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जहांगीर और शाहजहां - मुगल साम्राज्य, इतिहास, युपीएससी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

जहांगीर
¯ 1605 ई. में अकबर की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र सलीम आगरे की गद्दी पर बैठा और नूरूद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी की उपाधि धारण की। 
¯ प्रारम्भ में जहांगीर को अपने ज्येष्ठ पुत्र खुसरू के विद्रोह का सामना करना पड़ा। 
¯ खुसरू के प्रमुख समर्थक थे उसके मामा मानसिंह तथा उसके ससुर खाने-आजम अजीज कोका। 
¯ लेकिन जालंधर के निकट खुसरू की सेना शाही सेना द्वारा आसानी से पराजित कर दी गई। खुसरू को बंदी बना लिया गया और कारावास में डाल दिया गया, जहां उसकी मृत्यु 1622 ई. में हो गई। 
¯ खुसरू को शरण देने के अपराध में सिखों के पंचम गुरू अर्जुन देव को मृत्यु-दण्ड दिया गया तथा बादशाह ने उसकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली। 
¯ सैनिक और व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कन्धार को उसने 1607 ई. में ईरान से छीन लिया।
¯ मई 1611 में जहांगीर ने मेहरून्निसा नामक विधवा से विवाह करके उसे नूर-महल (राजमहल की रोशनी) की उपाधि दी, जिसे शीघ्र बदल कर नूरजहां (संसार की रोशनी) कर दिया। 
¯ नूरजहां प्रमुख बेगम बन गई। उसने जहांगीर के जीवन तथा राज्य-काल को बहुत प्रभावित किया। 
¯ वह एक पारसी मिर्जा गयास बेग की पुत्री थी। 
¯ बंगाल के सूबेदार इस्लाम खां के समय वहां के स्थानीय अफगान सरदारों ने उसमान खां के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। 

मुगल फौज ने 1612 ई. में अफगानों को परास्त कर दिया। घायल होने से उसमान की मृत्यु हो गई। 
¯ जहांगीर के शासन काल की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी सफलता मेवाड़ के राजपूतों पर उसकी विजय थी। 
¯ 1615 ई. में जहांगीर ने मेवाड़ के राणा अमर सिंह से एक सन्धि द्वारा मुगल आधिपत्य स्वीकार करवा लिया। 
¯ स्वयं अमर सिंह को राजदरबार में व्यक्तिगत उपस्थिति से मुक्त कर दिया गया तथा उसके परिवार की कोई भी राजकुमारी कभी शाही अन्तःपुर में नहीं ले जायी गयी।
¯  औरंगजेब की नीति के कारण राणा राज सिंह के नाराज होने के पहले तक मेवाड़ मुगल साम्राज्य के प्रति निष्ठावान बना रहा। 
¯ जहांगीर के शासन काल की एक और उल्लेखनीय सफलता थी - 1620 ई. में उत्तर-पूर्वी पंजाब की पहाड़ियों में कांगड़ा के प्रबल दुर्ग पर अधिकार।
¯ जहांगीर के शासन-काल में मुगलांे और अहमदनगर के बीच अनियमित युद्ध चलता रहा। 
¯ उस समय अहमदनगर राज्य पर अबिसीनियम मंत्री मलिक अम्बर का नियंत्रण था। 
¯ 1616 ई. में मुगलों को केवल आंशिक सफलता मिली, जब शाहजादा खुर्रम ने अहमदनगर तथा कुछ अन्य गढ़ों को अधिकार में कर लिया। इस विजय के लिए खुर्रम को उसके पिता जहांगीर ने शाहजहां (संसार का राजा) की उपाधि देकर पुरस्कृत किया। 
¯ 1623 ई. में हुई संधि के कारण मुगल और बीजापुर के शासक एक दूसरे के करीब हुए। 
¯ मलिक अम्बर ने गोलकुण्डा के साथ मिलकर बीजापुर पर आक्रमण किया। 
¯ मुगलों की सेना ने बीजापुर का साथ दिया लेकिन शाहजहां, जिसने जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था, मलिक अम्बर से मिल गया। 
¯ मलिक अम्बर की मृत्यु 1626 ई. में हो गई। जहांगीर निजामशाही क्षेत्र को जीतने में असफल रहा।
¯ साम्राज्य की आन्तरिक अव्यवस्था का लाभ उठाते हुए शाह अब्बास ने 1621 में कंधार पर घेरा डाल दिया और अन्त में 1622 ई. में इस पर अधिकार कर लिया। 
¯ 1627 ई. में जहांगीर की मृत्यु हो गई। 
¯ रावी के तट पर शाहदरा में उसका शरीर एक सुन्दर कब्र में गाड़ दिया गया।

