पटना कलम शैली की प्रमुख विशेषताओं को बताएं।?
Patna Kalam is a style of Indian miniature painting that originated in the city of Patna in Bihar, India. This style is known for its unique features and artistic techniques that make it stand out from other schools of miniature painting.
Features of Patna Kalam:
1. Bright and vibrant colors: Patna Kalam paintings are known for their bright and vibrant colors. The artists use natural pigments to create colors such as red, green, blue, and yellow that are eye-catching and lively.
2. Detailed brushwork: The artists of Patna Kalam are known for their detailed brushwork. They use fine brushes to create intricate details in the painting, especially in the clothing and jewelry of the figures depicted in the paintings.
3. Use of gold and silver: Patna Kalam paintings often feature the use of gold and silver leaf to add a touch of luxury and opulence to the artwork.
4. Miniature size: Patna Kalam paintings are typically small in size, with most measuring just a few inches in height and width. This makes them easy to transport and display, and also adds to their charm and delicacy.
5. Depiction of everyday life: Patna Kalam paintings often depict scenes from everyday life, such as market scenes, festivals, and social gatherings. This gives them a relatable quality that makes them appealing to a wide range of viewers.
6. Use of natural elements: The artists of Patna Kalam often incorporate natural elements like trees, flowers, and animals into their paintings. This gives them a sense of harmony with nature and adds to their overall aesthetic appeal.
In conclusion, Patna Kalam is a unique style of Indian miniature painting that is known for its vibrant colors, intricate brushwork, and depiction of everyday life. Its use of gold and silver leaf, small size, and incorporation of natural elements make it a highly sought-after art form today.
पटना कलम शैली की प्रमुख विशेषताओं को बताएं।?
बिहार की धरती चित्रकला व कलाकारी में सदियों से धनी रहा है। इसलिए बिहार को समय-समय पर परिवर्तनों का प्रदेश भी कहा गया है। यहां पर कला क्षेत्र में नया उन्मेष और विभूतियों को सजाने वाले कलाकारों का उद्भव होता देखा गया है, जिसने कला क्षेत्र में उर्वर भूमि को तैयार करने में कोई कमी नहीं छोड़ा है।
कला को जीवित तभी बनाए रखा जा सकता है, जब वह क्षितिज की मिट्टी और आम लोगों की संस्कृति से जुड़ी हो। उन्हीं में से एक है पटना कलम। जो बिहार की भोजपुरी मिट्टी में सज-संवर कर कला की बेहतरीन रूप आई है। उसे अब हम लोग पटना शैली या पटना कलम के नाम से जानते हैं।
पटना कलम का इतिहास
पटना कलम का प्रारंभिक चित्रकार मुगल शासन काल से माना जाता है। लेकिन जैसे ही मुगल शासन काल का अंत होने लगा, तो चित्रकारों के कई दल दिल्ली शहर छोड़कर आजीविका की खोज में देश के विभिन्न शहरों में निकल पड़े। क्योंकि दिल्ली में उनके सम्मान और बेहतरीन चित्र शैली पर पुरस्कृत करने वाला कोई नहीं बचा था।
उनमें से कुछ चित्रकार मुर्शिदाबाद चले गए। जहां से बाद में अधिकतम कलाकार सन 1760 के आसपास में मच्छरहट्टा (पटना सिटी) चौक, दीवार और मोहल्ला में आ बसे। तब पटना आर्थिक दृष्टिकोण से संपन्न शहर हुआ करता था। यहां भी राजे रजवाड़े चित्र शैली के शौकीन हुआ करते थे, जिनके द्वारा उन चित्रकारों को सम्मानित भी किया जाने लगा और चित्र शैली में विस्तार भी देखा गया।
आम जन-जीवन से जुड़ी चित्र शैली है, पटना कलम
भारतीय चित्रकारी शैली में पटना कलम एक ऐसी कलाकारी है जो सीधा-सीधा आम जन-जीवन से जुड़ी हुई है। इस शैली के चित्रों की खासियत यह थी कि यह बिना किसी विषय वस्तु के रेखांकित किए जाते थे। ये मुख्यत: रोज़मर्रा के जनजीवन पर आधारित हुआ करते थे। जिसे प्राकृतिक रंगों से कागज़ पर बनाया जाता था। पटना कलम के चित्र शैली में समकालीन जन-जीवन का बड़ा ही सजीव और प्रभावशाली चित्रण किया गया है।
पटना चित्र शैली के विकास के बाद कुछ समय के लिए निशा काल भी आया। जब फोटोग्राफी का आविष्कार हुआ था। तब पटना कलम पर प्रतिकूल असर पड़ने लगा था। सन 1760 से 1947 तक पटना कलम का उत्कर्ष काल माना जाता है तथा सन 1997 के बाद पटना कलम पूरी तरह विलुप्त सा हो गया। कला के विद्वानों ने ईश्वरी प्रसाद वर्मा को पटना कलम का अंतिम चित्रकार माना है।
पटना कलम शैली की विशेषताएँ
पटना कलम शैली की विशेषताओं पर नीचे चर्चा की गई हैं:
1. इस चित्रशैली में व्यक्ति चित्रों की प्रधानता होती है तथा इस शैली में उकेरे गये चित्र आम जीवन की त्रासदियों को दर्शाया जाता है।
2. अधिकांश चित्रकारी लघु श्रेणी की होती है और अधिकतर कागज पर बनाई जाती है। बाद में इस तरह की चित्रकारी हाथी के दांत पर भी किया जाने लगा है।
3. दैनिक जीवन पर चित्रकारी इस शैली में बहुतायत में हैं।
4.चित्रकारी का विषय दैनिक मजदूर, मछली बेचने वाले, टोकरी बनाने वाले पर आधारित होती है।
5. चित्रकला की इस शैली में, देशी पौधों, छाल, फूलों और धातुओं से बने रंगों का इस्तेमाल होता है। अधिकांशत: गहरे भूरे, गहरे लाल, हल्का पीला और गहरे नीले रंगों का प्रयोग किया गया है।
6. इस शैली के प्रमुख चित्रकार सेवक राम, हुलास लाल, जयराम, शिवदयाल लाल आदि हैं। चूंकि इस शैली के अधिकांश चित्रकार पुरुष हैं, इसलिए इसे ‘पुरुषों की चित्रशैली’ भी कहा जाता है।
7. इस शैली में चित्र की आकृति को रेखांकित करने के लिए पेंसिल का उपयोग किए बिना ब्रश से सीधे चित्रकारी किया जाता है। इस तकनीक को आमतौर पर 'कजली सिहाई' के नाम से जाना जाता है।
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