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सूफीवाद का भारतीय समाज पर प्रभाव और भक्ति आंदोलन - धार्मिक आंदोलन, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सूफीवाद का भारतीय समाज पर प्रभाव
 ¯ सूफी संतों ने भारतीय समाज में प्रचलित कर्मकांडों का विरोध किया। हिन्दुओं के प्रति उन्होंने दयालुता और प्रेम का व्यवहार किया। अतः उनमें सूफियों के प्रति आदर बढ़ा और वे लोग सूफियों के मजारों पर श्रद्धा से फूल चढ़ाने लगे।
 ¯ इससे हिन्दू मुसलमानों में धार्मिक भेद-भाव और छूआछूत का त्याग हुआ और समता एवं भ्रातृत्वभाव बढ़ा।
 ¯ सुहरवर्दी और नक्शबंदी शाखाओं के सूफियों ने मुस्लिम सूफी रहस्यवाद को भारतीय प्रभाव से मुक्त करने के लिए बड़े प्रयास किये किन्तु भारत के अधिकांश सूफी मुसलमान सूफीमत की चिश्ती शाखा के आदर्शों के प्रति ही निष्ठावान बने रहे।
 ¯ सूफीमत की चिश्तिया शाखा एक तरह से हिन्दुओं के वेदांत का परिवर्द्धित रूप था। फलतः भारत में सूफीवाद का प्रचार द्रुतगति से हुआ।
 ¯ सूफी संतों ने भारतीय पर्यावरण को ध्यान में रखकर अपने मत के प्रसार के लिए देशी भाषाओं का प्रयोग किया।
 ¯ प्रख्यात सूफी कवि अमीर खुसरो ने ‘हिन्दवी’ में ग्रंथ लिखे।
 ¯ उर्दू गद्य शैली का विकास भी इन्हीं के द्वारा हुआ।

¯ सूफियों ने चरमलक्ष्य की प्राप्ति के लिए ईश्वर भक्ति पर विशेष जोर दिया, इससे भारतीय समाज में भक्ति आंदोलन को बल मिला।

भक्ति आंदोलन
 ¯ सल्तनत काल (1206-1526 ई.) में हिन्दुओं में अनेक ऐसे धर्म विचारक हुए जिन्होंने भक्ति पर विशेष बल दिया, तथा धर्म-सुधार के एक नवीन आन्दोलन का श्रीगणेश किया। यह आंदोलन भक्ति आन्दोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 ¯ वास्तव में भारत में भक्ति आन्दोलन का सूत्रपात आठवीं शताब्दी में महान् धर्म सुधारक जगद्गुरु शंकराचार्य ने बौद्धधर्म के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ‘अद्वैतवाद’ दर्शन का प्रतिपादन करके हिन्दूधर्म को एक ठोस दार्शनिक पृष्ठभूमि प्रदान की।
 ¯ शंकराचार्य के अनुसार केवल ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है।
 ¯ शंकर का जन्म 788 ई. में मालाबर तट पर स्थित कलादी नामक गांव में एक नाम्बूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 32 वर्ष की अल्पायु में (820 ई.) में उनका स्वर्गवास हो गया।
 ¯ शंकर ने तत्कालीन मत-मतांतरों का खंडन कर अद्वैतवाद की प्रतिष्ठा की और समस्त देश का भ्रमण करके विभिन्न स्थानों के पंडितों को शास्त्रार्थ में परास्त करके दिग्विजय करने के उपरांत भारत के चारों कोनों में (उत्तर में बद्रिकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारिका) चार मठ स्थापित किये और अपने अनुयायी संन्यासियों को धर्म-प्रचार का आदेश दिया।
 ¯ शंकराचार्य के अनुसार बंधन से छुटकारा पाने के लिए ज्ञानमार्ग ही सर्वोत्तम है। कर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने पर मोक्ष की प्राप्ति में विलंब लगता है।
 ¯ मध्यकालीन धर्मशास्त्रियों ने जनसाधारण को आकृष्ट करने के लिए और धर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए भक्ति पर अधिक बल दिया है।
 ¯ मध्यकाल के भक्ति आंदोलन के संतों ने भक्ति के दो रूपों को अपनाया, यथा निर्गुण और सगुण।
 ¯ निर्गुण धारा के संतों ने ज्ञान और प्रेम का आश्रम लिया। फलतः प्रेमाश्रयी (प्रेम के द्वारा ईश्वर की अनुभूति) और ज्ञानाश्रयी (ज्ञान के द्वारा ईश्वर की अनुभूति) प्रशाखाओं का जन्म हुआ।
 ¯ निर्गुण शाखा के संतों ने एकेश्वरवाद का प्रचार किया और हिंदु मुस्लिम को निकट लाने का प्रयास किया। सगुण शाखा के संतों ने अपने इष्ट देवों की भक्ति पर बल दिया। कुछ संतों ने राम और कुछ संतों ने कृष्ण को अपना इष्टदेव माना।
 ¯ इन संतों ने अपने मत को लोकप्रिय बनाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग किया।

