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अधीनस्थ न्यायालय - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | Revision Notes for UPSC Hindi PDF Download

अधीनस्थ न्यायालय

  • थोड़ी बहुत भिन्नताओं को छोड़कर अधीनस्थ न्यायालयों का आकार और कार्य देश भर में लगभग एक-सा ही है। न्यायालय  का पदनाम उसके कार्य का संकेत देता है। ये न्यायालय सिविल या दांडिक प्रकार के विवादों का निबटारा, प्रदत्त अधिकारों के आधार पर करते हैं। इनका संचालन सैद्धांतिक तौर पर सिविल प्रक्रिया संहिता 1908, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 तथा स्थानीय कानूनों के आधार पर किया जाता है। सबसे निचले स्तर पर मुंसिफ न्यायाधीश या सिविल न्यायाधीश (न्यायिक) या प्रथम श्रेणी जुडीशियल मजिस्ट्रेट के न्यायालय हैं। कुछ राज्यों में मुंसिफ को जिला मुंसिफ के नाम से भी जाना जाता है।
  • आमतौर पर इस प्रकार के न्यायालय की स्थापना तालुक/तहसील स्तर पर की जाती है, जिसके कार्य क्षेत्र में एक या एक से अधिक तालुक/तहसील हो सकती हैं। धन-सीमा के अनुसार अधिकतर झगड़ों का निबटारा इन न्यायालयों में होता है।
  • कुछ राज्यों में जहां अधिकार क्षेत्र के अनुसार दो अलग संवर्गों (काडरों) की जरूरत नहीं है, वहां पर प्रथम श्रेणी की न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां भी मुंसिफ को ही दे दी जाती है। इस संवर्ग के सदस्य जब बड़े शहरों में नियुक्त किए जाते हैं, तो उन्हें केवल सिविल या केवल दांडिक कार्य ही सौंपे जाते हैं। जब उनकी नियुक्ति महानगरीय क्षेत्रों में की जाती है, तो उन्हें मेट्रोपोलिटन न्यायाधीश या मुख्य न्यायिक न्यायाधीश के नाम से जाना जाता है।
  • अगली श्रेणी के न्यायालयों को जिला तथा सैशन जज (सत्र न्यायाधीश) के नाम से जाना जाता है। इनमें अतिरिक्त न्यायाधीश, संयुक्त न्यायाधीश और सहायक न्यायाधीश की अदालतें शामिल हैं। 
  • जिला व सैशन न्यायाधीश का न्यायालय जिला स्तर पर प्रारंभिक अधिकार क्षेत्र का मुख्य न्यायालय होता है और इसका संचालन जिला व सैशन जज करता है। नियमानुसार एक ही अधिकारी दोनों कानूनों के अधीन कार्य करता है और वह जिला एवं सैशन न्यायाधीश के नाम से जाना जाता है। जिला न्यायालय का अधिकार क्षेत्र एक से अधिक जिलों में भी हो सकता है। यह वहां के कार्यभार पर निर्भर करता है।
  • कुछ राज्यों में सिविल तथा सैशन जज के न्यायालय भी हैं। इन न्यायालयों का वित्तीय अधिकार क्षेत्र प्रायः असीमित होता है और क्षेत्र की सीमा न्यायालय को चलाने वाले अधिकारी को दी गई शक्तियों पर निर्भर करती है। ये न्यायालय उन आपराधिक मुकदमों का भी निबटारा कर सकते हैं, जिनमें अधिकतम सजा साल से अधिक न हो। कुछ राज्यों में ये न्यायालय, जिनके अधिकार क्षेत्र की कोई धन-सीमा नहीं होती, सिविल जज के न्यायालय तथा कुछ अन्य राज्यों में अधीनस्थ न्यायाधीश के नाम से भी जाने जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त कुछ इस प्रकार के न्यायालय भी हैं, जिन्हें छोटे झगड़ों का न्यायालय कहा जाता है। इनकी स्थापना जिला स्तर पर प्रांतीय लघुवाद (स्माल काॅज़) न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत या प्रेसिडेंसी-नगर लघुवाद (स्माल काॅज़) न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत की जाती है। जिला न्यायाधीश की नियुक्ति और जिला न्यायाधीशों के अलावा अन्य लोगों को भी न्यायिक सेवा में भर्ती करने के संबंध में भारतीय संविधान में प्रावधान किया गया है। संविधान में उच्च न्यायालयों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने-अपने क्षेत्र के जिला न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण रखें।

अधीनस्थ न्यायालय - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | Revision Notes for UPSC Hindi
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FAQs on अधीनस्थ न्यायालय - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - Revision Notes for UPSC Hindi

1. अधीनस्थ न्यायालय क्या है?
उत्तर. अधीनस्थ न्यायालय भारतीय राजव्यवस्था में एक प्रमुख न्यायिक संस्थान है। यह संविधानिक विवादों का निर्णय देने के लिए सम्पूर्ण देश में अपील की अधिकतम अदालत है। यह न्यायालय अपील याचिकाओं, संविधानिक प्रश्नों और विभिन्न मुद्दों पर न्यायिक निर्णय देता है।
2. क्या UPSC अधीनस्थ न्यायालय के लिए परीक्षा आयोजित करता है?
उत्तर. नहीं, UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) अधीनस्थ न्यायालय के लिए परीक्षा नहीं आयोजित करता है। UPSC भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वन सेवा, और अन्य संघ लोक सेवाओं के लिए परीक्षा आयोजित करता है।
3. अधीनस्थ न्यायालय के संशोधन नोटस क्या हैं?
उत्तर. अधीनस्थ न्यायालय के संशोधन नोटस विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए जाते हैं और ये नोटस न्यायाधीशों द्वारा पढ़े जाते हैं। इन नोटस में न्यायालय द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णयों और न्यायिक मामलों का विवरण शामिल होता है। ये नोटस न्यायिक संस्था के कामकाज को समझने और पढ़ने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
4. भारतीय राजव्यवस्था में अधीनस्थ न्यायालय की भूमिका क्या है?
उत्तर. भारतीय राजव्यवस्था में अधीनस्थ न्यायालय की मुख्य भूमिका न्यायिक निर्णय देना है। यह न्यायालय संविधान की रक्षा करता है और न्यायिक शास्त्र के माध्यम से विभिन्न मामलों पर न्यायिक निर्णय देता है। अधीनस्थ न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों की पालना करना और इन्हें अपील याचिकाओं पर सुनिश्चित करना भी इसकी जिम्मेदारी है।
5. अधीनस्थ न्यायालय की भारतीय राजव्यवस्था में कितनी अदालतें होती हैं?
उत्तर. भारतीय राजव्यवस्था में अधीनस्थ न्यायालय की 25 अदालतें होती हैं। इनमें से 1 उच्चतम न्यायालय है, जबकि बाकी 24 उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा चलाए जाते हैं। यह अदालतें भारतीय न्यायप्रणाली में न्यायिक प्रशासन को संचालित करने के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
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