आपदा प्रबंधन: परिचय | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

आपदा की परिभाषा 

कैम्ब्रिज डिक्शनरी के अनुसार, “एक आपदा एक घटना है जिसके परिणामस्वरूप बहुत नुकसान होता है और क्षति, मृत्यु या गंभीर कठिनाई होती है।"

शब्द साधन

'डिजास्टर' शब्द मध्य फ्रेंच शब्द 'डिस्ट्रेस्ट' से लिया गया है। इस फ्रांसीसी शब्द की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक शब्द "डस" से हुई है जिसका अर्थ है बुरा' और "एस्टर जिसका अर्थ है 'स्टार'। आपदा शब्द की जड़ ग्रहों की स्थिति पर दोष वाली आपदा के ज्योतिषीय अर्थ से आती है।

आपदाओं का वर्गीकरण

आपदाओं को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है: 

  1. प्राकृतिक आपदाएं
  2. मानव निर्मित आपदाएँ

➤  प्राकृतिक आपदाः

एक प्राकृतिक आपदा एक प्रतिकूल घटना है जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होती है। एक प्राकृतिक आपदा या आपदा से संपत्ति को नुकसान और जीवन की हानि हो सकती है। सुनामी, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकंप प्राकृतिक आपदा के कुछ उदाहरण हैं। जीवन के नुकसान के अलावा, इन आपदाओं से इसके मद्देनजर बहुत अधिक आर्थिक क्षति होती है।

➤ मानव निर्मित आपदाएँ:

मानव निर्मित आपदाएँ तकनीकी खतरों के प्रभाव हैं। आग, परिवहन दुर्घटनाएँ, परमाणु विस्फोट, आतंकवादी हमले, तेल रिसाव और युद्ध सभी इस श्रेणी में आते हैं।

भारत में आपदाएँ


  • कोई भी देश आपदाओं से सुरक्षित नहीं है, इसलिए भारत है। अपनी भौगोलिक स्थिति और विविध जलवायु के कारण, भारत एक अत्यधिक आपदा प्रवण देश है। देश में भूकंप, चक्रवात, सूखा, बाढ़, आंधी और भूस्खलन आदि से बहुत सारी आपदाओं का सामना करना पड़ा है।
  • भारत में हाल ही में कुछ आपदाएँ हुई हैं जैसे कि केरल में बाढ़, तमिलनाडु में चक्रवात, उत्तर भारत में भूकंप। भोपाल में गैस त्रासदी एक प्रौद्योगिकी से संबंधित आपदा का उदाहरण है जो 1994 में भोपाल, मध्य प्रदेश में हुई थी।

प्रभाव के बाद

एक आपदा के बाद के प्रभाव घातक हो सकते हैं। पशुओं के साथ-साथ मनुष्यों के जीवन का भी भारी नुकसान हुआ है। संपत्ति का नुकसान भी आपदाओं का एक परिणाम है।

आपदाओं पर सरकार के उपाय

  • भारत में, सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों और देश के लोगों पर आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न संस्थानों, फंडों की स्थापना की है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC), इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), केंद्रीय जल आयोग (CWC) जैसे संगठन अथक रूप से काम कर रहे हैं और आपदाओं के दौरान लोगों से निपटने में मदद करने के लिए अनुकूल शोध कर रहे हैं।
  • राज्य और केंद्र सरकार के बीच समन्वय और संचार की कमी के कारण, संसाधन और जनशक्ति सामान्य से अधिक समय लेते हैं। एक और कारण उपलब्ध संसाधनों की कमी है।

निष्कर्षः

आपदाओं से बचा नहीं जा सकता है. हम हमेशा उनके लिए पहले। से तैयार रह सकते हैं। और इसके लिए, हमें नवीनतम तकनीकों के साथ अद्यतित रहने की आवश्यकता है ताकि लोगों, जानवरों और पौधों के जीवन पर प्रभाव को कम किया जा सके।

