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अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi PDF Download

क्या अभिवृत्ति में परिवर्तन सम्भव है?


प्रायः अभिवृत्ति में परिवर्तन का विषय विवादित रहा है। यह स्वीकार किया जाता है कि मनुष्य की अभिवृत्ति को बहुत अधिक बदला नहीं जा सकता। स्वभाव एवं परिवर्तन का यह विवाद दर्शन एवं मनोविज्ञान में सदैव से विद्यमान रहा है लेकिन यह स्वीकार करना उचित नहीं होगा, कि मनुष्य की अभिवृत्ति में परिवर्तन संभावित नहीं है। मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है जिसके कारण वह सतत विचार करते हुए आत्मनिरीक्षण का प्रयास करता है। अत: अभिवृत्ति और विचार एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। ज्ञान-विज्ञान के विकास से यह सिद्ध होता है, कि मनुष्य में सतत वैचारिक परिवर्तन एवं विकास होता रहता है अर्थात् मनुष्य की अभिवृत्ति में सकारात्मक परिवर्तन संभव है।

अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत

  1. फ्रिट्ज हाइडर (Fritz Heider) के द्वारा प्रस्तावित संतुलन (Balance) का सिद्धांत - संतुलन के सिद्धांत को पी-ओ-एक्स (P-O-X) त्रिकोण के रूप में भी व्यक्त किया जाता है जो अभिवृत्ति के तीन घटकों या पक्षों को निरूपित करता है। इसमें P वह व्यक्ति है जिसकी अभिवृत्ति का अध्ययन किया जाना है, 0 एक दूसरा व्यक्ति है तथा X वह विषयवस्तु (अभिवृत्ति-विषय) है जिसके प्रति अभिवृत्ति का अध्ययन करना है। यह भी संभव है कि ये तीनों व्यक्ति ही हों। मल बात यह है कि यदि पी-ओ अभिवृत्ति, ओ-एक्स अभिवृत्ति तथा पी-एक्स अभिवृत्ति के बीच एक असंतुलन की अवस्था होती है तो अभिवृत्ति में परिवर्तन होता है। यह इसलिए होता है क्योंकि असंतुलन तार्किक रूप से असुविधाजनक होता है। अतः अभिवृत्ति में संतुलन की दिशा में परिवर्तन होता है। असंतुलन तब पाया जाता है जब 1. पी-ओ-एक्स त्रिकोण की तीनों भुजाएं नकारात्मक हो या 2. दो भुजा सकारात्मक एवं एक भुजा नकारात्मक हो। संतुलन तब पाया जाता है जब 1. तीनों भुजाएं सकारात्मक हों, या 2. दो भुजा नकारात्मक एवं एक भुजा सकारात्मक हो।
    एक उदाहरण लें जिसमें दहेज अभिवृत्ति की विषयवस्तु (एक्स) है। मान लीजिए कि एक व्यक्ति (पी) की दहेज के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति है (पी-एक्स सकारात्मक)। पी अपने पुत्र का विवाह दूसरे व्यक्ति (ओ) की पुत्री से करने की योजना बना रहा है जो दहेज के प्रति एक नकारात्मक अभिवृत्ति रखता है (ओ-एक्स नकारात्मक)। पी-ओ अभिवृत्ति का स्वरूप क्या होगा तथा किस प्रकार से इस परिस्थिति में संतुलन या असंतुलन का निर्धारण होगा? यदि ओ की प्रारंभ में पी के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति है तो परिस्थिति अंसतुलित होगी। पी-एक्स सकारात्मक है, ओ-पी सकारात्मक है, परंतु ओ-एक्स नकारात्मक है अर्थात् त्रिकोण में एक नकारात्मक एवं दो सकारात्मक भुजाएँ हैं। यह एक असंतुलन की स्थिति है। अतः तीनों में से किसी एक अभिवृत्ति में परिवर्तन करना पड़ेगा। संक्षेप में, अभिवृत्ति में परिवर्तन करना होगा जिससे कि त्रिकोण में तीनों संबंध या दो नकारात्मक एवं एक सकारात्मक संबंध बनेगा।

    उदाहरण चित्र

  2. अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindiसंज्ञानात्मक विसंगति का सिद्धांत (Cognitive Dissonance Theory) (Leon Festinger and Carl Smith) : संज्ञानात्मक विसंगति की मान्यताओं के अनुसार भी उपर्युक्त संतुलन की भाँति विचार देखने को मिलते है। इसमें यह माना गया है कि यदि किसी व्यक्ति के अभिवृत्ति में परिवर्तन करना है तो किसी व्यक्ति, वस्तु या संगठन के प्रति व्यक्ति के पसंद नापसंद में बदलाव विचारधाराओं को बदलने से उसके व्यवहार में कई विसंगतियों का विकास होता है। जिसकी वजह से असन्तुलन की स्थिति दिखाई देती है और अभिवृत्तिक परिवर्तन होते हैं। इसे निम्न उदाहरण से समझा जा सकता है।
    पहली स्थिति में अभिवृत्तिक परिवर्तन नहीं होगा, यदि ऐसे व्यक्ति में परिवर्तन लाना है तो उसके संज्ञानों के बीच विसंगति का विकास करना होगा। यदि सिगरेट से होने वाले कैंसर के तथ्य आंकड़ों को प्रस्तुत करेंगे तो यहां तीन स्थिति हो सकती है- या तो और सिगरेट पीने लगेगा या वह सिगरेट छोड़ने के बारे में सोचेगा या वह फिल्टर वाली सिगरेट पीने लगेगा।

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    अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi
  3. Two-Step Theory (S. M. Mohsin): S. M. Mohsin के द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि अभिवृत्तिक परिवर्तन करने के लिए सबसे जरूरी व महत्वपूर्ण स्रोत के तरफ से लक्ष्य को अपने अंत:परस्पर प्रभाव में लेना शामिल है। स्रोत का तात्पर्य उससे है जो अभिवृत्तिक परिवर्तन किसी दुसरे में करना चाहता है और लक्ष्य का संबंध इससे है जिसकी अभिवृत्तियों में परिवर्तन होना है तथा अंत:परस्पर प्रभाव डालने के लिए अच्छे एहसास व सकारात्मक व्यवहारों व अधिक से अधिक लाभ से संबंधित साधनों का प्रयोग लक्ष्य के संदर्भ में करना होगा। चूँकि मनुष्य का व्यवहार नकल पर आधारित होता है और इसमें वह नए-नए व्यवहारों को सीखता है। अतः एक समय के उपरांत लक्ष्य की स्रोत के लिए सकारात्मक व्यवहार करने लगेगा।