शाहजहां
¯ 1627 ई. में जहांगीर की मृत्यु के बाद शहरयार को राजगद्दी पर बैठाने के नूरजहां के प्रयास को शाहजहां की पत्नी मुमताज महल के पिता आसफ खान ने नाकामयाब कर दिया। 
¯ शाहजहां आगरा पहुंचा और 1628 ई. में उसका राज्यारोहण हुआ। 
¯ नूरजहां को लाहौर भेज दिया गया जहां 1645 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
¯ 1630 ई. में मुगलों को अहमदनगर के परेन्दा नामक प्रबल दुर्ग को जीतने में सफलता नहीं मिली। 
¯ 1631 ई. में मुगलों ने फतह खां को धन का लालच देकर दौलताबाद के किले को हथिया लिया। 
¯ 1633 ई. में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया तथा नाममात्र के शासक हुसैन शाह को जीवन भर के लिए ग्वालियर के किले में कारावास में डाल दिया गया। 
¯ इस प्रकार निजामशाही वंश का अंत हुआ। 
¯ 1635 ई. में शिवाजी के पिता शाहजी ने इसे पुनर्जीवित करने का असफल प्रयास किया। 
¯ दक्कन के राज्यों पर आक्रमण करने के लिए शाहजहां अपनी सेना के साथ 1636 ई. में दौलताबाद पहुंचा। 
¯ इससे डरकर गोलकुंडा के सुल्तान अब्दुल्ला शाह ने शाहजहां की सारी मांगों को मान लिया और उसका आधिपत्य स्वीकार कर लिया। 
¯ 1636 ई. में हुई संधि के तहत आदिल शाह ने मुगल बादशाह का आधिपत्य मान लिया और उसे कर देना कबूल कर लिया। 
¯ शाहजहां ने अपने तृतीय पुत्र औरंगजेब को दक्कन का मुगल राजप्रतिनिधि नियुक्त किया। परन्तु 1644 ई. में औरंगजेब ने त्यागपत्र दे दिया। 
¯ पुनः 1653 ई. में दूसरी बार उसे राजप्रतिनिधि बनाकर दक्कन भेजा गया।
¯ ईरान के शाह और कन्धार के ईरानी गवर्नर अली मरदान खां में अनबन हो गई। शाहजहां ने उसके साथ सांठ-गांठ कर 1638 ई. में कन्धार पर अधिकार कर लिया। 
¯ ईरानियों ने 1649 ई. में कन्धार पर हमला कर उसे अपने कब्जे में कर लिया। 
¯ शाहजहां ने इसे पुनः वापस लेने के लिए तीन अभियान भेजे परन्तु इन सब में वह बुरी तरह असफल रहा।
¯ राजकुमार मुराद और अली मरदान खां के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना बलख और बदखशां को जीतने के लिए भेजी गई। मुगल सेनाओं के पहुंचने पर बलख का शासक नजर मुहम्मद ईरान की ओर भाग गया और इस प्रकार 1646 ई. में यह प्रदेश आसानी से मुगलों के अधिकार में आ गया। 
¯ 1647 ई. में औरंगजेब के नेतृत्व में एक अन्य सेना बलख भेजनी पड़ी। 
¯ एक संधि के तहत 1647 ई. में नजर मुहम्मद के पोतों को ही बलख और बदखशां के प्रदेश सौंपकर मुगल सेना वापस लौट आई।

