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International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA का एक वर्ष

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के कार्यान्वयन का एक वर्ष पूरा हो गया है। 

व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA)

  • यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें सेवाओं एवं निवेश के संबंध में व्यापार और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों पर बातचीत करना शामिल है।
  • यह व्यापार सुविधा और सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे क्षेत्रों पर बातचीत किये जाने पर भी विचार करता है।
  • साझेदारी या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।
  • CEPA व्यापार के नियामक पहलू को भी देखता है और नियामक मुद्दों को कवर करने वाले एक समझौते को शामिल करता है।

भारत और संयुक्त अरब अमीरात CEPA

  • परिचय:
    • भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA दोनों देशों के बीच एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है। इसमें वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और आर्थिक सहयोग के अन्य क्षेत्रों में व्यापार शामिल है।
    • CEPA 1 मई, 2022 को लागू हुआ और उम्मीद है कि पाँच वर्षों के भीतर वस्तुओं के मामले में द्विपक्षीय व्यापार का कुल मूल्य 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक और सेवाओं में व्यापार 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा।
    • CEPA पिछले एक दशक में किसी भी देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला सुदृढ़ और पूर्ण FTA है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • व्यापार में सम्मिलित वस्तु:
      • CEPA भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच किये जाने वाले व्यापार से 80 प्रतिशत अधिक उत्पादों के लिये अधिमान्य बाज़ार पहुँच प्रदान करता है।
      • भारत को विशेष रूप से रत्न और आभूषण, कपड़ा, चमड़ा, जूते, खेल का सामान, प्लास्टिक, फर्नीचर, कृषि तथा लकड़ी के उत्पादों, इंजीनियरिंग उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों तथा ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अरब अमीरात को अपने निर्यात पर टैरिफ में कमी करने या उन्मूलन से लाभ होगा।
  • व्यापार में सम्मिलित सेवाएँ:
    • CEPA में 11 व्यापक सेवा क्षेत्र और 100 से अधिक उप-क्षेत्र शामिल हैं, जैसे- व्यवसाय सेवाएँ, संचार सेवाएँ, निर्माण और इंजीनियरिंग संबंधित सेवाएँ, वितरण सेवाएँ, शैक्षिक सेवाएँ, पर्यावरण सेवाएँ, वित्तीय सेवाएँ, स्वास्थ्य संबंधी और सामाजिक सेवाएँ, पर्यटन एवं यात्रा संबंधित सेवाएँ, मनोरंजक सांस्कृतिक तथा खेल सेवाएँ और परिवहन सेवाएँ।
    • दोनों देशों ने इन क्षेत्रों में एक-दूसरे के सेवा प्रदाताओं के लिये बाज़ार तक बेहतर पहुँच की पेशकश की है।
  • निवेश:
    • CEPA भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच सीमा पार निवेश के लिये एक उदार और गैर-भेदभावपूर्ण व्यवस्था प्रदान करता है।
    • इसमें विवाद निपटान और निवेश सुविधा पर सहयोग के प्रावधान भी शामिल हैं।
  • सहयोग के कुछ अन्य क्षेत्र:
    • निवेश का संरक्षण और संवर्द्धन
    • व्यापार तकनीकी बाधाएँ (TBT)
    • स्वच्छता और फाइटोसैनेटिक (SPS) उपाय
    • विवाद निपटान
    • पर्यावरणीय आंदोलन
    • दवा उत्पाद
    • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)
    • डिजिटल व्यापार

भारत-संयुक्त अरब अमीरात व्यापार संबंध

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): May 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

  • व्यापार :
    • संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार (अमेरिका, चीन के बाद) है। वर्ष 2021 में दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार कारोबार 68.4 अरब अमेरिकी डॉलर का था।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
    • संयुक्त अरब अमीरात अप्रैल 2000 से सितंबर 2022 तक 15,179 मिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी FDI प्रवाह के साथ भारत में 7वाँ सबसे बड़ा निवेशक है।
  • निर्यात:
    • संयुक्त अरब अमीरात को होने वाले प्रमुख भारतीय निर्यात में पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न और आभूषण, मशीनरी एवं उपकरण, रसायन, लोहा तथा इस्पात, कपड़ा व वस्त्र, अनाज, मांस और मांस उत्पाद आदि शामिल हैं।
  • आयात:
    • संयुक्त अरब अमीरात से होने वाले प्रमुख भारतीय आयात में कच्चा तेल, सोना, मोती और कीमती पत्थर, धातु अयस्क एवं धातु स्क्रैप, रसायन, विद्युत मशीनरी आदि शामिल हैं।
  • व्यापार संबंधों पर भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA का प्रभाव:
    • द्विपक्षीय व्यापार:
      • वित्त वर्ष 2022-2023 में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच वाणिज्य में रिकॉर्ड वृद्धि हासिल की गई है, यह वित्त वर्ष 2022 के 72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 84.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो कि 16% की वृद्धि है।
    • संयुक्त अरब अमीरात को भारत से निर्यात:
      • भारतीय निर्यात 28 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 31.3 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया (उपर्युक्त समान अवधि में); प्रतिशत के संदर्भ में 11.8%की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि।
      • इसी अवधि के दौरान भारत के वैश्विक निर्यात में 5.3% की वृद्धि हुई थी, यदि संयुक्त अरब अमीरात को छोड़ दिया जाए तो भारत का वैश्विक निर्यात 4.8% की दर से बढ़ा है।
    • वे क्षेत्र जिनमें निर्यात में काफी वृद्धि हुई, इस प्रकार हैं:
      • खनिज ईंधन
      • विद्युत मशीनरी (विशेष रूप से टेलीफोन उपकरण)
      • रत्न और आभूषण
      • ऑटोमोबाइल (परिवहन वाहन)
      • आवश्यक तेल/इत्र/प्रसाधन सामग्री (सौंदर्य/त्वचा देखभाल उत्पाद)
      • अन्य मशीनरी
      • अनाज (चावल)
      • कॉफी/चाय/मसाले
      • रासायनिक उत्पाद

अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट (International Religious Freedom Report)

चर्चा में क्यों?

  • धर्म हर व्यक्ति का निजी या Personal मामला होता है, भारत जैसे राज्यों में धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार लोकतन्त्र को और मजबूत बनाता है, भारत में Secularism यानि पंतनिरपेक्षता यह बताती है कि राज्य का officially कोई धर्म नहीं होता और हर धर्म को बराबर सम्मान एवं स्वतन्त्रता दी जायेगी।
  • हालांकि न सिर्फ भारत बल्कि हाल के वर्षों में धार्मिक असहिष्णुता यानि Religious Intolerance के मामले विश्व के कई देशों में उभर कर सामने आये हैं।
  • Religious Intolerance का मतलब यह है कि जहाँ एक धर्म के बहुमत वाले लोग दूसरे धर्म के अल्पमत वाले लोगों पर अपना अधिपत्य या Dominance थोपना चाहते हैं।
    • इस Dominance की वजह से ही विश्व भर में आज धार्मिक हिंसाये चरम पर हो रही है। Terrorism जैसी घटनायें भी इसी Religious Intolerance का ही नतीजा है।
    • इसी परिप्रेक्ष्य में अपने DNS के आज के episode में हम जानेंगे - International Religious Freedom Report 2019 के बारे में।
    • ये Report United states commission द्वारा प्रतिवर्ष की जाती है।
    • US Commission on International Religious Freedom (USCIRF) या अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतन्त्रता पर बना संयुक्त राष्ट्र आयोग, अंर्तराष्ट्रीय धार्मिक स्वतन्त्रता अधिनियम यानि International Religious Freedom Act 1998 द्वारा बनाया गया एक गैर- राजनैतिक, स्वतन्त्र, स्वायत्त संघ-सरकारी आयोग है।

आइये जानते है इस रिपोर्ट के बारे में

  • ये रिपोर्ट विश्व भर में Different Parameters पर Religious freedom के बारे में जानकारी एकत्र करने के बाद बनायी जाती है।
  • इस रिपोर्ट के द्वारा ये अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी देश में अपने Belief और faith के According अपने धर्म को मानने की कितनी आजादी है।
  • USCIRF ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दुनिया भर में धार्मिक स्वतन्त्रता के लिए उत्पन्न खतरों का वर्णन किया है।
  • इसके साथ ही USCIRF ने, उन देशों को जो लगातार व्यवस्थित एवं संगठित रूप से धार्मिक स्वतन्त्रता का उल्लंघन कर रहे है उन्हें "Countries of Particular Concern" (CPCs) की श्रेणी में डाला है।
  • USCIRF ने राज्य विभाग को यह भी सुझाव दिया है कि वे गैर-राज्यीय कर्ता या None-State Actors जो धार्मिक स्वतन्त्रता का लगातार Violation कर रहे हैं उन्हें- "Entities of Particular Concern (EPCs)" की श्रेणी में रखा जायेगा।
  • इस वर्ष USCIRF ने 16 देशों को CPC और 5 देशों को EPC Category में रखा है।
  • इसके अलावा USCIRF ने 12 देशों को अपनी Tier-2 List में डाला है, जिसका अर्थ है, कि ये देश एक या दो मानकों के उल्लंघन के दोषी पाये गये है।

आइये एक नजर डालते है इन Parameters पर

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ये तीन Parameters Decide करते है कि किसी देश को किस category में रखा जाये।