    अब दूसरे चरण में स्रोत को केंद्रीय व परिधीय माध्यम से अभिवृत्ति परिवर्तन करने के लिए संचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए अपेक्षित तथ्य एवं आँकड़ों को मुख्य रूप से प्रस्तुत करते हुए परिधीय विषय-वस्तु कहावत, महावरे, अँगूठे के नियम व अन्य मनोवैज्ञानिक साधन का प्रयोग करना चाहिए जिससे अभिवृत्तियाँ बदल जाती हैं।
    अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindiअभिवृत्ति परिवर्तन में जो संगत या असंगत परिवर्तन होते हैं, अलग-अलग नियमों द्वारा निर्धारित होते हैं:-
    (i) सन्दर्भ समूह में परिवर्तन (Changing reference group): समाज मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि व्यक्ति के संदर्भ समूह में परिवर्तन कर देने पर उनकी अभिवृत्ति में भी परिवर्तन हो जाता है। न्यूकॉम्ब (Newcomb, 1950) ने एक अध्ययन कर इसे स्पष्ट किया है। इन्होंने वेन्निगटन महाविद्यालय की छात्राओं पर कई वर्षों तक एक अध्ययन किया। कॉलेज के प्रथम वर्ष में ऐसी छात्राओं की अभिवृत्ति की माप की गयी और पाया गया कि इनकी अभिवृत्ति में अनुदारता अधिक थी। न्यूकॉम्ब के अनुसार ऐसा स्वाभाविक ही था क्योंकि वे सभी धनी परिवार से आई थी और उनके माता-पिता स्वयं ही अधिक अनुदार थे। कॉलेज का वातावरण ऐसा था कि इससे उदार अभिवृत्ति को अधिक प्रोत्साहन मिलता था। यहाँ तक कि कॉलेज के अधिकारियों का छात्राओं में उदारता की अभिवृत्ति उत्पन्न करना भी प्रमुख उद्देश्यों में से एक था। कॉलेज के अन्तिम वर्ष यानी चौथे साल में जब इन छात्राओं की अभिवत्ति मापी गयी तो यह देखा गया कि अधिकतर छात्राओं की अभिवृत्ति अनुदार से बदलकर उदार हो गयी थी। न्यूकॉम्ब के अनुसार ऐसा इस कारण से सम्भव हो सका क्योंकि छात्राओं का सन्दर्भ सूमह अब बदलकर कॉलेज हो गया था, जहाँ उदार अभिवृत्ति की प्रधानता थी।
    (ii) समह सम्बन्ध में परिवर्तन (Changes in group affiliation): समूह सम्बन्ध में परिवर्तन का असरअभिवृत्ति परिवर्तन पर सीधा पड़ता है। यदि व्यक्ति पुराने या वर्तमान समूह के सम्बन्ध तोड़कर एक नये समूह से सम्बन्ध जोड लेता है तो स्वभावतः वह अपनी अभिवृत्ति में नये समूह के नियमों के अनुसार परिवर्तन लाता है। उदाहरणार्थ, अगर कोई सांसद भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर कांग्रेस पार्टी से अपना सम्बन्ध जोड़ता है, तो स्वभावत: वह अपनी मनोदशा में एक ऐसा परिवर्तन लाता है जिससे उसकी अभिवृत्ति एवं अन्य व्यवहार कांग्रेस पार्टी के अन्य सदस्यों के अनुकूल हो जाती है।
    (iii) अतिरिक्त सूचनाएँ (Additional informations): अभिवृत्ति में परिवर्तन व्यक्ति को दी गयीअतिरिक्त सूचनाओं द्वारा भी होता है। व्यक्ति को प्रचार एवं शिक्षा के लिए साधनों जैसे, रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र के माध्यम से भिन्न-भिन्न तरह की सूचनाएँ दी जाती हैं। इतना ही नहीं, व्यक्ति स्वयं भी अन्य व्यक्तियों के साथ अन्त:क्रिया करके भिन्न-भिन्न तरह की सूचनाएँ प्राप्त करता है। इन सूचनाओं के फलस्वरूप व्यक्ति अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन लाता है। इन अतिरिक्त सूचनाओं के फलस्वरूप अभिवृत्ति में होने वाली परविर्तनशीलता मूल रूप से इन बात पर निर्भर करती है कि उस परिस्थिति का स्वरूप क्या है जिसमें व्यक्ति को सचनाएँ दी गयी हैं। समाज मनोवैज्ञानिकों ने ऐसी परिस्थिति के तीन प्रकारों का वर्णन किया है और अभिवृत्ति पर उसके प्रभाव का अध्ययन किया है। ये तीन प्रकार निम्नांकित हैं
    ➤ सामूहिक परिस्थिति तथा एकान्त परिस्थिति (Group situation and solitary situation): समाज मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर यह दिखलाया है कि यदि कोई सूचना व्यक्ति को एक ऐसी परिस्थिति में दी जाती है जहाँ बहुत से लोग एकत्रित होते हैं तो उसमें व्यक्ति की अभिवृत्ति में परिवर्तन एकान्त परिस्थिति में दी गयी सूचना की अपेक्षा अधिक होता है। इन्केल्स (Inkeles. 1930), ब्रोडेक (brodeck, 1956) आदि ने अपने-अपने प्रयोगों के आधार पर उपर्युक्त तथ्य की पुष्टि की है।
    ➤ प्रकट एवं गुप्त वचनबद्धता (Public and private Commitment): जब व्यक्ति अपने मतोंएवं विचारों को खुलकर लोगों के सामने रखता है तो उसे हम प्रकट वचनबद्धता की संज्ञा देते हैं। परन्तु जब वह अपने विचारों एवं मतों को गुप्त रखता है अर्थात् दूसरे लोग उसके बारे में नहीं जान पाते हैं तो इसे गुप्त वचनबद्धता कहा जाता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रकट वचनबद्धता की परिस्थिति में जब अभिवृत्ति परिवर्तन के उद्देश्य से कोई सूचना दी जाती है, तो वह सूचना (अभिवृत्ति परिवर्तन में) अधिक प्रभावकारी नहीं होती। परन्तु यदि वहीं सूचना गुप्त वचनबद्धता की परिस्थिति में दी जाती है (जहाँ व्यक्ति अपने विचारों एवं मतों से दूसरों को अवगत नहीं कराया होता है) तो उसमें अभिवृत्ति परिवर्तन प्रभावकारी दिशा में होता है।
