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आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास - विविध तथ्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - UPSC PDF Download


आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास
 चाल्र्स ग्रांट (1792): ”भारत में आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता“ तथा अंग्रेजी शिक्षा की अग्रिम रूपरेखा का निर्माता।
मैकाॅले मिनट (2 फरवरी, 1835): अंग्रेजी शिक्षा का कट्टर समर्थन
चाल्र्स वुड का डिस्पैच (1854): ”भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा“। इसकी प्रमुख सिफारिशें हैं : ग्राम स्तर पर देशी भाषाओं (Vernacular)  के प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना, इस क्षेत्र में निजी प्रयत्नों के प्रोत्साहन के लिए सरकारी अनुदान; कम्पनी के पाँचों प्रांतों में एक-एक निदेशक के अधीन ‘लोक-शिक्षा विभाग’ की स्थापना; लन्दन की तरह कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में विश्वविद्यालय की स्थापना; व्यावसायिक और प्राविधिक विद्यालयों की स्थापना की आवश्यकता; अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना; कला, विज्ञान, दर्शन और साहित्य का प्रसार तथा महिला-शिक्षा का समर्थन।
     1855: लोक शिक्षा विभाग स्थापित।
     1858: कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित।
हन्टर शिक्षा आयोग (1882): डब्ल्यू. डब्ल्यू. हन्टर की अध्यक्षता में गठित आयोग की प्रमुख संस्तुतियां हैं -
     सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा के सुधार और विकास पर ध्यान दिया जाये, जो उपयोगी विषयों पर तथा स्थानीय भाषा में हो; माध्यमिक शिक्षा के दो खंड हों - (1) साहित्यक शिक्षा और (2) व्यावसायिक शिक्षा; निजी प्रयासों को अधिकतम प्रोत्साहन; नारी शिक्षा के पर्याप्त प्रबंध का निर्देश।
भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904: सितम्बर, 1904 में कर्जन द्वारा शिमला में उच्च-शिक्षा पर विचार-विमर्श करने के लिए सम्मेलन आयोजित, जिसमें 150 प्रस्ताव पारित; इसके तुरन्त बाद विश्वविद्यालयों की स्थिति का आंकलन करने के लिए ‘सर टाॅमस रैले’ की अध्यक्षता में आयोग गठित; आयोग की संस्तुतियों के आधार पर 1904 में ‘भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम’ पारित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप हुए परिवर्तन निम्नलिखित हैं : विश्वविद्यालयों को प्राध्यापकों ;च्तवमिेेवतेद्ध तथा व्याख्याताओं की नियुक्ति का निर्देश (अध्ययन तथा शोध के लिए); विश्वविद्यालयों के उप-सदस्यों ;थ्मससवूेद्ध की न्यूनतम संख्या 50 और अधिकतम 100, जो मात्र 6 वर्ष के लिए सरकार द्वारा मनोनीत; चयनित सदस्यों की संख्या कलकत्ता, बम्बई और मद्रास विश्वविद्यालयों में अधिकतम 20 और शेष में 15; विश्वविद्यालयो पर सरकारी नियंत्रण में वृद्धि के साथ ही सरकार को निषेधाधिकार ;टमजवद्ध; सिनेट द्वारा बनाये गये नियमों में सरकार द्वारा परिवर्तन और नये नियमों का सृजन; अशासकीय कालेजों से सम्बद्ध (Affiliated) बनाने की शर्तों पर सरकार का कड़ा नियन्त्रण, सिंडीकेट द्वारा कालेजों का निरीक्षण।

नेहरू रिपोर्ट की धाराएँ
 1928 ई. में नेहरू रिपोर्ट प्रकाशित हुई इसकी मुख्य धाराएँ थीं -
 1    ब्रिटेन के दूसरे देशों में, जैसा औपनिवेशिक स्वराज है, वैसा ही भारत में औपनिवेशिक स्वराज स्थापित किया जाए।
 2.    प्रांत में दोहरे शासन का अंत करके उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाएँ।
 3.    भारत में संघीय शासन की स्थापना की जाए, किन्तु केन्द्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान की जाएँ।
 4.    लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता तथा दलित वर्गों की रक्षा की जाए। स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किए जाएँ।
 5.    देश की एकता को सुदृढ़ आधार प्रदान करने के लिए प्रथम निर्वाचन प्रणाली के स्थान पर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली की सिफारिश की गई।
 6.    भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की जाए, जोकि अंतिम न्यायालय हो।
 7.    सिंध प्रांत को बम्बई से पृथक करने की सिफारिश की गई।
 8.    केन्द्रीय विधानमण्डल द्विसदनात्मक होना चाहिए।
 9.    नवीन केन्द्रीय सरकार को देशी रियासतों के ऊपर वे सभी अधिक प्राप्त हों, जो अभी ताज के अधीन केन्द्रीय सरकार को प्राप्त हैं।

