UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था

  • राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और वाणिज्य-व्यापार पर आधारित थी। इनको सम्मिलित रूप से वार्ता कहा गया है अर्थात् वृति का साधन।

कृषि

  • व्यवसायों में कृषि मुख्य था। एक अच्छे जनपद की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कौटिल्य ने लिखा है कि भूमि कृषियोग्य होनी चाहिए। वह ‘अदेव मातृक’ हो अर्थात् ऐसी भूमि हो कि उसमें बिना वर्षा के भी अच्छी खेती हो सके। मेगास्थनीज के अनुसार दूसरी जाति में किसान लोग थे जो दूसरों से संख्या में कहीं अधिक थे। 
  • मेगास्थनीज ने आगे लिखा है कि भूमि पशुओं के निर्वाह-योग्य है तथा अन्य खाद्य-पदार्थ प्रदान करती है। चूंकि यहां वर्ष में दो बार वर्षा होती है, अतः भारत में दो फसलंे काटते हैं । 
  • मेगास्थनीज ने इस बात को अनेक बार दुहराया है कि शत्रु अपनी भूमि पर काम करने वालों को हानि नहीं पहुंचाता, क्योंकि किसान लोग सर्वसाधारण द्वारा हितकारी माने जाते हैं ।
  • राजकीय भूमि पर दासों, कर्मकारों और कैदियों द्वारा जुताई और बुआई होती थी। 
  • परंतु ऐसी भी राजकीय भूमि होती थी जिस पर सीताध्यक्ष द्वारा खेती नहीं कराई जाती थी। ऐसी भूमि पर करद कृषक खेती द्वारा खेती नहीं कराई जाती थी। ऐसी भूमि पर करद कृषक खेती करते थे। 
  • जो भूमि कृषियोग्य न हो, उसे यदि कोई खेतीयोग्य बना ले तो यह भूमि उससे वापस नहीं ली जाती थी। 
  • यूनानी लेखकों के अनुसार सारी भूमि राजा की होती थी। वे राजा के लिए खेती करते थे और 1/4 भाग राजा को लगान के रूप में देते थे। 
  • कौटिल्य के अनुसार यदि वे अपना बीज, बैल और औजार लाएं तो उपज के 1/2 भाग के अधिकारी थे। यदि कृषि-उपकरण राज्य द्वारा दिए जाएं तो वे 1/4 या 1/3 अंश के भागी थे। 
  • इस राजकीय भूमि के अतिरिक्त ऐसी भूमि भी थी, जो गृहपतियों तथा अन्य कृषकों की निजी भूमि होती थी, जिस पर वे खेती करते थे और उपज का छठा या कभी-कभी चैथा भाग कर के रूप में राजा को देते थे। 
  • व्यक्ति को भूमि के क्रय तथा विक्रय का अधिकार था।
  • राज्य की ओर से सिंचाई का समुचित प्रबंध था। इसे ‘सेतुबंध’ कहा गया है। 
  • मौर्यों के समय सौराष्ट्र में सुदर्शन झील के बांध का निर्माण इस सेतुबंध का एक उदाहरण है। 
  • सिंचाई के लिए अलग कर देना पड़ता था जिसकी दर उपज का 1/5 से 1/3 भाग तक थी। 
  • मेगास्थनीज ने लिखा है कि भारत में दुर्भिक्ष नहीं पड़ते। किंतु कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अ/ययन से स्पष्ट है कि दुर्भिक्ष पड़ते थे और दुर्भिक्ष के समय राज्य द्वारा जनता की भलाई के लिए उपाय किए जाते थे। 
  • जैन अनुश्रुति के अनुसार मगध में 12 साल का एक दुर्भिक्ष पड़ा था। 
  • सोहगौरा और महास्थान अभिलेख में दुर्भिक्ष के अवसर पर राज्य द्वारा राज्य कोष्ठागार से अनाज वितरण का विवरण है।
  • वन दो प्रकार के होते थे - हस्तिवन और द्रव्यवन। हस्थिवन वे थे जहां हाथी रहते थे। द्रव्यवन वे थे जहां से अनेक प्रकार की लकड़ी तथा लोहा, तांबा इत्यादि धातुएं प्राप्त होती थीं। 
  • जंगलों पर राज्य का अधिकार था। इन वनों की उपज से कारखानों में बनी वस्तुएं पण्या/यक्ष के नियंत्रण में बाजारों में बेची जाती थी।