    ➤ समूह निर्णय (Group decision): समाज मनोवैज्ञानिकों का मत कि जब कोई सूचना समूहनिर्णय विधि द्वारा दी जाती है तो उससे अभिवृत्तिसमें अधिक परिवर्तन आता है। समह निर्णय विधि वह विधि है जहाँ कई व्यक्ति एक साथ मिलकर किसी विषय पर विवेचना करते है। इसी विवेचना के माध्यम से उन्हें अभिवृत्ति में परिवर्तन करने के लिए विशेष सूचना भी दी जाती है। समूह निर्णय द्वारा अभिवृत्ति में परिवर्तन करने के लिए सबसे पहला प्रयोग लेविन तथा उनके सहयोगियों (Lewin etal, 1952) द्वारा किया गया। इस अध्ययन में गृहणियों के कई समूह लिए गये। इस अध्ययन का उद्देश्य पशु के खास अंगों जैसे हृदय, गुर्दा आदि जिसे मनुष्यों द्वारा भोजन के रूप में कम खाया जाता है, के प्रति गृहणियों में चली आ रही नकारात्मक अभिवृत्ति में परिवर्तन लाना था। गृहणियों के कुछ समूह को इन अंगों को भोज्य पदार्थ के रूप में ग्रहण किये जाने की उपयोगिता को व्याख्यान विधि द्वारा बतलाया गया। प्रयोगकर्ता द्वारा व्याख्यान के माध्यम से उनकी उपयोगिता बढ़ाने सम्बन्धी विशेष सूचना उन्हें दी गयी। गृहणियों के कुछ दूसरे में इन अंगों को भोज्य पदार्थ के रूप में ग्रहण किये जाने की उपयोगिताओं पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें समूह की सभी गृहणियों ने खुलकर अपना मत व्यक्त किया। परिणाम में देखा गया कि व्याख्यान विधि द्वारा दी गयी सूचनाओं द्वारा मात्र 30% गृहणियों ने अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन लाया जबकि समूह निर्णय विधि द्वारा दी गयी सूचनाओं द्वारा 32% गृहणियों ने अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन लाया।
    (iv) प्रत्यापक या विश्वासोत्पादक संचारण (Persuasive communication): अभिवृत्ति परिवर्तन केअनेकों कारकों में विश्वासोत्पादक संचारण एक प्रधान कारण है। विश्वासोत्पादक संचारण से तात्पर्य वैसे तथ्यों से है जो व्यक्ति की अभिवृत्ति पर सीधा असर करते हैं। प्रायः ऐसे संचारण को जब व्यक्ति स्वीकार करता है, तो इससे उसकी अभिवृत्ति पर सीधा असर करते हैं। प्रायः ऐसे संचारण को जब व्यक्ति स्वीकार करता है, तो इससे इसकी अभिवृत्ति में परिवर्तन आ ही जाता है। इस ढंग का विश्वासोत्पादक संचारण का अच्छा उदाहरण हमें टेलीविजन एवं रेडियो द्वारा किये गये विज्ञापनों में मिलता है। आये दिन रेडियो तथा टेलीविजन से हमें कहा जाता है कि अपने स्वास्थ्य की रक्षा करना है तो आप अमुक साबुन का ही प्रयोग करें क्योंकि उसमें मैल में छिपे कीटाणुओं को मारने की शक्ति सबसे अधिक है। यह प्रभावी या विश्वासोत्पादक संचारण का एक उदाहरण है।
    संचारण का स्रोतों, संचारण का विषय एवं विशेषता संचारण का माध्यम तथा श्रोतागण की विशेषता अभिवृत्ति परिवर्तन में इन चारों कारकों के महत्त्व का विवरण इस प्रकार है
    ➤ संचार का स्रोत या संचारक की विशेषता अभिवृत्ति परिवर्तन करने के लिए जो तथ्य एवं सूचना दूसरेव्यक्ति को दी जा रही है, उसका स्रोत अधिक निर्भर करता है। होवलैण्ड, जैनिस एवं केली (hovland,  janis & kelley, 1953) का विचार है कि सूचना देने वाला व्यक्ति अर्थात् संचारक की कुछ खास-खास विशेषताएँ होती हैं जिनसे उनके द्वारा दी गयी सूचनाएं अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए काफी प्रभावी सिद्ध होती हैं। ऐसी विशेषताओं में संचारक की विश्वसनीयता, शक्ति आदि प्रमुख हैं।
    (a) विश्वसनीय संचारक (Credible communicator): इस तरह के संचारक विशेषज्ञ एवंभरोसे योग्य दोनों ही होते हैं। फलस्वरूप उनके द्वारा दी गयी किसी प्रकार की सूचना पर श्रोतागण अधिक विश्वास करते हैं और अपनी अभिवृत्ति में आसानी से परिवर्तन करते हैं। एक प्रयोग, जिसमें कॉलेज के छात्रों को एक ही तरह की सूचनाएँ पढ़ने के लिए दी गई परन्तु कुछ छात्रों से कहा गया कि इन तथ्यों एवं सूचनाओं का स्रोत एक विश्वसनीय व्यक्ति है तथा कुछ छात्रों से कहा गया कि इन तथ्यों एवं सूचनाओं का स्रोत एक कम विश्वसनीय व्यक्ति है। परिणाम में देखा गया कि अधिक विश्वसनीय स्रोत होने पर 23% छात्रों की अभिवृत्ति में परिवर्तन आया परन्तु कम विश्सनीय स्रोत होने पर मात्र 7% छात्रों की अभिवृत्ति में परिवर्तन आया। यह भी देखा गया कि कुछ समय जैसे (4 सप्ताह) के बीतने के बाद विश्वसनीय स्रोत वाले छात्रों की अभिवृत्ति तथा कम विश्वसनीय स्रोत वाले छात्रों की अभिवृत्ति में अन्तर समाप्त हो गया। दूसरे, शब्दो में समय बीतने के परिणामस्वरूप उच्च विश्वसनीय संचारक का प्रभाव कम हो गया तथा निम्न विश्वसनीय संचारक का प्रभाव बढ़ गया।
