सबसे विशिष्ट संरचनात्मक विशेषता लगभग 39 ´ 23 वर्ग फुट का तालाब है जिसमें ईंटों की तह लगाकर ऊपर से बिटुमन का लेप कर दिया गया है ताकि पानी उससे बाहर न जा सके। यह मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार है, जिसकी व्याख्या औपचारिक स्नानागर के रूप में की गई है।

    पूर्वी खंड बड़ा है। यह किसी एक ही चबूतरे के ऊपर नहीं बना था। इसे निचला टीला भी कहा जाता है। मोहनजोदड़ो के मकान बहुधा पक्की ईंटों के बने थे, जिनमें कहीं-कहीं दूसरी मंजिलें भी बनी थीं और उनमें जल-निकास का प्रबंध था क्योंकि वे सड़कों की नालियों से जुड़े थे। नालियों में ईंटों की तह लगाई जाती थी और बहुत-सारी नालियां ऊपर से ढकी थीं। कुछ सार्वजनिक कुएं भी थे जिनमें ईंटों की तह लगी थी।

प्रागैतिहासिक काल

  • निस्संदेह भारतीय सभ्यता विश्व की प्राचीनतम और प्रगामी सभ्यताओं में से एक है,  लेकिन अपने विकास काल में इसे कई चरणों से गुजरना पड़ा है। 
  • प्रारम्भिक मानव, जिसे आदिम मानव कहते है, को सभ्य बनने में लाखों साल लग गए। खाद्य-संग्राहक से खाद्य-उत्पादक तक की अवस्था में पहुंचने में आदमी को करीब 3,00,000 साल लगे। परंतु एक बार खाद्य-उत्पादक बनने के बाद मनुष्य ने बड़ी तेजी से उन्नति की। 
  • मनुष्य के विकास की अवधि को निम्नलिखित कालानुक्रमिक रूप में रखा जा सकता है - 

(i) पुरापाषाण युग (500000 - 8000 ई. पू.)
   (iii) मध्य-पाषाण युग (8000 - 4000 ई. पू.)
   (iii) नव-पाषाण युग (6000 - 1000 ई. पू.)
   (iv) ताम्र-पाषाण युग


कालीबंगन: यह राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्गर नदी के किनारे स्थित है। पहले यहां से होते हुए सरस्वती नदी गुजरती थी, जो अब सूख चुकी है। इसका उत्खनन बी. बी. लाल द्वारा किया गया। इसके किलेबंद पश्चिमी टीले के दो पृथक् किन्तु परस्पर संबद्ध खंड है - एक संभवतः जनसंख्या के विशिष्ट वर्ग के निवास के लिए और दूसरा अनेक ऊँचे-ऊँचे चबूतरों के लिए जिनके शिखर पर हवन-कुंड के अस्तित्व का साक्ष्य मिलता है। इस स्थल के पश्चिम में कब्रिस्तान है, और पूर्व में ऐसी बनावट का साक्ष्य मिलता है जहां संभवतः अनुष्ठान कार्य संपन्न किए जाते थे। कालीबंगन के पूर्वी टीले की योजना मोहनजोदड़ो की योजना से मिलती-जुलती है, परंतु कालीबंगन के घर कच्ची ईंटों के बने थे और यहां कोई स्पष्ट घरेलू या शहरी जल-निकास प्रणाली भी नहीं थी।
रोपड़: यह पंजाब के लुधियाना जिले में चंडीगढ़ से 40 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। यह सतलुज नदी के किनारे पर है। संघोल टीले की खुदाई से इसका पता चला। इसका उत्खनन एस. एस. तलवार एवं रविन्द्र सिंह विष्ट द्वारा 1953-56 में किया गया। यहां हड़प्पा और हड़प्पा-पूर्व संस्कृति के साक्ष्य मिलते है।

आर्यसैन्धव
(i) आर्य गाय की पूजा करते थे।
(ii) घोड़ा आर्यों का प्रमुख पशु था।
(iii) आर्य लोहे का प्रयोग करते थे।
(iv) वैदिक आर्यों की सभ्यता ग्रामीण एवं कृषि-प्रधान थी।
(v) आर्य युद्धप्रेमी थे।
(vi) आर्य मूर्ति पूजा के विरोधी थे। वे सूर्य, अग्नि, पृथ्वी, इन्द्र, सोम, वरुण आदि देवताओं की मंत्रों द्वारा पूजा करते थे।
(vii) आर्यों में बाहरी खेलों (Outdoor games) का अधिक प्रचलन था।
(viii) आर्यों द्वारा निर्मित बर्तन अत्यन्त साधारण किस्म के होते थे।
(i) सिन्धु-सभ्यता में बैल अधिक सम्माननीय था।
(ii) इस सभ्यता में घोड़े का ज्ञान संदिग्ध है।
(iii) सिन्धु-निवासी लोहे से अनभिज्ञ थे।
(iv) सिन्धु-सभ्यता नगरीय एवं व्यापार-प्रधान थी।
(v) सैन्धव शांतिप्रिय थे।
(vi) सिन्धु निवासी मूत्र्ति-पूजक थे तथा शिवलिंग एवं मातृ-पूजा करते  थे।
(vii) सिन्धु-निवासी घरों में खेले जाने वाले खेल (Indoor games)पसन्द करते थे।
(viii) सिन्धु-निवासी मिट्टी के अत्यन्त सुन्दर बर्तन बनाते थे।

