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राजनीतिक संगठन, औजार एवं खिलौने - सिन्धु घाटी की सभ्यता, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

राजनीतिक संगठन

  • मोहनजोदड़ो का एक बड़ा भवन जान पड़ता है कि राजमहल या किसी शासक का मकान था। फिर भी यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि हड़प्पा संस्कृति के लोगों का कोई राजा होता था या नागरिकों की एक समिति उनका शासन चलाती थी।
  • हड़प्पावासी युद्धों की अपेक्षा शायद व्यापार में अधिक व्यस्त रहते थे और हो सकता है कि व्यापारी-वर्ग का शासन चलता हो।सड़कों की सुव्यवस्था, नालियों द्वारा जल निकासी का उत्तम प्रबंध, नगर-योजना व शांतिमय जीवन के प्रमाणों को देखते हुए कहा जा सकता है कि शासन-व्यवस्था अच्छी थी और विप्लव तथा अशांति से यह प्रदेश बहुत दिनों तक मुक्त था।

खेती एवं भोजन

  • इस बात का साक्ष्य प्राप्त हुआ है कि वे लोग गेहूं, जौ, मटर, कपास, तिल एवं राई उपजाया करते थे (गेहूं और जौ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में, जौ कालीबंगन में और धान एवं बाजरा लोथल में)।
  • यह बात अनिश्चित है कि जोताई का काम हल द्वारा होता था या कुदाल से, मगर कालीबंगन में जुते हुए खेत तथा उनमें रेहों का मिलना यह कुछ हद तक साबित करता है कि वे हल का प्रयोग करते थे।
  • विद्वानों की यह धारणा है कि प्राचीन काल में सिन्ध में काफी वर्षा होती थी और बड़ी-बड़ी नदियों के होने से सिंचाई के लिए किसी प्रकार की समस्या नहीं  थी (सिन्धु नदी के अलावा एक नदी मिहरन थी, जो 14वीं सदी में सूख गई)।
  • उपरोक्त अनाजों के अलावा अधजली हड्डियों से स्पष्ट होता है कि ये लोग भी उस समय के अन्य लोगों की तरह ही भोजन के रूप में विभिन्न जानवरों के मांस, मछली एवं अन्य जलप्राणियों को खाते थे। वे लोग शायद दूध एवं सब्जी भी अपने भोजन में लेते थे।
  • वहां सांड, भेड़, सूअर, भैंस, ऊंट और हाथी की हड्डियां प्राप्त हुई हैं, जबकि कुत्ता और घोड़ों की हड्डियां जमीन की सतह पर प्राप्त हुई है, जिससे संदेह होता है कि ये जानवर बाद के काल में पाये जाते थे।
  • उन लोगों को जंगली जानवरों का भी ज्ञान था, जिनमें गेंडा, बन्दर, बाघ, भालू एवं खरहा आदि प्रमुख थे, जिनकी तस्वीरें मुहरों एवं ताम्र तश्तरी पर अंकित है।

गहने एवं घरेलू सामान

  • उस क्षेत्र में पत्थरों की कमी थी, किन्तु दरवाजे की कुंडी, छोटी मूर्ति, धार्मिक प्रतिमा आदि के लिए पत्थर आयात किये जाते थे।
  • उन लोगों के ज्ञान में सोना, चांदी, ताम्र, टीन एवं शीशा जैसे धातु थे।
  • मोहनजोदड़ो में कांस्य की प्राप्त हुई प्रतिमा से स्पष्ट हो जाता है कि उस समय कांसे का भी व्यवहार होता था।
  • लोहा कहीं से भी प्राप्त नहीं हुआ है।
  • मर्द एवं औरत दोनों ही सुन्दर गहनों का प्रयोग करते थे।
  • अमीरों के लिए सोने, चांदी, तांबे एवं कीमती पत्थरों के  गहने होते थे। वे लोग झुमके, गले का हार, अंगूठी, कंगन आदि का उपयोग करते थे।
  • गरीबों के लिए हड्डियों, सेल (Shell) एवं मृण्मूर्ति (Terracotta) के गहने थे।
  • घरेलू सामानों के निर्माण में तांबा और कांसे का प्रयोग होता था।
  • अधिकांशतया वे लोग मिट्टी के पके बर्तन बनाते थे। अधिक संख्या में ऐसे कटोरे, प्यालियां, तश्तरियां, फूलदान एवं पत्थर के बर्तन प्राप्त हुए है।

