UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

पुष्यभूति वंश

  • संभवतः छठी शताब्दी के प्रारम्भ में थानेश्वर में इस वंश की स्थापना हुई। इस वंश के प्रथम महत्वपूर्ण शासक प्रभाकरवर्धन थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र राज्यवर्धन उत्तराधिकारी बने।
  • 606 ई. में मालवा के शासक देवगुप्त और बंगाल के शासक शशांक ने मिलकर कन्नौज के मौखरी शासक गृहवर्मन, जो राज्यवर्धन की बहन राज्यश्री के पति थे, की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बना लिया।
  • देवगुप्त को पराजित करने में तो उन्हें सफलता मिली लेकिन शशांक ने गुप्त रूप से उनकी हत्या कर दी।

हर्षवर्धन

  • अपने बड़े भाई की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन थानेश्वर का शासक बना। अपने शासक बनने के उपलक्ष्य में उसने हर्ष संवत् की शुरुआत की।
  • हर्षवर्धन ने अपनी बहन राज्यश्री को कन्नौज की सत्ता वापस दिलाई लेकिन कन्नौज की भी वास्तविक सत्ता हर्षवर्धन के हाथ में ही रही।
  • वह अपनी राजधानी भी थानेश्वर से कन्नौज ले आया।
  • ह्नेनत्सांग के अनुसार उसने उत्तरी भारत के पांदेशों को अपने अधीन कर लिया। ये पांप्रदेश संभवतः पंजाब, कन्नौज, गौड़ या बंगाल, मिथिला और उड़ीसा के राज्य थे।
  • परंतु जब उसने दक्कन के राज्यों पर चढ़ाई करनी चाही तो उसे पुलकेशिन द्वितीय के सम्मुख सफलता नहीं मिली। पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य वंश का राजा था और उसकी राजधानी उत्तरी कर्नाटक में वातापी या बादामी में थी।
  • हर्ष का राज्य भी लगभग गुप्तों की तरह था। उसने भी जिन राजाओं पर विजय प्राप्त की थी, वे उसे राज-कर देते थे और जब वह युद्ध करता तो उसकी मदद के लिए सैनिक भेजते थे।
  • उन्होंने हर्ष का आधिपत्य तो स्वीकार कर लिया था, परंतु वे अपने-अपने राज्यों के शासक बने रहे और स्थानीय मामलों में स्वयं ही निर्णय लेते थे।
  • 641 ई. उसने चीन के राजा ताई त्सुंग के पास एक राजदूत भेजा। तदन्तर तीन चीनी मिशन उसके दरबार में आए।
  • प्रसिद्ध चीनी बौद्ध यात्री ह्नेन त्सांग ने हर्षवर्धन के शासल काल में भारत की यात्रा की। वह 26 साल की उम्र में 629 ई. में चीन से रवाना हुआ और लगभग फाह्यान के मार्गों का अनुसरण करते हुए मध्य एशिया को पार करके भारत पहुंचा। भारत में अनेक साल तक भ्रमण और अध्ययन करने के बाद वह उसी मार्ग से 645 ई. में चीन लौट गया।
  • उसने लिखा है कि हर्ष महायान बौद्ध धर्म का अनुयायी था और अन्य धर्मों का आदर नहीं करता था। परंतु अन्य स्रोतों से पता चलता है कि हर्ष ने बुद्ध की प्रतिमा के साथ-साथ सूर्य और शिव की प्रतिमा का भी पूजन किया था। प्रारम्भ में तो वह शैव धर्म का उपासक था और उसके पूर्वज सूर्य की पूजा करते थे। अपने जीवन के अंतिम सालों में वह बौद्ध धर्म की ओर झुक गया।
  • साहित्य और अध्ययन में हर्ष की काफी रुचि थी। बौद्ध शिक्षा के प्रमुख केन्द्र नालन्दा को उसने भरपूर दान दिया। उसने विद्वानांे को संरक्षण दिया तथा खुद भी महान कवि था। हर्षचरित और कादम्बरी के प्रख्यात लेखक वाणभट्ट हर्ष के दरबारी कवि थे।
  • उसने खुद भी तीन पुस्तकें लिखीं प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानंद।
  • 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद कुछ समय तक उत्तर भारत में अस्थिरता बनी रही।

