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प्रशासन - विजयनगर साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

प्रशासन
     ¯ अन्य मध्यकालीन सरकारों की तरह, विजयनगर-राज्य में राजा समस्त शक्ति का स्रोत था। वह नागरिक, सैनिक तथा न्याय-सम्बन्धी मामलों में सर्वोच्च अधिकारी था तथा प्रायः सामाजिक झगड़ों को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप भी किया करता था।

 

स्मरणीय तथ्य
 ¯    विजयनगर साम्राज्य में सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाला वंश था - ‘संगमवंश’।
 ¯    विजयनगर एवं बहमनी के मध्य संघर्ष का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण था - ‘रायचूर एवं तुंगभद्रा के दोआब’ क्षेत्र पर अधिकार।
 ¯    विद्यारण्य नामक वैष्णव सन्त ने हरिहर एवं बुक्का को पुनः हिन्दू बनाया और साथ ही विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में सहयोग किया।
 ¯    बुक्का प्रथम ने एक दूतमण्डल चीन भेजा था।
 ¯    विजयनगर साम्राज्य ‘तंुगभद्रा’ नदी के किनारे स्थित था।
 ¯    कृष्णदेव राय ने ‘अमुक्तमाल्यद’, ‘जाम्बवतीकल्याणम’ एवं ‘उषा परिणय’ की रचना की।
 ¯    कृष्णदेव राय का राजकवि पेड्डाना था। इसके राजदरबार में रहने वाले तेलुगु साहित्य के आठ कवियों को ‘अष्टदिग्गज’ कहा गया।
 ¯    कृष्णदेव राय ने ‘यवनराज स्थापनाचार्य’, ‘आंध्र भोज’ ‘आन्ध्र पितामह’ आदि उपाधियां धारण कीं।
 ¯    तालिकोटा के युद्ध को ‘राक्षसी-तंगड़ी’ एवं बेन्नी हट्टी की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है।
 ¯    विजयनगर के विरुद्ध बने मुस्लिम महासंघ के सदस्य थे - बीजापुर, अहमद नगर, गोलकुण्डा एवं बीदर।
 ¯    विजयनगर के चैथे राजवंश आरविदु वंश के संस्थापक तिरुमल ने ‘वैनुगोंडा’ को अपनी राजधानी बनाया।
 ¯    नाडु की सभा के सदस्यों को ‘नात्तवर’ कहते थे।
 ¯    मनयम आयंगारों को दी गई कर-मुक्त भूमि को कहते थे।
 ¯    विजयनगर नरेश कृष्णदेव राय ने भूमि का सर्वेक्षण करवाया।
 ¯    गीली भूमि को ‘नन्जाई’ कहते थे।
 ¯    नकद लगान को सिद्दम कहा जाता था।
 ¯    भंडारवाद ग्राम वे होते थे जिनकी भूमि राज्य के प्रत्यक्ष नियंत्रण में होती थी।
 ¯    ‘उम्बलि’ भूमि उस भूमि को कहते थे, जो गाँव में कुछ विशेष सेवाओं के बदले दी जाती थी। यह भूमि लगान मुक्त होती थी।
 ¯    ‘कुट्टगि’ भूमि कुछ बड़े भूस्वामियों तथा मन्दिरों द्वारा पट्टे पर दी जाती थी।
 ¯    वेसबाग मनुष्यों के क्रय-विक्रय को कहते थे।
 ¯    ‘बोमलाट’ छाया नाटक को कहते थे।
 ¯    विजयनगर के शासक शैव एवं वैष्णव धर्म के अनुयायी थे।
 ¯    विजयनगर आये विदेशी यात्रियों में अब्दुलर्रज्जाक राजदूत की हैसियत से आया था।
 ¯    विजयनगर दरबार के महत्वपूर्ण कवि पेड्डाना को ‘आन्ध्र कविता का पितामह’ कहा गया।

 