स्मरणीय तथ्य

  • चन्हूदड़ो में एक पात्र में जला हुआ कपाल मिला है।
  • प्रायः शव का सिर उत्तर दिशा में व पैर दक्षिण दिशा में रखा जाता था। परन्तु हड़प्पा में एक शव के सिर को दक्षिण दिशा में रखकर दफनाया गया है।
  • हड़प्पा में दुर्ग के दक्षिण-पश्चिम में प्राप्त एक कब्रिस्तान को ‘एच-कब्रिस्तान’ नाम दिया गया है। ऐसा समझा जाता है कि इसमें हड़प्पा को बर्बाद करने वाले किसी विदेशी को दफनाया गया था।
  • हड़प्पा के दक्षिण-पश्चिम में ही एक और कब्रिस्तान मिला है जिसे ‘आर-37’ नाम दिया गया है।
  • लोथल में प्राप्त एक कब्र में शव का सिर पूरब दिशा में और पैर पश्चिम दिशा में रखा गया है। शव को करवट लिटाया गया है।
  • लोथल में ही एक कब्र में दो शव एक-दूसरे से लिपटे हुए पाए गए है।
  • सुरकोटडा में अंडाकार कब्र का गड्ढा मिला है।
  • मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान सात स्तर मिले है, जिससे पता चलता है कि यह सात बार पुनर्निर्मित हुआ था।
  • हड़प्पा के भण्डारागार का प्रमुख प्रवेश द्वार नदी की ओर से था।
  • केवल कालीबंगन के एक फर्श में अलंकृत ईंटों का प्रयोग मिलता है।
  • ऐसी कोई मूत्र्ति नहीं मिली है, जिस पर गाय की आकृति खुदी हो।
  • तांबे और टिन को मिलाकर कांस्य तैयार किया जाता था।
  • हड़प्पा से तांबे का बना दर्पण मिला है।
  • मोहनजोदड़ो के किसी बर्तन पर लेख नहीं मिलता है, परन्तु हड़प्पा के बत्र्तनों पर लेख भी मिलते है।
  • देसालपुर व लोथल से तांबे की मुद्रा मिली है।
  • मोहनजोदड़ो से पांच बेलनाकार मुद्राएं मिली है।
  • हड़प्पा से प्राप्त एक मुद्रा में गरुड़ दिखाया गया है।
  • मोहनजोदड़ो को ”सिंध का नखलिस्तान“ कहते है।
  • कालीबंगन में काली मिट्टी की चूड़ियाँ मिली हैं।
  • हड़प्पा-पूर्व संस्कृति की जानकारी सर्वप्रथम अमरी और तत्पश्चात् स्वयं हड़प्पा से मिली।

औजार एवं खिलौने

  • युद्ध एवं शिकार के लिए पत्थर के औजार के साथ-साथ तांबे और कांसे के औजार प्रयोग किये जाने लगे।
  • लोगों के पास अधिक संख्या में कुल्हाड़ी, छुरे, भाले, तीर और कमान, गदा एवं गोफन रहते थे।
  • सुरक्षात्मक हथियार जैसे ढाल एवं कवच आदि का ज्ञान उन लोगों को नहीं था और न ही तलवार होने का प्रमाण ही मिला है।
  • बटखरे एवं पांसे के लिए पत्थरों का प्रयोग होता था जो वहां से प्राप्त अवशेषों से स्पष्ट होता है।
  • वे लोग अपना मनोरंजन शिकार, मछली पकड़कर एवं जंगली जानवरों को पालतू बनाकर करते थे।
  • खुदाई में प्राप्त पांसों से सिद्ध होता है कि वैदिक आर्यों की तरह सिन्धु सभ्यता के लोग भी पांसे का खेल खेला करते थे।
  • वे लोग संगीत, नृत्य एवं चित्रकारी का आनंद भी लेते थे।
  • मोहनजोदड़ो में एक नाचती हुई लड़की की छोटी मूर्ति भी प्राप्त हुई है, जो कांसे की बनी है। 
  • छोटे बटखरे घनाकार जबकि भारी बटखरे शंकुकार आकृति के होते थे।
  • बच्चे खेलने के लिए खिलौने एवं खेल की गोली का प्रयोग करते थे। साधारणतया ये खिलौने मिट्टी के जानवर, पक्षी, आदमी, औरत एवं गाड़ियों के आकार के होते थे।