सामाजिक दशा

  • ह्नेनत्सांग ने लिखा है कि भारत में जाति-प्रथा थी और नगरों के बाहर रहने वाले अछूतों के साथ बुरा सलूक किया जाता था।
  • सभी लोग शाकाहारी नहीं थे, हालांकि इस बात पर जोर दिया जाता था कि लोग मांस न खाएं।
  • नगरों में अमीरों और गरीबों के मकानों में अंतर था। अमीरों के मकान खूबसूरती से बनाए और सजाए जाते थे, जबकि गरीबों के घर सादे, सफेदी पुते हुए और कच्चे फर्श के होते थे।
  • अलग-अलग स्थानों के लोगों का पहनावा अलग-अलग था।
  • ह्नेनत्सांग लिखता है कि भारत के लोग गर्म मिजाज के हैं, उन्हेंüजल्दी गुस्सा आता है, परंतु ईमानदार होते हैं। भारतीय लोग स्वच्छता-प्रेमी होते हैं। अपराधियों की संख्या बड़ी नहीं थी, लेकिन वह बार-बार लिखता है कि यात्रा के दौरान लोगों ने उसे लूट लिया।
  • मृत्युदंड नहीं दिया जाता था। आजीवन कारावास ही सबसे कठोर दंड था।

कृषिक व्यवस्था

  • इस काल में कृषिक व्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वेतनों का भुगतान कभी-कभी नकद न होकर भूमि-अनुदान के रूप में होता था, जिसका प्रमाण इस काल से उपलब्ध होने वाले पाषाण और धातु पर अंकित भूमिदान-अभिलेखों की संख्या में भी मिलता है और ह्नेनत्सांग ने भी अपने भारत के विवरण में इस पद्धति का स्पष्ट उल्लेख किया है।
  • नकद वेतन केवल सैनिक सेवाओं के लिए दिया जाता था।
  • भूमि अनुदान दो प्रकार के थे। एक प्रकार का अनुदान अग्रहार था, जो केवल ब्राह्मणों को मिलता था और कर-मुक्त होता था। इस अनुदान की भूमि यद्यपि ग्रहीता के परिवार की वंशानुगत संपत्ति हो जाती थी, किंतु राजा को ग्रहीता के आचरण से अप्रसन्न होकर भूमि जब्त कर लेने का अधिकार था।
  • दूसरे प्रकार का भूमि-अनुदान वह था, जो धर्म-निरपेक्ष अधिकारियों को या तो उनके वेतन के बदले में या उनकी सेवाओं के लिए पुरस्कार स्वरूप दिया जाता था। प्रारंभ में अग्रहार की अपेक्षा यह अनुदान कम दिया जाता था, परंतु बाद की शताब्दियों में यह सामान्य हो गया।
  • एक ऐसे काल में जबकि भूमि-अनुदान राजा के विशेष अनुग्रह का प्रतीक होता था, अग्रहार ने ब्राह्मणों की विशेषाधिकृत स्थिति को निश्चय ही और अधिक महत्व प्रदान किया होगा।
  • यद्यपि भूमि-अनुदान की प्रथा इस काल में उतनी प्रचलित नहीं थी, जितनी आगे चलकर हुई, फिर भी इस प्रथा ने राजा की शक्ति को क्षीण कर दिया। इन अनुदानों ने ग्रहीताओं को केन्द्रीय सत्ता के नियंत्रण से एकदम मुक्त कर दिया।
  • एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि ये ग्रहीता अक्सर सरकारी अधिकारी होते थे। तकनीकी दृष्टि से भले ही राजा अनुदान को समाप्त कर सकता था, किन्तु बहुधा वह ऐसा करता नहीं था, क्योंकि असंतुष्ट ब्राह्मण अधिकारी उसका राजनीतिक विरोध करने में सक्षम थे।
  • भूमि तीन प्रकार की थी: परती, जो राज्य के अधिकार में होती थी और सामान्यता वेतन के रूप में दी जाती थी; राज्य द्वारा अधिकृत भूमि जिसे दान में दिया जा सकता था, लेकिन ऐसा शायद बहुत कम किया गया, क्योंकि वह पहले से ही जोत की भूमि थी और उससे राज्य को आय होती थी; और तीसरे प्रकार की भूमि निजी स्वामित्व में थी।
  • जब भूमि वेतन के रूप में दी जाती थी, तो ग्रहीता को इस भूमि पर पूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं होता था। उदाहरण के लिए, वह वर्तमान काश्तकारों को बेदखल नहीं कर सकता था। भूमि के स्वामी को अधिक-से-अधिक एक-तिहाई अथवा आधी उपज लेने का अधिकार था।
  • भूमि की प्रकृति के अनुसार भूमि का मूल्य भी अलग-अलग होता था जोत की भूमि का मूल्य परती भूमि के मूल्य से तैंतीस प्रतिशत अधिक होता था।
  • इस समय जो फसलें तैयार की जाती थीं वे शायद कई शताब्दियों तक अपरिवर्तित बनी रहीं।
  • ह्नेनत्सांग के अनुसार, पश्चिमोत्तर में ईंख और गेहूँ पैदा किया जाता था, और मगध तथा उसके और पूर्व में चावल। वह अनेक प्रकार के फलों और वनस्पतियों का भी वर्णन करता है।
  • सिंचाई के लिए घटी यंत्र (रहंट) का उपयोग गांवों में खूब होता था। मौर्यों द्वारा निर्मित सुदर्शन झील की, जिसका रुद्रदमन द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया था, गुप्तकाल में पुनः मरम्मत कराई गई और उसे काम में लाया जाने लगा।

