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चुनाव और मंत्रिमंडल का गठन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

चुनाव और मंत्रिमंडल का गठन

  • 1937 के चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। 
  • उसे कुल 1585 असेंबली सीटों में 711 पर विजय प्राप्त हुई, ग्यारह में से पाँप्रांतों (मद्रास, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रांत और संयुक्त प्रांत) में पूर्ण बहुमत मिला और बबंई में लगभग पूर्ण बहुमत (175 में से 86) मिला। 
  • सरकारी समर्थन के बावजूद संयुक्त प्रांत में छतारी के नवाब की नेशनल एग्रीकलचरिस्ट पार्टी और मद्रास में जस्टिस पार्टी को मुँह की खानी पड़ी। 
  • मुस्लिम चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस के बहुत मामूली प्रदर्शन (482 आरक्षित सीटों में कांग्रेस 58 पर लड़ी और 26 पर विजयी रही थी) के बावजूद इस बात से संतोष मिल जाता था कि मुस्लिम लीग भी मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि होने का अपना दावा सिद्ध करने में असफल रही थी। 
  • पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में लीग एक भी सीट नहीं पा सकी थी और वह पंजाब के 84 आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में से केवल 2 और सिंध के 33 में से केवल तीन स्थान पर ही जीत सकी थी। 
  • अनुसूचित जातियों की अधिकांश सीटें भी कांग्रेस ने जीत ली थी, सिवा बंबई के जहाँ अंबेडकर की इंडिपंेडेंट लेबर पार्टी ने हरिजनों के लिये आरक्षित 15 सीटों में से 13 जीती थीं।
  • चुनावों में कांग्रेस की सफलता ने उसकी स्थिति मजबूत कर दी थी और शीघ्र ही कांग्रेस द्वारा मंत्रिमंडल गठित करने के लिए दबाव पड़ने लगा। 
  • संयुक्त प्रांत, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रांत, बंबई और मद्रास में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने पद-भार संभाला और कुछ महीनों पश्चात् पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में भी। 
  • सितम्बर 1938 में असम में भी कांग्रेस मंत्रिमंडल बन गया, जिसके लिये गंदी संसदीय चालों और दल-बदल का सहारा लिया गया। मजे की बात यह है कि इनमें कांग्रेस के वामपंथी अध्यक्ष सुभाष बोस की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही थी।


कांग्रेस में वामपंथ

  • श्रमिक एवं किसान संगठन एवं रजवाड़ों में होनेवाले आन्दोलन ऐसे मुद्दे थे जिन्हें लेकर कांग्रेस के भीतर मोटे तौर पर एक वामपंथी विकल्प बना, जो कांग्रेसी मंत्रिमंडल के लिये और हाईकमान के अधिकांश सदस्यों के बढ़ते हुए रूढ़िवादी रवैये के लिए चुनौती के रूप में उभरा।
  • पूरे वामपंथ ने कांग्रेसी नेतृत्व को इस बात के लिए तैयार करने का प्रयास किया कि वह किसान सभाओं एवं ट्रेड यूनियनों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाए और रजवाड़ों के जन-आंदोलनों को खुला समर्थन दे, लेकिन इसमें उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली। 
  • कांग्रेस फेडरेशन स्थापित करने की ब्रिटिश योजनाओं का समय-समय पर विरोध करती रहती थी, क्योंकि इस फेडरेशन के अंतर्गत वायसराॅय के पास आरक्षित शक्तियाँ होती और ऐसी केन्द्रीय विधायिका होती जिसमें राजाओं के नामजद सदस्य होते। 
  • किन्तु इस मुद्दे को लेकर जन-आंदोलन छेड़ने की वामंपथी मांग को कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया और फिलहाल प्रांतों में मंत्रिमंडल बनाकर ही संतुष्ट हो रही।
  • इसके ठीक विपरीत अंतर्राष्ट्रीय मामलों में कांग्रेस का ढर्रा स्पष्ट रूप से वामपंथ ने ही तय किया जिसका श्रेय मुख्य रूप से जवाहरलाल नेहरू के सुसंगत समर्थन एवं नेतृत्व को जाता है। 
  • युद्ध के घिरते बादलों के संदर्भ में राष्ट्रवादी और वामपंथी इस बात पर एकमत थे कि इस बार उस ब्रिटिश विदेशनीति को बिना शर्त समर्थन नहीं दिया जाएगा। समूची कांग्रेस ने बार-बार फासीवादी आक्रमण की भत्र्सना की। 
  • 1938 में मैड्रिड की रक्षा कर रहे इंटरनेशनल ब्रिगेड से एकजुटता प्रकट करने के लिए नेहरू स्पेन गए और कांग्रेस ने चुन्ते की अपील पर एक चिकित्सा दल चीन भेजा।