बुनाई, कपड़े एवं वस्त्र

  • मोहनजोदड़ो के निवासियों के वस्त्र का अनुमान वहां से प्राप्त मूर्तियों से अथवा मुहरों पर जो चिन्ह उत्कीर्ण मिले है, उसी से लगाया जाता है।
  • स्त्रियों और पुरुषों के वस्त्रों में कुछ अंश तक समानता थी।
  • मोहनजोदड़ो की खुदाई में पर्याप्त संख्या में सूत लपेटनेवाला परेता मिला है। इससे पता चलता है कि वहां प्रत्येक घर में सूत कातने की प्रथा प्रचलित थी।
  • सुइयों की प्राप्ति से पता चलता है कि लोग सिला हुआ कपड़ा पहनते थे।
  • एक पुरुष मूर्ति के शरीर पर लम्बी शाल पायी गयी है जिसे वह बाँयें कंधे के ऊपर दाईं भुजा के नीचे फेंककर पहने हुए है।
  • स्त्री-पुरुष दोनों टोपियों का व्यवहार करते थे।
  • कुछ मनुष्य मूर्तियां दुपट्टे के आकार का वस्त्र पहने हुए है और नीचे धोती पहने हुए है जो संभवतः पुरोहित होने का संकेत करता है।
  • कुछ मूर्तियाँ नंगी पायी गई है किन्तु इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि उस समय लोग नंगे रहते थे। ये संभवतः धार्मिक कार्यों के लिए होते थे।

स्मरणीय तथ्य 

  • सिन्धु सभ्यता के बर्तन निर्माण की विशेषता थी। अच्छी तरह से पका लाल बर्तन, बर्तनों पर काले डिजाइन का प्रयोग, बर्तनों पर पौधे तथा ज्यामितीय आकृति का प्रयोग व लाल और काले पालिश वाले बर्तन।
  • गेहूं तथा कपास उगाने की कला मानवमात्र को हड़प्पा की देन माना जा सकता है।
  • सिन्धुकालीन एकसींगी पशु देवता हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
  • उपलब्ध पुरातात्विक साक्ष्यों में मृण्मूर्तियों व मुहरों से सिन्धुवासियों के धार्मिक-सामाजिक जीवन के संबंध में सर्वाधिक जानकारी मिलती है।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में सर्वाधिक हड़प्पा केन्द्रों की खोज गुजरात राज्य में हुई है।
  • लगभग प्रत्येक हड़प्पा नगर में धान्यकोठार के अस्तित्व से प्रतीत होता है कि विभिन्न क्षेत्रों के अतिरिक्त उत्पादन को शहरों में संचित किया जाता था, व्यापार के उद्देश्य से भी खाद्यानों को संचित किया जाता था, जनता द्वारा कर वस्तु के रूप में दिया जाता था और धान्यकोठार गोदाम के रूप में कार्य करता था।
  • सिन्धु सभ्यता के ईंटों का आकार 1ः 2ः 4 के अनुपात में होता था।
  • रोजड़ी, देसालपुर व सुरकोतदा की खुदाई से प्राक्- हड़प्पाकालीन, हड़प्पाकालीन तथा उत्तर-हड़प्पा- कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।