औरंगजेब
¯ 1657 ई. में शाहजहां बीमार पड़ा। 
¯ सबसे पहले शुजा ने विद्रोह का बिगुल बजाया। 
¯ मुगल सेना के साथ शुजा की सेना की भिड़ंत बहादुरगढ़ नामक स्थान पर हुई। इसमें शुजा की हार हुई और वह वापस बंगाल की ओर भाग गया। 
¯ आरंगजेब ने उसके साथ गठजोड़ कर लिया। दियालपुर के स्थान पर मुराद भी उसके साथ आ मिला। 
¯ धरमत नामक स्थान पर तीनों के संयुक्त सेना का मुकाबला शाही सेना से हुआ जिसमें शाही सेना की हार हुई। 
¯ दारा स्वयं औरंगजेब का मुकाबला करने के लिए सैनिकों के साथ आगे बढ़ा। दोनों सेनाओं की सामूगढ़ के स्थान पर मई, 1658 ई. में मुठभेड़ हुई। दारा की पराजय हुई परन्तु वह भागने में सफल हो गया। 
¯ इसके पश्चात् औरंगजेब ने बिना रोक-टोक आगरा पर अधिकार कर लिया और शाहजहां को बन्दी बना लिया। 
¯ 1666 ई. में आगरा के किले में शाहजहां की मृत्यु हुई।
¯ औरंगजेब ने मुराद को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर दिया। 1661 ई. में उसका वध कर दिया गया। 
¯ इसके पश्चात् औरंगजेब और शुजा की सेनाओं का खजवा नामक स्थान पर भयानक युद्ध हुआ। शुजा की हार हुई और वह अराकान की ओर भाग गया। वहां पर वह 1660 ई. में मार डाला गया। 
¯ देवराई नामक स्थान पर दारा और औरंगजेब की सेनाओं में भिड़ंत हुआ। दारा की पराजय हुई। वहां से भागकर उसने जीवन खां नामक अफगान सरदार के यहां शरण ली जिसने उसे औरंगजेब के हवाले कर दिया। 
¯ 1662 ई. में दारा का वध कर दिया गया।
¯ दक्षिण भारत निवास के दौरान फरवरी 1707 ई. में अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु हो गई।
¯ मारवाड़ के राजा जसवन्त सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसके राज्य को हड़पने तथा उसके पुत्र को पकड़ने का प्रयत्न करने से उसने स्वामिभक्त तथा शूरवीर राजपूतों को अपना विरोधी बना लिया था। 
¯ 1675 ई. में औरंगजेब ने सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर की हत्या करवा दी जिससे सिक्ख उसके विरुद्ध हो गए। जब शिवाजी (1666 ई.) औरंगजेब के दरबार में आए थे, तब इस मौके का फायदा उठाकर मराठों को अपना मित्र बनाने की बजाए उसने शिवाजी को कैद कर लिया। 
¯ 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को विजय करने में औरंगजेब सफल रहा। 
¯ 1680 में शिवाजी की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र सम्भाजी भी 1689 ई. में मुगल सेनाओं द्वारा पकड़ लिया गया और बाद में उसका वध कर दिया गया। 

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FAQs on जहांगीर और शाहजहां - मुगल साम्राज्य, इतिहास, युपीएससी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. जहांगीर और शाहजहां कौन थे और मुगल साम्राज्य के किस युग में राज्य कर रहे थे?
उत्तर: जहांगीर और शाहजहां मुगल साम्राज्य के बादशाह थे। जहांगीर ने 1605 ईस्वी में राजघराने की कुर्सी संभाली थी, जबकि शाहजहां ने 1628 ईस्वी में बादशाही संभाली थी।
2. जहांगीर और शाहजहां के शासनकाल में मुगल साम्राज्य की क्या विशेषताएं थीं?
उत्तर: जहांगीर और शाहजहां के शासनकाल में मुगल साम्राज्य विविधताओं, विज्ञान और कला के उदारीकरण के लिए प्रसिद्ध था। उनके शासनकाल में विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई और धर्मिक सहयोग का महत्वपूर्ण स्तर बना रहा। उन्होंने आधुनिक बाज़ारों का निर्माण किया और साम्राज्य में अत्याधुनिक ढंग से पाठशालाओं का प्रचार किया।
3. जहांगीर और शाहजहां के शासनकाल में कौन-कौन सी महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं?
उत्तर: जहांगीर के शासनकाल में उपन्यास लेखक अबुल फ़ज़ल ने अकबरनामा लिखा और उन्होंने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। शाहजहां के शासनकाल में ताज महल का निर्माण हुआ, जो उनकी पत्नी मुमताज़ की याद में बनाया गया था।
4. जहांगीर और शाहजहां के शासनकाल में आर्थिक विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर: जहांगीर और शाहजहां के शासनकाल में आर्थिक विकास मुगल साम्राज्य के लिए महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने व्यापार को मजबूती दी और बाज़ारों का विस्तार किया। विदेशी व्यापार ने वित्तीय संस्थानों को फायदा पहुंचाया और धन के साधारणता से उपयोग में आया।
5. जहांगीर और शाहजहां की शासनकाल में कला और साहित्य का क्या महत्व था?
उत्तर: जहांगीर और शाहजहां की शासनकाल में कला और साहित्य को मुगल साम्राज्य की महत्वपूर्ण विशेषता माना जाता था। उन्होंने अपने दरबारों में कला के प्रदर्शन का आयोजन किया और विदेशी कलाकारों को प्रोत्साहित किया। साहित्य में उन्होंने विभिन्न भाषाओं में ग्रंथों का अनुवाद करवाया और विदेशी लेखकों को अपने दरबार में बुलवाया।
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