भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 और भारत सरकार अधिनियम, 1935
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861
भारतीय परिषद अधिनियम, 1892
भारतीय परिषद ऐक्ट, 1909
(मिंटो-मार्ले सुधार)
केन्द्रीय विधान मंडल: अतिरिक्त सदस्यों की अधिकतम संख्या 60 कर दी गई। अब विधान मंडल में 69 सदस्य थे जिनमें 37 शासकीय तथा 32 अशासकीय वर्ग के थे। शासकीय वर्ग में केवल 9 पदेन सदस्य थे अर्थात् गवर्नर-जनरल तथा उसके 7 कार्यकारी पार्षद और एक असाधारण सदस्य। बाकि के 28 सदस्य गवर्नर-जनरल द्वारा मनोनीत किए जाते थे। 32 अशासकीय सदस्यांे में से 5 गवर्नर-जनरल द्वारा मनोनीत किए जाते थे और शेष 27 निर्वाचित किए जाते थे। 27 में से 13 तो साधारण निर्वाचक मंडल, 12 वर्ग निर्वाचक मंडल तथा 2 विशेष निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित होते थे। वर्ग निर्वाचक मंडल के 12 सदस्यों में 6 मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्र से एवं 6 भूपतियों के निर्वाचन क्षेत्र को दिए गए।
प्रांतीय विधान मंडल: प्रांतों में अशासकीय सदस्यों का बहुमत था। भिन्न-भिन्न प्रांतों की विधान परिषदों की बढ़ी हुई संख्या इस प्रकार थी -
(i) बर्मा16
(ii)पूर्वी बंगाल तथा असम41
(iii)बंगाल52
(iv)बम्बई47
(v) संयुक्त प्रांत47
(vi)पंजाब25
भारत सरकार अधिनियम, 1919
(माॅन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार)
(i) विषयों को अब केन्द्रीय सूची तथा प्रांतीय सूची में बांटा गया।
(ii) केन्द्र में उत्तरदायी सरकार का कोई तत्व नहीं।
(iii) वायसराय की 8 सदस्यों की कार्यकारी परिषद में भारतीय सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 3 कर दी गई।
(iv) गवर्नर-जनरल की शक्तियां बढ़ीं।
(v) गवर्नर-जनरल का वेतन बढ़ाकर 2,56,000 रुपये प्रति वर्ष कर दिया गया।
केन्द्रीय विधान मंडल: केन्द्रीय स्तर पर द्विसदनात्मक व्यवस्था लागू की गई। राज्य सभा (उच्च सदन) में सदस्यों की संख्या 60 थी और विधायिका सभा (निम्न सदन) में सदस्यों की संख्या 145 थी। राज्य सभा में 26 मनोनीत और 34 निर्वाचित सदस्यों की व्यवस्था थी। निर्वाचित होने वाले 37 सदस्यों में 20 हिन्दू, 10 मुस्लिम, 3 यूरोपीय और 1 सिक्ख समुदाय के सदस्य थे। विधायिका सभा के 145 सदस्यों में 41 मनोनीत और 104 निर्वाचित थे। निर्वाचित पदों में 52 हिन्दू, 30 मुस्लिम, 2 सिक्ख, 7 भूपति, 9 यूरोपीय और 4 व्यापार क्षेत्र से होते थे। राज्य सभा की कार्य अवधि 5 वर्ष थी, जबकि विधायिका सभा की कार्य अवधि 3 वर्ष थी। हालांकि केन्द्रीय विधान मंडल की शक्तियां बढ़ाई गई, परंतु अभी भी बजट के 75: भाग पर मत प्रकट नहीं किया जा सकता था।
प्रांतीय सरकार: द्वैध शासन प्रणाली का आरम्भ अर्थात् कार्यकारी परिषद और लोकप्रिय मंत्रियों की व्यवस्था। इन दोनों भागों का प्रधान गवर्नर ही होता था। प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया -
(i) आरक्षित विषय: वित्त, भूमिकर, न्याय, पुलिस, कानून और व्यवस्था, सिंचाई, समाचार पत्र इत्यादि।
(ii) हस्तांतरित विषयें: स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, सरकारी समितियां, निर्माण, धार्मिक मामले।
भारत सरकार अधिनियम, 1935
संघीय विधान मंडल: यह द्विसदनात्मक होना था जिसमें राज्य सभा के 260 सदस्यों में से 156 सदस्य भारतीय अंग्रेजी प्रांत से और 104 सदस्य भारतीय रियासतों के शासकों द्वारा मनोनीत होने थे। ब्रिटिश प्रांतों के 156 सदस्यों में से 150 निर्वाचित होते और 6 मनोनीत। दूसरे सदन यानि संघीय सभा में सदस्यों की संख्या 375 होनी थी जिसमें से 250 सदस्य भारतीय ब्रिटिश प्रांतों से निर्वाचित होते और शेष 125 सदस्य भारतीय रियासतों के राजाओं द्वारा मनोनीत।
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1. भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 क्या है? |
2. भारत सरकार अधिनियम, 1935 क्या है? |
3. भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 क्यों महत्वपूर्ण है? |
4. भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत क्या नियम लागू हुए? |
5. भारत सरकार अधिनियम, 1935 किस उद्देश्य के लिए बनाया गया था? |
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