  •  नेहरू रिपोर्ट को सर्वदलीय सम्मेलन में स्वीकार कर लिया गया, किन्तु मौलाना मौहम्मद अली तथा जिन्ना ने इसे अस्वीकार कर दिया। मुस्लिम लीग ने जिन्ना के 14 सिद्धान्त नेहरू रिपोर्ट के विकल्प के रूप में रखे, जिसे कांग्रेस ने स्वीकार नहीं किया। इस प्रकार मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस के मध्य कोई समझौता नहीं हो सका। चूँकि यह रिपोर्ट अत्यधिक प्रगतिवादी थी, अत: ब्रिटिश सरकार ने इसे ठुकरा दिया।

शिक्षा नीति पर 21 फरवरी, 1913 का सरकारी प्रस्ताव: प्रगतिशील रियासत बड़ौदा द्वारा 1906 में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा आरम्भ करने से सबक लेकर अंग्रेजी सरकार द्वारा 12 फरवरी, 1913 को निरक्षरता समाप्त करने की नीति स्वीकृत; प्रांतीय सरकारों को नि: शुल्क प्राथमिक शिक्षा देने का निर्देश; प्रत्येक प्रांत में कम से कम एक विश्वविद्यालय स्थापित करने का सुझाव।
     सैडलर विश्वविद्यालय आयोग, 1917.19: कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए डाॅ. एम. ई. सैडलर की अध्यक्षता में गठित आयोग, जिसमें दो भारतीय सदस्य डाॅ. सर आशुतोष मुकर्जी तथा डाॅ. जि याउद्दीन अहमद भी थे। आयोग ने 1904 के अधिनियम की कड़ी भत्र्सना करते हुए माध्यमिक शिक्षा के सुधार को आवश्यक बताया। आयोग की प्रमुख संस्तुतियाँ निम्नवत हैं : स्कूली शिक्षा 12 वर्ष की तथा छात्रों को उच्चतर माध्यमिक (Intermediate) परीक्षा के पश्चात् विश्वविद्यालय में भर्ती होने का विधान, न कि हाई स्कूल के बाद; सरकार द्वारा उच्चतर माध्यमिक के लिए अलग से महाविद्यालयों ;प्दजमतउमकपंजम ब्वससमहमेद्ध का गठन तथा उनके नियन्त्रण व प्रशासन के लिए एक ‘माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड’ के गठन का सुझाव; इन्टरमीडिएट (10़+2) के बाद तृ-वर्षीय (+३ ) स्नातक उपाधि; प्रतिभाशाली छात्रों के प्रावीण्य (Intermediate Colleges) पाठ्यक्रम, साधारण (Pass) से अलग; सम्बन्धित विश्वविद्यालयों (Affiliating) के स्थान पर ‘केन्द्रित एकाकी-स्वायत्त तथा आवासीय अध्यापन’ विश्वविद्यालयों की स्थापना; महिला शिक्षा का विकास करने के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय में विशेष बोर्ड; विश्वविद्यालयों को व्यावहारिक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में डिप्लोमा व डिग्री उपाधि का प्रबंध करने के साथ ही, व्यावसायिक कालेज खोलने का निर्देश; 1916 से 1921 के मध्य मैसूर, पटना, बनारस, अलीगढ़, ढाका, लखनऊ और उस्मानिया विश्वविद्यालय अस्तित्त्व में आये।
    द्वैध-शासन के अन्तर्गत शिक्षा: माॅन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919) के अन्तर्गत प्रांतों में शिक्षा विभाग को लोक-निर्वाचित मंत्री के हाथ में दे दिया गया।
     हाॅर्टोग समिति, 1929: भारतीय परिनियत आयोग द्वारा सर फिलिप हाॅर्टोग की अध्यक्षता में गठित इस सहायक आयोग की प्रमुख संस्तुतियाँ हैं : प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय महत्व पर बल; सुधार और एकीकरण नीति का सुझाव; ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों को वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल स्तर पर रोक कर, उनके कालेज प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाना और उन्हें व्यावसायिक शिक्षा देना।
    प्राथमिक (आधार) शिक्षा की ‘वर्धा योजना’: महात्मा गाँधी ने 1937 में ‘हरिजन’ में प्रकाशित लेख-शंृखला के माध्यम से एक शिक्षा योजना का प्रस्ताव किया, जिसे ‘प्राथमिक शिक्षा की वर्धा योजना’ के नाम से जाना गया। ज़ाकिर हुसैन समिति ने इस योजना का प्रारूप और पाठ्यक्रम तैयार किया; इस योजना का मूलभूत सिद्धान्त ‘हस्त उत्पादक कार्य’ था, जिसके अन्तर्गत विद्यार्थी को मातृभाषा द्वारा सात वर्ष तक अध्ययन करना था।
     सार्जेंट योजना (1944) : केन्द्रीय शिक्षा परामर्श बोर्ड द्वारा भारत सरकार के शिक्षा परामर्शदाता सर जाॅन सार्जेंट की सहायता से तैयार; इस योजना के अनुसार देश में प्रारम्भिक और माध्यमिक विद्यालय स्थापित करने थे, साथ ही 6 से 11 वर्ष के बच्चों को व्यापक, नि: शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था; 11 से 17 वर्ष के लिए 6 वर्ष तक और शिक्षा; उच्च विद्यालय दो प्रकार के होने थे - (1) ज्ञान विषयक और (2) प्राविधिक/ व्यावसायिक शिक्षा। योजना के अनुसार 40 वर्ष में शिक्षा पुनर्निर्माण कार्य पूरा होना था, जिसे ‘खेर समिति’ ने घटाकर 16 वर्ष कर दिया।
     राधाकृष्णन् आयोग (1948.49): नवम्बर, 1948 में डाॅ. राधाकृष्णन् की अध्यक्षता में सरकार द्वारा स्थापित इस आयोग ने अगस्त, 1949 में विश्वविद्यालय शिक्षा पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसकी मुख्य सिफारिशें थी; विश्वविद्यालय पूर्व 12 वर्ष की शिक्षा, परीक्षा दिनों के अतिरिक्त न्यूनतम 180 दिन पढ़ाई अनिवार्य; उच्च शिक्षा के तीन उद्देश्य: (1) सामान्य, (2)