    (b) आकर्षक संचारक (Attractive communicator): आकर्षक संचारक द्वारा दी गयी सूचानाएँअभिवृत्ति में अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई है। आकर्षकता में दो पक्ष महत्त्वपूर्ण हैं, शारीरिक सुन्दरता, तथा समानता। चाइकिन (Chikin, 1979) तथा पालाक (Pallak1983) एवं उनके सहयोगियों द्वारा किये गये अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि जब सुन्दर लोगों द्वारा कोई तर्क तथा सूचना दी जाती है तो उसका प्रभाव सुनने वाले व्यक्ति की अभिवृत्ति पर अधिक पड़ता है और ऐसे व्यक्ति अपनी अभिवृत्ति में तत्परता के साथ परिवर्तन लाते हैं। जब संचारक में सुन्दरता कम होती है या नहीं होती है तो उनके तर्क का प्रभाव व्यक्ति की अभिवृत्ति पर कम पड़ता है। समानता आकर्षकता का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है। हम लोग वैसे व्यक्तियों को पसंद करते हैं जो हमारे समान होते हैं। फलस्वरूप, वे हमारे लिए आकर्षक होते हैं और उनके द्वारा दी गयी सूचनाओं द्वारा अभिवृत्ति में आसानी से परिवर्तन आ जाता है। डेम्ब्रोस्काई (Dembroskhi) तथा उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन में पाया कि स्कूल के कुछ अश्वेत छात्रों को दांत की देख-रेख से संबंधित कुछ तथ्य अश्वेत संचारकों द्वारा तथा कुछ अन्य अश्वेत छात्रों को उसी प्रकार का तथ्य गोरे संचारकों द्वारा दिये गये। दूसरे दिन जब एक दाँत के डॉक्टर द्वारा उन छात्रों के दाँतों की जांच की गयी तो देखा गया कि जो अश्वेत छात्र अश्वेत संचारक से सुनकर तथ्य प्राप्त किये थे। वे अपनी दाँतों की सफाई उन अश्वेत छात्रों की अपेक्षा अधिक ठीक ढंग से कर रखे थे, जिन्होंने गोरे संचारकों से सुनकर तथ्य प्राप्त किये थे। इन अध्ययनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वैसे व्यक्ति द्वारा दिये गये तथ्यों एवं सूचनाओं से हमारी अभिवृत्ति अधिक परिवर्तित होती है जो हमारे लिए समान होती है।
     संचारण का विषय एवं विशेषता (Content and characteristics of communication): व्यक्ति को दी गयी सूचनाओं का स्वरूप एवं विशेषता भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है जिस पर अभिवृत्ति निर्भर करता है। समाज मनोवैज्ञानिकों ने ऐसी सूचनाओं की विशेषताओं के कई पक्ष का अध्ययन किया है जिसमें निम्नांकित तीन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं
    (a) डर उत्पन्न करने वाली सूचना (Fear-arising appeal): जब कोई तथ्य या सूचना ऐसी होती है जिससे व्यक्ति में ऋणात्मक संवेग जैसे डर उत्पन्न होता है और साथ ही साथ उस डर को कम करने का उपाय भी उनके सामने होता है, तो इससे अभिवृत्ति में परिवर्तन आसानी से होता है। लेवेन्थाल (Leventhal, 1970) एवं रोजस्र तथा न्यूबॉर्न (Rogers &Newbom, 1976) ने अपने प्रयोगों के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि की है। सरकार की ओर से सिगरेट पीने वालों को यह चेतावनी दिया जाना कि सिगरेट पीने से फेफड़ो में कैंसर होता है, डर उत्पन्न कर अभिवृत्ति में परिवर्तन करने वाली सूचना का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
    (b) एक-तरफा बनाम दो-तरफा संचारण (One-sided vs two-sided communication): जब दी जाने वाली सूचना का सिर्फ एक पक्ष अर्थात् धनात्मक या ऋणात्मक पक्ष पर ही संचारक बल देता है, तो इसे एकतरफा संचारण कहा जाता है। परन्तु यदि संचारक सूचना के दोनों पक्षों पर बल डालता है अर्थात् उसके लाभ और हानि दोनों को ही वह बतला देता है तो इसे दो-तरफा संचारण कहा जाता है। होवलैण्ड, लम्सडेन तथा शैफिल्ड (Hovland, Lumsdaine and Sheffield, 1949) ने एक अध्ययन किया जिसमें अमेरिका जापान युद्ध (द्वितीय विश्वयुद्ध से सम्बन्धित सूचना) सैनिकों के दो समूह को दी गयी। एक समूह को एक तरफा सूचना दी गयी जिसमें सिर्फ इस बात पर बल दिया गया कि जापान के साथ अमेरिका का युद्ध लम्बे समय तक चल सकता है क्योंकि जापान के पास अमेरिका को होने वाले लाभों के साधन काफी हैं। दुसरा प्रयोगात्मक समूह को दो-तरफा सूचना दी गयी जिसमें युद्ध से अमेरिका को होने वाले लाभों एवं जापान को होने वाली हानियों पर बल दिया गया। परिणाम में देखा गया कि दो-तरफा सूचना द्वारा अभिवृत्ति में असंगत परिवर्तन अधिक हुए तथा एक तरफा सूचना द्वारा अभिवृत्ति में संगत परिवर्तन अधिक हुए।
    (c) प्राथमिक बनाम अभिनवता (Primary vs. Recency): किसी व्यक्ति या घटना के बारे में पहले दी गयी सूचनाएं उसी व्यक्ति या घटना के बारे में बाद में दी जाने वाली सूचनाओं की अपेक्षा अभिवृत्ति में जल्द परिवर्तन लाती है क्योंकि पहले दी गयी सूचनाओं का आधार व्यक्ति के मस्तिष्क पर अपेक्षाकृत अधिक होता है। पहले दी गयी सूचना के प्रभाव को प्राथमिकता तथा बाद में दी गयी सूचना के प्रभाव को अभिनवता की संज्ञा दी जाती है।
     संचार का माध्यम (Channel or medium of communication): अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए दीजाने वाली सूचना का माध्यम भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है जिससे अभिवृत्ति में परिवर्तन होता है। समाज मनोवैज्ञानिकों ने संचार के निम्नांकित तरह के माध्यमों के प्रभावों का अध्ययन किया है