आपदा प्रबंधन


  • आपदा प्रबंधन को आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए आपातकाल के मानवीय पहलुओं से निपटने के लिए जिम्मेदारियों और संसाधनों के संगठन और प्रबंधन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • आपदा से अभिप्राय प्राकृतिक अथवा मानव जनित कारणों से होने वाली कोई भी विपत्ति या दुर्घटना से है, जो मानव समुदाय को व्यापक रूप से प्रभावित करती है, जबकि आपदा प्रबंधन इन आपदाओं से निपटने हेतु विभिन्न कार्यों का किया गया प्रबंधन है। आपदा प्रबंधन एक प्रकार की सतत् प्रक्रिया है, जिसमें आपदा-पूर्व के चरण में आपदा से निपटने की तैयारी, उसकी रोकथाम, शमन आदि शामिल हैं, जबकि आपदा-उपरान्त के चरण में पुनर्वास, पुनर्निर्माण तथा सामान्य स्थिति की बहाली शामिल है।
  • वर्तमान में विश्व में आपदाओं की संख्या बढ़ती जा रही है एवं इसका प्रभाव भी व्यापक होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में आपदा प्रबंधन वास्तव में एक प्रमुख मंथन का विषय बन गया है। आपदा प्रबंधन में आपदा पूर्व और आपदा पश्चात् दोनों कार्यवाहियों सहित आपदाओं के न्यूनीकरण के सभी पहलू शामिल होते हैं।

आपदा प्रबंधन के महत्वपूर्ण बिन्दु

आपदा प्रबंधन हेतु बेहतर योजना संचालन, समन्वय और कार्यान्वयन की सतत् एवं एकीकृत प्रक्रिया जरूरी है, जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं को शामिल किया जा सकता है -

  1. आपदा के खतरे अथवा सम्भावना की रोकथाम।
  2. आपदा के जोखिम, उसकी तीव्रता एवं इसके परिणामों का बेहतर प्रशासनिक उपयोगों द्वारा न्यूनीकरण।
  3. अनुसंधान एवं उचित प्रबंधन सहित आपदा न्यूनीकरण क्षमता का निर्माण।
  4. आपदा से निपटने के लिए समुचित तैयारी।
  5. आपदा की संभावित स्थिति का सटीक आकलन तथा आपदा आने पर त्वरित कार्यवाही।
  6.  फंसे हुए लोगो को निकालना, बचाव और राहत कार्य।
  7. पुनर्वास और पुनर्निर्माण।

आपदा प्रबंधन के चरण


सामान्यतया किसी आपदा के घटित होने एवं उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं का 3 चरणों में अध्ययन किया जाता है -

  1. आपदा पूर्व/पूर्वानुमान अवस्था (Pre-Disaster/Antisipatory Stage)
  2. आपदा के समय/सहभागिता अवस्था (On-Disaster/Participatory Stage)।
  3. आपदा उपरान्त/ पुनः प्राप्ति अवस्था (Post-Disaster/Recovery Stage)।

आपदा पूर्व/पूर्वानुमान अवस्था (Pre-Disaster/Antisipatory Stage)

आपदा प्रबंधन के अन्तर्गत आपदा पूर्व अवस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं -

  1. सम्भावित प्रकोप एवं आपदा से प्रभावित होने वाले लोगों को समय रहते सूचना देना।
  2. क्षेत्र विशेष के समुदाय को सम्भावित आपदा से निपटने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना।
  3. सम्भावित प्रतिकूल प्रभावों को न्यूनतम करना ।
  4. प्रकोप को आने से रोकना।
  5. प्राकृतिक प्रकोपों की प्रचण्डता को कम करना।
  6. प्राकृतिक प्रकोपों विशेषकर वायुमण्डलीय तूफानों (टॉरनेडो, चक्रवात आदि) की दिशा एवं मार्ग में परिवर्तन करना आदि। आपदा के पूर्व चरण में निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं -

आपदा तैयारी

आपदा तैयारी का सामान्य अर्थ होता है - किसी क्षेत्र तथा मानव समुदाय में किसी प्रकोप के आने की दशा में उससे निपटने के लिए आवश्यक प्रबन्धन तथा तैयारी करना। इसके अन्तर्गत किसी प्रकोप एवं आपदा का तथा मानव समुदाय पर उसके प्रभाव का अध्ययन करना, उसके स्वरूप एवं उत्पत्ति की प्रक्रिया तथा प्रचण्डता का निर्धारण करना, आपदा के जोखिम का आकलन करना, संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना, आपदा के प्रतिकूल प्रभावों एवं क्षति के सम्बन्ध में लोगों को जागरूक करना आदि शामिल हैं।

आपदा योजना का निर्माण

इसके अन्तर्गत राहत कार्य, पुनःप्राप्ति एवं पुनर्वास कार्यों के लिए ऐसी ढांचागत सुविधाओं का निर्माण करना शामिल है, जिनका आपदा के उपरान्त समुचित ढंग से उपयोग किया जा सके। आवश्यक ढांचागत सुविधाओं के अन्तर्गत त्वरित बचाव कार्यक्रम, भोजन एवं आवास की व्यवस्था, स्वच्छ जल की उपलब्धता, परिवहन एवं संचार की व्यवस्था बहाल करना तथा जीवन-रक्षक औषधि मुहैया करना आदि सम्मिलित किए जाते हैं।

आपदा न्यूनीकरण हेतु आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था करना

इसके अन्तर्गत संस्थागत सुविधाओं को सुलभ कराने के लिए निम्नलिखित सपोर्ट सिस्टम, जैसे - त्वरित चेतावनी प्रणाली, एकीकृत प्रशासनिक तंत्र, पर्याप्त आर्थिक सहायता, चिकित्सा एवं चिकित्सीय उपकरण, आपदा सम्बंधी शिक्षा एवं जन-जागरूकता, आपदा की सूचनाओं एवं जानकारी का प्रसारण तथा सम्प्रेषण आदि शामिल है। अतः इनकी दिशा में प्रयास अपेक्षित है।

आपदा विशेष पर शोध करना

इसके अन्तर्गत निम्नलिखित पक्षों को सम्मिलित किया जाता है - प्रकोप एवं आपदा के प्रकार एंव स्वरूप, उत्तरदायी कारक, आपदा सुभेद्यता क्षेत्रों का मापन एवं मानचित्रण, पूर्वानुमान, प्राकृतिक प्रकोपों की निगरानी आदि ।

आपदा चेतावनी प्रणाली का विकास करना

इसके अन्तर्गत किसी भी आपदा से प्रभावित होने वाले क्षेत्र के मानव समुदाय को उस सम्भावित आपदा के विभिन्न पक्षों से अवगत कराया जाता है। आपदा चेतावनी प्रणाली के अन्तर्गत पूर्व चेतावनी की आधुनिकतम तकनीकों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे - रडार, रेडियो, टेलीविजन, सामाचार पत्र, लाउडस्पीकर, इन्टरनेट आदि । इसके अतिरिक्त स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आपदा चेतावनी केन्द्रों की स्थापना करना तथा विभिन्न आपदाओं की प्रकृति, उत्पत्ति, प्रभाव क्षति का प्रकार एवं मात्रा आदि से आम जनता को अवगत कराना है, ताकि विभिन्न आपदाओं का दुष्प्रभाव न्यूनतम हो सके।

आपदा न्यूनीकरण के उपाय करना

आपदा न्यूनीकरण का मुख्य उद्देश्य मनुष्यों के जान की सुरक्षा के साथ-साथ उनकी सम्पत्ति को बचाने या आर्थिक क्षति को कम करना होता है। आपदा न्यूनीकरण को स्वरूप आपदा की प्रकृति तथा आपदा से प्रभावित होने वाले क्षेत्र की पर्यावरणीय दशाओं पर निर्भर करता है। प्राकृतिक आपदाओं द्वारा होने वाले प्रतिकूल प्रभावों विशेषकर आर्थिक क्षति को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय कारगर होते हैं -