आइये अब जानते है कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों को

  • CPC के लिए नामिक इन 16 देशों में-
    • Burma, China, Iran, North-Korea, Pakistan, Saudi Arabia, Eritrea, Sudan, Tajikistan, Turkmenistan देशों को राज्य विभाग द्वारा CPC के लिए नामित किया गया है।
    • 6 अन्य राज्य जिन्हें राज्य विभाग ने नामित नहीं किया है वह हैं- Central African Republic, Nigeria, Russia, Syria, Uzbekistan vkSj Vietnam.
    • Tier-2 में आने वाले 12 देश- Afghanistan, Azerbaijan, Bahrain, Cuba, Egypt, India, Indonesia, Iraq, Kazakhstan, Laos, Malaysia और Turkey हैं।
    • EPC के लिए नामित देशों में- Islamic state of Iraq and Syria, the Taliban in Afghanistan, Al- Shadab in Somalia Houthis in Yemen and Hayat Tahrir al-sham in Syria हैं।
  • इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए आइये अब इस रिपोर्ट में भारत सम्बन्धी key findings को जानने की कोशिश करते हैं-
    • भारत में 2018 में धार्मिक स्वतन्त्रता की स्थिति में overall गिरावट दर्ज की गई है।
    • भारत अब भी Tier-2 श्रेणी में बना हुआ है जो एक चिंता का विषय है।
    • एक तरफ तो भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता में गिरावट देखी जा रही है वहीं दूसरी ओर धर्म को और अधिक संरक्षणवाद और राजनीति से जोड़ा जा रहा है।
    • भारत एक Secular देश है, वर्तमान में धर्म और राज्य को अलग करना और भी मुश्किल होता जा रहा है।
    • वोट बैंक की Politics की वजह से एक धर्म दूसरे धर्म पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
    • पिछले एक दशकों में देश के अन्दर minorities की conditions में एक गिरावट देखी जा रही है।
  • इसका प्रत्यक्ष कारण extremist groups का राजनैतिक संरक्षण, Anti-Conversion Law's, Cor-protection group, Urban Naxals, Mob-lynching एवं NRC जैसे मुद्दों से उठने वाला Intolerance रहा है।
  • अंत में यह कहा जा सकता है कि भारत जहाँ धार्मिक स्वतन्त्रता संविधान के मौलिक अधिकारों द्वारा प्रदत्त है, वहाँ राजनीति के नाम पर धर्म को बाँटना कतई जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है।
  • भारत की पहचान इसकी विविधता में एकता है और गाँधी जी के ‘‘वसुधेव कुटुम्बकम’’ की नीति पर चलकर इस एकता को बनाये रखा जा सकता है।

CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार

चर्चा में क्यों? 

  • हाल ही में चीन और पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में विदेश मंत्री-स्तरीय पाकिस्तान-चीन सामरिक वार्ता के चौथे दौर का आयोजन किया, जिसमें दोनों चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमत हुए।
    • साथ ही 5वीं चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान त्रिपक्षीय विदेश मंत्रियों की वार्ता भी आयोजित की गई जिसमें आतंकवाद का मुकाबला करने और विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई।
    • वर्ष 2021 में चीन ने अफगानिस्तान में CPEC के विस्तार हेतु पेशावर-काबुल मोटरमार्ग के निर्माण का प्रस्ताव रखा था।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा

  • CPEC चीन के उत्तर-पश्चिम झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र और पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का 3,000 किलोमीटर लंबा मार्ग है।
  • यह पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक एवं अन्य बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे तथा पाइपलाइनों के नेटवर्क के साथ पूरे पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
  • यह चीन के लिये ग्वादर बंदरगाह से मध्य-पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे चीन को हिंद महासागर तक पहुँचने में मदद मिलेगी तथा बदले में चीन पाकिस्तान के ऊर्जा संकट को दूर करने और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये पाकिस्तान में विकास परियोजनाओं का समर्थन करेगा।
  • CPEC बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक हिस्सा है।
    • वर्ष 2013 में लॉन्च किये गए BRI का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।

पाकिस्तान और चीन दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण है अफगानिस्तान

  • दुर्लभ खनिजों तक पहुँच: अफगानिस्तान में बड़ी मात्रा में दुर्लभ पृथ्वी खनिज (1.4 मिलियन टन) हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सैन्य उपकरण बनाने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। हालाँकि जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, देश आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहा है क्योंकि विदेशी सहायता वापस ले ली गई है।
  • ऊर्जा और अन्य संसाधन: CPEC में अफगान भागीदारी इस्लामाबाद और बीजिंग को ऊर्जा एवं अन्य संसाधनों का दोहन करने की अनुमति देगी, साथ ही ताँबा, सोना, यूरेनियम तथा लिथियम से लेकर अफगानिस्तान के अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधनों की विशाल संपत्ति तक पहुँच प्राप्त होगी, जो विभिन्न उन्नत इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों व उच्च तकनीक मिसाइल मार्गदर्शन प्रणालियों हेतु महत्त्वपूर्ण घटक हैं।