प्राचीन भारत प्रमुख विदेशी यात्री
 ¯    मेगास्थनीज - चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में सेल्यूकस के राजदूत के रूप में ।
 ¯    फाह्यान (चीनी यात्री) - चन्द्रगुप्त प्प् के समय में भारत आया।
 ¯    ह्नेन सांग (चीनी यात्री) - हर्षवर्धन के शासन काल में, इत्सिंग (चीनी यात्री) 670 ई. में हर्ष के समय यहां आया।
 ¯    मार्को पोलो - पाण्ड्य शासन के दौरान इटली के इस यात्री ने दक्षिण भारत की यात्रा की (1288-93 ई)।
 ¯    इब्नेबतूता (मोरक्को का यात्री) (1333-47 ई.) - मुहम्मद बिन तुगलक के समय में भारत आया।
 ¯    अलमसूदी ने 957 ई. में राष्ट्रकूट इंद्र तृतीय के समय पश्चिमी भारत की यात्रा की।
 ¯    अब्दुर्रज्जाक (फारसी यात्री) - देवराय-प्प् (विजयनगर साम्राज्य)।
 ¯    निकोली कोन्टी (इतालवी यात्री) - 1420 ई. में देवराय प्प् के समय विजयनगर आया था।
 ¯    निकितिन (रूसी यात्री) - 1470-74 में फिरोज के शासन काल में भारत आया था।
 ¯    वास्कोडिगामा - 1498 ई. में केप आॅफ गुड होप होता हुआ कालीकट बन्दरगाह पर आया था।
 ¯    डोमिंगो पीज - पुर्तगाली यात्री, जिसने 1520-22 में कृष्णदेव राय के समय में विजयनगर की यात्रा की थी।
 ¯    फर्नांडीस नूनीज - पुर्तगाली अश्व व्यापारी 1535-37 में कृष्णदेव राय के दरबार में आया था।
 ¯    बारबोसा - पुर्तगाली, जो कृष्णदेव राय के दरबार में आया था।