  1. आपदा से प्रभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण एवं मानचित्रण तथा आपदामण्डल मानचित्र का निर्माण ।
  2. आपदा प्रभावित क्षेत्रों में समुचित भूमि उपयोग, नियोजन तथा आपदा को और अधिक सक्रिय करने वाले भूमि उपयोग को रोकना।
  3. सागर दीवार के निर्माण एवं मैंग्रोव के रोपण द्वारा तटीय रक्षण की व्यवस्था करना।
  4. भवनों की संरचना में सुधार तथा आपदाओं से सुरक्षित भवनों के डिजाइन कोड का अनुकरण करना।

आपदा न्यूनीकरण का कोई भी कार्यक्रम या उपाय तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक कि पर्याप्त धन एवं ढांचागत सुविधाएं सुलभ नहीं हो पाती। अतः आपदा न्यूनीकरण कार्यक्रमों में सरकारी सहायता अत्यन्त आवश्यक है। इनमें स्थानीय जनता विभिन्न समुदाय व संगठनों की सक्रिय भागीदारी भी अपेक्षित है ताकि आपदा न्यूनीकरण के कार्यक्रमों एवं उपायों का लाभ आपदा से प्रभावित लोगों तक आसानी से पहुंच सके।

आपदा के समय/सहभागिता अवस्था (On-Disaster/Participatory Stage)

जब कोई संकट वास्तव में उत्पन्न होता है, तब उससे प्रभावित होने वालों की पीड़ा और क्षति दूर करने तथा उसे न्यूनतम करने हेतु तीव्र कार्यवाही की अपेक्षा होती है। इस चरण में कुछ प्राथमिक कार्यकलाप अनिवार्य हो जाते हैं। ये कार्यकलाप पीड़ितों की खोज, उनकी निकासी तथा उनके बचाव और उसके बाद बुनियादी आवश्यकताओं, जैसे - भोजन, वस्त्र, आश्रय स्थल, दवाइयां तथा प्रभावित समुदाय के समान्य जीवन हेतु अन्य आवश्यकताओं से संबंधित होते हैं । इन आवश्यकताओं की त्वरित पूर्ति हेतु प्रत्येक स्तर पर त्वरित कार्यवाही के साथ-साथ विभिन्न स्तरों पर समन्वय की आवश्यकता होती है।

आपदा उपरान्त/पुन: प्राप्ति अवस्था (Post-Disaster/Recovery Stage)

आपदा प्रबंधन की आपदा के उपरान्त की अवस्था किसी भी आपदा से दुष्प्रभावित समुदाय की आपदाओं द्वारा उत्पन्न त्रासदी को झेलने की लोचकता (Resilience) की प्रतीक होती है। इस अवस्था के अन्तर्गत निम्नलिखित चरण सम्मिलित किए जाते हैं -

  • राहत कार्य (Relief Work)
  • आपदा पुनरूत्थान (Disaster Recurrence)
  • आपदा पुनर्वास (Disaster Rehabilitation)

राहत कार्य (Relief Work)