CPEC का अफगानिस्तान में विस्तार से भारत पर प्रभाव

  • मध्य एशिया में भारत के प्रभाव को सीमित करना:
    • CPEC में अफगानिस्तान की भागीदारी ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत के निवेश को सीमित कर सकती है। भारत की योजना ईरान और अफगानिस्तान एवं मध्य एशियाई देशों के बीच महत्त्वपूर्ण व्यापार अवसरों के प्रवेश द्वार के रूप में बंदरगाह को बढ़ावा देना है।
    • पाकिस्तान भी मध्य एशिया में भारत के प्रभाव को कम करने की उम्मीद कर रहा है और CPEC इसके लिये सही मंच प्रदान कर सकता है।
  • विकास सहायता में भारत की तुलना में चीन अग्रणी : 
    • विकास सहायता के संदर्भ में भारत अफगानिस्तान का सबसे बड़ा क्षेत्रीय ऋणदाता रहा है, जिसने परियोजनाओं हेतु 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है जैसे-
      • सड़क निर्माण, विद्युत संयंत्र निर्माण, बाँध निर्माण, संसद भवन, ग्रामीण विकास, शिक्षा, बुनियादी ढाँचा आदि।
    • CPEC के विस्तार के साथ चीन द्वारा भारत को विस्थापित करने और अफगानिस्तान के विकास क्षेत्र में नेतृत्त्व करने का अनुमान है।
  • सुरक्षा चिंताएँ: 
    • अफगानिस्तान के बगराम एयरफोर्स बेस पर चीन का नियंत्रण हो सकता है।
    • बगराम हवाई अड्डा सबसे बड़ा और सबसे तकनीकी रूप से उन्नत हवाई अड्डा है क्योंकि अमेरिकी सेना ने काबुल हवाई अड्डे के बजाय इसका इस्तेमाल वहाँ से वापस लौटने तक  किया।
  • भारत की संप्रभुता पर प्रभाव: 
    • CPEC पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है, जो भारत की संप्रभुता को कमज़ोर करता है। भारत ने इस मुद्दे पर अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के उल्लंघन को लेकर बार-बार चिंता जताई है।
    • CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित करके चीन और पाकिस्तान अपने आर्थिक एवं रणनीतिक संबंधों को और मज़बूत कर रहे हैं जिसे भारत अपनी सुरक्षा तथा क्षेत्रीय हितों के लिये एक खतरे के रूप में देखता है।  
  • आतंकवाद और सामरिक चिंताएंँ: 
    • अगर अफगानिस्तान CPEC का हिस्सा बन जाता है, तो इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन पाकिस्तान को इस क्षेत्र में रणनीतिक लाभ भी मिल सकता है, जो भारत के हितों के लिये खतरा हो सकता है।
    • ऐसे स्थिति में पाकिस्तान, भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।
  • दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का दोहन:
    • दुर्लभ पृथ्वी धातुएँ, उन्नत इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों और उच्च तकनीक मिसाइल मार्गदर्शन प्रणालियों के लिये प्रमुख घटक हैं।

आगे की राह 

  • CPEC में चीन के पक्ष में इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदलने की क्षमता है, जो भारत को काफी हद तक प्रभावित करता है। अगर इससे ठीक से नहीं निपटा गया तो यह क्षेत्र की रणनीतिक गतिशीलता और दीर्घ काल में PoK पर भारत के दावे की विश्वसनीयता को बदल सकता है।
  • भारत को देश के बुनियादी ढाँचे और विकास में निवेश कर अफगानिस्तान के साथ अपने आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करना चाहिये। इससे न केवल अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा बल्कि भारत को CPEC के प्रभाव का मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी।

भारत, अमेरिका, UAE और सऊदी अरब बुनियादी ढाँचा पहल पर चर्चा 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में सऊदी अरब सरकार ने भारत, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) की एक विशेष बैठक की मेज़बानी की। 

बैठक की मुख्य विशेषताएँ

  • चर्चा का उद्देश्य देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करना है ताकि क्षेत्र के विकास और स्थिरता में वृद्धि हो।
  • यह बैठक बुनियादी ढाँचे को लेकर क्षेत्रीय पहल पर केंद्रित थी।
  • बैठक में भारत और दुनिया से जुड़ाव के साथ एक अधिक सुरक्षित और समृद्ध मध्य-पूर्व क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की मांग की गई।
  • परियोजनाओं पर चर्चा के दौरान खाड़ी देशों को रेलवे नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने और क्षेत्र को "दो बंदरगाहों" से शिपिंग लेन द्वारा भारत से जोड़ने की योजना पर प्रकाश डाला गया है।
    • यह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल तथा क्षेत्र में अन्य अतिक्रमणों के खिलाफ स्थिरता प्रदान करने के लिये आवश्यक है।
  • इस पहल का विचार I2U2 द्वारा पिछले 18 महीनों में आयोजित वार्ता के दौरान सामने आया।
    • I2U2 क्वाड, "दक्षिण एशिया को मध्य-पूर्व से संयुक्त राज्य अमेरिका तक जोड़ने का काम करता है जो आर्थिक प्रौद्योगिकी और कूटनीति को बढ़ावा देता है"।