¯ कृष्णदेव राय अपनी अमुक्तमाल्यद में लिखता है कि ”एक मूर्धाभिषिक्त राजा को सर्वदा धर्म को दृष्टि में रखकर शासन करना चाहिए“।
     ¯ शासन के कार्य में राजा द्वारा नियुक्त एक मंत्रि-परिषद् उसकी सहायता करती थी। यद्यपि ब्राह्मणों को शासन में ऊँचे पद प्राप्त थे तथा उनका काफी प्रभाव था; तथापि मंत्री केवल उनके वर्ग से ही नहीं, बल्कि क्षत्रियों एवं वैश्यों के वर्गों से भी भर्ती किये जाते थे।
     ¯ मंत्री का पद ”कभी-कभी वंशानुगत तथा कभी-कभी चुनाव पर निर्भर था।“
     ¯ अब्दुर्रज्जाक तथा नूनिज़ दोनों ही एक प्रकार के सचिवालय के अस्तित्व की ओर संकेत करते हैं।
     ¯ मंत्रियों के अतिरिक्त राज्य के अन्य अधिकारी थे - प्रमुख कोषाध्यक्ष, जवाहरात के संरक्षक, राज्य के व्यापारिक हित की रक्षा करने वाला अधिकारी, पुलिस का अधिकारी जिसका काम अपराधों को रोकना तथा नगर में व्यवस्था बनाये रखना था, अश्व का प्रमुख अध्यक्ष तथा अन्य छोटे अधिकारी, जैसे राजा के स्तुति-गायक भाट, तांबूल-वाही अथवा राजा के व्यक्तिगत सेवक, दिनपत्री प्रस्तुत करने वाले, नक्काशी करने वाले तथा अभिलेखों के रचयिता।
     ¯ साम्राज्य शासन सम्बन्धी कार्यों के लिए अनेक प्रान्तों (राज्य, मंडल, चावड़ी) में बाँट दिया गया था।
     ¯ इनके भी छोटे-छोटे भाग थे, जिनके नाम कर्नाटक अंश में वेण्डे (नाडु से बड़ा एक भौमिक विभाग), नाडु (ग्राम से बड़ा एक भौमिक विभाग), सीम, ग्राम एवं स्थल (खेतों का समूह) तथा तमिल अंश में कोट्टम, पर्र, नाडु एवं ग्राम थे।
     ¯ साम्राज्य के प्रान्तों की ठीक-ठीक संख्या बतलाना कठिन है। कुछ लेखक पीज़ पर भरोसा कर लिखते हैं कि साम्राज्य दो सौ प्रान्तों में विभक्त था।
     ¯ एच. कृष्ण शास्त्री के मतानुसार साम्राज्य छः प्रमुख प्रान्तों में विभक्त था।
     ¯ प्रत्येक प्रान्त एक राजप्रतिनिधि अथवा नायक (नायक की उपाधि चुंगी जमा करने वालों तथा सेनानायक को भी दी जाती थी) के अधीन था, जो राजपरिवार का सदस्य अथवा राज्य का प्रभावशाली सरदार अथवा पुराने शासक परिवारों का कोई वंशज हो सकता था।
     ¯ प्रत्येक राजप्रतिनिधि अपने अधिकार क्षेत्र में नागरिक, सैनिक तथा न्याय-सम्बन्धी शक्तियों का उपयोग किया करता था, पर उसे केन्द्रीय सरकार को अपने प्रांत की आय तथा व्यय का नियमित हिसाब पेश करना पड़ता था तथा आवश्यकता पड़ने पर उसे (केंद्रीय सरकार को) सैनिक सहायता भी देनी पड़ती थी। 
     ¯ यदि वह अपनी आय का तिहाई भाग राज्य (केंद्र) के पास नहीं भेजता, तो राज्य (केंद्र) उसकी जायदाद जब्त कर सकता था।
     ¯ प्रत्येक गाँव स्वतः पूर्ण इकाई थी।
     ¯ उत्तर भारत की पंचायत के समान यहाँ ग्राम-सभा, अपने वंशानुगत अधिकारियों द्वारा, अपने अधीन क्षेत्र का कार्यपालिका संबंधी, न्याय- संबंन्धी एवं पुलिस-संबंन्धी प्रशासन चलाती थी।
     ¯ ये वंशानुगत अधिकारी सेनतेओवा (गाँव का हिसाब रखने वाला), तलर (गाँव का पहरेदार अथवा कोतवाल), बेगार (बलपूर्वक परिश्रम लेने का अधीक्षक) तथा अन्य होते थे।
     ¯ गाँव के इन अधिकारियों को वेतन भूमि के रूप में अथवा कृषि की उपज के एक अंश के रूप में दिया जाता था।
     ¯ राजा महानायकाचार्य  नामक अपने अधिकारी के द्वारा गाँव के शासन से अपना सम्बन्ध बनाये रखते थे जो इसकी सामान्य देखभाल किया करते थे।
     ¯ शिष्ट नामक भूमि कर विजयनगर राज्य की आय का प्रमुख साधन था। अठवने नामक विभाग के अधीन इसकी भूमि कर के शासन की प्रणाली कार्यक्षम थी।
     ¯ कर लगाने के उद्देश्य से भूमि को तीन वर्गों में बाँटा गया था - भींगी जमीन, सूखी जमीन, बाग एवं जंगल।
     ¯ विजयनगर के सम्राटों ने परम्परागत दर - उपज के छठे हिस्से - को छोड़कर कर की दर कुछ बढ़ा दी।
 ¯ भूमि कर के अतिरिक्त रैयतों को अन्य प्रकार के कर देने पड़ते थे, जैसे - चारा-कर, विवाह-कर इत्यादि।
     ¯ राज्य की आय के अन्य साधन थे - चुंगी  से राजस्व, सड़कों पर कर, बाग एवं वृक्ष लगाने से राजस्व तथा साधारण उपभोग की वस्तुओं का व्यापार करनेवाला , माल तैयार करनेवाला एवं कारीगरों, कुम्हारों, रजकों, चर्मकारों, नापितों, भिखारियों, मंदिरों एवं वेश्याओं पर कर।
     ¯ कर मुद्रा एवं अनाज दोनों में दिये जाते थे जैसा कि चोलों के समय में होता था।
     ¯ राजा सर्वोच्च न्यायाधीश था, पर न्याय के शासन के लिए सुव्यवस्थित न्यायालय तथा विशेष न्याय-सम्बन्धी अधिकारी थे।
     ¯ कभी-कभी स्थानीय संस्थाओं की सहकारिता से राज्य के अधिकारी झगड़ों को सुलझा लेते थे।
     ¯ दण्ड मुख्यतः चार प्रकार के थे - जुर्माना, सम्पत्ति की जब्ती, दैवी परीक्षा एवं मृत्यु।
     ¯ चोरी, व्यभिचार एवं राजद्रोह जैसे अपराधों का दण्ड था - मृत्यु अथवा अंगभंग।
     ¯ होयसलों की तरह विजयनगर के राजाओं का भी सैनिक विभाग काफी संगठित था, जिसका नाम कन्दाचार था।
     ¯ यह दण्डनायक अथवा दन्नायक (प्रधान सेनापति) के नियंत्रण में था, जिसकी सहायता छोटे-छोटे अधिकारियों का समूह करता था।
     ¯ राजा की स्थायी फौज में आवश्यकता के समय जागीरदारों तथा सरदारों की सहायक सेना सम्मिलित कर ली जाती थी।
     ¯ सेना के विभिन्न अंग थे - पदाति, जिसमें भिन्न-भिन्न वर्गों एवं धर्मों के लोग (यहाँ तक कि कभी-कभी मुसलमान भी) लिये जाते थे; अश्वारोही सेना को पुर्तगीजों के सहारे ओरमुज़ से अच्छे अश्व लेकर सबल बनाया जाता था, क्योंकि साम्राज्य में इन जानवरों की कमी थी; हाथी, ऊँट, तथा तोपें, जिनका 1368 ई. में ही हिन्दुओं द्वारा उपयोग किया जाना विदेशी विवरणों तथा अभिलेखों के प्रमाण से सिद्ध है।
     ¯ पर विजयनगर की सेना का अनुशासन तथा लड़ने की शक्ति दक्कन के मुस्लिम राज्यों की सेनाओं से कम थी।