  • किसी भी आपदा के तत्काल बाद की अवधि राहत कार्य के अन्तर्गत आती है। इसके तहत् मलबे में दबे लोगों को बाहर निकालना, आश्रय, स्वच्छ जल, भोजन, चिकित्सीय देखभाल, बिजली आपूर्ति संचार एवं परिवहन को पुनः स्थापित करना शामिल होता है।
  • आपदा के समय मानव समाज में एक-दूसरे की सहायता करने की सहज सामाजिक अनुक्रिया के परिणामस्वरूप तात्कालिक रूप आपदा न्यूनीकरण होता है। सरकार और नागरिकों की प्रभावी अनुक्रिया द्वारा आपदा से होने वाले क्षतियों को काफी सीमा तक न्यूनतम किया जा सकता है। आपदा के प्रति सामाजिक अनुक्रिया मुख्यरूप से संचार माध्यमों (समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि) पर निर्भर करती है। इस तरह आपदा न्यूनीकरण में संचार प्रणाली अहम भूमिका निभाती है। यह सराहनीय बात है कि आपदा के प्रति समाज में अनुकूल तथा सकारात्मक अनुक्रिया में लगातार वृद्धि होती जा रही है। आपदा से प्रभावित लोगों की सहायता के लिए विभिन्न राष्ट्र तथा स्वैच्छिक सामाजिक संगठन शीघ्र राहत कार्य आरम्भ कर देते हैं।
  • राहत कार्य में व्यक्ति, समुदाय, सामाजिक वर्ग एवं संगठन, गैर सरकारी संगठन, सरकारी संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय सहभागिता (संयुक्त राष्ट्र संघ, रेडक्रॉस, रेड क्रीसेण्ड सोसाइटी, विश्व स्वास्थ्य संगठन, आदि) सभी स्तरों पर भागीदारी देखी जाती है। इनकी भूमिका का निर्धारण कर राहत सामग्रियों की उपलब्धता आवश्यक है।

आपदा पुनरूत्थान (Disaster Recurrence)

पुनरूत्थान अवस्था में आपदा के बाद स्थायी पुनर्विकास (पुनर्निमाण, पुनर्वास) को बढ़ावा देने वाली कार्यवाहियां शामिल हैं। पुनरूत्थान प्रक्रिया में उन सभी कार्यों और क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है, जो व्यक्ति एवं समुदाय को आपदा विशेष द्वारा उत्पन्न सभी प्रकार की समस्याओं एवं दुष्प्रभावों से समायोजन करने में सहायता करती है। आपदा से उत्पन्न प्रतिकूल प्रभावों में शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा, सम्पत्ति का विनाश व अन्य आर्थिक हानि, असामाजिक कृत्यों से उत्पन्न पीड़ा आदि हो सकते हैं। चूंकि आपदा पुनरूत्थान एवं समुदाय आधारित प्रक्रिया है, अत: इस प्रक्रिया में सामुदायिक सहभागिता का होना अति आवश्यक होता है, ताकि आपदा के भय एवं उसकी पीड़ा से व्यक्ति एवं समुदाय को बाहर निकाला जा सके।

आपदा पुनर्वास (Disaster Rehabilitation)

  • पुनर्वास का अभिप्राय उन क्रिया-कलापों से है, जो आपदा पीड़ितों को सामान्य स्थिति में आने और नियमित सामुदायिक कार्यों में पुनः सम्बद्ध होने में सहायता करने के लिए प्रारम्भ किए जाते हैं। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत आपदा द्वारा क्षतिग्रस्त एवं ध्वस्त तंत्रों (जलापूर्ति, विद्युत आपूर्ति, संचार एवं परिवहन तंत्र)आदि के नवीनीकरण तथा मकान, भवन, सड़कें रेल तथा पुलों के पुनर्निर्माण, राहत तथा रोजगार के अवसर उत्पन्न करना आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आपदा आने पर आपदा पुनरूत्थान तथा पुनर्वास की सफलता उस देश की राजनीतिक व्यवस्था, लोगों की तत्परता, सामाजिक सहभागिता, आपदोपरान्त कार्यों की संगठनात्मक संरचना, सामाजिक संरचना, पुनर्वास की प्राथमिकताओं के निर्धारण, एक साथ संगठनों की भूमिका, सटीक कार्य योजना, स्थानीय लोगों की सहभागिता, प्रशासनिक सहायता आदि पर निर्भर करती है।