स्मरणीय तथ्य

  • 1923में वायसराय लार्ड रीडिंग ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर नमक कर कानून पारित किया।
  • बंगाल का विभाजन 1911 में वायसराय लार्ड हार्डिंग के समय में समाप्त किया गया। इसी समय भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित की गयी।
  • 22 दिसम्बर, 1939 को मुस्लिम लीग ने ‘मुक्ति दिवस’ मनाया था।
  • 1943 में हुए मुस्लिम लीग के करांची अधिवेशन में ‘विभाजन करो और जाओ’ का (Devide and Quit) नारा दिया गया।
  • मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाया।
  • रास बिहारी बोस ने टोकियो में 23 जून, 1942 को ‘इण्डियन इंडिपेन्डेंस लीग’ की स्थापना की।
  • सुभाष चन्द्र बोस ने जुलाई, 1943 में ‘आजाद हिन्द फौज’ एवं ‘इण्डियन इंडिपेन्डेन्स लीग’ की बागडोर को संभाला।
  • सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में अस्थायी सरकार की स्थापना की।
  • 8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ।
  • 2 सितम्बर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
  • क्रिप्स प्रस्तावों को गाँधी जी ने ‘उत्तरतिथिय चेक’ (Post-dated Cheque) एवं जवाहर लाल नेहरू ने ‘ऐसे बैंक पर जो टूट रहा हो’ की संज्ञा दी।
  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारत को जून, 1948 तक स्वतन्त्र करने की घोषणा की।
  • 1947 के भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम द्वारा 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान का निर्माण हुआ।
  • 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतन्त्रता मिली।

 

