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स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - UPSC PDF Download

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन

  • बंगाल के विभाजन को समाप्त करने के लिए जिस स्वदेशी और बहिष्कार के आंदोलन की शुरुआत हुई, वह जल्दी ही आजादी की लड़ाई का प्रमुख हथियार बन गया। 
  •  स्वदेशी वस्तुओं का बढ़ावा देने के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का भी नारा दिया गया। इससे जनता की राष्ट्रीय भावनाओं को उभारने में मदद मिली। 
  • इस बात पर जोर दिया गया कि विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने से - अधिकांश विदेशी वस्तुएँ इंग्लैंड से आती थीं - इंग्लैंड के आर्थिक हितों को क्षति पहुँचेगी और तब ब्रिटिश सरकार को भारतीय मांगें स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सकेगा।
  • कांग्रेस ने 1905 ई. के वाराणसी अधिवेशन में और 1906 ई. के कलकत्ता अधिवेश में स्वदेशी और बहिष्कार के आंदोलनों का समर्थन किया। 
  • इससे कांग्रेस द्वारा अपनाए गए तरीकों में भारी परिवर्तन हुआ। अब ये तरीके प्रतिवेदनों और अपीलों के जरिए ब्रिटिश शासकों से न्याय की मांग करने तक सीमित नहीं रह गए थे।
  • स्वदेशी और बहिष्कार का आंदोलन केवल बंगाल तक सीमित न रहकर देश के अनेक भागों में फैल गया। इससे सारे देश में राजनीतिक गतिविधियाँ तीव्र हो गई। 
  • ब्रिटिश कपड़ों, चीनी तथा अन्य वस्तुओं का बहिष्कार किया गया। 
  • लोग झुण्ड बनाकर दुकानों पर जाते और दुकानदारों से विदेशी सामान न बेचने का अनुरोध करते। वे दुकानों के बाहर खड़े रहकर ग्राहकों से विदेशी सामान न खरीदने का आग्रह करते। 
  • स्वदेशी और बहिष्कार के आंदोलन केवल सामान तक सीमित नहीं रह गए। स्वदेशी का अर्थ हो गया वह सब जो भारतीय है। इसी प्रकार, बहिष्कार का अर्थ हो गया वह सब जिसका सम्बन्ध ब्रिटिश शासन से है। 
  • शुरू हुआ यह आंदोलन अंततः विदेशी शासन से आजादी हासिल करने का साधन बन गया। बंगाल के विभाजन को रोकने के लिए 