 

मध्य-पाषाण युग
  • इस युग में पत्थर के हथियारों और औजारों में काफी सुधार देखने को मिलता है। पत्थरों से छोटे-छोटे हथियार बनाए जाने लगे थे। जैस्पर, चर्ट आदि चमकदार शैल के औजार भी पाए जाते है। 
  • हथियारों को पकड़ने की सुविधा और ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए उसमें लकड़ी का मूठ इस्तेमाल होने लगा। 
  • अभी भी मनुष्य खेती-बाड़ी तथा मकान बनाने के मामले में अनभिज्ञ था, तथापि वे मृतकों को दफनाना जान गए थे। 
  • उसे पता चल गया कि जंगली पशुओं को पालतू बनाया जा सकता है। पालतू जानवरों में कुत्ता प्रमुख था।
  • इस युग के विशिष्ट औजारों को सूक्ष्म पाषाण उपकरण (माइक्रोलिथ) कहते है।


लोथल: यह गुजरात के काठियावाड़ जिले में भोगवा नदी-तट पर स्थित है। इसका उत्खनन एस. आर. राव ने किया। यहां पूरी बस्ती एक दीवार से घिरी थी। लोथल के पूर्वी हिस्से में पक्की ईंटों का एक तालाब-जैसा घेरा मिलता है। कुछ विद्वानों ने इसकी व्याख्या गोदीबाड़े के रूप में की है।
सुरकोतदा: यह गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है। यहां कालीबंगन के पश्चिमी टीले की पुनरावृति दिखाई देती है। इसका कोई पूर्वी टीला नहीं है। इसका उत्खनन 1964 ई. में जगपति जोशी द्वारा किया गया।
रंगपुर: यह गुजरात के झालवाड़ जिले मेंभदर नदी के किनारे अवस्थित है। यह अहमदाबाद के दक्षिण-पश्चिम में लोथल से 150 कि. मी. दूर है। इसकी खुदाई 1931-34 में माधो स्वरूप वत्स के निर्देशन में, 1947 में भोरेश्वर दीक्षित के निर्देशन में तथा 1953-54 में रंगनाथ राव के निर्देशन में हुई। यहां से हड़प्पा-पूर्व संस्कृति के साक्ष्य मिले है। यहां कोई सील या मातृदेवी की प्रतिमा नहीं मिली है।

ताम्र-पाषाण युग
  • जिस युग में मनुष्य ने छोटे-छोटे पत्थरों के औजारों के साथ-साथ धातु के औजारों का इस्तेमाल शुरू कर दिया, उसे ताम्रयुग या कांस्ययुग या ताम्र-पाषाण युग कहते है।
  • आरंभ में तांबे की खोज हुई। बाद में दूसरी धातुएं उसमें मिलाई गईं। धीरे-धीरे लोग सोना, चांदी तथा अंततः लोहे के उपयोग की कला से परिचित हुए। 
  • पाषाण युग से पूर्णतः धातु युग के संक्रमण में सैकड़ाü साल लगे।
  • यह वास्तव में विवाद का विषय है कि इस देश में धातु के प्रयोग की विधि कैसे प्रचलित हुई। कुछ विद्वानों का मत है कि नव-पाषाण युग में ही इस कला का क्रमिक विकास हुआ। 
  • कुछ अन्य विद्वानों का मानना है कि बाहरी समूह, जिसे धातु के उपयोग की जानकारी थी, पश्चिमी दर्रों से होते हुए गंगा-नदी क्षेत्र में आकर बस गया और वहां के नव-पाषाण युगीन निवासियों को और दक्षिण में बसने पर मजबूर किया। 
  • दक्षिण में पाषाण युग की जगह सीधे लौह युग ने ले ली जबकि उत्तरी भारत में पाषाण युग और लौह युग के मध्य ताम्र का उपयोग बड़े पैमाने पर हुआ। 
  • दरअसल, उत्तर भारत में पाषाण युग का स्थान ताम्र-पाषाण युग ने लिया।