रामानुजाचार्य (1017-1137 ई.)
 ¯ रामानुज महान् वैष्णव संत थे। इनका जन्म 1017 ई. में तिरुपति नगर (आंध्रप्रदेश) में हुआ था।
 ¯ इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा कांची में प्राप्त की थी। प्रारंभ में कुछ समय तक गृहस्थ जीवन व्यतीत किया किंतु अंत में उसका परित्याग कर चिंतन में लग गये।
 ¯ 1137 ई. में उनका स्वर्गवास हो गया।
 ¯ प्रारंभ में वे शंकराचार्य के विचारों के समर्थक थे किंतु देश के अनेक भागों का भ्रमण, अध्ययन एवं चिंतन करके वे शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन एवं मायावाद से मतभेद रखने लगे और उन्होंने मुक्ति प्राप्ति के लिए भक्ति को ही एकमात्र साधन माना।
 ¯ रामानुज विशिष्टाद्वैतवाद दर्शन के प्रवर्तक थे।
 ¯ उन्होंने वेदांत एवं वैष्णव मतों के बीच समन्वय करके भक्ति को दार्शनिक आधार प्रदान किया और ब्रह्म को निर्गुण न मानकर सगुण माना।
 ¯ शंकर ने ब्रह्म को सत्य और जगत को मिथ्या माना है किंतु रामानुज के अनुसार ब्रह्म, जीव और जगत तीनों में एक विशिष्ट संबंध है और तीनों सत्य है। जीव और जगत दोनों का केन्द्रीभूत तत्त्व ईश्वर है।

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FAQs on सूफीवाद का भारतीय समाज पर प्रभाव और भक्ति आंदोलन - धार्मिक आंदोलन, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. What is the impact of Sufism on Indian society?
Ans. Sufism is a mystical form of Islam that emphasizes the inward path of spiritual realization. It has had a significant impact on Indian society, particularly in the realm of music, literature, and spirituality. Sufi saints like Nizamuddin Auliya, Amir Khusro, and Bulleh Shah have contributed immensely to the cultural and religious heritage of India. Sufi music and poetry have also become popular among the masses, transcending religious and linguistic barriers.
2. What is the Bhakti movement?
Ans. The Bhakti movement was a devotional movement that originated in medieval India and sought to promote the worship of a personal god or goddess through intense devotion. It emphasized the idea of love and devotion as the path to salvation, rather than ritualistic practices or social status. The movement had a significant impact on Indian society, promoting social equality and religious tolerance.
3. How are Sufism and the Bhakti movement similar?
Ans. Sufism and the Bhakti movement share many similarities, such as their emphasis on devotion and love as the path to spiritual realization. Both movements also rejected the rigid hierarchy of the mainstream religion and emphasized the equality of all human beings. Moreover, both Sufi and Bhakti saints used music, poetry, and dance to express their devotion and spread their message.
4. Who were some of the prominent Sufi saints in India?
Ans. India has a rich tradition of Sufism, and many prominent Sufi saints have lived and preached in the country. Some of the famous Sufi saints include Khwaja Moinuddin Chishti of Ajmer, Nizamuddin Auliya of Delhi, Baba Farid of Punjab, and Hazrat Data Ganj Bakhsh of Lahore. These saints have left an indelible mark on the cultural and religious landscape of India.
5. How did the Bhakti movement promote social equality?
Ans. The Bhakti movement challenged the prevailing social norms and advocated the equality of all human beings, regardless of their caste or gender. It rejected the idea of ritual purity and emphasized the importance of inner purity instead. Bhakti saints like Kabir, Ravidas, and Tukaram promoted a message of social harmony and tried to bridge the gap between different castes and religions. They also used vernacular languages to communicate their message, making it accessible to the masses.
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