व्यापार एवं वाणिज्य

  • बलूचिस्तान, समुद्र तट के पास स्थित बालाकोट और सिंध में चन्हूदड़ो सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।
  • लोथल और चन्हूदड़ो में लाल (Carnelian) पत्थर और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
  • चन्हूदड़ो में लाजवर्दमणि के कुछ अधबने मनके इस बात की ओर संकेत करते हैं कि हड़प्पा निवासी दूर दराज के स्थानों से बहूमूल्य पत्थर आयात करते थे और उन पर काम करके उन्हें बेचते थे।
  • मोहनजोदड़ो में पत्थर की चिनाई करने वाले कुम्हार, तांबे और कांसे के शिल्पकार, ईंटें बनाने वाले, सील काटने वाले, मनके बनाने वाले आदि हस्त कौशल में निपुण लोगों की उपस्थिति के प्रमाण पाए गए हैं।
  • वे राजस्थान की खेतड़ी खानों से तांबा प्राप्त करते थे।
  • मध्यवर्ती राजस्थान में जोधपुर, बागोर और गणेश्वर बस्तियां, जो हड़प्पा-सभ्यता की बस्तियों के समकालीन मानी जाती हैं, संभवतः हड़प्पा सभ्यता के लिए कच्चे तांबे का स्रोत रही होंगी।
  • गणेश्वर में 400 से अधिक तांबे के तीर शीर्ष, 50 मछली पकड़ने के कांटे और 58 तांबे की कुल्हाड़ियां पाई गई हैं।
  • शायद हड़प्पा-सभ्यता के लोग तांबा बलूचिस्तान और उत्तरी-पश्चिमी सीमांत से भी प्राप्त करते थे।
  • सोना संभवतः कर्नाटक के कोलार क्षेत्र और कश्मीर से प्राप्त किया जाता था। हड़प्पावासियों की समकालीन कुछ नवपाषाण युगीन बस्तियां भी इस क्षेत्र में पाई गई हैं।
  • राजस्थान के जयपुर और सिरोही, पंजाब के हाज़रा कांगड़ा और झंग और काबुल और सिन्धु नदियों के किनारे सोने के मुलम्मों के प्रमाण मिले हैं।
  • हड़प्पा सभ्यता की बहुत सी बस्तियों से चांदी के बर्तन पाए गए हैं। यद्यपि इस क्षेत्र में चांदी के कोई विदित स्रोत नहीं हैं।
  • चांदी शायद अफगानिस्तान और ईरान से आयात किया जाता होगा।
  • संभवतः सिंध के व्यापारियों के मेसोपोटामिया से व्यापार संबंध थे तथा वे अपने माल के बदले में मेसोपोटामिया से चांदी प्राप्त करते थे।
  • सीसा शायद कश्मीर या राजस्थान से प्राप्त किया जाता होगा। पंजाब और बलूचिस्तान में भी थोड़े बहुत सीसे के स्रोत थे।
  • लाजवर्द मणि जो कि एक कीमती पत्थर तथा उत्तरी पूर्वी अफगानिस्तान में बदक्शां (Badakshan) में पाया जाता था। इस क्षेत्र (Altyn Depe) और अलतिन देपे ;।सजलद क्मचमद्ध जैसी हड़प्पाकालीन बस्तियों का पाया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि हड़प्पावासियों ने इस स्रोत का लाभ उठाया होगा।
  • फिरोजा और जेड मध्य एशिया से प्राप्त किए जाते थे।
  • गोमेद, श्वेतवर्ण स्फटिक और लाज पत्थर सौराष्ट्र या पश्चिमी भारत से प्राप्त किये जाते थे।
  • समुद्री सीपियां जो हड़प्पावासियों में बहुत लोकप्रिय थीं, गुजरात के समुद्र तट और पश्चिमी भारत से प्राप्त की जाती थीं। संभवतः अच्छी किस्म की लकड़ी अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों से प्राप्त  होती थी और मध्य सिंधु घाटी में नदियों द्वारा पहुँचाई जाती थी।
  • दूर फैली हुई हड़प्पा कालीन बस्तियों में भी नाप और तौल की व्यवस्थाओं में समरूपता थी।
  • तौल निम्न मूल्यांकों में द्विचर प्रणाली के अनुसार थाः 1, 2, 4, 8 से 64 तक फिर 150 तक और फिर 16 से गुणा होने वाले दशमलव 320, 640, 1600 और 3200 आदि तक।
  • ये चकमकी पत्थर, चूना पत्थर, सेलखड़ी आदि से बनते थे और साधारणतया घनाकार होते थे।
  • लम्बाई 37.6 सेंटीमीटर का एक फुट की इकाई पर आधारित थी और एक हाथ की इकाई लगभग 51.8 से 53.6 सेंटीमीटर तक होती थी। 
  • मेसोपोटामिया हड़प्पा-सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से हज़ारों मील दूर स्थित था फिर भी इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापार सम्बन्ध थे।
  • विनिमय के विषय में हमारी जानकारी का आधार मेसोपोटामिया में पाई गई विशिष्ट हड़प्पाकालीन मुहरें हैं।