I2U2 क्वाड

  • परिचय: 
    • I2U2 भारत, इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका द्वारा गठित एक नया समूह है।
    • इसे वेस्ट एशियन क्वाड भी कहा जाता है।
  • उद्देश्य: 
    • यह मध्य-पूर्व और एशिया में आर्थिक एवं राजनीतिक सहयोग के विस्तार पर केंद्रित है।
    • इस ढाँचे का उद्देश्य अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और समुद्री सुरक्षा हेतु समर्थन एवं सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • I2U2 का गठन:
    • I2U2 की शुरुआत अब्राहम समझौते के बाद अक्तूबर 2021 में हुई थी।
    • अब्राहम समझौते ने इज़रायल और कई अरब खाड़ी देशों के बीच संबंधों को सामान्य किया है।
  • I2U2 का पहला शिखर सम्मेलन: 
    • I2U2 का पहला आभासी शिखर सम्मेलन 14 जुलाई, 2022 को हुआ।
    • यह शिखर सम्मेलन यूक्रेन में संघर्ष के परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य और ऊर्जा संकट पर केंद्रित था।

भारत हेतु I2U2 का महत्त्व

  • अब्राहम समझौते से लाभ: 
    • भारत को संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब राज्यों के साथ अपने संबंधों को जोखिम में डाले बिना इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने हेतु अब्राहम समझौते का लाभ मिलेगा।
  • बाज़ार का लाभ:
    • भारत एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है। यह हाई-टेक और अत्यधिक मांग वाले सामानों का एक विशाल उत्पादक है। इस समूह से भारत को लाभ होगा।
  • गठबंधन: 
    • यह भारत को राजनीतिक गठबंधन, सामाजिक गठबंधन बनाने में मदद करेगा।

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद

चर्चा में क्यों?

भारत – यूरोपीय संघ व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल/TTC) की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक 16 मई 2023 को ब्रसेल्स, बेल्जियम में आयोजित होने वाली है।

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद की बैठक

  • व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल/टीटीसी) के गठन की घोषणा अप्रैल 2022 में प्रधान त्री श्री नरेंद्र मोदी  तथा महामहिम सुश्री उर्सुला वॉन डेर लेयेन, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के मध्य नई दिल्ली में एक बैठक के दौरान की गई थी। ।
    • अधिदेश: भारत-यूरोपीय संघ टीटीसी का प्राथमिक उद्देश्य व्यापार, विश्वसनीय प्रौद्योगिकी एवं सुरक्षा के प्रतिच्छेदन से संबंधित रणनीतिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक उच्च-स्तरीय समन्वय मंच स्थापित करना है।
    • सह अध्यक्ष: केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, कपड़ा, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री, श्री पीयूष गोयल विदेश मंत्री (एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्टर/ईएएम) एवं केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (एमईआईटीवाई) के सह-अध्यक्षों में से एक हैं। 
      • यूरोपीय संघ के पक्ष की सह-अध्यक्षता कार्यकारी उपाध्यक्ष श्री डोंब्रोवस्की एवं सुश्री वेस्टेगर द्वारा की जा रही है।
    • कार्यकारी समूह: इस व्यवस्था के तहत निम्नलिखित तीन कार्य समूह दोनों पक्षों के मध्य भविष्य के सहयोग के रोडमैप पर रिपोर्ट देंगे- 
    • सामरिक प्रौद्योगिकियों, डिजिटल शासन एवं डिजिटल कनेक्टिविटी पर कार्य समूह,
    • हरित एवं स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी पर कार्य समूह (वर्किंग ग्रुप ऑन ग्रीन एंड क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजीज) एवं
    • व्यापार, निवेश तथा लोचशील मूल्य श्रृंखलाओं पर कार्य समूह।

भारत- यूरोपियन यूनियन व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद कार्य समूह

व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद की मंत्रिस्तरीय बैठकें तीन कार्य समूहों के प्रारंभिक कार्य पर निर्भर करेंगी, जो अपने कार्य को व्यवस्थित करने के लिए दो सप्ताह के भीतर मिलेंगे:

  • सामरिक प्रौद्योगिकियांडिजिटल प्रशासन एवं डिजिटल कनेक्टिविटी: समूह आपसी हित के क्षेत्रों जैसे डिजिटल कनेक्टिविटी, कृत्रिम प्रज्ञान (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), 5G/6G, उच्च प्रदर्शन एवं क्वांटम कंप्यूटिंग, अर्धचालक, क्लाउड सिस्टम, साइबर सुरक्षा, डिजिटल कौशल तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संयुक्त रूप से कार्य करेगा।
  • हरित एवं स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियां: यह समूह अनुसंधान एवं नवाचार पर बल देने के साथ निवेश एवं मानकों सहित हरित प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करेगा। खोजे जाने वाले क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा, चक्रीय अर्थव्यवस्था, अपशिष्ट प्रबंधन, प्लास्टिक एवं महासागरों में कचरा हो सकता है। यह यूरोपीय संघ एवं भारतीय इन्क्यूबेटरों, लघु एवं मध्यम इकाइयों (स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज/एसएमई) एवं स्टार्ट-अप के  मध्य सहयोग को भी बढ़ावा देगा।
  • व्यापारनिवेश तथा लोचशील मूल्य श्रृंखलाएं: समूह आपूर्ति श्रृंखलाओं  की लोचशीलता एवं महत्वपूर्ण घटकों, ऊर्जा तथा कच्चे माल तक पहुंच पर कार्य करेगा। यह बहुपक्षीय मंचों में सहयोग को प्रोत्साहित कर चिन्हित व्यापार बाधाओं एवं वैश्विक व्यापार चुनौतियों को हल करने हेतु भी कार्य करेगा। यह अंतरराष्ट्रीय मानकों को प्रोत्साहित करने एवं वैश्विक भू-राजनीतिक चुनौतियों को दूर करने के लिए सहयोग की दिशा में कार्य करेगा।