आपदा प्रबन्धन के अन्तर्राष्ट्रीय संगठन

आपदाओं के कारण विश्व भर में तेजी से बढ़ रही मानवीय और आर्थिक क्षति को समझते हुए विगत वर्षों में कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का अविर्भाव हुआ है। इनमें से कुछ संगठन पहले से स्थापित विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के अन्तर्गत स्थापित किए गए हैं तो कुछ का गठन स्वतंत्र रूप से हुआ है। ये संगठन किसी भी आपदाग्रस्त देश या देशों के अनुरोध पर विभिन्न तरीकों से भिन्न - भिन्न स्तरों पर उनकी सहायता करते हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन निम्नलिखित हैं -

अनाराष्ट्रीय पुनरुत्थान मंच (International Recomey Platform, IRP)
इस संगठन का गठन वर्ष 2005 में जापान के कोने में आयोजित 'वर्ल्ड कॉक्रेन्स ऑन डिजास्टर रिहमान के रोशन किया गया। इस संगठन के प्रमुख कार्यों में आपदोपराना पुनसत्थान के दौरान अनुभव की गई प्रमुख बाधाओं को विहित करण, विकास संसाधनों की आपूर्ति हेतु उत्प्रेरक का कार्य करना एवं प्रभावी आपदा पुनरुत्थान के कार्वे में ज्ञान का एक अन्तर्राष्ट्रीय स्रोत बनना आदि है।

रेडक्रॉस

अपदा प्रबंधन में यह संगठन महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। इसके अनागा बवय एवं राहत कार्य, अपदा पुनरुत्थान एवं पुनर्वास पर विशेष बल दिया जाता है। इण्टरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेडक्रॉस एवं रेड जोसेष्ट सोसायटी (IFRC) आपदा से प्रभावित देश का रेतापी राष्ट्रीय मॉम या रेड कासष्ट सोसायटी द्वारा अपुरोध करने पर प्रभावित क्षेत्र में अपना से हुई पति का आकलन कार के लिए 'फोल्ड असेसमेष्ट' एवं 'कोजाडिनेशन टीम, जैसे - आकलन दल भेजती है। यह संस्था आकलन के पश्चात् आपदा से प्रभाषित पेत्रोंचा देशों में इमरजेन्सी रिस्पॉन्स यूनिट (ERUS) भेज सकती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ

  • अपदाओं की वैश्विक उपस्थिति को देखते हुए संयुका राष्ट्र संघ कार्यालय में संयुका राष्ट्र आपदा न्यूनीकरण अनाराष्ट्रीय रणनीति' नामक एक नोडल एवेरी बनाई गई। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण की दिशा में कार्य करन और दुनिया भर * आपदा जोखिम न्यूनीकरण से सम्बंधित गतिविधियों को समन्वित करता है। संयुक्त राष्ट्र अपदा न्यूनीकरण अन्तराष्ट्रीय रणनीति, योगी फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (एचएफए) 2005-2015 द्वारा निर्धारित मानदण्डों के अधीन कार्य करता है। 1989 में संयुका राष्ट्र महासभा में प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को कम करने के लिए 1990 के दशक के दौरान दूरगामी वैश्विक निषय लिए गए। इसी लक्ष्य को जान रणबर 1900-2000 के दशक को 'अन्तराष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण दशक के रूप में घोषित किया गया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण' का उद्देश्य विकासशील देशों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकम, बार, चापात, भू-स्खलन, सूखा, मरुस्थलीकरण और टिड्डी आक्रमन तथा प्रकृतिक मूल की अय आपदाओं द्वारा उत्पन जर-पार की हानि को अन्तराष्ट्रीय प्रयासों द्वारा कम करना है। इसमें विश्व के सभी देशों के लिए मुख्य सल -प्राकृतिक यारों के जोषिपाध्यपक राष्ट्रीय आकलन, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तरों पर आपदा का न्यूनीकरण तथा विसाव्यापी स्तर पर केतवनी प्रणालियों की सहज सुलभा निर्धारित किए गए हैं।