बनवाली: यह हरियाणा के हिसार जिले में अवस्थित है। इसका उत्खनन 1973-74 में रवीन्द्र सिंह विष्ट के नेतृत्व में हुआ। यहां हड़प्पा और हड़प्पा-पूर्व दोनों संस्कृतियों के साक्ष्य मिले है। यहां काफी मात्रा में जौ मिला है। अपनी योजना की दृष्टि से यह मोटे तौर पर सुरकोतदा तथा कालीबंगन के पश्चिमी टीले से मिलता-जुलता है।
आलमगीरपुर: यह उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हिन्डन नदी के किनारे स्थित हैै। यह हड़प्पा सभ्यता के अंतिम अवस्था को दर्शाता है। इसकी खुदाई यज्ञदत्त शर्मा के नेतृत्व में हुई।
चन्हूदड़ो: यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो से 80 मील दक्षिण में स्थित है। इसका उत्खनन 1925 में अर्नेस्ट मैके के नेतृत्व में हुआ। यहां भी हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पा दोनों संस्कृतियों के साक्ष्य मिले है। यहां जो महत्वपूर्ण निर्माण-कार्य पाया गया, उसमें एक मनके बनाने का कारखाना भी था।
अली मुराद: यह भी सिंध में स्थित है। यहां पत्थर का एक बड़ा किला मिला है।

The document पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल - सिन्धु घाटी की सभ्यता, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|676 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल - सिन्धु घाटी की सभ्यता, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. पुरापाषाण युग क्या है और इसकी विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर: पुरापाषाण युग भारतीय उपमहाद्वीप में प्रागैतिहासिक काल की एक अवधि है जो लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक थी। यह युग उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में विकसित था और इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं: - पुरापाषाण युग में लोग पत्थर और हड्डी का उपयोग करते थे। इस युग में पत्थर के उपकरणों का निर्माण किया गया, जैसे जंग, छेद, घोंचा आदि। - इस युग की सभ्यता में लोग जंगली फल, बीज, मछली, और जानवरों का उपयोग करते थे। वे संग्रह कीजिए और शिकार करते थे। - पुरापाषाण युग में लोग छोटे गांवों में रहते थे और उनकी आवास योजना बांधों का निर्माण करने के लिए जमीन पर आधारित थी। - इस युग में वस्त्र बनाने के लिए उनके पास खाद्यान्न, लकड़ी, फाइबर, और चमड़े के उपयोग किए जाते थे। - सभ्यता के युग में लोग धातु के उपकरणों का उपयोग करते थे और चांदी और सोने के आभूषण बनाते थे।
2. प्रागैतिहासिक काल क्या होता है और इसके महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बताएं?
उत्तर: प्रागैतिहासिक काल उस अवधि को कहते हैं जो इतिहास से पहले होती है और जिसमें लिखित रिकॉर्ड्स उपलब्ध नहीं होते हैं। इस काल को अध्ययन करने से हमें प्राचीन समाजों, संस्कृति, और जीवन शैली के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। प्रागैतिहासिक काल का महत्वपूर्ण पहलु निम्नानुसार है: - इसके द्वारा हम प्राचीन मानव जीवन का अध्ययन कर सकते हैं और उनके आवासों, खाद्यान्न, उपकरण, और संस्कृति के बारे में जान सकते हैं। - प्रागैतिहासिक काल में संग्रह करने और शिकार करने की प्रथाएँ विकसित हुईं, जो मानव सभ्यता के उदय की प्रारंभिक निशानी हो सकती हैं। - इसके द्वारा हम भूतकालीन राष्ट्रों और सभ्यताओं के बारे में जान सकते हैं जो अब अस्तित्व में नहीं हैं, जैसे सिन्धु घाटी सभ्यता। - प्रागैतिहासिक काल में धार्मिक और राजनीतिक प्रथाओं की शुरुआत हुई, जिनका प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है। - यह अवधि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अद्यतन की शुरुआत थी, जिसने मानव समाज को प्रगति के मार्ग पर ले जाने की शुरुआत की।
3. सिन्धु घाटी सभ्यता क्या है और इसकी महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर: सिन्धु घाटी सभ्यता एक प्रागैतिहासिक सभ्यता थी जो आधुनिक पाकिस्तान और भारत के बीच सिन्धु और यमुना नदी के घाटी में स्थित थी। यह सभ्यता लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक विकसित हुई
398 videos|676 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

इतिहास

,

पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल - सिन्धु घाटी की सभ्यता

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

यूपीएससी

,

Exam

,

Free

,

यूपीएससी

,

Objective type Questions

,

study material

,

video lectures

,

Important questions

,

इतिहास

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

,

Extra Questions

,

यूपीएससी

,

past year papers

,

shortcuts and tricks

,

MCQs

,

Viva Questions

,

practice quizzes

,

Sample Paper

,

इतिहास

,

Semester Notes

,

Previous Year Questions with Solutions

,

ppt

,

mock tests for examination

,

पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल - सिन्धु घाटी की सभ्यता

,

Summary

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

पुरापाषाण युग और प्रागैतिहासिक काल - सिन्धु घाटी की सभ्यता

;