त्रिपुरी-संकट

  • 1939 के आरम्भ में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन की पूर्वबेला में संकट की सी स्थिति उत्पन्न हो गई, क्योंकि सुभाष बोस ने अध्यक्ष पद के लिए पुनः खड़े होने का निर्णय किया था। 
  • 29 जनवरी, 1939 को सुभाष 1377 के मुकाबले 1580 मतों से चुने गए; उन्हें बंगाल और पंजाब में भारी बहुमत मिला था और केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, संयुक्त प्रांत और असम में पर्याप्त बढ़त मिली थी। महाराष्ट्र और महाकोशल (हिन्दीभाषी मध्य प्रांत) में मुकाबला काफी कड़ा रहा था। केवल गुजरात, बिहार, उड़ीसा और आंध्र ने ही कमोवेश जमकर सीतारमैय्या के पक्ष में मत दिया था। 
  • गाँधीजी ने तत्काल इस मुद्दे को अपनी निजी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया; उन्होंने घोषणा की कि सीतारमैय्या की हार ‘उनकी हार से अधिक मेरी हार’ है।
  • आखिर सुभाषचंद्र बोस ने  त्यागपत्र देना ही उचित समझा और उनके स्थान पर कट्टर गाँधीवादी और दक्षिणपंथी राजेन्द्र प्रसाद को लाया गया। 
  • 3 मई को बोस ने फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की घोषणा की। 
  • आरम्भ में उनका विचार कांग्रेस के भीतर ही रहकर कार्य करने और विभिन्न वामपंथी समूहों को एक करने का था जिसके लिए फारवर्ड ब्लाॅक ने जून 1939 में वामपंथी एकजुटता समिति की स्थापना की। 
  • इसे कम्युनिस्टों का समर्थन मिला किंतु राय के अनुयायियों एवं जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेताओं ने कांग्रेस की एकता को वरीयता दी और फारवर्ड ब्लाॅक स्थापित किए जाने की आलोचना की। 
  • फारवर्ड ब्लाॅक अंततः पहले से ही विभाजित वामपंथ का एक और टूटा हुआ गुट बनकर रह गया।
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FAQs on चुनाव और मंत्रिमंडल का गठन - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. चुनाव क्या है और कैसे होते हैं?
उत्तर: चुनाव एक राजनीतिक प्रक्रिया है जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। यह एक महत्वपूर्ण तरीका है जिसके माध्यम से लोग अपनी राय व्यक्त करते हैं और देश की नीतियों और नेतृत्व को चुनते हैं। चुनाव आमतौर पर मतदान के माध्यम से होते हैं, जहां नागरिकों को मतदान करने का अधिकार होता है।
2. मंत्रिमंडल क्या होता है और कैसे गठित होता है?
उत्तर: मंत्रिमंडल एक शासन प्रणाली है जिसमें नेता या नेतृत्व के निर्देशन में मंत्री गठबंधन की गठन की जाती है। यह मंत्रियों का एक समूह होता है जो न्यायिक और कार्यपालिका शाखाओं के नेताओं द्वारा चुना जाता है। मंत्रिमंडल शासनतंत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में काम करता है और नेतृत्व के निर्देशन में नीतियों और कार्यक्रमों को निर्धारित करता है।
3. स्वतंत्रता संग्राम क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: स्वतंत्रता संग्राम एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है जिसमें एक देश की आजादी के लिए जनता आंदोलन करती है। यह आमतौर पर अविद्यमानता, आपातकालीनता, या विद्रोह के माध्यम से होता है। स्वतंत्रता संग्राम देश के निर्माण और नागरिकों के मुक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण कारक होता है।
4. इतिहास क्यों महत्वपूर्ण है और हमें इसे क्यों पढ़ना चाहिए?
उत्तर: इतिहास हमारी पूर्वजों द्वारा किए गए घटनाओं और संघर्षों की एक विवेचना है। इसे पढ़ने के माध्यम से हम अपने इतिहास को समझते हैं, जिससे हमें अपने देश की विकास और बदलाव की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलती है। इतिहास हमें शिक्षा, संघर्ष, और संघर्षों से सीखने के लिए प्रेरित करता है और हमें अपनी सामरिक और सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद करता है।
5. आईएएस और यूपीएससी क्या हैं और इनकी परीक्षा क्या होती है?
उत्तर: आईएएस (Indian Administrative Service) और यूपीएससी (Union Public Service Commission) भारतीय संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रतियोगी परीक्षाएं हैं। ये परीक्षाएं भारतीय संघ लोक सेवा के विभिन्न हिस्सों के लिए योग्यता मापती हैं, जिसमें शासन, प्रशासनिक, न्यायिक और पुलिस सेवा शामिल होती है। ये परीक्षाएं विभिन्न चरणों में आयोजित की जाती हैं, जिनमें साक्षात्कार, लिखित परीक्षा और व्यक्तित्व परीक्षा शामिल होती हैं।
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