कांग्रेस और स्वराज का लक्ष्य

  • गरम दल तथा नरम दल सहित कांग्रेस के भीतर के सभी दल बंगाल के विभाजन के खिलाफ एकजुट हुए। 
  • वाराणसी में 1905 ई. में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले थे। उस अधिवेशन ने स्वदेशी और बहिष्कार के आंदोलन को समर्थन दिया।
  • मगर नरम दल और गरम दल में मतभेद कायम रहे। नरम दल वालों का मत था कि बहिष्कार-जैसे तरीकों का इस्तेमाल विशेष उद्देश्यों के लिए विशेष परिस्थिति में ही होना चाहिए। उनका मत था कि बंगाल के विभाजन के विरुद्ध इन तरीकों का इस्तेमाल करना सही था। मगर वे नहीं चाहते थे कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ इन तरीकों का इस्तेमाल हमेशा किया जाए।
  • परन्तु गरम दल वालों का विश्वास था कि बहिष्कार को व्यापक बनाना आवश्यक है। उन्होंने सरकारी स्कूलों, कालेजों तथा विश्वविद्यालयों का बहिष्कार करने और देशभक्ति को उभारने के लिए शिक्षा-संस्थाएँ शुरू करने पर जोर दिया। 
  • उसी दौरान तमिलनाडु के राष्ट्रवादी नेता वी. ओ. चिंदबरम् पिल्लई ने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी की स्थापना की।
  • कलकत्ता में 1906 ई. में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन के समय भी गरम दल और नरम दल के बीमतभेद बढ़ते जा रहे थे। 
  • भारतीय जनता के उस समय के परमप्रिय नेता दादा भाई नौरोजी कलकत्ता अधिवेशन के अध्यक्ष थे। उन्होंने विभिन्न मतों वाले नेताओं को समझाया कि वे कुछ व्यापक नीतियों को एकमत से स्वीकार कर लें। 
  • एक प्रस्ताव के जरिए कांग्रेस ने स्वदेशी और बहिष्कार को अपना समर्थन प्रदान किया। देश की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा-प्रणाली का आयोजन करने पर भी जोर दिया गया। यह भी कहा गया कि इस प्रणाली का आयोजन स्वयं भारतीयों को करना चाहिए। 
  • परन्तु इस अधिवेशन की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि स्वराज-प्राप्ति को कांग्रेस का लक्ष्य घोषित किया गया। इस लक्ष्य को दादा भाई नौरोजी के भाषण में शामिल किया गया था। 
  • स्वराज का मतलब था ब्रिटेन के कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे स्वशासित उपनिवेशों के तरह की सरकार स्थापित करना।
  •  मगर गरम दल और नरम दल एकजुट नहीं रह सके। सूरत में 1907 ई. में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में दोनों दलों में संघर्ष हुआ। कांग्रेस पर नरम दल वालों का पूरा कब्जा हो गया। गरम दल वाले कांग्रेस से अलग होकर काम करने लगे। 
  • नौ साल बाद, 1916 ई. में ही दोनों दलों का पुनः एकीकरण हुआ।
  • कांग्रेस पर नरम दल वालों का कब्जा हो जाने के बावजूद गरम दल के विचार तथा तरीके देशभर में फैलते गए। इससे अंग्रेज सतर्क हो गए। ब्रिटिश अधिकारियों में इसलिए भी आतंक फैला कि 1907 ई. में 1857 ई. के महान विद्रोह का पचासवां वार्षिकोत्सव पड़ता था। उन्हें भय था कि कहीं दूसरा विद्रोह न भड़क उठे। गरम दल वालों का अधिक दमन होने लगा। 
  • लाजपत राय को गिरफ्तार करके 1907 ई. के शुरू में बर्मा में निर्वासित कर दिया गया। उन्हें उस साल के अंत में रिहा किया गया।
  • विपिनचंद्र पाल को 6 महीने के लिए जेल में बंद कर दिया गया। 
  • 1908 ई. में तिलक को गिरफ्तार करके छह साल के लिए बर्मा में निर्वासित कर दिया गया। 
  • कई अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिए गए और उनके संपादकों को जेल में डाल दिया गया। 
  • वी. ओ. चिदंबरम् पिल्लई पर अत्याचार किए गए और उन्हें जेल में डाल दिया गया। 
  • मगर इन दमनकारी कार्रवाइयों के बावजूद गरम दल के नेताओं द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ अपनाई गई नीतियों तथा तरीकों का जनता में प्रचार बढ़ता गया। 
  • सरकारी दमन का जनता ने कड़ा मुकाबला किया। तिलक को सजा देने पर बंबई के मजदूरों ने हड़ताल की। 
  • त्रिन्नोलवेल्ली (तमिलनाडू) में लोगों ने एक सभा पर लगाए गए प्रतिबंध को तोड़ा, तो चार प्रदर्शनकारियों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया।
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FAQs on स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - UPSC

1. स्वदेशी आंदोलन क्या है?
उत्तर. स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह आंदोलन विदेशी वस्त्रों, वस्त्र उत्पादन और अन्य उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करता था। इसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय उद्योग को बढ़ावा देना और विदेशी वस्त्रों के उत्पादन को रोकना।
2. बहिष्कार आंदोलन क्या है?
उत्तर. बहिष्कार आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस आंदोलन के तहत, भारतीयों ने ब्रिटिश औपनिवेशिकों और उनके उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया। इसका मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन करके भारतीय उद्योग को बढ़ावा देना और देश को आर्थिक आजादी प्राप्त करना था।
3. स्वदेशी आंदोलन किस वर्ष में शुरू हुआ?
उत्तर. स्वदेशी आंदोलन 1905 में शुरू हुआ। यह आंदोलन कोलकाता में वेद भवन में संपन्न हुए एक सभा के दौरान शुरू हुआ था। स्वामी विवेकानंद ने इस सभा में उद्घाटन भी किया था।
4. बहिष्कार आंदोलन किस वर्ष में शुरू हुआ?
उत्तर. बहिष्कार आंदोलन 1907 में शुरू हुआ। यह आंदोलन स्वदेशी आंदोलन के उद्घाटन के कुछ महीने बाद ही शुरू हुआ था। इस आंदोलन के तहत, विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार की मांग की गई और भारतीय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।
5. स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन क्या थे और इनमें क्या अंतर है?
उत्तर. स्वदेशी आंदोलन और बहिष्कार आंदोलन दोनों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण हिस्से थे। स्वदेशी आंदोलन विदेशी वस्त्रों, वस्त्र उत्पादन और अन्य उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करता था, जबकि बहिष्कार आंदोलन ब्रिटिश औपनिवेशिकों और उनके उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया। दोनों आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य था भारतीय उद्योग को बढ़ावा देना, लेकिन इनमें यह अंतर था कि स्वदेशी आंदोलन वस्त्रों और उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करता था जबकि बहिष्कार आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन करके आर्थिक आजादी प्राप्त करने का आह्वान करता था।
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