शिल्प

  • मौर्यों के शासनकाल में राजनीतिक एकता और शक्तिशाली केन्द्रीय शासन के नियंत्रण से शिल्पों को प्रोत्साहन मिला। शिल्पों ने छोटे-छोटे उद्योगों का रूप धारण कर लिया। 
  • मेगास्थनीज ने शिल्पियों को चैथी जाति माना है। उसके अनुसार उनमें से कुछ राज्य को कर देते थे और नियत सेवाएं भी करते थे। 
  • बहुत सारे वस्तुओं का निर्माण राज्य द्वारा संचालित कारखानों में होता था। वस्त्र उद्योग भी राज्य द्वारा संचालित होता था। 
  • मेगास्थनीज ने जहाज बनाने वालों, कवतथा आयुधों का निर्माण करने वालों और खेती के लिए अनेक प्रकार के औजार बनाने वालों का उल्लेख किया है। 
  • मौर्य युग का प्रधान उद्योग सूत कातने और बुनने का था।
  • अर्थशास्त्र से पता चलता है कि काशी, बंग, पुण्ड्र, कलिंग, मालवा सूती वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध थे। 
  • काशी और पुण्ड्र में रेशमी कपड़े भी बनते थे। 
  • प्राचीन काल से बंग का मलमल विश्वविख्यात था। 
  • चीनपट्ट का उल्लेख कौटिल्य ने किया है जिससे पता चलता है कि रेशम चीन से आता था। 
  • मेगास्थनीज ने भारत में अनेक प्रकार के धातुओं की खानों का जिक्र किया है, जैसे - सोना, चांदी, तांबा, लोहा आदि। 
  • मणि-मुक्ताओं का उपयोग समृद्ध परिवारों में होता था। 
  • नियार्कस ने लिखा है कि भारतीय श्वेत रंग के जूते पहनते हैं जो अति सुंदर होते हैं ।
  •  एरियन ने समृद्ध परिवारों द्वारा हाथीदांत के कर्णाभूषण का इस्तेमाल किए जाने का उल्लेख किया है। 
  • यद्यपि कौटिल्य ने कुम्भकार की श्रेणियों का उल्लेख नहीं किया है, फिर भी हमें मालूम है कि मिट्टी के बर्तन साधारण लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में उपयोग में लाए जाते थे। 
  • मौर्यकाल के काली ओपदार मिट्टी के बर्तन मिले हैं जो पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ऊँचे वर्ग के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाते थे।
  • पत्थर तराशने का व्यवसाय भी विकसित अवस्था में रहा होगा। अशोक के समय में एक ही पत्थर के बने हुए स्तम्भ इसका ज्वलंत प्रमाण है। 
  • पत्थर पर पाॅलिश का काम अपने चरमोत्कर्ष पर था। सारनाथ सिंह स्तम्भ तथा बराबर गुफाओं की चमक अद्वितीय है।

व्यापार

  • मेगास्थनीज के विवरण से स्पष्ट है कि मार्ग निर्माण के लिए एक विशेष अधिकारी था, जो एग्रोनोमोई (Agronomoi) कहलाता था। ये सड़कों की देखरेख करते थे और 10 स्टेडिया (दूरी मापने की इकाई) की दूरी पर एक स्तम्भ खड़ा कर देते थे। 
  • साम्राज्य के राजमार्गों में उत्तर-पश्चिम को पाटलिपुत्र से मिलाने वाला राजमार्ग था। मेगास्थनीज के अनुसार इसकी लम्बाई 1300 मील थी। पाटलिपुत्र के आगे यह मार्ग ताम्रलिप्ति (तामलूक) तक जाता था। 
  • कौटिल्य ने हिमालय की ओर जाने वाले मार्ग की अपेक्षा दक्षिण-मार्ग को अधिक लाभप्रद बताया है, क्योंकि दक्षिण-मार्ग से बहुमूल्य व्यापार की वस्तुएं आती थीं। 
  • दक्षिण के लिए एक पुराना मार्ग श्रावस्ती से गोदावरी के तटवर्ती नगर प्रतिष्ठान तक जाता था। इसी मार्ग को संभवतः उत्तरी मैसूर तक आगे बढ़ाया गया। 
  • उत्तर की ओर एक पुराना मार्ग चंपा से बनारस तक और वहां से यमुना के किनारे-किनारे कौशांबी तक जाता था। उसके बाद स्थल मार्ग से कौशांबी से सिंधु-सौबीर तक व्यापार-मार्ग जाता था। 
  • एक तीसरा मार्ग श्रावस्ती से राजगृह तक था।
  • पश्चिमी तट पर भी समुद्री मार्ग भड़ौऔर काठियावाड़ होकर लंका तक जाता था। पश्चिमी तट पर सोपारा भी महत्वपूर्ण बंदरगाह था। 
  • पूर्व में जहाज बंगाल के ताम्रलिप्ति  बंदरगाह से पूर्वी तट के अनेक बंदरगाहों से होते हुए श्रीलंका जाते थे। 
  • कौटिल्य ने स्थलमार्गीय व्यापार की अपेक्षा नदी मार्गों से व्यापार को अधिक सुरक्षित माना है।
  • यदि मार्ग में व्यापारियों का नुकसान हो जाए तो राज्य क्षतिपूर्ति करता था। इसके बदले व्यापारियों से अनेक शुल्क लिए जाते थे।
  • यूनानी शासकों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध की वजह से पश्चिम एशिया और मिस्र के साथ भारत के व्यापार के लिए अनुकूल वातावरण था। एक मुख्य स्थल-मार्ग तक्षशिला से काबुल, बैक्ट्रिया और वहां से पश्चिम की ओर जाता था। 
  • समुद्री मार्ग भारत के पश्चिमी समुद्रतट से फारस की खाड़ी होते हुए अदन तक जाता था। 
  • भारत से मिस्र को हाथीदांत, कछुए, सीपियां, मोती, रंग, नील और बहुमूल्य लकड़ी निर्यात होती थी।
The document मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
399 videos|680 docs|372 tests