    (a) सामूहिक माध्यम बनाम व्यक्तिगत प्रभाव (Mass media vs. Personal influence): रेडियो, टेलीविजन, अखबार आदि संचार के सामूहिक माध्यम के उदाहरण है जिसमें संचारक जनता को सामूहिक रूप से किसी बात की सूचना देता है। इनमें संचारक एवं सामान्य व्यक्तियों के बीच में सीधा-सम्बन्ध या आमने-सामने का सम्बन्ध नहीं होता है। व्यक्तिगत प्रभाव में संचारक प्रत्येक व्यक्ति से व्यक्तिगत रूप से मिलकर अपनी बात को समझाता है। लेजानफेल्ड, बेरेलसन तथा गाडेट (Lazarsfeld, Barelson and Guadet, 1944) ने अपने प्रयोग के आधार पर बतलाया है कि किसी विशेष राजनैतिक पार्टी के प्रति वोट देने की अभिवृत्ति के लिए सामूहिक माध्यम से दी गयी सूचना के अपेक्षा कम प्रभावकारी होता है। उसी तरह से एल्डरेभेल्ड एवं डोज (Elderveld and Dodge, 1954) ने अपने अध्ययन में पाया कि जब सूचनाएँ सामूहिक माध्यम के सहारे दी गयी तो किसी विशेष पार्टी के प्रति वोट देने की अभिवृत्ति में मात्र 19% परिवर्तन हुआ। परन्तु जब उसी ढंग की सूचनाएं व्यक्तिगत रूप से सभी लोगों को दी गयीं तो इससे उनकी अभिवृत्ति में 75% परिवर्तन हुआ। इन अध्ययनों से स्पष्ट हुआ कि अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए सामूहिक माध्यम से दी गयी सूचनाएँ व्यक्तिगत रूप से दी गयी सूचनाओं की अपेक्षा कम प्रभावकारी होती हैं।
    (b) सक्रिय अनुभव बनाम निष्क्रिय ग्रहण (Active Experince vs. passive reception): समाज मनोवैज्ञानिकों ने सूचना ग्रहण करने के इन दोनों माध्यमों का तुलनात्मक अध्ययन करके यह दिखलाया है कि जब व्यक्ति कोई अनुभव सक्रिय रूप से क्रियाशील होकर प्राप्त करता है, तो इससे अभिवृत्ति में परिवर्तन तेजी से होता है। परन्तु जब उसे कोई अनुभव दीवार पर कुछ लिखा देखकर या इश्तहार पढ़कर प्राप्त होता है, इससे व्यक्ति की अभिवृत्ति में परिवर्तन कम होता है।
    ➤ श्रोता की विशेषताएँ (Characteristics of audience): अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए किये धारण की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है श्रोतागण कौन हैं, उनकी विशेषताएँ क्या हैं, आदि-आदि। कुछ लोग धारण किये जाने पर अपनी अभिवृत्ति में तुरन्त परिवर्तन कर लेते हैं तथा कुछ लोगों पर प्रभावी धारण का भी कोई असर नहीं पड़ता है। उदाहरणार्थ, जिन व्यक्तियों में आत्म-सम्मान अधिक होता है उनमें आत्मविश्वास अधिक होता है। फलस्वरूप ऐसे व्यक्तियों पर धारण का प्रभाव कम पड़ता है और इनकी अभिवृत्ति परिवर्तन आसानी से नहीं होती है। मेयत्र (Myers, 1988) के अनुसार आक्रमणकारी स्वभाव के व्यक्ति में हठधर्मिता अधिक पायी जाती है एवं वे संकुचित विचार के होते है। फलतः इनकी अभिवृत्ति में भी परिवर्तन लाना आसान नहीं होता। श्रोतागण के उम्र का भी प्रभाव उनकी अभिवृत्ति परिवर्तनशीलता पर पड़ता है। सीयस्र (Sears, 1979) ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बताया है कि जैस-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती जाती है, उसकी अभिवृत्ति में परिवर्तन एक खास दिशा में होता जाता है। दूसरे शब्दों में, उनकी अभिवृत्ति में उदारता कम होती जाती है तथा अनुदारता बढ़ती जाती है। यही कारण है कि बूढ़े व्यक्तियों की सामाजिक अभिवृत्ति एक वयस्क की सामाजिक अभिवृत्ति की अपेक्षा अधिक अनुदार होती हैं। हमारे देश में सह-शिक्षा के प्रति अधिकतर बूढ़े व्यक्ति की अभिवृत्ति उसी कारण नकारात्मक होती है।
    (v) बाधित सम्पर्क (Enforced contact): अभिवृत्ति परिवर्तन में बाधित सम्पर्क का भी महत्त्व काफी अधिक है। बाधित सम्पर्क से तात्पर्य वैसे सम्पर्क से होता है जिसमें व्यक्तियों को कछ ऐसे व्यक्तियों के साथ लाचारी में अन्त:क्रिया करना पड़ता है जिनके साथ वह अन्त:क्रिया करना सचमुच में नहीं चाहता है। उदाहरणार्थ, एक दलित एवं एक ब्राह्मण को एक ही कमरे में यदि एक साथ रहने को कहा जाय, तो यह एक बाधित सम्पर्क का उदाहरण होगा। साथ ही बाधित सम्पर्क में व्यक्तियों को एक-दूसरे को समझने का मौका गहन रूप से मिलता है। फलस्वरूप एक-दूसरे के प्रति उनकी अभिवृत्ति में धीरे-धीरे अपने आप ही परिवर्तन हो सकते हैं। ब्राह्मण को दलितों के साथ रहने पर सम्भव है कि उसकी अभिवृत्ति नकारात्मक से बदलकर स्वीकारात्मक हो जाय (असंगत परिवर्तन) या सम्भव है कि नकारात्मक से और अधिक नकारात्मक हो जाय (संगत परिवर्तन)।
    (vi) अपेक्षित भूमिका निर्वाह (Required role playing): कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति को कुछ ऐसी क्रियाएँ या व्यवहार लोगों के सामने करना होता है जिसे वह नहीं करना चाहता है क्योंकि ऐसी क्रियाएँ उसकी निजी अभिवृत्ति के विपरीत होती हैं। ऐसा पाया गया है कि इस तरह की भूमिका करते-करते व्यक्ति की निजी अभिवृत्ति परिवर्तित होकर किये गये व्यवहार के अनुकूल हो जाती है, अर्थात् वह आम अभिवृत्ति के समान हो जाती है। कल्बर्टसन (Culberatson, 1957), ने एक प्रयोगशाला प्रयोग किया जिसमें पाया कि भूमिका निर्वाह के कारण निग्रो के प्रति प्रयोज्य की सामान्य अभिवृत्ति तथा निग्रो गोरे आवासीय संगठन के प्रति प्रयोज्यों की विशिष्ट अभिवृत्ति में क्रमशः 76.1% तथा 76.7% प्रतिशत धनात्मक परिवर्तन हुआ। इतना ही नहीं, भूमिका देखने वाले व्यक्तियों की सामान्य अभिवृत्ति में क्रमश: 58.8% तथा 42.9% परिवर्तन हुआ।