  • मेसोपोटामिया के सूसा (Susa) उर (Ur) आदि शहरों में हड़प्पा सभ्यता की या हड़प्पाकालीन मुहरों से मिलती-जुलती लगभग दो दर्जन मुहरें पाई गई है। हाल ही में फारस की खाड़ी में फैलका (Failka) और बहरिन (Behrain) जैसे प्राचीन स्थानों में भी हड़प्पाकालीन मुहरें पाई गई है।
  • मेसोपोटामिया के निप्पुर (Nippur) शहर में एक मुहर पाई गई है जिस पर हड़प्पाकालीन लिपि उत्कीर्ण है और एक सींग वाला पशु बना हुआ है।
  • दो चैकोर सिंधु मुहरें जिन पर एक सींग वाला पशु और सिन्धु लिपि उत्कीर्ण है, मेसोपोटामिया के किश (Kish) शहर में पाई गई है।
  • एक अन्य शहर उम्मा (Umma) में भी सिंधु सभ्यता की एक मुहर पाई गई है।
  • मेसोपोटामिया में स्थित अक्काड़ (Akkad) के प्रसिद्ध सम्राट सारगाॅन (Sargon) (2350 ई. पू.) का यह दावा था कि दिलमुन, मगान (Dilmun, Magan) और मेलुहा (Meluha) के जहाज़ उसकी राजधानी में लंगर डालते थे।
  • विद्वान साधारणतया मेलुहा तथा हड़प्पा-सभ्यता के समुद्रतटीय नगरों या सिंधु नदी के क्षेत्र को एक ही मानते है। कुछ विद्वानों का मानना है कि मगान (Magan) तथा मकरान समुद्रतट एक ही है।
  • उर (Ur) शहर के व्यापारियों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ अन्य दस्तावेज भी पाए गए है। ये इस बात की ओर संकेत करते है कि उर (Ur) के व्यापारी मेलुहा से तांबा, गोमेद, हाथी दांत, सीपी, लाजवर्दमणि, मोती और आबनूस आयात करते थे।
  • हड़प्पा में मेसोपोटामिया की वस्तुओं का न पाया जाना इस तथ्य से स्पष्ट किया जा सकता है कि परंपरागत रूप से मेसोपोटामिया के लोग कपड़े, ऊन, खुशबूदार तेल और चमड़े के उत्पाद बाहर भेजते थे। ये सभी वस्तुएं जल्दी नष्ट हो जाती है इस कारण इनके अवशेष नहीं मिले है।
  • हड़प्पा-सभ्यता की बस्तियों में चांदी के स्त्रोत नहीं थे। लेकिन वहाँ के लोग इसका काफी मात्रा में प्रयोग करते थे। संभवतः यह मेसोपोटामिया से आयात किया जाता होगा।
  • हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पाई गई मुहरों में जहाज़ों और नावों को चित्रित किया गया है।
  • लोथल में पक्की मिट्टी से बने जहाज का एक नमूना पाया गया है जिसमें मस्तूल के लिए एक लकड़ी चिन्हित खोल तथा मस्तूल लगाने के लिए छेद है। लोथल में ही 219 x 37 मीटर लम्बाई का एक हौज मिला है जिसकी 4.5 मीटर ऊंची ईंटों की दीवारें है। इसके उत्खनक ने इसको एक जहाजी मालघाट के रूप में पहचाना है। इस स्थान के अलावा अरब सागर के समुद्रतट पर भी अनेक बंदरगाह थे।
  • रंगपुर, सोमनाथ, बालाकोट जैसे स्थान हड़प्पा-सभ्यता के लोगों द्वारा बाहर जाने के रास्ते के रूप में प्रयोग में लाए जाते थे।
  • मकरान समुद्रतट जैसे अनुपयोगी क्षेत्रों में भी सुत्कागेंन-डोर और सुत्काकोह जैसी हड़प्पाकालीन बस्तियां पाई गई है। शायद बारिश के महीनों में वे हड़प्पा सभ्यता के लोगों द्वारा बाहर जाने के रास्ते के रूप में उपयोग में लाये जाते थे।
  • बैलगाड़ी अंतर्देशीय परिवहन का साधन थी। हड़प्पाकालीन बस्तियों से मिट्टी के बने बैलगाड़ी के अनेक नमूने पाए गए है। हड़प्पा में एक कांसे की गाड़ी का नमूना पाया गया है जिसमें एक चालक बैठा है।
  • सिन्धु सभ्यता की मुद्राओं पर गाय को चित्रित नहीं किया गया है।
  • सिन्धुवासियों के कला व सौन्दर्य प्रेम का सर्वोत्तम प्रतिबिम्बन उनके द्वारा निर्मित आभूषणों से होता है।
  • कालीबंगन और सुरकोतदा के अतिरिक्त सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्य केन्द्रों का निम्न भाग दुर्गीकृत नहीं था।
  • हड़प्पा निवासियों के आभूषण सोना, चांदी, तांबा, कीमती पत्थर, हाथी दांत और हड्डी के बने होते थे।
  • सिन्धु सभ्यता की जल निकास प्रणाली की सबसे बड़ी कमी यह थी कि मैनहोल ;डंद भ्वसमद्ध कुओं के नजदीक बने थे।
  • हड़प्पावासियों ने सार्वजनिक शौचालय को स्वास्थ्य रक्षा के साधन के रूप में नहीं अपनाया।
  • हड़प्पा की इमारतों में अधिकांशतः ईंटों का प्रयोग हुआ है, पत्थर का नहीं। इसका संभावित कारण यह हो सकता है कि तैयार पत्थर उपलब्ध नहीं था।
  • लोथल और चन्हुदड़ो का मुख्य उद्योग मनका निर्माण था।
  • सिन्धु निवासियों ने सबसे अधिक कांसा धातु का प्रयोग किया।

