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मौर्यकालीन कला - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

मौर्यकालीन कला

  • इस युग में कला के दो रूप मिलते हैं । एक तो राजलक्षकों द्वारा निर्मित कला, जो मौर्य प्रासाद और अशोक स्तम्भों में पाई जाती है। दूसरा वह रूप जो परखम के यक्ष, दीदारगंज की चामर ग्राहिणी और बेसनगर की यक्षिणी में देखने को मिलता है और इसे ‘लोककला’ कहा जा सकता है। 
  • राजकीय कला का सबसे पहला उदाहरण चंद्रगुप्त का प्रासाद है, जिसका विशद वर्णन एरियन ने किया है। यह प्रासाद संभवतः पटना के निकट कुम्हरार गांव के समीप था। 
  • कुम्हरार की खुदाई में प्रासाद के सभा-भवन के जो अवशेष प्राप्त हुए हैं , उससे प्रासाद की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह सभा-भवन खंभों वाला हाल था। इसका फर्श और छत लकड़ी के थे। भवन की लंबाई 140 फुट और चैड़ाई 120 फुट है। भवन के स्तम्भ बलुआ पत्थर के बने हुए थे और उनमें चमकदार पाॅलिश की गई थी।
  • फाह्यान के अनुसार, ”यह प्रासाद मानव कृति नहीं है वरन् देवों द्वारा निर्मित है“। 
  • मेगास्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र सोन और गंगा नदियों के संगम पर बसा हुआ था। नगर के चारों ओर लकड़ी की दीवार बनी हुई थी जिसके बीच-बीमें तीर चलाने के लिए छेद बने हुए थे। दीवार के चारों ओर एक खाई थी जो 60 फुट गहरी और 600 फुट चैड़ी थी।
  • मौर्यकाल के सर्वोत्कृष्ट नमूने अशोक के एकाश्म (monolithic) स्तम्भ हैं जो उसने धम्म प्रचार के लिए देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए थे। इनकी संख्या 20 है और ये चुनार (बनारस के निकट) के बलुआ पत्थर के बने हुए हैं । 
  • अशोक के एकाश्म स्तम्भों का सर्वोत्कृष्ट नमूना सारनाथ के सिंह-स्तम्भ का शीर्षक है। शिल्पी ने सिंहों के रूप को बड़े ही स्वाभाविक ढंग से प्रकट किया है। 
  • सारनाथ स्तम्भ की चमकीली पाॅलिश, घंटाकृति तथा शीर्ष भाग में पशु आकृति के कारण पाश्चात्य विद्वानों ने यह मत प्रकट किया है कि इस कला की प्रेरणा अखमीनी ईरान से मिली थी। 
  •  चैकी पर हंसों की उकेरी हुई आकृतियों और अन्य सज्जाओं में भी यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। 
  • 1947 में भारत जब स्वतंत्र हुआ तो चार सिंहों वाले सारनाथ स्तम्भ को भारत के राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाने का निर्णय लिया गया।
  • बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने 8400 स्तूप बनवाए। सांची तथा भरहुत के स्तूपों का निर्माण मूल रूप से अशोक ने ही करवाया था। शुंगों के समय में सांची स्तूप का विस्तार हुआ।
  • गया के निकट बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12वें वर्ष में सुदामा गुफा आजीविक भिक्षुओं को दान में दी। इस गुफा में दो कोष्ठ हैं। 
  • अशोक के पौत्र दशरथ ने नागार्जुनी पहाड़ियों में आजीविकों को 3 गुफाएं प्रदान कीं। इनमें से एक गुफा गोपी गुुफा है। इसका विन्यास सुरंग जैसा है।
  • मौर्य काल में प्राकृत जनसाधारण की भाषा के रूप में विकसित हो चुका था, हालांकि विद्वानों के बीसंस्कृत लोकप्रिय था। 
  • मध्य प्रदेश के पूर्व में तथा छोटानागपुर पहाड़ियों में मुंडा और द्रविड़ भाषाएं बोली जाती थीं। 
  • अशोक द्वारा प्राकृत के व्यापक प्रयोग से इसके प्रसार को काफी बल मिला। 
  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र, भद्रबाहु का कल्पसूत्र तथा बौद्ध साहित्य कथावत्थु का विकास मौर्यकाल में ही हुआ। 
  • पतंजलि का महाभाष्य इस काल की महत्वपूर्ण व्याकरणिक और साहित्यिक कृति है। 
  • कात्यायन उर्फ वररूचि एक बहुमुखी और महान विद्वान था।
  • तक्षशिला और बनारस के विश्वविद्यालय ब्राह्मण और बौद्ध ग्रंथों की शिक्षा के लिए विश्व प्रसिद्ध थे। विश्व के विभिन्न भागों से विद्यार्थी यहां आते थे और शिक्षा ग्रहण करते थे। इनमें दाखिला प्रतियोगिता के आधार पर होता था। इन विश्वविद्यालयों में कई विभाग थे। 
  • बनारस विशेष रूप से संस्कृत और ब्राह्मण विद्या के लिए विख्यात था।
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FAQs on मौर्यकालीन कला - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. मौर्य साम्राज्य कब और कैसे स्थापित हुआ?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था। यह साम्राज्य मगध राज्य के बाद की स्थापित साम्राज्यों में से एक था।
2. मौर्यकालीन कला की विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर: मौर्यकालीन कला की विशेषताएं इमारती और स्मारकों की विस्तारपूर्ण निर्माण क्षमता, स्थापत्य कला में उन्नति, सुंदर शिल्पकारी, ब्रोंज़ स्तम्भों का उपयोग, और चित्रकारी और स्वर्णकारी का महत्वाकांक्षी उपयोग शामिल थी।
3. मौर्यकालीन कला के प्रमुख प्रतीक कौन-कौन से थे?
उत्तर: मौर्यकालीन कला के प्रमुख प्रतीकों में स्तम्भ, स्तूप, गुम्बद, प्रवेशद्वार, तोरणार्च, एवं चित्रकारी और स्वर्णकारी के द्वारा दर्शाये गए अभिप्रेत जीव, तांत्रिक, पौराणिक और इतिहासी विषयों के चित्र शामिल थे।
4. मौर्य साम्राज्य के कलाकृतियों में स्वर्णकारी की क्या महत्वता थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य के कलाकृतियों में स्वर्णकारी की अत्यंत महत्वता थी। स्वर्णकारी के द्वारा निर्मित आभूषण, मूर्तियाँ, और अन्य कलाकृतियाँ साम्राज्य की सामरिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति का प्रतीक थीं।
5. मौर्य साम्राज्य में शिल्पकारी की क्या महत्वता थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य में शिल्पकारी की महत्वता विशेष थी। शिल्पकारों ने उच्चतम स्तर की शिल्पाकृतियों का निर्माण किया और इससे साम्राज्य की संप्रभुता, शक्ति और संस्कृति को प्रदर्शित किया। ये कलाकार समाज में आदर्शों का प्रतीक थे और उनकी कला को सभ्यता और आदर्शों के साथ जोड़ते थे।
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