    जैनिस तथा किंग (Janis &Kings, 1954) तथा किंग एवं जैनिस (King & Janis, 1956) ने भी अपने अध्ययनों में इसी ढंग का तथ्य पाया है। इन लोगों ने भूमिका निर्वाह के प्रभाव के कारण अभिवृत्ति में होने वाले परिवर्तन की व्याख्या करने के लिए दो प्राक्कल्पना दी आशुक्रिया प्राक्कल्पना तथा सन्तोष प्राक्कल्पना। आशुक्रिया प्राक्कल्पना के अनुसार भूमिका-निर्वाहक की अभिवृत्ति में परिवर्तन इसलिए आता है क्योंकि उसे भूमिका करने से एक सन्तोष होता है जिससे भूमिका निर्वाहन की अभिवृत्ति इसलिए आता है क्योंकि उसे भूमिका करने से एक सन्तोष होता है और फलस्वरूप, वह उसी के अनुसार अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन कर लेता है। किंग एवं जैनिस (King & Janis. 1956) ने अपने अध्ययनों में इन दोनों तरह की प्राक्कल्पनाओं द्वारा अभिवृत्ति परिवर्तन की व्याख्या की पुष्टि की है।
    (vii) व्यक्तित्व परिवर्तन प्रविधियाँ (Personality change techniques): कुछ समाज मनोवैज्ञानिकोंने परिवर्तन लाकर उनकी अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाने की कोशिश की है। मनोवैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि व्यक्तित्व संरचना में परिवर्तन लाने से व्यक्ति की अभिवृत्ति में होने वाला परिवर्तन अपेक्षाकृत अधि क स्थायी होता है। एक्सलाईन (Axline, 1948) द्वारा किये गये अध्ययन से उपर्युक्त तथ्यों को पूर्ण समर्थन मिलता है। इस अध्ययन में सात वर्षीय कुछ ऐसे गोरे समस्यात्मक बच्चों को लिया गया जो प्रजातीय अभिवृत्तियों से काफी पीड़ित थे अर्थात् ऐसे बच्चे निग्रो बच्चों के प्रति या तो काफी आक्रामक थे
    या काफी असामाजिक व्यवहार करते थे। गोरे बच्चों के व्यक्तित्व में खेल चिकित्सा द्वारा परिवर्तन लाया गया जिसके बाद यह भी देखा गया कि निग्रो बच्चों के प्रति उदारता एवं प्रेम बढ़ गया। काज (Katz 1956) तथा उनके सहयोगियों ने भी एक अध्ययन किया जिसमें निग्रो के प्रति अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए तथ्यपूर्ण सूचना अपील तथा आत्म-सूझ विधि का तुलनात्मक अध्ययन किया गया और उन्होंने पाया कि निग्रो बच्चों के प्रति गोरे प्रयोज्यों की प्रतिकूल अभिवृत्ति में तथ्यपूर्णसूचना अपील विधि द्वारा कोई परिवर्तन नहीं हुआ परन्तु आत्म-सूझ विधि द्वारा विशेषकर वैसे गोरे व्यक्तियों की अभिवृत्ति में परिवर्तन हुआ जिनमें आत्म-रक्षात्मकता का शीलगुण कम था। इन अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि व्यक्तित्व परिवर्तन द्वारा भी व्यक्ति की अभिवृत्ति में परिवर्तन होता है।
    (viii) सांस्कृतिक कारक (Cultural factors): प्रत्येक समाज की एक संस्कृति होती है जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व विकसित होता है। संस्कृति के मूल्यों, मानदण्डों आदि में परिवर्तन होने से व्यक्ति में पहले से चली आ रही अभिवृत्तियाँ बदले हुए सांस्कृतिक मूल्यों एवं मानदण्डों के अनुसार विकसित हो जाती हैं। फैल्डमैन (Feldman, 1985) तथा मेयस्र (Myers, 1987) ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों में पाया है कि भिन्न-भिन्न संस्कृति में पले व्यक्तियों की अभिवृत्ति एक ही तरह की सामाजिक समस्या के प्रति एक समान नहीं होती है और इस सांस्कृतिक विभिन्नता के कारण उनकी अभिवृत्तियों में परिवर्तन का प्रयास भी एक समान का परिणाम नहीं देता है। मेयत्र (Myers, 1987) ने अपने अध्ययनों में पाया कि यहूदी छात्रों में ईश्वर, युद्ध तथा संतति-नियमन के प्रति अभिवृत्ति में आसानी से परिवर्तन लाया जा सकता था कैथोलिक या ईसाई छात्रों में इन सब विषयों के प्रति अभिवृत्ति में परिवर्तन लाना एक दुष्कर कार्य के समान था।
    (ix) प्रचार (Propaganda): अभिवृत्ति परिवर्तन में प्रचार का महत्त्व कितना है, यह सभी को विदित है।रेडियो, सिनेमा, दूरदर्शन तथा समाचार-पत्र आधुनिक युग में प्रचार के प्रमुख साधन हैं। साधनों का उपयोग सरकार तथा विज्ञापनकार अथवा अप्रत्यक्ष कुछ भी हो सकता है। अभिवृत्ति परिवर्तन में लिखित प्रचार की अपेक्षा मौखिक प्रचार तथा अप्रत्यक्ष प्रचार की अपेक्षा प्रत्यक्ष प्रचार अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। भारत सरकार अनेक महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं जैसे वयस्क शिक्षा, दहेज-प्रथा, परिवार कल्याण या परिवार नियोजन,दलित एवं पिछड़ी जातियों की समस्याएँ आदि के प्रति विभिन्न तरह के प्रचार द्वारा जनता की अभिवृत्ति में वांछित दिशा में काफी हद तक परिवर्तन करने में सफल हो सकी है।
    उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अभिवृत्ति परिवर्तन बहुत से कारकों द्वारा निर्धारित होता है। इन सभी कारकों में से प्रभावी या विश्वासोत्पादक संचारण समाज मनोवैज्ञानिकों द्वारा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक बतलाया गया है। चूंकि अभिवृत्ति परिवर्तन में अनेकों कारकों का योगदान होता है, इसलिए इसे (यानी अभिवृत्ति परिवर्तन को), क्रेच, क्रचफिल्ड एवं बैलेची (Kretch, Crutchfield & Ballachey, 1962) ने 'बहुनिर्धारित' कारक कहा है

अभिवृत्ति परिवर्तन कब कठिन हो जाता है?