उद्भव संबंधी विचारधाराएं

  • सिन्धु सभ्यता मेसोपोटामिया की संस्कृति की देन थी।
  • सिन्धु सभ्यता का उद्भव व विस्तार बलूची संस्कृतियों का फेयरसर्विस  सिन्धु के शिकार पर निर्भर करने वाली किन्हीं वन्य एवं कृषक संस्कृतियों के पारस्परिक प्रभाव के फलस्वरूप हुआ।
  • सोथी संस्कृति से सिन्धु सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान मिला।
  • सोथी संस्कृति सिन्धु सभ्यता से पृथक नहीं थी, अपितु वह सिन्धु सभ्यता का ही प्रारंभिक स्वरूप थी।
  • सिन्धु सभ्यता आर्यों की ही सभ्यता थी तथा आर्य ही इस सभ्यता के जनक थे।

पतन संबंधी विचारधाराएं

  • सिन्धु सभ्यता को आर्यों ने नष्ट किया। 

प्रमुख स्थल व प्राप्त सामग्री
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FAQs on राजनीतिक संगठन, औजार एवं खिलौने - सिन्धु घाटी की सभ्यता, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. सिन्धु घाटी की सभ्यता क्या थी?
उत्तर. सिन्धु घाटी की सभ्यता एक प्राचीन सभ्यता थी जो आधुनिक पाकिस्तान और भारत के क्षेत्रों में स्थित थी। इस सभ्यता का विकास साल 2500 ईसापूर्व से 1750 ईसापूर्व तक हुआ था। यह सभ्यता गहनों, मोहरों, लकड़ी के औजारों, खिलौनों, और वस्त्रों के उत्पादन में महानता प्राप्त कर चुकी थी।
2. सिन्धु घाटी की सभ्यता के खेती और भोजन के बारे में क्या जानकारी है?
उत्तर. सिन्धु घाटी की सभ्यता में खेती एक महत्वपूर्ण गतिविधि थी। लोग गेहूं, जौ, बाजरा, खरीफ फसलें, मूंगफली, तिल और सरसों जैसी फसलें उगाते थे। उनके भोजन में अनाज, दाल, घी, दूध, मखाना, फल, सब्जियां, मांस और मछली शामिल थी।
3. सिन्धु घाटी की सभ्यता में गहनों का महत्व क्या था?
उत्तर. सिन्धु घाटी की सभ्यता में गहनों का महत्वाकांक्षी उपयोग था। लोग सोने, चांदी, मोती, लाल मणि, हीरा, माणिक्य, गोमेद, मूंगा, पुखराज, नीलम, बर्मूदा, जड़े, पत्थर, धातुओं और मिश्रधातुओं से बने गहने पहनते थे।
4. सिन्धु घाटी की सभ्यता में किस प्रकार के औजार और खिलौने बनाए जाते थे?
उत्तर. सिन्धु घाटी की सभ्यता में लोग लकड़ी, पत्थर, मृदा, चिकनी मिटटी, हड्डियां, शंख, इंगुड़ी, चुन्ना, और भारी पत्थरों से बने औजार और खिलौने बनाते थे। इनमें से कुछ उदाहरण हैं छिलनी, चक्की, खुर्ची, चिंटूणी, गोलू और गोटू खिलौने।
5. सिन्धु घाटी की सभ्यता में बुनाई, कपड़े और वस्त्रों का क्या महत्व था?
उत्तर. सिन्धु घाटी की सभ्यता में बुनाई, कपड़े और वस्त्रों का बहुत महत्व था। लोग रेशमी, ऊनी, सूती, पट्टी, सिल्क, बांस, लिनन, वूलन, गोटा, खादी, और देशी कपड़े बनाते थे। इन वस्त्रों का उपयोग दैनिक जीवन में, धार्मिक आयोजनों में, और विशेष अवसरों पर किया जाता था।
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