FAQs on मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. मौर्यकाल में आर्थिक व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर: मौर्यकाल में आर्थिक व्यवस्था बहुत मजबूत थी। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने एक समृद्ध राज्य बनाया था जिसमें तटबंदी और व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए कई नीतियों को लागू किया गया था। सम्राट अशोक ने भी इस व्यवस्था को आगे बढ़ाया था। उन्होंने व्यापार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय अपनाए थे।
2. मौर्य साम्राज्य के अंत में आर्थिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य के अंत में आर्थिक स्थिति धीमी हो गई थी। इसके पीछे कई कारण थे, जैसे भ्रष्टाचार और विभिन्न वंशों के आक्रमण। साथ ही, व्यापार और उद्यमिता को बढ़ावा नहीं मिला था और धन की गरिमा को बरकरार रखने में समर्थ नहीं रहे थे।
3. मौर्य साम्राज्य में व्यापार किस तरह से किया जाता था?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य में व्यापार मुख्य रूप से दो तरीकों से किया जाता था - दूरसंचार द्वारा और मुद्रा द्वारा। दूरसंचार द्वारा वस्तुएं और उपयोग की चीजें अन्य क्षेत्रों में बेची जाती थीं, जबकि मुद्रा द्वारा वस्तुएं खरीदी जाती थीं। मुद्रा विनिमय में चांदी और सोने के सिक्के उपयोग किए जाते थे।
4. मौर्य साम्राज्य में उद्यमिता को कैसे प्रोत्साहित किया जाता था?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य में उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए, सम्राट अशोक ने कई उपाय अपनाए थे। उन्होंने बाजारों के निर्माण को प्रोत्साहित किया था, जिससे लोग अपने उत्पादों को बेच सकते थे। उन्होंने उद्यमिता को संचालित करने के लिए यात्री बाजारों को प्रोत्साहित किया था। इसके अलावा, उन्होंने निवेश को प्रोत्साहित किया था जो उद्यमियों को अपने व्यवसाय में निवेश करने के लिए प्रेरित करता था।
5. मौर्य साम्राज्य के निवेश क्षेत्र कौन-कौन से थे?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य के निवेश क्षेत्र प्रमुख रूप से वाणिज्य, खनिज और कृषि से संबंधित थे। साम्राज्य के व्यापारिक केंद्र नगरों में थे जो अपने उत्पादों को अन्य क्षेत्रों में बेचते थे। खनिज संपदा के साथ-साथ, वस्तुओं के उत्पादन और वितरण के लिए कृषि भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था। इसके अलावा, साम्राज्य में वस्तुओं के निर्माण और बाँटने के लिए कुशल शिल्पकार भी थे।
Related Searches

mock tests for examination

,

shortcuts and tricks

,

Important questions

,

practice quizzes

,

Extra Questions

,

इतिहास

,

ppt

,

इतिहास

,

इतिहास

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था - मौर्य साम्राज्य

,

मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था - मौर्य साम्राज्य

,

pdf

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

MCQs

,

Free

,

Semester Notes

,

video lectures

,

मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था - मौर्य साम्राज्य

,

Previous Year Questions with Solutions

,

यूपीएससी

,

past year papers

,

Exam

,

Summary

,

यूपीएससी

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

study material

,

Sample Paper

,

यूपीएससी

,

Objective type Questions

,

Viva Questions

;