संरक्षक एवं उनके दरबारी कवि

समुद्रगुप्त: हरिषेण (प्रयाग प्रशस्ति)

चन्द्रगुप्त II : कालिदास, अमरसिंह, शूद्रक, आर्यभट्ट, धनवंतरि, ब्रह्मगुप्त आदि

हर्षवर्धन: बाणभट्ट, भर्तृहरि

यशोवर्मन: भवभूति

सिंहविष्णु: भारवि

नरसिंहवर्मन (पल्लव) : दानदीन

अमोघवर्ष (राष्ट्रकूट): महावीराचार्य

चोल राजा: कम्ब

पुलकेशिन II : रविकीर्ति

महिपाल: राजशेखर

  

  • भू-राजस्व अनेक प्रकार के करों से प्राप्त होता था, जो भूमि पर तथा उपज की अलग-अलग श्रेणियों पर उत्पादन के कई स्तरों पर लगाए जाते थे।
  • साम्राज्यिक प्रदर्शन का निर्वाह आर्थिक दृष्टि से एक निष्प्रयोजन व्यय था, जिसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़े बिना न रहा होगा।
  • हर्ष के संबंध में यह उल्लेख मिलता है कि वह राष्ट्रीय आय को चार भागों में विभाजित करता था, जिसमें से एक भाग सरकारी व्यय के लिए, दूसरा सार्वजनिक सेवाओं के वेतन के लिए, तीसरा बुद्धिजीवियों को पुरस्कारस्वरूप देने के लिए तथा चैथा दान के लिए होता था।
  • राजस्व मुख्यतया भूमि से प्राप्त होता था, क्योंकि व्यापार-वाणिज्य से अब उतनी आय नहीं होती थी, जितनी पहले हुआ करती थी।
  • रोम का व्यापार, जिससे प्रभूत संपत्ति प्राप्त होती थी, ईसा की तीसरी शताब्दी के पश्चात् घटने लगा था तथा रोमन साम्राज्य पर हूणों के आक्रमण के साथ इसका अंत हो गया।
  • आठवीं शताब्दी से दक्कन के कुछ राजाओं ने प्रशासकीय विभाजन की दशमलव प्रणाली को अपना लिया था, जिसमें दस ग्राम या दस के गुणक ग्रामों के समूह को एक जिला मान लिया जाता था।
  • प्रचलित पट्टों के अनुसार ग्राम तीन श्रेणियों के होते थे।
  • ऐसे ग्राम सबसे ज्यादा होते थे जिनमें अंतर्जातीय आबादी होती थी और वह भू-राजस्व के रूप में राजा को कर देती थी।
  • इससे कम संख्या में ऐसे ग्राम होते थे, जो ब्रह्मदेय कहलाते थे और इनमें पूरा ग्राम या ग्राम की भूमि किसी एक ब्राह्मण या ब्राह्मण-समूह को दान में दी गई होती थी।
  • ब्रह्मदेय से संबंधित अग्रहार अनुदान होता था जिसमें संपूर्ण ग्राम ब्राह्मण बस्ती होता था और भूमि अनुदान में दी गई होती थी  ये भी कर-मुक्त होते थे।
  • सबसे अंतिम देवदान ग्राम थे, जो लगभग उसी प्रकार कार्य करते थे जैसे कि प्रथम श्रेणी के ग्राम। अंतर केवल इतना था कि इन ग्रामों का राजस्व किसी मंदिर को दान कर दिया जाता था और परिणामतः राज्य के अधिकारियों द्वारा नहीं बल्कि मंदिर के अधिकारियों द्वारा वसूल किया जाता था।
  • एक विशेष प्रकार की भूमि एरीपत्ती अथवा जलाशय की भूमि केवल दक्षिण में ही होती थी। यह व्यक्तिगत लोगों द्वारा दान में दी गई होती थी, जिसका राजस्व ग्राम के जलाशय के रख-रखाव में इस्तेमाल होता था।
  • ईंट या पत्थर से बने जलाशय का निर्माण ग्राम के सहकारी प्रयत्नों से किया जाता था और सभी कृषक इसके पानी का उपयोग करते थे।
  • भूमि की पट्टेदारी और कराधान के विषय में सूचना अनुदान-पत्रों में दिए गए विस्तृत अभिलेखों से मिलती है जो मुख्यतः ताम्रपत्रों पर उपलबध हैं।
  • ग्राम में लगाए जाने वाले कर दो प्रकार के होते थे पहला, किसान द्वारा राज्य को दिया जाने वाला भू-राजस्व और दूसरा, स्थानीय कर।
  • भू-राजस्व भूमि की पैदावार के छठे से दसवें भाग तक होता था और ग्राम इसकी वसूली करके इसे राज्य के समाहर्ता के पास जमा करा देता था।
  • स्थानीय कर की वसूली भी ग्राम द्वारा ही की जाती थी किंतु इसका उपयोग स्वयं ग्राम की सेवाओं के लिए होता था, जिसमें सिंचाई के साधनों की मरम्मत, मंदिरों की सजावट आदि शामिल थे।
