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दक्कन के राष्ट्रकूट - राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति (800 - 1200 ई.), इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

दक्कन के राष्ट्रकूट

  • भारतीय इतिहास के मध्यकाल में देश के उत्तरी और दक्षिणी भाग अधिक निकट संपर्क में आ गए। 
  • विन्ध्याचल पर्वत ने अब इस संपर्क में बाधा डालने का काम नहीं किया। 
  • यह कथन विशेष रूप से तीन कारणों से स्पष्ट हो जाता है। पहला यह कि दक्कन क्षेत्र के राज्यों ने अपने अधिकार क्षेत्र को गंगा नदी की घाटी तक फैलाने का प्रयास किया। 
  • दूसरा यह कि दक्षिण भारत के धार्मिक आंदोलन उत्तर भारत में भी लोकप्रिय बन गए और तीसरा यह कि उत्तर भारत के बहुत से ब्राह्मण दक्षिण भारत में बस जाने के लिए आमंत्रित किए गए और उनको भूमि प्रदान की गई।

राजनीतिक स्थिति

  • सन् 750 और 1000 ई. के बीच उत्तर भारत और दक्कन में तीन शक्तिशाली साम्राज्यों का अभ्युदय हुआ। 
  • नौवीं शताब्दी के मध्य तक पूर्वी और उत्तरी भारत में पाल साम्राज्य तथा दसवीं शताब्दी के मध्य तक पश्चिमी भारत एवं ऊपरी गंगाघाटी में प्रतिहार साम्राज्य अत्यंत प्रभावशाली रहे।
  • दक्कन में राष्ट्रकूटों का प्रभाव बहुत व्यापक था और अनेक बार उन्होंने उत्तरी और दक्षिणी भारत के क्षेत्रों पर भी नियंत्रण स्थापित किया। 
  • यद्यपि ये सभी साम्राज्य आपस में लड़ते रहते थे, फिर भी इन्होंने एक बड़े भू-भाग पर स्थायी जीवन की परिस्थितियां कायम कीं और कला तथा साहित्य को संरक्षण प्रदान किया।
  • इन तीनों में से राष्ट्रकूट साम्राज्य सबसे अधिक समय तक कायम रहा। यह न केवल उस काल का सबसे अधिक शक्तिशाली साम्राज्य था बल्कि इसने आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सेतू का भी काम किया।
  • उत्तर भारत में कन्नौज नगर पर अधिकार करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी गईं। इस नगर की स्थिति ऐसी थी कि जो भी इस पर अधिकार कर लेता वह गंगा के मैदान एवं इसमें उपलब्ध व्यापारिक एवं कृषि संबंधित समृद्ध संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित कर सकता था। तीनों प्रमुख साम्राज्य इस संघर्ष में लगे हुए थे और उन्होंने बारी-बारी से इस पर अधिकार भी किया। आधुनिक इतिहासकारों ने इसे कन्नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष कहा है।

दक्कन के राष्ट्रकूट

  • अनेक प्राचीन भारतीय राजवंशों की भांति राष्ट्रकूटों की उत्पत्ति भी अस्पष्ट है। दक्षिणापथ के उत्तरी भाग में नासिक के आसपास के क्षेत्र पर राष्ट्रकूटों का शासन था।
  • राष्ट्रकूट सत्ता का संस्थापक दंतिदुर्ग था जिसने आठवीं सदी के मध्य में चालुक्य सम्राट कीर्तिवर्मन द्वितीय से उत्तरी महाराष्ट्र का समग्र क्षेत्र हड़प लिया। उसकी राजधानी मान्यखेत या मालखेद थी। 
  • उसके उत्तराधिकारी एवं चाचा कृष्ण प्रथम ने चालुक्यों से युद्ध करके लगभग 760 ई. में चालुक्य राज्य का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया।
  • कृष्ण प्रथम ने एलोरा का प्रसिद्ध शिव गुहा मंदिर निर्मित कराया। यह चालुक्यों के द्रविड़ शैली में निर्मित है। 
  • उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी गोविन्द द्वितीय एक निर्बल शासक सिद्ध हुआ। उसका अनुज ध्रुव निरूपमा ने उसे अपदस्थ कर दिया और गद्दी पर काबिज हो गया।
  • ध्रुव (780-793 ई.) से ही राष्ट्रकूट वंश की महत्ता का आरम्भ माना जा सकता है। कन्नौज पर आधिपत्य को लेकर उसने प्रतिहार वत्सराज को झांसी के निकट पराजित किया।
  • उसने गंगा-यमुना के दोआब पर पाल वंश के शासक धर्मपाल की सेना के पांव उखाड़ दिए। 
  • ध्रुव ने अपने पुत्र गोविन्द तृतीय के पक्ष में लगभग 793 ई. में सिंहासन छोड़ दिया।
  • गोविन्द तृतीय (793-814 ई.) ने कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में नागभट्ट द्वितीय को पराजित किया। 