दिन प्रतिदिन को जिन्दगी में हमारी अभिवृत्तियों को परिवर्तन करने के लिए अनेकों तरह के प्रभावी संचारण किये जाते है। प्रभावी संचारण अभिवृत्ति परिवर्तन का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है और इसकी विस्तृत चर्चा अनुच्छेद में की जा चुकी है। अनेकों तरह के प्रभावी संचारण के बावजूद भी हमारी अभिवृत्ति में तुरन्त-तुरन्त परिवर्तन नहीं होता है अर्थात् धारण या धारण की कोशिश बेकार हो जाती है। किसी समस्या या विषय के प्रति प्रायः हम एक स्थिर अभिवृत्ति कुछ समय तक अवश्य ही बना कर रखते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि अभिवृत्ति परिवर्तन में स्थिरता क्यों आती है? अनेकों तरह के प्रभावी संचरण के बावजूद भी हम किसी समस्या या विषय के प्रति एक स्थिर अभिवृत्ति बनाकर क्यों रखते हैं? समाज मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस विषय पर हाल के वर्षों में काफी शोध एवं प्रयोग किए गये हैं। इन शोधों एवं प्रयोगों के आधार पर इन लोगों ने निम्नांकित पांच कारकों को अभिवृत्ति परिवर्तन में सबसे प्रमुख बाधक कारक माना है, जो प्रतिघात, पूर्वचेतावनी एवं अभिवृत्ति टीका, चयनात्मक परिहार तथा प्रतितर्क (Counter Argument) है।
इन पाँचों कारकों का वर्णन निम्नांकित है:

  1. प्रतिघात (Reactance): जब कोई व्यक्ति अपने विचार या मत को स्वीकार कराने के ख्याल से किसी दूसरे व्यक्ति पर अधिक बल डालता है तो प्रायः देखा जाता है कि दूसरा व्यक्ति उनके द्वारा बताए गए विचारों का ठीक विपरीत विचार या मत बना लेने को ठान लेता है। इसे ही समाज मनोविज्ञान में प्रतिघात की संज्ञा दी जाती है। प्रतिघात की परिस्थिति में संचारक द्वारा बताई गई दिशा में व्यक्ति की अभिवृत्ति में परिवर्तन नहीं होता है। समाज मनोवैज्ञानिकों के अनुसार प्रतिघात की स्थिति में वांछित दिशा में अभिवृत्ति में परिवर्तन इसलिए नहीं होता क्योंकि ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने विचारों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को खतरे में पाता है। ब्रह्म (Brehm 1966) तथा रोडवाल्ट एवं डेविसन (Rhodewalt & Davison, 1983) ने प्रतिघात को एक नकारात्मक अभिवृत्ति की स्थिति कहा है। प्रतिघात का उदाहरण हमारे दैनिक जीवन में काफी मिलता है। जब कोई दुकानदार कोई विशेष कम्पनी का ही माल खरीदने पर अधिक बल डालता है तो प्रायः व्यक्ति सचेत होकर यह सोचने लगता है, "आखिर बात क्या है, वह दूसरी कम्पनी के माल के बारे में कुछ नहीं कह रहा है। कम-से-कम अभी हमें उसकी बातों में नहीं आना चाहिए।" 
  2. पूर्व चेतावनी (Forewarning): कई समाज मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि जब व्यक्ति किसी समस्या या विषय को महत्त्वपूर्ण समझता है और पहले से उसे किसी तरह यह पता हो जाता है कि इस सूचना या संचारण का उद्देश्य उनकी अभिवृत्ति में मात्र परविर्तन करना है, तो वैसी सूचनाओं या संचारणों का प्रभाव व्यक्ति, पर कम पड़ता है या यूँ कहें कि न के बराबर पड़ता है। इसे ही समाज मनोविज्ञान में पूर्व चेतावनी की संज्ञा दी गयी। बेरोन एवं बर्न (Baron and Byrme, 1987) ने टिप्पणी करते हुए ठीक ही कहा है, "जब हम लोग यह जान लेते हैं कि कोई भाषण अभिलेखित सन्देश या लिखित अपील हमारे विचारों को बदलने के लिए ही तैयार किया गया है, तो प्रायः इससे हम लोग बहुत कम ही प्रभावित होते हैं।" 
  3. अभिवृत्ति टीका (Attitude inoculation): समाज मनोविज्ञान में अभिवृत्ति टीका का सिद्धांत मैकगुरी (Mcguire, 1969) द्वारा प्रतिपादित किया गया है। इनका विचार था कि जिस तरह से बच्चों को पोलियो, कुकुरखाँसी आदि पर टीका लगा देने से भविष्य में बच्चे, पोलियो तथा कुकुरखाँसी के प्रभाव  से मुक्त हो जाते हैं अर्थात् उन पर इन जानलेवा बीमारियों का कोई खास असर नहीं होता है, ठीक उसी तरह से यदि किसी व्यक्ति की अपनी अभिवत्ति के विपरीत विचारों से हल्के-फुल्के ढंग से यदि पहले से परिचित करा दिया जाये तो उसकी अभिवृत्ति में परिवर्तन करने के लिए जो प्रभावी संचारण किया जाता है, उसका अभिवृत्ति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। ऐसा इसलिए होता है कि व्यक्ति को पहले अपनी अभिवृत्ति के विपरीत विचारों द्वारा झटका या 'टीका' लगा दिया गया होता है तथा उसे अभिवत्ति परिवर्तन का कीड़ा सिद्धान्त (germ theory) कहा जाता है। इससे उसमें ऐसे विचारों को सहने की शक्ति तीव्र हो जाती है। मैकगुरी (Mcgurie, 1961) ने इस तरह की मानसिक स्थिति को 'अभिवृत्ति टीका'(attitude inoculation) की संज्ञा दी है।
  4. चयनात्मक परिहार (Selective avoidance): धारण (persuasion) के माध्यम से अभिवृत्ति परिवर्तन में किये गए प्रयास को चयनात्मक परिहार द्वारा भी रोका जाता है। चयनात्मक परिहार में उन सूचनाओं की ओर से व्यक्ति अपना ध्यान हटा लेता है जिसके माध्यम से मौजूदा अभिवृत्ति को चुनौती दिया जाता है। इस तरह की प्रवृत्ति से व्यक्ति में धारण के प्रति प्रतिरोध (resistance) बढ़ जाता है और किया गया धारण बहुत ही प्रभावकारी नहीं हो पाता है। दूरदर्शन पर कार्यक्रम देखना चयनात्मक परिहार का एक उत्तम उदाहरण है क्योंकि इसमें व्यक्ति कई कार्यक्रमों को नहीं देखता है या फिर उसे खामोश कर देता है या फिर बन्द कर देता है। दूसरे तरफ जब कोई सूचना व्यक्ति की अभिवृत्ति के अनुकल होती है, तो उस पर काफी ध्यान देता है। सचमुच में, व्यक्ति की प्रवृत्ति जिसके माध्यम से वह अपनी अभिवृत्ति के विपरीत सूचनाओं की उपेक्षा करता है तथा अपनी अभिवृत्ति से संगत (consistant) सूचनाओं पर ध्यान देता है, को संयुक्त समाज मनोवैज्ञानिकों द्वारा चयनात्मक अनावरण की संज्ञा दी गयी है। ?