वैभव और सम्पत्ति
     ¯ विजयनगर शहर विशाल दुर्गों से घिरा तथा बृहदाकार था।
     ¯ इटली का यात्री निकोलो कोण्टी, जिसने, लगभग 1420 ई. में यहाँ भ्रमण किया था, लिखता है: ”नगर की परिधि साठ मील है। इसकी दीवारें पहाड़ों तक चली गयी हैं तथा उनके अधोभाग में घाटियों को परिवेष्टित करती हैं, जिससे इसका विस्तार बढ़ जाता है। अनुमान किया जाता है कि इस नगर में अस्त्र धारण करने के योग्य नब्बे हजार आदमी हैं। राजा भारत के सभी अन्य राजाओं से अधिक शक्तिशाली है।“
     ¯ अबदुर्रज्ज़ाक, जो फारस से भारत आया था तथा 1442-1443 ई. में विजयनगर गया था, लिखता है: ”उस देश में इतनी अधिक जनसंख्या है कि कम स्थान में उसका अन्दाज़ देना असम्भव है। राजा के कोष में गड्ढे-सहित प्रकोष्ठ हैं, जो पिघले हुए सोने के थोक से भरे हैं। देश के सभी निवासी - ऊँच अथवा नीच, यहाँ तक कि बाजार के शिल्पकार तक कानों, गलों, बाँहों, कलाइयों तथा अंगुलियों में जवाहरात एवं सोने के आभूषण पहनते हैं।“
     ¯ डोमिंगोस पीज़ जो एक पुर्तगाली था तथा जिसने विजयनगर का एक विस्तृत विवरण लिखा है, कहता है: ”इसके राजा के पास भारी खजाना है। उसके पास बहुत सैनिक एवं बहुत हाथी हैं, क्योंकि इस देश में ये बहुतायत से मिलते हैं।“
     ¯ एडोअर्डो बारबोसा, जो 1516 ई. में भारत में उपस्थित था, विजयनगर का वर्णन ”अत्यन्त विस्तृत, अति जनाकीर्ण तथा देशी हीरों, पेगू की लाल-मणियों, चीन एवं अलेक्जेण्ड्रिया के रेशम और मालाबार के सिंदूर, कपूर, कस्तूरी, मिर्च एवं चन्दन के क्रियाशील व्यापार के स्थान“ के रूप में करते हैं।

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FAQs on प्रशासन - विजयनगर साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. विजयनगर साम्राज्य क्या था?
उत्तर: विजयनगर साम्राज्य भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण राजस्थानी साम्राज्य था जो 14वीं और 16वीं सदी के बीच विजयनगर नगर क्षेत्र में स्थित था। यह साम्राज्य दक्षिण भारत में विजयनगर वंशवादी नगर को सम्राट्मक रूप से बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था।
2. विजयनगर साम्राज्य का इतिहास क्या था?
उत्तर: विजयनगर साम्राज्य का इतिहास उसकी स्थापना से लेकर उसकी विनाश तक का संक्षेप में वर्णन करता है। यह साम्राज्य कृष्णदेवराय के समय अपने शासकां के द्वारा अपनी शक्ति के प्रमाणीकरण के दौरान अपेक्षाकृत सशक्त था। इसके बाद ही यह अपने शक्ति का निर्माण करने में सक्षम रहा, लेकिन इसकी दुर्लभ विमानन के कारण इसे नष्ट कर दिया गया।
3. विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख शासक कौन थे?
उत्तर: विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख शासक थे कृष्णदेवराय, देवराय और श्रीरंगराय। कृष्णदेवराय साम्राज्य के सबसे सशक्त और प्रसिद्ध शासक थे जो 16वीं सदी में शासन कर रहे थे। उन्होंने विजयनगर साम्राज्य को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक केंद्र बनाया।
4. विजयनगर साम्राज्य के अवशेष क्या हैं?
उत्तर: विजयनगर साम्राज्य के अवशेष आज भी विजयनगर नगर क्षेत्र में मौजूद हैं। इसमें बहुत सारे मंदिर, महल और राजमहलों के अवशेष मिलते हैं जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। इन अवशेषों में विजयनगर कला और संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विरासत दर्शाई जाती है।
5. विजयनगर साम्राज्य की विनाश की कहानी क्या है?
उत्तर: विजयनगर साम्राज्य की विनाश की कहानी मुग़ल सम्राट अकबर के समय से जुड़ी हुई है। अकबर ने विजयनगर साम्राज्य के शासक रामराय का आक्रमण किया और इसके बाद इसे ध्वस्त कर दिया। इसके बाद से विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया और यह साम्राज्य इतिहास की पन्नों में समाप्त हो गया।
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