भारत-यूरोपीय संघ टीटीसी बैठक के फोकस क्षेत्र

भारत-यूरोपीय संघ टीटीसी बैठक की चर्चाओं के तहत तीन कार्यकारी समूह होंगे। पहली मंत्रिस्तरीय बैठक तीनों कार्य समूहों के तहत सहयोग के लिए रोडमैप तैयार करेगी एवं आने वाले वर्ष में अगली मंत्रिस्तरीय बैठक से पूर्व वांछित परिणाम प्राप्त करने की दिशा प्रदान करेगी।

  • यूरोपीय संघ के साथ-साथ बेल्जियम के वरिष्ठ नेतृत्व के साथ उच्च स्तरीय बैठकों के दौरान, भारतीय नेतृत्व आपसी हित के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करेगा: 
    • मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट/एफटीए) हेतु जारी वार्ता,
    • आपसी बाजार पहुंच के मुद्दों को संबोधित करना,
    • विश्व व्यापार संगठन के सुधारों के साथ-साथ
    • आपसी हितों के विविन क्षेत्रों में सहयोग।

UNSC और ब्रेटन वुड्स में सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, जापान के हिरोशिमा में एक संवाददाता सम्मेलन में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने यूएनएससी (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) और ब्रेटन वुड्स संस्थानों में सुधारों का आह्वान किया है , जिसमें कहा गया है कि वर्तमान आदेश पुराना, बेकार और अनुचित है।

  • कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष से आर्थिक झटकों के सामने , उक्त संस्थान वैश्विक सुरक्षा तंत्र के रूप में अपने मूल कार्य को पूरा करने में विफल रहे हैं।

ब्रेटन वुड्स सिस्टम क्या है?

  • के बारे में:
    • ब्रेटन वुड्स सिस्टम 1944 में न्यू हैम्पशायर, यूएसए में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में 44 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा बनाया गया एक मौद्रिक ढांचा था। इसका उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में स्थिरता और सहयोग स्थापित करना था ।
    • ब्रेटन वुड्स समझौते ने दो महत्वपूर्ण संगठन बनाए- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक।
      • जबकि 1970 के दशक में ब्रेटन वुड्स सिस्टम को भंग कर दिया गया था, आईएमएफ और विश्व बैंक (ब्रेटन वुड्स संस्थान) दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के आदान-प्रदान के लिए मजबूत स्तंभ बने हुए हैं ।
  • ब्रेटन वुड्स संस्थानों में सुधार की आवश्यकता:
    • जबकि इन संस्थानों ने अपने पहले 50 वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया - वे हाल के दिनों में बढ़ती असमानता, वित्तीय अस्थिरता और संरक्षणवाद की समस्याओं से जूझ रहे हैं।
    • जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक तनाव का खतरा , बढ़ती आपदाएं और साइबर सुरक्षा और महामारी जैसे नए खतरों के साथ एक अधिक परस्पर जुड़ी हुई दुनिया के लिए एक नए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढांचे की आवश्यकता है।
    • फंड आवंटन और अनियमित विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) में पूर्वाग्रह रहा है , आईएमएफ ने महामारी के दौरान एसडीआर में 650 बिलियन अमरीकी डालर आवंटित किए।
      • 77.2 करोड़ लोगों की आबादी वाले जी7 देशों को 280 अरब डॉलर मिले। 1.3 अरब लोगों वाले अफ्रीकी महाद्वीप को केवल 34 अरब डॉलर मिले।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है?