The document पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|676 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था क्या है?
उत्तर: पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था गुप्तोत्तर काल में भारतीय कृषि प्रणाली की एक प्राथमिक रूप थी। यह वंश प्रणाली ब्राह्मणों द्वारा निर्मित किसानों को एक निश्चित भूमि पर कृषि करने की अनुमति देती थी। इस प्रणाली में, भूमि का मालिकाना अधिकार भोगवान वंश के सदस्यों के पास था, जो मौके पर खेती करने की अनुमति देते थे।
2. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था किस प्रकार कार्य करती थी?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था मुख्य रूप से पुष्यभूति वंश द्वारा निर्मित ग्रामों में कार्य करती थी। इसमें, भूमि का मालिकाना अधिकार वंश के सदस्यों के पास होता था, जो खेती करने की अनुमति देते थे। वे किसानों को भूमि का उपयोग करने की अनुमति देते थे और उन्हें प्रतिष्ठित मूल्यों पर उपज का हिस्सा देते थे।
3. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार थीं: - यह एक संगठित और स्थायी प्रणाली थी, जिसमें ग्रामों के निवासी किसान भूमि का उपयोग कर सकते थे। - भूमि का मालिकाना अधिकार वंश के सदस्यों के पास होता था, जो उपज का हिस्सा ले सकते थे और किसानों को उचित मूल्य पर उपज का हिस्सा देते थे। - इस प्रणाली में, भूमि का मालिकाना अधिकार किसानों की उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए था, जो स्थानीय खाद्य सुरक्षा में मदद करता था।
4. गुप्तोत्तर काल में पुष्यभूति वंश का क्या महत्व था?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में पुष्यभूति वंश का महत्व विशेष था। इस वंश ने कृषिक व्यवस्था की स्थापना की और ग्रामों को व्यवस्थित और स्थायी कृषि करने की अनुमति दी। इसके बिना, भारतीय कृषि समुदाय को खेती करने के लिए निश्चित भूमि की आवश्यकता थी, जो पुष्यभूति वंश ने प्रदान की।
5. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था का इतिहास क्या है?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था एक प्राथमिक रूप थी और पुष्यभूति वंश द्वारा स्थापित की गई। यह वंश ब्राह्मणों द्वारा निर्मित किसानों को स्थायी भूमि पर खेती करने की अनुमति देता था। इसके बावजूद, इस व्यवस्था का उदय और अस्तित्व कुछ समय के बाद ही देखा गया है, जब इसका महत्वपूर्ण प्रभाव दिखाई देने लगा।
398 videos|676 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Important questions

,

इतिहास

,

Extra Questions

,

इतिहास

,

Objective type Questions

,

video lectures

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

practice quizzes

,

पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था

,

MCQs

,

Semester Notes

,

study material

,

यूपीएससी

,

Summary

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

यूपीएससी

,

पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था

,

Previous Year Questions with Solutions

,

पुष्यभूति वंश और कृषिक व्यवस्था - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था

,

shortcuts and tricks

,

pdf

,

mock tests for examination

,

past year papers

,

यूपीएससी

,

ppt

,

Exam

,

Sample Paper

,

Viva Questions

,

Free

,

इतिहास

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

;