इण्डरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जमरजेंसी मैनेजमेंट

पह एक गैर-साधकारी शौक्षिक संगठन है। इसका प्रमुख उद्देश्य आपदा से प्रभावित देश या क्षेत्र के अनुरोध पर लोगों के नाम माल का संरक्षण कल है।

 विश्व बैंक

अपना प्रभावित क्षेत्र के समुचित सर्वेक्षण एवं आकलन करने के बाद विश्व बैंक आपोषात कायें, जैसे-जांचागत सुविधाओं के पुर्नस्थापना तथा आपढ़ पीड़ितों के पुनर्वस के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करती है।

यूरोपियन संघ

चूरोपियन संघका कम्युनिटी मैकनित्य फॉर सिविल प्रेटेक्सान (CMCP) वर्ष 2007 से नागरिक संरक्षण प्यायला तथा आपतकाल की बड़ी घटनाओं की स्थिति में तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता में सहयोग करता जा रहा है।

The document आपदा प्रबंधन: परिचय | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC

Top Courses for UPSC

FAQs on आपदा प्रबंधन: परिचय - आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

1. आपदा प्रबंधन क्या है?
उत्तर: आपदा प्रबंधन एक संगठनात्मक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य आपदाओं की संभावना और प्रभाव को कम करना है। इसका मुख्य उद्देश्य जनसंख्या की सुरक्षा, संपत्ति की रक्षा, और अवांछित संघटनाओं से होने वाले नुकसान को कम करना है।
2. आपदा प्रबंधन क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: आपदा प्रबंधन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संभावित आपदाओं को पहले से ही पहचानने और उनकी पहली संभावितता को कम करने की क्षमता प्रदान करता है। इसके अलावा, यह लोगों को आपदा के समय तत्पर और तैयार रखने में मदद करता है और उन्हें आपदा के प्रभाव से बचाने वाली नीतियों और योजनाओं को विकसित करने में मदद करता है।
3. आपदा प्रबंधन के मुख्य तत्व क्या हैं?
उत्तर: आपदा प्रबंधन के मुख्य तत्वों में शामिल हैं: आपदा पहचानना, आपदा के प्रभाव का मूल्यांकन करना, आपदा के प्रभाव से बचने और उन्हें कम करने की योजना बनाना, आपदा के समय तत्पर और तैयार रहना, और आपदा के बाद संघटनात्मक और सामान्यतः नीतियों को संशोधित करना।
4. आपदा प्रबंधन के लिए कौन-कौन से संगठन उपलब्ध हैं?
उत्तर: कुछ प्रमुख आपदा प्रबंधन संगठनों में भारतीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय इंटीग्रेटेड अपडेटेड हवाई खोज और बचाव योजना (NDRF), राष्ट्रीय जल आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NIDM), और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMI) शामिल हैं। इन संगठनों का मुख्य उद्देश्य आपदा प्रबंधन और संघटनात्मक योजनाओं का विकास है।
5. आपदा प्रबंधन के लिए भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किए गए कुछ योजनाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: भारत सरकार द्वारा अधिसूचित कुछ प्रमुख आपदा प्रबंधन योजनाएं निम्नलिखित हैं: 1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) 2. राष्ट्रीय जल आपदा प्रबंधन योजना (NDRMP) 3. राष्ट्रीय आपदा अंतरालीय योजना (NDMP) 4. राष्ट्रीय आपदा निधि (NDF) 5. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (NDMA)
34 videos|73 docs
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Summary

,

Viva Questions

,

study material

,

Objective type Questions

,

Extra Questions

,

shortcuts and tricks

,

video lectures

,

pdf

,

practice quizzes

,

Important questions

,

Free

,

mock tests for examination

,

ppt

,

आपदा प्रबंधन: परिचय | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Exam

,

Sample Paper

,

Semester Notes

,

आपदा प्रबंधन: परिचय | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

past year papers

,

आपदा प्रबंधन: परिचय | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

MCQs

;