  • के बारे में:
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा 1945 में की गई थी और यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है।
    • UNSC में 15 सदस्य हैं: 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 गैर-स्थायी सदस्य 2 साल के लिए चुने गए हैं।
      • P5 हैं: अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और यूके।
    • भारत 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 के दौरान परिषद का गैर-स्थायी सदस्य रहा और 8वीं बार यूएनएससी में प्रवेश किया। 2021 और 2021-22 की अवधि के लिए परिषद में थे ।
  • यूएनएससी के मुद्दे:
    • विकासशील देशों के लिए समस्याएँ पैदा करना:
      • विकासशील देश तीन आयामों में समस्याओं का सामना कर रहे हैं: नैतिक, शक्ति संबंधी और व्यावहारिक।
      • अमीर देशों के पक्ष में वैश्विक आर्थिक और वित्तीय ढांचे में एक प्रणालीगत और अन्यायपूर्ण पूर्वाग्रह "विकासशील दुनिया में बड़ी निराशा" पैदा कर रहा है।
    • प्रतिनिधित्व को सीमित करता है:
      • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से अफ्रीका, साथ ही भारत, जर्मनी, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की अनुपस्थिति को एक महत्वपूर्ण कमी के रूप में देखा जाता है।
      • यह महत्वपूर्ण राष्ट्रों के प्रतिनिधित्व और वैश्विक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को सीमित करता है, जटिल और परस्पर जुड़ी समस्याओं पर प्रभावी निर्णय लेने में बाधा डालता है।
    • वीटो पावर का दुरुपयोग:
      • P5 के पास UNSC में कालानुक्रमिक वीटो शक्ति है, जिसे अलोकतांत्रिक होने और P5 में से किसी के असहमत होने पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने की परिषद की क्षमता को सीमित करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है।
      • कई लोगों का तर्क है कि इस तरह के कुलीन निर्णय लेने वाले ढांचे मौजूदा वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

इन मुद्दों का समाधान करने के लिए क्या किया जा सकता है?

  • ब्रेटन वुड्स:
    • तीन वैश्विक संस्थानों-आईएमएफ, डब्ल्यूबीजी और विश्व व्यापार संगठन (विश्व व्यापार संगठन) को फिर से आकार देने और पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जहां:
      • आईएमएफ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की कड़ी निगरानी और वैश्विक संकटों पर उनके प्रभाव के साथ व्यापक आर्थिक नीति और वित्तीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करेगा।
      • पुनर्गठित WBG स्थिरता, साझा समृद्धि और प्रभावी ढंग से निजी पूंजी का लाभ उठाने को प्राथमिकता देगा। वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और वित्त के थोक व्यापारी के रूप में कार्य करने के लिए इसे दूसरों के साथ काम करना चाहिए।
      • निष्पक्ष व्यापार, तेजी से विवाद समाधान और आपात स्थिति में तेजी से प्रतिक्रिया करने की क्षमता के लिए एक मजबूत विश्व व्यापार संगठन की आवश्यकता है ।
  • देरी और राजनीतिक प्रभावों से बचने के लिए प्रणाली को अधिक स्वचालित और नियम-आधारित वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता है।
  • नियमित रूप से कैलिब्रेटेड एसडीआर मुद्दों, वैश्विक प्रदूषण करों और वित्तीय लेनदेन करों की आवश्यकता है ।
    • एक अच्छी तरह से संरचित G-20 ब्रेटन वुड्स प्रणाली और अन्य संस्थानों के साथ इसके संबंधों को व्यापक मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।
  • यूएनएससी:
    • शक्ति और अधिकार के विकेंद्रीकरण के साथ-साथ अफ्रीका सहित सभी क्षेत्रों के लिए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जो सभी क्षेत्रों के राष्ट्रों को अपने देशों में शांति और लोकतंत्र से संबंधित आवाज उठाने की अनुमति देगा, निर्णय लेने को अधिक प्रतिनिधि और लोकतांत्रिक बना देगा। .
    • ध्यान P5 देशों के विशेषाधिकारों को संरक्षित करने के बजाय वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने पर होना चाहिए।
    • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए यूएनएससी के अधिक लोकतांत्रिक और वैध शासन को सुनिश्चित करने के लिए पी5 और बाकी दुनिया के बीच शक्ति को संतुलित करने के लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
    • आईजीएन (अंतरसरकारी वार्ता) प्रक्रिया , जो यूएनएससी सुधार पर चर्चा करती है, को संशोधित किया जाना चाहिए और प्रगति में बाधा डालने वाली प्रक्रियात्मक रणनीति से बचना चाहिए।

भारत-सिंगापुर संबंध

चर्चा में क्यों?

भारत के केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने हाल ही में मौजूदा संबंधों को मज़बूत करने और शिक्षा एवं कौशल विकास में द्विपक्षीय जुड़ाव को व्यापक बनाने के अवसरों की तलाश के उद्देश्य से सिंगापुर की तीन दिवसीय यात्रा शुरू की। 

बैठक की मुख्य विशेषताएँ

  • केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने सिंगापुर सरकार के विभिन्न प्रमुख मंत्रियों से मुलाकात की और स्पेक्ट्रा सेकेंडरी स्कूल का दौरा किया।
    • इसमें सहयोग को मज़बूत करने और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने पर डीपीएम एवं वित्त मंत्री, सिंगापुर के साथ एक रचनात्मक बैठक शामिल है।
    • बैठक में जीवनपर्यंत शिक्षण के अवसर पैदा करने, भविष्य के लिये तैयार कार्यबल के निर्माण और ज्ञान एवं कौशल विकास को रणनीतिक साझेदारी का एक प्रमुख  स्तंभ बनाने पर ज़ोर दिया गया।
  • केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 पर प्रकाश डाला और व्यावसायिक शिक्षा, प्रशिक्षण की बाजार प्रासंगिकता और उच्च शिक्षा योग्यता ढाँचे के साथ कौशल योग्यता ढाँचे के एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया।
  • मंत्री ने सिंगापुर की सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने, सहयोग करने और भारतीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इसे अनुकूलित करने पर ज़ोर दिया। 