स्मरणीय तथ्य

  • अप्रैल, 1942 में प्रकाशित ‘हरिजन’ पत्रिका के अंक में गाँधी जी ने पहली बार ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ शीर्षक से एक लेख लिखा।
  • जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में थी और प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली थे।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे. बी. कृपलानी थे।
  • 15 नवम्बर, 1930 को लंदन में प्रदर्शन के दौरान ट्रेफल्गर स्क्वायर पर तिरंगा झंडा फहराया गया।
  • जलियांवाला नरसंहार के विरोध में 1 जून, 1919 को रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा ‘सर’ उपाधि वापस की गयी।
  • 1 अगस्त, 1920 को गाँधीजी द्वारा ‘कैसर-ए-हिन्द’ मैडल ब्रिटिश सरकार को वापस किया गया।
  • 20 नवम्बर, 1921 को रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय का उद्घाटन हुआ।
  • जार्ज पंचम भारत की यात्रा पर आने वाले पहले ब्रिटिश सम्राट थे।
  • गाँधी जी ने 1919 में ‘यंग इण्डिया’ व ‘नवजीवन’ और 1933 में ‘हरिजन’ का प्रकाशन आरम्भ किया।
  • माउंबेटन योजना के तहत भारत का विभाजन और भारत-पाकिस्तान सीमा का निर्धारण सर सिरील रैडक्लीफ की अध्यक्षता में गठित बाउंडरी कमीशन की संस्तुतियों के आधार पर किया गया।

सरकारी तथा (3) व्यावसायिक शिक्षा; प्रशासनिक सेवाओं के लिए विश्वविद्यालय की स्नातक उपाधि आवश्यक नहीं; अध्यापकों के वेतन में वृद्धि तथा ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ बनाये जाने का परामर्श।

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FAQs on आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास - विविध तथ्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - UPSC

1. आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास क्या है?
उत्तर: आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास विभिन्न तत्वों के परिणामस्वरूप हुआ है। यह शिक्षा व्यवस्था में विस्तार, शिक्षा के उपलब्धता में वृद्धि, और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के माध्यम से हुआ है। इसके साथ ही, शिक्षा के नए तकनीकी और आधुनिक उपकरणों का उपयोग भी शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
2. आधुनिक भारत में शिक्षा का इतिहास क्या है?
उत्तर: आधुनिक भारत में शिक्षा का इतिहास विभिन्न कला-संस्कृति के युगों में विकसित हुआ है। इसकी शुरुआत वैदिक काल के दौरान हुई, जब गुरुकुल पद्धति का प्रचार होता था। इसके बाद भारतीय शिक्षा व्यवस्था में बौद्ध और जैन धर्म के अनुसार कक्षाओं के स्थान पर मठ-तोल और विहारों का प्रचार हुआ। उसके बाद मुग़ल काल में मदरसों का प्रचार हुआ और ब्रिटिश शासन के दौरान उच्च शिक्षा प्रणाली की स्थापना हुई।
3. आधुनिक भारत में शिक्षा के विकास में विभिन्न तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर: आधुनिक भारत में शिक्षा के विकास में विभिन्न तत्व शामिल हैं। इनमें से कुछ मुख्य तत्व शिक्षा व्यवस्था का विस्तार, शिक्षा के उपलब्धता में वृद्धि, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, और शिक्षा के नए तकनीकी और आधुनिक उपकरणों का उपयोग है। इन तत्वों में से एक के बिना भारतीय शिक्षा का पूर्णतः विकास सम्भव नहीं है।
4. आधुनिक भारत में शिक्षा के विकास में शिक्षा के नए तकनीकी और आधुनिक उपकरणों का क्या महत्व है?
उत्तर: आधुनिक भारत में शिक्षा के विकास में शिक्षा के नए तकनीकी और आधुनिक उपकरणों का महत्वपूर्ण योगदान है। इन उपकरणों के उपयोग से शिक्षा का विस्तार होता है और छात्रों को आधुनिक तकनीकों के साथ अवगत कराया जाता है। इसके साथ ही, इन उपकरणों के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होता है और छात्रों को अधिक सक्षम बनाने का मार्ग प्रदान किया जाता है।
5. आधुनिक भारत में शिक्षा के विकास के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार क्यों आवश्यक है?
उत्तर: आधुनिक भारत में शिक्षा के विकास के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है क्योंकि शिक्षा की गुणवत्ता सीमित होने के कारण छात्रों को अधिकांश ज्ञान और कौशल प्राप्त नहीं हो पाता है। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने से छात्रों को उच्चतर स्तर की शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा और उन्हें समाज में उच्च पद प्राप्त करने के लिए अधिक सं
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