गजनवी

  • भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना तुर्कों ने की और इस प्रक्रिया की शुरुआत गजनी के तुर्क शासकों ने। 
  • गजनी अफगानिस्तान का एक छोटा-सा राज्य था। एक तुर्क सरदार ने दसवीं शताब्दी में इस राज्य की स्थापना की थी। 
  • उसके उत्तराधिकारियों में एक महमूद था जिसने 988 ई. में गद्दी संभाली। उसे बगदाद के खलीफा से स्वतंत्र शासक के रूप में मान्यता प्राप्त थी।
  • धन प्राप्त करके अपनी विशाल सेना को सुसज्जित करने के लिए उसने भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई। स्वाभाविक रूप से उसका पहला निशाना उत्तर-पश्चिमी भारत का हिन्दूशाही वंश था।
  • उसका पहला आक्रमण 1000 ई. में आरम्भ हुआ जिसमें उसने कुछ सीमांत किलों पर कब्जा कर लिया। अगले ही वर्ष उसने पेशावर के निकट जयपाल को पराजित किया। 
  • पच्चीस वर्षों के थोड़े-से समय में महमूद ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किए। 
  • उसने पंजाब को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया। सन् 1010 और 1025 ई. के बीच महमूद ने उत्तर भारत के केवल उन नगरों पर आक्रमण किया जिनमें बहुत से मंदिर थे। उसने मंदिरों को नष्ट किया और उसका सोना तथा बहुमूल्य रत्न लूटकर ले गया। उसके आक्रमणों में से पश्चिम भारत के सोमनाथ के मंदिर के विनाश का सबसे अधिक उल्लेख किया जाता है। 
  • 1030 ई. में महमूद की मृत्यु हो गई और इससे उत्तर भारत के निवासियों को बड़ी राहत मिली। 
  • वह कवि और विद्वान भी था। यद्यपि भारत में महमूद ने विनाश करने का ही कार्य किया परंतु अपने देश में उसने एक बड़ी सुंदर मस्जिद और एक बड़ा पुस्तकालय बनवाया। 
  • उसने गजनी में एक विश्वविद्यालय की स्थापना भी की। 
  • शाहनामा नामक महाकाव्य का लेखक फिरदौसी उसी के संरक्षण में रहा। 
  • उसी ने मध्य एशिया के प्रसिद्ध विद्वान अलबेरूनी को भारत भेजा। 
  • इसके अतिरिक्त अंसारी और फार्रूखी जैसे विद्वान भी महमूद के दरबार में विद्यमान थे। 
  • महमूद और उसके वंशज यामिनी वंश के थे। बारहवीं शताब्दी के अंत में मुहम्मद गोरी ने इस वंश का तख्ता पलट दिया।
  • गोविन्द तृतीय का अल्पवयस्क उत्तराधिकारी अमोघवर्ष (814-878 ई.) कर्क के संरक्षण में शासक बना। 
  • ऐसा प्रतीत होता है कि अमोघवर्ष सैनिक अभियान की अपेक्षा धर्म और साहित्य में ज्यादा रुचि रखता था। 
  • वह महावीराचार्य तथा जिनसेन जैसे विद्वानों का आश्रयदाता था। 
  • खुद भी उसने कन्नड़ में ‘कविराज-मार्ग’ नामक ग्रंथ की रचना की। जैन धर्म के प्रति उसका झुकाव था। 
  • उसका पुत्र कृष्ण द्वितीय ने वेंगी के चालुक्य शासक भीम को एक दीर्घकालिक युद्ध के बाद हरा दिया। 
  • इसके बाद इन्द्र तृतीय (915-927 ई.) शासक हुआ। वह कुछ समय कन्नौज पर आधिपत्य स्थापित करने में सफल रहा। 
  • इस वंश का अंतिम महान राजा कृष्ण तृतीय (939-965 ई.) था। 
  • उसने तक्कोलम के युद्ध (949 ई.) में चोल सेना को पराजित किया तथा कांची और तंजौर पर अधिकार कर लिया। 
  • इसके पश्चात् वह रामेश्वरम तक गया और वहां उसने एक विजय स्तम्भ और देवालय की स्थापना की। उसके उत्तराधिकारी दुर्बल सिद्ध हुए। 
  • सन् 972 ई. में राष्ट्रकूटों की राजधानी मालखेद लूट ली गई और जला दी गई। इस प्रकार राष्ट्रकूट साम्राज्य का अंत हो गया।