सिंगापुर के साथ भारत के संबंध

  • पृष्ठभूमि:  
    • भारत और सिंगापुर के बीच घनिष्ठ संबंधों का इतिहास है जो एक सहस्राब्दी के मज़बूत वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों में निहित है। 
    • आधुनिक संबंधों का श्रेय सर स्टैमफोर्ड रैफल्स को दिया जाता है, जिन्होंने वर्ष 1819 में मलक्का जलडमरूमध्य के मार्ग पर सिंगापुर में एक व्यापारिक केंद्र की स्थापना की, जो बाद में एक क्राउन कॉलोनी बन गई और वर्ष 1867 तक कोलकाता से शासित हुआ।
      • स्वतंत्रता के बाद भारत, वर्ष 1965 में सिंगापुर को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
  • व्यापार और आर्थिक सहयोग:
    • सिंगापुर, आसियान में भारत के सबसे बड़े व्यापार और निवेश भागीदारों में से एक है तथा वर्ष 2021-22 में यह आसियान के साथ भारत के कुल व्यापार का 27.3% था।
      • सिंगापुर, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी प्रमुख स्रोत है। पिछले 20 वर्षों में सिंगापुर से भारत में किया गया कुल निवेश लगभग 136.653 बिलियन डॉलर है और यह कुल FDI प्रवाह का लगभग 23% है। 
    • भारत और सिंगापुर के मध्य वर्ष 2005 में व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
      • भारत और सिंगापुर ने व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा देने के लिये भारत-सिंगापुर बिज़नेस फोरम तथा भारत-सिंगापुर सीईओ फोरम जैसी कई पहलों पर भी सहयोग किया है।
    • हाल ही में भारत के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और सिंगापुर के PayNow को फरवरी 2023 में दोनों देशों के बीच तेज़ी से प्रेषण को सक्षम करने के लिये एकीकृत किया गया है।
  • रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग:
    • दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय स्थिरता और समुद्री सुरक्षा को लेकर चिंताएँ साझा करते हैं।
      • वर्ष 2015 में राजनयिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर उन्होंने अपने संबंधों को एक रणनीतिक साझेदारी के रूप में उन्नत किया।
    • उन्होंने रक्षा सहयोग समझौता- 2003 और नौसेना सहयोग समझौता- 2017, जैसे अपने रक्षा संबंधों को मज़बूत करने के लिये कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • सैन्य अभ्यास:
        • नौसेनाSIMBEX
        • वायु सेना: SINDEX
        • थल सेना: बोल्ड कुरुक्षेत्र
  • शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग:
    • DST-CII भारत-सिंगापुर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन का 28वाँ संस्करण फरवरी 2022 में आयोजित किया गया था।
      • इसमें AI, IoT, फिनटेक, हेल्थकेयर, बायोटेक, स्मार्ट विनिर्माण, ग्रीन मोबिलिटी, लॉजिस्टिक और रसद आपूर्ति समाधान, स्मार्ट विनिर्माण तथा सतत् शहरी विकास में भारत एवं सिंगापुर के सहयोग को भी दर्शाया गया है।
    • ISRO ने वर्ष 2011 में सिंगापुर का पहला स्वदेश निर्मित माइक्रो-सैटेलाइट भी प्रमोचित किया था। 
    • सिंगापुर 'आधारजैसी राष्ट्रीय पहचान प्रणाली की तर्ज पर डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग करने पर विचार कर रहा है।
      • एक और संभावित अवसर यह है कि सिंगापुर के 'प्रॉक्सटेरा' (MSME पारिस्थितिकी तंत्र का वैश्विक डिजिटल केंद्र) का भारत के ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) के साथ एकीकरण हो सकता है
  • सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंध: दोनों देश सांस्कृतिक विविधता, भाषायी संबंध और धार्मिक सद्भाव की समृद्ध विरासत साझा करते हैं।
    • सिंगापुर में 3.9 मिलियन की निवासी आबादी में भारतीय लगभग 9.1% या लगभग 3.5 लाख हैं। उन्होंने सिंगापुर के आर्थिक विकास, सामाजिक ताने-बाने और सांस्कृतिक विविधता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • आसियान-भारत प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) सिंगापुर में 6-7 जनवरी, 2018 को आसियान-भारत साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में "प्राचीन मार्ग, नई यात्रा" विषय के साथ आयोजित किया गया था।
  • अवसंरचना विकास में सहयोग:
    • अवसंरचना विकास, स्मार्ट शहरों और शहरी नियोजन में सिंगापुर की विशेषज्ञता भारत के सतत् विकास एवं स्मार्ट शहरों के निर्माण के लक्ष्यों के अनुरूप है।  
      • सिंगापुर की कंपनियाँ भारत में औद्योगिक पार्कों, हवाई अड्डों और शहरी अवसंरचना के विकास सहित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं।
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