  5. प्रतितर्क-वितर्क (Counterargument): धारण की प्रभावशीलता को व्यक्ति प्रतितर्क-वितर्क करके भी रोकता है और इस तरह से ऐसी परिस्थिति में अभिवृत्ति परिवर्तन काफी कठिन हो जाता है। ऐसा करने

    से व्यक्ति उस विरोधी विचार को याद तो लम्बे समय तक रखता है परंतु वह अभिवृत्ति पर पड़ने वाले प्रभाव को कम कर देता है। एगली तथा उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन के आधार पर इस तथ्य की संपुष्टि की है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने छात्रों के दो समूह को चुना जिसमें से एक समूह की अभिवृत्ति एक महिला संचारक द्वारा गर्भपात के बारे में दिए गए संदेश के प्रति स्वीकारात्मक थी तथा दुसरे समूह के छात्र की अभिवृत्ति इस तरह के संदेश के प्रति नकारात्मक थी। संदेश में से कुछ संदेश उनकी अभिवृत्ति के अनुकूल या संगत (consistent) था तथा कुछ संदेश उनकी अभिवृत्ति के साथ असंगत (inconsistent) या विरुद्ध था।
    संदेश को सुनने के बाद सहभागियों को अपनी अभिवृत्ति के बारे में बतलाना था जिसमें मुख्य रूप से दो बातों का जिक्र आवश्यक था, वे अपने अभिव्यक्त विचारों के प्रति कितना दृढ़ हैं तथा संदेश में सम्मिलित सभी तरह के तर्क-वितर्क को याद करके बतलाना था। इसके अतिरिक्त उनसे यह भी बतलाने के लिए कहा गया कि जब वे संदेश को सुन रहे थे, तो उनके मन में किस-किस तरह के विचार उत्पन्न हो रहे थे। इससे यह पता चलता था कि किस सीमा तक वे उस संदेश के प्रति जो उनकी अभिवृत्ति के विपरीत था, के प्रति आंतरिक रूप से प्रतितर्क-वितर्क (counterargument) कर रहे थे। परिणाम में पाया गया कि अभिवृत्ति विरोधी संदेश तथा अभिवृत्ति समर्थित संदेश को समान रूप से प्रतिभागियों द्वारा रखा गया। परन्तु अभिवृत्ति विरोधी संदेश के बारे में प्रतिभागियों द्वारा अधिक क्रमबद्ध रूप से सोचने की बात बतलायी और उसके बारे में अधिक विरोधी संदेश मन में आने के बारे में सहभागियों ने इससे यह पता चलता है कि स्पष्ट रूप से वे संदेश के विपरीत तर्क-वितर्क कर रहे थे।
    इसके विपरीत, अभिवृत्ति के समर्थन में संदेश के होने पर वे अधिक समर्थनयुक्त विचार मन में होने की बात बतलाये। इस परिणाम से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति धारण को इसलिए सफलतापूर्वक रोक पाता है क्योंकि व्यक्ति ऐसी सूचनाओं को जो व्यक्ति की मौजूदा विचारधाराओं से मेल नहीं खाती, न केवल उपेक्षा करता है, बल्कि ऐसी सूचनाओं को व्यक्ति काफी सावधानीपूर्वक एवं क्रमबद्ध से संसाधित करता है और उसके विपरीत तर्क-वितर्क करता है। इसका मतलब यह हुआ कि व्यक्ति अपनी वर्तमान अभिवृत्ति में किये जाने वाले परिवर्तन के किसी भी प्रयास के विपरीत एक मजबूत सुरक्षा कवच बनाने की कोशिश करता है।

निष्कर्ष 
यह है कि अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए किया गया प्रभावी संचारण हमेशा प्रभावकारी नहीं होता क्योंकि कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनमें वैसे संचारण का प्रभाव बिल्कुल ही कम हो जाता है।

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FAQs on अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत - नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi

1. अभिवृत्ति में परिवर्तन क्या है?
उत्तर: अभिवृत्ति में परिवर्तन एक सिद्धांत है जिसके अनुसार आपकी सेवानिवृत्ति के बाद आपको अपने चयनित क्षेत्र में अतिरिक्त कार्य करने के लिए मौका मिलता है। इसका अर्थ है कि जब आप सेवानिवृत्त हो जाते हैं, तो आपको पुनः सरकारी नौकरी का मौका मिल सकता है।
2. अभिवृत्ति परिवर्तन क्या है?
उत्तर: अभिवृत्ति परिवर्तन विधान का नाम है जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद भी सरकारी नौकरी में बने रहने का अधिकार होता है। इसका मतलब है कि जब आप सेवानिवृत्त हो जाते हैं, तो आपको अपनी सरकारी नौकरी में बने रहने का अधिकार होता है।
3. अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत में क्या अंतर है?
उत्तर: अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांतों में एक मुख्य अंतर है। अभिवृत्ति में परिवर्तन का मतलब होता है कि जब आप सेवानिवृत्त हो जाते हैं, तो आपको अपने चयनित क्षेत्र में अतिरिक्त कार्य करने का मौका मिलता है। वहीं, अभिवृत्ति परिवर्तन का मतलब होता है कि जब आप सेवानिवृत्त हो जाते हैं, तो आपको अपनी सरकारी नौकरी में बने रहने का अधिकार होता है।
4. अभिवृत्ति में परिवर्तन के लिए कौन सा विधान प्रयोग में आता है?
उत्तर: अभिवृत्ति में परिवर्तन के लिए राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में सेवानिवृत्ति परिवर्तन विधान प्रयोग में आता है। यह विधान निर्धारित करता है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी सरकारी कर्मचारी को सरकारी नौकरी में बने रहने का अधिकार होता है।
5. अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर: अभिवृत्ति में परिवर्तन और अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत एक साथ व्यक्तिगत कर्मचारियों के लिए निर्धारित किए गए हैं। अभिवृत्ति में परिवर्तन सिद्धांत के अनुसार, सेवानिवृत्ति के बाद भी कर्मचारी को अतिरिक्त कार्य करने का मौका मिलता है जबकि अभिवृत्ति परिवर्तन सिद्धांत के अनुसार, सेवानिवृत्ति के बाद भी कर्मचारी को सरकारी नौकरी में बने रहने का अधिकार होता है।
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