बंगाल के पाल शासक

  • हर्ष के समकालीन शासक शशांक के बाद पाल वंश के नेतृत्व में बंगाल की शक्ति संगठित हुई। 
  • पाल वंश की स्थापना बौद्ध धर्म के अनुयायी गोपाल (लगभग 750-770 ई.) ने की थी। उसके पूर्व राजवंश का राजा बिना उत्तराधिकारी के मर गया था। उस क्षेत्र में फैली अराजकता के कारण वहां के सरदारों ने गोपाल को अपना शासक चुन लिया।
  • गोपाल ने नालंदा में एक बौद्ध मठ का निर्माण करवाया।
  • गोपाल के पुत्र धर्मपाल (770-810 ई.) ने अपने राजवंश को और अधिक शक्तिशाली बनाया। 
  • अपने शासन के आरम्भिक काल में वह राष्ट्रकूट राजा से पराजित हुआ। फिर भी उसने अपनी सेना का संगठन किया और कन्नौज पर आक्रमण किया। इस बार उसको सफलता मिली और उसने अपने संरक्षित शासक को कन्नौज की गद्दी पर बैठाया। 
  • उसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। 
  • ग्यारहवीं सदी के गुजराती कवि सोड़दल ने धर्मपाल को उत्तरापथ स्वामिन कहा है। 
  • देवपाल (810-850 ई.) ने उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विंध्य तक आक्रमण किया। पूर्वोत्तर भारत में उसने असम और उत्कल शासकों पर अपना आधिपत्य जमाया।
  • देवपाल ने मिहिरभोज को भी पराजित किया। 
  • नौवीं शताब्दी में भारत आए अरब व्यापारी सुलेमान ने लिखा है कि रूहमा (पाल साम्राज्य) के शासक अपने पड़ोसी प्रतिहारों तथा राष्ट्रकूटों से युद्ध करते रहते थे, और उनकी सेनाएं शत्रुओं की सेनाओं से बहुत अधिक थीं।
  • पाल शासकों ने शक्तिशाली सेना बनाकर अपनी शक्ति का संगठन किया, पर साथ ही उन्होंने पड़ोसी राज्यों से भी संधियां कीं। उदाहरण के लिए पाल वंश के राजा और तिब्बत के राजा के बीच एक मित्रता की संधि हुई थी। 
  • इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के चोल शासकों की भांति पाल राजाओं ने भी दक्षिण-पूर्व एशिया के व्यापार में अपनी रुचि दिखाई। उन्होंने इस व्यापार में भाग लेने के लिए अपने व्यापारियों को प्रोत्साहित किया।
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FAQs on दक्कन के राष्ट्रकूट - राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति (800 - 1200 ई.), इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. दक्कन के राष्ट्रकूट की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर. दक्कन के राष्ट्रकूट का निर्माण ८०० ईस्वी में हुआ था।
2. दक्कन के राष्ट्रकूट के राजनीतिक स्थान क्या था?
उत्तर. दक्कन के राष्ट्रकूट राजनीतिक रूप से मजबूत थे और वे महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों पर शासन करते थे।
3. दक्कन के राष्ट्रकूट सम्राट कौन थे?
उत्तर. दक्कन के राष्ट्रकूट के प्रमुख सम्राट धृतराष्ट्र कश्यप थे।
4. दक्कन के राष्ट्रकूट का काल कितने साल चला?
उत्तर. दक्कन के राष्ट्रकूट का शासन काल ४०० से ८०० ईस्वी तक चला।
5. दक्कन के राष्ट्रकूट की प्रमुखता क्या थी?
उत्तर. दक्कन के राष्ट्रकूट की प्रमुखता व्यापारिक और सांस्कृतिक विकास में थी। उन्होंने व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाया और कला और साहित्य के क्षेत्र में भी योगदान दिया।
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